Pages

Friday, October 18, 2013

(73) ओझरी

ओझरी

कान्‍हपर डेढ़हत्‍थी ठेंगामे कुशक चारिटा आँठी गौंछ कऽ टँगने सुकला काका दू बाँस फड़िक्के रहथि‍ आकि नजरि पड़ल। ओना पाँच बजे भोरेसँ जेरक जेर लोक खुरपी-ठेंगा नेने कुश उखारए जाइतो छला आ उखाड़ि-उखाड़ि घुमि‍तो छला। तैबीच सुकला काका सेहो रस्‍ते–रस्‍ते दछिनसँ उत्तर मुहेँ बाधसँ घर दि‍स अबै छला। कनी फड़िक्के देखि‍ नजरि तँ हुनकेपर छल मुदा कि‍छु बजलौं नै। ताबे सहटि‍ कऽ एक बाँस आगू ओहो बढ़ला। कान्‍हपर कुशक भार रहनि‍ मुदा मन तीन मासक ओझराएल काजपर छेलनि तँए मनो खुशी छलनि‍ आ मुस्‍की सेहो ठोरपर छेलनि‍। खनहन मन, खरहड़ डेगक संग हरि‍अर मुँह देखि‍ भेल जे भरि‍सक सि‍रगर कुश असानीसँ उखड़लनि‍ तँए मन हरिआएल छन्‍हि‍। फेर भेल जे भरि‍सक धड़गर खुरपी हेतनि‍ तँए असानीसँ कुश उखड़ल हेतनि‍, तेकर खुशी हेतनि‍। गुन-धुन मन करि‍ते छल ताबे एक लग्‍गी लग चलि‍ एला। ओना कुश तँ कुशे छी कि‍यो जड़ि‍ भि‍रा सि‍र-ति‍र नेने उखाड़ै छथि‍ तँ कि‍यो ऊपरेसँ काटि‍ चटाइ बनबै छथि‍। उसरक उपजा तँ छीहे। जे जमीनमे आन कि‍छु ने उमझैत ओइमे कुशे उमझैए। लग अबि‍ते पुछलि‍यनि‍-
कक्काक, मन बड़ हरि‍अर देखै छी केतो कि‍छु पेलौं हेन?”
कक्काक कान्‍हपर कुशक भार मुदा अपन तीन मासक ओझराएल काजकेँ आरो ओझराएबपर छेलनि‍। पबैक नाओं सुनि‍ जेना ठोरेपर रहनि‍ तहि‍ना बजला-
पएब की, ने पेलौं आ ने पाबए देलि‍ऐ।
काका गपक कोनो अर्थे ने लगल, कि‍छु बुझलो रहैत तखनि‍ ने। मनमे भेल जे रस्‍ते-रस्‍ते अखनि‍ लोक चलैक ढबाहि लगल अछि‍, नीक हएत जे दरबज्‍जेपर बैसि नीक जकाँ पुछि‍ लियनि। कहलि‍यनि-
काका, अहाँ तँ टहलो-बुलब छोड़ि‍ देलि‍ऐ। दरबज्‍जेपर चलू, चाहो पीब लेब आ गाम-घरक कि‍छु गप्‍पो कऽ लेब।
चाहक नाओं सुनि‍ मन चपचपेलनि‍। किएक तँ डेढ़-दू घंटा बि‍लम भऽ गेल छेलनि। बजला-
चाहे नै पानिओ पीबह।
जहिना आग्रह केलि‍यनि तहि‍ना एक चेकी चढ़ा ऊहो मानि‍ गेला मुदा बीचमे एकटा उकड़ू काज तँ आबिये गेल। ओ ई जे पानि‍ पीबैक की माने। खेनाइसँ लऽ कऽ छुच्‍छे पानि‍ धरिक नमगर प्रश्न आबि‍ गेल। तत्-मत् करि‍ते रही आकि धाँइ दऽ सुकला काका बजला-
आँगनमे चाह बनबए कहि दहुन आ कलपर सँ एक लोटा पानि‍ नेने आबह।
सुनि‍ मन हल्‍लुक भेल। अपने आँगन दि‍स बढ़लौं आ ओ दरबज्‍जा परहक ओसारपर कुशक भारो आ खुरपीओ रखि‍ चौकीपर बैसला। कलपर सँ लोटा नेने आबि‍ आगूमे देलि‍यनि‍। देखि‍ते बजला-
आब की पानि पीबैक लोटो रहल, पहि‍ने जे धि‍या-पुताक लोटकी छल से भऽ गेल लोटा। कहि‍ उठा कऽ एक्के छाँकमे गट दऽ पीब गेला। भेल जे भरि‍सक छाँक नै पुरलनि। पुछलियनि‍-
एक लोटा आरो आनि‍ दी?”
मनाही करैत कहला-
आब किए अनबऽ। जेतबे अनलह ओतबे पि‍यासो छेलए। बैसह। की पुछए लगल छेलह?”
कक्काक हल्‍लुक मन देखि‍ भेल जे गप करैक मूडमे आबि‍ गेला, जँ पहि‍ने चाहो पीआ देबनि‍ तँ बि‍ना कौमे-फुलस्‍टौपक व्‍याख्‍यान दऽ देता। कहलि‍यनि‍-
पहि‍ने चाह पीब लि‍अ। गप-सप्‍प केतौ पड़ाएल जाइ छै।
तैबीच आँगनसँ चाह आएल। गि‍लास पकड़ैत बजला-
आइ कुशी अमावस्‍या छी, अदहा भादो बीति गेल।
कनी गुम होइत पुन: बजला-
केतेक धूअल-पखाड़ल पहिलुका लोक सभ छला जे एक दि‍न माघ बि‍तने नाचि बजै छला जे गेल माघ उनतीस दि‍न बाँकी। कहू जे ई कोन हि‍साब भेल। तीनि‍ओ-चौथाइसँ कम भेल। मुदा से नै, केते हुनका सभमे अडिग बि‍सवास छेलनि‍ जे जखनि‍ एक दि‍न माघ सन जाड़ काटि‍ सकै छी तखनि‍ उनतीस दि‍न कि‍ए ने कटत।
कक्काक बात सुनि भेल जे चाहेक ताउमे काका बहकि‍ गेला। मनमे कोनो प्रश्न अछि‍ आ ओ कि‍म्‍हरो बहकि गेला मुदा बीचमे टोकबो नीक नै। जखने रूकता तखने पुछबनि‍। गर अँटि‍ते पुछलियनि‍-
काका, ओ जे कहलि‍ऐ?”
जेना कक्काक नजरि‍सँ उतरि‍ गेल छेलनि‍। बजला-
की?”
ने अपने पेलौं आ ने पाबए देलि‍ऐ?”
सुनि‍ते जेना धक दनि‍ मन पड़लनि‍। बजला-
तीन मासक काज तेना ओझरा गेल जे ने अपने कि‍छु पेलौं आ ने आने कि‍यो पौलक।
से की?”
से की सुनि‍ते जेना सुकला काका पसीज गेला। जहि‍ना कोनो बच्‍चा वा सि‍यानकेँ बेथि‍त मनक बेथा कि‍यो सुनए चाहलापर पसीज जाइत तहि‍ना कको पसीज गेला। बजला-
तीन मासक जे ओझराएल काज छल ओकरा छोड़ि‍ देलि‍ऐ। जइसँ मनो हल्‍लूक भऽ गेल।
कक्काक झँपाएल-तोपाएल बातक कि‍छु अरथे ने लगल। मुदा जखनि‍ सोझहामे बैसि‍ले छथि‍ तखनि‍ पुछैओक तँ अधि‍कार अछि‍ए। ई नै ने जे जे बजलौं से सुनि‍ लि‍अ। दोहरा कऽ कि‍छु ने बाजब। जँ कोनो प्रश्न उठैत आ ओकर खण्‍डन-मण्‍डन नै होइत ता ओकर रस केना नि‍कलत। जाबे रस नै नि‍कलत ताबे कथी पीब रसि‍या बनि‍ रसाएब। पुछलि‍यनि‍-
काका, कनी फड़िछा कऽ कहि‍यौ। नीक जकाँ नै बूझि पेलौं?”
नम्‍हर साँस छोड़ैत काका बाजए लगला-
तीन मास पहि‍ने रेडि‍यो स्‍टेशनक एकटा अपेक्षित फोन केलनि जे काल्हि‍ कथा पाठक समए भेटल, से जरूर अबि‍ऐ। अखनि‍ अगुताएल छी। काल्हि‍ बारह बजे जखनि‍ पहुँचब तखनि‍ आरो गप हेतै।
कहि‍ फोन काटि‍ देलनि‍। कथा लि‍खि‍ते छी, बचि‍ते छी, ओतौ जा कऽ बाचि‍ देबै। मनमे कोनो बेसी लहरि नै उठल। घरमे केतेको कथा अछि‍ए, अपना दहीकेँ के खट्टा कहलक जे कहबै। जे मन फुड़त से कथा लऽ लेब जा कऽ पढ़ि‍ देबै। आरो की?
रेडि‍यो स्‍टेशनक नाओं सुनि‍ पुछलि‍यनि‍-
पहि‍नो कहि‍यो कथा-पाठ केने छेलि‍ऐ, आकि‍ पहि‍ल बेर छल?”
प्रश्न सुनि‍ काका ठमकि‍ गेला। जेना कि‍छु पेटक बात मने ने पड़नि‍ तहि‍ना कि‍छु समए घुरि‍याइत बजला-
पहि‍ल बेर छल। ओहो तँ भऽ गेल। नै तँ देखै नै छहक जे युनि‍वर्सिटी होइ आकि‍ कौलेज, सरकारी आॅफि‍स होइ आकि‍ कोनो संस्‍था, कि‍छु गाेटेक हाथक खेलौना बनि‍ गेल अछि‍। जहि‍ना सराधक भोज बुझै छै तहि‍ना मूड़न, उपनैन बि‍आहक भोज बुझै छै।
काकाकेँ बहकैत देखि‍ छोड़ तानि‍ पुछलि‍यनि-
काका, रेडि‍यो स्‍टेशन गेलि‍ऐ?”
जेना एकाएक काकाक नजरि‍ अपनापर पड़लनि‍। बजला-
किए ने जइतौं। जुआ पाशापर जाइकाल जहि‍ना युधि‍ष्‍ठि‍र कहने छला जे बजौलापर बीखो पीआ देत सेहो स्‍वीकार अछि‍। दोसर दि‍न सबेरे दस बजे खा-पी कऽ वि‍दा भेलौं। दस-पनरह मि‍नट बारह बजेमे बाँकीए रहए, तखने पहुँच गेलौं। चि‍न्‍हा-परि‍चएक अपेछि‍त छोड़ि‍ दोसर नै। मुदा ओहो बाटे तकैत रहथि‍। पहुँचि‍ते अपना आॅफि‍समे लऽ गेला। कुशल-समाचारक पछाति‍ कहलनि‍ जे कथा देखए दि‍अ। नम्‍हर कथा दसे मि‍नटमे केना पढ़ल जाएत। कम-सँ-कम अदहा घंटा समए चाही। गुन-धुन करैत कहला जे कि‍छु पाँति‍केँ नि‍कालि‍ दि‍यौ। कथा नम्‍हर अछि‍, समए कम। मनमे भेल जे पुछि‍यनि‍, एकटा कथा लि‍खैमे जेते समए लगै छै तेते दि‍न पहि‍ने ने जानकारी हेबाक चाही, हड़बड़ी बि‍आहमे तँ कनपटी सि‍नूर होइते छै। मुदा मनमे तेते खुशी रहए जे सभ बात तर पड़ि‍ गेल। कथामे सँ टोबि‍-टोबि‍ कि‍छु पाँति‍ नि‍काललौं। नि‍कालि‍ पुन: देलि‍यनि‍। मुदा नम्‍हर देखि‍ ओ अपनो नि‍काललनि‍। ताधरि‍ कथाक रूप कुरतासँ अधकुरता आ साँचीसँ फाँड़ धरि‍ पहुँच गेल।
पुछलि‍यनि‍-
तेकर पछाति‍ की भेल?”
बजला-
समए भेटल। कम्‍प्‍यूटरक आगूमे बैसलौं।
असगरे आकि‍ आरो कि‍यो?”
एके घरमे दू हन्ना अछि‍। बीचमे शीशाक देबाल लगल छै। देखि‍ तँ सभ सकै छी मुदा अवाज रूकि‍ जाइ छै। जखनि‍ बैसलौं तखनि‍ दोसर हन्नामे जे बैसल रहथि‍ ओ हाथक इशारासँ कहबोले करथि‍ आ चुपो होइले कहथि‍। होइत-होइत बीस मि‍नटमे कथा बि‍सरजन भेल। फेर कम्‍प्‍यूटरमे काट-छाँट भेल। बीस मि‍नट उतरि‍ कऽतेरह मि‍नटपर अँटकल। ताधरि‍ कथाक रूपे बदलि‍ गेल। जहि‍ना सजल-धजल देह अन्‍डर बीअरमे बदललासँ होइत तहि‍ना भऽ गेल। खैर जे होउ, नै मामासँ कनहो मामा तँ भेल।
पुछलि‍यनि‍-                 
पाइओ देलक?”
जेना केते भारी अधि‍कार भेट गेल होन्‍हि तहि‍ना गुम्‍हरैत बजला-
पाइ किए ने दइत। मुदा तइमे कि‍ भेल से सुनह। जहि‍ना सभ दूटा तीनटा, चारि‍टा अपन नाओं रखैए तहि‍ना दूटा नाओं अछि‍। दूटा कागतपर दू बेर हस्‍ताक्षर करौलक दुनूपर दुनू नाओं लि‍खि‍ देलि‍ऐ। दू घंटा पछाति‍ जखनि‍ वि‍दा होइपर भेलौं आकि‍ चेक बनौनि‍हार कहलनि‍ जे अहाँक दुनू हस्‍ताक्षर नै मि‍लैए, तँए चेक नै बनल। कहि‍ दोसर कागत फेर देलनि‍। हस्‍ताक्षर कऽ देलि‍ऐ। चारि‍ बजि‍ गेल। समए ओठर भऽ गेल। कहलनि, आइ चेक नै बनि‍ सकल। अहाँ जाउ, पठा देब। कहलि‍यनि‍, बड़बढ़ियाँ। वि‍दा भेलौं। वि‍दा भऽ गेलौं, मुदा ओझरीकेँ जनमौने एलौं।
एक ओझरी मेटाइत दोसर ओझरीक जनम सुनि‍ जि‍ज्ञासा भेल पुछलि‍यनि‍-
से की?”
मुदा कक्को सतर्क छला। बजला-
पहि‍ने जे कहै छिअ से सुनि‍ लैह नै तँ फेर बौआ जाएब। जखने कथ्‍थकर बौआइत तखने सुनक्कर वा पढ़क्कर तँ बौएबे करत कि‍ने?”
कहलि‍यनि‍-
हँ से तँ बौएबे करत।
बजला-
मन तेते तमकि गेल जे हुअए अखनि‍ जँ राजा रहि‍तौं तँ राज-पाट लूटा दइतौं। मुदा गाड़ी दुआरे पाँचे सए टाका अछि‍। किए तँ दि‍ल्‍लीमे बीसे रूपैआक जरूरति‍ होइ छै, अपना ऐठाम तँ से नै छै। पान सए तकक कारोबार छै। मुदा सेहो बि‍सरि‍ गेलौं। चारि‍ सए टका भरि‍ दि‍नमे गमा देलि‍ऐ।
हँ, तँ चेक पठौलनि‍ की नै?”
आखि‍र कि‍छु छि‍ऐ तँ सार्वजनि‍क संस्‍था ने छि‍ऐ। पोस्‍ट आॅफि‍सक माध्‍यमसँ बीस दि‍नक पछाति‍ पठौलनि‍। संस्‍थो तँ सार्वजनि‍के छी कि‍ने, सभकेँ अपन-अपन दायरा छै, अधि‍कार छै। बीस दि‍न पछाति‍ एकठामसँ चेक चलल दोसर ठाम बीस दि‍न फेर अँटकि‍, बेरहटि‍या करए लगल। खैर जे होउ मुदा हाथमे तँ एबे कएल।
बि‍च्‍चेमे काकाकेँ पुछलि‍यनि‍-
काका, तब तँ जीतलि‍यनि?”
जीतब सुनि‍ मीरा-राधा मन पड़लनि‍, एक जीतबे ने कएल दोसर हारबे ने कएल। मुस्‍की दैत बजला-
कागतोक रूपैआ बनै छै आ रूपैओ कागत बनि‍ जाइ छै।
उड़नखटोला गप सुनि‍ चकवि‍दोर जकाँ हुअ लगल मुदा जखनि‍ सोझहेमे छथि‍ तखनि‍ पुछि‍ऐ लेब नीक हएत। पुछलि‍यनि‍-
एना केना भेल?”
मचकीक आस मारि‍ बाजए लगला-
चेक जखनि‍ हाथ आएल तखनि‍ भेल जे रूपैए आबि‍ गेल। जँ दसटकही नोट दइत तँ एकथाक होइत तइसँ नीक जे बक्‍सामे जगहो ने छेकत। कोनो कि‍ताबमे घोंसि‍या देबै।
कक्काक बात सुनि‍ कहलि‍यनि‍-
बैंकमे नै जमा केलि‍ऐ?”
जेना केतौ काका हारि‍ चुकल छला तही क्रममे बजला-
बौआ, की कहबह? भेल जे पराते भने जँ बैंकमे जाएब तँ सभ कहत जे देखि‍यौ खापड़ि‍ केते तबधल छै तँए सात दि‍नक पछाति‍ बैंक गेलौं।
बजलौं-
खैर, बैंक तँ पहुँचलौं ने।
पहुँचब सुनि‍ बजला-
की पहुँचब दैवक कपार। भाँज लगेलौं तँ पता लागल जे पहि‍ल पालीमे लेन-देन चलै छै दोसरमे आन काज। एक बजे बड़का रौदामे गेलौं। आठ-दस गोटेक बीच मैनेजर साहैब बैसल रहथि‍। भीड़ देखि‍ मनमे भेल जे पहि‍ने जे एला हुनकर काज ने पहि‍ने हेतनि‍। ब्रि‍न्‍चपर चारि‍-पाँच गोटेक बीच बैसलौं। बैसल-बैसल समए ओठर भऽ गेल, उनहि‍ गेल मुदा दरबारक भीड़ नै कमल। ठहाकापर ठाहाका चलैत रहए। साढ़े चारि‍ बजे जा कऽ मैनेजर साहैबक आगूमे चेक देलि‍यनि‍। चेक देखि‍ते बजला, ‘बैंकमे देखि‍ते छि‍ऐ जे सभ गाड़ी पकड़ए चलि‍ गेला। असगरे छी, हमहूँ चलैएपर छी, कहि‍ उठि‍ गेला।
पुछलि‍यनि‍-
तब तँ काज नै भेल हएत?”
बजला-
काज केना होइत। समैए उनहि‍ गेलै।
बैसि‍ले-बैसल उनहि‍ गेल?”
कहलियऽ से नै बुझलहक। दरबारे ने टुटल, मुँह तकि‍ते रहि‍ गेलौं। दोसर दि‍न फेर गेलौं। समैपर चेक देलि‍यनि‍। रजि‍ष्‍टर उनटा मि‍लौलनि‍ तँ कहला चेके गलती भऽ गेल। खातामे कि‍छु नाओं अछि‍ चेक कि‍छु नाओंसँ अछि‍। कहि‍ चेक घुमा देलनि‍।
एना किए भेल?”
ओहुना देखि‍ते छहक जे दूटा-तीनटा चारि‍टा नाओं लोक रखि‍ते अछि‍, कि‍यो अधकट्टी तँ कि‍यो गोल गोला मुदा हमरा से नै भेल। गमैया नामक आधारपर वोटर लि‍स्‍ट बनल, वोटर लि‍स्‍टक आधारपर परि‍चय पत्र आ राशनकार्ड बनल। ओही आधारपर बैंकमे खाता खुजल। मुदा स्‍कूलक नाओं कागजे-कागजे बौआइत रहल। ओही आधारपर चेक बनल। मैनेजर साहैबसँ पुछलि‍यनि‍ तँ कहलनि‍ जे एफीडेफि‍ट लगा कऽ नाओं चढ़ि‍ जाएत। संतोष भेल। चलि‍ एलौं। दोसर दि‍न बैंकक काज छोड़ि कऽ कोर्टक काज दि‍स बढ़लौं। रबि‍ रहने एक दि‍न ओहि‍ना चलि‍ गेल। दोसर दि‍न एफीडेफि‍ट बनेलौं। तेसर दि‍न बैंकपर गेलौं तँ पता लागल जे मैनेजर साहैब सस्‍पेंड भऽ गेला। साते दि‍न नोकरी शेष छेलनि‍ तही बीच सस्‍पेंड भऽ गेला। आश्चर्य भेल जे सेवा नि‍वृत्ति‍ होइसँ एक पनरहि‍या अपने कागत-पत्तर सरि‍यबैमे लगि‍ जाइ छै। तखनि‍ घरमुहाँ-सँ-बहरमुहाँ केना भऽ गेला। कैसि‍यरसँ पुछलापर पता लगल जे इन्‍दि‍रा आवासक कमीशनमे गोल-माल भेल तँए सस्‍पेंड भेला। अगि‍ला सप्‍ताह धरि‍ दोसर आबि‍ जेता। ओ तँ पुन: घूमि कऽ नहियेँ औता किएक तँ केतबो जल्‍दी फड़िछाएत तँ नीचा-ऊपर करैत सप्‍ताह बीति‍ए जेतनि‍। सुनि‍ चलि‍ एलौं।
पुछलि‍यनि‍-
फेर की केलि‍ऐ?”
बाजए लगला-
दोसर सप्‍ताह गेलौं, तँ नवका मैनेजर आबि‍ गेल रहथि‍। असगरे बैसल रहथि‍, जा कऽ सभ बात कहि‍ कागत देलि‍यनि‍। कागत देखि‍ रखि‍ लेलनि‍। परि‍चए-पातक गप-सप्‍प उठल। नीक संस्‍कारी परि‍वारक छथि‍। कहलनि‍, ई तँ मैनेजरक अधि‍कारक काज छी जे उर्फ करि‍ कऽ नाओं चढ़ा लैतथि। अनेरे एते करैक कोन काज छेलए। चेक देखि‍ कहलनि‍ जे एकर समैए समाप्‍त भऽ गेल।
सुनि‍ चोटे घूमि कऽ आबि‍ कागतक बीच रखि‍ देलि‍ऐ।
पुछलि‍यनि‍-
दोहरा कऽ किए ने फेर बनबा लेलौं?”
बजला-
सौंसे रामायण पढ़ि‍ गेलौं, सीताक पते नै। जेते आमद हएत तइसँ केते बेसी खर्चे भऽ गेल तखनि‍ अनेरे कोन ओझरीमे फेर पड़ब। छोड़ि देलि‍ऐ।
mmm

No comments:

Post a Comment