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Friday, October 18, 2013

(30) अतहतह

अतहतह
तीन बजे भोरे झामलाल बैग नेने गरजैत चौकपर पहुँचल। ओना एकादशीक चान डूमि‍‍ गेल रहै मुदा सुरूजक लालीसँ दि‍शा फरि‍च्‍छ हुअ लगल रहए। झामलालकेँ चौकपर अबैसँ पहि‍ने भुटकी‍लाल ि‍डबिया बारि चाहक चूल्हि‍‍‍ पजारि‍ नेने रहए। पाँच बजे चूल्हि‍‍‍मे आगि‍ पजारैबला अढ़ाइए बजे पजारैक सुरसार करए लगल रहए। तेकर कारण भेल रहै जे पनरह दि‍नसँ राहड़ि‍क दालि‍मे रोटी गुड़ि‍ कऽ नै खेने रहए। तइ खाति‍र राति‍मे खाइए काल दुनू परानीक बीच झगड़ा भऽ गेलै। बि‍नु खेनहि‍ पिरहीपर सँ खि‍सिआ कऽ उठि‍ गेल। माटि‍एसँ चारि‍ घुस्‍सा दाँतमे लगा, कुड़ुड़ कऽ झामलाल दोकानपर पहुँच‍‍ बाजल-
भुटकी भाय, रतुका सोठियाएल छिअ। खाइक ि‍कछु नै रखने छह?
‍अच्‍छा पहि‍ने अदहा-अदहा कप चाह पीब‍ लिअ। जहि‍ना अहाँ सोठियाएल छी तहि‍ना हमहूँ छी। आन चीज की‍ भेटत। बि‍स्‍कुट सभमे कोनो लज्जति रहै छै मुदा छाल्ही अछि।
चलह हुन्‍डे दाम कहि‍ दहक?
सभटा अहीं लऽ लेबै आ अपने?
पाइ हम्‍मर आ खाइमे दुनू गोटे अदहा-अदही।‍ अदहा-अदही सुनि‍ भुटकी‍लाल उछलि‍ कऽ बाजल-
अदहा कि‍लोसँ बेसी‍ए हएत मुदा अहाँ एक्के पौआक पाइ दिअ।‍
एहनो बुड़ि‍बक जकाँ कि‍यो बजैए। बैग खोलि‍ कऽ देखि‍ लहक। एक कि‍लोक पाइ आ सवा सौ रूपैआ ऊपरसँ देबह। खाली भरि‍ दि‍न संग पूरह।‍
‍हम तँ पेटबोनियाँ आदमी छी भाय। जेतए पेट भरत तेतए रहब।
चौकक खर्च हम देलिअ आ मालि‍क तँू भेलह। मुदा पहि‍ने खा लैह कि‍एक तँ भरि‍ दि‍न बहऽ पड़तह।‍
अदहा-अदहा छाल्हीमे सँ उठा-उठा मुहोँमे दैत आ गप्‍पो करैत झामलाल पुछलक-
टटके छाल्ही बूझि‍ पड़ै छह?
हँ। कौल्हुके छी।‍
छाल्हीक रस तँ तेसर दि‍नसँ बनब शुरू होइ छै। मुदा टटकोक अपन रस छै। आइ गामक झंडा गाड़ि‍ देलिअ।
से की, से की? बगुला जकाँ मुँह उठा-उठा भुटकी‍लाल झामलालसँ पुछलक। पानि‍ पीब‍ झामलाल बाजल-
हमरा तँ बुझि‍ते छह जे बैग आ मोटरेसाइकिलमे कारोबार अछि। मुदा कहुना-कहुना सालमे पाँच लाख पीटि‍ए दैत हेबै। बान्‍हल तँ अछि नै‍। दसटा कम्‍पनीक एजेंसी रखने छी जेकर जाल सगरे देशमे छै। एते पहूँच‍‍ सेहो बनौने छी। जहि‍ना आइ खच्‍चरपुरबलाक खचरपनी झाँड़ि‍, मुता-मुता भरेलौं तहि‍ना ओकर आगि‍-पानि,‍ कथा-कुटुमैती सेहो ढाठि‍ देबै। तइले नअ पड़ै आकि‍ छह।‍
ठीके कहै छी भाय, एहेन-एहेन अगि‍लह सभकेँ अहि‍ना हुअए। भुटकीलाल मुड़ी डोलबैत पुष्‍टि केलक।
चाह पीब‍ झामलाल बाजल-
भाय, ऐपर सँ जे पानसए नम्‍बर पत्ती देल पान खइतौं तँ आरो बुलन्‍दी आबि‍ जइतए।
भाय, पान तँ तेहेन खुआ दैतौं जे जेहेन बुलन्‍दी चाही तहूसँ सातबर बेसी आबि‍ जाइत। मुदा पानबला छौड़बा अछि मौगि‍याह। वसन्ती नीन छोड़ि‍ कऽ औत। सात बजेसँ पहि‍ने थोड़े औत। ताबे सुपारी आ तमाकुलक पत्ती दऽ काज चला लिअ।‍
तोहूँ भारी इस्‍की छह। आइ तोरे दरबारमे आसन जमेबह। जेना-जेना तँू कहबह तेना-तेना करब। मुदा एकटा बात अखने ऐ दुआरे कहि‍ दइ छिअ जे बि‍र्ड़ोमे झंडा उड़ि‍या देलि‍ऐ मुदा ओकरा तँ बाँसमे लगा जमीनमे गाड़ए पड़त, किने?
अहाँ खाली बैगक ताला खोलि‍ कऽ रखने रहू, एक्के घंटामे चौकक चकचकी देखा दइ छी।‍
भुटकीलालक जोश देखि‍ उत्‍साहि‍त भऽ झामलाल बाजल-
भाय, तोरे सबहक असि‍रवादसँ दूटा पाइओ देखै छी आ दूटा लोको लगमे रहै छी। मुदा कमेनाइए-खेनाइएटा तँ जि‍नगी नै ने छि‍ऐ। फेर‍ दोहरा कऽ सुन्‍दरपुरमे जनम लेब। तँए जहि‍ना गामक झंडा अकासमे उड़ियाएल तहि‍ना बँचबैले जे करए पड़त, से करब।‍
अच्‍छा छोड़ू अगि‍ला बात, अखनि की करब से वि‍चारू।‍
तोहीं बाजह?
दूटा चाहबला छी। दूटा पानबला अछि। तीनटा मेजरौटी अछि। भरि‍ दि‍नक खर्च उठा लिअ।‍
मेजरौटी की कहलहक?
मेजरौटी, एक मैजरौटी गाँजा पि‍आकक अछि। दोसर ताड़ी-पोलि‍थीनबलाक अछि आ तेसर इंग्‍लि‍स पि‍आकक अछि।
तीनूमे केते खर्च हेतह?
अहाँ खाली बैगक मुँहमे हाथ देने ने रहियौ। सभ गप ने कऽ लेब।‍
सभ तँ फूट-फूट बैसत तखनि रतुका बात कहबै केना?
मामूली लोक सबहक मेजरौटी छै! कलाकार सबहक छि‍ऐ। जखने चाहक दोकानपर औत आ भरि‍ दि‍नक मौज-मस्‍ती गछि‍ लेबह तखने चौकक ताल देखि‍ लिहक।‍
कि‍छु कहबहक नै?
कहबै आकि‍ मंत्र देबै। दुइएटा मंत्र दइक काज छै। अकासमे झंडा उड़ि‍ गेल आ खच्‍चरपुरबलाक सभ खचड़पनी घोंसारि‍ देलि‍ऐ। माटि‍ दइ छि‍ऐ जे जेतए फड़ि‍यबैक मन होइ फड़ि‍या लिअ हमरा समाजसँ।
घंटे भरि‍ पछाति‍ चौकक जुआनी आबि‍ गेल। गाँजाक मंचसँ फगुआ शुरू भेल-
एक दि‍स खेले कृष्‍ण कन्‍हैया, एक दि‍स राधा जोड़ी हो।‍ तँ ताड़ीक मंचसँ महराइक धून नि‍कलल-
कि‍सकी मैया बाघि‍न जनमे जो रूदल पर फेरे हाथ।‍
तेसर मंचसँ अंग्रेजी डान्‍स शुरू भेल।
सात बजैत-बजैत चौकपर गदमि‍शान हुअ लगल। रवि‍शंकर चाह पीऐले अबैत रहथि‍ आकि‍ दस लग्‍गी पाछूएसँ चौकक मस्‍ती देखलनि‍। गाछक नि‍च्‍चाँमे ठाढ़ भऽ हि‍यासए लगला तँ देखलनि‍ जे सौंसे गामक लोक नाचि‍-गाबि‍ रहल अछि। मुदा लगले जेना पवनसुत ि‍कछु कहि‍ देलकनि‍। मुस्‍की दैत भुटकीलालक चाहक दोकानक सोझहे पहुँच‍‍ भुटकीलालकेँ पुछलखि‍न-
भुटकी‍ भाय, बड़ चहल-पहल देखै छि‍ऐ की‍ बात छि‍ऐ?
पहि‍ने चाह पीबू ने। गप केतौ पड़ाएल जाइ छै। नि‍चेनसँ चाहो पीबू आ गप्‍पो सुनू।‍
कनीओ तँ‍ इशारोमे कहऽ।
एतबे बूझि‍ लिअ जे खच्‍चरपुर बलाकेँ मुता-मुता भरेलौं।‍
भुटकी‍लालक बात सुनि‍ रवि‍शंकर अचंभि‍त भऽ गेला जे आखि‍र बात की‍ छि‍ऐ? तैबीच झामलाल कहए लगलनि‍-
भाय, मास दि‍नक कमाइक फल छी। जड़ि‍एसँ कहि‍ दइ छी। तैंतीसम दि‍नक गप छी। एक लाख रूपैआक पार्टीक काज करि कऽ आएले रही। बारहसँ ऊपर दि‍न चढ़ि‍ गेल रहए। कपड़ा खोलि‍ कलपर बाल्‍टीन-लोटा रखि‍ लताम गाछक नि‍च्‍चाँ ठाढ़ भऽ ऊपर ि‍हयासैत रही। तखने हि‍रदेकाका दछि‍नबरि‍या बाधसँ अबैत रहथि‍। नजरि‍ पड़ि‍ते कहलि‍यनि‍- काका, गोड़ लगै छी। बड़ रौद छै, कनी ठंढा लिअ। जहि‍ना कहलि‍यनि‍ तहि‍ना ओहो लतामेक गाछ लग आबि‍ गेला। लताम देखलाहा आँखि‍ हि‍रदेकक्काक मुँहक सुरखी देखि‍ मुहसँ नि‍कलल- काका, एना हकोपरास किए छी। ूखल मुँहक मुस्‍कीआइत कहलनि‍- नै बौआ, नै कोनो। रौदमे सँ एलौंहेँ ने।‍’ कहलियनि, ‘दूटा लताम खाउ?’ कहलनि, ‘नै बौआ, नै खाएब।’
कहलियनि, ‘दूटा अँगने नेने जाउ।...’
‘...अँगनाक नाओं सुनि‍ औटोमेटि‍क बम जकाँ कखनि छाती फटि गेलनि‍, से नै बुझलौं। मुदा आँखि‍सँ टघरैत नोर गालपर चमकए लगलनि‍। मन गरमाएले रहए। पुछलियनि, ‘काका, जहि‍ना परि‍वारमे भैया, काका, बाबा, होइए तहि‍ना ने समाजोमे होइए। वि‍रान किए बुझै छी। अहाँ सबहक असि‍रवादसँ कमाइओक आ दस गोटेकेँ चि‍न्‍हैओक लूरि‍‍ भऽ गेल अछि। बाजू अहाँ किए एते पीड़ि‍त छी जौं उठैबला हएत तँ जरूर...।‍’
‘...नोर पोछैत काका बजला, ‘बौआ, देखैएटा ले बूझि‍ पड़ै छिअ जे मनुख छिअ। मुदा से नै, मुइल मनुख छी। अपनो परि‍वारक रच्‍छा करै जोकर नै छी। तहन तँ देखा-देखी आँखि‍ तकै छी।’
‘...पुछलियनि, ‘‍खुलि‍ कऽ बाजू, काका?’ तब कहए लगला, ‘बौआ, ऐ जुगमे हम सभ महापापी छी, ि‍कएक तँ भगवान पाँचटा बेटी दऽ देलनि‍। चारि‍टाक तँ कोनो धरानी खेत बेचि‍-बेचि‍‍ पार लगेलौं। सात बीघाक कि‍सान मात्र पनरह कट्ठापर आबि‍ गेल छी। तेहेन हवा-पानि‍ देखै छी जे ओहूसँ पाँचमक पार लगत आकि नै।‍’
‘...हिरदेकक्काक बात सुि‍न अवाक् भऽ गेलौं। जेना बकारे बन्न भऽ गेल। छाती असथि‍र करैत पुछलि‍यनि‍, ‘काका, केते खर्च हएत?’ कहला, ‍बौआ, गरथाह बात केना बाजब।’ आँखि‍क नोर पौछैत पुन: बजला, ‘बौआ, ई पाँचम बेटी तेते दुलारू अछि जे हृदैमे सटल अछि। एक तँ कोरि-पच्‍छू बेटी, तैपर सँ माएक तेते सि‍नेही जे सुग्‍गा जकाँ कि‍छु बाजत। जेठकीकेँ दादीए पोसलकै। कहि‍यो ओकरा कोरा कऽ नै लेलि‍ऐ। जखनि टेल्हुक भेल तखनिसँ संगे मेला-तेला लऽ जाए लगलि‍ऐ। छोटकी बेटी माएक तेहेन दुलारू बेटी अछि जे सएओसँ ऊपरे नाओं रखने छथि‍न।’ बातकेँ बुझैत कहलियनि- ‘काका, छोड़ू ई सभ। अपन बहि‍न बूझि‍ बि‍आह पार लगा देब। जेहने जेठकी बेटीक परि‍वार अछि तेहने परि‍वार भँजियाउ। खर्चक चि‍न्‍ता जुनि‍ करब। ई पहि‍ल दि‍नक गप छी...।’
‘...ओना तँ गामे-गाम अतहतह होइते अछि मुदा खच्‍चरपुर बलाकेँ तँ कोनो सीमे-नांगरि‍ नै छै। ऐ साल पाँचटा बि‍आहमे अभरल। तेते दोस-महीम भऽ गेल अछि जे एकटा बि‍आहक खर्च नोत पुराइमे होइए। तइले नै कोनो। दस सेरे नै नि‍तराइ दस सगे नि‍तराइ। पाँचो बि‍आहमे ओकरा सबहक‍ खच्‍चरपनी देख‍लि‍ऐ से एड़ीसँ टि‍कासन तक नेसि‍‍ देने अछि। मुदा कोनो बि‍आहमे कोनो समाज (बरि‍याती-घरवारी) तँ नै छेलौं तँए आँत-मसोसि‍ कऽ रहि‍ गेलौं। गर चढ़ा खच्‍चरपुरेमे कथा ठीक केलौं। कक्कोकेँ पसि‍न भेलनि‍। लेन-देन तँए भऽ गेल। समए बना ओहू गामक समाज आ अपनो समाजक बैसार केलौं। बैसारेमे बजलौं, ‘अखनि धरि‍क काज दुनू घरवारीक छेलनि‍ मुदा आब समाजक भऽ गेल। चाहै छी जे आन गाम जकाँ थूका-थूकी बि‍आहमे नै हुअए। तँए कि‍छु समस्‍या अछि जैपर अखने वि‍चार वि‍मर्श भऽ जाए-
(१) बि‍आह पद्धति‍क अनुकूल हुअए आकि‍ जयमाला करि कऽ हुअए?
(२) पलाउक चलनि‍ भऽ गेल, से मखानक खीर खाएब आकि‍ पलाउ?
(३) खेला-पीला उत्तर लगले वि‍दा भऽ जाएब आकि‍ आराम करि कऽ?”
‘...प्रश्न सुि‍न चुप्‍पी पसरल। जहि‍ना चूल्हि‍‍‍मे खोरनासँ जारनि‍ घुसकाैल जाइ छै तहि‍ना घुसकेलौं, ‘कन्‍यागत समाजक कन्‍हापर भार देने छथि‍न तँए समाज चाहै छथि‍ जे आन-आन गाम जकाँ बरि‍याती-घरवारीक बीच कोनो तरहक राग-द्वेष नै हुअए। कि‍एक तँ बरि‍याती घरवारीकेँ नि‍च्‍चाँ देखबए चाहै छथि आ घरवारी बरियातीकेँ। जइसँ जहि‍ना खेतमे कोनो चीजक बीआ छीटल जाइत अछि, तहि‍ना हम सभ झगड़ाक बीआ समाजमे छींटि‍ देने छी जे दुखद अछि‍। नै चाहब जे समाजमे एना हुअए। बि‍आह सृष्‍टि‍क सि‍रजनक प्रक्रि‍याक अंग छी तँए एे संग छेड़-छाड़ अनुचि‍त। अपने लोकनि‍ जे कहि‍ देब ओइ‍ अनुकूल बि‍आह हएत। घमरथन शुरू भेल। घमरथनक कारण भेल कि‍छु देखौआ काज आ कि‍छु चोरौआ। मुदा सुमति‍ एलनि‍, बजला, ‘लड़का-लड़कीक बि‍आह सामाजि‍क पद्धति‍क अनुकूल हुअए। ई भार अहाँपर रहल। जहि‍ना कोनो काजक प्रक्रि‍या होइ छै तहि‍ना भोजनक प्रक्रि‍याक अंग अारामो छी। जानल बात अछि जे नि‍अमि‍त भोजनसँ भि‍न्न भोजन बरि‍यातीमे होइ छै, तँए आराम आरो जरूरी अछि। प्रात:काल नअ बजेमे चाह-पान खा असि‍रवाद दैत आपस हएब। पलाउ आ खीर खेनि‍हार दुनू रहता। बाजा-बूजीक बेवस्‍था घरवारीक। नै चाहब जे रस्‍ता-बाटमे अनगौआँ सभसँ झंझटि हुअए। मोटा-मोटी यएह बुझू जे सएक धतपत बरि‍याती रहता, जि‍नका लेल अहाँ दू-ठाम बेवस्‍था  करब। अहूँ सभ बुझि‍ते छि‍ऐ आ हमहूँ सभ बुझि‍ते छि‍ऐ। एक भागक जे बरि‍याती रहता हुनका लेल जहि‍ना भाेजनक वृहत् बेवस्‍था  रहतनि‍ तहि‍ना अारामोक हेबाक चाही। ई नै जे मधमन्नी जहल जकाँ मुड़ी-पएर दुनूक पति‍यानी लगि‍ जाए।’ पुछलि‍यनि‍, जखनि दरबज्जापर पहुँचबै तखनि कोन रूपे शुरू करबै?’ कहलनि‍- जे सभ भाँग खेनि‍हार छथि‍ ओ सभ घरेपर भाँग खेता आ रस्‍ते-बाटमे केतौ झाड़ा-झपटा करता। पएर धोबसँ शुरू करब। एम्‍हर बरि‍यातीक सनोमान शुरू हएत आ ओम्‍हर आँगनमे बि‍आहक प्रक्रि‍या शुरू हएत। आठ बजे दरबज्‍जापर पहुँच‍‍ जाएब। दस बजेमे खुआ-पि‍आ कऽ आराम करए छोड़ि‍ देबै। हँसैत सभ नि‍र्णए कऽ लेलनि‍। वि‍दा भेलौं...।’‍
‘...रस्‍तामे झगड़ाक जड़ि‍ ताकए लगलौं। एते तँ बि‍सवास रहबे करए जे जहि‍ना चोर फँसबैले सि‍पाही घेराबंदी करैए तहि‍ना जाल तँ लगबै पड़त। मन पड़ल दोसक गप। दोस कहने रहथि‍ जे अपना सभ कारोबारी छी, तँए कोट-कचहरीसँ सदति‍ काल बँचैत रहक चाही। नै तँ अनेरे ओझरा जाएब। कारोबार कारोबारे रहि‍ जाएत। मुदा उक्‍खरि‍‍मे मुड़ी देलौं तँ मुसराक डर केने काज चलत। तहन तँ जहाँ धरि‍ संभव हएत तहाँ धरि‍ बँचब। अखनो समाजमे कहाँ कि‍यो खुलि‍ कऽ ताड़ी-दारू करै छथि‍। चोरनुकबा जरूर करै छथि‍। मुदा की हुनका सभकेँ अपना आँखि‍मे लाज नै छन्हि? जरूर छन्हि। मुदा जे होउ, जि‍नगी भरि‍ जहलेमे किए नै रहऽ पड़ए मुदा खच्‍चरपुरबला सभकेँ सि‍खाएब जरूर। तेहेन कऽ नांगरि‍ सुरड़बै जे इलाकामे मुँह उठाएब मोसकिल भऽ जेतनि‍। बेसीसँ बेसी दसटा बदमास गाममे हएत पचासटा आनि‍ कऽ रखि‍ देबै। मुदा सि‍खेबै जरूर...।’
‘...आठ बजे गामक सीमामे बरि‍याती प्रवेश कऽ गेल। हमहूँ सभ साकांच रही। दरबज्‍जापर पहुँचि‍ते स्‍वागतक संग बैसारक कार्यक्रम शुरू भेल। दाइ-माइ बरकेँ अरि‍याति‍ आँगन लऽ गेली। बरि‍यातीक बीच प्‍लेटमे फ्राइ कएल मखान पहुँच‍‍ गेलनि‍। दुनू समाजक (बरि‍याती-घरवारी) बीच मखानक मि‍ठासक संग गप-सप्‍प शुरू भेल। गाममे केते सार्वजनि‍क स्‍थल..., कोन-कोन शि‍क्षण-संस्‍थान..., अस्‍पतालक की स्‍थि‍ति‍..., गाममे केते कि‍सान परि‍वार..., केते नोकरीहारा..., जोतसीम जमीन केते..., बोरि‍ंगक संख्‍या केते..., खेतीसँ अलग कारोबारी परि‍वार केते..., केते परि‍वार गामसँ पड़ाइन कऽ रहला अछि आ‍ केते दोखतरीपर आबि‍-आबि‍ बैस रहला अछि...। बड़ी जुमा कऽ महावीरजी लंकासँ आम फेकने रहथि‍ से ने तँ खास भेल‍ अछि। मुदा कि‍छु गोटेकेँ भाँगक मातल मनमे उठए लगलनि‍ जे मखानक लाबा आ पानिए पीब‍ भेल। ओ तँ अपने जि‍नगी भरि‍ पानिएमे रहल अछि तँ तइमे नीक जे दू घोंट बेसी‍ए कऽ पानि‍ पीब‍ लेब। बि‍ना मुंगबे मन थोड़े मानत। पेटेटा भरने नै ने होइ छै, मनो ने भरक चाही। मुदा फेर‍ मनमे उठनि‍ जे अखनि कोनो उसरि‍ गेल...।’
‘...अँगनाक ओसारपर बैस‍ हिरदेकाका आँखि‍ खि‍रा-खि‍रा ताकथि तँ देखथिन पाँचो बेटीक सि‍नेह। जेठकी बहि‍न माएक पीठपर अँगनाक चीज-बौसकेँ उठा-उठा घरमे रखैत तँ घरसँ नि‍कालि‍ आँगनमे रखैत। मझि‍ली तँ चारू बहि‍न‍क लेधे-गोधक आइ-पाइमे भि‍नसरसँ अखनि धरि‍ लागल अछि। सझि‍लीएकेँ की कहबै, वेचारीकेँ लगले हाथमे नीपौन देखै छी तँ लगले सि‍नुर-पि‍ठार। चारि‍मकेँ तँ गीतिहारिएक आगू-पाछू करैत-करैत नाको-दम भेल छै। घुमैत नजरि‍ हिरदेकक्काक बेटी-जमाएपर गेलनि‍। ओना देखि‍ए कऽ केने रहथि।‍ तँए देखैक ओ रूप नै‍। देखैक रूप रहनि‍ मौलाएल गाछक पोनगल सरारि‍मे खि‍लैत फूलकेँ। हारल मनुखक जीत। जे कहि‍यो कन्‍यादानकेँ उच्‍च कोटि‍क श्रेणीमे गनल जाइ छल ओ आइ समाजमे बेटियाह वंश बूझि‍ बि‍आहसँ वंचि‍त भऽ रहला अछि। वाह रे हमर समाज...।’
‘...हम अपना काजक पाछू तबाह। पच्‍चीसो काजकर्त्तापर मलेटरीक नजरि‍। तीन कदम आगू तँ एक कदम पाछू भऽ सावधान। ओना अगुआएल-पछुआएल बरि‍याती समैपर गाममे प्रवेश कऽ गेल छला मुदा समाज दरबज्‍जापर जहाँ-तहाँ छि‍ड़ियाएल। दू-चारि‍ मि‍लि‍-मि‍लि‍ अड्डा जमौने। जइ पाछू एक-एक काजकर्त्ता लगल रहए। ताड़ी जकाँ तँ इंग्‍लीसक गोष्‍ठी नम्‍हर नै ने होइए। रंग-बि‍रंगक पीनि‍हार रंग-बि‍रंगक वस्‍तु।
साढ़े नअ बजे बरि‍याती भोजन कऽ ओछाइन पकड़ि‍ लेखा-जोखा करए लगला। हराएल-बरि‍यातीक खोज शुरू भेल। साढ़े दस बजे घरवारी बरि‍यातीक बीच समझौता भेल जे जेते समए आगू बढ़ि‍ गेल ओइ‍सँ पछि‍लाकेँ छोड़ि‍ भोजने हुअए। सएह भेल। मुदा कमाल भऽ गेल। भोजन शुरू भेल, पेशाब करैले उठब शुरू भेल। पेशाब खोलैबला बा पानि‍मे मि‍ला टीपि‍-टापि‍ कऽ दस गोटेकेँ पि‍आ देल गेल। एक गोटेकेँ देखि‍ छोड़ि देलौं, दोसरोकेँ छोड़ि‍ देलौं। मुदा जहि‍ना चुट्टीक धाड़ी चलैत तहि‍ना अछि!‍ जखनि शुरू भेल अाकि‍ बुढ़हा सबहक बीच जा कहलि‍यनि‍ जे अखनि धरि‍ घरबैया समाजसँ कोनो ति‍रोट भेल हुअए से कहू? एक्के-दुइए पान-सात गोटे उपदेश दैत बजला, ‘अखनि जे हवा-बि‍हाड़ि‍ उठि‍ गेल अछि तइमे अहाँ लोकनि‍केँ धैनवाद दइ छी। हमहूँ सभ यएह गप करै छेलौं जे गणेशजीक भक्‍त सभने छेनाक मि‍ठाइ खाइ छथि‍ मुदा ओ तँ अखनि धरि‍ लड़ुए खाइ छथि‍। जुग बढ़ि‍ गेने लोको उधिया जाएत। जे सुआद खाजा-मुंगबाक अछि ओ डि‍ब्‍बाबला रसगुल्‍लाक हएत। ओ तँ भाँज पुराएब छी। कहलि‍यनि‍- जाधरि‍ अपने लोकनि‍ ऐठाम छी ताधरि‍क नीक-अधलाक जवाबदेह घरवारी हेता मुदा अहाँ सभ जे उकठ करब, तहन...। पुछै गेला, ‘की भेल, की भेल?’ कहलियनि, ‘दोसर बरियाती सबहक छि‍छा-बीछा चलि‍ कऽ देखि‍यनु? बामा करे पड़ि‍ जे जाँघ कुड़ि‍यबैत रहथि‍ से उठले ने होइन। मुदा कासपरक दहीक ढेकार फुर्ती आनि‍ देलकनि। सभ कि‍यो उठि‍ दोसर पंडालमे पहुँचला तँ देखलनि‍ जे एना किए रेलबे स्‍टेशनक टि‍कट-खिड़की जकाँ दुनू दि‍स पाँति‍ लगल अछि। मुदा से दसे-बारहे गोरेकेँ देखै छी। खाइ-पीबैक वस्‍तुमे जौं कि‍छु गड़वड़ी रहि‍तए तँ सहरगंजा होइतै। सेहो ने देखै छी। एक-दोसरासँ आँखि‍ मि‍ला प्रश्न पुछैत तँ मुड़ी डोला जवाब भेटनि‍। मुदा कि‍छुओ दोख जाबे केकरो नै अछि ताबे एना भऽ किए रहल अछि। अानठाम कहाँ भेल। मुदा बि‍ना आधारे कोनो बात मानिओ लेब से उचि‍त-नै‍। आमपर फेकल गोला जकाँ जे लगिओ सकैए आ हूसिओ सकैए। इम्‍हर आराम करैले सेहो मन कछमछाइन। दोहरौि‍लयनि‍- जौं अपने लोकनि‍ समाजक सीमा रेखा तोड़ि‍ घि‍नबए चाहब तँ समाजोकेँ ई अधि‍कार बनै छै जे सीमाक सि‍पाही जकाँ अपन मातृभूमि‍क रच्‍छा करए। कबछुआ जकाँ भकभका कऽ तँ लगलनि‍ मुदा घि‍नबैक कारण बुझबे ने करथि‍। खि‍सिआ कऽ एकगोटे बजला- कोन-कहाँ बोतल पीब‍-पीब‍ बरि‍याती औता आ सभ कि‍छु (समाजि‍क गुण)केँ खेने-पीने चलि‍ जेता। एक्को क्षण ई सभ जीबए नै देता कहि‍ छोटका भाएकेँ कहलखि‍नख, ‘बौआ, जि‍नका जे मन फुड़तनि‍ से करता। अपन इज्‍जत-आबरू अपना हाथमे लऽ चलह। तेकर बाद की भेलै से बुझबै केलि‍ऐ, बस...!’
‘....एक्के-दुइए ससरि‍-ससरि‍ घरमुहाँ हुअ लगला।

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