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Friday, October 18, 2013

चुनवाली (दोसर संस्‍करण)

चुनवाली

नीन्न टुटिते मखनी मोथीक बिछान समेटि ओसारक उत्तरबरि‍आ-पुबरि‍आ कोनमे ठाढ़ कऽ निच्चाँ उतरए लागलि आकि सीढ़ीपर पिछड़ि गेली। पएर पिछड़िते हाथसँ ओसार पकड़ए चाहली। मुदा जाबे सेरिया कऽ ओसार पकड़थि‍-पकड़थि‍ ताबे ओलतीमे खसि पड़ली। झलफल रहने कियो दोसर उठल नै। थोड़बे पहिने एकटा छोटकी अछार भेल रहए। घरक चारसँ ठोपे-ठोप पानि चुबते छल। सीढ़ीपर सँ खसिते मखनीक दहिना ठेहुनक जोड़ छिटकि गेलनि‍। तत्काल छिटकब नै बुझलथि‍। मात्र एतबे बुझलथि‍ जे ठेहुन कट दऽ उठलनि हेन। मनमे एलनि‍, कियो देखलक तँ नै तँए हाँइ-हाँइ उठए लगली। जोशमे उठि तँ गेली मुदा ठेहुनक कचकबसँ फेर ओसार पकड़ि सीढ़िएपर बैसि गेली। बैसिते मनमे वि‍चार उठए लागलनि‍- केना मटकुरियाक बेटाक परबरिस चलतै..., ढेरबा बेटी छै बिआह कन्ना करत..., अपना कमाइक कोनो लूरि‍ नै छै..., बहुओ धमधुसरीए छै..., अपना खेत-पथार नै छै..., गामक लोको तेहेन अछि जे केकरो कियो नीक नै करैत...। हे भगवान कोन बिपति दऽ देलह?
कनीकाल गुम्म रहि बेटाकेँ जोरसँ हाक पाड़ली-
“मटकुरिया, रौ मटकुरिया?
दुनू परानीओ आ दुनू धियो-पुतो नि‍सभेर रहए। तँए ने मटकुरिया उठल आ ने कियो दोसर। पुनः दोहरा कऽ मखनी जोरसँ शोर पाड़ली-
“रौ बौआ, बौआ रौ। हम पिछड़ि कऽ खसि पड़लौं से उठिए ने होइए।
औगता कऽ उठैत मटकुरिया बाजल-
“माए-माए, अबै छी।
ताधरि फुलियो, कबुतरीओ आ बेटोक नीन टुटल। कहि केबाड़ खोलि मटकुरिया दौगल माए लग आबि पुछलक-
“केना कऽ खसलेँ?”
पाछूसँ स्‍त्रीओ आ बेटो-बेटी पहुँचल। बेटा तँ पाँचे बर्खक मुदा तैयो माए-बापक देखा-देखी करैत दादीकेँ पकड़लक। चारू गोटे उठा मखनीकेँ ओसारपर लऽ गेलनि‍। बिछान बिछा सुता देलकनि‍। कनी-कनी ठेहुन फुलए लगलनि‍। फुलब देखि फुलिया पतिकेँ कहलक-
“अहाँ पहिने डाकडर बजा लाउ। हम ताबे करूतेलसँ ससारि दइ छि‍यनि‍।”
बेटीकेँ अढ़बैत पुन: बजलि‍-
“बुच्ची घरसँ तेलक शीशी नेने आ।
मटकुरिया डाक्टर ऐठाम विदा भेल। तेलक शीशी अानए कबुतरी घर गेलि। तैबीच मंगनियाँ दादीकेँ कहए लगल-
“आँइ गइ बुढ़िया, एतने ऊपरसँ....।
बेटाक मुँहपर फुलिया हाथ दऽ आगू बाजब रोकि देलक। मुदा पोताक बातसँ मखनीकेँ एक्को मिसिआ दुख नै भेलनि‍। मुस्की दैत बजली-
“बिलाइ खसा देलक।
शीशीक मुन्ना खोलिते कबुतरी आएल। दुनू माइधी तरहत्थीपर तेल लऽ लऽ दुनू हाथमे मिला, दहिना पएर -जाँघ सहित- मे ओंसऽ लागलि। मखनीक ठेहुनक दर्द बढ़िते जाइत। जइसँ दुनू गोटेकेँ ससारब छोड़ि दइले कहलक। ताबे डाक्टर संग मटकुरीया सेहो पहुँचल। मखनीक ठेहुन देखिते डाक्टर कहलखिन-
“हिनका ठेहुनक जोड़ छिटकि गेल छन्हि। पलस्तर करबए पड़त। ताबे दर्द कम होइले इन्जेक्शन दऽ दइ छि‍यनि‍। पलस्तरक समान सभ मंगबए पड़त।
एक्के-दुइए गामक जनिजाति पहुँचए लागलि। जनिजाति संग धियो-पुता सेहो। लोकसँ मटकुरियाक आँगन भरि गेल। पलस्तरक समान मंगा डाक्टर पलस्तर करैत कहलखिन-
“चिन्ता करैक बात नै अछि। पनरह दिनमे ठीक भऽ जेतनि।
कहि अपन फीस लऽ चलि गेला। मुदा लोकक आबा-जाही लगले रहल। रंग-बि‍रंगक गपसँ अँगना गनगनाइत।
भरि दिन सभ तूर मटकुरिया भुखले रहि गेल। ने भानसपर धि‍यान गेलै आ ने केकरो भूखे बूझि पड़लै। घरमे चूड़ा रहैए, जे मंगनियाँ खेलक। बेर झुकैत-झुकैत अँगना खाली भेलै। खाली अपने पाँचो गोटे अँगनामे रहल। सबहक मनो असथिर भेलै। सभ -मटकुरिओ, फुलियो आ कबुतरीओ- अपना-अपना ढंगसँ सोचए लगल। ओना कहियो-काल, सासुकेँ मन खराब भेने वा केतौ गाम-गमाइत गेने, फुलिये चुन बेचए जाइत। सभ काज बुझले तँए मनमे बेसी चिन्ता नै। चिन्ता खाली एतबे जे कहुना सासु माने माएक पराण बचि जान्‍हि‍। मुदा खुशी बेसी। सोलह बर्खसँ सासुर बसै छी मुदा अखनि‍ धरि घरक गार्जन नै बनलौं। लोककेँ देखै छिऐ जे सासुर अबिते अपन जुइत लगबए लगैए। भगवान हमरो दहीन भेला। आब हमहूँ गार्जन बनब। घरक गार्जन तँ वएह ने होइत जे कमाइए। जे उपारजने नै करत ओ घरक जुतिए-भाँति की लगौत। अगर जँ लगेबो करत तँ चलतै केना? छुच्‍छ हाथ थोड़े मुँहमे जाइए। काजक अपन रस्ता होइ छै। जे केनिहारे बुझैत। बिनु केनिहार जँ जुतिए लगौत तँ ओ या तँ दुरि हेतै वा गरे ने लगतै...।
ओना अखनि‍ फुलियाक घरोबला आ सासुओ जीविते, तँए गार्जनीओ हाथमे आएब कठिन। मुदा तैयो आशा रहै। अखनि‍ धरि सिन्नुरो-टिकुली लेल खुशामदे करै छलि, से आब नै करए पड़तै। तँए खुशी।
कबुतरीक मनमे ऐ दुआरे खुशी होइत जे जेते लूरि‍ दादीकेँ छै ओते लूरि‍ गाममे केकरो नै अछि। मुदा कमाइक तेहेन भुत लागि‍ गेल छै जे जइ दिन मरत तही दिन छोड़तै। सभ लूरि‍ संगे चलि जेत्तै। तँए नीक भेलै, अबाह भऽ गेल, आब तँ अँगनामे रहत। जखने अँगनामे रहए लगत तखने एका-एकी सभ लूरि‍ सीखए लगब। मुदा दादीएकेँ की दोख देबै। भरि दिन दस सेरक छिट्टा माथपर नेने बुलैए तँ देह-हाथ दुखेबे करतै। साँझ खिन कऽ थाकल-ठहियाएल अबैए असुआकेँ पड़ि रहैए। से आब नै हेतै। निचेनसँ पावनिओ-तिहारक विधि-विधान आ गीतो-नाद सीखब। एतेटा भऽ गेलौं, ने अखनि‍ तक एक्कोटा गीत अबैए आ ने बि‍आह-दुरागमनक अड़िपन बनौल होइए। कएक दिन मनमे अबैए जे मालतीए जकाँ हमहूँ अपन गोसाँइ घरक ओसारमे पुरैनिक लत्ती, कदमक गाछ लिखी। से लुड़िओ रहत तब ने। साँझू पहर कऽ जेते खान जँतै छिऐ तेते खान समैओ भेटैए तँ नहियेँ होइए। किएक तँ बिछानपर पड़िते ओंघा जाइए। जँ पुछबो करै छिऐ तँ ऐ गीतक पाँति ओइ गीतमे आ अोइ गीतक भास ऐ गीतमे कहए लगैए। जइसँ किछु सीखि नै पबै छी।
मटुकलालकेँ ऐ दुआरे खुशी होइत जे बेटा-पुतोहुक रहैत बूढ़ माए एते खटए से उचित नै। मुदा कहबो केकरा करबै। हमरा कोनो मोजर दइए। दूटा धिया-पुता भेल। बेटीओ बि‍आह करै जोकर भऽ गेलि मुदा हमरा बच्चे बुझैए। हम की करूँ। तँए भगवान जे करै छथिन से नीके करै छथिन। भने आब भारी काज करै जोकर नै रहल। जे अपनो बूझत आ मनाही करबै तँ मानिओ जाएत। मरैक डर केकरा नै होइ छै। तहूमे बूढ़-बुढ़ानुसकेँ। तँए मोने-मन खुश। लोक हमरा तड़िपीबा बूझि बुड़िबक बुझए। तँए की हम बुड़िबक छी। कियो बुझैए तँ बुझऽ। जहिया बाबू मुइला तहिया जेते भार कपारपर आएल, से कियो आन सम्हारि दइए। की अपने करै छी। पसिखन्ने जाइ छी तँ की लुच्चा-लम्पट संग बैसि पीबै छी जे चोरी-छिनरपन्नी सीखब। या तँ असगरे बैसि कऽ पीबै छी या बड़का लोक लग बैसि कऽ पीबै छी। बड़का लोेकक मुँहमे हरिदम अमृत रहैए। रमानन्दबाबूसँ गियनगर लोक ऐ इलाकामे दोसर के अछि। तिनकासँ हमरा दोस्ती अछि। हुनकर ओ बात हम गिरह बान्हि नेने छी जे जहिना कियो जनमैए, बढ़ि कऽ जुआन होइए। जुआनसँ बूढ़ भऽ मरि जाइए। ई तँ दुनियाँक निअमे छिऐ। सभकेँ हएत। जे नै बूझत ओ नै बूझह। मुदा हम तँ ओएह मानै छी...।
फेर मटकुरि‍या माए दिस नजरि घुमलै। मोने-मन सोचए लगल, माइक पएर टुटब कोनो अनहोनी थोड़े भेलै। ई तँ भगवानक लीले छि‍यनि‍। भगवान कखनो अपना सिर अजश लेता। कोनो-ने-कोनो कारण भइए जाइए। तइले हमरा दुखे किए हएत। जहिना एते दिन बि‍तल तहिना आगुओ बि‍तत। एते दिन जहिना माएकेँ, बेचि कऽ घुमैत काल, आगूसँ पथिया आनि दइ छलिऐ तहिना आब घरोवालीकेँ आनि देबै। कियो हमरा देखा दिअ तँ जे एक्को दिन हमरा काजमे नागा भेल। गोसाँइ डुमै बेर, केतौ रही, केतबो पीब कऽ बुत्त रही मुदा तँए की अपन काज कहियो छोड़ै छी...?
मटकुरियाक परिवारक खानदानी जीविका चुनक। महिला प्रधान रोजगार। किएक तँ चुनक बिकरी अँगने-अँगने होइत। शुद्ध गमैआ बेवसाय। ने चुन बनबैक समान बाहरसँ अानए पड़ैत आ ने बेचैक असुविधा। गामक अधिकांश परिवारमे चुनक खर्च। कियो पान खाइत तँ कियो तमाकुल। दुनूमे चुनक जरूरति‍। चुन बनाएबो कठिन नै। डोका जरा कऽ बनैत। अन्नेक कोठी जकाँ डोको जरबैक कोठी होइत। मुदा अन्नक कोठीक ऊपरमे छोट मुँह अन्न ढारैले बनौल जाइत, जहन‍‍ कि चुनक कोठीक ऊपरका भाग खुलल रहैत। निच्चाँक मुँह दुनूक एक्के रंग। कच्चो मालक कमी नहियेँ। किएक तँ गरीब-गुरबा लोक डोकाक मासु खाइत। मासुओ पवित्र। किएक तँ डोका माटि खा जीवन-बसर करैत। डोकेक ऊपरका भागसँ माने खपलौइयासँ चुन बनैत।
चुनक बजारो गामे-घर। बिरले गोटेक घरमे चुनक खर्च नै होइत, नै तँ सबहक घरमे होइत। पहिने मटकुरियाक दादी-परदादी चुन बेचै छेली, मुइलाक पछाति माए बेचए लगलनि‍। सात दिनक सप्ताहमे पाँच दिन मखनी भौरी गामे-गामे करैत छेली। एक-एक गाममे एक-एक दिनक पार बनौने। आठ दिन खर्चक हिसाबसँ सभ कियो चुन किनैत। सभ काज अन्दाजेसँ। अन्दाजेसँ चूनो दैत आ अन्दाजेसँ -धान-मरूआ- बेचो लैत। कोनो हरहर-खटखट नै। किएक तँ मनक उड़ान छोट। ने कोठा-कोठीक इच्छा, ने सुख-भोगक। बान्हल मन तँए मात्र मनुख बनि जीबैटा क इच्छा।
बजारोक प्रतियोगिता नै। कारोबारमे छीना-झपटी नै। किएक रहतै। जहिना जातिक शासन तहिना समाजक दंडात्मक रूखि। समाजमे निश्चित जाति निश्चित काजसँ बान्हल। एकक काज दोसर नै करैत, तँए लक्कड़-झक्कड़ कम। जेना डोम, नौआ, धोबि, बरही कुम्हार इत्यादिक अपन-अपन जीविकाक धंघा। जे कड़ाइसँ पालन होइत। दुनू बिन्दुपर। कराओलो जाइत आ करबो करैत। सीमित क्षेत्रक बीच कारोबार। कियो अतिक्रमण नै करैत। जँ कहीं- केतौ अतिक्रमण होइत तँ जातिक बीच ओकर फरिछौट होइत। तँए सभ अपन-अपन सीमाक भीतर रहैत। हँ, ई बात जरूर होइत जे सीमाक भीतर भैयारीक बँटबारासँ विभाजित होइत। मुदा मटकुरियाक परिवार एक पुरिखियाह, तँए एहेन प्रश्ने नै। रोजगारो लेल तहिना। सबहक अपन-अपन सीमित क्षेत्र। एक क्षेत्रमे दोसरक प्रवेश बर्जित। मुदा बेर-बेगरतामे एक-दोसराकेँ भार दऽ समाजक काजमे बाधा उपस्थिति नै हुअए दैत।
चुन बेचि मखनी खाली परिवारे नै चलबैत। महाजनीओ करैत। किएक तँ सोलहो आना श्रमे पूजी। मेहनति‍ कऽ डोका एकत्रित करैत। डोका जरा कऽ चुन बनबैत। आ अन्नसँ चुन बदलैत। चुनक कीमतो अलग-अलग। जैठाम गरीब लोक चुनक कम कीमत दैत तैठाम सुभ्यस्त किछु बेसीए दैत। पाँचे गोटेक परिवार मखनीक। केते खाएत। तँए फजिलाहा अन्न सबाइपर लगबैत। सेहो बिनु लिखा-पढ़ीक। मुँह जवानी। जइसँ किछु ऊपरो होइत किछु बुड़िओ जाइत। पाँच गाममे मखनीक कारोबार। अगर जौं ऐसँ आगू कारोबार बढ़बए चाहती तँ सम्हारले ने हेतनि‍। किएक तँ डोका जमा करैसँ चुन बनबै धरिमे दू दिन समए लागि‍ जाइत। आठे दिनपर बिकरीक बीट घुमैत। तँए पाँच गामसँ बेसी गाम सम्हारब कठिन।
टाँग अबाह होइते मखनी चुन बेचब छोड़ि देलनि‍। मुदा परिवारक रोजगार बन्न नै भेलै। आब फुलिया बेचए लागलि। चिन्हार गाम चिन्हार गहिंकी। तँए केतौ बाधा नै। मुदा मखनीक महाजनी बुड़ि गेलनि‍। किएक तँ पाँचो गाममे पाँच गोटे ऐठाम अपन धान-मरूआ रखै छेली, ओइठामसँ ओइ गाममे सबाइ लगबै छेली। अपन आवाजाही बन्न भेने बिसरि गेली। लेनिहारो बिसरि गेल। मुदा तइले मखनीक मनमे दुख नै भेलनि‍। खुशीए भेलनि‍। खुशी ऐ दुआरे भेलनि‍ जे जाबत देहमे तागत छेलए ताबे अपनो, परिवारो आ दोसरोकेँ खुऔलौं। जिनगीक सार्थकता ऐसँ बेसी की हएत। यएह ने धरम छी। धर्ममय जिनगी बना बुढ़ाड़ी धरि जीब लेलौं, ऐसँ बेसी की चाही...।
तँए मोने-मन खुशी। समए आगू बढ़ल। कारोबारक रूपो बदलल। केना नै बदलैत? समैओक तँ कोनो ठेकान नै। कोनो साल अधिक बर्खा होइत तँ कोनो साल रौदी। अधिक बर्खा भेने तँ अधिक डोकाक वृद्धि होइत। मुदा रौदीमे कमि जाइत। बिसबासू कारोबार लेल वस्तुक उपलब्धि अनिवार्य। जे आब नै भऽ पबैत। मुदा समैओ तँ पाछू नै आगू मुहेँ ससरत। पत्‍थल-चूना बजारमे आबि गेल। पर्याप्त वस्तुक उपलब्धि भऽ गेल। बाजारो बढ़ल। जैठाम उमरदार लोक तमाकुल-पान सेवन करै छला तैठाम आब स्कूल-कौलेजक विद्यार्थी सेहो करए लगल। तेतबे नै बाल-श्रमिक सेहो करए लगल। गामे-गाम चौक-चौराहा बनि गेल। जइसँ चाह-पान खेनिहारो बढ़ल। ओना तमाकुल-पानक अतिरिक्त पान-पराग, शिखर, रंग-बि‍रंगक गुटका सेहो बढ़ि गेल। तेकर अतिरिक्त सार्वजनिक उत्सव सेहो बढ़ल। परिवारक मांगलिक काज बि‍आह, मूड़न, सराध, सेहो नम्‍हर भेल। जइसँ पान-तमाकुलक खर्च बढ़ल। तँए चुनोक खर्च केते गुणा बढ़ि गेल।
मखनीक जगह फुलिया लेलक। ओना घरक रोजगार तँए फुलियोकेँ किछु सीखैक जरूरति‍ नै। सभ बुझले। सासुक रहितो, कहियो-काल फुलियो बेचए जाइ छलि। किएक तँ जइ दिन मखनी नैहर जाइत तइ दिन फुलीये बेचैओले जाइत आ डोका आनि-आनि चुनो बनबैत। मुदा आब चुन बनबैक रूपे बदलि गेल। लोको डोकाक चुनक बदला पत्‍थल-चूना खाए लगल। ओना अखनो बूढ़-बुढ़ानुस सभ पत्‍थल-चूनाकेँ घटिया बुझैत। जे तेजी डोकाक चुनमे होइत ओ पाथरक चुनमे नै। मुदा हारल नटुआ की करत।
चुन बेचैक रूपो बदलल। अखनि‍ धरि जे अंदाजसँ बिकरी होइ छल ओ आब तौल कऽ हुअ लगल। बेचक जगह पाइ लेलक। ओना अन्नोक चलनि सोलहन्नी समाप्त नहियेँ भेल हेन। आब ओतबे अन्न पड़ैत जे आनठाम रखैक जरूरत फुलियाकेँ नै होइत। पाइ बौगलीमे रखैत आ अन्न पथियामे। ओना कर्जखौक सेहो कमल। किएक तँ समए आगू बढ़ने खाइ-पीबैक उपए सेहो लोककेँ भेल। बोइन सेहो सुधरल। पाइक आमदनी किसानोकेँ हुअ लगल। लोकक पीढ़ि सेहो बदलल। जइसँ विचारोमे बदलाउ आएल।
सएक आगू बढ़ने कारोबार असान भेल। जइसँ मटकुरियाक परिवार सेहो आगू मुहेँ ससरल। मुदा मटकुरिया जहिनाक तहिना रहि गेल। पहिने जे मटकुरिया माए संग डोका अानै छल ओ आब एक्केठाम बजारसँ चुन कीनि कऽ लऽ अबैए। सूखल चुन। सूखल चुनकेँ गील बनबैमे सेहो अधिक फीरिसानी नहियेँ ।
फागुन मास। शिवरातिक तीन दिन पछाति। धुरझार लगन चलैत। मेला जकाँ बरियाती चलैत। अंग्रेजीबाजा आ लाउडस्पीकरक अवाजसँ वायुमंडल दलमलित। आइ सबेरे -आन दिन चारि बजे- मटकुरिया पसिखाना विदा भेल। समैओ सोहनगर। झिहिर-झिहिर हवा चलैत। अकासमे जहिना चिड़ै गीत गबैत तहिना हवामे गाछ-बिरिछ नचैत। पसिखाना पहुँचि‍ते मटकुरियाकेँ पासी कहलक-
“भैया, आइ निम्मन बसन्ती माल अछि, खजुरिया नै ताड़क।
पासीक बात सुनि मटकुरियाक मनमे खुशी उपकल। मोने-मन सोचलक, दू गिलास आरो बेसी चढ़ा देबै, बाजल-
“तब तँ आइ जतरा नीक बनल अछि।
“अहाँ तँ हमर पुरान अपेछित छी भैया, तँए दू गिलास ओहिना मङनीए पिआएब।
दू गिलास मङनी सुनि मटकुरिया सोचलक जे पहिल दिन छिऐ तँए आन दिनसँ कम केना लेब? यात्रा तँ पहिलुके दिन नीक होइ छै। वेचाराकेँ सगुन केना दुरि करबै। मुस्की दैत कहलक-
“बड़बढ़ियाँ। अपनो मिला कऽ नेने आबह।
वसन्ती ताड़ी, पीबिते मटकुरियाकेँ रंग चढ़ए लगल। ताड़ी पीब मटकुरिया सोझे, पसिखन्नेसँ, पत्नीकेँ माथ परक पथिया अानए दछिन मुहेँ विदा भेल। गामक दछिनबरि‍आ सीमापर ठाढ़ भऽ आगू तकलक। जेते दूर नजरि गेलै तैबीच केतौ पत्नीकेँ अबैत नै देखलक। कनीकाल पाखरिक गाछ लग ठाढ़ भऽ सोचए लगल जे आगू बढ़ी वा एतै रूकि‍ जाइ। अंग्रेजी बाजा आ लाउडस्पीकरक फिल्मी गीत कानमे पैसि-पैसि मनकेँ डोलबैत। मन पड़लै अपन बि‍आह। बिआह मन पड़िते फुलियाक रूप आगूमे ठाढ़ भऽ गेलै। गुनधुन करैत सोचलक जे ऐठाम ठाढ़ भऽ कऽ समए बिताएब, तइसँ नीक जे आरो थोड़े बढ़ि जाइ। आगू बढ़ल। किछु दूर आगू बढ़लापर पत्नीकेँ अगिला गाम टपल अबैत देखलक। बाधो कोनो नम्‍हर नै। फुलियाक नजरि सेहो मटकुरियापर पड़ल। दुनूक डेग तेज भेल। तेज होइक दुनूक दू कारण। मटकुरियाक मनमे जे जेते जल्दी लगमे पहुँचब तेते जल्दी भार उतरतै। जहन‍‍ कि पसीनासँ नहाएल फुलियाक मनमे शान्ति। शान्ति अबिते पथिया हल्लुक लागए लगलै। दुनूक मनमे केतेको नव-नव विचार अाबए लगलै...।
लग अबिते मटकुरिया धोतीक ढट्ठा सरिऔलक। किएक तँ माथपर भारी एलासँ डाँड़क धोती डाँड़मे बैसि जाइत। ढट्ठा सेरिया गमछाक मुरेठा बान्हि दुनू हाथसँ पकड़ि फुलियाक माथ परक पथिया अपना माथपर लेलक। माथपर लइते किछु कहैक मन मटकुरियाकेँ भेलै। मुदा किछु बाजल नै। किएक तँ फेर मनमे एलै, वेचारी थाकल अछि, तँए मन अगियाएल हेतै। हो-ने-हो किछु करुयाएल बात बाजि दिअए। जहन‍‍ कि एकाएक माथ परक भार उतरलासँ फुलियाक मन हल्लुक भेल। मुदा ऊहो किछु बाजलि‍ नै, ओहिना देह कठियाएल। आगू-पाछू दुनू बेकती घर दिस विदा भेल। जेते आगू बढ़ैत तेते फुलियाक मन हल्लुक होइत आ मटकुरियाक मन भारी। पत्नीसँ किछु कहैक विचार मटकुरियामे कमए लगल। जेना मुँह खोललासँ भारी बढ़त। मुदा जेना-जेना आगू बढ़ैत तेना-तेना फुलियाक देहो-हाथ सोझ होइत आ पतिकेँ किछु कहैक मन सेहो होइत। मुदा किछु बजैत नै। किएक तँ पति-पत्नीक बीच गप्पक आनंद तहन‍‍ होइत जहन‍‍ दुनूक मन सम -ने बेसी सुख आ ने बेसी दुख- होइत। से अखनि‍ धरि दुनूक –बीच नै भेल छेलै। एते काल फुलियाक माथपर पथिया रहने मन पीताएल तँ आब मटकुरियाक हुअ लगल। ने फुलिया पतिकेँ किछु कहैत आ ने मटकुरिया पत्नीकेँ। मुदा बि‍च्‍चेमे रस्ता बाध अबैत-अबैत दुनूक मुहसँ हँसी निकलल। पथिया नेनइ मटकुरिया पाछू घूमि कऽ तकलक तँ देखलक जे फुलिया मुस्किया रहल अछि। फुलियोक नजरि मटकुरियाकेँ मुस्कियाइत देखलक। एक टकसँ एक-दोसरपर आँखि गड़ौने अपन जिनगी देखए लगल।

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