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Friday, October 18, 2013

(61) जन्‍मति‍थि‍

जन्‍मति‍थि‍

तीस बरख नोकरी केला उत्तर रवि‍कान्‍त आइ.जी. पदसँ सेवा नि‍वृत्ति‍ भेला। जखनि कि‍ रवि‍शंकर आइ.जी.सँ आगू बढ़ि‍ डी.जी.पी.क पदभार सम्‍हारलनि‍। साल भरि‍ ऐ पदपर रहता। ओते नोकरीक अवधि‍ बँचल छन्‍हि‍। तीन दि‍न रवि‍शंकरकेँ पदभार सम्‍हारला उत्तर रवि‍कान्‍तकेँ मन पड़लनि‍ जे मीत-रवि‍शंकरकेँ बधाइ कहाँ देलि‍यनि‍। कारणो भेलनि‍ जे पनरह दि‍न पहि‍नेसँ जे कार्य-भार दि‍अए लगलखि‍न ओ नोकरीक अंति‍म दि‍न धरि‍ नै फरि‍छौट भऽ सकलनि‍। मनमे एलनि‍ जे मोबाइलेसँ बधाइ दऽ दि‍यनि। मुदा एक्के काजक तँ भि‍न्न-भि‍न्न जुइत होइए। जुइति‍क अनुकूले ने काज अनुकूल होइए‍, तँए मोबाइलसँ बधाइ देब उचि‍त नै बूझि‍ पड़लनि‍। ओना तत्काल जानकारीक रूपमे दऽ समए लेल जा सकै छल। मुदा से नै भेलनि‍। चाहक कप टेबुलपर रखि‍, दहि‍ना बाँहि‍ उठबैत पत्नी-रश्मि‍केँ कहलखि‍न-
की ऐ बाँहि‍क शक्ति‍ क्षीण भऽ गेल जे काज नै कऽ सकैए। मुदा...?”
रश्‍मि‍ अपना धुनि‍मे छेली। ओना एक्के टुबलपर बैस चाहो पीऐ छेली आ मेद-मेदीन चि‍ड़ै जकाँ मुँहमि‍लानी गपो-सप्‍प करै छेली। अपने धुनि‍मे मनो बौआइ छेलनि‍। एकठाम बैस‍‍ चाह पीबि‍तो मन दुनूक दू-दि‍शि‍या छेलनि‍। रश्‍मि‍क मनमे रवि‍शंकरक पत्नी कि‍रण नचै छेलखि‍न। जि‍नगी भरि‍ सखी-बहीनपा जकाँ रहलौं, मुदा आइ? आइ ओ रानीसँ महरानी बनि‍ गेली आ...? की हम ओइ बटोहि‍नी सदृश तँ ने भऽ गेलौं जेकरा सभ कि‍छु छीनि‍ घरसँ नि‍कालि‍ देल जाइ छै।
जहि‍ना कोनो नीनभेर बच्‍चा माएक उठौलापर चहाइत उठैत, बेसुधिमे बजैत, तहि‍ना पति‍क प्रश्नक उत्तर रश्‍मि‍ देलखि‍न-
ऐ बाँहि‍क शक्‍ति‍ ओतबे काल रहै छै जेते काल शान चढ़ाएल हथि‍यार ओकरा हाथमे रहै छै। नै तँ प्राणशक्‍ति‍ नि‍कलला उत्तर शरीर जहि‍ना माटि‍ बनि‍ जाइ छै तहि‍ना बनि‍ कऽ रहि‍ जाइए। हाथसँ हथि‍हार हटि‍ते जि‍नगी हहरए लगै छै।
पुन: चाहक कप उठा चुस्‍की लैत रवि‍कान्‍त बजला-
बच्‍चेसँ दुनू गोरे संगे रहलौं। खेनाइ-पीनाइ, खेलनाइ-धुपनाइ, घुमनाइ-फीरनाइ सभ संगे रहल। कहाँ कहि‍यो मनमे उठल जे दुनू गोरेमे कोनो दूरी अछि‍। अपनाकेँ के कहए जे घरो-परि‍वार आ सरो-समाज कहाँ कहि‍यो बुझलनि‍। मुदा आइ...?”
मुदा आइ की?”
इहए जे...। आइ बहुत दूरी बूझि‍ पड़ि‍ रहल अछि‍। बूझि‍ पड़ैए जे जेना अकास-पतालक अंतर भऽ गेल अछि‍। कोन मुँह लऽ कऽ आगू जाएब, से ि‍नर्णये ने मन कऽ पाबि‍ रहल अछि‍।
तखनि?”
सएह ने मन असथि‍र नै भऽ रहल अछि‍। जि‍नगी भरि‍क संगीकेँ ऐहेन शुभ अवसरपर केना नै बधाइ दियनि‍। मुदा एते दि‍न बरबरि‍क वि‍चार छल आब ओ थोड़े रहत। कहाँ ओ सि‍ंह दुआरपर वि‍राजमान केनि‍हार आ कहाँ हम देशक अदना एकटा नागरि‍क। की‍ अपनाकेँ ओइ कुरसीक बुझी जइसँ हेट भेलौं। सीकपर रखल वा ति‍जोरीमे रखल वस्‍तु ओतबे काल ने जेते काल ओ ओतए रहैत। रवि‍शंकर आइ ओतए छथि‍ जेतए हमरा सन-सन जि‍नगी अंति‍म छोड़पर पहुँचि‍नि‍हार हुनकर हुकुमदारी करैए। कोन नजरि‍ए ओ देखै छल आ आइ कोन नजरि‍ए देखता।
रवि‍कान्‍तक अन्‍तरमनकेँ रश्‍मि‍ आँकि‍ रहल छेली। मुदा जेते अाँकए चाहै छेली तइसँ बेसी घबाएल माछ जकाँ अपन सड़नि‍ बढ़ल जाइत रहनि‍। की आँखि‍क सोझक देखल झूठ भऽ जाएत। केना नै भऽ सकैए। दू गोटे बीचक बात तँ ओतबे काल धरि‍ सत्‍य रहैए जेते काल धरि‍ दुनू मानैए। काज थोड़े छी जे गरजि‍ कऽ कहत जे तोरा पलटने हम थोड़े पलटि‍ जाएब। मन असथि‍र होइते रश्‍मि‍क मनमे वि‍चार जगलनि‍। दुखक दबाइ नोर छी। पैघ-सँ-पैघ दुख लोक नोरक धारमे बहा वैतरणी पार करैए। बजली-
जहि‍ना अहाँक मनमे उठि‍ रहल अछि‍ तहि‍ना हमरो मनमे रंग-बि‍रंगक बात उठि‍ रहल अछि‍। कहाँ रवि‍शंकरक पत्नी कि‍रण राजरानी आ कहाँ हम...? कहाँ राधा संग कृष्‍ण आ कहाँ...? काल्हि‍ धरि‍ दुनू गोरे एकठाम बैस‍ एक थारीमे खेबो करै छेलौं आ एक्के गि‍लासमे पानि‍ओ पीऐ छेलौं, मुदा आइ संभव अछि‍? आखि‍र किए??”
हवाक तेज झोंकमे जहि‍ना डारि‍-डारि‍क पात डोलि‍-डोलि‍ एक-दोसरमे सटबो करैत आ हटबो करैत तहि‍ना रश्‍मि‍क डोलैत वि‍चार सुनि‍ रवि‍कान्‍त स्‍वयं डोलए लगला। एक तँ पहि‍नेसँ मन डोलि‍ रहल छेलनि‍ तैपर रश्‍मि‍क वि‍चार आरो डोला देलकनि‍। अनभुआर जगह पहुँचलापर जहि‍ना सभ हरा जाइत तहि‍ना हराएल मोने रवि‍कान्‍त बजला-
कानसँ सुनि‍तो, आँखि‍सँ देखि‍तो कि‍छु बूझि‍ नै पाबि‍ रहल छी जे की नीक की अधला। की करी की नै करी। मुदा साठि‍ बरखक संगीकेँ एते दूर केना बूझब। मुदा लगो केना बूझब। साठि‍ बरखक पथि‍क संगी जौं दू दि‍शामे चली तखनि केते दूरी हएत। मुदा साठि‍ बरखक जि‍नगीओ तँ छोट नै भेल?”
रवि‍कान्‍तक वि‍चार सुनि‍ रश्‍मि‍ टपकि‍ पड़ली-
जि‍नगी तँ एक दि‍न, एक क्षण, एक घटनामे बदलि‍ जाइए आ साठि‍-बरख की धो-धो चाटब।
तखनि?”
सएह नै बूझि‍ रहल छी। एतेटा जि‍नगी एक संग बि‍तेलौं मुदा आइ जइ जि‍नगीमे पहुँच‍‍ गेल छी तइ जि‍नगीक सम्‍बन्‍धमे कि‍छु वि‍चार कहि‍यो नै केलौं।
पत्नीक बात सुनि‍ रवि‍कान्‍तकेँ जहि‍ना आन गामक चौबट्टी, तीनबट्टीपर पहुँचि‍ते भक्क लगि‍ जाइत, जइसँ पूब-पच्‍छि‍मक दि‍शे बदलि‍ जाइत। मुदा एहनो तँ होइते अछि‍ जे लगलो भक्क ओहने चौबट्टी, तीनबट्टीपर खुजि‍तो अछि‍। अपन भक्क तँ तेना भऽ कऽ नै खुजलनि‍, खाली एकटा प्रश्नेटा उठलनि‍ जे बच्‍चासँ सि‍यान भेलौं, सि‍यानसँ चेतन भेलौं, चेतनसँ बुढ़ाड़ीक प्रमाणपत्र भेट‍ गेल। हरबाह थोड़े छी जे अधमरुओ अवस्‍थामे बुढ़ाड़ीक प्रमाण नै भेटै छै। भेटबो केना करितै, प्रमाणपत्रक संग पेन्‍शनो ने अबै छै। मुदा मन किए धक-धका रहल अछि‍। जि‍नगीक चारि‍म अवस्‍था वानप्रस्‍तक होइ छै, संयासीक होइ छै जे दि‍न-राति‍ दौगैत दुनि‍याँक हाल-चाल जानए चाहैए। से कहाँ मन मानि‍ कऽ बूझि‍ रहल अछि‍। पति‍केँ गंभीर अवस्‍थामे देखि‍ रश्‍मि‍ टि‍पली-
अहाँक मनमे जे नाचि‍ रहल अछि‍ उहए हमरो मनमे नाचि‍ रहल अछि‍। मुदा ईहो बात तँ झूठ नहि‍येँ छी जे जि‍नगीक संग बाटो बनै छै। आ बाटे संग बटोहीओ बाट बनबै छै?”
रवि‍कान्‍त पुछलखिन-
की बाट?”
पति‍क प्रश्न सुनि‍ रश्‍मि‍ वि‍ह्वल भऽ गेली। हेराइत संगीकेँ बाट देखाएब बहुत पैघ काज छी। मुदा लगले मनमे उठि‍ गेलनि‍ जे तखनि अपने किए एते बौआइ छी। कम-सँ-कम चाह पीऐ काल बैसारीओमे ऐ बातक वि‍चार करैत अबि‍तौं तँ अौझुका जकाँ तँ नै बौऐतौं। जोतल आ बि‍नु जोतल खेतमे चललासँ जहि‍ना पहि‍ने धड़ियाइ छै, धड़ि‍एला पछाति‍‍ पतियाइ छै, पतिएला पछाति‍‍ पेरियाइत पेरा बनै छै। वहए एकपेरि‍या बहुपेरि‍या बनैत चलै छै। रश्‍मि‍ बजली-
अहाँ कौलेज छोड़ला उत्तर जि‍म्मा उठा सरकारी बाट पकड़ि‍ साठि‍ बरख पूरा लेलौं। ने कहि‍यो जमीन दि‍स तकैक जरूरति‍ महसूस भेल आ ने तकलौं। मुदा आइ तँ ओतइ उतरि‍ आबि‍ गेल छी जेकर रस्‍ता अखनि धरि‍क रस्‍तासँ भि‍न्न अछि‍।
पत्नी‍क वि‍चार सुनि‍ रवि‍कान्‍त मुड़ी डोलबैत आँखि‍ उठा कखनो पत्नीक आँखि‍पर रखैत तँ कखनो उतारि‍ धरतीपर दइत। आगि‍पर चढ़ल कोनो बरतनक पानि‍‍ जहि‍ना नि‍च्‍चाँसँ ताउ पाबि‍ ऊपर उठि‍ उधि‍याइक परि‍यास करैत तहि‍ना रवि‍कान्‍तक वैचारि‍क मन सेहो उधि‍याइक परि‍यास करैत रहनि‍। मुदा जहि‍ना पि‍जराक बाघ पि‍जरेमे गुम्‍हरि‍ कऽ रहि‍ जाइत, तहि‍ना आइ धरि‍क जे मन रूपी बाघ एहेन शरीर रूपी पि‍जरामे फँसि‍ गेल छेलनि जे जेते आगू मुहेँ डेग उठबैक कोशि‍श करथि‍ ओते समुद्री वादल जकाँ आस्‍ते-आस्‍ते ढील होइत रहनि‍। आगूक झलफलाइत बाट देखि‍ रवि‍कान्‍त बजला-
वि‍चारणीय बात जरूर अछि‍, मुदा बि‍नु बूझल जि‍नगीक संग तँ अहुँक जि‍नगी चलल। कहाँ केतौ बेवधान भेल। आइ जे कहलौं ओ तँ ओहू दि‍न कहि‍ सकै छेलौं, जइ दि‍नसँ बहुत आगू धरि‍ बढ़ि‍ गेलौं। से तँ रोकि‍ कऽ मोड़ि‍ सकै छेलौं। मुदा आइ तँ जानल-बि‍नु (ज्ञानी-मुरूख) जानल दुनू संगे बौआए चाहै छी!”
पति‍क बात सुनि‍ रश्‍मि‍ मोने-मन वि‍चार करए लगली जे दुनि‍याँमे एहनो लोकक कमी नै अछि‍ जेकरा जरूरति‍ भरि‍ लूरि‍-बुधि‍ नै छै, मुदा ईहो तँ झूठ नै जे जेकरा छेबो करै ओइमे बेसी ओहने अछि‍ जे या तँ उनटा वाण चलबैए वा नहि‍येँ चलबैए। तखनि सुनटा वाण केना आगू बढ़त जौं बढ़बे करत तँ केते आगू बढ़त जेकरा आगू दुश्मन जकाँ चौबगली उनटा वाण घेरने अछि‍? मुदा उपए की! शुद्ध तेल-मोबि‍ल देल मजगूत इंजनो चढ़ाइपर दम तोड़ए लगै छै मुदा टुटलो चक्का बि‍नु तेलो-मोबि‍लक भट्ठा गरे दौगैत बि‍नु ब्रेकक गाड़ी जकाँ केतेकेँ जानो जइए आ केतेकेँ मुहोँ-कानो फोड़ैए। डेग आगू उठाएब जरूर कठि‍न अछि‍। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे जइ बाट पकड़ि‍ आइ धरि‍ चललौं जौं ओइ बाटकेँ छोड़ि‍ दोसर बाट पकड़ि‍ नव बटोही जकाँ वि‍दा होइ, ई तँ संभव अछि‍। जहि‍ना चि‍न्‍हार जगहक चोर पड़ा दूर देश जा अपन क्रि‍या-कलाप बदलि‍ नव-मनुखक जि‍नगी बना जीबए चाहैत ओ तँ संभव छै...।
वाण लगल पंछी जकाँ पति‍केँ देखि‍ अनुभवक सान्‍त्‍वना भरल शब्‍द नि‍कालि‍ रश्‍मि‍ बजली-
जहि‍ना अहाँक जि‍नगी तहि‍ना ने हमरो बनि‍ गेल अछि‍। जएह बुढ़ापा अहाँक सएह ने हमरो अछि‍। मुदा एकठाम तँ दुनू गोटे एक छी। एक्के दबाइक जरूरति‍ दुनू गोरेकेँ ने अछि‍। तँए वि‍चार दइ छी जे आब ने ओ रूतबा रहल आ ने ओकाइत, तखनि जानि‍ कऽ जहरो-माहूर खा लेब सेहो नीक नै।
रश्‍मि‍केँ आगूक बात पेटेमे घुरियाइत रहनि तइ बिच्‍चेमे रवि‍कान्‍त टि‍प देलखि‍न-
बेसी दुख तँ नै बूझि‍ पड़ैए मुदा साठि‍ बरखक प्रोढा अवस्‍था धरि‍ हमरा सबहक नजरि‍ नै गेल। सरकारीक पैघ जि‍म्मामे रहलौं। समायानुसार काज करि‍तो मुदा अपन जि‍नगी तँ सुरक्षि‍त रखि‍तौं। साठि‍ बरख पछाति‍‍ओ तँ चालीस बरख जीबैक अछि‍। की‍ नै जनै छेलौं जे दरमाहा टूटि‍ जाएत, जि‍नगीक आवश्‍यकता बढ़ैत जाएत, ओहन स्‍थि‍ति‍मे कथी कएल जा सकै छै।
पति‍क वि‍चारकेँ गहराइत समुद्र दि‍स जाइत देखि‍ मुँहक दसो वाण साधि‍ रश्‍मि‍ छोड़लनि‍-
अनेरे मनमे जुड़शीतलक पोखरि‍क पानि‍ जकाँ घोर-मट्ठा करै छी। घोरे मट्ठा ने घीओ नि‍कालैए आ अनहै सेहो नि‍कालैए। संयासी सभ केना फटलाहा कमलक मोटरी बान्‍हि‍ कन्‍हामे लटका लइए आ सौंसे दुनि‍याँ घुमैए। अहाँकेँ तँ सहजे‍ चरि‍-चकि‍या गाड़ी चलबैक लूरिओ अछि‍।
पत्नीक वि‍चार सुनि‍ रवि‍कान्‍त ओझरा गेला। एक दि‍स संयासीक बात बाजि‍ कहि‍ रहल छथि‍ जे जहि‍ना कानूनी अधि‍कारसँ जीवन-रक्षा होइत तहि‍ना ने संयास अवस्‍था -वानप्रस्‍त- पवि‍त्र मनुखक नैति‍क अधि‍कार सेहो छी। दोसर दि‍स चरि‍ चकि‍या गाड़ीक चर्च सेहो करै छथि‍ जे भरि‍सक अपनो लगा कऽ कहै छथि‍। संगी देखि‍ रवि‍कान्‍त दहलाए लगला। जहि‍ना कोसी-कमलाक बाढ़ि‍मे भँसैत घरपर बैस‍‍ घरवारी बंशीओ खेलाइए आ कमला-कोसीक गीतो गबैए, तहि‍ना वि‍ह्वल भऽ रवि‍कान्‍त बजला-
हँसी-चौल छोड़ू। आब कोनो बाल-बोध नै छी। हम सभ अपन जीवन अपन सामाजि‍क जीवन नै बनाएब तँ देखि‍ते छि‍ऐ जे मनुख एक दि‍स चान छूबैए तँ दोसर दि‍स सीकीक वाणक जगह बम-वारूद लऽ मनुखक बीच केहेन खेल दुनि‍याँमे खेल रहल अछि‍। खैर, ओते सोचैक समए आब नै रहल। जेकर ति‍ल खेलि‍ऐ ओकरा बहि‍ देलि‍ऐ। अपन चलीस बरखक जि‍नगी अछि‍, ने हमर कि‍यो मालि‍क आ ने हम केकरो मालि‍क छि‍ऐ। भगवान रामकेँ जहि‍ना अपन वानप्रस्‍त जीवनमे अनेको ऋृषि‍-मुनि‍, योगी-संयासी सभसँ भेँट भेलनि‍ आ अपनो जा-जा भेँटो केलखि‍न। तहि‍ना ने अपनो दोसराक ऐठाम जाइ आ ओहो अपना ऐठाम आबए। मुदा वि‍चारणीय प्रश्न ई अछि‍ जे रामकेँ के सभ भेँट करए एलनि‍ आ कि‍नका-कि‍नका ओतए भेँट करए स्‍वयं गेला। ई प्रश्न मनमे अबि‍ते गाछसँ खसल पघि‍लल कटहर जकाँ मन छँहोछि‍त्त भऽ गेलनि‍। खोंइचा-कमरी संग एक दि‍स तँ दोसर दि‍स कोह उड़ि‍-उड़ि‍ कौआ आगू पहुँच‍‍ जाइत। आँठी छड़पि‍-छड़पि‍ बोन-झारमे बच्‍चा दइ दुआरे जान बँचबैत, तँ नेरहा उत्तर-दछि‍ने सि‍रहाना दऽ पड़ल-पड़ल सोचैत जे जेते पकबह तेते सक्कत हेबह तँए समए रहैत भक्ष बना लैह नै तँ दुइर भऽ जाएब। रवि‍कान्‍त सोचैत-सौचैत जेना अलि‍साए लगला। हाफी भेलनि‍।
रवि‍कान्‍तकेँ हाफी होइत देखि‍ रश्‍मि‍क मनमे उठलनि‍ जे हाफी तँ नि‍नि‍याँ देवीक पहि‍ल सि‍ंह दुआरि‍क घंटी छी। भने नीक हेतनि‍ जे सुति‍ रहता नै तँ एे उमेरमे जौं नीन उड़लनि‍ तँ अनेरे सालो-महि‍नेमे बदलि‍ जेतनि‍। फटकि‍‍‍ कऽ बजली-
जेते माथ धुनैक हुअए वा देह धुनैक हुअए अपन धुनू। हमर जे काज अछि‍ तइमे हम बिथूत नै हुअ देब। हमरा लिए तँ अहीं ने सभ कि‍छु छी।
तीन सए घरक बस्‍ती बसन्‍तपुर। छोट-नम्‍हर चालीस टा कि‍सान परि‍वार शेष सभ खेत-बोनि‍हारसँ लऽ कऽ आनो-आनो रोजगार कऽ जीवन-बसर करैए। अनेको जाति‍ गाममे। ओना मझोलका कि‍सान बेसी। ओकरो दशा-दि‍शा भि‍न्न-भि‍न्न। तेकर अनेको कारणमे दूटा प्रमुख। जइसँ वि‍धि‍-बेवहारमे सेहो अंतर। कि‍छु जाति‍क लोक अपने हाथे हरो जाेइत लैत आ खेतक काजो करैत जइसँ आमदनीक बँचतो होइत आ कि‍छु एहनो जे अपने हाथसँ काज-उदम नै करैत तँए बँचत कम। कम बँचत भेने परि‍वार दि‍नानुदि‍न सि‍कुड़ैत जाइत। ओना गामक बुनाबटिओ भि‍न्न अछि‍। एक तँ ओहुना दू गामक बुनाबटि एक रंग नै अछि‍। तेकर अनेको कारणमे प्रमुख अछि‍, खेतक बुनाबटि‍, जनसंख्‍या जाति‍ इत्‍यादि‍। बसन्‍तपुरक बुनाबटि‍ आरो भि‍न्न। ऊँचगर जमीन बेसी नि‍चरस कम अछि‍ जइसँ गाछी-बि‍रछी सेहो बेसी अछि‍ आ घर-घराड़ी, रस्‍ता-पेरा सेहो ऐल-फइल अछि‍।
बसन्‍तपुरमे दूटा नम्‍हर कि‍सान बाँकी छोट। नम्‍हर कि‍सान परि‍वार रहने गामोक आ अगल-बगलक आनो गामक लोक जेठरैयती परि‍वारो बुझैत आ जेठरैयत कहबो करैए। राजक जमीन्‍दार तँ नै मुदा गमैया जमीन्‍दार सेहो कि‍छु गोटे बुझैत। तेकर कारण जे दुनूक महाजनीओ चलैत आ गामक झड़-झंझटिक पनचैतीओ करैत। कनी-मनी अनचि‍तो काजकेँ गामक लोक अनठा दैत। तइमे राधाकान्‍त आ कुसुमलाल दुनू गोटेक जमीनोक बुनाबटि‍ आरो भि‍न्न अछि‍। चौबगली टोल सभ बसल अछि‍ आ बीचक जे तीस-पैंतीस बीघाक प्‍लॉट छै ओ मध्‍यम गहींर अछि‍। जइसँ अधि‍क बर्खा भेने नाला होइत पानि‍क नि‍कासी कऽ लैत, कम भेने चाैबगलीक ओहासी एने रौदि‍याहो समैमे उपजि‍ए जाइत। ओना दुनू गोरे बोरि‍ंग सेहो गड़ौने छथि‍। तँए रौदि‍याहो समए भेने खेतक लाभ उठाइए लइ छथि‍। पच्‍चीस-तीस बीघाक बीचक दुनू कि‍सान। मुदा दुआरपर बखारीओ आ पोखरि‍क महारपर दू-सलि‍या तीन-सलि‍या नारोक टाल रहि‍ते छन्‍हि‍।
राघाकान्‍तो आ कुसुमलालोक परि‍वार बीच तीन पुश्‍तसँ ऊपरेक दोस्‍ती रहल छन्‍हि‍। ओना दुनू दू जाति‍क मुदा अपेक्षा-भाव एहेन जे चालि‍-ढालि‍सँ अनठि‍या नै बूझि‍ पबैत जे दुनू दू जाति‍क छथि‍। किएक तँ कोनो काज-उदेममे एक-दोसराक बाले-बच्‍चे एक-दोसरठाम जाइत। ओना आने गामक कुटुम जकाँ दुनू परि‍वारक बीच कपड़ा-लत्ताक वर-वि‍दाइक चलनि‍ सेहो अछि‍। मुदा तैयो सराध-बि‍आह आदि‍ परिवारि‍क काजमे दुनू दू जाति‍क परि‍चए देबे करैए।
नम्‍हर भुमकम होइसँ पहि‍ने जहि‍ना नहियोँ होइबला बच्‍चा सबहक जनम भऽ जाइ छै‍ जइसँ दोस्‍तीयारेक संभावना अनेरो बढ़ि‍ जाइए‍, मुदा से नै राधाकान्‍त आ कुसुमलाल दुनू गोटेकेँ एक्के दि‍न बेटा भेलनि‍। ओना कि‍यो-केकरो ऐठाम जि‍गेसा करए नै गेलखि‍न तेकर कारण भेलै जे अपने-अपन घर ओझरा गेलनि‍। ओना पमरि‍या-हि‍जरनी महिना दि‍न धरि‍ दौग-बड़हा करैत रहल। दाइओ-माइ छठि‍यारमे रवि‍दि‍न एकक नाओं रवि‍कान्‍त आ दोसराक नाओं रवि‍शंकर रखि‍ देलकनि‍। अनेरे फूलक बोनमे टहलि‍तथि‍ आकि‍ साँप-कीड़ाक बोनमे। बोन तँ बोने छी, दुनूक छी। तँए हरहर-खटखटसँ नीक दि‍नेकेँ पकड़ि‍ लेलनि‍। ओना एकटा आरो केलनि‍ जे दुनूमे सँ कि‍यो जाति‍क पदवी नै लगौलनि‍।
सुभ्‍यस्‍त परि‍वार रहने तीन बरख पछाति‍‍ए स्‍कूल जाइ जोकर भऽ गेल मुदा चारि‍म बरखमे दुनूक नाओं गामेक स्‍कूलमे लि‍खौल गेल। ओना जेहने सोझमति‍या राधाकान्‍त तेहने कुसुमलालो। मुदा नाओं लि‍खबै दि‍न रवि‍कान्‍तक पि‍ता गेलखि‍न आ राधाकान्‍त अपने नै जा भायकेँ पठौलखि‍न आ रवि‍शंकरक पि‍त्ती एक बरख घटबी कऽ कऽ नाओं लि‍खौलखि‍न। ओना राधाकान्‍तकेँ स्‍कूलपर जेबाक मनो ने होइ छन्‍हि‍। कि‍एक तँ स्‍कूल सबहक जे कि‍रदानी भऽ गेल ओ देखै जोग नै अछि‍। शि‍क्षक सभ वि‍द्यार्थीकेँ नहि‍येँ पढ़ैले प्रेरि‍त आ नहि‍येँ पढ़ैक जि‍ज्ञासा जगा पबै छथि‍। छड़ी हाथे पढ़बए चाहै छथि‍।
एक तँ एक रंगाह परि‍वार तहूमे दोस्‍ती। दुनू गोरे तेहेन चन्‍सगर जे गामेक स्‍कूलसँ पटका-पटकी करैत नि‍कलल। पटका-पटकी ई जे एक साल रवि‍कान्‍त फस्‍ट करैत तँ दोसर साल रवि‍शंकर ओना हाइ स्‍कूलमे थोड़े गजपट भेल, स्‍कूलक शि‍क्षक आँकि‍ लेलनि‍ जे केतबो ऊपरा-ऊपरी छै तैयो सोचन शक्‍ति‍मे दुनूमेक बीच अन्‍तर कि‍छु जरूर छै। कौलेज तँ बि‍ना माए-बापक होइए, केकरा के देखत। मुदा आॅनर्सक संग दुनू गोटे प्रथम श्रेणीमे नि‍कलल।
आइ.पी.एस. कऽ दुनू गोटेक ट्रेनि‍ंग आ ज्‍वानि‍ंग सेहो भेल। दोस्‍तीमे बढ़ोतरी होइते गेल।
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