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Friday, October 18, 2013

(29) ठकहरबा

ठकहरबा
भोरहरबेमे दादीक नीन उचटि‍ गेलनि‍। लाख कोशि‍श केलनि‍ मुदा दोहरा कऽ नीन नै घुमलनि‍। ओना भोरुका समए वसन्‍ते जकाँ मधुआएल रहै छै मुदा ओहो की सबहक लेल एक्के रंग रहैए। दि‍न-राति‍ काजक पाछू नचनि‍हारकेँ थोड़े वसन्‍त आ ग्रीष्‍मक भेद बूझि‍ पड़ै छै। दादीक मनमे एलनि‍ जे अखने ललि‍तक ऐठाम जा कऽ कहि‍ऐ जे अखुनके माने भि‍नसुरके उखड़ाहामे चि‍मनीपरसँ पजेबा आ बेरुका उखड़ाहामे बाजारसँ एस्‍वेस्‍टस आनि‍ दि‍हऽ। भोरुका अन्‍हारक दुआरे रति‍गर बूझि‍ पड़लनि‍। मनमे एलनि‍ जे जौं कहीं बि‍छानपर जाइ आ नि‍न्न आबि‍ जाए तहन तँ पहपटि‍ हएत। मुदा एत्ती राति‍केँ जेबो केतए करब? गुन-धुन करैत सोचलनि‍ जे से नै तँ घरसँ ओछाइन नि‍कालि‍ अँगनेमे बि‍छा कऽ पड़ब नै‍, बैस कऽ काजक गर लगाएब। सएह केलनि‍। काजपर नजरि‍ दैते पजेबापर मन गेलनि‍। एक नम्‍बर राँट ईंटा तँ तेते महग अछि जे कीनब थोड़े पार लागत। मन मन्‍हुआ गेलनि‍। जहि‍ना दू-बट्टी, तीन-बट्टीपर पहुँचि‍ते बटोही अपन अगि‍ला बाट हि‍याबए लगैए तहि‍ना दादीओ हि‍याबए लगली। केते दि‍न जीबे करब जे एक नम्‍बर ईंटाक जरूरति‍ पड़त‍। लऽ दऽ कऽ बीस-पच्‍चीस बरख आरो जीब‍। तइले तँ तीनि‍‍योँ नम्‍बर ईंटा नीके हएत। फेर‍ मनमे एलनि‍ जे कि‍यो कि‍ अपनेटा लेल घर बनबैए आकि‍ बालो-बच्‍चा लेल बनबैए। मन ठमकि‍ गेलनि‍। कि‍छु फुड़बे ने करनि‍। फेर‍ मनमे उठलनि‍ जे लोक काँच-ईंटाक घर केना बनबैए। ओहो तँ तीस-चालीस बरख चलि‍ए जाइ छै। ओइसँ नीक ने तीन नम्‍बर। कम-सँ-कम अध-पकुओ तँ रहैए। जेतबे नुआ रहए तेतबे टाँग पसारी। तीनि‍योँ नम्‍बर तँ ईंटे छी किने? हँ, हँ, तीने नम्‍बर ईंटा लेब। मन आगू बढ़ि‍ चदरापर माने एस्‍वेस्‍टसपर गेलनि‍। चदरापर नजरि‍ पड़ि‍ते मन झुझुआ गेलनि‍। सि‍मटीक तेहेन चदरा बनए लगल अछि जे सालो भरि‍ चलत आकि‍ नै‍? जौं कहीं गोलगर पाथर खसल तँ चूरम-चूर भऽ जाएत। पहि‍ने केहेन बढ़ि‍याँ टीनक चदरा अबै छेलै जे एक बेर‍‍ घरपर दऽ देलासँ केते दि‍न ओहि‍ना रहै छेलए। मुदा ओहो बैशाख-जेठक रौदमे रहै-बला नै होइए। ओना जौं गतगर कऽ खरही छाड़क ऊपरमे दऽ दियौ तँ कोठे जकाँ भऽ जाइए। मुदा तेहेन-तेहेन ठकहरबा बनि‍याँ सभ भऽ गेल अछि जे लेबालकेँ जे होउ अपन धरि‍‍ ति‍जोरी भरल ताकी‍‍। खैर जे होउ, जे सबहक गति‍ से हमरो हएत। तइले केते मगज चटाएब।
पोहु फटि‍ते सुरूजक लाली देखि‍ दादी ओछाइन समेटि‍ घरमे रखि‍ ललि‍तक ऐठाम वि‍‍दा भेली। मन पड़लनि‍, आठमे दि‍न अदरा नक्षत्र चढ़त। आठे दि‍नक पेसतर घर बनबैक अछि। जौं से नै भेल‍ तँ गि‍लेबापर जोड़ल देबाल ढहत-ढनमनाएत आकि‍ की हएत। सेहो ने कहि‍। जे घर अखनि अछि ओहो उजड़ि‍ए जाएत। तैबीच जौं बर्खा झहड़ल तँ जानो बँचब कठि‍न भऽ जाएत।
ललि‍तकेँ दरबज्‍जा नै‍। भनसे घरमे सुतबो करैत। ठोकले दादी आँगन पहुँच‍‍ ओलती लगसँ कहलखि‍न-
गोसाँइ उगैपर भेलखि‍न आ तों सुतले छह?
दादीक अवाज सुनि‍ ललि‍तक पत्नी सुपती उठि‍ केबाड़क अदहा पट्टा खोलि‍ चुपचाप वाड़ी दि‍स वि‍दा भेली। ओसार टपि‍ केबाड़क दुनू पट्टा खोलि‍ ललि‍तक देह डोलबैत दादी कहलखि‍न-
ललि‍त, ललि‍त। उठह, केते सुतै छह?
सुतले-सूतल आँखि मुननहि‍ ललि‍त बाजल-
की कहै छी?
अखनि धरि‍ सुतले किए छह?
ओछाइनपर सँ उठि‍ दादीकेँ बैसबैत अपनो बैस बाजल-
बड़ी राति‍मे पुलि‍सक गाड़ी खोइर-बन्‍हामे लसैक गेलै। भरि‍ गाड़ी पुलि‍स रहए। केतबो बाप-बाप केलक मुदा गाड़ी नै नि‍कललै। जेना जानि‍ कऽ अनठा देलकै।‍
बि‍नु दाँतक चौड़गर मुँह, गालक मसुहरि‍पर दूटा इंच-इंच भरि‍क पाकल केश, सोन सन उज्‍जर धप-धप केश, गरदनि‍क चमड़ा घोकचि‍ कऽ लटकल दादीक। ठहाका मारि‍ बजली-
तोरा सन-सन लोकसँ की बेसी बुत्ता ओकरा सभकेँ होइ छै। गाँजा पीब‍-पीब‍ छाती फोंक कऽ नेने रहैए।‍
मुँह चटपटबैत ललि‍त बाजल-
बड़ मोटगर-सोटगर सभ रहए?
धु: बतहा कहीं के, एतबो नै बुझै छहक जे तखनि थालमे सँ गाड़ी किए ने उखड़लै।‍
मुँह डेढ़बड़ा कऽ ललि‍त बाजल-
उ सभ हाकि‍म रहै किने।‍
अच्‍छा, ई सभ छोड़ह। पाइ केते देलकह?”
पहि‍ने वएह पुछलकै जे केते दिअ,‍ ओना हमहूँ सभ सात-आठ गोरे रही मुदा हमरा छोड़ि‍ सभकेँ होइ जे कहुना जान छोड़ए। सभकेँ सुक-पाक करैत देखि‍ऐ। एक गोरे बाजि‍ देलकै जे हुजूर सरकारीए पाइ छि‍ऐ किने? एतबे सुनैत मातर तड़ंगि कऽ एक गोटे बाजल रौ, बहिं, तुम पहचानता नहीं है।‍कहि‍ पाइ आगूमे फेक‍ वि‍दा भऽ गेल।‍
‍सुआइत तोरा ओंघी दबने छह। हमहूँ काजे एलौं हेन। अखनि तँ तँू भकुआएल छह। मुँह-हाथ धुअ। काजक गप छी तँए कनी असथि‍रसँ वि‍चार करब। ओना अपनो मुँह-कानमे पानि‍ नहियेँ नेने छी।
एह, तँ की हेतै दादी। एक दि‍न टुटलहो-फटलाहा घरक चाह पीब‍ कऽ देखि‍यौ।‍
सुपतीकेँ कानमे फुसफुसा दादी चौमास दि‍स‍ वि‍दा भेली। जाबे दादी मुँह-कान धोइ तैयार होथि‍ तइसँ पहि‍ने ललि‍त सुपतीकेँ चाह बनबैले कहि‍ ओसारक बि‍चला खुट्टा लग पि‍रही रखि‍ दादीक बाट देखए लगल। अबि‍ते दादी बजली-
कलक पानि‍ बड़ सुन्नर छह।‍ कहि‍ खुट्टामे ओंगठि‍ पि‍रहीपर बैस‍ गेली। सुपती चाह नेने आगूमे रखि‍ देलकनि‍। चाहक रंग देखि‍ दादीक मन खुशी भऽ गेलनि‍। एक घोंट पीब‍ बजली-
तेहेन चाह छह जे एक्के उपे जलखै बेर‍ तक रहब।‍
ललि‍त-
आइ काज अनठा दियौ दादी।‍
मुस्‍की दैत दादी-
किए, घरमे सि‍दहाक ओरि‍यान छेबे करह...। (मुदा लगले बात बदलि‍) कोन एहेन हलतलबी काज आगूमे छह जे आइ मनाही करै छह?
मुँह दाबि‍ सुपती बाजलि‍-
हि‍नका नै बूझल छन्हि जे आइ अलेक्‍शन छि‍ऐ।‍
सुपतीक बात जेना दादीक अँतरीमे छूबि‍ देलक। जहि‍ना आम तोड़ि‍नि‍हार सरं-गोलि‍या गोला आमपर फेकैत तहि‍ना दादी फेकब शुरू केलनि‍-
कोन फेर‍मे पड़ए चाहै छह, अपन दुख धंधामे लगल रहऽ। सभटा ठकहरबा छी। एते दि‍न अपनो सएह बुझै छेलौं मुदा आब बुझै छी जे ठकाइत-ठकाइत जि‍नगीए ठका गेल। (मुड़ी निच्चाँ कऽ) जहि‍या समाज खादी-साड़ी पहि‍रा माए जी कहलक‍ तहि‍या बूझि‍ पड़ल जे समाज की छी। स्‍वर्गोसँ ऊपर। मुदा तेहेन-तेहेन ठकहरबा सभ भऽ गेल अछि जे बाजत ढेरी, करत कि‍छु ने।
ललि‍त-
अहाँकेँ किए समाज खादी पहि‍रौलनि‍ दादी?
ललि‍तक प्रश्न सुनि‍ दादी विस्‍मि‍त भऽ गेली। जहि‍ना वोनमे जानबरक छोट-छोट बच्‍चा बौआ कऽ हरा जाइत तहि‍ना आजादी समयक वोनमे दादी हरा गेली। दादीकेँ विस्‍मि‍‍त देखि‍ ललि‍तकेँ बूझि‍ पड़लै जे दादी फेर‍ केतौ औना गेली। तँए दोहरा कऽ नै पूछि‍ जवाबक प्रतीक्षा ओइ‍ रूपे करए लगल जइ रूपे माए बच्‍चाकेँ वि‍द्यालयसँ अबैक आशा करैत रहै छथि‍। चौअन्नि‍या मुस्‍की दैत दादी बाजए लगली-
दुरागमन करि कऽ आएले रही। बूढ़ा-बूढी माने सासु-ससुर जीविते रहथि‍। बेटा मात्रि‍क गेलनि‍। ओइठीनक लोक सभ झंडा उठा खूब हूड़-बरेड़ा करैत रहए। अपनौं -पति‍- हुनके सभ संगे बौर गेला। तीन मास बि‍ता कऽ गाम एला।‍
ललि‍त-
बाबा बि‍गड़बो केलखि‍न?
दादी- (अपसोच करैत) ‍ओ सभ स्‍वर्ग गेला, हम नर्कमे छी। आगि‍ नै उठेबनि‍। हँ, ई भेलै जे बुढ़हो जोगारी रहथि‍न। तरे-तर सरहोजि‍सँ सभ भाँज लगा लेने रहथि‍। जाबे गाम घूमि‍‍ कऽ एला ताबे तँ इम्‍हरो लोक झंडा उठा हरबि‍र्ड़ो करए लगल रहए।‍ आजादीक दस-बारह बरख पछाति‍ गाममे मलेरि‍या आएल। चारि‍ अन्नासँ बेसी‍ए लोक मरल। अपनो घरहंज भऽ गेल। तीनू गोटे (सासु-ससुर आ पति‍) मरि‍ गेला। मात्र अपने आ छह मासक बच्‍चा बँचलौं। ओही बेटाकेँ पोसि‍-पालि‍ जुआन बनाएब अपन देशसेवा बुझलि‍ऐ। खादी साड़ी पहि‍रैक यएह कारण रहए।
मुस्‍की दैत सुपती पुछलकनि‍-
नेता सभ जकाँ भाषणो करथि‍न?
बेसी तँ नै बाजल हुअए मुदा मंचपर दुनू हाथ जोड़ि‍ एते जरूर कहि‍ऐ जे हे बरहमबाबा गामक रच्‍छा करि‍हऽ। मुदा सभ झूठ भऽ गेल! ने बरहमबाबा सुनलनि‍ आ ने केकरो रच्‍छा भेलै!
सुपती-
खादीबला सभ भरि‍ दि‍न झूठे बजैए?
सुपतीक बातसँ दादीकेँ दुख नै भेलनि‍। मुस्‍की दैत बजली-
ओहि‍ना कनी कऽ मन अछि। शुरूक तीन भोँटमे बहरबैया नेता सभ संग करि कऽ गाम घुमलथि‍। जेतेकाल संगमे रहि‍यनि‍ तेतेकाल गामेक गप-सप्‍प करथि‍। गाममे ने नीक सड़क अछि आ ने बच्‍चा सभकेँ पढ़ैले स्‍कूल। ने पानि‍ पीऐक समुचि‍त बेवस्‍था अछि आ ने बा-दारूक। गाड़ी-सवारीक नाओंपर बैलगाड़ी अछि। एहेन समस्‍या‍ सि‍रि‍फ अपने गाम टाक नै इलाकेक अछि। सरकारक अपने बेवस्‍था लटपटाएल अछि। हरि‍तक्रान्‍ति‍क पूर्व धरि‍ पेटक दुआरे आन-आन देशसँ जनेर-गहुम मंगबए पड़ै छेलए। (कने चुप भऽ मन पाड़ि‍) तही बीच भूदानी आन्‍दोलन जागल। नारा देलक- जमीनक छबम हि‍स्‍सा दान दिअ जइसँ गरीब लोककेँ वासक संग जोतो जमीन भेट‍तै। गामक-गाम दान हुअ लगल। मुदा अखनि की देखै छहक जे जोतक कोन बात जे घराड़ीओ सभकेँ नै छै। (ठहाका मारि‍) सभटा मदारी नाच केलक।
पटरीपर सँ दादीक बातकेँ उतरैत देखि‍ ललि‍त पत्नीकेँ कहलक-
दादी बूढ़ छथि‍न, थकबो करै छथि‍न किने। शि‍खरक पुड़ि‍या खोलि‍यापरसँ नेने आउ?
शि‍खरक नाओं सुनि‍ दादीक मनमे भेलनि‍ जे शि‍खर केहेन होइ छै। आइ धरि‍ नामो न सुनने छेलि‍ऐ। मुदा बजली नै‍। चकोना होइत देखि‍ ललि‍त बूझि‍ गेल जे भरि‍सक दादी शि‍खर नै खेने छथि‍। मुस्‍कीआइत बाजल-
जहि‍ना चाह पीलापर देहमे फुनफुनी आबि‍ जाइ छै तहि‍ना शि‍खरो खेने होइ छै। इस्‍कुलि‍या विद्यार्थी सभ तँ भरि‍-भरि‍ जेबी रखने रहैए।‍
सुपतीक हाथसँ एकटा पुड़ि‍या लऽ ललि‍त दादी दि‍स‍ बढ़ौलक। जहि‍ना खच्‍चा-खुच्‍चीमे पानि‍ देखि‍ बकरी पाछू हटैत रहैए, तहि‍ना शि‍खरक पुड़ि‍या देखि‍ दादीक मन पाछू हटलनि‍। मुदा नव चीज रहने सेहन्‍तो भेलनि‍। एक चुटकी मुँहमे दैते बूझि‍ पड़लनि‍ जे सरसरा कऽ कंठसँ निच्चाँ उतरल जाइए।
तखने ललि‍त पुछलकनि‍-
अपनो गामक लोक जमीन दान केलक?
ललि‍तक बात सुनि‍ खौंझा कऽ दादी बजली-
कहबे तँ केलिअ जे सभटा बानरक नाच केलक। एक गोटे समस्‍तीपुर दि‍सुका भूदानी नेता खोज करैत अपने ऐठाम एला। (मने-मन मुस्‍कीआइत) की कहिअ हुनकर हाल। साँझू पहर जखनि गप-सप्‍प करए लगथि‍ तँ बूझि‍ पड़ए जे जहि‍ना त्रेता युगमे रामराज रहै तहि‍ना फेर‍ कलयुगोमे भऽ जाएत। ने केकरो पेटक चि‍न्‍ता रहतै आ ने रोग-बि‍याधि‍क। मुदा ले सुथनी, भि‍नसरसँ दुपहर धरि‍ ओकरा साबुन रगड़ि‍-रगड़ि‍ नहाइए आ कपड़े साफ करैमे लगि‍ जाइ। बेरू पहर सभ कपड़ा सुखा, पहि‍रि‍ कऽ दि‍न लहसैत नि‍कलै आ खाइ-पीऐ राति‍ धरि‍ भाषण करै। एक पनरहि‍यासँ बेसीए रहल। तैबीच अकच्‍छ-अकच्‍छ भऽ गेलौं। खादी भंडारक मंगनी कपड़ा पबैसँ। सदति‍काल बगुला जकाँ उज्‍जर धप-धप चेहरा बनौने रहए।‍
ललि‍त-
खादी भंडारमे मंगनीए कपड़ा बँटबारा होइ?
मंगनी केतौ होइ। गाम-गामक उद्योगकेँ उला-पका कऽ खा-पी कऽ चौपट कऽ देलक। गामक गाम लोकक रोजगार मरि‍ गेल। एक तँ कोसी-कमलाक उपद्रव तैपर सँ जेहो छोट-छीन रोजगार गाममे चलै छल सभ चलि‍ गेल। जखनि लोककेँ गाममे पेटे ने भरत तखनि केते दि‍न पेटमे जुन्ना बान्‍हि‍ कऽ रहत। गामक-गामकेँ पड़ाइन लगि‍ गेलै। ने बच्‍चा सभकेँ पढ़ैक स्‍कूल अछि आ ने रोग-बि‍याधि‍ लेल डखाना (अस्‍पताल)।‍
बजैत-बजैत दादी विस्‍मि‍त भऽ गेली। आँखि बन्न भऽ गेलनि‍।
गुम-सुम देखि‍ ललि‍त पुछलकनि‍-
पहुलका बात तँ छूटि‍ए गेल?
ललि‍तक प्रश्न सुनि‍ दादी मन पाड़ि‍ बजली-
चारि‍म भोँट अबैसँ कि‍छु पहि‍ने मारि‍ते-रास पाटी फड़ि‍ गेल। कखनो कोनो रंगक झंडा लऽ कऽ जुलुशो नि‍कले आ सभो होइ तँ कखनो कोनो रंगक। जहि‍ना आखि‍री लगनमे छुटल-बढ़ल, बूढ़-पुरान, लुल्ह-नांगर सभ पालकीपर चढ़ि‍ लइए‍ तहि‍ना भदबरि‍या बेंग जकाँ गामे-गाम नेता फड़ि‍ गेल। ओना हम लि‍खा-पढ़ी करि कऽ कोनो पाटीक मेम्‍बर नै भेल रही मुदा लोको बुझै आ अपनो मानैत रही। तँए मनमे अरोपने रही जे जेकरा जे मन फुड़ौ से करह मुदा जहि‍ना शुरूसँ रहलौं तहि‍ना रहब। भोँट होइसँ पहि‍ने‍ कतेको गाममे मारि‍ भेल। अपना गाममे भोँट दि‍नसँ पहिने तक तँ मारि‍ नै भेल मुदा भोँट दि‍न एहेन मारि‍ भेल जे लोककेँ पड़ाइन लगि‍ गेलै।‍
बिच्‍चेमे सुपती पुछलकनि-
हि‍नको कि‍यो मारलकनि‍?”
‍नै कनि‍याँ, हाथ तँ नै उठौलक। मुदा भोँट खसबै नै दिअए। हमर भोँट केदैन खसा नेने रहए। केते कहा-सुनी भेलापर अनके नाओंपर भोँट खसेलौं। भोँट खसा कऽ जखनि घुमलौं तँ मनमे आएल जे आब भोँट खसबैले नै जाएब।
अकचकाइत ललि‍त कहलकनि-
पाटीबला सभकेँ नै कहलि‍ऐ?
दादी बजली-
की कहि‍ति‍ऐ। संयोगो नीके बुझहक। अगि‍ला भोँटमे पार्टीक उम्‍मीदवारे ने ठाढ़ भेल। जान हल्‍लुक भेल। आन पाटी तँ मारि‍ते रहै मुदा केकरा भोँट दि‍ति‍ऐ आ केकरा नै दि‍ति‍ऐ। तइसँ नीक जे बूथपर जाएबे छोड़ देलि‍ऐ।‍
हँ-मे-हँ मि‍लबैत ललि‍त बाजल-
केकरो नफ्फा-नोकसान होउ, अहाँ तँ बँचलौं किने?
ललि‍तक बात सुनि‍ दादीक आँखि नोरा गेलनि‍। मुहसँ बकारे नै फुटनि‍। कनीकाल चुप रहि‍ बजली-
बौआ, पटना दि‍ल्‍ली तँ कहि‍यो मनोमे ने आएल मुदा गामोमे जहुना छेलौं तहुना नै रहलौं। जइ समाजक लोक माए जी कहै छेलए आेइ समाजमे लोक राँड़ी कहए लगल। ऐ बातक दुख सदि‍खन मनकेँ बेथि‍त केने रहैए।‍ कहि‍ आँखि बन्न कऽ सोचमे डूमि‍‍ गेली। कि‍छु समए गुम्‍म रहि‍ पुन: बाजए लगली-
गामे-गाम तेहेन अगराही लगि‍ गेल छै जे शान्‍त हएब कठि‍न अछि। पुबारि‍ गाममे खेतक झगड़ामे मारि‍ भेल। से खूब मारि‍ भेल। दुनू दि‍स केते गोटेकेँ कान-कपार झड़लै। एकटा खूनो भेलै। मुदा अचरज ई भेल‍ जे एहेन सना-सनी रहि‍तो गौआँमे सुबुधि‍‍ जगलै। कि‍यो कोट-कचहरी नै गेल। गामेमे फड़ि‍या गेल। अखनि जौं ओना होइत तँ गाम उजरि‍ जाइत। तेहेन-तेहेन मनुख सभ बनि‍ गेल अछि। जे सदति‍काल फोंसरीए तकने घुरैए।‍
मुड़ी डोलबैत ललि‍त आगू पुछलकनि-
भोँटक दि‍न छी दादी। भोँटो खसबैक अछि। मुदा जखनि अहाँ आबि‍ गेलौं तखनि पहि‍ने अहाँक काज सम्‍हारि‍ देब।‍
दादी-
भोँट खसबैले थोड़े मनाही करबह। भि‍नसरसँ साँझ धरि‍ भोँट खसैए। पाँच बजेमे भोँट खसा लि‍हऽ।‍
ताबे तक भोँट बँचले रहत?
जे लड़ैए, ओकरा एतबो बुत्ता नै छै जे बूथ सम्‍हारि‍ कऽ राखत। ओना भोटे खसेने की हेतह। देखि‍ते छहक जे कि‍यो बक्‍से हेरा-फेरी कऽ लइए तँ कि‍यो रि‍जल्‍टे बदलि‍ लइए।‍
बेस कहलौं दादी। काका (दादीक बेटा) केतए रहै छथि‍?
बेटाक नाओं सुनि‍ते दादीक मनमे खुशी एलनि‍। मुस्‍की दैत बजली-
बौआ, पनरह-बीस बर्खसँ बौआइते-ढहनाइते छेलए। पहि‍ने दि‍ल्‍ली गेल। ओइठीन काज नै भेलै तब बमै गेल। ओतौ नोकरी नै भेलै। तखनि हारि‍‍-थाकि‍ कऽ‍ पाँच बरख पहि‍ने कलकत्ता गेल। मुदा जहि‍ना बमै पाइबलाक छी तहि‍ना कलकत्ता गरीब लोकक छी। ओइठीन एकटा साइकिल मि‍स्‍त्रीक दोकानमे नोकरी भऽ गेलै। दरमाहा तँ बेसी नै दइ छै मुदा साइकिल बनबैक सभ लूरि‍‍ भऽ गेलै। अपने दि‍गाइर‍क मि‍स्‍त्री छी। अपने बहि‍न‍सँ बि‍‍आहो कऽ देलकै। सुनै छी जे पुतोहुओ मि‍स्‍त्रीआइ करैए। दुनू बेकती एते कमा लइए जे अपनो गुजर करैए आ घर बनबैले रूपैओ पठा देलक हेन। सएह रूपैआ छी।
असकर लेल तँ अहाँकेँ एक्कोटा घरसँ काज चलि‍ जाएत?
हँ, से तँ चलि‍ जाएत। मुदा पुरजीमे लि‍खने अछि‍, जे आब गामेमे रहब। पुरना जेते मि‍स्‍त्री अछि ओ सभ मोटर साइकिलक मि‍स्‍त्री भऽ गेल। जहनकि गामे-गाम साइकिलक पथार लगि‍ गेल हेन। तहूमे तेहेन साइकिल अछि जे छह मासक उपरान्‍ते मि‍स्‍त्रीक काज पड़तै।‍
ललि‍त पत्नीकेँ कहलक-
एकबेर‍‍ आरो चाह बनाउ। दादीक संगे जाएब।‍
सुपती-
घरमे दूध कहाँ अछि। नेबोओ सभटा चोराइए कऽ तोड़ि‍ लइ गेल।‍
दादी-
कनि‍याँ अहाँकेँ नै बूझल हएत। नइ‍ नेबो अछि तँ नेबोक दूटा पाते दऽ दियौ।
चाह बनल। एक घोंट चाह पीब‍ ललि‍त दादीकेँ पुछलक-
दादी केहेन घर बनेबै?
बौआ, गि‍लेबापर जोड़ि‍ तीन नंबर ईंटाक देबालपर सँ एसबेस्‍टसक छत देबै। कहुना-कहुना तँ बीस-पच्‍चीस बरख चलबे करत।‍
से तँ बेसी‍ओ चलि‍ सकैए आ सालो भरि‍ नै चलि‍ सकैए।‍
से की?
तेहेन सि‍मटीक घटि‍या एसबेस्‍टस बनैए जे पाथरक चोट बरदास करत।‍
मुड़ी डोलबैत दादी-
हँ, से तँ ठीके कहलह।‍ कहि‍ गुम्‍म भऽ गेली। दादीकेँ गुम्‍म देखि‍ ललि‍त बाजल-
दादी, जँए अस्‍सी तँए नि‍नानबे। चदरा तरमे खूब गतगर कऽ खरहीक छाड़ दऽ देबै। जौं पथरो खसत तँ चदरे ने फुटत, जान तँ बँचत कि‍ने। बेसीसँ बेसी देहपर पानि‍ चुअत। सएह ने।‍

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