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Friday, October 18, 2013

बाबी (दोसर संस्‍करण)

बाबी

दुर्गापूजा शुरू होइसँ एक दिन पहिने घर छछाड़ै आ दियारी बनबैले सिरखरियावाली बुढ़िया गाछीक मटि-खोभसँ मनही छिट्टामे चिक्कनि माटि नेने अँगना अबै छेली। रस्ते कातक चौमासक टाटपर बाबी करैला तोड़ैत रहथि आकि सिरखरियावालीक नजरि पड़लनि‍। नजरि पड़िते ओ एक हाथे छिट्टा पकड़ने आ दोसर हाथे चाइनिक घाम आँगुरसँ काछि कऽ फेक बाबीकेँ कहलनि-
बाबी, छठिकेँ केते दिन छै?”
बाबीक नजरि जुआएल आ सड़ल करैलापर छेलनि। किएक तँ अजोह करैला तीतो बेसी आ सुअदगरो कम होइए। तेतबे नै, पकैओक डर। सड़ल करैला सभकेँ ऐ दुआरे लत्तीकेँ बिहिया-बिहिया ताकथि‍ जे जँ ओकरा तोड़ि नै लेती तँ दोसरोकेँ सड़ाैतनि‍। सिरखरियावालीक अवाज सुनि बाबी रस्ता दिस देखि पुनः करैला ताकए लगली। किएक तँ माथपर भारी देखि गप-सप्‍प करब उचित नै बुझलनि। एक तँ भरल छिट्टा माटि तैपर खुरपी गाड़ल देखलखिन। मोने-मन सोचलनि जे छठिक अखनि‍ मासोसँ बेसीए हेतै तहन‍‍ एहेन कोन हलतलबी बेगर्ता भऽ गेलै। जौं महि‍ना- परि‍व-ति‍थि‍ जोड़ि कऽ कहए लगब तँ अनेरे देरी हेतै। जेते देरी लगतै तेते भारीओ लगतै। तँए बाबी आँखि उठा कऽ देखि बिनु किछु कहनइ, नजरि निच्चाँ कऽ लेलनि। मुदा सि‍रखरि‍ओवाली रगड़ी। मनमे होइ जे अखनि‍ नै बूझि लेब तँ फेर बिसरि जाएब। जँ बिसरि जाएब तँ किछु-ने-किछु छुटिए जाएत। अखनि‍ तँ मटिखोभमे मन पड़ल जे पौरुका दशमीएक मेलामे तीनटा कोनियाँ एकटा सूप आ एकटा छिट्टा कीनि नेने रही। जइसँ छठि पावनि केलौं। बाबीक नजरि निच्चाँ केने देखि सिरखरियावाली दोहरा कऽ टोकलकनि‍-
“गरीब-दुखियाक बात आब थोड़े बाबी सुनै छथिन, जे सुनतीहि‍न।
सिरखरियावालीक बात बाबीक करेजकेँ छूबि लेलकनि। मुदा क्रोध नै भेलनि सिनेह उमड़ि गेलनि। एकाएक बाबी अपन बोली बदलि लेलनि। चौअन्निया मुस्की दैत कहलखिन-
“कनियाँ, मनमे आएल जे चारिटा करैला तोरो तरकारीले दिअ। तँए हाँइ-हाँइ करैला ताकए लगलौं। कनीए ठाढ़े रहऽ?”
सिरखरियावाली-
“जे पुछलियनि से कहबे ने करै छथि आ करैला दऽ कऽ फुसलबैले चाहै छथि।
विचित्र अन्तर्द्वन्द बाबीक मनकेँ घोर-मट्ठा करए लगलनि। एक दिस माथपर भारी देखथिन आ दोसर दिस आइसँ छठि धरि जोडै़क समए। तहूसँ उकड़ू बूझि पड़नि‍ जे सोझ मासक सबाल नै अछि। दू मास बीचक बात छी। सेहो एहेन मास जइमे लुंगीयाँ मिरचाइक घौंदा जकाँ पावनिक घौंदा अछि। जाधरि सभ सोझरा कऽ नै कहबै ताधरि अपनो मन नै मानत आ ऊहो नै बूझत। ताल-मेल बैसबैत कहलखिन-
“कनियाँ, अखनि‍ जाउ। हमहूँ तीमनक ओरियानमे लगल छी आ अहूँक माथपर भारी अछि।
सिरखरियावालीक मनमे होइ जे छठि सन पावनि छी, जौं हिसाबसँ ओरियान नै करैत जाएब तँ कएटा चीज छुटिए जाएत। आन पावनि जकाँ तँ छठि हल्लुक नै अछि। बड़ ओरियान, बड़ खर्च छै एेमे। बाजलि-
“दशमी मेलामे जे कोनियाँ, सूप, छिट्टा कीनि नेने रहै छी तँ बुझै छिऐ जे एते काज अगुआएल रहैए।
बाबी-
“कनियाँ, एकटा काज करू। छिट्टाकेँ निच्चाँमे रखि‍ दियौ जे अहूँक देह हल्लुक भऽ जाएत आ हमरो हिसाब जोड़ि-जोड़ि बुझबैमे नीक हएत।
“बाबी, भारी उठबैत-उठबैत तँ माथ सुन्न भऽ गेल अछि। ई माटि केते भारी अछि।
“कनियाँ, बहुत हिसाब जोड़ि कऽ बुझबए पड़त।
“ओते अखनि‍ नै कहथु। खाली छठिएटा कहि दथु। गोटे दिन निचेनसँ आबि कऽ सभ बूझि लेब।
आँगुरपर बाबी हिसाबो जोड़थि‍ आ ठोर पटपटा कऽ बजबो करथि-
“आइ आसिनक अमवसीए छी। आइए भगवतीकेँ हकारो पड़तनि आ बघा-सँपहाक निमिते खाइओले देल जेत्तै। काल्हि कलशस्थापनसँ दुर्गा पूजा शुरू हएत जे नओ-दस दिन धरि चलत। दशमी तिथिकेँ यात्रा हएत। तेकर पाँचे दिन पछाति‍ कोजगरा हएत। कोजगरा परातसँ कातिक चढ़त। कातिक अमावश्याकेँ दियाबाती.... लक्ष्मी पूजा.... कालीपूजा। परात भेने गोधन पूजा, दोसर दिन भरदुतिया आ चित्रगुप्तो पूजा। भरदुतिया प्रातसँ छठिक विधि शुरू भऽ जाएत। पहिल दिन माछ-मरूआ बाड़ल जाएत.... दोसर दिन नहा कऽ खाएल जाएत.... तेसर दिन खरना.... चारिम दिन छठिक सौंझुका अर्घ। पाँचम दिन भिनसुरका अर्घ भेलापर उसरि जाएत। आँगुरपर गनैत-गनैत बाबी बजली-
“कनियाँ, सबा मास करीब छठिक अछि।
“सबा मास केते भेलै बाबी?”
“दू बीसमे तीन दिन कम।
“हम तँ सभ बेर दशमीए मेलामे कोनियाँ, सूप, छिट्टा कीनि लइ छी। तेकरा कए दिन छै?”
“सात पूजाकेँ भगवतीकेँ डिम्‍हा पड़लापर मेला शुरू भऽ जाइए। जेकरा आठ दिन छै। मुदा एकटा बात पुछै छिअ जे एते अगता किए किनै छह? ताबे ऐ पाइसँ दोसर-तेसर काज करबअ से नै। जहन‍‍ पावनि लगिचा जेत्तै तहन‍‍ कीनि लेबह?”
“पहिने किनलासँ दू-पाइ सस्तो होइए आ एकटा चीजोसँ निचेन भऽ जाइ छी। एक बेर अहि‍ना नै किनलौं तँ भेबे ने कएल। आब की करितौं तहन‍‍ पुरने कोनियोँ-सूपो आ छिट्टोकेँ चिक्कनसँ धोइ देलिऐ आ ओहीसँ पावनि कऽ लेलौं।
सिरखरियावालीक बात सुनि बाबी बेवहार दिस बढ़ली। मोने-मन बुदबुदेली- छठि पावनिक महात्म्य बहुत बेसी अछि। खास कऽ किसान लेल। एक दिस पूर्वजक मिठाइ-पकवान तँ दोसर दिस डोमक बनौल कोनियाँ, सूप, छिट्टा। तेसर दिस कुम्हारक बनौल कूड़ -बिनु मोड़ल कान, पनिभरा घैलमेमे मोड़ल कान होइत, जइमे चौमुखी दीप जरैत। ढकना, सरबा। तँ चारिम दिस अपन उपजाैल फल-फलहरी, तीमन-तरकारीक वस्तु संग मसल्लोक वस्तु। बहुतो अछि। तैपर सँ डुमैत सुरूजक पहिल अर्घ। मोने-मन वि‍चारि बाबी चुप्पे रहली। मनमे भेलनि जे ई तँ ओइ इलाकाक छी जइ इलाकाक स्त्रीगण रौद-बसातकेँ गुदानिते ने अछि। खेतक काज करैमे भुते। भगवानोकेँ हारि मनबैवाली। बाबीक मनमे होन्‍हि‍ जे चुप भऽ गेलौं तँ वेचारी चलि जाएत।
मुदा ले बलैया, ई तँ काग-भुसुण्डी जकाँ डूमि‍ गेल। भानसकेँ अबेर होइत जाइत देखि बाबीकेँ अकच्छ लगनि। जहन‍‍ कि हेजाक मरीज जकाँ, सिरखरियावालीकेँ पियास बढ़ले जाइत। अचता-पचता कऽ बाबी पुछलखिन-
“कनियाँ, बेटी सबहक हालत की छह?”
बेटी नाओं सुनिते सिरखरियावाली किछु मन पाड़ि बाजलि-
“बाबी, हिनकासँ लाथ कोन। तीनूक हालत हमरासँ नीक छै। भगवान गरदनि कट्टी केलनि तँए ने, ने तँ की हमहीं अहि‍ना रहितौं।
बाबी-
“भगवान केकरो अधला थोड़े करै छथिन जे तोरा केलखुन?”
मुड़ी डोलबैत सिरखरियावाली-
“तँ केलनि नै! हमरा पँच-पँच बरीसपर बच्चा देलनि। पाँच बरिसपर देलनि से नीके केलनि जे जहन‍‍ एकटा छँटि जाइ छल तहन‍‍ दोसर होइ छल। मुदा अगता तीनू बेटीए जे देलनि से गरदनि कट्टी नै केलनि। जँ अगता तीनू बेटा रहैत, नै तँ मेलो-पाँच करि कऽ तँ...। अखनि‍ ई भारी काज अपने करितौं की पुतोहु करितए। पचता बेटा भेल, जे अखनि‍ लिधुरिए अछि।
बाबी-
“जेठकी बेटीक सासुर केतए छह?”
“उत्तर भर। खुटौना टीशन लग। वेचारीकेँ खेत तँ कम्मे छै मुदा सभ तूर मेहनति‍या अछि। एक जोड़ा बड़द रखने अछि। दूटा लगहरि महिंस‍ खुट्टापर छै आ तीनटा पोसीयोँ लगौने अछि। अन्नो-पानि तेते उपजा लइए जे साल-माल लगिए जाइ छै।
बाबी-
“नाति-नातिन छह कि‍ने?
“हँ, तीनटा अछि। तीनू लिधुरिए अछि। तंग-तंग बेटी रहैए। तीनूक नेकरम करैत-करैत तबाह रहैए। तैपर सँ घर-गिरहस्तीक काज।
बाबी-
“दोसर बेटीक सासुर केतए छह?”
“पूभर। कोसी कात।
बाबी-
“कोसी कात किए केलह?”
“बाबी, जानि कऽ कहाँ केलिऐ। गाम तँ नीके रहए मुदा केतए-सँ-ने-केतएसँ कोसी चलि एलै। कोसीओ एलै तँ अन्न-पानिक कोनो दुख नै होइ छै। मुदा अपना सभ जकाँ चिष्टा नै। गाममे महिंस बेसी छै, जइसँ रस्ता-पेरा हेँक-हेँक भेल रहै छै।
बाबी-
“छोटकी?”
“पच्‍छि‍म भर, पाही। ई हम्मर रानी बेटी छी। जेते दिन ऐठाम रहैए रंग-बिरंगक तीमन-तरकारी खुअबैए। भानस करैक एहेन लूरि‍ दुनूमे केकरो नै छै। जहिना भानस-भात करैमे, तहिना बोली वाणी। गीतो-नाद जे गबैए, से होइत रहतनि जे सुनिते रही। तहिना चिष्टो चर्या, ओढ़बो-पहिरब।
बाबी-
“बड़ बेर उठलै। आब तहूँ जा।
“आइ हमरा गंजन लिखल अछि। विचारने छेलौं जे माटि आनि कऽ धान काटि आनब। गरमा धान से नहियेँ भेल। काल्हि फेर घरे-अँगना नीपैमे लागि‍ जाएब।
गामक सभ बाबीकेँ मेह बुझैत। छथि‍ओ। जँ केकरो मन खराब वा कोनो आफत-असमानी होइत तँ बाबी सभसँ पहिने आबि सेवा-टहलमे लागि‍ जाइत। तहिना जँ कहियो बाबीक मन खराब होइत तँ गामक लोक जी-जानसँ लागि‍ जाइत। किएक तँ सबहक मनमे ई अंदेशा बनल जे बाबीक मुइने गामक बहुत विधि-बेवहार समाप्त भऽ जाएत। ओन बाबी पढ़ल-लिखल नै, चिट्ठीओ पुरजी ने पढ़ल होइ छन्‍हि‍। जरूरतो नै। किएक तँ सालो भरिक पावनि आ ओकर विधि, संग-संग मांगलिक काज उपनयन, बि‍आह इत्यादि विधि कंठस्थ छन्‍हि‍। कोन गीत कोन अवसरपर गाैल जाएत, सभ जीपर राखल। तहिना पूजाक आराधनासँ लऽ कऽ आरती धरि।
सभ कि‍छु रहितो बाबीक मनमे एकटा कचोट समरथाइएसँ लगल रहि गेलनि। ओ ई जे एकटा बेटा भेला पछाति‍ दोसर सन्ताने नै भेलनि। अपन इच्छा रहनि जे एकटा बेटा, एकटा बेटी हुअए। मुदा बेटा तँ भेलनि मुदा बेटी नै। जे कचोट सभकेँ कहबो करथिन। कहथिन जे सृष्टिक विकास लेल पुरुष नारी दुनूक जरूरत अछि। नै तँ विकास रूकि‍ जाएत। ने एकछाहा पुरुषेसँ काज चलत आ ने एकछाहा नारीएसँ।
भरदुतियाक परात बाबी माछ-मरूआ बाड़लनि। काल्हि नहा कऽ खेती। परसू खरना करती। खरना पावनि‍ लेल बाबी सतरिया धानक अरबा चाउर सभ साल रखै छथि। किएक तँ पनरहे घरक टोलक खरनासँ लऽ कऽ घाटपर हाथ उठबै धरिक काज बाबीएक जिम्मा। मुदा खरना दिन गज-पट भऽ जाइ छन्‍हि‍। किएक तँ कियो महि‍क्का धानक अरबा चाउर आ गुड़ दइ छन्‍हि‍ तँ कियो मोटका धानक अरबा चाउर आ गुड़। अरबा तँ अरबे छी। मोटका-महि‍क्काक भेद नै। तँए बाबीकेँ खीर रन्हैमे पहपटि भऽ जाइ छन्‍हि‍। फुटा-फुटा कऽ केना करती। तँए सबहक अरबा चाउरकेँ खाइले रखि‍‍ लइ छथि आ अपन सतरिया चाउरसँ खीर रान्‍हि‍ खरना करै छथि। खाली खरने नै करै छथि, मनमे ईहो रहै छन्‍हि‍ जे परिवारक हिसाबसँ एते खीर घुमा दिएे जे घरमे चुल्हि नै चढै़।
षष्ठी। आइ सँझुका अर्घ हएत। तड़गरे बाबी सूति उठि कऽ पावनिक ओरियानमे लागि‍ गेली। बहुत चीज भेबो कएल आ बहुत बाँकीओ अछि। मुदा भरि दिन तँ ओरियबैक समए अछि। तैबीच डेढ़ियापर सँ बाबी, बाबी सुनलनि। मुदा टाटक अढ़ रहने बोली नै चीन्हि सकली। मनमे भेलनि जे आइ पावनि छी तँए कियो किछु पुछैले आएल हएत। ओसारेपर सँ कहलखिन-
“के छी। अँगने आउ।
पथियामे दूटा नारियल, पान छीमी केरा, दूटा टाभ नेबो, दूटा दारीम, दूटा ओल, दूटा अड़ुआ, दूटा टौकुना, दूटा सजमनि, एक मुट्ठी गाछ लागल हरदी, एक मुट्ठी आदी नेने रहमतक माए आँगन पहुँच‍ बाबीक आगूमे रखि‍‍ बाजलि-
“बाबी, अपनो डाली ले आ हिनको ले नेने एलियनि हेन।
पथियासँ सभ वस्तु निकालि ओसारपर रखि‍‍ निङहारि-निङहारि बाबी देखए लगली।
बच्चेमे रहमत बि‍मार पड़ल, ओकरे कबुला माए केने रहथिन। तँए पान सालसँ ऊहो छठि पावनि करै छथि‍। जे बात बाबीओकेँ बूझल। ओना बाबी अपने आँगनमे भुसबा, ठकुआ बनबथि‍। मुदा तेकर दाम रहमतक माए दऽ दन्हि। पथिया लऽ रहमतक माए विदा हुअ लगली की बाबी कहलखिन-
“कनियाँ, कनी ठाढ़ रहू। रतुका खरनाक नबेद नेने जाउ।
घरसँ केरा पातपर खीर आनि रहमतक माएकेँ दऽ देलखिन। हाथमे नबेद अबिते रहमतक माएक मन खुशीसँ नाचि उठल। बेटाकेँ निरोग जिनगी जीबैक आशा सेहो भऽ गेलनि। मोने-मन दिनकरकेँ गोड़ लागि विदा भेल। अँगनासँ निकलिते छलि की एक पाँज कुसियारक टोनी नेने परीछन पहुँच‍ गेल। एक टोनी बाबीकेँ आ एक टोनी रहमतक माएकेँ दैत सुरसुराएले निकलि गेल। किएक तँ अँगनेमे सभले टोनी बना नेने छल। बाबीकेँ कुसियारक टोनी दैत रहमतक माए कहलकनि-
“हमरा आइ हाट छी बाबी, तँए कनी देरीसँ घाटपर आएब।
बाबी-
“हम तँ छीहे कनियाँ, तइले तोरा किए चिन्ता होइ छह। दिनकर-दीनानाथ केकरो अधला करै छथिन, जे तोरा करथुन? अपन भरि निअम-निष्ठा रखैक चाही।
रहमतक माए चलि गेल।
बाबी फुटा-फुटा सभ वस्तु रखए लगली। तखने दछिनबरिया अँगनामे हल्ला सुनलखिन। ओसारपर सँ उठि डेढ़ियापर ऐली की सुनलखिन जे खुशिया बेटा केराक घौरसँ एकटा छीमी तोड़ि कऽ खा गेलै तइले माए चारि-पाँच खोरना मरलकै। बेटाकेँ कनैत देखि खुशिया घरवालीपर बिगड़ए लगल। तेकरे हल्ला छेलै। अपने डेढ़ियापर सँ बाबी कहलखिन-
“पावनिक दिन छिऐ। तहन‍‍ तूँ सभ भोरे-भोर हल्ला करै छह। दुधमुहाँ बच्चा जँ एक छीमी केरा तोड़ि कऽ खाइए गेलै तइले एते हल्ला किए करै छह।
बाबीक बात सुनि दुनू बेकती खुशिया तँ चुप भेल मुदा छौड़ा हुचकि-हुचकि कनिते रहल। तही बीच सोनरेवाली आबि बाबीकेँ कहलकनि-
“बाबी, नीक की अधला तँ हिनके कहबनि कि‍ने। देखथुन जे पाइ दुआरे ने छिट्टा भेल ने कोनियाँ।
सोनरेवालीक बात सुनि बाबी गुम्म भऽ गेली। कनीकाल गुम्म रहि कहलखिन-
“नै पान तँ पानक डंटीओसँ काज चलैए। जेकरा छै ओ सोना-चानीक कोनियाँमे हाथ उठबैए आ जेकरा नै छै ओ तँ बाँसेक सुपतीसँ काज चलबैए। तइले मन किए ओछ केने छह। सभकेँ की, सभ कि‍छु होइते छै। जेकरा जेते विभव होइए ओ ओते लऽ कऽ पावनि करैए। तँए की दिनकर केकरो कुभेला करै छथिन।
तैबीच दीपवाली पाँच बर्खक बेटाकेँ हाथ पकड़ने घिसियबैत पहुँच‍ कहलकनि-
“बाबी, देखथुन जे ई छौड़ा तेहेन अगिलह अछि जे हाथीकेँ पटकि देलकै। ई तँ गुण भेल जे एक्केटा टाँग टुटलै, नै तँ टुकड़ी-टुकड़ी भऽ जाइत।
मुस्की दैत बाबी कहलखिन-
“देखहक कनियाँ, ई सभ देखाबटी छिऐ। मनुखक मनमे श्रद्धा हेबाक चाही। ऐले बच्चाकेँ किए दमसबै छहक। छोड़ि दहक।
सुरूज उगले सभ घाटपर पहुँच‍ डाली पसारलक। नवयुवती सभ गीत गाबए लगली। हाथ उठौनिहारि पानिमे दुनू हाथ जोड़ि ठाढ़ भेली। एक्के तालमे ढोलिया ढोल बजबए लगल। पोखरिक चारू महार दीपसँ जगमगा गेल। परदेशीओ सभ छठि पावनि करए गाम आएल। एक गोटेकेँ नाच कबुला रहै ओ नाच करबए लगल। ताबे दूटा छौड़ा दारू पीब फटाका फोड़ए लगल। दुनू बेमत। एक गोटेक फटाकामे कम अवाज भेलै की दोसर पिहकारी मारि देलक। अपन डुमैत प्रतिष्ठाकेँ जाइत देखि ओ पिहकारी देनिहारक कालर पकड़लक। दुनू अपन-अपन परदेशीआ भाषामे गारि-गरौबलि शुरू केलक। गारि-गरौबलिसँ मारि फँसि गेलै। दुनू दुनूकेँ खूब मारलक।
दोसर दिन भिनसुरका अर्घ। खूब अन्हरगरे सभ घाटपर पहुँचल। हाथ उठौनिहारि पानिमे पैसिली। चौमुखी दीपसँ सौंसे प्रकाश पसरि गेल। सूर्योदय होइते दीपक ज्योति मलिन हुअ लगल। हाथ उठए लगल।
बच्चा-बुच्ची संग रहमतक माए पोखरिक महारपर आँचर नेने दुनू हाथ जोड़ि बाबीपर आँखि गड़ौने। तखने मुसबा गिलासमे दूध नेने पहुँचल। किनछरिमे पैसि एक ठोप, दू ठोप दूध सभ कोनियाँमे छि‍टए लगल।
हाथ उठा बाबी पानिसँ निकलि, साड़ी बदलि, छठिक कथा कहए लगलखिन। कथा कहि औंकरी छीटि पावनिक विसर्जन केलनि।
अखनि‍ धरि जे ढोलिया एक तालमे ढोल बजबै छल ओ समदाउनिक ताल धेलक। नटुओ समदाउन गाबए लगल।
सभ अपन-अपन कोनियाँ समेटि छिट्टामे रखि‍‍, ढोलियाकेँ एकटा ठकुआ एक छीमी केरा दऽ दऽ विदा भेल।

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