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Friday, October 18, 2013

(72) एक धाप जमीन

एक धाप जमीन


भिनसुरका काज-उदमसँ निचेनो ने भेल छेलौं। सुनलौं जे दिनेश भाय कपार फोड़ा लेलनि। भोरे-भोर एना किए भेलनि। अखनि तँ शरीरक सभ अंग भकुआएले रहल हेतनि। यात्रा दिस नजरि‍ गेल। दही माछक यात्रा नीक होइ छै मुदा केकरा लेल। अधखरूआ काज छोड़ि जाएब उचित नै बुझलौं। तैबीच पनिगर समांग सभ दि‍नेश भायकेँ छन्‍हिए पाइ-कौड़ीबला भाइए गेल छथि, झंझारपुर लऽ जा प्राइवेटमे भर्ती करा देलखि‍न।
चुल्हिक जारनिसँ लऽ कऽ तरकारी धरिक ओरियान कऽ निचेन भेलौं चाह पीलौं। तैबीच रस्‍ते-पेरे केते बात उड़िया गेल। जहिना धारक पानि‍ आ वायुमंडलक हवा उधियाइत रहैत। जे एक धाप जमीन लेल दुनू भैयारीमे झगड़ा भेलनि। ओइ जमीनमे केराक घौर, छठि पावनिमे दुनू भाँइ टहलि‍-बुलि‍ कऽ एकठाम भेला। परिवारक पछुआएल काज देखि देहमे खौंत फेकनहि रहनि‍ आकि‍ दुनू केरे बीटक बीच फड़ियौलनि। ओना दुनू भाँइ गामेक स्‍कूल धरि‍ नि‍यमि‍त छात्र रहला मुदा, समैओ तँ समैए छी। सदिकाल उर्कुसी उड़िएबिते रहैए। जँ से नै तँ आब कहाँ देखै छी उखरि‍-समाठक आकि‍ हर-पालोक चोरकेँ। तँए कि चोरक वंश मेटा गेल। भेल जे भने नीके भेल जे रस्‍ते–पेरे जिगेसो भऽ जाएत आ कि‍छु अगि‍लो भाँज लगि‍ जाएत जे कपार फुटलनि‍ तँ फुटलनि‍, ब्रेन ने तँ हेम्रेज भेलनि। दरबज्‍जासँ निकलिते देखलौं जे रस्‍ते-पेरे समाददाता सभ समाद बिलहि रहल छथि‍। समादो तँ अजीब होइए कि‍ने, एके घटना दस रंगक बनि‍ जाइए। एना किए? पहि‍ल घरवासी गामक नेताइन, जँ पड़ोसीया बनि हमहीं नै मोजर दैतियनि, सेहो तँ नीक नहियेँ। पुछलियनि-
की घटना भेल अछि?”
वेचारी अपने बेथे बेथाएल जे तीन हजार रूपैआ नोकरीक नाओंपर दिनेश भाय ठकि‍ नेने रहथिन। अनधुन बाजए लगली-
नीक भेल एक भाँइ कपार फोड़ौलक, दोसर मारि खेलक। ओना मारि तँ दुनू खेलक। मुदा एकटा चुपा दोसर देखौआ भेल।
गपक कोनो अरथे ने लगल जे घटनाक जड़ि की छी। मुदा नीक-अधलाक विचार भऽ गेल। चुपे आगू बढ़लौं तँ दोसर गोटे कहलनि-
छोट भाए भऽ कऽ पैघपर हाथ उठाएब दिनेशकेँ नीक भेलनि। दुनू भाँइकेँ तँ भगवाने बड़का-छोटका बनौने छथिन।
घटना तँ हराएले रहल मुदा एकटा पन्ना तँ भेटल। पन्नो तँ पन्ना होइ छै, मुदा दोसरो-तेसरो तँ पन्ने कहबैए। रस्‍ता दि‍स आँखि उठबिते ललि‍तपर नजरि‍ पड़ल। नजरि‍ पड़ि‍ते भेल जे आब सभ भाँज लगि‍ जाएत। लग अबि‍ते पुछलि‍ऐ-
बौआ, दिनेश जीक समाचार कहऽ?”
मनमे भेल जे धुड़फन्‍दा लोक ललि‍त छीहे, जँ कहीं अपने गाड़ीपर बैसा अपने डाक्‍टर लग लऽ गेल होथि‍। खैर जे होउ, धुअल-पखारल शब्‍दमे ललि‍त बाजल-
काका, अहाँ तँ बुझिते छि‍ऐ जे हम रोड परहक आदमी भेलौं, एको मि‍नट पलखति‍ कहाँ होइए जे गामो-घर दि‍स देखब। तहूमे ठीकेदारी तँ आरो जपाल अछि‍। तेहेन लफड़ा आॅफिस लगा देने अछि‍ जे आॅफिसेसँ अबै छी।
आॅफिसक नाओं सुनि‍ अचंभित भेलौं जे भाेरे-भोर कोन आॅफिस चलै छै जे कहैए आॅफिसेसँ एलौं। पुछलि‍ऐ-
भोरे-भोर आॅफिस?”
निधोख ललि‍त बाजल-
लेन-देनक आॅफिस तँ डेरे छै कि‍ने।
बात आगू नै बढ़ा, पुछलिऐ-
एक बेर दि‍नेश जीक जिगेसा कऽ लेब तँ जरूरीए अछि कि‍ने, तइमे तोरा तँ आरो बेसी उपराग देथुन जे बेरपरक ललि‍त नै छी।
काजक झमारल ललि‍त बाजल-
काका, समाजक लीले गड़बड़ अछि‍, अहीं कहू जे ई उचि‍त भेल जे एक घौर केराले अपनो अस्‍पतालमे बरदाइ आ दोसो-महीमकेँ बरदाबी। तहूमे कि‍ कोनो हमरा पहि‍ने कहि‍ देने छला जे एक घौर केराले दुनू भाँइ माइर करब।
पुछलिऐ-
से कि‍ ओ जनै छला?”
ललि‍त बाजल-
भरि दि‍न पोथी-पतरा कन्‍हेमे लटकल रहै छन्‍हि आ अपनो दि‍न-बेरागन नै बुझै छथि‍न। एक सए बेर दरबज्‍जापर जाएब तखनि‍ तँ धोपचटमे गोटे बेर भेट जेता, एहेन उड़नबाज दुनू, तखनि‍ कहू जे केना केरा घौर कपार फोड़ा देलकनि। मुदा जे होउ, समाजोक तँ दायि‍त्‍व छै। तइसँ एक बेर जा कऽ हाल-चाल पूछि लेब जरूरीए अछि कि‍ने।
कहलिऐ-
भने तोरा सवारीओ छह, तीन बजेमे चलह।
धुड़फन्‍दा ललि‍तकेँ बात नीक लगलै। बहानाक गवाही बि‍नु तकनहि भेट गेलिऐ। बाजल-
काका, भने पान-छह घंटा समैओ अछि‍, ताबे हमहूँ बैंकक काज कऽ लेब। निचेनसँ चलब जे आठ-नअ बजे राति‍ तक घूमि आएब।
ओना तत्खनात गपमे काट-खोंट करब उचि‍त नै बुझलौं, मुदा ओकर आठ नअ बजे आ अपन आठ-नअ बजेमे अंतर तँ बुझिए पड़त। साढ़े-पाँच छअ बजे तक संभव अछि‍। कहलि‍ऐ-
बड़बढ़ियाँ।
महेश-दिनेश सहोदर भाए। ओना, अर्थ रोगसँ पीड़ित परि‍वार, तँए गामक स्‍कूल छोड़ि‍ बाहरक स्‍कूल-कौलेजक नि‍यमि‍त वि‍द्यार्थी नै रहला मुदा एम.ए; पी.एच.डी.क सर्टिफिकेट नै छन्‍हि सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। समए तेहेन भऽ गेल अछि‍ जे पाइक खेल कोनो स्‍कूलकेँ चमका रहल अछि। तँ कोनोकेँ धमका रहल अछि। ओना बम्‍बैया कलाकार जकाँ चौबीसो घंटा मेकअपेमे रहै छथि‍। एकरंगा चेहरा दुनू भाँइक दि‍न-राति‍ रहि‍ते छन्‍हि। वएह आल रंगक अंगा, खौंरकी, कट्ठा डेढ़ेक सिनूरक ढिमका आ बि‍नु कमाइ देलहा केश-दाढ़ी तँ बनौनहि छथि। तँए कि‍ दि‍नेश दब छथि‍न। दुनि‍याँ की‍ कनीएटा अछि‍ जे दस कट्ठा अहाँ जोति‍ए लेब तँ दुनि‍याँ जोता जेतै। समाजक स्‍त्रीगणक कौलेजक प्रोफेसरी ने महेश करै छथि‍, मुदा अदहासँ बेसी पुरुखक कौलेज तँ खालीए छै। पारखी दि‍नेश, समाजेमे नोकरी ताकि‍ लेलनि‍। दू दुनि‍याँमे दुनू भाँइक जि‍नगी तखनि‍ भैयारीमे एना हएत? छगुन्‍तामे पड़ल छेलौं। जहि‍ना कौर्नर बौल फेकैक अभ्‍यास खेलाड़ी करैए तहि‍ना रंग-रंगक सोंगर लगा जुति‍ धड़बी तँ केतौ सोंगर नम्‍हरे भऽ जाए आकि‍ छोटे भऽ जाए। कुजुति देखि‍ मन भन-भनाइते रहए आकि‍ महेश भायक मैझला बेटा पहुँचला। होइते छै कोनो घटना घटला पछाति घरवारी कोट-कचहरी, अस्‍पतालसँ गाम-घर धरि‍ घूमि‍ कनसोह लइते अछि‍। नव समाचारक जि‍ज्ञासा बढ़ले छल। पुछलिऐ-
बाउ, सुनै छी जे अहीं दि‍नेश भाइक कपार फोड़ि‍ देलियनि। कहुना अहाँ भेलौं तँ बेटे-भातिज ने भेलियनि।
मनमे भेल जे घटनाक जड़ि छूटि गेल। दोसर पन्ना उलटि गेल। जेना गणेशकेँ प्रश्नक उत्तर पहिनेसँ तैयार होय तहि‍ना ठाँहि-पठाँहि बाजल-
ऊहो भातिज बुझता तखनि ने पित्ती बुझबनि, भाय-भैयारी महिंसीक सींग, जखने जनमल तखने भीन। पित्ती नै दि‍याद छिया, दि‍याद जकाँ रहबनि।
गणेशक ठमकल बात सुनि‍ मन ठमकि‍ गेल। ठमकिते ठहकए लगल जे चालि‍-चलनि‍ तँ सचमुच दि‍नेशक दब छन्‍हिए जखने परि‍वारक चालि‍-चलनि‍ दबत तखने पारिवारिक सम्‍बन्‍धमे कमी अबै छै। बातकेँ मोड़ैत पुछलिऐ-
झगड़ा किए भेल?”
मुस्‍की दैत गणेश बाजल-
काका, जँ जड़ि बुझही तँ एक धाप जमीन ले झगड़ा भेल। मुदा परि‍वार परि‍वार छि‍ऐ, खापड़िक भुज्‍जासँ तसमै धरि चुल्हिपर चढ़ै छै।
सुनि-सुनि हँसीओ लागए मुदा हँसैओक तँ अर्थ छै, कि‍यो जीतला पछाति हँसबैए तँ कि‍यो घिनाइत हँसबैए। तँए हँसीकेँ पेटेमे रोकि‍ पुछलि‍ऐ-
की एक धाप जमीन?”
दुनू भैयारीमे गामक तँ सभ किछु बँटाइए गेल छन्‍हि, पाही पट्टी अपन-अपन छन्‍हिहेँ तँए ओहो बँटाएले छन्‍हि। एकटा बीट केरा अछि। गौसार छइहे, खूब नम्‍हर-नम्‍हर घौर होइ छै। ओहीले मारि भेल?”
नै बुझलौं?”
बँटै दिन दुनू भैयारीमे मेहदी जकाँ मेदहा रहनि, नै बँटलनि। कि‍छु दि‍न पछाति‍ आबि काका कहलनि‍ जे गणेश चलह केरा बीट बँटैले। कहलि‍यनि‍ अहाँ भैयारीक बँटवारा छी, अपन बाँटि‍ दि‍यौ। एक धाप बढ़ा कऽ आड़ि‍ दऽ देलखि‍न। बाबूओ तँ सभ दि‍न बाहरे रहै छथि‍। तेते ने बाहरी काज रहै छन्‍हि जे महिनामे गोटे राति‍ गाम-वि‍श्राम होइ छन्‍हि‍। अगुताएल रहने ई बाते बि‍सरा गेलनि। नानी गामसँ समाद आएल जे तांत्रिक जीकेँ एक घौर केरा पठा दइले कहियनु‍। आब अहीं कहू काका, एक तँ वेचारी नानी बूढ़ छथि तैपर ओ सभ बाबूकेँ पाहुन नै कहि‍ तांत्रिकेजी कहै छन्‍हि। हि‍नको अपन ने महात्‍म्‍य छन्‍हि।
हँ।
हँक की अर्थ गणेशकेँ लगलै, से ओ जानए। कहलिऐ-
तोहर जिगेसा तँ भाइए गेल, आब कनी दिनेशो जीक जिगेसा कऽ लेबनि।
तीन बजे तैयार होइते रही आकि ललित पहुँचल। चाह पीब दुनू गोटे वि‍दा भेलौं। सीमा टपि‍ते ललि‍त बाजल-
काका, समुद्रक लहरि जकाँ गामो-घरमे लहरि अबै छै।
ललित कथी बाजऽ चाहै छल से नै बूझि पेलौं। पुछलिऐ-
की लहरि?”
बाजल-
गाममे चोर अबै छेलै आकि‍ आगि लगै छेलै, अवाज सुनि‍ते ओकरा भगबै आकि मि‍झबै छेलौं। मुदा एहेन नीक बेवहारमे आगि‍ मि‍झौनि‍हार अगि‍लगौन आ चोर भगौनिहार चोरिकरौन संग चोरबा केना बनल?”
ललितक प्रश्न सुनि बकार बन्न भऽ गेल। मानि लेलिऐ जे ललितक वि‍चार जरूर वि‍चारणीय अछि‍, से तँ मोटर साइकि‍लपर नै हएत। बजलौं-
तूँ डरेबरी करबह आ गामक जड़ि खोदबह।
दिनेश जीकेँ भेँट करैत पुछलियनि-
डाक्‍टर साहैब की सभ कहलनि?”
दिनेश-
कहलनि जे मारि‍ कि‍छु बेसी लगि‍ गेल अछि‍ तँए ओ तँ नि‍जाइते-नि‍जाएत। मुदा हँसुआक पीठ माथमे बेसी धँसल नै अछि, ओहो जल्‍दीए ठीक भऽ जाएत।
दुनू गोटे डाक्‍टर लग पहुँच पुछलियनि-
डाक्‍टर साहैब, दिनेश जीक की स्‍थि‍ति छन्‍हि?”
नीके छन्‍हि।
पाइ-कौड़ी दुआरे इलाजमे कमी नै होन्हि।
एह! से कि दि‍नेश जीकेँ चि‍न्‍है नै छियनि। अनाड़ी किए बुझै छी।
घूमि कऽ आबि दि‍नेशजी लग दुनू गोटे बैसि गप-सप्‍प शुरू केलौं। पुछलियनि-
दिनेशजी एना किए भेल?”
जाबे दि‍नेश कि‍छु बाजथि तइसँ पहिने पत्नी टपकि गेलनि-
हमर कपारे जरल अछि‍, तँए ने एहेन जरल घरबला भेल। नै जँ से नै रहितथि तँ एतबो ने बुझा कऽ कहल भेलनि‍ जे छठिमे नैहरसँ एक घौर केराक मांग भेल अछि, ओहो कि‍ कि‍यो आन भेला, जेहने अपन तेहने ने अहूँकेँ।
ललितकेँ चुटका सुतरल। चुटकी लैत बाजल-
ई की कोनो नव गप छी, सासुरमे भैयारीक कोन बात जे समाजे सासुर जकाँ नीक-अधला करैए। तहूमे छठि सन पावनि, बिना ठकुआ-केरा-भुसबाक केना हएत।
आन समए दि‍नेश जीकेँ पत्नीक बोल जेहेन मीठगर आकि तेलगर लगैत होन्हि‍ मुदा अखनि नीक नै लगलनि। लाल आँखि बना ललौन बोलीमे दिनेशजी बजला-
समाज जिगेसा करए एला, तिनकर स्‍वागत-बात छोड़ि चंडी-काली बनि‍ जाउ। जखनि गड्डीक-गड्डी आनि कऽ दइ छी, तखनि रसिक पिया बनि जाइ छी, आ अखनि कपरजरूआ बनि गेलौं। पत्नी छी पत्नी जकाँ रहू।
दिनेश जीक तामसकेँ रोकैत ललित बीच-बचाव करैत बाजल-
भौजी, एतबो नै बुझै छिऐ जे अखनि भाय-साहैबक देहमे चोटोक दर्द छन्‍हि आ कपारमे लोहोक बीन-बीनी हेबे करतनि। जरलपर जारनि‍ देबै तखनि धधड़ा नै धधकतै। चुप रहू। भाय-साहैब, अंगूर हमहूँ अनने छी, खाइक मन होइए?”
दुनू बेकतीक झगड़ा जे हौनु मुदा एकटा प्रश्न तँ ठाढ़े भऽ गेल। ओ ई जे पति-पत्नीक बीच सम्‍बन्‍धक रेखा केहेन हेबा चाही। कि‍यो पति‍ चरि‍त्रसँ बि‍गड़ल छथि, आ पत्नी चरित्रवान छथि, तखनि दुनूक बीचक सम्‍बन्‍ध  केहेन होइ? कि‍यो पत्नी घूसखोरीक विरोधमे रहथि आ पति दिन-राति‍ घूस लथि तैठाम पत्नी-पतिक पाइक उपयोग नै करती?
दिनेश जीक बिगड़बसँ लाभे भेल। छुच्‍छे चाहक जगह जलखैओ आएल। दिनेश जीकेँ पुछलियनि-
अहाँ सन लोकले नीक भेल?”
दिनेश हरदा बाजि गेला-
दिनक दोख छल। नै तँ साल भरिसँ दुनू भैयारी एकठाम बैसि चाहो ने पीने छेलौं। पीबो केना करब, हुनको अपन दुनि‍याँ छन्‍हि, अपनो अपन अछि। महिनामे साइते गोटे राति‍ गाममे बीतैए। नै तँ बाहरे रहै छी। साँझमे आएले रही। खाइ बेर पत्नी कहलनि जे सासुरसँ केराक आढ़ति भेल। छठमे दिन छठि छिऐ। दू दि‍न घरोमे रहतै। पुछलियनि तँ कहलनि जे अपने बीटमे केरा अछि। सतबजिया गाड़ी पकड़ि पटना जाइक रहए आॅफिसमे केते रंगक काज पछुआएल छेलए। अनदि‍ना ने भीड़ो रहै छै, पावनि-तिहारमे तँ सेहो कमिए जाइ छै। तँए अन्हरोखे हाँसू नेने केरे बीट लग पहुँचलौं।
टोकलियनि-
अन्हरोखक माने?”
दिनेशजी तिलमिला गेला। अन्‍हरोख भाेरोमे होइ छै, साँझोमे होइ छै। सँझुका अन्हरोख बदलैत-बदलैत अन्हारमे बदलि जाइ छै मुदा भोरका तँ फरिच होइत-होइत फरिछा दिन भऽ जाइ छै। तँए, ने जेबोक समए होइ छै।
तत्-मत करैत देखि दोहरबैत कहलियनि-
साँप-कीड़ा अन्हार-धुन्‍हारमे करजान सभमे रहै छै, तखनि किए गेलौं। अच्‍छा, ओते भोरमे ओ सभ केना पहुँचला?
दिनेशजी बजला-
सएह ने बूझि पेलौं, जे नियारि कऽ गेल रहथि आकि ओहिना देखलनि तँ पहुँचला।
पुछलियनि-
ओ सभ तँ सतबजिया सुतनिहार छथि तखनि केना एकठाम भेला? खैर छोड़ू। बुझा कऽ नै कहलियनि जे कुटुमारे केरा जाएत।
दिनेशजी-
भातीजकेँ कहलिऐ, गणेश जेहने हमर सासुर तेहने ने तोरो ममहर भेलह। तखनि तोहीं कहऽ?”
पुछलियनि-
गणेश की कहलनि?”
जाबे दिनेशजी बजितथि तइ बिच्‍चेमे पत्नी झपटि कऽ बजली-
हुनका सभकेँ -महेशक परिवार- धनबूबूक ने भऽ गेल छन्‍हि। हम तँ सहजे दि‍यादे भेलियनि। सभ जनै छी जे दियाद आ दालि जेते गलै छै तेते सुअदगर होइ छै। अनको की‍ ओ सभ जीमे लगबै छथिन।
दिनेश जीक पत्नी-केकैयीक बात सुनि ललित बाजल-
भौजी, अहीं कोन उतकिरना केलौं। जँ एक घौर केरे छठिमे नैहर पठबैक छेलए तँ दि‍नेश भायकेँ झंझारपुरेसँ कीनि कऽ पठा दइले कहितियनि।
केकैयी बजली-
मास दि‍न पहिने कहि देने छेलियनि जे अपने बीटमे केरा अछि, तखनि केना कीनि कऽ पठबैले कहितियनि।
दुनू गोटे गपकेँ रोकैत बजलौं-
खैर जे भेल से तँ भाइए गेल, मुदा कोनो धरानी नीक भऽ गाम चलू तखनि बैसि अपनामे मुँह मि‍लानी कऽ लेब।
हमर बात केकैयीकेँ नीक नै लगलनि। बजली-
यएह कहथु जे कि‍यो बेसी समंगर रहत तँ कम समांगबलाकेँ गामसँ भगा देत।
मुस्‍की दैत ललित बाजल-
केकरा के भगौलकै हेन। जे अहाँकेँ भगा देता। अनेरे मने-मन परेशान होइ छी। भैयारीक बात छी, हमसब समाज भेलौं, अहाँ जे कहै छी से बि‍ना हुनकासँ बुझने केना उत्तर देब।
चिन्‍तित होइत दिनेशजी बजला-
देखियौ जे एक तँ ओहिना आॅफिसक काज सभ पछुआ गेल अछि, तैपर ऐठाम बरदा गेलौं!
आॅफिसक काज सुनि पुछलियनि-
अहाँकेँ आॅफिसक कोन काज अछि जे पछुआ गेल। नोकरी तँ नै करै छी।
दिनेशजी-
अपन काज कहाँ छी, जखनि समाजमे रहै छी आॅफिस जाइ-अबै छी, तखनि अनकर काज नै करि‍ऐ, से नीक हएत।
दिनेश जीक बात सुनि भेल जे आॅफिस तँ अखनि लेन-देनक अखाड़ा बनल अछि। जइसँ बि‍नु लेन-देन करैबला अपनो काज छोड़ि रहल छथि तैठाम दिनेशजी अनको काज झोरा भरि-भरि करै छथि तेकर की माने। बेपार कऽ रहला अछि आकि समाज सेवा। खैर जे होउ। तही बीच डाक्‍टर पहुँचला। ठाढ़े-ठाढ़ डाक्‍टर साहैब बजला-
सुधारमे छी किने दिनेशजी?”
गिरगिराइत दि‍नेशजी कहलकनि-
डाक्‍टर साहैब, देहमे दर्द तँ अछिए।
जहिना गर्म चाहसँ मुँह पकल रहने, कनी कमो गर्म चाह ओहने गरम बूझि‍ पड़ै छै तहि‍ना दि‍नेशो जीकेँ होइत रहनि। मुदा पावनिक लहकी देखि सभ बि‍सरि‍ बजला-
डाक्‍टर साहैब, दबाइ सभ खाइते रहब, मुदा छुट्टी दऽ दिअ जे भोरुका सतबजिया गाड़ी ने छूटि गेल, जँ रौतुको एगरबजिया पकड़ा जाएत तैयो सबेर-सकाल काल्हि‍ पटना पहुँच जाएब।
दुनू गोटे (ललित) वि‍दा भेलौं। एक तँ अपनो ग्‍लानिसँ मन भरि गेल दोसर ललितोकेँ कि‍छु एहेन बात मनकेँ भटभटा देलकै जे बिसाइन होइत-होइत बिस-बिसाइत रहए। ओना दोहरा कऽ चाह पीऐक आग्रह दिनेश जीक बेटो आ पत्नीओ करैत रहली मुदा सुचित मन जहिना खेबा-पीबाक इच्‍छा जगबै छै तहि‍ना कुचि‍त मन अनिच्‍छा सेहो जगबै छै। सएह दुनू गोटेकेँ भेल। हलाँकी दिनेशजी एते विचार जरूर केलनि जे ललितकेँ कहलखिन-
ललित, एक तँ अहाँक समए लेलौं तैपर सवारीओक खर्च बढ़ा दी, से नीक नै। तेलक पाइ लऽ लिअ।
मुदा ललितोकेँ ठीकेदारीक ताव रहबे करै बाजल-
गाड़ी तेलक जे हिसाब जोड़ब तखनि काज चलत। एतबो आशा हमरा कमाइक नै अछि। अहाँ अखनि डाक्‍टर ऐठाम छी केना नीक भऽ गाम पहुँचब ई दायित्‍व केकर छै।
कहि ललित आगू बढ़ि मोटर साइकि‍ल पकड़लक। पाछूमे बैसिते रही आकि ललितक मुँहपर नजरि पड़ल। जेहने तुरुछल मन तेहने आँखिक भौ बूझि पड़ल। मुदा बीचमे कि‍छु बाजब उचित नै बूझि चुपे रहलौं।
कनीए आगू बढ़िते ललित बाजल-
काका, तेहेन दुनू भाँइक किरिया-करम भऽ गेल छै जे कहू दस-दस लाखक घर बनौने अछि। तैपर दस-दस लाख बेटी बिआहमे खर्च करैए केतएसँ आनैए। दुनू तेहेन बहुरूपिया बनि गेल अछि जे यएह सभ समाजमे भाए-भैयारी बनए देत।
ललितक गंभीर बात मन डोला देलक। बजलौं-
ललित, बेसी तँ नै बुझै छी जे असल बात बाजब मुदा एते तँ मन मानि‍ते अछि‍ जे जे जेते नीच-सँ-नीच जगह परहक पाइ उठबैए ओ ओकर ओते बेसी बेवस भऽ गेल अछि। जे मानवीयताक विपरीत भेल। जँ से नै भेल तँ कहू एक धाप जमीनमे केराक बीट, कोन सोनाक बड़का खान छै, जेकरा ले हजार-बजार कि‍छु ने छै, से सए-सैकड़ाक लालचमे भैयारीक जे परि‍चए देलनि‍ से तँ देबे केलनि‍, जे समाजोक परिचए तँ दाइए देलनि।
समाजक नाओं सुनिते ललितोकेँ शतरंजक सह भेटल। बाजल-
काका, हमहूँ ठीकेदारेक जि‍नगी जीबै छी, एकर माने ई नै जे नीक-अधलाक वि‍चार नै करै छी। छाती खोलि गामक चौराहापर बाजि‍ सकै छी, जे भाय समाजक एक्कोटा लाल ई कहि दैह जे फलनमासँ अधला भेल, जँ भेल तँ अखनो ओकरा चर्चमे आनए चाहै छी। मुदा ई दुनू भाँइ (महेश-दिनेश) तँ कोनो मनुखे ने छी।
जाए दहक। जे जेहेन करत से तेहेन पौत।
mmm

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