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Friday, October 18, 2013

घरदेखि‍या (दोसर संस्‍करण)

घरदेखिया

नीन्न टुटिते लुखियाक नजरि दिन भरिक काजपर पड़लनि। काज देखि मनमे अबूह लागए लगलनि। असकता गेली। मुदा तैयो हूबा बान्‍हि‍ कऽ उठए चाहलनि आकि आँखि पुबरिया घरक छप्परपर गेलनि। बिहाड़िमे मठौठ परक खढ़ उड़िया गेल छेलै। हड्डी जकाँ बत्ती झक-झक करैत रहै। मनमे एलनि, की कहत बरतुहार? कहत ने जे मसोमातक घर छिऐ तँए मठौठ उजड़ल छै। खौंझ उठलनि। ठोर पटपटबैत बजली-
“जेहने नाशी डकूबा बिहाड़ि तेहने झड़कलहा कारकौआ। जुट बान्हि-बान्हि औत आ लोलसँ खढ़ उजाड़ि-उजाड़ि छिड़ियौत।नजरि निच्चाँ होइते दछिनबरिया टाटपर पड़लनि। बरसातमे टाटक आलन गलि कऽ झड़ि गेल छेलै। मात्र कड़ची-बत्तीटा झक-झक करै छेलै। जइसँ ओहिना दछिनबरिया बँसबिट्टी देखि‍ पड़ैत छेलै। बेपर्द आँगन...।
लुखि‍याक मन खिन्न हुअ लगलनि। मनमे एलनि, पुरना साड़ी टाटमे टांगि देबै। मुदा बरतुहारक आँखिमे की कोनो गेजर भेल रहतै जे नै देखत। तहूमे साड़ीसँ केते अन्हराएत। ओहिना सभ किछु देखत। आरो मन निच्चाँ खसैत जाइत रहनि‍। बाप रे! की कहत बरतुहार? दीअर-नागेसरपर तामस उठए लगलनि। कोन जरूरी छेलनि जे कौल्हुके दिन दऽ देलखिन। घर-अँगना चिक्कन कऽ लैतौं तहन अबैक दिन दैतऽथिन। कोनो की हमर बेटा बाढ़िमे दहाएल जाइ छेलए। पाँच दिन आगुएक दिन भेने की होइतै? तामस बढ़लनि। तैबीच आँखि टाटपर सँ निच्चाँ उतरलनि। नजरि पड़लनि अँगनाक पनिबटपर। झक-झक करैत झुटका। उबड़-खाबड़ सौंसे आँगन। तहूमे जे झुटका सेरियाममे अछि ओ तँ नै मुदा जे अलगल अछि ओ तँ चुभ-चुभ गरैए। सौंसे अँगना सेरियबैमे कम-सँ-कम दस छिट्टा माटि लागत। दस छिट्टा माटि उघि, ढेप फोड़ि, सेरिया कऽ पटबैमे तँ भरि दिन लागि‍ जाएत। तहन‍‍ आन काज केना हएत? काजक तरमे लुखि‍या दबाएल जाइत रहथि‍। तामस आरो लहरए लगलनि। अबूहो लगनि। ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल भारसँ दबैत जाएत। दुइए माइपुत की सभ करब? तहूमे आइ ऐ छौड़ाकेँ केना किछु करैले कहबै। ओकरे देखैले ने घरदेखिया औत। छौड़ाकेँ तँ अपने मारिते रास काज हेतै। कानी छँटौत। अंगा-घोती खीचत। आइरन करबैले गंजपर जाएत। गमकौआ साबुनसँ नहाएत। तेल लेत। बाबरी सीटत। तेहेनठाम कोदारि-खुरपी चलबैले केना कहबै। लोहे छिऐ, जौं किनसाइत लागिए जाए। तहन‍‍ तँ आरो पहपटि हएत। कथकिया जे हाथ-पएरमे पट्टी बान्हल देखतै तँ की कहत? मनक तामस निच्चाँ मुहेँ ससरए लगलनि। तामस उतरि‍ते नजरि घरदेखियाक खेनाइ-पि‍नाइपर पहुँचलनि। आन काज तँ रहिओ-सहि कऽ भऽ सकैए मुदा दूध तँ एक दिन पहिने पौड़ल जाएत। जँ से नै पौड़ब तँ दही केना हएत। शुभ काजमे जँ दहीए नै हएत तँ काजक कोन भरोस। एक तँ महिंसबला सभ तेहेन अछि जे दूधसँ बेसी पानिए मिला दइए। नबका मटकुरीओ ने अछि जे पानिओ सोखि लइतै। मनमे खौंझ उठए लगलनि। मुदा नजरि चाउर-दालि दिस बढ़ि‍ते तामस दबलनि। बेटाक घरदेखिया औत, हुनका केना खेसारी दालि आ मोटका चाउरक भात खाइले देबनि। लोको दुसत आ अपनो मन की कहत। कियो किछु कहऽ आकि‍ नै मुदा कुल-खानदानक तँ नाक नै ने कटा लेब। जँ इज्जतिए नै तँ जिनगीए की? मन पड़लनि घैलमे राखल कनकजीर चाउर। कनकजीर चाउरक भात आ नवका कुटुम मनमे अबिते लुखियाक हृदए पघिलल केरा जकाँ पलड़ए लगलनि। मोने-मन भातक प्रेमी दालिक मिलान करए लगली। मेही भातमे मेही दालिक मिलान नीक हएत। मुदा खेरही-मसुरी दालि तँ भोज-काजमे नै होइत। होइत तँ बदाम-राहड़िक। मुदा राहड़ि तँ घरमे अछि नै। बोङमरना बाढ़िओ तेना दू सालसँ अबैए जे एक्को डाँॅट राहड़ि नै होइए। तत्-मत् करैत फेर मन झुझुआ गेलनि। बिनु आमिले राहड़िक दालि केहेन हएत? आमक मास रहैत तँ चारि फाँक कँचके आम दऽ दितिऐ। सेहो नै अछि। फेर मन आगू बढ़लनि, पहिल-पहिल समैध-समधीन बनब आ एगारहोटा तरकारी खाइले नै देबनि से केहेन हएत। गुन-धुन करए लगली। गुन-धुन करिते बर-बरी-अदौरी मन पड़लनि‍। एक्के दिनमे केना ओरियान हएत? घाटिए-बेसन बनबैमे तँ तीन दिन लागत। तहन‍‍ केना हएत? फेर तामस पजरए लगलनि। मन फेर खौंझा गेलनि। बाजए लगली-
“ई सभटा आगि लगौल नगेसराक छी। जाबे ओकरा छितनीसँ चानि नै तोड़ब ताबे ओकरा बुधि‍ नै हेतै। तमसाइले नागेसरक आँगन दिस बजैत बढ़ली। पुरुख छी आकि पुरुखक झड़। जइ पुरुखकेँ काजक हिसाबे ने जोड़ए औत ऊहो कोनो पुरुखे छी। ओइसँ नीक तँ मौगी।
नागेसर नदी दिस गेल छला। नागेसरकेँ नै देखि लुखिया डेढ़िए पर अनधुन बाजए लागलि। मुदा नागेसरक पत्नी भुरकुरिया चुप-चाप सुनैत। किछु बजैत नै। किएक तँ मोने-मन सोचैत जे दिओर-भौजाइ बीचक बात छी, तैबीच हम किएक मुँह लगबी। बजैत-बजैत लुखियाक पेटक बात सठलनि। बात सठिते तामसो उतरलनि। बोलीक गरमीकेँ कमैत देखि भुरकुरिया बाजलि-
“अँगना चलथु दीदी। बीड़ी पीब लेथु, तहन‍‍ जइहथि।
घरसँ बीड़ी-सलाइ निकालि दुनू गोटे ओसारपर बैसि गप-सप्‍प करए लगली। सलाइ खर्ड़ैत भुरकुरिया बाजलि-
“दीदी, आब पीहुओकेँ जुआन होइमे देरी नै लगतनि। कंठ फूटि गेलै।
भुरकुरियाक बात सुनि लुखिया हरा गेली। जुआन बेटाक सुख मनमे नाचए लगलनि। लुखियाकेँ आनन्दित होइत देखि पुनः भुरकुरिया कहलकनि‍-
“भैयोसँ बेसी भीहिगर जवान पीहुआ हेतनि।
खुशीसँ लुखियाक हृदए बमकि गेलनि, बजली-
“कनियाँ, खाइ-पीबैमे छौड़ाकेँ कोनो की कोताही करै छिऐ। एक तँ भगवान नउएँ-कउएँ कऽ एकटा बेटा देलनि। तेकरो जँ सुख नै होइ तँ एते खटबे केकरा ले करै छी। बापक मन तँ परुँके बिआह करैक रहनि‍ मुदा तैबीच अपने चलि गेल। आब साल लगलै तँ ऐ बेर जेना-तेना बिआह कइए देबै।
कहि आँगन दिस विदा भेली। अँगनासँ निकलिते मन नागेसरपर गेलनि। सोचए लगली, नागेसरे वेचाराक कोन दोख छै। ऊहो की कोनो अधला केलक। हुनको मनमे ने होइत हेतनि जे झब दे पुतोहु घर आबनि। अखनि‍ तँ वएह ने बाप बनि ठाढ़ छथिन। मुदा काज औगताएल केलनि। गरीब छी, तेकर माने ई नै ने जे इज्जत नै अछि। इज्जतकेँ तँ बचा कऽ राखए पड़ै छै। नव कुटुमैती भऽ रहल अछि। नव कुटुम दुआरपर औता। हुनका जँ पाँच कौर खाइओले नै देबनि से केहेन हएत। स्वागत की कोनो धोतीए-टाकाटा सँ होइ छै? आकि दूटा बोल आ दू कौर अन्नोसँ होइए। जेहेन पाहुन रहता तेहने ने बेवहारो करए पड़त। फेर मनमे तामस उठए लगलनि। एहेन पुरुखे की जिनका धियो-पुतोक बिआह करैक लूरि‍ नै होन्‍हि‍। तैबीच मन पड़लनि चाह-पान। चाहो-पानक ओरियान तँ करए पड़त। एहेन नै ने हुअए जे एक दिस करी आ दोसर दिस छूटि जाए। चाहे-पानटा किए, बीड़ीओ-तमाकुलक ओरियान करए पड़त ने। ई की कोनो शहर-बजार छिऐ जे लोक एक्के-आधटा अम्मल डेबैए। ई तँ गाम छिऐ, ऐठाम तँ एक-एक आदमी पनरह-पनरहटा अमल डेबैए। अपनइ विचारमे लुखिया ओझरा गेली। किछु फुड़बे ने करनि। बुकौर लागए लगलनि। आँखिमे नोर ढबढ़बा गेलनि। मनमे उठए लगलनि जे घर तँ पुरुखेक होइए। एते बात मनमे अबिते लुखिया बाटपर आबि नागेसरक बाट देखए लगली। नदी दिससँ अबैत नागेसरपर नजरि पड़लनि। नजरि पड़िते बजली-
“काल्हि घरदेखिया औता आ अहाँ निचेनसँ टहलान मारै छी।
नागेसर-
“अच्छा चलू। बैसि कऽ सभ विचारि लइ छी।
दुनू गोटे आँगन दिस बढ़लथि‍। ओचान खर्ड़ैत पीहुआकेँ देखि नागेसर कहलखिन-
“अखनि‍ तूँ ऐंठार चिक्कन करै छेँ की जा कऽ बाबरी छँटा एमे? काजक अँगना छियौ तँए पहिने बाहरक काज समेटि लेमे की घरे-अँगनाक काज करै छेँ। जो, जल्दी जो।
खर्ड़ा रखि पीहुआ विदा भेल। लुखियाक नजरि बदललनि। जहिना चश्माक शीशाक रंग दुनियाँक रंगकेँ बदलि दइ छै, तहिना लुखियाक नजरि नागेसरक बदलल रूपकेँ देखलक। बदलल रूप देखिते सिनेह उमड़ि पड़लनि। सिनेहसँ बजली-
“एते लगक दिन किए देलिऐ? चारि दिन आगूक दितियनि। भरिए दिनमे सभ काज सम्हारल हएत?”
लुखियाक समस्याकेँ हल्लुक बनबैत नागेसर कहलखिन-
“आइ पहिल दिन छी घरदेखिया घर-बर देखए औत आकि खाइन-पीन करै ले? पसिन्न हेतनि तँ खेता-पीता, नै तँ अपना घरक रस्ता धरता। अखनि‍ तँ ओ बटोही बनि कऽ औता। तँए हमरो ओते सुआगतक ओरियान करैक जरूरत नै अछि। जहन‍‍ पीहुआ पसिन हेतनि, बिआह करब गछता, तहन‍‍ ने किछु, आकि समधीन बनैले बड़ औगताएल छी? होइए जे कखनि‍ समधि संग होरी खेलाइ?”
समधि संग होरी खेलाएब सुनि लुखियाक मन उड़ए लगलनि। बजली-
“हम की कोनो समैधिए भरोसे फगुआ रखने छी, दिअर कोन दिनले रहत?”
लुखियाक मनसँ चिन्ता पड़ा गेल। मुस्की दैत बजली-
“बाटो-बटोही जँ दुआरपर औता तँ एक लोटा पानिओ ने देबनि?”
नागेसर-
“से तँ देबे करबनि। यएह इज्जत तँ हमरा सबहक बाप-दादाक देल अमोल धरोहर छी।
खुशीसँ भँसियाइत लुखिया कहलनि-
“पुरुखक थाह हम नै पाएब।
नागेसर-
“कनी कालमे बजार जाएब। जे सभ जरूरीक वस्‍तु अछि से सभ कीनि आनब। तइले एते माथा-पच्ची करैक कोन जरूरी अछि‍। अतिथिक सुआगत मात्र नीक-निकुत खुऔनइ होइत? आकि प्रेम-पूर्वक तुकपर खुऔने होइत। बैसैले चद्दरि साफ केलौं? सिरमो खोल खीचि लेब।
“सिरमामे खोल कहाँ अछि? ओहिना पुरना साड़ीक बनौने छी। ओहूले दूटा खोल किनने आएब।
“बड़बढ़ियाँ।
दोसर साँझ आँगनमे बैसि नागेसर पीहुआकेँ पुछलक-
“तोरा जे नाओं पुछथुन्ह तँ की कहबुहुन?”
पीहुआ बाजल-
“से की हमरा नाओं नै बूझल अछि। बउओ, माएओ आ गामो नाओं बूझल अछि।
“ओते नै पुछै छियौ। अपनेटा नाओं बाज?”
“पीहुआ
“धुर बुड़िबक। पीहुआ नै पुहुपलाल कहिहनु।
“से हमर नाओं पुहुपलाल कहाँ छी। पहिने सभ कहैत रहए मुदा आब तँ सभ पीहुए कहैए। अहि‍ना ने लोकक नाओं बदली होइत रहै छै।
मुँह बिजकबैत लुखिया कहलक-
“हँसी-चौलमे लोक तोरा पीहुआ कहै छौ आकि जनमौटी नाओं छियौ।
छठियार राति, दाइ-माइ पुहुपलाल नामकरण केलखिन। जहन‍‍ ओ आठ-दस बर्खक भेल, तहन‍‍ जाड़क मास बाधमे फानी लगबए लगल। गहींर खेत सभमे सिल्लिओ आ पीहुओ आबि-आबि धान चभैत। जेकरा ओ फानी लगा-लगा फँसबैत। अपनो खाइत आ बेचबो करैत। कछु दिन पछाति‍ स्त्रीगण सभ पीहुआबला कहै लगलै। फेर किछु दिनक पछाति भौजाइ सभ पीहुआ कहए लगलै। मुदा तेकर एक्को मिसिआ दुख ने पीहुएकेँ होइत आ ने पीहुआ माइए-बापकेँ। तँए पुहुपलाल बदलि पीहुआ भऽ गेल।
मोने-मन नागेसर वि‍चारलनि जे ई पीहुआ एना नै सुधरत। अखनि‍ सिखाइओ देबै तैयो बजै कालमे बाजिए देत। से नै तँ दोसर गरे काज लिअए पड़त। लुखियाकेँ कहलखिन-
“मोटरी खोलि सभ समान मिला लिअ।
दुनू दिओर-भौजाइ सभ समान मिलबए लगल। धोती देखि दुनूक बीच मतभेद भऽ गेलनि। कन्यागतक बि‍दाइ लेल एक्के जोड़ धोती नागेसर कीनि कऽ अनने छला। किएक तँ बुझलनि जे बेटीबला धोती नै पहिरैए। मुदा से बात लुखिया बिसरि गेल छेली। तँए बजली-
“दू गोटे औता, तहन‍‍ एक जोड़ धोतीसँ की हएत? कम-सँ-कम तँ जोड़ो भरि‍ करबनि। जेकरा बेसी रहै छै ओ पाँचो टूक कपड़ा बिदाइ करैए।
सामंजस्य करैत नागेसर-
“हमरो सासुरक धोती रखले अछि। काज पड़त तँ दऽ देबनि।
“गुलाबीए रंगमे रंगल अछि। एकरो गुलाबीएमे रंगि लेब। रंगो कीनि कऽ नेनइ आएल छी।
दोसर दिन, सबेरे सात बजे कन्यागत दुनू बापूत पहुँचला। कन्यागतकेँ
अबैसँ पहिनइ नागेसर एकचारीमे बिछान बिछा
, तैयार केने छला। नबका खोलक सिरमो सिरा दिस देने छला। कन्यागतकेँ अबिते नागेसर ठेंगा-छत्ता रखि‍ पएर धोइले लोटा बढ़ौलकनि। चाह-पान आनए लुखिया पछुआरे बाटे लफरल चौक दिस विदा भेली। जाधरि दुनू बापूत डोमन हाथ-पएर धोइ कुशल-छेम करैत, बिछानपर बैसला ताधरि लुखियो चौकपर सँ चाह-पान कीनि आएलि‍। नागेसरक दुनू आँखि दुनू दिस। तँए देखि लेलनि जे चाह आबि गेल। पीहुआकेँ कहलनि-
“बौआ, चाह नेने आबह?”
“पानो।
“पहिने चाह लाबह। पछाति पान अनिहऽ।
पीहुआक बोली डोमन सुनि लेलनि। तँए नाओं-गाओं पुछैक जरूरते ने रहलनि। दोहारा नमगर देह। मोने-मन डोमन लड़िका पसि‍न कऽ लेलनि। आँखिक इशारासँ डोमन बुचनकेँ पुछलखिन। आँखिएक इशारासँ बुचन सेहो स्वीकृति दऽ देलकनि। दुनू बापूतक मुँहमे हँसी नाचि गेलनि। मुदा लगले डोमनक मनमे एकटा शंका पैसि गेलनि। शंका ई जे मरदा-मरदी परिवार नै अछि तँए हो-ने-हो कोनो छोट-छीन बाधा ने बीचमे आबि भंगठा दिअए। चाह पीब पान खा डोमन नागेसरकेँ कहलखि‍न-
“समैध, जाधरि भानस होइए ताधरि बाध दिससँ घूमि अबैले चलू। हँ, एकटा बात तँ कहबे ने केलौं, तीमन-तरकारी बेसी नै करब। सात-आठ दिनसँ लगातार माछ खेलौं, पेट गड़बड़ भऽ गेल अछि। गाममे रहितौं तँ मड़बज्झू भात आ केेरा चाहे भांटाक सन्ना संगे खइतौं। मुदा से तँ ऐठाम नै हएत। तँए दालि-भात एकटा तरकारी-सजमनि चाहे झिमनीक- बना लेब। तहूमे बेसी मसल्ला नै देबै।
बीड़ी-सलाइ गोलगलाक जेबीमे रखि‍ नागेसर लुखियाकेँ कहए आँगन गेला। ओना टाटक अढ़सँ लुखियो सुनि लेने छेली। तँए जवाब दइले मन उबियाइत रहनि। अवसर पाबि लुखिया बजली-
“एते रास जे तीमन-तरकारीक ओरिआन केने छी से की हएत। अपने नै खेता तँ आँगनवालीले मोटरी बान्हि देबनि।
अपियारीमे फँसैत माँछ जकाँ लड़िकाक माएकेँ फँसैत देखि डोमन बजला-
“तइले की हेतै, हिनको मोटरी बान्हि कन्हापर नेने जेबनि।
आँखि दाबि नागेसर लुखियाक बोली रोकए चाहलनि। मुदा लुखिया मुँहक बात बरतुहार दिस नै बढ़ि नागेसरे दिस खसलनि-
“बड़ बुधियार छथि। बूझब जे बेटाक बिआह केलौं तँ गामो-घर आ समधिओ नीक भेटला। तँए जेना-तेना कुटमैती कइए लेब।
लुखियाक बात सुनि नागेसरक मन हल्लुक भेलनि। लुखिया अपन भार दऽ बाधा हटौलक। नै तँ बेर-बेर बाता-बाती होइत। समए पाबि डोमन जोरसँ बजला-
“समधीने लग नुड़ियाएल रहब आकि चलबो करब?”
लुखियाक मन भीतरसँ चप-चप होइत। बजैले लुस-फुस करैत। डोमनक बात सुनि बजली-
“हिनकेटा समधीन लगड़गर छन्हि, आनकेँ कि किछु छै?”
मुस्की दैत नागेसर आँगनसँ निकलि बाध दिस विदा भेला। आँखि उठा-उठा डोमन गाम-घर देखैत जाइत रहथि‍। टोलसँ निकलि पच्‍छि‍म मुहेँ एक पेड़िया धेलनि। गाछी टपि हाथक इशारासँ पच्छिम मुहेँ देखबैत नागेसर कहलकनि-
“पछबारि भाग जे चतरलाहा गाछ देखै छिऐ ओहए गामक सीमा छी।
दुनू बापूत देखि डोमन पुछलखिन-
“उत्तरबरिया सीमा?”
ओंगरीसँ देखबैत नागेसर-
“ओ ढि‍मका जे देखै छिऐ, सएह छी।
“दछिनबरिया।
“तीन चारिटा जे छोटका गाछ एकठाम देखै छिऐ ओ सीमेपर अछि। पीराड़क गाछ छिऐ।
बाधकेँ हियासि डोमन आँखिक इशारासँ बुचनकेँ देखेलखिन। दुनू गोटे मोने-मन अन्दाजलनि जे दू सए बीघासँ ऊपरेक बाध अछि। तैबीच नागेसर बजला-
“बुझलौं, बाबूक अमलदारीमे तँ सम्मिलिते छल मुदा हमरा दुनू भाँइमे बँटबारा भऽ गेल। उत्तरसँ हमर छी आ दछिनसँ भातिजक।
डोमन-
“खोपड़ी केतए बनौने छी?”
नागेसरकेँ पछि‍ला घटना मन पड़लनि। ओंगरीसँ देखबैत कहए लगलखिन-
“ओइ बँसबाड़ि आ गाछीक बीच एकटा खाधि छै। जइमे बिसनारिक गाछ सभ छै। भदबारि‍‍मे पानि भरि जाइए। बाँसोक पात आ गाछो सबहक पात ओइमे खसि-खसि सड़ैए। बिसनारिओक गाछ सभ सरि जाइए। जइसँ कारी खट-खट पानि भऽ जाइ छै। ढाकीक-ढाकी मच्छर फड़ि जाइ छै। ओही खाधिमे भैयाकेँ कालाजारक मच्छर काटि लेलकनि। केतबो दबाइ-बिरो भेलनि, मुदा नै ठहरलखिन।
डोमन पुछललनि‍-
“अहाँ सभकेँ सरकारी अस्पतालमे दबाइ नै दइए?”
“से जँ दैतै तँ एते लोक मरबै करैत। बीस आदमीसँ ऊपरे हमरा गाममे कालाजारसँ मरल। अस्पतालमे किछु छै थोड़े, ओहिना ईंटाक घरटा ठाढ़ अछि। दबाइकेँ के कहए जे कुरसीओ-टेबुल बेचि नेने अछि।
जैत-बजैत नागेसरक आँखि नोरा गेलनि‍। गमछासँ आँखि पोछि आगू बढ़ि गेला। तीनू गोटे खोपड़ी लग पहुँचला। बाधक बीचमे कट्ठा दुइएक परती, परतीएपर दुनू फरीकक खोपड़ीओ आ पाँचटा अनेरूआ गाछो, दूटा साहोरक, दू-टा पि‍तोहि‍या आ एकटा बजरकेराइक। साहोरक गाछ सभसँ पुरान मुदा देखैमे सभसँ छोट। बजरकेराइ सभसँ कम दिनक मुदा सभसँ नम्‍हर। पि‍तोहि‍या गाछक निच्चाँमे तीनू गोटे दुबिपर बैसि गप-सप्‍प करए लगला।
डोमनकेँ पुछलखिन-
“राखी केना गिरहत सभ दइए?”
“बीघामे पाँच घुर धानो आ गहुमो।
“रब्बी, राइ माने दलि‍हन-तेलहन?”
“अंदाजेसँ देलक। अपनो सभ उखाड़ि दइ छिऐ। जइसँ बोइनो भेल आ राखीओ।
दुनू बापूत डोमन मोने-मन हिसाब जोड़ए लगला। अगर कट्ठामे एक
क्‍विन्‍टल उपजत तँ पच्चीस किलो बीघामे भेल। जँ से नै पचासो किलोक कट्ठा हएत
, तैयो साढ़े बारह किलो बीघा भेल। सए बीघासँ ऊपरेक बाध अछि। तइसँ या तँ पच्चीस क्‍विन्‍टल, नै तँ साढ़े बारह क्‍विन्‍टल राखी -धान- सालमे जरूर होइतै हेतनि। तेकर पछाति‍ गहुम भेल, मरूआ भेल, आरो-आरो दलिहन-तेलहन भेल। दुइए मायपुत केते खाएत? हमरो बेटीकेँ अन्नक दुख नै हेतै। मुस्की दैत डोमन बेटा दिस तकलथि‍। बेटो बाप दिस ताकि आँखिएसँ गप-सप्‍प कऽ लेलक। कनी काल चुप रहि डोमन नागेसरकेँ पुछलखिन-
“कथी-कथीक खेती बाधमे होइए?”
“पान साल पहिने तक तँ अन्नेटा उपजै छल। टो-टा कऽ सेरसो-तोड़ीक खेती। मुदा आब खेती बदलि रहल अछि।
मुस्की दैत पुन: आगू बजला-
“की कहब, बुझू तँ राजा छी। दू सए बीघाकेँ अपन बपौती सम्पति बुझै छी। दुनू सए बीघाक मालिक छी। एक बेर टाँहि दइ छलिऐ तँ जुआन-जुआन घसवहिनी सभ नाङरि सुटुका कऽ पड़ा जाइ छलि। मुदा आब से नै करै छी। खसल-पड़ल खेतक आ आड़ि पड़क घास कटैले केकरो मनाही नै करै छिऐ...।
किछु मन पाड़ि फेर बजला-
“हँ तँ कहै छेलौं जे जइ दिनसँ लोक बोरिंग गड़ौलक आ कोसीओ नहरि एलै तइ दिनसँ तँ बूझि पड़ैए जे घरसँ बाध धरि लछमी सदिकाल नाचिते रहै छथि। केकरो देखबै धानक बीआ पाड़ैए तँ कियो रोपैले बीआ उखाड़ैए। कियो कमठौन करैए तँ कियो धान कटैए, तँ कियो बोझ उघैए। कियो दाउन करैए, तँ कियो धान ओसबैए, तँ कियो अग्गो रखैए। कियो धन-उसनियाँ करैए तँ कियो पथार सुखबैए। कियो मीलपर धान कुटबैए तँ कियो चाउर फटकैए। केते कहब।
डोमन पुछलखि‍न-
“आनो-आनो चीजक खेती हुअए लागल हएत?”
नागेसर बजला-
“एँह की कहब! पचासो कि‍सि‍मक तँ धानेक खेती हुअए लागल अछि। ओते धानक की नाउओं मन अछि। धान संग-संग खाद-पानि दऽ कऽ गहुम, दलिहनक खेती सेहो हुअए लागल अछि। एते दिन तँ सेरसौए-तोरक खेती होइ छल। आब सूर्यमुखीक खेती सेहो होइए। राशि-राशिक तीमन-तरकारी सेहो हुअए लागल अछि। बीघा दसेमे पनरह-बीस गोटे नवका आमक कलम सेहो लगौलक अछि। एँह, की कहब, आन्ध्राक आम, मद्रासी आम सभ सेहो लोक लगौलकहेँ। अजीब-अजीब आमो सभ अछि। ऐ बेर रोपू तँ पौरुकेँ सँ फड़ए लगत। जेहने देखैमे लहटगर लागत तेहने खाइओमे।
डोमन नागेसरकेँ पुछलखि‍न-
“आमक ओगरबाहि केना दइए?”
“तीन आममे एक आम सरही आ चारि आममे एक कलमी। से जइ दिन तोड़ल जाएत तइ दिनक कहलौं, तैबीच खसल-पड़ल आमक हिसाब नै। तेहेन आम सभ अछि जे टुकलेसँ धिया-पुता खाए लगैए। खटहो आमकेँ चुन लगा कऽ मीठ बना लइए। धियो-पुतो तेते बुधियार भऽ गेल अछि जे अँगनेसँ चुन नेने जाएत आ आममे लगा कऽ खाएत।
डोमन पुछलखिन-
“आरो की सभ आमदनी बाधसँ अछि?”
“सभटा की मनो अछि। (ओंगरीसँ देखबैत) दछिनबारि भाग बीघा बीसेक गहींर खेत छल। चौरी। गोटे साल नै, ने तँ पहिने सभ साल धान दहाइए जाइ छेलै। मुदा आब, जहियासँ पानिक सुविधा भेल, सभ गिरहत अपन-अपन खेतकेँ आरो खुनि कऽ पोखरि जकाँ बना-बना माछ पोसए लगल हेन। आन्ध्र प्रदेशक एकटा माछ छै `इलिस'। एँह, की कहब, (मुँह चटपटबैत) अपना सभ कहै छिऐ रहु, मुदा ओइ इलिस आगूमे किछु ने छी। जहिना बढै़मे तहिना सुआद। हमरा की कोनो रोक अछि, हमहीं ओगड़ै छिऐ ने, जहिया मन भेल तहिया बन्सीमे दूटा मारि लेलौं आ सभ खेलौं। सभसँ मुश्किल आब बनौनाइ भऽ गेल। काजेसँ ने छुट्टी। के ओते मेठैन करि कऽ खाएत। आब सुरूज माथपर आबि गेल। चलू। भानसो भऽ गेल हएत। गरमे-गरम खाइमे नीक होइ छै।
तीनू गोटे बाधसँ घर दिसक रस्ता धेलनि। थोडे़ आगू बढ़ला तँ बँसबारि‍मे एकटा चिड़ैकेँ बजैत सुनलनि। बाजबो अजीब ढंगक। मुस्की दैत नागेसर डोमनकेँ पुछलखिन-
“कहूँ तँ ई चिड़ै की बजैए?”
कनी अकानि कऽ डोमन बजला-
“ई तँ पान-बीड़ी सिगरेट बजैए।
बात सुनि नागेसर ठहाका दऽ हँसला। कनीकाल हँसि बजला-
“ई चिड़ै अहाँ गाम सभ दिस नै हएत। जहिया कोसीक बाढ़ि अबै छेलै तहिएसँ ई चिड़ै हमरा गाममे अछि। ई बजैए- बढ़मा, बिसुन, महेश।
विचारक भिन्नताक कारणे डोमन पुनः चिड़ैक बोली अकानए लगला। बुचन सेहो अकानए लगल। अपना बातमे मजबूती अानैले नागेेसर सेहो अकानए लगला। दुनू चुप। दुनू अपन-अपन दुबि‍धामे। डोमन बुचनकेँ पुछलकनि‍-
“बौआ, तूँ तँ इसकुलो देखने छहक, तांेही कहऽ?”
मामूली सबालमे हारि मानब केकरा पसिन्न होइत। डोमनक मन विचारकेँ मथैत।
डोमनक बात सुनि बुचन बाजला-
“बाबू, हमरा बूझि पड़ैए जे `तुलसी, सूर, कबीर' कहैए।
तीनूक तीन मत, तँए विवादक प्रश्ने नै, तीनू अपन-अपन रमझौआमे ओझड़ाएल। तँए तीनू चुपचाप आगू-पाछू घर दिस विदा भेला।
घरपर अबिते डोमन बजला-
“लोटा नेने आउ। कनी डोल-डाल दिससँ भऽ अबै छी।
नागेसर आँगनसँ दू लोटा पानि आनि कऽ देलकनि। लोटामे पानि देखि बुचन पुछलखि‍न-
“बाबू, आगूमे कल-तल नै छै?”
बि‍च्‍चेमे लपकि‍ कऽ डोमन बजला-
“अखनि‍ तूँ बच्चा छह, नै बूझल छह?”
कहि आगू मुहेँ गाछी दिस विदा भेला। गाछी पहुँच‍ एकटा सरही आमक गाछक निच्चाँमे दुनू बापूत बैसि विचार-विमर्श करए लगला।
बुचन-
“बाबू, कुटुमैती करै जोकर परिवार अछि। समलाइके मे बिआह-सादी, दुश्मनी आ दोस्ती छजैए। लड़िकाक बाप नै छै तँ की हेतै। गाम-घरमे लोक मइटुग्गरकेँ अधला बुझैए।
डोमन बुचनक बातो सुनैत आ मुड़ीओ डोलबैत रहथि‍ मुदा मोने-मन परिवारक आमदनी आ ओइ आमदनीकेँ समटैक लूरि‍ सोचैत रहथि। जइ हिसाबसँ आमदनीक जड़ि देखि रहल छी ओइ हिसाबसँ सम्हारैक लूरि‍ नै छन्‍हि‍। जँ दुनू एक सतहपर आबि जाए तँ परिवारकेँ आगू मुहेँ ससरैमे बेसी समए नै लगत। एतेटा बाध छै। अलेल घास सभ दिन रहतै। बाध ओगड़ैमे की लगै छै? एक-दू बेर ऐ भागसँ ओइ भाग घुमब मात्र छै। अगर जँ अपनो काज ठाढ़ कऽ लथि‍ तँ बैसारीओ नै रहतनि‍ आ आमदनीओ बढ़ि जेतनि‍। हमरा बेटीकेँ ऐ घर एलासँ एकटा काजुल आ बुधियार समांग बढ़तनि‍। जानकीकेँ सभ हिसाब- कनमा, अधपइ, पौआ, असेरा, सेर, अढ़ैया, पसेरी, धारा आ मनसँ लऽ कऽ बोरा-क्वीनटल धरि, जोड़ैक लूरि‍ छै। तहिना कोड़ी -बीस वस्तु, सोरे- सोलह, सोरहा -सोलह सोरे, दर्जन-–बारह, ग्रुस- बारह दर्जन, जोड़ा-धानक आँटी दस, गाही-–पाँच, गंडा-–चारि, जोड़ा-–दू, आ पल्ला- एक सभ बुझैए। मनमे खुशी एलै। बाजल-
“बौआ, ओना जानकी गिरहस्तीक काज सम्हारि दूटा गाएओक सेवा कऽ लेत। मुदा तइसँ दूधेटा क आमदनी बढ़त। जरूरत छै खेतीओ बढ़बैक। तँए नीक हएत जे एकटा गाए आ एकटा बड़द दऽ दि‍यनि‍। एकटा बड़द आ एकटा हरबाह भेने दू समांग अपन भऽ जेतनि‍। जइसँ बीघा दू बीघा खेतीओ कऽ सकै छथि‍।
बुचन-
“अपना खेत जे नै छन्‍हि‍?”
बुचनक बात सुनि डोमन हँसए लगला। हँसैत बजला-
“बौआ, समए एहेन आबि गेल अछि जे खेतोबला सभ खेती छोड़ि नोकरीएक पाछू बौआ रहल अछि। जइसँ खेती केनिहारक अभाव भऽ रहल छै। गिरहस्तीक हाल बिगड़ि गेल छै। जबकि जरूरत अछि‍ खेतमे मेहनतिक। जे सभ किसान नै बूझि रहला अछि।
बुचन-
“केना बूझत?”
डोमन गंभीर होइत बजला-
“बौआ खेतीमे बड़ बुधि‍क काज छै मुदा खेती दिन-दिन मुरूखेक हाथमे पड़ल जाइ छै, से सोचलहक हेँ?”
तर्क-वितर्क कऽ दुनू बापूत तँइ कऽ लेलक जे कुटमैती करबे करब। मुदा
एकटा जटिल प्रश्न आबि कऽ आगूमे ठाढ़ भऽ गेलनि। ओ ई जे बिआह उट-पटाँग ढंगसँ नै होइ
? रस्तासँ पाइक उपयोग होइ। गुन-धुन करैत दुनू बापूत घर दिस विदा भेला।
जाधरि डोमन पैखाना दिससँ अाबथि‍ ताधरि लुखिया चारि-पाँच बेर दौग-दौग आँगनसँ बान्हपर जा-जा देखलनि। मनमे उड़ी-बीड़ी जेना लागल रहनि। जे कुटमैतीमे कोनो तरहक गड़बड़-सड़बड़ ने हुअए। नै तँ लोक पिक्की मारत। कहत जे मौगीक मुख्तियारी छी ने। बिनु मरदक मौगी बेलगामक होइते अछि। कहलो गेल छै-
“राँड़ मौगी साँढ़।
फेर मनमे उठलनि जे किछु होउ बिआह तँ हमरे बेटाक हएत। तँए केकरो ओंगरी बतबैक रस्ता नै रहए देबै। जहिना बरतुहार कहता तहिना हमहूँ करब। जँ दुनू गोटेक मिलान रहत तँ किए कोइ आँखि उठाैत। एते बात मनमे अबिते बरतुहारकेँ लुखिया अबैत देखलनि। बान्हपर सँ दौगले आँगन आबि हाँइ-हाँइ कऽ थारी साँठए लगली।
हाथ-पएर धोइते नागेसर डोमनकेँ कहलकनि-
“पहिने भोजने कऽ लिअ।
आगू-आगू लोटा नेने नागेसर आ पाछू-पाछू दुनू बापूत डोमन आँगन एला। पीढ़ीपर बैसिते नागेसर थारी आनि आगूमे देलकनि। आँखि घुमा कऽ देखि डोमन बजला-
“समैध, समधीनोकेँ अढ़मे बजा लियनु। बि‍आहक सभ गप पक्का-पक्की कइए लेब। बैसारपर जखने गप उठाएब आकि चारू दिससँ लोक आबि अन्टक-सन्ट गप चालि देत।
आँखिक इशारासँ नागेसर भौजाइकेँ हाक पाड़ि बैसैले कहलक। तैबीच डोमन कहलखिन-
“समैध, समधीनकेँ पुछियनु जे केना बेटाक बिआह करती?”
नागेसरकेँ अगुआ लुखिया बजली-
“अहाँ सभ मरदा-मरदी गप करू। हमरा कोनो चीजक लोभ नै अछि। नीक मनुख घर आबए, बस एतबे लोभ अछि।
मोने-मन नागेसर सोचैत रहथि‍ जे हमर केतबो मोजर अछि, तइसँ की? कोनो की हमरा बेटा-बेटीक बि‍आह हएत? तँए हम अनेरे मुँह दुरि किए करब। बाजला-
“समैध, अहाँ अपने मुहसँ बजीऔ जे केना करब?”
भात-दालि सनैत डोमन बजला-
“समैध, जहिना अहाँक भातिजक बिआह हएत तहिना तँ हमरो बेटीक हएत...।
लुखियाकेँ खुश करै दुआरे पुन: आगू बजला-
“हमर बेटी साक्षात् लछमी छी। साल भरि की दसोसाल घूमि कऽ लड़की ताकब तँ ओहेन नै भेटत। तहूमे आब? आब तँ लोक मनुख थोड़े घर अानैए, अानैए रूपैआ।
नागेसर टाटक अढ़मे बैसलि भौजी दिस तकैत बाजला-
“खर्च-बर्च करैले किछु तँ चाहबे करी....।
नागेसरक बातकेँ कटैत लुखिया बजली-
“नै! हम केकरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपना घर नै आनब।
नागेसर भौजीक गप्प सुनि चुप भऽ गेला।
मुस्की दैत लुखिया बजली-
“जहन‍‍ दुआरपर आबि बेटा मंगलनि तँ हम दऽ देलियनि। आब हमरा की अछि। दू कर अन्न आ दू बीत कपड़ाटा चाही। घर तँ आब ओकरे सबहक -बेटे-पुतोहुक- हेतै।
डोमन बजला-
“समैध, पाँच गोटे जे बरियाती चलब, हुनकर सुआगत हम नीक जकाँ करबनि। बर-कनियाँ लेल जे नव घर ठाढ़ करैक वस्तु अछि से तँ देबे करब। तेकर अतिरक्ति एकटा बड़द आ एकटा लगहरि गाए सेहो देब।
सुनि‍ते सबहक मुहसँ हँसी निकलल। बिआहक दिन तँइ भऽ गेल। मुस्की दैत लुखिया बजली-
“आब की हम कहबनि जे समधीनो हमरे दऽ दोथु।
ठहाका दैत डोमन उत्तर देलकनि-
“बाह-बाह, तब तँ दुनू रोटी चाउरेक।
चारि बजे सूति-उठि चाह पीब, पान खा डोमन नागेसरकेँ कहलखिन-
“समैध, सभ बात तँ तँइ भाइए गेल। आब चलब।
दुनू जोड़ धोती नागेसर आँगनसँ आनि आगूमे रखि‍ देलकनि। धोती देखि डोमन बजला-
“समैध, केतबो गरीब छी तँए की मुदा इज्जति बचा कऽ रखने छी। बेटी दुआरपर केना धोती पहिरब?”
टाटक भुरकी देने लुखिया देखैत रहथि। डोमनक बात सुनि दोगसँ बजली-
“समैधकेँ कहियनु जे जहन‍‍ बेटी औत तहन‍‍ ने बेटीक घर हेतनि, ताबे तँ हमर छी कीने। हम दइ छि‍यनि‍।
ठहाका दैत डोमन बजला-
“जहन‍‍ हमर बेटी ऐ घर औत तहन‍‍ ने ओ समधीन हेती आकि अखने?”
तैबीच पीहुआ, सभकेँ गोड़ लगलक। एक्कैस रूपैआ डोमन पीहुआ हाथमे देलखिन।
थोड़े दूर अरिआति नागेसर घुमैत बाजल-
“समैध, आब बढ़िऔ। नवम् दिनक दिन भेल। अहाँ काजमे लागि‍ जाउ आ हमहूँ लागि‍ जाइ छी।
डोमन दुनू बापूत विदा भेला। आगू बेटीक बिआहक ओरिआओन रहनि किन्तु मनपर नचैत रहनि लुखियाक गप्प-
“केकरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपन घर नै आनब।देह सिहरि गेलनि बेटा दि‍स तकलनि। ऊहो आब बि‍आह जोगर भऽ गेल...।

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