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Friday, October 18, 2013

जीविका (दोसर संस्‍करण)

जीविका

शिवराति‍क प्रात। मध्य मास। ज डेढ़ मासक शीतलहरीमे सुरूज मरनासन्न भऽ गेल छला तमे जीबैक नव शक्ति सेहो आबि गेलनि। तँए रौदमे धीरे-धीरे गरमी अबैत। चारि बजे भोरमे उमाकान्तक नीन टुटल। निन्न टुटिते देबाल घड़ीपर नजरि देलक। चारि बजैत। ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल उमाकान्‍त अपन आगूक जिनगी दिस देखए लगल। ओना काल्हिए दिनमे दुनू मि‍त्र उमाकान्‍त-शोभाकान्‍त विचारि नेने छल, दुनू गोटे टेम्पू किनए भोरुके गाड़ीसँ दरभंगा जाएत। बदलैत जिनगीक संकल्प उमाकान्तक मनमे। किएक तँ जिनगी मनुखकेँ किछु करैले भेटैए। मनमे एलै, पाँच-पचपनमे गाड़ी अछि तँए पाँच बजे घरसँ निकलब। ओना अधे घंटाक रस्ता स्टेशनक अछि मुदा किछु पहिनइ पहुँचब नीक रहत। ओना कहियो कोनो गाड़ी अपना समैपर नहियेँ अबैए, एकाध घंटा लेट रहिते अछि मुदा तइसँ हमरा की। हम समैपर जाएब। शुभ काज हरिदम समैसँ पहिनइ करैक कोशिश करक चाही। एते बात मनमे अबिते उमाकान्त ओछाइन छोड़ि उठि गेल। उठिते मनमे एलै, हमर ने नीन टूटि गेल मुदा जँ दोसक नीन नै टुटल होइ, तहन‍‍ तँ गड़बड़ हएत। से नै तँ पर-पैखाना जाइसँ पहिने ओकरो जा कऽ उठा दिऐ। फेर मनमे एलै, दतमनि करिते जाएब। किएक तँ एकटा काज तँ अगुआएल रहत। हाथमे दतमनि लइते मनमे एलै, किछु खा-पी कऽ घरसँ निकलब। रस्ता-बाटक कोन ठेकान। तहूमे लोहा-लक्कड़क सवारी। कखनि नीक रहत कखनि बगदि जाएत तेकर कोन ठेकान। एक बेर अहि‍ना भेल रहए कि‍ने। दरभंगे जाइत रही आकि मनीगाछी लोहनाक बीच रेलक इंजिन खराब भऽ गेलै। भोरुके गाड़ी, तँए सोचने रही जे दरभंगे पहुँच‍ किछु खाएब-पीब। ले बलैया, दू बजे तक गाड़ी ओत्तै अँटकि गेल। कखनो गाड़ीक डिब्बामे जा बैसी तँ कखनो उतरि कऽ इंजिन लग पहुँच‍ ड्राइवरकेँ पुछिऐ। ओहू वेचाराक मन घोर-घोर भेल रहै। हमहूँ आशा-बाटीमे रहि गेलौं। से जँ पहिने बुझितिऐ तँ गाड़ी छोड़ि बिदेसर चौकपर चलि जैतौं आ बस पकड़ि सबेर सकाल दरभंगा पहुँच‍ जैतौं। सेहो नै केलौं। तेकर फल भेल जे भूखे-पियासे खूब टटेलौं। तँए, बिनु किछु मुँहमे देने घरसँ नै निकलब। ई बात मनमे अबिते उमाकान्त पत्नीकेँ उठबैत कहलक-
“जाबे हम दोस ऐठामसँ अबै छी ताबे अहाँ चारिटा रोटी आ अल्लूक भुजिया बना लेब।
कहि उमाकान्त शोभाकान्तक ऐठाम दतमनि करैत विदा भेल। दाँतमे घुस्सो दिअए आ मोने-मन वि‍चारबो करए, काजे एहेन छी जे मनुखकेँ मनुखो बनबैए आ जानवरो। दुनियाँक सभ मनुख तँ किछु-ने-किछु करिते अछि। मुदा कियो देव बनि जाइए तँ कियो दानव। तँए काजकेँ परिखब सभसँ मूल बात छी। शोभाकान्त ऐठाम पहुँचिते उमाकान्त रस्तेपर सँ बोली देलक-
“दोस छेँ रौ, रौ दोस।
ओछाइनपर सँ उठैत शोभाकान्त बाजल-
“हँ। दोस छिऐ रौ, हमरो नीन टुटले अछि। अखनि‍ तँ अन्हारे छै।
उमाकान्त- सबा चारि बजै छै। तैयार होइत-होइत पाँच बजिए जाएत। कनी पहिले स्टेशन जाएब।
उमाकान्त आ शोभाकान्त एक्के बतारी। दुनूमेे उमेरक हिसाबसँ के छोट के पैघ, से तँ ने अपने दुनू गोटे बुझए आ ने कियो टोले-पड़ोसक। किएक तँ टिपनि दुनूमेसँ केकरो नै। बच्चेसँ दुनू गोटे बेसी काल एक्केठाम रहैत तँए समाजोक लोक बिसरि गेल। अपना दुनू गोटेक माएओ-बाप मरिए गेल, आन मोने किएक राखत। मुदा दुनू गोटे ऐ मौकाक लाभ उठबैत। लाभ ई उठबैत जे दुनू एक-दोसराक स्त्रीसँ हँसी-चौल करैत। तइले दुनूमेसँ केकरो मलाल नै। मुदा गामक बुढ़ो-बुढ़ानुस आ नवकीओ कनियाँ दुनू स्त्रीगणकेँ निरलज कहैत। तेकर गम दुनूमे सँ केकरो नै। किएक तँ सभ स्त्रीगणकेँ होइत जे अधिक-सँ-अधिक पुरुख संग गप-सप्‍प हँसी-मजाक हुअए।
बच्चेसँ दुनू गोटे- उमाकान्त आ शोभाकान्त- एक्केठाम गुल्लीओ-डंडा खेलए आ गामेक स्कूलमे पढ़बो करए। बच्चामे दुनू गोटे दुनूकेँ नामे धऽ-धऽ बजैत। मुदा चेष्टगर भेलापर, कनगुरिया ओंगरीमे ओंगरी भिरा दोस्ती लगा लेलक। मिडिल तक गामेक स्कूलमे दुनू गोटे पढ़लक। मुदा हाइ स्कूलमे उमाकान्तेटा नाओं लिखेलक। शोभाकान्त गरीब, तँए पढ़ाइ छोड़ि देलक। मुदा उमाकान्तकेँ दू-तीन बीघा खेतो आ पितो गामेक स्कूलमे नोकरी करैत। ओना शोभाकान्त उमाकान्तसँ बेसी चड़फड़ो आ पढ़ैओमे नीक। तँए अपना क्लासक मुनिट्रीआइओ करैत। मुनीटरक बात शिक्षको अधिक मानथि‍ आ चट्टियाक बीच धाखो। पढ़ाइ छोड़ला पछाति‍ शोभाकान्त नोकरी करए पटना गेल। गामसँ तँ यएह सोचि निकलल जे जएह काज भेटत सएह करब। मुदा रस्तामे वि‍चार बदलि गेलै। विचार ई बदललै जे ने चाहक दोकानमे नोकरी करब आ ने होटलमे। ने कोठीमे काज करब आ ने ताड़ी-दारूक दोकानमे। अगर जँ नोकरी नै हएत तँ रिक्शे चलाएब वा मोटि‍एमे काज करब। सरकारी नोकरीक तँ कोनो आशे नै। किएक तँ उमेरो नै भेल हेन।
गामसँ शहर शोभाकान्त पहिले-पहिल पहुँचल। मुदा जे आकर्षण शहर-बजार देखि लोककेँ होइ ओ आकर्षण शोभाकान्तकेँ नै भेलै। जहिना सोना-चानीक दोकान दिस गरीबक नजरि नै पड़ैए, तहिना। स्टेशनसँ उतरि शोभाकान्‍त उत्तर दि‍सक रस्ता धेलक। कोठा-कोठीपर नजरि पड़बे ने करैए। किछु दूर गेलापर एकटा साइकिल मिस्त्रीक दोकान देखलक। रस्तापर ठाढ़ भऽ दोकान हियासए लगल। दोकानदारोक नजरि पड़लै। शोभाकान्तपर नजरि पड़िते दोकानदारक मनमे एलै जे छोटो-छोटो काजमे अपने बरदा जाइ छी जइसँ नम्‍हर काज पछुआ जाइए। से नै तँ ऐ बच्चाकेँ पुछिऐ जे नोकरी रहत। जँ रहत तँ रखि‍ लेब। हाथक इशारासँ हाक पाड़ि‍ मिस्त्री पुछलक-
“बाउ, की नाओं छी?
“शोभाकान्त।
“केतए घर छी?”
“मधुबनी जिला।
“केतए जाएब?”
“नोकरी करए एलौं।
“ऐठाम रहब?”
“हँ। रहब।
जहिना अतिथि-अभ्यागतकेँ दुआरपर अबिते घरबारी लोटामे पानि आनि आगूमे दैत, खाइक आग्रह करैत, तहिना शोभाकान्तकेँ मिस्त्री केलक। आठ आना पाइ दैत, आँगुरक इशारासँ मुरही-कचड़ीक दोकान देखबैत कहलक जे ओइ दोकानसँ जलखै केने आउ। झोरा रखि‍ शोभाकान्त विदा भेल। ओना गाड़ीक झमारसँ देहो-हाथ दुखाइत रहै आ भूखो लगलै रहै। मुदा! नोकरी पाबि देहक दरदो आ भूखो कमि गेलै। मुरही-कचड़ीक दोकानपर बैसिते, बगए-बानि देखि दोकानदार पुछलकै-
“बौआ, अहाँक घर केतए छी?”
“मधुबनी जिला।
“गामक नाओं कहूँ।
“लालगंज।
“हमरो घर तँ अहाँक बगलेमे अछि, रूपौली। बीस-पच्चीस बर्खसँ हम ऐठाम रहै छी।
बिनु पाइ नेनइ दोकानदार शोभाकान्तकेँ भरि पेट खुआ देलक। खा कऽ शोभाकान्त साइकिल दोकानपर आबि मिस्त्रीकेँ पाइ घुमबैत कहलक-
“दोकानदार पाइ नै लेलक।
मुदा गहिंकी सबहक भीड़-झमेल दुआरे मिस्त्री आगू किछु नै पुछलक।
पंचर सटनाइ, छोट-छोट भङठी केनाइसँ शोभाकान्त अपन जिनगी शुरू केलक। छोट-छोट काज भेने दोकानदारोकेँ आगू बढ़ैक अवसर हाथ लगलै। साइकिल, रिक्शा संग मोटर साइकिल आ टेम्पूक मरम्मत केनाइ सेहो शुरू केलक। शोभाकान्तोकेँ मौका भेटलै। उपार्जनक लूरि‍ आबए लगलै। दुनियाँकेँ बिसरि शोभाकान्त रिन्च-हथौरीमे मगन भऽ गेल।
छह मास बीतैत-बीतैत शोभाकान्त साइकिल-रिक्शाक मिस्त्री बनि गेल। संगहि मोटर साइकिल आ टेम्पू चलाएब सेहो सीखि लेलक। मेहनति‍ केने शरीरो फौदा गेलै। साले भरिमे जवान भऽ गेल।
डरेबरीक लाइसेंस शोभाकान्त बना लेलक। लाइसेंस बनैबते शोभाकान्तक मनमे द्वन्‍द उत्पन्न हुअ लगलै जे डरेबरी करी आकि अपन दोकान खोलि मि‍स्‍त्रीआइ करी। मुदा अपन दोकान खोलैले घर भाड़ा संग मरम्मत करैक सामानो लिअए पड़त। फेर मनमे एलै, एक तँ मेनरोडमे घर नै भेटत दोसर पाइओ ओते नइए जे सामानो किनब। तइसँ नीक जे डरेबरीए करी। सएह केलक। डरेबरीमे दरमहो नीक आ बाइलीओ आमदनी। महि‍ना दिन तँ अबेवस्थिते रहल मुदा दोसर मास बीतैत-बीतैत असथिर भऽ गेल। दरमाहा जमा करए लगल आ बाइली आमदनी घर पठबए लगल।
सालभरिक दरमाहासँ शोभाकान्त टेम्पू कीनि लेलक। टेम्पू कीनि अपन सभ सामान लादि, सोझे गाम चलि आएल।
सेकेण्ड डिबीजनसँ उमाकान्त बी.ए. पास केलक। ओना पढ़लो-लिखल लोक कम मुदा ओहूसँ कम नोकरी। खेती-पथारी आ कारोबार कियो पढ़ल-लिखल करै नै चाहैत। जइसँ गाम-सबहक दशा दिनो-दिन पाछुए मुहेँ ससरैत। गामक लोको तेहने जे पढ़ल-लिखल लोककेँ खेती करैत देखि दिल खोलि कऽ हँसबो करैत आ लाख तरहक लांछना सेहो लगबैत। जइसँ गामक पढ़ल-लिखल लोककेँ नोकरी करब मजबूरी भऽ जाइत।
नोकरीक भाँजमे उमाकान्त दौग-धूप करए लगल। मुदा मनमे संकल्प रखने जे घूस दऽ कऽ नोकरी नै करब। चाहे नोकरी हुअए वा नै। दौग-धूपसँ मन विचलित हुअ लगलै। संकल्प डोलए लगलै। मनमे अनेको प्रश्न औंढ़ मारए लगलै। कखनो-कखनो मनमे होइ जे पाँच कट्ठा खेत बेचि कऽ नोकरी पकड़ि लेब। फेर मनमे होइ जे जहन‍‍ घूस दऽ कऽ नोकरी लेब तँ घूस लऽ कऽ लोकक काज किए ने करबै? फेर मनमे होइ जे तहन‍‍ जिनगी केहेन हएत? अछैते जिबने मुर्दा बनल रहब। लोक शरीर तियागक पछाति‍ मृत्यु धारण करैए आ हम जीवितेमे मरल रहब। फेर मनमे एलै, पत्नी तँ जीवन-संगिनी छथि‍ तँए एक बेर हुनकोसँ पूछि लियनि। मनमे शान्ति एलै। पुछलक-
“बिनु घूस-घासक नोकरी भेटब कठिन अछि, से अहाँक कि‍ विचार?”
मुस्की दैत पत्नी बाजलि-
“आइक जुगमे नोकरी भेटब जिनगी भेटब छी। तँए हमरो गहना-जेबर अछि आ जँ ओइसँ नै पूड़ए तँ थोड़े खेतो बेचि कऽ नोकरी पकड़ि लिअ। देखते छिऐ जे साले भरिमे लोक की-सँ-की कए लइए।
एक तँ ओहिना उमाकान्तक मन घोर-घोर होइत तैपर सँ पत्नीक बात आरो मरनासन्न बना देलकै। जिनगीक आशा टुटए लगलै। आँखिक रोशनी क्षीण हुअ लगलै। आशाक ज्योति केतौ बुझिए ने पड़ैत। जहिना अन्हारमे सगतरि भूते-प्रेत, चोरे-चौहार, साँपे-छुछुनरि बूझि पड़ैत तहिना उमाकान्तकेँ हुअ लगलै। डुमैत जिनगीक आशामे कनी टिमटिमाइत इजोत बूझि पड़लै। इजोत अबिते शक्तिक संचार हुअ लगलै। मनमे संकल्पक अंकुर अंकुरित हुअ लगलै। जइसँ दृढ़ताक उदए सेहो हुअ लगलै। मोने-मन विचार करए लागल, जिनगीक किछु लक्ष्य हेबाक चाही। मनुख तँ चुट्टी-पिपड़ी नै ने छी जे साधारण केकरो पएर पड़लासँ मरि जाएत। मनुख तँ ब्रहमक अंश छी। ओकरामे विशाल शक्ति छिपल छै। जिनगीमे अहि‍ना हवा-बिहाड़ि अबै छै तइसँ की मनुख मनुखता गमा लेत। मनुखते तँ मनुखक धरोहर सम्पति छी। जेकरा लोक ओहिना केतौ फेक देत! कथमपि नै! मोने-मन विचारलक, जौं हमरा नोकरी नै भेटत। तँ कि हाथपर हाथ दऽ कऽ बपहारि काटब? एते कमजोर छी? की हमरामे मनुखक सभ गुण मरि चुकल अछि। हमरा बुते किछु कएल नै हएत? जरूर हएत!
नोकरी दिससँ नजरि हटा उमाकान्त राशनक दोकान चलबैक विचार केलक। विचार ऐ दुआरे केलक जे जीबैले अर्थक उपार्जन जरूरी होइत। जिनगीक अधिकांश काज अर्थेसँ चलैत। तँए बिनु अर्थे जिनगी जिनगी नै रहि जाइत। हँ ई बात जरूर जे अर्थक उपार्जन आ उपयोगक ढंग नीक हेबाक चाही। राशनक दोकानक जरूरति‍ सभ गाममे अछि, सरकार आ समाजक बीचक कड़ी सेहो छी। ओना डीलरीक लाइसेंसो बनबैमे पाइएक खेल चलैए। मुदा तैयो जी-जाँति कऽ उमाकान्त लाइसेंस बनबै दिस बढ़ल।
डीलरीक लाइसेंस बनौला पछाति‍ उमाकान्त समान उठबैसँ पहिने मिश्रीलालसँ कारोबारक तौर-तरीका बुझैले गेल। मिश्रीलाल पुरान डीलर। मुदा जहिना गाममे अपन इज्जत बनौने तहिना सरकारीओ आॅफिसमे। इज्जत बनबैक अपन तरीका मि‍श्रीलालक। तँए ब्लौकक पैंतालिसो डीलर मिलि ओकरा यूनियनक सेक्रेट्री बनौने। जहिना सभ डीलर मिश्रीलालकेँ मानैत तहिना मिश्रीलालो सभकेँ। यएह बूझि उमाकान्त भेँट करब आवश्यक बुझलक। मिश्रीलाल ऐठाम उमाकान्त पहुँचल तँ देखलक जे चारि-पाँचटा धिया-पुता रजिस्टरपर दसखतो करैए आ निशानो लगबैए। किएक तँ पछिला मासक समान बँटबारा भऽ गेल छेलै। तँए बिनु रजिस्टर तैयार भेने अगिला समान केना उठत? जरूरी काज बूझि मिश्रीलाल मगन भऽ अपन काज करैत। उमाकान्तकेँ देखते मिश्रीलाल रजिस्टरक बि‍च्‍चेमे, जइ पेजमे निशान आ हस्ताक्षर करबैत रहए तही पेजमे पेनो आ कार्बनो रखि‍ मोड़ैत बेटाकेँ कहलक-
“बौआ, चाह बनबौने आबह?”
उमाकान्त दिस होइत पुछलक-
“किम्‍हर किम्‍हर एनाइ भेलै बौआ।
निर्विकार भऽ उमाकान्त बाजल-
“भैया, अहाँ पुरान डीलर छी। डीलरीक सभ कि‍छु जनै छिऐ। बी.ए. केला पछाति‍ हम दू साल नोकरीक पाछू बौएलौं मुदा केतौ गर नै धेलक। आब तँ नोकरीक उमेरो लगिचाएले अछि, तँए नोकरीक आशा तोड़ि डीलरीक लाइसेंस बनेलौं हेन।
नोकरीक गर नै लागब सुनि मिश्रीलाल पुछलकै-
“बौआ, जहिना कोनो परिवारमे चारि-पाँच भाँइक भैयारी रहैए। सभ कि‍छु शामिले रहै छै। मुदा सभ भाँइक पत्नीकेँ अप्पन-अप्पन सम्पति‍ सेहो छै। जइमे भाइओ सभ चोरा-नुका शामिल भऽ जाइए। जेकर फल होइ छै घरमे आगि लागब। तहिना नोकरीओ सभमे भऽ गेल अछि। जे कुरसीपर अछि ओ अपने सार-बहनोइक जोगारमे रहैए। कहीं केतौ बिकरीओ होइ छै। जेकर परिणाम बनि गेल अछि जे नाेकरी केनिहारोक वंश बनि गेल अछि। देशक विकास केहेन अछि से तँ तूँ पढ़ले-लिखल छह, सभ कि‍छु जनिते छहक। जँ कनी-मनी एक रत्ती आगूओ बढ़ि रहल अछि तँ ओइसँ बेसी ओइ नोकरिहाराक वंशमे नोकरी केनिहार बढ़ि रहल अछि। तँए देखबहक जे डाक्टरेक बेटा डाक्टर बनत। इंजीनियरेक इंजीनियर। केते कहबह। जे जेते अछि ओ बपौती बूझि ओकरा पकड़ने अछि। तैबीच तेसरकेँ जे गति हेबाक चाही सएह तोरो भेलह। तहूसँ बेसी जुलुम अछि जे किछु गनल-गूथल लोक अछि जे नोकरीओ करैए, खेतो हथिऔने अछि आ जे कोनो सरकारी योजना बनै छै ओकरो हड़पैए। जइसँ देखबहक जे केकरो सम्पति‍ राइ-छित्ती होइए आ कियो सम्पति‍ लेल लल्ल अछि।
उमाकान्त-
“भैया, दुनियाँ-दारीक गप छोड़ू। अपना काजक विषएमे कहूँ।
मिश्रीलाल-
“बौआ, अखनि तूँ जुआन-जहान छह। मुदा जे काज कए कऽ अपना जीबए चाहै छह ओ गलती भेलह। तोरा सन आदमीकेँ डीलरी नै करक चाही। हम तँ सभ घाटक पानि पिनाइ सीखि नेने छी। की नीक की अधला से बुझिते ने छिऐ। बुझह तँ नढ़ड़ा-हेल हेलै छी। तँए हमर कारबार ठीक अछि। मुदा तोरा बुते नै हेतह?
उमाकान्त-
“किए?”
तैबीच चाह एलै। दुनू गोटे हाथमे गिलास लेलक। एक घोंट चाह पीब मिश्रीलाल-
“देखहक, डीलरी दू दुनियाँक सीमा परक काज छी। एक दिस सत्ताक दुनियाँ अछि आ दोसर दिस आम लोकक। गड़बड़ दुनू अछि।
उमाकान्त-
“से की?”
मिश्रीलाल डीलर बाजल-
“पहिने पब्लिकेक बात कहै छिअ। राशनक वस्तु चीनी-मटियातेल तँ हिसाबेसँ भेटैए। नामे छिऐ कोटा। जँ मनमाफित भेटितै तँ खुल्ला बजार होइतै। से तँ नै अछि। गाममे किछु एहेन-एहेन रंगबाज सभ बनि गेल अछि जेकरा खाइ-पीबैले नै देबहक तँ भरि दिन अपनो आ अनको उसका-उसका रग्गड़े करैत रहतह। रग्गड़केँ तँ कोनो सीमा नै होइ छै। जँ कहीं गोटे दिन लाठीए-लठौबलि भऽ जेतह तहन‍ तँ लेनीक देनी पड़ि जेतह। दू पाइ कमाइले धंधा करबह आकि कोट-कचहरीक फेड़मे पड़बह। बुझिते छहक जे कोट-कचहरी लोकेक पाइपर ठाढ़ अछि। ओइ साला रंगबाज सभकेँ की अछि। अपने किछु करतह नै आ अनका काजमे हरिदम टाङे अड़ौतह। गामक उत्पातसँ लऽ कऽ थाना-पुलिस, कोट-कचहरीक दलाली भरि दिन करैत रहतह। आब तोंही कहऽ जे बरदास हेतह? नीक लोक लेल ऐ दुनियाँमे केतौ जगह नै अछि। ओइ साला सभकेँ की छै, भरि दिन ताड़ी-दारू पीब ढहनाइत रहतह। ने छोट-पैघक विचार करतह आ ने गारि-मारिक। तैपर सँ पंचायतक मुखिओ आ वार्डो-मेम्बर सभकेँ कमीशन चाहबे करिऐ। पब्लिको तेहने अछि। देखबहक जे केतेक एहेनो परिवार अछि जेकरा कोटाक वस्तुक जरूरति‍ नै छै जेना चीनी। मुदा ऊहो कोटासँ चीनी उठा दोकानमे किछु नफा लऽ कऽ बेचि लेतह। जहन कि किछु परिवार एहेनो अछि जेकरा कोटाक वस्तुसँ खर्च नै पूड़ै छै। अपनो आँखिसँ देखबहक जे दस-बीस कप चाह आने पीबैए। की ओकरा सभकेँ फाजिल नै देबहक? जखने एक गोटेकेँ फाजिल देबहक तँ दोसराक हिस्सा कटबे करत। एहेन स्थितिमे डीलरे की करत। आखिर ऊहो तँ समाजेक लोक छी?
उमाकान्त-
“सभ गोटे तँ कोटा उठैबतो नै हेतै?”
मिश्रीलाल-
“हँ, सेहो होइए। मुदा ओ तहन‍‍ होइए जहन‍ कोटाक वस्तुक दाम आ खुल्ला बजारक दाममे अन्तर नै रहैए। मुदा जहन‍ दुनूक दाममे अन्तर रहैए तहन‍‍ जेकरो ने अपना पाइ रहै छै ऊहो दोकानदार सभसँ अदहा-अदही नफापर पाइ लऽ कऽ समान उठा लइए आ बेचि लइए। तेतबे नै ऊहो चाहतह जे किछु फाजिले कऽ समान भेटए।
मुँह बिजकबैत उमाकान्त-
“तब तँ बड़ ओझरी अछि।
उमाकान्तक सोचकेँ गहराइ दिस जाइत देखि मुस्की दैत मिश्रीलाल-
“बौआ, एतबेमे छगुन्ता लगै छह। ई तँ एक दिसक बात कहलिअ। अहूमे केते ओझरी छुटिए गेलह। जँ सेरिया कऽ सभ बात कहबह तँ सैकड़ो ओझरी आरो अछि। आब सुनह आॅफिस, बैंक, एफ.सी.आइ. गोदामक सम्बन्धमे। दौग-बरहा जे करए पड़तह ओकरा छोड़ि दइ छिअ। किएक तँ मोटा-मोटी यएह बुझह जे एक दिनक काजमे पनरहो दिनसँ बेसीए लगतह। जइमे समए संग पच्चीस-पचास पौकेटो खर्च हेबे करतह।
उमाकान्त-
“तब तँ बड़ लफड़ा अछि?”
मिश्रीलाल-
“लफड़ा की लफड़ा जकाँ अछि। जखने ब्लौक पएर देबहक आकि गीध जकाँ चारू भरसँ अफसरसँ लऽ कऽ चपरासी धरि, नोंचए लगतह। कियो कहतह जे चाह पिआउ तँ कियो कहतह पान खुआउ। कियो कहतह सिगरेट पियाउ तँ कियो मिठाइ खुआउ। सुनि-सुनि मन महुरा जेतह। मुदा की करबहक? भीखमंगोसँ गेल-गुजरल चालि देखबहक। जेना अपना दरमाहा भेटिते ने होइ। मुदा डीलरे की करत? अगर जँ सभकेँ खुशी नै राखत तँ काजे लटपटेतै। काजो तेहेन अछि जे एक्के टेबुलसँ नै होइ छै। जेते टेबुल तेते खर्च। अखनि‍ हमहू औगताएल छी, तँए नीक-नहाँति नै कहि सकबह। देखते छहक जे रजिस्टर तैयार करै छी। ब्लौक जाएब। मुदा तैयो एक-दूटा बात कहि दइ छियह। सबहक तड़ी-घटी ने हम बुझै छिऐ।
उमाकान्त-
“कनी-कनी सबहक बात कहि दिअ?”
मिश्रीलाल-
“औगताएलमे की सभ बात मनो पड़ै छै। मुदा जे मन पड़ैए से कहि दइ छिअ। पहिने बैंकक सुनह। कोरियापट्टीमे दुनियाँलाल डीलर अछि। वेचारा बड़ मुँहसच्‍च। जहिना-जहिना समान बिकाएल रहै तहिना-तहिना पाइ रखने रहए। खुदरा समानक बिकरी तँए खुदरा पाइ। अगिला कोटा लेल जहन‍‍ बैंकमे जमा करए गेल तँ खुदरा पाइ देखि बैंकमे लेबे ने केलकै। कहलकै जे ओते हमरा छुट्टी अछि जे भरि दिन तोरे पाइ गनैत रहब। भरि दिन वेचारा छटपटा कऽ रहि गेल। बैंकसँ निकलबो ने करए जे पौकेटमार सभ ने कहीं पाइ उड़ा दिअए। दोसर दिन आबि कऽ हमरा कहलक। तामस तँ बड़ उठल। किएक तँ जेना मोटका पाइ सरकारक होइ आ खुदरा नै, तहिना। जहन‍‍ पाइएक लेन-देन बैंकमे होइ छै तँ गनैले स्टाफ राखह। मुदा की करितिऐ। दोसर दिन गेलौं। मनेजरकेँ कहलिऐ। तहन‍‍ दू प्रतिशत कमीशनपर फड़ियाएल। आब तोंही कहऽ जे ई दू प्रतिशत कोन बिलमे चलि गेल। तहिना दोसर बात लैह, सप्लाइ इन्सपेक्टरक। इन्सपेक्टर बदली भेल। नव इन्सपेक्टर बूझि पनरह-बीस गोटे डीलर ओकरा पाइ नै देलकै। ओना पचास रूपैए प्रति डीलर प्रति मास इन्सपेक्टरकेँ दइए। सभकेँ मनमे भेलै, नव हाकिम छथि तँए छह मास तँ इमानदारी रखबे करता। ले बलैया, जहाँ डीलर दोसर कोटाक सभ समान उठौलक आकि पराते भेने विश्वनाथ डीलर ऐठाम पहुँच‍ गेल। विश्वनाथोकेँ कोनो डर मनमे नै। किएक तँ समान ओहिना पड़ल छेलै। विश्वनाथकेँ इन्सपेक्टर चीनी काँटा करैले कहलक। ऊहो तैयार भऽ काँटा करए लगल। पाँचो बोरा मिला कऽ चौदह किलो चीनी कमि गेलै।
बि‍च्‍चेमे उमाकान्त पुछि‍ बैसल-
“किए, चीनी तौलि कऽ नै नेने रहए से?”
मिश्रीलाल-
“ई एफ.सी.आइ. गोदामक खेल छि‍ऐ। एफ.सी.आइ. गोदाम तँ ब्लौके-ब्लौके ने अछि। तँए देखबहक जे डीलर सबहक नम्‍मर लागल अछि। सभकेँ औगताइ करैत देखबहक। किएक तँ अपन टाएर गाड़ी तँ सभ डीलरक रहै नै छै। अधिक डीलर भड़ेपर गाड़ी लऽ जाइए। तँए मनमे होइत रहै छै जे जेते जल्दी समान हएत तेते कम भाड़ा लगत। तँए कियो समान तौलबै नै अछि। जे कियो पच्चीस रूपैए बोरा मनेजरकेँ दऽ देने रहलै ओकरा तँ नीक समानो आ पुड़ल बोरो देलक। जे पाइ नै देने रहल ओकरा समानो दब आ घटल बोरो देलक। चोर-पर-चोर अछि।
छुब्ध होइत उमाकान्त बाजल-
“हद लीला सभ अछि।
मिश्रीलाल-
“आब मार्केटिंग अफसर एम.ओ.क बात सुनह। अखुनका जे एम.ओ. अछि ओ पीआक अछि। ओना काज करैमे भुते अछि। रस्तो-पेरामे मोटर साइकिल लगा फाइलपर लिखि दइए। मुदा ओहिना नै। पहिले एक बोतल पीआ देबहक, तहन‍‍।
उमाकान्त-
“अफसर भऽ कऽ रस्ता-पेरापर बोतल पीबैए?”
ठहाका मारि हँसि मिश्रीलाल-
“बौआ, तूँ गाम-घरक बात बुझै छहक। गाम-घरमे जे छोट-पैघक, इज्जत-आबरूक विचार अछि ओ केतए पेबह। मुदा तैयो ओकरामे दूटा गुण जरूर छेलै। पहिल गुण छेलै जे आन कोनो स्त्रीगण दिस नै तकितह। आ दोसर गुण छेलै जे केकरोसँ एक्को पाइ नै लइतह। मुदा ऐसँ पहुलका एम.ओ. जे रहए ओ भारी पइखौक। सभ काजक रेट बनौने रहए। जे सभ बुझै। तँए जेकरा जे काज रहै ओ ओइ हिसाबसँ पाइ दऽ दइ आ लगले काज करा लिअए।
मुस्‍कीआइत उमाकान्त-
“तब तँ पक्का नटकिया सभ अछि।
मिश्रीलाल-
“नटकिया कि‍ नटकिया जकाँ अछि। रंग-बिरंगक चोर सभ पसरल अछि। कियो धनक चोर अछि तँ कियो धरमक। कियो बुधिक चोर अछि तँ कियो विवेकक। केते कहबह। तेसराक सुनह। अंदाज करीब पचपन छप्पन बर्खक उमेर ओकर रहए। मुदा फीट-फाटमे जुआनक कान कटैत। जेहने हीरोकट कपड़ा पहिरैत तेहने हिप्पीकट केश रखैत। रंग-बिरंगक तेल आ सेंट लगबै। हरिदम ऊपरका जेबीमे ककही देखबे करितहक। रातिओमे कएक बेर केश सीटै। चौबीस घंटामे दू बेर दाढ़ी बनबै। ओ एम.ओ. भारी नरचोप जेहने अपने तेहने बहुओ। दिन भरिमे पच्चीसो बेर कपड़ा साड़ी-ब्लाउज आ जूत्ता-चप्पल बदलै। केशमे केते रंगक क्लीप लगबै तेकर ठेकान नै। भरि दिन रिक्शापर ऐ डेरासँ ओइ डेरा आ ऐ बजारसँ ओइ बजार घुमिते रहै छलि। संयोगो ओकरा नीक भेटलै। एके बेर बी.डी.ओ., सी.ओक बदली भऽ गेलै। ओकरे दुनू गोटे चार्ज दऽ कऽ गेल। ओही बीच शिक्षा मित्रक भेकेन्सी भेल। लड़की सभकेँ आरक्षण भेटलै। जइमे जाति प्रमाणपत्रक जरूरति‍ पड़ल।
अपशोच करैत मि‍श्रीलाल आगू बाजल-
“बौआ की कहबह, ओइ सालाक डेरा बेश्यालय बनि गेल। कखनो ब्लौक आॅफिसमे नै बैइसै। जहन‍‍ बैसबो करै तँ आन-आन कागत देखै मुदा एक्कोटा जाति प्रमाणपत्रपर हस्ताक्षर नै करै।
“परिवारक कियो किछु ने कहै?”
“स्त्रीक विषएमे तँ कहिए देलिअ। जेठकी बेटी बी.ए.मे पढ़ैत रहए। ओकरो चालि-ढालि बापे-माए जकाँ। कौलेजेक एकटा छौंड़ा जे आदिवासी क्रिश्चन छल तेकरा  संग भागि‍ गेलै।
उमाकान्त-
“बाप-माएकेँ लाज नै भेलै?”
“लाज तँ तेहेन भेलै जे राता-राती ऐठीमसँ भागल।
“अहूँकेँ बहुत काज अछि आ हमरो मन भरि गेल। आखिरीमे एकटा बात बुझा दिअ।
मिश्रीलाल-
“की?”
उमाकान्त-
“अहाँ केना अप्पन प्रतिष्ठा समाजो आ आॅफिसोमे बना कऽ रखने छी?”
मिश्रीलाल मुस्‍कीआइत-
“समाजमे जेकरा ऐठाम सराध, बिआह, उपनैन, मूड़न, भनडारा वा आन कोनो तरहक काज होइ छै तँ ओकरा हम जरूर चीन्नीओ आ मोटि‍ओ तेलक पूर्ति कइए दइ छिऐ। भलहिं‍ं अपना लग नहियोँ रहल तैयो जेतए-तेतएसँ आनि पुराइए दइ छिऐ। जइसँ समाजक सभ खुशी रहैए। आॅफिसक बात तँ पहिने कहि देलिअ।
उमाकान्त-
“हमरा की करक चाही? किएक तँ जइ हिसाबे अहाँ कहलौं तइसँ हम्मर मन भटकि रहल अछि।
मिश्रीलाल-
“बौआ, जहन‍‍ लाइसेंस बना लेलह तहन‍‍ कम-सँ-कम एक खेप समान ठा कऽ बाँटि लैह। जइसँ समाजोक चालि-ढालि आ आॅफिसोक चालि-ढालि देखि लेबहक। बेवहारिक ज्ञान भऽ जेतह। बेवहारिके ज्ञान असली ज्ञान छिऐ। अखनि‍ हम एते मदति जरूर कऽ देबह जे तोरा केतौ अड़चन नै हेतह। मुदा दोसर खेपक भार हम नै लेबह। किएक तँ बुझिते छहक जे बिलाइ जे मूससँ दोस्ती करत तँ खाएत की? तोरो सीखैक अवसर भेट जेतह।
उमाकान्त-
“बड़बढ़ियाँ! जहिना अहाँ कहलौं तहिना हम करब।
मिश्रीलाल-
“बाउ, आब तँ हम बूढ़ भेलौं। जहिया हम सोलहे बर्खक रही तहिएसँ डीलरी करै छी। मुदा पहुलका आ अखुनकामे अकास-पतालक अंतर भऽ गेल अछि। जेते धन आ शिक्षाक प्रसार भेल जा रहल छै ओते घटिया मनुख सेहो बढ़ि रहल अछि। पहिने इमानदार लोक बेसी छल मुदा आब आँगुरपर गनए पड़तह। हम तँ डीलरीमे रमि गेलौं। सभ घाटक पानि पिनाइ सीखि नेने छी, तँए नीक छी।
उमाकान्त-
“चलैत-चलैत किछु...?
मिश्रीलाल-
“जहिना आमक गाछ होइ छै जे आमक आँठीसँ जनमैए। तहिना तँ मनुखोक होइ छै। दुनियाँमे जेते मनुख अछि, सभ तँ मुरूखे भऽ कऽ जनम लइए। मुदा ऐठाम जेकरा जेहेन परिवार, समाज, वातावरण भेटै छै ओ ओहेन बनैए। जहिना आमक छोट-छोट सरही गाछकेँ नीक-नीक कलमी आमक गाछक डारिमे बान्हि कलम लगा नीक-नीक आम बना लैत, तहिना मनुखोक होइत। मुदा नीक परिवार, नीक समाज अछिए केतेक। अधिकांश तँ गेले-गुजरल अछि। ने सभकेँ भरि पेट खेनाइ भेटै छै आ ने नीक बात-विचार। तहन‍‍ नीक मनुख बनत केना? जाधरि नीक मनुख नै बनत ताधरि नीक समाज केना बनत? तहन‍‍ तँ जएह अछि तइमे अपनाकेँ जेते नीक बना जीब सकी, वएह संतोखक बात। तहूँ अखनि‍ सादा कागत जकाँ साफ छह, तँए हम चाहब जे गन्दा नै हुअ। जेहेन विचार, हाथ होइत कर्म बनि‍ निकलतह तेहेन जिनगी हेतह। कियो शरीरांतकेँ मृत्यु बुझैए आ कियो आत्माक हननकेँ। मनुखमे असीम शक्ति छिपल छै, ओकरा जगबैक अछि, जे हमहूँ सेरिया कऽ नहियेँ बुझै छिऐ।
जहिना तेज हथियार हाथमे एलासँ सक्कत-सक्कत वस्तु कटैक हूबा बनि जाइत तहिना उमाकान्तोकेँ भेल। विचार केलक जे आब बैलगाड़ीक जुग नै रहल। मशीनक जुग आबि गेल। तँए हमहूँ अपना हाथसँ इन्जिने चलाएब।
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