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Friday, October 18, 2013

(26) बपौती सम्‍पति‍‍

बपौती सम्‍पति‍‍
आसि‍न अन्हरिया चौठ। गोटि-पंगरा खाएन-पीन शुरू भऽ गेल। मातृनवमी-पितृपक्ष साझीए चलि रहल अछि। कि‍यो-कि‍यो बापो, दादा, परदादाक नाओंसँ तँ कि‍यो-कि‍यो माएओ, दादी, परदादी इत्यादिक निमित्ते नोति-नोति‍ खुअबैत। जल-तर्पण सेहो परीवे दिनसँ शुरू भऽ गेल। मुदा ईहो गोटि पंगरे। किछु गोटे ठेकियौने जे एकादशीकेँ जल-तपर्ण कऽ लेब। तहिना मातृपक्ष लेल नवमी आ पितृपक्ष लेल एकादशीकेँ नोतहारी नोति खुआ लेब। मुदा गामक किछु जातिक बीच तेसरो तरहक होइत। ओ ई होइए‍ जे बेरा-बेरी सभ सौंसे टोलकेँ एक-एक दिन खुअबैए। जेकरा ढढक कहैए किछु गोटे मातृपक्ष लेल महिलाकेँ आ पि‍तृपक्ष लेल पुरुखकेँ नोत दऽ सेहो खुअबैए। पक्षक भिनौज भऽ गेल अछि। एकपक्ष मातृनवमी आ दोसर पितृपक्ष। नवमी मातृपक्षक हिस्सा आ एकादशी पितृपक्षक हिस्सा भऽ गेल अछि‍। दुनू टेंगारीकेँ घरसँ निकालि गुलटेन पच्चर लगा सिलौटपर पिजबैक विचार केलक आकि तमाकुल खाइक मन भेलै। चुनौटीसँ सकरी कट तमाकुल निकालि तरहत्थीपर डाँट बीछते रहै आकि पत्नी मुनिया आबि कहलकै-
घरमे एक्को चुटकी नून नै अछि, भनसा बेर भऽ गेल, कखनि आनब?”
अच्छा होउ, जाबे अहाँ सजमनि बनाएब ताबे हम दौगले नून नेने अबै छी। टेंगारी नेने जाउ कोठीक गोरा तरमे रखि देबै।
हाँइ-हाँइ तमाकुल चुनबए लगल। ठोरमे तमाकुल लइते, मरचूनक दुआरे, केनादन लगलै कि थुकड़ि कऽ फेकैत दोकान दि‍स विदा भेल। एक तँ तमाकुल मनकेँ हौड़ि देलकै दोसर, काज (टेंगारी पि‍जेनाइ) पछुआइत देखि‍ आरो मन घोर भऽ गेलै। मनमे उठलै पुरने कपड़ा जकाँ परिवारो होइए। जहिना पुरना कपड़ाकेँ एकठीम फाटब सीने दोसरठाम मसकि जाइ छै तहिना परिवारोक काजक अछि। एकटा पुराउ दोसर आबि जाएत। मुदा चिन्ता आगू मुहेँे नै ससरि रूकि‍ गेलै। चिन्ताकेँ अँटकिते मनमे खुशी एलै। अपनापर ग्लानि भेलै जे जइ धरतीपर बसल परिवारमे जनम लेबाक सेहन्ता देवीओ-देवताकेँ होइ छन्हि ओकरा हम माया-जाल किए बुझै छी। ई दुनियाँ केकरा लेल छै? केकरो कहने दुनियाँ असत्य भऽ जाएत। ई दुनियाँ उपयोग करैक वस्‍तु छी ने कि उपभोग करैक।
गुलटेनकेँ देखि‍ आमक गाछक छाँहमे बैसल भुखना कहलक-
तमाकुल खा लैह काका, तखनि जइहऽ।
ठाढ़ भऽ गुलटेन भुखनाकेँ कहलक-
बौआ, अगुताएल छी, जल्दी दू धूस्सा दहक आ लाबह। बेसी काल नै अँटकब।
एह काका, तोहूँ सदिखन अगुताएले रहै छह। तमाकुलो खाइक छुट्टी नै रहै छह।कहि भुखना चून झाड़ि चुटकीसँ तमाकुल बढ़ौलक। मुँहमे तमाकुल दैते रसगर लगलै। सुआद पाबि गुलटेन बाजल-
बड़ टिपगर खैनी खुऔलेँ भुखन। एहेन टिपगर माल कोन दोकानक छियौ?”
काका की कहबह; दिन आठम एकटा समस्तीपुरक वेपारी साइकिलपर एक बोझ तमाकुल लऽ बेचए आएल रहए। रातिमे अपने ऐठीम रहल। एह काका, भरि राति ओ वेपारी एक हिसाबे जगौनहि‍ रहल। जेहने खिस्सक्कर तेहने महरैया रहए। खाइसँ पहिने महराइ गौलक आ खेला पछाति‍ एक्केटा तेहेन खिस्सा, रजनी-सजनीक, उठौलक जे ओरेबे ने करए। जखनि डंडी-तराजू पच्‍छि‍म चलि गेल तखनि हमहीं कहलिऐ जे आब छोड़ि दियौ। बड़ राति भऽ गेल। तखनि जा कऽ छोड़लक। भिनसर भेने पोखरि-झाँखरि दि‍ससँ आएल तँ चाह पि‍आ देलिऐ। दलानपरसँ साइकिल निकालि तमाकुल सेरियाबए लगल। हमहूँ गिलास धोइ चक्कापर रखि एलौं आकि जेबीसँ दस टकही निकालि दिअ लगल, कहलिऐ-
ई की दइ छी।ओ कहलक हम वेपारी छी कोनो अभ्यागत नै। तँए खेनाइक पाइ दइ छी। आब तोंही कहऽ काका ओकरासँ पाइ लेब उचित होइत। की हम सभ अपन बाप-दादाक बनौल प्रतिष्ठाकेँ भँसा देब? ई तँ बपौती सम्पति छी किने? एकरा केना आँखिक सोझहामे मेटाइत देखब।
थूक फेक‍ गुलटेन कहलक-
एहनो कियो बूड़िबक्की करए। पाभरि खेने हएत कि नै खेने हएत, तइले लोक अपन खानदानक नाक कटा लेत। नीक केलह जे पाइ नै छूलह।
अपन बड़प्पन देखि‍ मुस्की दैत भुखना बाजल-
ऐँह की कहिअ काका, ओहो बड़ रगड़ी रहए, कहए लगल जे से केना हएत। हम कि कोनो भूखल-दुखल छी, आकि वेपारी छी। मुदा हमहूँ पाइ नै छुलिऐ। तखनि ओ दस-बारहटा पात निकालि कऽ दैत कहलक, जहिना अहाँक अन्न खेलौं तहिना हमहूँ तमाकुल खाइएले दइ छी। सएह छी।
आगू बढ़ैत गुलटेन बाजल-
बौआ, अखनि औगुताएल छी। नूनक दुआरे तीमन अनोने रहि जाएत।
थोड़बे हटि कऽ घोघन साहुक दोकान। गुलटेनकेँ देखिते झिंगुरकाका कहलखिन-
खनि धरि माथमे केश लगले देखै छि
माथ हसोथि कऽ देखैत गुलटेन बाजल-
अखनि कटबै जोकर कहाँ भेल हेन। जखनि कानपर केश लटकऽ लगत तखनि ने कटाएब।
बिसरि गेलह। काल्हिए ने बाबूक बरखी छिअ। हमरो चच्चा साहैबकेँ छियनि। दुनू गोटे एक्के दिन ने मरल रहथि‍।
झिंगुरकक्काक बात सुनि गुलटेनकेँ धक् दऽ मन पड़ल। बाजल-
हँ, ठीके कहलौं काका। आइ जौं अहाँ भेँट नै होइतौं तँ बरखी छूटिए जाइत।
अखनो किछु नै भेल हेन। जा कऽ कटा आबह। हमर तँ तेहेन झमटगर दियाद अछि जे भोरेसँ चारि गोटे लागल अछि मुदा अखनो धरि पार नै लगल हेन।
अखनि तँ हमहीं टा घरपर छी। दियादिक तँ सभ कियो अपन-अपन हाल-रोजगारमे चलि गेल। कियो झंझारपुर वेपारीक संग गछकटियामे तँ कियो सुखेतक चिमनीपर ईंटा बनबैमे। अपने केश कटाएब ओरियान बात करब आकि ओकरा सभकेँ बजबैले जाएब।
असली कर्त्ता तँ तोहीं ने छहक। तोहर कटाएब जरूरी छह। हमरा सभमे तँ पाँच बर्षी धरि सभ दियाद-वाद केशो कटबैत अछि आ कम-सँ-कम एगारह गोटेकेँ खाइओले दैत अछि। तोरा सेहो एकटा आरो हेतह। खाएन-पीन माने मातृनवमी-पितृपक्ष चलिते अछि। चाचाजीकेँ तीर्थेपर वर्षी पड़ि गेलनि, तँए दोहरा कऽ खुअबैक झंझटे नै रहलनि। मुदा तूँ सभ तँ एकादशीकेँ खुअबै छहक तँए तोरा दोहरा कऽ सेहो करए पड़तह। ओना ई सभ मन मानैक बात छी मुदा चलनि‍ओ तँ अपन महत रखैए किने।
झिंगुरकक्काक बात सुनि दोकानदारकेँ गुलटेन कहलक-
हेहौ घोघन साहु, झब दऽ एक टकाक नून दए।
गमछामे नून बान्हि गुलटेन लफड़ल घर दि‍स चलल। मनमे पिता नाचए लगलखि‍न। हृदए पसीझ‍ गेलै। स्मरण भेलै, बाबू अनका जकाँ नै छला। आगू-पाछूक बात जनै छला। जौं से नै तँ किएक ने अनके जकाँ हमरो खेत-पथार कीनि‍ देने रहितथि। कोनो कि कमाइ-खटाइ नै छला। जौं से नै छला तँ कातिक मासमे ओते खरचा करि कऽ भागवत केना करबै छला। तैपर सँ भोजो-भनडारा करिते छला। हमरे लेल की कम केलनि? घर-गिरहस्तीक सभ लूरि‍ सिखा देलनि। बारहो मासक काज। हम कि कोनो नोकरी करै छी जे सालो भरि कहियो बैसारी नै होइत अछि। कमाइ छी, खाइ छी, ठाठसँ जिनगी बि‍तबै छी। जौं खेते रहैत आ खेती करैक लूरि‍ए नै रहैत तँ छुच्‍छे खेते लऽ कऽ की होइत। गाममे देखबे करै छी खेतबला सबहक दशा। रौदी हुअए आकि दाही अछैते खेते हाट-बाजारसँ मोटा उघै छथि। हमरा तँ घराड़ी छोड़ि एक्को धूर नै अछि। तँए कि केकरोसँ अधला जीबै छी। अपन खुशहाल जिनगीपर नजरि अबि‍ते आनन्दसँ हृदए ओलड़ि गेलनि। मरहन्ना धान जकाँ लटुआएल नै, अपन चढ़ल जुआनी जकाँ खेतक आड़िपर ओलड़ल। केना लोक बजैए जे जेकरा अ आ नै लिखए अबैए ओ मुरुख अछि। बाबू तँ औंठे-निशान दऽ कोटासँ मोटीओ तेल आ चिन्नीओ अनै छला। बड़का-बड़का सर्टिओफिकेटबला सभकेँ देखै छियनि जे दारू पीब लेता आ बीच सड़कपर ठाढ़ भऽ अंग्रेजीमे भाषण करैत लोकक रस्ता रोकने रहै छथि। तइमे हजार गुना नीक ने बाबू छला। खाइबेरमे आँगनमे नै रहै छेलौं तँ शोर पाड़ि संगे खुअबै छला। जहिया कहियो नीक-निकुत अनै छला आ थारीमे अन्दाजसँ बेसी बूझि पड़ै छेलनि तँ थारीसँ निकालि माएकेँ दइ छेलखिन नै तँ ओते छोड़ि कऽ उठै छला। आ हा-हा एहेन बाप होएब की अधला छी। जखनि काज करए जाइ छला तँ संगे नेने जाइ छला आ काजक लूरि‍ सिखबै छला। काजक लूरि‍ भेल तहन ने बोइन करए लगलौं। हुनकर सालो भरिक हिसाब केहेन छेलनि। आसि‍न-कातिक गछपंगियाँ आ खढ़कटिया हुनकेसँ सीखलौं। तहिना अगहन-पूस धनकटिया, नारबन्हिया, दाउन केनाइ, टाल लगौनाइ सीखने छी। किए एक्को दिन बैसारी रहत। अखनुका छौंड़ा सभ जकाँ नै ने जे कहत काजे ने अछि। रस्तापर बालु उड़ाएब आकि पानि डेंगाएब। मुरूखो रहैत बाबूए ने सिखौलनि जे फागुनसँ जेठ धरि घरहटक समए होइ छै। जेकरा घरहट करैक लूरि रहत वएह ने अपनो घर आ अनको घर बन्हैमे मदति कऽ सकैए। जेकरा लूरि‍ए ने रहतै ओकरा इन्दिरा आवासमे मुखिया, चिमनीबला, सिमटीबला नै ठकतै तँ कि जेकरा अपन घर बनबैक लूरि रहत, ओकरा ठकत? अपनापर गुलटेनकेँ भरोस होइते मनमे खुशी उपकलै। मुहसँ हँसी निकललै। ओगरवाहिबला गाछीक मचकीपर नजरि गेलै। की हमरा सबहक दुनियाँ अछि? बड़क गाछपर सँ बर्ड़ू काटि बरहा बनबै छी। मुठबाँसीक बल्ला, पि‍ढ़िया आ कील बना गाछक डारिमे लटका झूलबो करै छी आ गेबो करै छी। जे चौमासा, छहमासा, बारहमासा मचकीक स्टेजपर होइत अछि ओ बाजा-बूजी आ बैस कऽ गबैमे केना होएत? असकरे कृष्ण राधाक संग कदमक झूलापर चढ़ि नचबो करै छला, बौसरीओ बजबै छला आ आसो लगबै छला। मुदा अखनि तँ देखै छी जे बाजा कियो बजबैए‍, नाच कियो करैए‍ आ गीत कियो गबैए। तेहने ने देखिनिहारो छथि। कियो कैसियोबलाकेँ देखैए‍ तँ कियो ठेकैताकेँ, कियो नचनिहारक नाच देखैए‍ तँ कियो ओकर कानक झूमकाकेँ। गौनिहारक अवाज सुनैए, ने कि ओकर मुँह देखैए।
नूनक मोटरी पत्नीकेँ दैत गुलटेन कहलक-
बाबूक बरखी काल्हिए छी। बिसरि गेल लौं। केश कटौने अबै छी। ताबे अहाँ बरखी लेल जे चाउर रखने छी ओकरा निकालि रौदमे पसारि दियौ। राहड़ि सेहो उलबए पड़त। बेरू पहर तीमन-तरकारी आ मसल्ला हाटसँ लऽ आनब। दूध तँ आइए पौरल जाएत। ओना अमहौरपर सँझुको दूध जनमि जाएत।
पतिक बात सुनि मुनिया बजली-
एहेन अहाँ बिसराह छी जे, सभ काज चौबीसमा घड़ीमे सम्हरत। ने कुटुमकेँ नोत देलौं आ ने बेटी-जमाएकेँ खबरि देलियनि।
अच्छा सभ हेतै। अनजान-सुनजान महाकल्याण। बाबू कोनो अधरमी रहथि जे कोनो बाधा हएत। उगलाहा सभ देखबो करै छथि आ पारो लगौता
कहि गुलटेन केश कटबए विदा भेल। केश कटा बरखीक जानकारी आ सबजना नोत दऽ चोट्टे घूमि‍ गेल।
काजमे गुलटेन जेहने होशगर माने लूरि‍गर तेहने बिसराहो। सभ बुझैत। उजड़ल गाम केना बसत। दरिद्र गाम केना सुभ्यस्त बनत, ऐ कलाक प्रदर्शन गुलटेनक काज देखबैत। अनाड़ीकेँ काजक लूरि‍ सिखाएब, हनपटाह गाए-महिंस दूहब, डरबुकसँ डरबुक गाएकेँ बहाएब माने साँढ़ लग लऽ जा पाल खुआएब, घोरनोबला आ चुट्टियाहो गाछपर चढ़ि आम तोड़ब, झोंझगर बाँसमे पत्ता तोड़ब, सुरुंगवा शीशो पांगब, सुआगर घर छाड़ब, सक्कत खेत जोतब, पनिगर खेतमे धान रोपब, सांङ्गि‍पर ढेंग उठाएब, दुख‍ताहकेँ खाटपर उठा डाक्‍टर ऐठाम लऽ जाएब, फड़काह बच्छाकेँ पटकि नाथब, हर लगाएब इत्यादि काज समाजमे केकरो कऽ दैत। केना ने करैत? एकरे तँ अपन बपौती सम्पति बुझैए।
वर्षी भोजक चर्चा जनीजातिक माध्यमसँ सगरे गाम पसरि गेल। अपन दायित्व बूझि एका-एकी मरदो आ स्त्रीगणो गुलटेन ऐठाम आबए लगली। जहिना अनका ऐठाम काज भेने गुलटेनो बिनु कहनौं पहुँच‍‍ जाइए‍ तहिना समाजोक लोक आबए लगला। रवियापर नजरि पड़िते गुलटेन कहलक-
रबी, तोरा ऐठाम तँ जाइए लेल लौं। भने आबिए गेलह। बहुत दिन जीबह।
रवि‍या पुछलकनि‍-
किए भैया? अखने फोकचाहावालीकाकी आँगनमे बजली; तब बुझलौं।
ठीके बुझलहक। बिसरि गेल लौं। दोकानपर झिंगुरकाका मन पाड़ि देलनि। मुदा काज तँ कल्हुका बदला परसू नै हएत।
हमरा बुते जे हेतह तइमे पाछू थोड़े हेबह।
चाउर-दालि तँ घरेमे अछि। तेल-मसल्ला, तरकारी हाटेपर सँ लऽ आनब मुदा पंचकेँ दुइओ कौर दही नै खुऐबनि से नीक हएत?”
सँझुका दूध अपनो रहत आ किसुनोसँ लऽ लेब। केते दूध पौरबहक?”
दू मन चाउर रान्हब। अाधोमन तँ दही चाही।
अदहा मन सँ हेतह?”
अपना सभमे दहीए केते परसल जाइए। गरीब लोक अन्ने बेसी खाइए। दूध-दही आकि फल-फलहरी खाएओ चाहत से आनत केतएसँ।
हँ, ई तँ ठीके कहलह। हम तँ कहबह जे तरकारीओ किए हाटपर सँ अनबह। अखनि तँ सबहक चारपर सजमनि कदीमा आ बाड़ीमे भट्टा अछिए। तइले पाइ किए खर्च करबह। औगताइमे अदौरी बनौल नै हेतह। बैगन आ अदौरी नै बनेबह से केहेन हएत?”
मन होइए जे बड़-बड़ीक ओरियान करी।
तों सनकि गेलह हेन। बड़-बड़ीक घाटि केते मेठनियाँ होइए से बुझै छहक।
हँ, से तँ ठीके कहलह।
अखनि जाइ छिअ। दहीसँ निचेन भऽ जाह। काल्हि दुपहरमे ने काज हेतह। आकि पुजौनिहारो औथुन।
अपना सभमे केते पुजौनिहारकेँ देखै छहक। जतिया आगू कोनो पतिया लगै छै।
भगिन-पुतोहु दालि दर्ड़ैले अबै छलि। डेढ़ियापर अबि‍ते गुलटेनपर नजरि पड़ि‍ते मुँह बि‍जकबैत बाजलि-
बुढ़ा, अपनो मरता आ दोसरोकेँ जान मारथिन। काल्हि-परसू ई सभ काज होइतै। कहि दालिक मुजेला लऽ जाँत दि‍स बढ़लि।
गोसाँइ डुमि‍ते भाए भजनाक संग सिंहेसरी पहुँचल। अपना माथपर पहिरैबला कपड़ा आ अल्लूक मोटरी आ भजनाक माथपर चाउर-दालिक। बिनु छँटले चाउर आ गोटे दालि। आँगन पहुँच‍‍ सिंहेसरी कानल नै। माए-बाप लग बेटीक कानब तँ सिनेहक होइ छै। मुदा सिंहेसरीक मन तखनेसँ लहकल जखने भजना बरखीक चर्चा केलक। मनमे उठै जे अपना खुट्टापर लघैर महिंस अछि, बरखी सन काजमे जौं एक्को कराही दही नै लऽ जाएब से केहेन हएत? ओसारपर मोटरी रखि माएसँ झगड़ा शुरू केलक-
अँइ गे बुढ़िया, हमरा कोनो आए-उपए नै यअ जे काल्हि बाबाक बरखी छियनि आ आइ तँू अबैले कहलेँ?”
तैबीच गुलटेन सेहो हाटसँ आबि गेल। माथपर मोटरी रहबे करै तखने मुनिया सिंगहेसरीकेँ कहलक-
दाइ, हमर कोन दोख अछि मासे-मास जे छाया करैत एलौं तेकर ठेकाने ने रहल। बापो तेहेन बि‍सराह छथुन जे बिसरि गेलखुन। आइए बुझलौं।
माएक जवाब सुनि सिंहेसरीक तामस पिता दिस बढ़ए लगल। मुदा मुँह-झाड़ि बाजब उचित नै बूझि माएकेँ अगुअबैत बाजलि-
जाबे बाबा जीबै छला ताबे केते मानै छला। आब जखनि ओ नै छथि तखनि हुनकर किरिया-करम छोड़ि देबनि। एगारहो गोटेक तँ ओरियान करि कऽ अबितौं।
बेटी आ पत्नीक बात गुलटेन चुपचाप सुनैत रहल। कखनो मनमे उठै जे गलती हमरे भेल। फेर होइ जे कोनो काज करै काल ने उनटा-पुनटा भेने गल्ती होइ छै। मुदा हम तँ बिसरि गेल लौं। सामंजस्य करैत गुलटेन बाजल-
पाहुन किए ने एलखुन?”
सिंहेसरी कहलकनि‍-
से तँू नै बुझै छहक जे नोकरिया-चकरियाक घर छी जे ताला लगा देबै आ विदा भऽ जाएब। दुनू परानी लगल रहै छी तखनि तँ एक्को क्षणक छुट्टी नै होइए। ढेनुआर महिंसकेँ छोड़ि कऽ दुनू गोरे केना अबितौं।
बेटीक बात सुनि मुनिया बाजलि-
ऐ घर ओइ घरमे कोन अन्तर अछि। तोरा लिए जेहने ई तेहने उ। अहूठीम तँ दहीक ओरियान भइए रहल हेन। तइले तोरा किए मनमे दुख होइ छौ। हम तोहर माए छियौ। कोनो आइएक छिऐ कि सभ दिनेक बिसराह छथुन। तइले तामस किए होइ छौ। मोटरी सभकेँ खोलि-खोलि चीज-बौस ओरिया कऽ राखह। पहिने पएर धोइ गोसाँइकेँ गोड़ लगहुन।
पत्नी आ बेटीकेँ शान्त होइत देखि‍ गुलटेन मुस्की दैत बाजल-
गाममे जेकर काज हम केने छी ओ कि हम्मर नै करत। केते भारी काजे अछि।
घरक गोसाँइकेँ गोड़ लगि सिंहेसरी पिताकेँ गोड़ लगैले बढ़ल आकि गुलटेनक आँखि सिमसिमा गेल। सिमसिमाएल मने पुछलक-
बुच्ची, कोनो चीजक दुख-तकलीफ तँ ने होइ छह?”
हँसैत सिंहेसरी कहलकनि-
बाबाक बात कान धेने छी। हाथ-पएर लड़बै छी, सुखसँ दिन कटैए।
भोजमे खूब जश गुलटेनकेँ भेल। भरि-दिन एम्हर-दौड़ तँ ओम्हर-ताकमे दुनू परानी रहल। मुनियाक छाती केराक भालरि जकाँ कँपैत। बिना अन्ने-पानिक भरि दिन खटैत रहली। जेना भुख-पियास केतौ पड़ा गेलै। मुदा भोजक जश दुनू परानी गुलटेनकेँ, जहिना ऊसर खेतमे कूश लहलहाइत तहिना लहलहा देलक। पिताकेँ सिंहेसरी कहलक-
सभ काज सम्पन्न भऽ गेल। आब अपनो सभ खा लए।
खेला-पीला पछाति गुलटेनक मनमे सिनेमाक रील जकाँ नाचए लगल- ठीके ने लोक कहै छथिन जे जेहेन करत से तेहेन पओत। जहिना बाबूक मन शुद्ध छेलनि तहिना ने हेतनि। आ-हा-हा ओंगरी पकड़ि-पकड़ि घर बन्हैक लूरि सिखौलनि। जीबले बारहो मासक काज सिखौलनि। मने-मन गुलटेन पिताकेँ गोड़ लगलक।

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