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Friday, October 18, 2013

(77) घूर

घूर


गोसाँइ डुमैक समए भऽ गेल छल। इसान कोणक हवा मध्‍यम तेज गतिए चलैत रहए। घुरिया सौन भेने जेठोसँ बत्तर समए जइसँ जरनोकाठी आ गोइठो-करसी सुखा कऽ हरनाठ भेल। माल-जालक थैरमे घूर पजारैक समए भऽ गेल छल। बजार जाइए काल बैकुण्‍ठ बाबा पोता -पुष्‍पानन्‍द-केँ कहि‍ देने रहथि‍न जे बौआ परि‍वार सरकारी आॅफिस नै छि‍ऐ जे अपने रहब हजार कोस हटल मुदा जि‍म्मा रहत ऑफिसक। परि‍वार परि‍वार छिऐ, तहूमे गि‍रहस्त परिवार। जइमे ने उचित अभ्‍यागतक समए ि‍नर्धारि‍त अछि‍ आ ने साँढ़-पाराक। तहूमे केतबो बन्‍हौटा गाए-महिंस किए ने हुअए मुदा डोरी टुटलापर वा खुजलापर किछु-ने-किछु मलैकिए जाइए। तहूमे गोटे-आदहे एहेन होइए जे बोनैया जकाँ सौंसे गाम मलकैत रहै छै। तँए जेते काल हम नै रहब तेते काल दुआरे-दरबज्जापर रहबो करिहह आ खाइओ पीबैले दिहक। पोसा माल-जाल अनठिया कुत्तो-बि‍लाइ देखि भड़कैए। तही काल खुट्टो आ डोरीओ टुटैक डर रहै छै। बाबाक बात सुनि पुष्‍पानन्‍द हँ-हूँ उत्तर नै दऽ मने-मन विचारए लगल जे जिम्मा तँ कि‍छु ने भेल मुदा समए बेठेकान भेने नम्‍हर भेल। कखनि बजारसँ औता कखनि नै, तैबीचमे खाली ओगरवाहिए आ खुआबैए-पीआबैक बात नै भेल, जेठुओ समैसँ समए दुरकाल होइए, नहाबैओ पड़त, घरो-बहार करए पड़त। तहूमे जँ कहीं पुरना संगी भेटलनि तँ घूमि कऽ एबो करता आकि नै। तखनि तँ दिनक कोन बात जे कएओ दिनक जिम्‍मा भऽ गेल। गप्पकेँ ओझराइत देखि पुष्‍पानन्‍द विचारलक जे कोनो कि अनभुआर काज अछि जे अबूह लगत, जिनका एते अजगजक भार रहतनि ओ अपने नै बुझथिन जे घरक समैक की महत छै। आ जँ एहेन संगी भेटि जान्‍हि‍ जे नोकरीसँ रि‍टायर भऽ आएल होथि, जिनका ने खेती-पथारी होन्‍हि आ ने माल-जाल? अपन खेती-वाड़ी, माल-जाल, फल-फुलवाड़ी तँ कि‍साने परिवारक अंग छी जे नोकरी-चाकरीमे नै अछि। तखनि तँ दुनू गोटेमे यएह ने समझौता हेतनि जे अपने ऐठाम चलल जाए जे सुच्चा दूधक चाहो पीब आ भरि पोख गप्‍पो हेतै। गप्‍पो कोनो छोट थोड़े हेतै, रजनी-सजनीक खिस्‍सा जकाँ सौंसे जुआनीक गप्‍प हेतै। खैर जे हौ। जाबे घूमि कऽ नै औता ताबे तकक भार। बेर खसिते माछी-मच्‍छर आबए लगै छै, ताबे धरि नै आएल रहता तँ घूरो कऽ लेब। सएह ने।
  हँसि गोसाँइ पाट होइत देखि पुष्‍पानन्‍द बीच थैरमे घूर लगौलक। जैठाम सभ दि‍न घूर लगौल जाइ छेलै। अनभुआर रहने पुष्‍पानन्‍द गदौसबला खढ़ आन दि‍नसँ घूरमे बेसी दऽ देलक। ओना करसीक हि‍साब ठीके रहै, कि‍एक तँ सबेरे बैकुण्‍ठ करसी रौदमे पसारि‍ देने रहथिन। खड़ाएल खढ़ रहने पजार पड़िते एक्के बेर धुधुआ कऽ चारूकात पकड़ि लेलक। हवा रहबे करै आगिक लुत्ती उड़ए लगलै। तखने बैकुण्‍ठ बाबा दरबज्जापर पहुँचला। घूरकेँ देखि साइकिल ओलतीमे ठाढ़ कऽ लोटा लऽ कलपर वि‍दा भेला। घूरमे पानि‍ छीटब जरूरी बूझि पड़लनि। ओना दरबज्जापर अबि‍ते घूर देखि मन करुआ गेलनि। आबि गेलौं तँए ने, नै तँ घर-दुआरमे आगि लगैत आकि नै? पोता एतबो नै बुझैए जे केते हवामे घूर लगाबी आ केतेमे नै लगाबी। मुदा जुआन-जहान पोता अछि, तहूमे कौलेजमे पढ़ैए। आनकेँ देखै छिऐ जे बाप-दादाक आगूमे बकटेंट जकाँ गप्‍पो करैए आ गँजो-भाँग पीबैए। भलहिं हमरा अखनि तक एहेन नै भेल मुदा समैक रोग तँ महामारी छी, केकरा पकड़त, के मरत आ के नै मरत तेकर कोन ठेकान छै। बाबाक मुँहक रूखि देखि पुष्‍पानन्‍द बूझि गेल। अपन ड्यूटी समाप्‍त बूझि टहलिए जाएब नीक बुझलक। अनेरे की बजता की नै तइसँ नीक जे ससरि‍ये जाएब हएत। दादी आँगनमे छथिए ओ बुझबे करथिन, औथि‍न। गुरक मारि जहिना धोकरा अँगेजने रहैए तहिना अंगेजल छन्‍हि‍हेँ, अपन दुनू गोरे फड़ियेता।
  घूरमे पानि छीटि आगि शान्‍त करैत बैकुण्‍ठ कपड़ा बदलि, कलपर हाथ-पएर धोइ दरबज्जापर आबि‍ बजारक समान मि‍लबए लगला। पति‍क चाल-चूल पाबि कमली आबि‍ पुछलकनि-
चाहो-ताहो पीब आकि पीनइ आएल छी?”
ओना बैकुण्‍ठक मन करुआएल रहनि मुदा पत्नीक बात सुनि तामस नै उठलनि। तामसक मुद्दा रहनि, हवामे घूर। क्रोध तँ मुद्दा-मुद्दापर अबैत जाइत अछि। ई तँ नै जे तामस उठल तँ उठले रहि गेल आ तैबीच घीबोक घैल ओहने आ ताड़ीओक घैल ओहने रहल। क्रोध तँ मुद्दा-मुद्दाक होइत अछि। तहू मुद्दामे जगह-जगहक सेहो भि‍न्न होइत अछि‍। ई तँ नै जे गाछक पात जकाँ कोनो एहनो होइत अछि‍ जे बि‍नु हवोक डोलैत रहैए आ कि‍छु एहनो होइत जे बि‍हाड़ि‍ओमे नै डोलैए। ई तँ ि‍नर्भर करै छै गाछक चालि-बेवहारपर। तँए ने एकटा के जड़िसँ टीकासन धरि‍ सि‍र लुधकल रहै छै आ दोसरमे सि‍रोक जगहपर जल्‍ले रहै छै। मनुखो तँ ओहिना ने अछि‍। मनकेँ थीर करैत बैकुण्‍ठ पत्नीकेँ कहलखिन-
हाट-बजारक चाह केहेन होइ छै, से नै बुझै छि‍ऐ, जँ पीबे केने हएब तँ ओकर मद्दीए केते हेतै।
हवामे मसुआएल खढ़-पात जकाँ पतिक बात सुनि कमली पोचाड़ा दैत बजली-
अनके जकाँ हमहूँ छी जे पुरुख रहैत हाट-बजारक चाह पीब, जँ चाहेक बनीमा कि‍छो घोड़ि दि‍अए आ पीवि‍ते-पीवि‍ते लटुआ जाइ, तँ की बनीमा पजिया कऽ नै पकड़त, तखनि अहाँक मोले कथी रहि जाएत?”
एक तँ करुआएल मन तैपर पत्नीक झमार बैकुण्‍ठकेँ बरदास नै भेलनि। झमाड़ि कऽ बजला-
मन थाकल अछि, कनी पानि पीब चाह पीब तखनि ने थीर हएत। निचेनसँ आगूक गप करब। गोर लगै छी अखनि जाउ। चाह बनौने आउ।
पतिक दुनू हाथ जोड़ल देखि सुपक भाँटाकेँ ऊपर फेकि सुपेसँ लोकैत कमली बजली-
पुरुखक हाथे जोड़ब की? ई तँ घोड़-मि‍लान छी। मुँहसँ हिहिया पाछू घूमि चौताल फेकब। गदहो जकाँ जँ चलै छी तैयो तँ एके रस्‍तासँ चलै छी। भरि दि‍नक काजक माला बना नेने छी आ ओकरे भिनसरसँ साँझ धरि‍ जाप करैत रहै छी।
पत्नीक भरिगर बोलसँ बैकुण्‍ठ अपनाकेँ झँपाइत देखि पाशा बदलैत बजला-
बजारक चीज-बौस सभ अछि‍, साँझ पड़ि गेने फेड़-फाड़ भऽजाएत। जाबे अहाँ चाह आनब ताबे हमहूँ सेरिआ लइ छी।
काजक मूर्त रूप देखि कमली बि‍नु कि‍छु बजने चाह बनबए आँगन विदा भेली। चीजे-बौस कि मासक अदहा किलो चाहपत्ती, चारि किलो चीनी, दू सए ग्राम सुपारी, बीस ग्राम खएर, पचास ग्रामक जर्दा डि‍ब्बा। तहूमे सभटा बँटले बाँटल अछि, रखि देब। मुदा अपने मनमे जे क्रोध ऐ रूपे तनल अछि जे घरमे आगि लगिए जइतए आ जिनगी भरिक कमेलहा जरिए जइतए। ई तँ काजक संयोग छल जे ओहो घूरमे आगि पजारलक आ हमहूँ एलौं। आखिर ओकरा अखनो धरि घूर लगबैक लूरि किए ने भेल, ई दोख केकर? की अपनो घूर लगबैक लूडि नै भेल आकि लगबैक लूरि बुझा नै पेलिऐ। जँ अपनालूरि नै रहैत तँ बारहो मास माल-जालक रक्छा केना करै छी। से तँ करै छी मुदा तखनि पुष्‍पानन्‍दकेँ लगबैक लूरिकिए ने भेल जे एक तँ घुरि‍या सौन भेने जेठोसँ बत्तर समए छै तैपर इसान कोणक मध्‍यमतेज(एक आ सएक बीच अनठानबे अंक मध्‍यम भेल, तँए तेज-मध्‍यम, मध्‍य मध्‍यम आ मध्‍यम।)हवा बहि रहल छै। खढ़-पातसँ लऽ कऽ घरक छप्पड़ धरि खड़ाएल अछि, तैठाम एहेन घूर लगाएब अनुचित भेल की नै? से तँ जरूर भेल। मुदा एहेन घूर ओ -पोता- जानि कऽ तँ नै लगौलक जे घर-दुआर जरि जाउ? तखनि ओकर दोख की भेल? गुम भेल असगरे दरबज्जापर बैसल बैकुण्‍ठ अपने काजक समीक्षा करए लगला।
  चौकपर पहुँचिते पुष्‍पानन्‍दक मन पुष्‍पानन्‍दकेँ धकलए लगल जे जेठुआ गरे जकाँ बाबाक नजरि रहनि तँए कोनो धार कोण लऽ कऽ बरिसेबे करता। से नै तँ रस्‍ते-रस्‍ता टहलैमे थोड़े देखता कनसोहो लऽ लेब आ टहलि‍ओ लेब। जँ कहीं सोझहामे पड़ता तँ कनी डेग झटका लेब जे बुझता कोनो काजे केतौ जाइए। नै तँ सासुरक डेग पकड़ि चलब। की सासुरक मद्धिम डेगे ने तँ जिनगीओक डेगकेँ दुबड़ा दइए? मुदा कोनो सुनि-गुनि नै पाबि‍ पुष्‍पानन्‍द तीन चक्कर लगा लेलक। मनो मानि गेलै जे दादीओ तेहेन लगारी छथि जे केहनो करियाएल मेघ किए ने हुअए ऊपरेमे सुखादेतनि।
  प्रश्न अछि जे बारहो मासक मालक थैरमे केहेन घूर लगौल जाए जे ओइ समैक माछी-मच्‍छरसँ रक्छा हेतै। माछीओ-मच्‍छर तँ रंग-बिरंगक अछि। के केहेन धुआँसँ भागत? तेतबे नै, घूरक धुआँ तँ हवाक संग चलै छै, तँए हवाक रूखि सेहो देखए पड़ै छै। मन घुमलनि। सौन मास। सौन तँ सौन छी। अनेक रूप अनेक चेहरा। एहनो होइत जे शीतल जल शीतल समीरक संग लहलहाइत खेतकेँ हरिअरी ओहन साड़ी पहीरि छमकैत रहैए जेना गदाएल खेसारी जकाँ गदाएल पेट मनकेँ भरने रहै छै। मुदा एहनो सौन तँ होइते अछि जे जेठुआ धुरा उड़बैत घुरिया सौन कहबैए। हँ से तँ कहबैए! तखनि? तखनि किछु ने! आइक सौन केहेन अछि ओ भेल विचारैक बात। अनेरे आगू देखब तँ पोता-पोती, नाइत-नातीन की खएत, की पहिरत, केना रहत? नै जौं पाछू घूमि ताकब तँ दर्जनो लाख बर्ख पहिने जनकक मिथिला तंत्रमार्गसँ प्रभावित हजार बर्खक मिथिला बनि वाड़ीए-झाड़ी नाचल घुमी, ईहो तँ नीक नहियेँ। खैर जे हउ, ने दुनियाँक ठेकान अछि जे केते आ केतेटा अछि आ ने लोकक ठेकान छै जे केहेन अछि। तखनि? हँ तखनि अछि जे अपन चौबीस घंटाकेँ निअमित जिनगीमे बान्‍हि आकाशीय सूर्य-चान जकाँ अपना धुरीमे निअमित चलि जिनगीक आदि-अन्‍त कऽ विसर्जित करी। जँ से नै तँ अखनि कम स्‍कूल कौलेज अछि तखनि तँ ई गति अछि जखनि बेसी हएत तखनि पूछत आकि धकियाएत? खैर जे हउ, अनेरे मनकेँ घोर-मट्ठा केने छी। तही बीच कमली चाह नेने एलनि। अनुकूल जगह पाबि बैकुण्‍ठ पुछलखिन-
हमरेटा ले अनलौं हेन?”
पतिक प्रश्न सुनि कमली ठमकली। मनमे उठलनि जे एना किए उटपटांग बात कहलनि। ऐठाम तँ दोसराइतकेँ नै देखै छी, तखनि? ओह! भरिसक मने चलिया गेलनि हेन। नै, मनमे अखनिसँ खट-खुट होइते रहत तइसँ नीक जे पुछि‍ए लियनि‍-
दोसराइत अछिए नै तखनि आरो चाह?”
कमलीक प्रश्न सुनि सि‍ताएल नढ़िया जकाँ बैकुण्‍ठ कहलखिन-
अहाँ?”
कमली मुहेँ लगल पुछलखिन-
अखनि धरि कहिया सोझहामे चाह पीलौं जे...?”
बैकुण्‍ठ कहलखिन-
अखनि धरि अपन वि‍चारकेँ अहाँ ऊपर थोपैत एलौं, मुदा जे काज अहूँ करै छी आ अपनो करै छी ओइ विषयमे बैसि कऽ विचार नै करै छी। से आइसँ शुरू करब। तँए कहलौं जे एकठाम बैसि चाहो पीब आ घूरक विषयमे गपो-सप्‍प करब।
पतिक बात सुनि कमली निधोख आँगनसँ चाह आनि आगूमे बैसि पीऐत पुछलखिन-
बाजू की उलझन अछि?”
बैकुण्‍ठ बजला-
उलझन कथी रहत, एक तँ रस्‍ताक झमारल बजारसँ आएले छेलौं आकि पुष्‍पा घूरमे आगि देलक। केना घूर लगौल छेलै केना नै, एक्के बेर तेना धधैक गेलै जे घरेमे आगि लगि जाइत। तखनेसँ मन खसल जाइए, तँए अहाँसँ विचार करब अछि।
पतिक गिरगिराइत मन देखि कमली अवसरकेँ हाथसँ नै दि‍अ जाए चाहैत, पुछलखिन-
पहिने ई कहू जे परिवारमे मालक थैर आकि जाड़क मास घर-ओसारक घूर पुरुख लगबै छला आकि औरत?”
कमलीक प्रश्न सुनि बैकुण्‍ठ आरो सकपका गेला। बजला-
दुनि‍याँ बड़ीटा छै आ बहुत लोको छै जइसँ बहुत रंगक विचारो छै। मुदा अपना परिवारमे तँ पहिने अहीं लगबै छेलौं, जहियासँ वर-बेमारीमे पड़लौं तहियासँ लगबै छी।
पतिक विवशता कमलीकेँ बूझि पड़लनि। मनमे उठलनि अर्द्धांगिनी। की अर्द्धांगिनी? मात्र सन्‍तान पैदा करब आकि जिनगीक अर्द्धांगिनी? खैर जे हउ, ठीके जिनगीक कोनो ठेकान नै अछि‍ नै तँ तेंसरे जे रोग धेलक से मरैमे बाधा रहए, ई तँ औरुदा बाँकी रहए जे बँचलौं। बजली-
देखियौ, मालक थैरमे बारहो मास घूर लगौल जाइ छै, आ घर-ओसारमे मात्र जाड़क मास। होइ छै की नै?”
हँ, होइ छै।
बारहो मास समैक हि‍साबसँ माछीओ-मच्‍छर होइ छै। दिनमे कमो-सम मुदा दि‍न लहसैत माल-जालक देहमे लुधकए लगै छै। कि‍छु एहेन माछी-मच्‍छर होइ छै जेकरा उड़ौल जाइ छै आ कि‍छु एहेन होइ छै जेकरा भगौल जाइ छै।
पत्नीक विचारकेँ सुहकारैत मुड़ी डोलबैत बैकुण्‍ठ बजला-
हँ से तँ होइ छै।
दलदलाइत पतिकेँ देखि कमली बजली-
आइक केहेन समए अछि तइ अनुसारे घूर लगौल जाएत। अपना ऐठाम रौदियाह समए अछि, जेठोसँ बत्तर अछि। माटि तक तबि गेल छै। जखनि माटि तबि‍ गेल तखनि माटिक ऊपरका तँ तबबे करत किने?”
हँ, से तँ तबबे करत।
तबैत-तबैत झड़कैओ लगत। झड़कनाइक माने भेल सुखाएब। कोनो वस्‍तुक सुखाइक माने भेल ओकर नमीक सूखब। आगिकेँ तँ पानिए दबैत अछि, जैठाम पानि‍ नै रहत तैठाम तँ बेनग्‍न भऽ आगि नचबे करत।
हँ से तँ नचबे करत।
जहिना जादूगर दर्शककेँ हिप्‍टोनाइज कऽ हँ-हँ करबए लगैए तहिना पतिकेँ हँ-हँ करैत देखि कमलीक मनमे उठलनि, गरदनिमे उतरी देखि केकरो घर-घराड़ी लिखाएब नीक नै, ओ समाज ठक छी, कहत जे माए-बापकेँ मुइला पछाति जेते नम्‍हर भोज करब तेते नम्‍हर जगह स्‍वर्गमे भेटतनि। बड़बढ़ियाँ। धर्मक काजमे सहयोग करी, ईहो बड़बढ़ियाँ, जखनि सराधक भोज धर्मक काज भेल तखनि जे सहयोग भेल ओ मदति किए ने भेल जे कर्ज बनि लोकक घर-घराड़ी लिखा गामसँ उजड़ि दइए? धु! अनेरे कोन लपौड़ीमे मनकेँ ओझरबै छी। अपन परिवारकेँ जेहेन बना समाजमे ठाढ़ रहब समाजक ओहन लकड़ीक खुट्टा जकाँ भेलौं। जेकरा छै ओ चाननो लकड़ीक धरैन, चौकठि-केबाड़ लगा घर बनबिते अछि।
  ऐ परिवारक कर्ता-धर्ता तँ अपने दुनू परानी ने भेलौं? जखनि मेहनति कऽ खाइ छी, दिन बितबै छी तइसँ जे समए उगड़ैए ओइमे दोसरोकेँ जहाँ धरि भऽ पबैए मदति करै छि‍ऐ। जँ अहिना समाजक सभ परिवार बनि जाए तखनि केहेन समाज हएत? मुदा समाज तँ देवदानवक भाँजमे पड़ि गेल अछि। जेकर कोनो ठेकान नै छै। कखनो दिनकेँ राति कहत तँ कखनो रातिकेँ दिन। जेना महाभारतक लड़ाइ काल भऽ जाइ। कखनो साँझक काज भोरमे करत तँ कखनो भोरुका काज साँझमे। विह्वल होइत बजली-
किसान परिवारमे घूरक अपन महत छै।
तैबीच पुष्‍पानन्‍द पहुँच गेल। पुष्‍पानन्‍दकेँ देखिते कमलीक मुँहसँ निकलल-
भने बौऔ आबिए गेल। घरक कोनो बात आकि काज जौं सभ विचारि कऽ करब तखने ने घरमे मतभेद नै हएत?”
जाधरि पुष्‍पानन्‍द नै आएल छल ताधरि तँ बैकुण्‍ठ पत्नीक विचारमे हूँहकारी भरै छला मुदा पुष्‍पानन्‍दक सोझहामे भरब उचित नै बूझि चुपे रहला। मुदा जहिना खिस्‍सा-पिहानीमे बाल-बोध पहिने हँूहकारी भरैत अछि तहिना पुष्‍पानन्‍द भरैत बाजल-
हँ, से तँ ठीके?”
पुष्‍पानन्‍दक हूँहकारी सुनि कमलीक मनमे उठलनि, आब पहिल श्रोता पति नै पोता भेल। तँए एहेन बाजी जे परिवारक हितक होइ, जे सबहक दायित्‍व बनै। बजली-
बौआ, बारह मासक साल होइ छै। छहटा रीति अपना ऐठाम होइ छै। मुदा सभ रीतक महत समान नै छै, दू-दू मासपर रीति सेहो होइ छै आ बिनु मासक सीमा परहक सेहो संक्रमण रीति होइ छै। मुदा मोटा-मोटी अपना ऐठाम तीनटा रीति कहि‍यौ आकि मौसम, जाड़, बरसात आ गरमी होइ छै।
  नव बात सुनि पुष्‍पानन्‍दक जिज्ञासा बढ़ल। जहिना बिनु ब्रेकक साइकिल ढलानपर चलौनिहारसँ बेकाबू भऽ जाइत तहिना पुष्‍पानन्‍दक मन ढलैक गेल। बाजल-
पहिने कोन भेल?”
पुष्‍पानन्‍दक प्रश्न सुनि कमली घबड़ेली नै पोखरि-इनारक पानि जकाँ थीर होइत बजली-
बौआ, ई बेठेकान अछि। चैतकेँ पहिल मास मानबै तँ गरमी पड़त, अखारकेँ मानबै तँ बरसात पड़त, नै जे कातिककेँ मानबै तँ जाड़ पड़त। मुदा तीनू मौसमकेँ अपन-अपन गुण-धर्म छै जे बरहमसीओ छै आ समइओ।
से केना बुझबै?”
बुझैले तँ दुनियाँ भरल अछि बाउ, मुदा परिवारक काजक बीच कहै छि‍अ। गरमी मौसममे जे घूर लगौल जाइ छै तेकर मुख कारण अछि माछी-मच्‍छरकेँ भगाएब। ओइ समए जाड़क मौसम बितल रहै छै, माछी-मच्‍छर ठि‍ठुरल रहै छै जइसँ ओकरामे जहर कम छै तँए विषैला कम होइ छै, मालो-जालक देहपर रहल तँ बूझि पड़ल जे खरहे-पात अछि। तैसंग हवा-बिहाड़िक मास सेहो होइ छै। तँए अधसुखू, खढ़ो-पात आ गोबरो-करसीक लगौल जाइ छै जे हवामे उड़बो ने कएल आ धुआँसँ माछीओ-मच्‍छर भगौत।
कमली दादी बजिते छेली आकि बिच्‍चेमे पुष्‍पानन्‍द टोकलकनि-
आ बरसातमे?”
बरसातक नाअों सुनि कमली ठमकि गेली। जेते ठेकनगर जाड़ आ गरमी मास अछि ओते बरसात कहाँ अछि। बरसा भेने बरसात नै तँ रौदी। गरमीओसँ असाध उमसल गरमी। एक तँ तरे-तर देहक पानि‍ओ सुखबैए आ दोसर आगिपर चढ़ल अदहन जकाँ बाहरो निकालि फेकैए। मुदा तइसँ कि जौं बेठेकानोकेँ ठेकानि-ठेकानि पकड़ी तँ ऊहो पकड़ाइए जाइए। मनकेँ थीर करैत बजली-
बौआ, नाना-नानी आकि दादा-दादीक बातकेँ, खिस्‍सा-पि‍हानीकेँ जँ ओहिना अनके जकाँ बुझबै तखनि हुनका सबहक अवहेलना हेतनि। नानी तँ नानी छथि। जिनका पेटमे आँखि बनबैओक शक्‍ति‍ छन्‍हि‍ आ बन्न आँखिकेँ सतमीक दुर्गा जकाँ डि‍म्‍हो दैक शक्ति‍ छन्‍हि‍। खैर जे हउ। बाउ, दुनियाँ बेठेकान अछि अनेरे अपनो बौआएब आ तोरो कथीले बौएबह। अपने बितल कहै छि‍अ। जहिना ऐबेर घुरिया सौन अछि, तहि‍ना बर्ख पाँचम सेहो भेल रहए। जहिना अपना ऐठाम घूर लगबै छी तहिना ऊहो मालक थैरमे लगौने रहए। बेठेकान लगौलक। हवा बहिते रहै अपने घरमे आगि लगि‍ गेलै। एके घरक आगि तेना ने पसरल जे सौंसे गामे लगि गेल। गामो सूर्ज मंडल! छणेमे छनाक भऽ गेलै!! खैर जेतए भेल तेतए भेल मुदा एते तँ बुझहए पड़तह जे समए केहेन अछि। ओना आन-आन मासक ठेकान करब थोड़े हल्‍लुक अछि मुदा सौनक भारी अछि।
जिज्ञासासँ जगैत पुष्‍पानन्‍द जोड़ैत बाजल-
की भारी अछि?”
पुष्‍पानन्‍दक प्रश्न सुनि बैकुण्‍ठ चौंकला। जेना केकरो कोनो बात नै बूझल रहल आ दोसराक मुहेँ सुनि होइत, तहिना पहिने पुष्‍पानन्‍दक चेहरापर नजरि खिरौलनि जेना कोनो बच्‍चाक पेट हसोंथि माए भूखक अनुमान कऽ लैत तहिना बैकुण्‍ठ केलनि। प्रश्नकेँ तौलैत नजरि पत्नी दिस बढ़ौलनि। मुदा जहिना बच्‍चाक उमेरक हि‍साबसँ दूध पि‍अबैले माए खुशी-खुशी तैयार होइत दुनू हाथ खेलाइत बच्‍चा दिस बढ़बैत तहिना कमलीकेँ देखि आँखि नि‍च्‍चाँ कऽ लेलनि।
शान्तचित्त होइत कमली कहलखिन-
बाउ, घूरक गप ताबे चौपेत कऽ रखि दि‍यौ। पहिने माछी-मच्‍छरक गप सुनि लिअ?”
दादीक जवाब सुनि पुष्‍पानन्‍दक मनमे ओहेन बात उठल जेहेन नटकिया सभ उठबै छथि।
पुष्‍पानन्‍दकेँ चुप देखि कमली बाजए लगली-
“माछी-मच्‍छरक काल नै बूझि सभ जीव जीवे छी बुझब नीक हएत। की मनुखक बच्‍चा बोन-झाड़मे आन जीव जन्‍तुक बच्‍चा जकाँ पला सकैए? खैर जे होउ। बाउ, सौनमे नाग पंचमी होइ छै, पहिल परवक पाँचिम दिन। ओइ दिनसँ माछीओ-मच्‍छर आ आनो-आनो बिनु-जहरीलोसँ जहरीला। विषवन होइ छै। तइसँ माछीओ-मच्‍छर आ आनो-आनमे बीखक संचार होइ छै। गरमी मासक माछी-मच्‍छर मरबो करैए आ वि‍सेबो करैए। मुदा जेकर जनम होइ छै ओ वि‍सेबे बेसी करैए तइसँ खूनो पीबैक शक्‍ति‍ बढ़ि‍ जाइ छै आ वि‍षक दर्द सेहो बेसी होइ छै।”
कमलीक बात अंतो ने भेल छेलनि आकि बैकुण्‍ठ बजला-
सभटा बात आइए पुष्‍पानन्‍दकेँ अशोकारिष्‍ट जकाँ एक्केबेर बोतल पीआ दि‍यौ। तखनि देखबै जे केते लाइग करै छै।
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