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Friday, October 18, 2013

(59) कि‍यो ने

कि‍यो ने

डेढ़ मासक शीतलहरि‍ समैक रोहणिए उतारि‍ देलक। पला-पला ओस पाला बनि‍ दि‍न-राति‍ बर्फवारी करैए जइसँ मनुखकेँ के कहए जे मालो-जाल आ गाछो-बि‍रि‍छ जि‍नगीसँ तंग-तंग भऽ काहि‍ कटैसँ मरबे नीक बुझैए। चटपट मरब काहि‍ काटबसँ नीक होइते छै। जहि‍ना माल-जालक रूइयाँ भरि ‍दि‍न भुलकल ठाढ़ रहैए तहि‍ना मनुखोक। मुदा माल-जाल जकाँ सौंसे देहक नै। कारणो अछि‍ जे मनुखकेँ रूइयाँ संग केशो होइ छै, माल-जालकेँ से नै होइ छै। गाछ-बि‍रि‍छक पात अपन रंगेटा नै बदलि,‍ पीअर भऽ भऽ सुखौ लगल आ तुबि‍-तुबि‍ खसौ लगल अछि‍। आने-आन जकाँ पचासी बरखक सुगि‍योकाकीकेँ मन कहए लगलनि‍ जे छि‍आसीअम अगहन भरि‍सक नहि‍येँ देखब। जेहो जारनि-काठी आ अन्न-पानि‍ घरमे छल सेहो सठि‍ गेल, शीतलहरि‍क कोनो ठेकान नै अछि‍, तखनि जीब केना? मनमे कोनो बाटे ने भेटनि‍। बाटो केना भेटि‍तनि‍ जौं माटि‍क रस्‍ता बाट होइ आ दि‍न-राति‍ बर्खा होइत रहै, तखनि पक्की सड़कक सुख कल्‍पने हएत कि‍ने? मुदा मरि‍तो दम लोक, जीबैक आशा थोड़े तोड़ैए जे सुगि‍याकाकीक पचासी बरखक पाकल फलक आँठी जकाँ सक्कत नै हेतनि‍। सकताएले आँठीमे ने अँकुरैक शक्‍ति सेहो अबै छै। सुगि‍याकाकीक नजरि‍ गेलनि व्‍यास बाब‍ापर। ओ जे कंठ फाड़ि‍-फाड़ि‍ कहै छथि‍न जे ‘लूटि‍ लाउ, कुटि‍ खाउ, भि‍नसर भने फेर जाउ।’ से समैक ठेकान किए ने केलखि‍न जे जखनि‍ घरसँ नि‍कलैबला समए बनत तखने ने लोक घरसँ नि‍कलि‍ कि‍छु करत आ जखनि घरसँ नि‍कलैबला समैए ने हेतै, तखनि केना दोसर दि‍न कि‍छु करए नि‍कलत? मुदा पेट से थोड़े बूझत। देहक जे सुख छै से केना भेटतै? आकि‍ व्‍यासबाबा एअर कंडीशन मकान, भरल-पूरल अन्न-पानि‍क जि‍नगी बूझि‍ बजै छथि‍न। जेते सुगि‍याकाकी मनकेँ मथैत तेते ओझराएले जाइत रहथि‍। जीबैक बाट कि‍ भेटतनि‍ जे आरो मन सोगाएले चलि‍ गेलनि‍। असगर सि‍बा घरमे दोसराइतो तँ नहि‍येँ अछि‍ जे दुनू गोटेक बुधि‍ओ आ हाथो-पएर लड़ा-चला कऽ देखि‍ति‍ऐ जे जीब सकै छी की नै। एहने समैमे ने दोसराइति‍क जरूरति‍ होइ छै। आन समए हेबे किए करतै? असकरे लोक चाह पीब लइए, खेनाइ खा लइए, सुति‍-पड़ि‍ रहैए तखनि दोसराइतक जरूरते की। दि‍न-राति‍मे ऐसँ बेसी चाहबे की करी। चौबीसो घंटा कटैक धार तँ बनले अछि‍ किए ने कटत। मुदा से नै, उमेरो तँ कि‍छु छी? बुढ़ाड़ी मृत्‍युक कारण छी मुदा जुआनीकेँ केना से कहबै? होइ छै तेकरो हजारो कारण, मुदा कारण कारण तँ भऽ सकै छै। अकारण कारण केना भऽ सकै छै। हि‍या कऽ दुनि‍याँ दि‍स सुगि‍याकाकी तकली तँ बूझि‍ पड़लनि‍ बेसौंगरकेँ ठेंगो एकटा टाँगक काज करै छै। तँए एकटा सहयोगीक जरूरति‍ तँ अछि‍ए। मुदा सहयोगी हएत के? बेटी सासुरे बसैए, नैहरो हटले अछि‍, तखनि? मुदा जरूरति तँ अछि‍ अौझुका? से तँ लगेक लोकसँ भऽ सकैए। मनमे प्रश्न अबि‍ते काकीक मनमे उत्तर स्‍पष्‍ट भऽ गेलनि‍ जे रीतलालक ऐठाम जा अपन बात कहि‍ऐ जे ओ की कहैए। अनेरे बाबू जन लेबह हौ, तँ पनरह बापूत अपने छी। तइसँ तँ काज नै चलत, काज तँ अछि‍ अपन बनि‍ अपना जकाँ जि‍नगी पार लगबैक? मुदा तइसँ पहि‍ने वि‍चारि‍ लेब नीक हएत जे जौं भार उठा लेलक तँ बड़ बेस, जौं नै उठौत तखनि‍? तखनि‍ की‍, तखनि‍ यएह ने जे रीतलाल सन-सन बाबन गाही गाममे पसरल अछि‍। सभ कि‍ कोलि‍फटूए आकि‍ रसफटूए भऽ जाएत। जेकरा हम अपन बना अपनेबै से किए ने अपनौत। जौं सेहो नै अपनौत तँ पहि‍ने बुझा कऽ कहबै पछाति‍ बुझेबै। उमेद-नाउमेदक बीच सुगि‍याकाकी रीतलाल ऐठाम विदा भेली। ठंढसँ जहि‍ना देह सि‍रसि‍राइत तहि‍ना देहक फाटल-पुरान वस्‍त्र सि‍मसि‍माएल। सुगि‍याकाकीकेँ देखिते रीतलाल अचंभि‍त भऽ गेल जे एहनो समैमे नि‍कलि‍ काकी दरबज्जापर एली! सुगि‍याकाकीकेँ रीतलाल साक्षात् लक्ष्‍मी स्‍वरूप बुझैत। गुणसँ भरल, जेहने कंठक स्‍वर, तेहने नजरि‍क गुण आ तेहने हाथक लूरिसँ भरल-पूरल सुगि‍याकाकी। जाड़सँ सि‍रसि‍राइत काकीकेँ देखि‍ते रीतलाल अपन देह परहक कम्‍मल सुगि‍याकाकीकेँ ओढ़बैत अगियासी जोड़लक। अगियासीक दुनू कात दुनू गोटेकेँ बैसि‍ते गप-सप्‍प उखड़ैक मनसून बनए लगल। मुदा दुनू अपन-अपन मुँह दबने। मनमे अपन-अपन राग-दोख जे केना पुछबनि‍, काकी केम्‍हर एलौं। दरबज्‍जापर एली तँ चाहक बेर चाह, जलखै बेर जलखै, कलौ बेर कल्‍लौ आ सुतै बरे ओछाइनि‍क ओरि‍यान कऽ देबनि‍।
तहि‍ना सुगि‍याकाकीक मनमे उठैत जे घरवारी पहि‍ने कि‍छु हँ-निहँस बाजत तखनि ने उतारामे अपनो दुखनामा कहबै। गुमा-गुम्‍मी पसरल। मुदा कि‍छु समए गुमा-गुमी भेला पछाति‍ सुगि‍याकाकी गुमगुमबैत गुमगुमा जकाँ बजली-
बौआ, एक तँ तूँ एक वंशक छह, दोसर अंश तोरामे अछि‍, जे सुतलो-सूतल कानसँ सुनैत रहै छी, तँए...।
‘तँए’ कहि‍ते सुगि‍याकाकीक बोल ब्‍लॉटिंग पेपरमे साेंखल रोसनाइ जकाँ बन्न भऽ गेलनि‍। मुदा कि‍छु प्रश्न तँ उठि‍ए गेल छल, जे तूँ एकवंशक छिअ। तइ संग लूरि‍-बुधि‍क अंश सेहो अछि‍ए। रीतलाल बाजल-
काकी, तेहेन दुरकाल भऽ गेल अछि‍ जे चि‍ड़ै-चुनमुनीक कोन बात जे नम्‍हरको-नम्‍हरकोक जान बँचब कठि‍न भऽ गेल अछि‍। चीन-पहचीन सेहो मेटाएल जा रहल छै, तखनि तँ लोक ताबते धरि‍ ने धीरज रखत जाबत धरि‍ आँखि‍ तकैए। ओना तकि‍तो आँखि‍ देहक दुआरे अथबल भऽ जाइ छै मुदा तैयो तँ भूख लगने टंगटुटा चुट्टी जकाँ नेंगराइतो चलि‍ते अछि‍। नेंगराइत-नेंगराइत जखनि बेदम भऽ जाइए आ पेटक आगि‍मे जरए लगैए तखने ने अपनाकेँ हवन चढ़बैए। मनुख तँ सहजे मनुख छी।
रीतलालक बातकेँ सुगि‍याकाकी कि‍छु बेसीए बुझलनि‍। बेसी बुझैक कारण काकीक सोचक धार। होइतो तँ अहिना छै जे एक्के मुँहक बात कि‍यो बेसी बुझैए तँ कि‍यो कम। मुदा तइ संग तेसरो बुझि‍नि‍हार तँ होइते अछि‍ जे समगम बुझैए। समगम माने जेते प्रश्नकर्ताक बात रहल तेतबे सुनि‍नि‍हार बुझलक। सुगि‍याकाकी तँ सहजे सुग्‍गा बोल परखि‍नि‍हारि‍ छथि‍। जहि‍ना कोनो रंगक वस्‍त्रपर दोसर रंग चढ़बैक वि‍धि‍ अलग-अलग अछि‍, अलग-अलग ई जे कि‍यो बेधड़क दोसर रंग घोड़ि‍ वस्‍त्रकेँ डुमा देलक तँ कि‍यो आस्‍ते-आस्‍ते रंग घोड़ि‍ बेर-बेर डुमा-डुमा रंग चढ़बैए...। तहि‍ना काकी मोने-मन सोचए लगली जे बेधड़क अपन वि‍चार रखैसँ पहि‍ने, आस्‍ते-आस्‍ते मनक उद्गार बेक्‍त करब बेसी नीक हएत। वि‍चारि‍ते छेली आकि‍ रीतलालक पत्नी-कबुतरी चाह नेने पहुँचली। काकीक हाथमे चाहक गि‍लास पकड़बैत कबुतरी बाजलि‍-
काकी, तेहेन टि‍कजरौना समए भऽ गेल जे एक तँ दुनि‍याँ जाड़सँ जड़ा गेल अछि‍ तैपर आगि‍ओ-छाइकेँ कि‍ ओ तेजी छै जे बैशाख-जेठमे रहै छै। ओइ समैमे जेत्तै जारनिसँ रोटी-तरकारी बनैए तेतेसँ अखनि चाह बनैए।
  कबुतरीक रस-रसाएल बोल सुनि‍ कोइली बोलीमे सुगि‍याकाकी बाझक स्‍वरलहरी छि‍टकबैत बजली-
कनि‍याँ, एहने-एहने समैमे पुरुखक पुरुखपना परि‍वारमे देखल जाइ छै। सभ कि‍छु सुरीत रहने भारीओ काज हल्‍लुके बूझि‍ पड़ै छै, मुदा सभ कि‍छु वि‍परीत रहने जौं अपन-अपन परि‍वार, समाज आ मातृभूमि‍क सेवा जे करैए, वएह ने पुरुखपना भेल। बूढ़ भेलौं, कोनो कि‍ भगवान तँ नहि‍येँ छी जे जे कहब से भइए जाएत। मुदा एते तँ कहबे करबह जे भगवान हमरे सनक नम्‍हर जि‍नगी सभकेँ देथुन जे हँसैत-खेलैत दुनि‍याँ देखैत चलत।
  एक संग अनेको प्रश्न काकी बाजि‍ गेली। कि‍छु बात कबुतरी बुझबो केलक आ कि‍छु नहि‍योँ। रीतलालो काकीक सोल्हन्नी बात तँ नै बुझलक मुदा कबुतरीसँ तँ बेसी बुझबे केलक। दोसर बात रीतलालक मनकेँ ईहो ठेललक जे परि‍वारक भीतरक जे प्रश्न अछि‍ ओइमे परि‍वारक सभकेँ वि‍चार रखैक समान अधि‍कार छै मुदा समाजक बीच तँ एक-मतक जरूरति‍ होइ छै। तइले परि‍पक वि‍चारक जरूरति‍ होइते छै। कबुतरीओकेँ गर भेटल, मुँहमे ताला-लगा पति‍ दि‍स आँखि‍ उठौलक।
कबुतरीक नजरि‍ पड़ि‍ते रीतलाल बाजल-
काकी, अखने देखि‍यौ जे एक गि‍लास चाह पीलौं। यएह चाह गरम समैमे मन भरि‍ दैत, मुदा अदहोसँ कम शक्‍ति‍ रहि‍ गेल छै, तहि‍ना तँ मनुखोक शक्‍ति‍केँ होइ छै?”
रीतलालक प्रश्न सुगि‍याकाकी ठाढ़ काने सुनललनि‍। प्रश्नक एकभग्‍गू उत्तर नै दैत बजली-
रीतलाल, तोंही दुनू परानी अखनि ऐठाम छह। परि‍वार तँ दुनू गोरेक छिअ। जे संतान छह ओहो सम्‍मि‍लि‍ते छह। तँए परि‍वारमे ओहन विचारक धार बहबैक छह जे जि‍नगीक संग हँसैत-खेलैत-बोहैत‍ चलए। हँसी-खेल दुनि‍याँमे कहाँ छै, ओ छै अपन काजमे। अपन परि‍वार छी आकि‍ परि‍वार अपन, एकरा नीक जकाँ बुझने लोक अपन परि‍चए बूझि‍ पबैए।
काकीक वि‍चार सुनि‍ रीतलाल, पत्नीकेँ कहलक-
काकी कि‍ केतौ पड़ाएल जाइ छथि‍ जे गपे सुनैमे रहि‍ जाएब। जाउ, भानसक जोगार करू। खेला-पीला पछाति‍ नि‍चेनसँ गप-सप्‍प करब।
पति‍क सह पाबि‍ कबुतरी बाजलि‍-
एहेन समैमे काकीओ केतए जेती। हम सभ जुआन-जहान छी से तँ एक मोटा वस्‍त्र देहमे सटने छी, काकीक तँ सहजे सुखाएल हड्डी छन्‍हि‍, बेसीए जाड़ होइत हेतनि‍। पहि‍ने चाइटा गोरहा आनि‍ कऽ घूरमे दऽ दइ छियनि‍ जे लगले टनगर भऽ जेती। अच्‍छा ई कहथु जे कथी खाइक मन होइ छन्‍हि‍?”
आशा पाबि‍ सुगि‍याकाकी आश दैत आस मारली-
कनि‍याँ, भने दुनू बेकती छह, एक तँ भगवान बेसी अज-गज नै देलनि‍, तैयो अपन काजे ओहन रहल जे सभ दि‍न अजे-गजेमे बितल। मुदा जे कि‍छु अपन अछि‍ सभ समैट लिअ। पाँच कट्ठा खेत बढ़ने अहूँक उपजा बढ़ि‍ जाएत आ हमरो दि‍न घुसकैत कटि‍ जाएत।
काकीक बात सुनि‍ रीतलाल बाजल-
काकी, हमरासँ लगो अहाँकेँ बहुत अज-गज अछि‍ पहि‍ने ओ...?”
झपटि‍ कऽ काकी बजली-
पहि‍ने पाछू कि‍छु नै, चि‍ड़ैकेँ जेतए घोघ भरै छै तेतए रहै छै। जे कि‍यो अपन छथि‍ ओ एहेन दुरकाल समए नै देखि रहल छथि‍!
देखि किए ने रहल छथि‍ मुदा सबहक तँ अपने जान भौर भऽ गेल छन्‍हि‍, तखनि अनकापर नजरि‍ केना जेतनि‍?”
रीतलालक बात सुनि‍ सुगि‍याकाकीकेँ कटु लगलनि‍। कटु लगि‍ते मन रब-रबेलनि‍। कबकबाइत बजली-
बौआ रीतलाल, कहलह तँ बड़-बढ़ि‍याँ मुदा, मनुख तँ वि‍वेकी होइ छै, ओकरा तँ वि‍वेकसँ डेग उठबए पड़ै छै। जौं से नै उठौत तँ मनुखता केना औतै। खाली दूटा हाथे-पएर रहने तँ नै हेतै। दूटाकेँ के कहए जे चारिओटा पएर रहने पशु तँ पशुए भेल कि‍ने। जे हाथी पाँच गोटेकेँ पीठपर लादि‍ चलैए। मुदा ओकराे तँ अपना रहैक ठौर-ठेकान आ खाइ-पीबैक ओरि‍यान करैक लूरि‍ नहि‍येँ होइ छै। ई दीगर बात जे बि‍नु दोसराइते बोन-झाड़मे रहि‍ जीवन-जापन कऽ लइए मुदा पालतू तँ तखने कहबैए जखनि मनुखक संग जीबैए।
सुगि‍याकाकीक बात रीतलाल नीक जकाँ नै बूझि‍ पौलक। प्रश्न उनटबैत बाजल-
काकी, जखनि‍ मनुख मनुख छी तखनि‍ दोसराइतकेँ बाँहि‍ पकड़ि‍ उठाबए आकि‍ दोसराक बाँहि‍क आशा अपने उठैमे करए?”
रीतलालक वि‍चार सुनि‍ सुगि‍याकाकी मुस्‍कीआइत बजली-
बौआ, कालक्रमे मनुख धरतीपर आबि‍ आगू मुहेँ चलैत अछि‍। तहीले परि‍वार-समाजक जरूरति होइ छै। जखनि‍ बच्‍चाक जनम होइ छै तखनि‍ जौं ओकरा दोसर रच्‍छा नै करतै तँ की ओ उठि‍ ठाढ़ भऽ सकैए। नै भऽ सकैए। तहि‍ना बुढ़ाड़ीमे, जखनि‍ शरीरक सभ अंग आस्‍ते-आस्‍ते काज करब छोड़ि‍ दइ छै तखनो तँ दोसराइतक जरूरति होइते छै। जौं एतबो बात लोक नै बूझत तँ की ओ मनुख कहबैक अधि‍कार रखैए।
सुगि‍याकाकीक बात सुनि‍ रीतलालक मनमे उठल जे अनेरे काकी सन लोककेँ ओझरीमे ओझरबै छियनि‍। अपनो नीक नहि‍येँ होइए। नीक तँ तखनि‍ हएत जखनि कामधेनु सन काकीसँ दूधक आशा रखब। तइले दुधारू भोजन आ रहैक ओरि‍यान करए पड़त। मुदा जइ पटरीपर गप-सप्‍प उतरि‍ गेल अछि‍, तइसँ हटि‍ दोसर लीकपर जाइमे बाधा तँ बीचमे अछि‍ए। अपनाकेँ ओझराएल देखि‍ रीतलाल बाजल-
काकी, अहाँ अपन जि‍नगी आ अपन वि‍चारक मालि‍क अपने छी। जे मन हुअए से करब। अखनि‍ एतबे जे जेते दि‍न अपन बूझि‍ रहए चाहब, तइमे बाधा नै हएत। आगू अपन जानी।
रीतलालक वि‍चार सुनि‍ सुगि‍याकाकीक मन मानि‍ गेलनि‍ जे रहै जोकर स्‍थानपर पहुँच गेलौं।
सात भाए-बहि‍नि‍क बीच सुगि‍याकाकी अंति‍म तेसर बहि‍न। श्‍याम वर्ण, चाकर गोल मुँह, चौरस देह, मझोल कदक सुगि‍याकाकी। गाममे बेछप जनाना। ओना समाजक जनानाक बीच एकरूपता बेसी मुदा तइसँ भि‍न्न रहने सुगि‍याकाकी छेली। समाजक बहुलांश जनाना खेती-बाड़ीसँ जुड़ल तँए दि‍न-राति‍ ओइ चक्कीकेँ चलबै पाछू बेहाल। बेहालो केना नै रहती? मनुख बनि‍ जखनि‍ ऐ धरतीपर खेल खेलैले एलौं, भि‍नसरमे घर-दुआर बना लेब, दुपहरमे बि‍लमि‍ रौद-बसात जीड़ा लेब आ साँझमे सभकेँ उसारि‍ अपने उसरि‍ जाएब, यएह ने भेल जि‍नगी। से तँ सबहक सोझहेमे अछि‍। पतियानी लगौने बाबा अपन बेटाकेँ बाबा बना अपने उसरि‍-बि‍सरि‍ जाइ छथि‍। अहि‍ना ने दोसर दि‍ससँ पोता-बेटा बनैत, बाबाक कुट्टी लग पहुँच अपन समाधि‍ लइए। मुदा ऐ बीच जे कुत्‍सि‍त बाधा बि‍चमाइन करैत रहल ओकरा तँ देखए पड़त कि‍ने?
समाजमे सुगि‍याकाकी ऐ दुआरे बेछप छेली जे जेहने हाथक लूरि‍ बदलल छेलनि‍ तेहने छातीक धड़कनक संग कंठक स्‍वर, जे मुँहक बोल होइत नि‍कलै छेलनि‍। गीत-संगीत प्रेमी सुगि‍याकाकी। भि‍त्ति‍-चि‍त्र वृत्ति‍वाली सुगि‍याकाकी। अदौरी, दनौरी, बि‍औरी इत्‍यादि‍क संग आमक अँचार-मोरब्‍बासँ लऽ कऽ ति‍ल-ति‍सी धरि‍क अँचार बनौनि‍हारि‍। तइ संग सतरंग सागक संग सतरंग तरकारी-भुजि‍या-तरूआ बनौनि‍हारि‍ सुगि‍याकाकी।
साठि‍ बरख पूर्व सुगि‍याकाकी वसन्‍तपुर एली। जइ परि‍वारमे एली ओ परि‍वार बहुत जत्‍था-जमीनबला नै। घराड़ी संग पाँच कट्ठा चास। मुदा जेकरा संग बि‍आह भेलनि, ओ जेहने देखैमे भव्‍य तेहने कंठक सुरील। भजन-कीर्तन, नाच-गानसँ सोमनाथकेँ बच्‍चेसँ सि‍नेह छेलनि‍। जेना पाछूएसँ नेने आएल होथि‍ तहि‍ना। दसे-बारह बरखसँ जे घर छोड़ि‍ बौड़ाए लगल ओ रंगमंचक धीर कलाकार बनि‍ बौड़ाइते रहल। पुश्‍तैनी तीन पुश्‍त आगूसँ सुगि‍याकाकीक नैहरक परि‍वार गीत-संगीतसँ जुड़ल। सोमनाथो घुमैत-घामैत सालक तीन-तीन-चरि‍-चरि‍ मास रहबो करथि‍ आ सीखबो करथि‍।
कि‍सान परि‍वार रहि‍तो वि‍श्वनाथक -सुगि‍याकाकीक पि‍ता- परि‍वार कृषि कार्य-खेती-बाड़ीसँ अलग छेलनि‍। ओना परि‍वारमे बीस बीघा चास आ पाँच बीघा गाछी-कलमक संग नमगर-चौरगर बासो आ पोखरि‍ओ‍-इनार छन्‍हि‍हेँ। कला-मर्मज्ञ वि‍श्वनाथक परि‍वार, सोमनाथक बि‍आह अपन परि‍वारमे करा लेलनि‍। ने सोमनाथक घर-दुआर देखलनि‍ आ ने धन-सम्‍पति‍क हि‍साब-कि‍ताब पढ़लनि‍।
वसन्‍तपुर अबि‍ते सुगि‍याकाकी परि‍वारक स्‍थि‍ति‍ देखि मर्माहत भेली। मुदा उपए की। पति‍क कमाइ -अर्थ रूपमे- कि‍छु ने, सालमे पाहुने-परक जकाँ आन-जान। पेटक आगि‍ शान्‍त करै खाति‍र सासु-ससुर दि‍न-राति‍ एकबट्ट केने मुदा कट-मटी तँ रहबे करनि‍। नव कनि‍याँ बनि‍ सुगि‍याकाकी घरमे एली, केना सासु-ससुर कहतनि‍ जे कनि‍याँ बोइन-बुत्ता करए संगे चलू। परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा तँ प्रति‍ष्‍ठा छि‍ऐ भलहिं जि‍नगी भरि‍ नै निमहै। एको दि‍न आकि‍ एको क्षणक महत तँ जि‍नगीमे छइहे। अपन दि‍न-दुनि‍याँ देखैत सुगि‍याकाकी अपना दि‍स तकलनि‍ तँ भरल-पूरल खजाना देखलनि‍। परती देखि‍ जहि‍ना कि‍सानीक जि‍ज्ञासा जगैत, बजार देखि‍ बेपारक जि‍ज्ञासा जगैत तहि‍ना सुगि‍याकाकीकेँ भेलनि‍। मुदा, सासु-ससुरक ऊपर आगू चढ़ि‍ मँुह केना उठौती, ई तँ प्रश्न रहबे करनि‍। जि‍नगी जीबैत-जीबैत लोको आ पशुओ-पक्षी अभ्‍यस्‍त भेने आनन्‍दि‍त जि‍नगीक सुख-भोग तँ करि‍ते अछि‍। मुदा जँ बरि‍सल पानि‍केँ खेतक आड़ि‍ बान्‍हि‍-बान्‍हि‍ नै रखब तँ खेतमे पानि‍ केना अड़त। जाबे खेतमे पानि‍ नै अड़त ताबे धान केना रोपब। जँ से नै रोपब तँ बोनि‍हारि‍न-बोनि‍हारक पुतोहुक कलंक केना धुआएत? आ जौं से नै धुआएत तँ जि‍नगीए केहेन भेल? रंग-बि‍रंगक प्रश्न सुगि‍याकाकीक मन बरसैत पानि‍क बुलबुला जकाँ इंद्रधनुषी रंग नेने बनैत आ फुटैत। मनमे वि‍चारलनि‍ जे सभसँ पहि‍ने अपन ढेकी-जत्ताक ओरि‍यान करी। जखनि‍ ढेकी-जाॅत भऽ जाएत तखनि समाजक कुटौन-पि‍सौन कऽ अपन स्‍वतंत्र कारोबार अपन घर-आँगनमे करब। की‍ हमरा चूड़ा-चाउर कुटैक लूरि‍ नइए। की हमरा मेदा-चि‍क्कस पीसैक लूरि‍ नइए। तखनि तँ भेल जे उक्‍खैर-समाठ, ढेकी-जाॅतक ओरि‍यान करब। केना सासु-ससुरकेँ कहबनि‍ जे अहाँ कर्जा लऽ कऽ हमरा कीनि दिअ। मुदा अपना माए-बापकेँ तँ कहि‍ सकै छी। देह-हाथ मारि‍ जे आँगनमे बैसल रहै छी तइसँ नीक जे अपन घर-आँगनमे किए ने अपन लूरि‍क कि‍ताब लि‍खब शुरू करी।
आँगनक ओसारपर ओछाएल ओछाइनपर बैस सुगि‍याकाकी अपन दि‍न-राति‍क झख-झखैत मोने-मन सुमारक करए लगली जे केना पौतीमे रखल खीड़ा-करैलाक बीआ समैपर माटि‍मे गाड़ल जाइ छै। समए पाबि‍ जखनि‍ माटि‍ पकड़ि‍ हाल पबि‍ते फुड़फुड़ा कऽ अँकुरि माटि‍क ऊपर आबि‍ अपनाकेँ गाछ कहए लगै छै। बौधि‍क रूपे अगुआएल सुगि‍याकाकीक उत्‍साह जगलनि‍। किए ने फूल जकाँ गंध सि‍रजि‍ हवाक संग वायुमंडलमे पसरब! मुदा बीचमे बाधा तँ अछि‍ए, ओ अछि‍ जइ परि‍वारमे एलौं ओ परि‍वार अपन छी आकि‍ नै। कहैले तँ सभ कि‍यो छथि‍ मुदा हमरा वि‍चारकेँ केते महत अछि‍ से तँ थाहला पछाति‍ बूझब। मुदा थाहो लेब तँ कठि‍न अछि‍। एकरूपा सासुकेँ तँ सम्‍हारि‍ बाजि‍ सम्‍हारि‍ लेब मुदा ससुर तँ पुरुख छथि‍। पुरुखक करेज बेसी स्‍वार्थी होइए, अपन ि‍वचारकेँ दउ-चप बले रखए चाहैए। मन ठमकलनि‍। ठमैकि‍ते सुगि‍याकाकीक मनमे बि‍जलोका जकाँ छि‍टकलनि।‍ मन मानि‍ गेलनि‍ जे सासुकेँ संगी बनौल जा सकैए। जखने सासु समटेती तखने ससुर उसरता, उसरैत-उसरैत अपने उसरागा बनि‍ सोझ भऽ जेता।
दोसर दि‍न साँझू पहर सुगि‍याकाकी चुल्हि‍क ओरि‍यान करि‍ते छेली आकि‍ सासु-ससुर अनका खेतसँ खटि‍ कऽ एली। पुतोहुकेँ काजमे लगल देखि‍ रधि‍या पति‍केँ कहलखि‍न-
बड़ काजुल कनि‍याँ घरमे पएर रखलनि‍ अछि‍।
पत्नीक बोलकेँ नकारब सोहनलाल उचि‍त नै बुझलनि‍, बुझलनि‍ ई जे संगे-संग संगी बनि‍ भरि‍ दि‍न संगे काज केलौं तखनि‍ जेहने वि‍चार अपन अछि‍ तेहने ने हुनको हेतनि‍ लोकक काजो तँ लोकक पहि‍चान छी। तहूमे भरि‍ दि‍नक थाकल-मारल अपनो घरमे अराम नै करब, से केहेन हएत? अष्‍टयाम कीर्तनमे जहि‍ना अगुआ-पछुआ एक्के धूनमे जयकार करैए तहि‍ना सोहनलाल ताल मि‍लबैत बजला-
हम सभ तँ हि‍नका सबहक -बेटा-पुतोहु- नौकरी करै छी। ओना उचि‍तो अछि‍। तेहेन भगवान जनम देलनि‍ जे सोझहे हाथे-पएरटा देलनि‍। मुदा ओइमे बेइमानी नै केलनि‍। ओ चारू सुरेब अछि‍। जँ चारूमे सँ एकोटा अबाह रहैत तखनि के केकरा पुछैत। अहीं हमरा पुछि‍तौं कि‍ हमहीं अहाँकेँ पुछि‍तौं। भीख छोड़ि‍ दोसर कोनो रस्‍ता जीबैक रहि‍तए?”
नमगर-चौड़गर पति‍क बात सुनि‍ रधि‍या भाव-वि‍ह्वल भऽ गेली। जहिना निशाँएल साहि‍त्‍यकार जकाँ जे गुदरी-चेथरीक आगि‍सँ सोनाक लंका जरबै छथि‍, तहि‍ना सासु-ससुरक बोल सुगि‍याकाकीक कानमे पड़लनि‍। अनुकूल मनसून देखि‍ सुिगयाकाकी दाव सम्‍हारलनि‍। भरल बाल्‍टीन पानि‍ आ लोटा नेने आगूमे पहुँच गेली। पुतोहुक आग्रह देखि‍ रधि‍या जहि‍ना बरफ पानि-हवा बनि‍ अकासमे उड़ि‍ जाइए तहि‍ना रधि‍या उड़ैत बजली-
कनि‍याँक सभटा सीख-लीक खनदानीए छन्‍हि‍।
रधि‍याक संग सोहनलाल आरो उड़ि‍या गेला। उड़ियाइत बजला-
जहि‍ना दबो भोज्‍य-वस्‍तु, चमकैत थारीमे परोसलापर अनेरो खेबैयाक मन भरछए लगै छै तहि‍ना घरक चि‍ष्‍टे-चार ने घरकेँ घर बनबैए। ई घर कि‍ कोनो हमरे छी आकि‍ आब हि‍नके सबहक भेलनि‍। जेना सम्‍हारथि‍।
ससुरक बोल सुनि‍ सुगि‍याकाकीक मनमे भेलनि‍, जेहने परि‍वारमे भगवान जनम देलनि‍ भरि‍सक सासुरो तेहने भेल। मोने-मन भगवानकेँ गोड़ लगिते जगलनि‍ जे ई दलि‍दता केते दि‍न छहटा हाथ पएरक आगू ठाढ़ रहत। मुदा सासु-ससुरकेँ जे जि‍नगी भरि‍क बात पेटमे छन्‍हि‍ से जाबे सुनि‍ नै लेब ताबे बुढ़ी थोड़े कहती अपन चौथारीक गप-सप्‍प। तइ सुनैले तँ कि‍छु पूजी-समए लगबै पड़त। जहि‍ना बड़का करखन्ना बैसबैले बड़का घर बनबए पड़ै छै तहि‍ना नम्‍हर गप-सप्‍प सुनैले बेसी धैर्यक जरूरति पड़ै छै। जइ बनबैमे कि‍छु बेसीओ समए लागि‍ सकै छै।
खेला-पीला पछाति‍ सुगि‍याकाकी मालीमे तेल नेने सासु-ससुर लग पहुँचली। भरि‍ दि‍नक थाकलक दबाइओ छी तेल। सोहनलाल रधि‍याकेँ कहलखि‍न-
काल्हि‍ धनरोपनी समापत भऽ जाएत। गाममे केते गि‍रहत तँ आठ दि‍न पहि‍ने रोपनी उसारलनि‍। ई तँ गुण अछि‍ जे अपना सभ केकरो बान्‍हल जन नै छि‍ऐ ने तँ अपनो सबहक काज आठ दि‍न पहि‍ने समापत भऽ गेल रहि‍तए।
आगूक बात सोहनलालक पेटेमे रहनि‍ आकि‍ सुगि‍याकाकीक हाथमे माली देखलनि‍। माली देखि‍ते घरक माली -मालि‍क- बेटा-पर नजरि‍ गेलनि‍। अपने फुड़ने बाजए लगला-
भगवान तेहेन बेटा देलनि‍ जेकरा ने अपन खाइ-पीबैक ठेकान छै आ ने परि‍वारक ठेकान छै। ओहन मनुख बुते घर चलत। अखनि अपने दुनू बेकती थेहगर छी, कहुना कऽ घीच-तीड़ परि‍वारकेँ ससारने चलै छी।
बेटापर पि‍ताक आछेप सुनि‍ते रधि‍याक मनक महथीन बाजलि‍-
बेटा धन छी आकि‍ कोनो बेटी छी जे घर-अँगनाक टाटक अढ़मे नुकाएल रहत। भगवान हमरो सबहक औरुदा ओकरे दउ जे आरो बोनाएल रहए।
ससुरक बात सुनि‍ जहि‍ना सुगि‍याक मन बि‍स-बि‍सेलनि‍ तहि‍ना सासुक बात सुनि‍ मन तन-तनेबो केलनि‍। मुदा सासु-ससुरक बीचक बातमे नव कनि‍याँकेँ पड़क चाही आकि‍ नै? मन ओझरा गेलनि‍। मुदा नीककेँ नीक आ अधलाकेँ अधला जौं नै कहल जाए तँ के पटकाएत तेकर कोनो ठीक छै। हँसीओ होइ छै हहासो होइ छै। गंभीरो हँसब होइ छै आ फुलहो हँसब होइ छै, मुदा से बूझत के? हँसी तँ हँसी छि‍ऐ। मुँह खोलि‍ बत्तीसी जोरसँ छि‍ड़ि‍या देलि‍ऐ, बड़का हँसब भेल! तारतम्‍य करैत सुगि‍या सासुक वि‍चारपर, सासु दि‍स घूमि‍, डि‍बि‍याक रोशनीमे मन्‍हुआएल चोकटल फूल जकाँ नै, खि‍लैत कली जकाँ आँखि‍-भौ-नाकक संग मुस्‍की‍एली। पुतोहुक मधुर मुस्‍कान देखि‍ रधि‍याकेँ, जहि‍ना गोबरखत्तोक पानि‍ धाराक संग पाबि‍ गंगामे पहुँच गंगाजल बनि‍ जाइए तहिना भेलनि‍। सौझुका बेला-बेली जहि‍ना अपन चौंसैठो कलासँ नाचए-गाबए लगैए तहि‍ना रधि‍या पति‍केँ देखबैत बजली-
सोमनाथ अपन गुणक हि‍साबसँ दुनि‍याँक गुणा-भाग जोड़ैए। जोड़ह, आरो जोड़ह। हम सभ माए-बाप भेलि‍ऐ, जीता-जि‍नगी ई नै कानमे आबए जे माए-बाप बेटा-पुतोहुकेँ बान्‍हि‍ कऽ रखने अछि‍।
रधि‍याक बात सुनि‍ सुगि‍याकाकीकेँ जहि‍ना अपन शक्‍ति‍ मुँह जगौलकनि‍ तहि‍ना रधि‍याकेँ सेहो दमपति‍ शक्‍ति‍ जगौलकनि‍। मंदि‍रक आगू दुनू हाथ जोड़ि‍ भक्‍त जहि‍ना अपन अराधना करैत तहि‍ना अखनि धरि‍ सुगि‍योकाकी हाथमे माली रखने आराधना करैत रहली। माली देखि‍ रधि‍या सुगि‍याकाकीकेँ कहलखि‍न-
कनि‍याँ, अहाँ बैसू जे सेवा सासुरक छी ओ तँ सासुरेमे ने सीखब। हम अपने अहाँ ससुरकेँ देह-हाथ ससारि‍ दइ छियनि‍। ओना ससुरोक सेवा पुतोहुक करतब  छी मुदा स्‍थान-वि‍शेषक अनुकूल। पि‍ताक सेवा आ ससुरक सेवा एक रहि‍तो दू प्रक्रि‍यासँ चलै छै। तहि‍ना जन्‍मदात्ती माए आ पोसि‍नि‍हारि‍ सासु-माएक सेवामे सेहो भेद होइ छै। अहाँक ससुर सन भगवान केकरा ससुर देलखि‍न। भगवान एहने सभकेँ देथुन।
परि‍वारक -तीनू गोटेक- बीच अपन प्रति‍ष्‍ठा पबैत सोहनलालक मन सोहनगर होइत-होइत सोन्‍हाएल दूधक डाबाक मक्‍खनक सुगंध नि‍कालि‍ बाजल-
कनि‍याँ, ऐठाम तीनि‍ए गोरे छी। अहीं तीनू गोरेक ने ई घर छी। ऐ घरक भार तँ तीनि‍ए गोरेक ऊपर अछि‍ कि‍ने। अहूँ खनदानी घरक बेटी छी। दुनू गोरे -सासु-पुतोहु- वि‍चारि‍ जे कहब से मानैत चलब। सएह ने...।
ससुरक वि‍चार सुनि‍ सुगि‍या शुभ प्रभातकेँ प्रणाम केलनि‍।
दोसर दि‍न सबेरे सासु-ससुर बोइन‍ करए घरसँ नि‍कलली। भानस करैसँ पहि‍ने चाह-ताह पीला पछाति‍, सोलह बरखक नव कनि‍याँ सुगि‍याकाकी घरक चौकठि‍ लग बैस अपन शक्‍ति‍केँ खोजए लगली। हमरा सन परि‍वारमे जौं देह धूनि‍ श्रम नै कएल जाएत तँ परि‍वारक नीवमे मजगुती नै औत। शक्‍ति‍क क्षय श्रम आ भोग दुनूमे होइ छै। यएह छी अकास-पतालक दूरी। जेतए जे होउ, आइसँ दि‍न-चर्या बना चलब। भोरहरबामे पाँचटा प्रभाती गाएब आ पहि‍ल-दोसर साँझमे पाँचटा मंगल सेहो गाएब, अपना घरमे गाएब, अपन सासु-ससुरकेँ सुनेबनि‍। सभ अपन घरऽ देवताकेँ पूजा करैए, हमहूँ करब। तइसँ पहि‍ने अखने चि‍क्कनि‍ माटि‍ घोरि‍ सभ घर-ओसारकेँ ढोरब शुरू कऽ ली। सुखैओमे दू-तीन दि‍न लगबे करत। कहि‍या लेल आ केकरा लेल भि‍त्ती-चि‍त्रक लूरि‍ रखब। जि‍नगीक ठेकान नै अछि‍। बि‍नु बँटने जे संगे जरि‍ जाएत तँ अधरम हएत। सभ घर-ओसारमे रंग-रंगक रूप-चि‍त्र बना लेब। कोहवर, भानस, पढ़ैक, सुतैक रूप बना नै रखब तँ लूरिओ-बुधि‍ तँ हराइते छै, हराइते जाएत। मुदा ई सभ तँ भेल घर सजबैक। मूल तँ अछि‍ पेट। जखनि अपना खेत नै अछि‍ तखनि खेती केना करब। ओना नैहरमे जँ खेत छेबे करनि‍ तैयो तँ खेती अपने नहि‍येँ करै छथि‍। ई तँ नि‍श्चि‍त अछि‍ जे जखने घर-ओसारमे चि‍त्र बनबैक लूरि‍ अछि‍ तँ काजो-रोजगार अछि‍ए। मुदा जैठाम छी तैठाम की‍ रेडि‍यो-अखबार छै जे लोक बूझत? लोक तँ बूझत देखि‍ए-परेख कऽ, गाम-समाज बनत बजार। शुभ-अवसरक संग नव-नव घर बनत, नव-नव चि‍त्रसँ घर सजौल जाएत। से नै तँ सभसँ पहि‍ने पेटक मुँह मारैक ओरि‍यान कऽ ली, तखनि बूझल जेतै। ने दुनि‍याँ पड़ाएल जाइ छै आ ने अपने पड़ाएल जाइ छी। रहैओक अछि‍ए आ रहब तँ संगो चलै पड़त।
  परि‍वारमे सुगि‍याकाकीक सासुरक जि‍नगीक पहि‍ल जीत यएह भेलनि‍ जे सबहक -परि‍वारक- वि‍चारसँ घर चलत। सभ मि‍लि‍ काजो-राज सि‍रजन करब आ सभ मि‍लि‍ बाँटि‍ करबो करब। अपन तीनू श्रमकेँ एकठाम होइते शक्‍ति‍क रूप बनल। वएह शक्‍ति‍ पूजी बनि‍ ठाढ़ भेलनि‍। परि‍वारक दि‍न-दशा सुधरए लगलनि‍। जेना-जेना अर्थक स्‍तर सुधरैत गेल तेना-तेना श्रमक रूप बदलैत परि‍वार चलए लगल। कमो अपन पूजी-श्रम-अर्थ जौं अपना मननुकूल उपयोग कएल जाएत तँ कर्कशतामे कमी अबै छै। कर्कशता ओतए वि‍कृत रूप पकड़ैत जेतए मनकेँ प्रति‍कूल श्रम करए पड़ै छै।
  समए बितैत गेल। सासु-ससुर सुगि‍याकाकीक सहयोगी बनि‍ एकधारामे परि‍वारकेँ ठाढ़ केलनि‍। ओना दस बरख बितैत-बितैत सुगि‍याकाकीक नओं-जश चरि‍कोसीमे पसरि‍ गेल छेलनि मुदा एते-सघन काजक समाजमे, गाम छोड़ि‍ अनतए जेबाक समैए ने भेटनि‍। एक बोनि‍हार परि‍वार समाजक ओइ मानचि‍त्रपर पहुँच गेल जेकरा सुति‍हार परि‍वार कहल जाइ छै।
  बीस बरख पुरैत-पुरैत सुगि‍याकाकीकेँ पाँचटा सन्‍तान भेलनि‍। तीन बेटी दू बेटा। सासु-ससुरकेँ रहने सुगि‍याकाकीक काजमे ओते बाधा नै पड़लनि‍ जेते असगरूआ परि‍वारक चि‍लकौरकेँ होइ छै। मनुख पैदा करब आ मनुख बना ठाढ़ करब, धि‍या-पुताक खेल नै छी। ऐ बातपर सुगि‍याकाकी सदति‍ काल धि‍यान रखै छेली। मुदा धि‍यान रखलो पछाति‍ दुनू बेटा मरि‍ गेलनि‍। मात्र तीनू बेटी बँचलनि‍। समाजक लोक सुगि‍याकाकीकेँ जेहने गीत गौनि‍हारि‍, तेहने चि‍त्रकार आ तेहने पाक पकौनि‍हारि‍ एक स्‍वरसँ मानै छन्‍हि‍।
  समए बितैत गेल। सुगि‍याकाकीक पति‍-सोमनाथ उड़ि‍ कऽ बम्‍बई चलि‍ गेल। ओत्तै दोहरा कऽ बि‍आहो कऽ लेलक। साउसो-ससुर मरि‍ गेलनि‍। तीनू बेटीक संग सुगि‍याकाकी वसन्‍तपुरमे बँचि‍ गेली। अपना जनैत सुगि‍याकाकी तीनू बेटीक बि‍आह नीके घर जानि‍ केलनि‍ मुदा समैक विर्ड़ोमे उधि‍या तीनू जमाएओ आ बेटीओ मद्रासे-कर्नाटकमे बसि‍ गेलनि‍।
  अखनि‍ पचासी बरखसँ पहि‍ने धरि‍ सुगि‍याकाकी समाजक समुद्र रूपी पेटमे हराएल रहली, मुदा सालक शीतलहरि‍ सुगि‍याकाकीकेँ असहनीय बना देलकनि‍।

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