Pages

Friday, October 18, 2013

(69) मुइलो बि‍सेबनि‍

मुइलो बि‍सेबनि

काल्हि‍ भाेरेसँ केत्ताबेर लुटनी भौजी धीरू भैयाकेँ खोज करए एली मुदा भेँट नै भेलखि‍न। ओना लुटनीओ भौजी अपने मनक लोक, खोज करए तँ अबै छेली मुदा परि‍वारक कोनो सदस्‍यकेँ सोझहे पूछि‍ दइ छेलखि‍न-
धीरू बौआ आँगनमे छथि‍?”
तँ उत्तर भेटै छेलनि‍-
नै।
‘नै’ सुनि‍ते घूमि‍ कऽ चलि‍ जाइ छेली। दोहरा-तेहरा खड़ि‍यारि‍ कऽ ऐ दुआरे नै पुछै छेलखि‍न जे अपना घरक बात सभ लग बाजब नीक नै। ओना कि‍छु मानेमे निको छेलनि‍। नीक ऐ मानेमे जे झगड़ा-दनक बात जखनि लोक बाजए लगैए तँ केते रंगक बात बजा जाइ छै तइसँ समैओक बेरबादी आ झगड़ा सेहो टरल रहैए। मुदा सातम बेर एलहा लुटनी भौजीकेँ सुतरलनि‍। धीरू भैया गंगा नहा कऽ आएले छला आकि लुटनी भौजी आबि‍ गेलखि‍न। गाड़ी-सवारीक झमारल धीरू भैया, तँए आन गप करैक मन नै होइ छेलनि‍। कि‍एक तँ अपनो घरक तीन दि‍नक समाचार पछुआएले छन्‍हि। आनठामसँ एला पछाति‍ कि‍यो पहि‍ने अपन परि‍वारक हाल-चाल ने बुझए चाहैए जे कोन काज अगुआएल, कोन पछुआएल आ कोन ठमकले रहि गेल। मुदा जखनि लुटनी भौजी अपन दुखनामा कहए एलखि‍न तखनि नहि‍योँ सुनब उचि‍त नै। अपन परि‍वारसँ बेसी महत जौं आन परि‍वारकेँ नै देनाइ तँ सुआरथीएक काज भेल। मुदा अपन काज छोड़ि‍ जौं दोसरेक काज करए लगब तँ की दोखी नै हएब? केना नै दोखी हएब। सभकेँ अपने अधि‍कारो आ करतबो छै जौं तेकरे छोड़ि‍ देब तँ करब की? खैर जे होउ...।
एक तँ धीरू भैया रस्‍ताक झमारल तैपरसँ दोसर झमार दैत लुटनी भौजी कहलकनि‍-
पहि‍ने सभ काज छोड़ि‍ हमर पनचैती कऽ दिअ, तखनि‍ आन काज करब?”
ओना गंगा स्‍नान केला पछाति‍ धीरू भैयामे कि‍छु संकल्‍पो आ कि‍छु काज करैक नव उहि‍ओ आबि‍ गेलनि‍ आ कि‍छु छोड़बो तथा बदलबो केलनि‍। लुटनी भौजीक बात सुनि‍ मनमे उठलनि‍ जे अखनि दूर-दराजसँ आएल छी, लगले पनचैती करए बैसब, तहूमे मनो थाकले आ गरमाएलो अछि‍। समैक हि‍साबसँ नीक केना हएत? कोनो पोखरि‍सँ अछींजल भरब तखनि ने उचि‍त होइ छै जखनि जल असथि‍र रहल, जइसँ ने चहल-पहल रहत आ ने गादि‍-गंधक संभावना रहत। मुदा लुटनी भैजीकेँ टारबो असान नै।
एक कालखंड धीरू भैया आ लुटनी भौजी गामक नेतागि‍री कऽ चुकल छला। ओना लुटनी भौजी बि‍नु पेनक लोटे जकाँ छेली मुदा जासुसी लेल तँ ओहने फूटल-फाटल, पचकल-पुचकलक ने जरूरति‍ होइ छै। तइमे लुटनी भौजी सोल्हन्नी उपयुक्‍त छेलखि‍न। ओना, सभ बुझै छला जे लुटनी भौजीक बात आ उनटा गाड़ीक चालि‍, दुनू बरबरि‍ मुदा तैयो गाममे ओहएटा मरदक बेटी छथि‍ जे थनो-पुलि‍सक आगूमे ठाढ़ होइ छथि‍। जेहने रकार-तकार पुलि‍सक बोल तेहने तँ लुटनीओ भौजीक रेकार-तेकार छन्‍हि‍हेँ। गामक लोक जे बुझनि‍ मुदा सरकारी जासूससँ तँ नीक चरि‍त्रक छथि‍ए। केना नै छथि‍, गाम-घरक जासूसी मुखौती चलै छै मुदा सरकारीक तँ लि‍खौती चलैए। मलकारे ने महिंसि‍क घीकेँ गाएक घी आ गाएक घीकेँ महिंसि‍क घी मुखौतीओ बना लइए। आकि‍ कीनि‍नि‍हार बनौत? कीनि‍नि‍हारकेँ जे जरूरति‍ रहलै ओ मांग करैए। मलकारकेँ जेते जल्‍दी घी बि‍काएत ओते पहि‍ने ने काजसँ छुटकारा भेटत। जखनि सभ अपने लाभक रोजगार करैए तखनि मलकारेकेँ कि‍छु कहब उचि‍त हएत। लि‍खौतीए जासूसीमे ने कोनो कारखानासँ लाखक माल सैकड़ा बनैए आ सैकड़ा-लााख बनैए। भलहिं बीचमे इन्‍कम-टैक्‍सक जे करामात होउ। एहेन जासूसी लुटनी भौजी कहि‍यो ने केलनि‍ आ ने अखनो करै छथि‍। ओना केतबो माहि‍र लुटनी भौजी कि‍एक ने बूझल जाथि‍ मुदा सभ घरक जासूसी करैमे खि‍लैच‍ जाइ छथि‍। जे पुरुख कोट-कचहरीक गप अपन जनानाकेँ कहि‍ दइ छथि‍न, ओइ बुझैमे लुटनी भौजीकेँ बेसी भांगठ नै होइ छन्‍हि‍ मुदा जइ घरक जनानाकेँ अपन घरक बात केतए बाजी, केते बाजी, केतए नै बाजी इत्‍यादि‍क ज्ञान छन्‍हि‍, ओइ घरक भाँज बुझैमे भौजी हारि‍ जाइ छथि‍। जराएल मन भौजीक रहबे करनि‍। कंठ फाड़ि‍ दोहरी अवाजमे प्रश्न दोहरबैत बजली-
हमरा बातपर कान किए ने दइ छी जे मने-मन गुड़-चाउर फँकै छी?”
जहि‍ना आमक डारि‍केँ दोहरी दोम पघि‍लल, घुलल आ कठगर तीनूकेँ झखबए लगैए तहि‍ना धीरू भैयाकेँ लुटनी भौजीक बात सुनि‍ भेलनि‍। मुदा मन तँ पहि‍ने गंगा संकल्‍पकेँ जपैत रहनि‍ जे सासु-पुतोहुक झगड़ाक फरिछौठमे नै पड़ब। ई कि‍ कोनो झगड़ा छी। सोल्हन्नी रगड़ा छी। ने तँ वएह बेटी हँसी-खुशीसँ माएक घर लक्ष्‍मी बनि‍ बीस बरख बि‍तबै छथि‍ आ सासुर अबि‍ते सासु चुड़ैल बनबए लगै छन्‍हि‍। एकरा रग्गड़ नै कहब तँ की कहब। सोझ बात अछि‍, परि‍वारक कोनो काज करैसँ पहि‍ने सासु पुतोहुसँ पूछि‍ लेथुन जे कनि‍याँ ई काज अहाँ नैहरमे केना करै छेलौं। दुइए रंगक जवाब भेटत, या तँ नै कएल अछि‍ वा केलहा ढंग कहि‍ देब। कारणो अछि‍ जे एक्के मि‍थि‍लांचलक बीच क्षेत्र-क्षेत्रक वि‍न्‍यासो बनबैक आ बाजबोक आ पावनिओ-ति‍हारक संग गीतो-नादक रूप अगल-अलग अछि‍। तइले जे सासु भागलपुरक चलनि‍केँ अधला आ मधुबनीकेँ नीक कहथि‍, केते उचि‍त हएत। गाम-गामक बीच ढेरो रंगक खाधि‍ बनल अछि‍। जे खान-पीन, ओढ़ब-पहि‍रब, बाजब-भूकबसँ लऽ कऽ गीत-नाद, वि‍धि‍-बेवहार धरि‍मे पसरल अछि‍, तैठाम...।
  एक तँ ओहि‍ना धीरू भैयाक मन रस्‍ताक चालि‍सँ असोथकि‍त रहनि‍, तैपर लुटनी भौजी आरो नम्‍हर-नम्‍हर चेका काटि‍-काटि‍ लादैत रहनि‍। धीरू भैयाक मन गवाही दैत कहलकनि‍ जे नीक हएत लुटनीए भौजी किए ने हमर बेथा बुझथि‍। सभकेँ अपन-अपन बेक्‍ति‍गतो आ समाजि‍को कि‍छु समस्‍या होइ छै। मुदा से लुटनी भौजी मानथि‍ तखनि ने, ओ तँ अपने ताले बेताल छथि‍। बेतालो किए ने रहती। मनमे ओहि‍ना छोटकी पुतोहुक बात नचैत रहनि‍ जे ‘आब‍ हि‍नकर भानस नै करबनि‍। अपन कइए कऽ खथु‍ वा नै खथु हमरा कोनो मतलब नै।’ मुदा से मन मानैले तैयारे ने होन्‍हि‍। सासु-पुतोहु दू पक्ष भेलौं जौं दुनू पक्षक बीच सोझहा-सोझही किछु टक्कर हएत तखनि आगूक रस्‍ता कि‍म्‍हर बनत? या तँ एक गोटे पटका खसि‍ पड़त, या तँ दुनू दि‍ससँ तेहेन देवाल ठाढ़ भऽ जाएत जे रस्‍ते रोका जाएत। तूफानी धाराकेँ सेहो रोकल जा सकैए, ओना‍ धार बनब, पहाड़ ढाहब धि‍या-पुताक खेल नै जे साधन छै ओ बि‍नु अपनौने थोड़े हएत। केतौ बान्‍ह बन्‍हैक जरूरति होइ छै तँ केतौ छोट-छोट नासी-नहर बना पानि‍क वेगकेँ कम करैत रोकल जा सकै छै। तँए नीक हएत जे एक दि‍स भौजीकेँ चाहो-पानक आग्रह करि‍यनि‍ आ दोसर दि‍स पहुलका पुतोहुक चर्च ठाढ़ केने मन ससरबे करतनि‍ तइसँ तम-तमी कमतनि‍ तखने जान बँचत। झगड़ो झगड़ा सन रहए तखनि ने। ओहन झगड़ा जेकरा हजारो ठाम गीरह-गाँठ पड़ल छै तैठाम तँ न्‍यायालय लेल बेसी उचि‍त यएह ने हएत जे दुनू पक्ष अपनेमे मुँहमि‍लानी कऽ न्‍यायमूर्तिसँ हस्‍ताक्षर करबा लि‍अए। जेठकी बेटीकेँ धीरू भैया कहलखि‍न-
बुच्‍ची, कनी भौजीओकेँ चाह पीआ दहुन आ हमरो पि‍याबह। बड़ीकालसँ चाह पीअक मन होइए।
धीरू भैयाक जाल सुतरलनि‍। ओना घुमौआ जाल नहि‍येँ रहनि‍, मुदा तैयो चाह हाथमे लइते लुटनी भौजीक मुँह टुसकि‍एलनि‍। मुँहक टुसकी देखि धीरू भैया टि‍पलनि‍-
पहुलका पुतोहुक घरदेखी ओहि‍ना मन अछि‍ भौजी। अहाँ बि‍सरि‍ गेलि‍ऐ?”
सह पाबि‍ लुटनी भौजीक मन तेसर पुतोहुकेँ छोड़ि‍ पहुलकाकेँ झोंट लपकलक। बजली-
अपन केलहा काज लोक वएह ने बि‍सरैए आकि‍ बि‍सरए चाहैए जे अधला रहै छै, मुदा नीक केना बि‍सरि‍ जाएत। अहाँ तँ ओइ काजमे अगुए रही, कहू जे कोन धरानी पुतोहुकेँ घर अनने रही।
लुटनी भौजीक दोहरी पंच बनि‍ते धीरू भैया कहलखि‍न-
ओना मुँहपर केकरो बड़ाइ आकि‍ छोटाइ चटुकारी भेल मुदा नीक कि‍ अधला बजलो नै जाए सेहो तँ नीक नहि‍येँ हएत। केतौ अधलाकेँ नीक दबतै तँ केतौ नीककेँ अधला दबतै। एहने बात अखनि उठि‍ गेल अछि‍। जे समांग वा कुटुम घर छोड़ि‍ परदेश जा घर बना लेलनि‍, पैघ बनि‍ गेला। जौं कोनो काज-पीहानीमे भाग लइले नोत-हकार देबनि‍ तखनि जौं अबै-जाइक गाड़ी-बस, जहाजक भाड़ा-कि‍राया नै देबनि‍ तँ की हुनका मान-मर्जापर नै पड़तनि? मुदा तइ संग ईहो प्रश्न तँ जोड़ले अछि‍ जे जइ पेटक खाति‍र गामसँ हजारो कोस दूर भगलौं ओइ धरती धारण केनि‍हारकेँ नै परेखि‍ पाबी? खैर जे होउ...।
मुस्‍की दैत धीरू भैया पुन: बजला-
मुदा ओ बात हम कहि‍यो ने अहाँक बि‍सरब।
‘बि‍सरब’ सुनि‍ लुटनी भौजी अन्‍हरोखमे फुलाइबला फूल जकाँ हलसि‍ कऽ खि‍लैत पुछलखि‍न-
कोन बात कहलि‍ऐ बौआ?”
वएह-वएह! अहाँ बि‍सरि‍ गेलि‍ऐ?”
एँह, की कहब काजक तेहेन ओझराैठ होइ छै जे कोन बात लोक मोन रखत आ कोन बात नै मन रखत। काजो करैत-करैत कखनो काल मन हरा जाइ छै कि‍ने।
सि‍मसि‍माएल लुटनी भौजीक मन देखि धीरू भैयाक मन सेहो थीर भेलनि‍। बजला-
पहि‍ल बेटाक घरदेखीमे जे अहाँ सभकेँ बड़-बड़ी खुऔने रहि‍यनि‍, तही दि‍न ने बेटीबला सभसँ कहबा नेने रहि‍यनि‍ ने ‘एते रंगक बड़-बड़ी हम नै खुआ पएब।
जहि‍ना हौहैठ कलकैल कुरि‍यबै काल सुआस पड़ै छै तहि‍ना धीरू भैयाक बात सुनि‍ लुटनी भौजीकेँ पड़ए लगलनि‍ बजली-
कोन परगनाक बेटी हमरासँ लूरि‍गर अछि‍, सात-परगनाक बड़-बड़ी बनबैक लूरि‍ ऐ देहमे गहना जकाँ सजा कऽ रखने छी।
बजैत-बजैत लुटनी भौजी झोंक दैत झोंकली-
अखुनका लोक कहत जे हम बड़ लूरि‍गर छी, चलह तँ अखनो हमरा सेने भानसमे!”
चुटकी लैत धीरू भैया कहलखि‍न-
यएह बात भरि‍सक छोटकीओ पुतोहु बूझि‍ गेली, तँए भानस करब छोड़ि‍ देलनि‍।
  जहि‍ना लुटनी भौजीक सनक आगू ससरल रहनि‍ धीरू भैयाक बात सुनि‍ तहि‍ना ढील भऽ गेलनि‍। पुन: पहुलके पुतोहुक चर्च उठबैत बजली-
ओहो पुतोहु कि‍ कोनो अधला छथि‍, मुदा ई दोख तँ छन्‍हि‍हेँ ने जे जइ घरमे थेहगर सासु रहती ओइ घरक जुइत पुतोहुक हाथमे केना जाएत। बेटा बेटी परि‍वारमे होइ छै। आनक बेटी आनक बेटीक संग केहेन बेवहार रखत, ई बात तँ माइए-बाप ने बूझि‍ सकैए आकि‍ कनि‍याँ-मनि‍याँ।
बजैत-बजैत लुटनी भौजीक मन चढ़लनि‍। धीरू भैया कहलखि‍न-
देखू, ओइ पनचैतीमे बेसी दोख अहींक रहए। पुतोहु जकाँ कहि‍यो जेठकी पुतोहुकेँ नै बुझलि‍ऐ।
मन पाड़ैत लुटनी भौजी कहलकनि-
देखि‍औ बौआ, जेते दोखी अहाँ बनबै छी तेते नै छी। कनी-मनी दोख केतौ भऽ गेल होइ से भऽ सकैए मुदा जेते बुझै छी तेते नै छी।
केना नै रहि‍ऐ। देखै छेलौं जे चि‍चि‍या-चि‍चि‍या पुतोहुकेँ सरापै छेलि‍ऐ आ कहै छी जे केना केलि‍ऐ।
ऐमे हम की दोखी भेलौं?”
ऐमे अहाँ ई दोखी भेलि‍ऐ जे एक तँ ओहुना बेटी नैहरक मुँह पौतीमे बन्न कऽ लइए, तैपर जे सासु साँढ़-पारा जकाँ ढेकरि‍-ढेकरि‍ टोकारा देथि‍न तँ की ओ पशु-मुँह केते दि‍न बरदास करत। अहींक जे पुतोहु छथि‍, किए ने बेटी जकाँ चुचकारि‍ कऽ गप करै छेलौं। जे अनठि‍या माल-जाल जकाँ ढूसि‍ लइ छेलि‍ऐ?”
अपन तर्क कमजोर देखि‍ लुटनी भैजी छिछलैत बजली-
बौआ, ऐमे दोसर भाँज रहै जे हमहूँ नै बजलौं।
चुम्मक जकाँ जेते धीरू भैया लुटनी भौजीकेँ पकड़ए चाहथि‍ तेते लुटनी भौजी, जहि‍ना लोहामे आन-आन द्रव्‍य मि‍लौलासँ चुम्‍मकीय शक्‍ति‍ कमजोर होइ छै तहि‍ना आन-आन बात जोड़ए लगली। धीरू भैयाक मन गबाही देलकनि‍। बजला-
कथी दोसर भाँज रहए बाजू। अखने की भेल, आबो तँ बूझब ने?”
धीरू भैयाक प्रश्न सुनि‍ लुटनी भौजीक मन धकमकेलनि‍। मनक एक पक्षक कहब रहनि‍ जे घरक कोनो बात छि‍पा कऽ किए रखब। जखनि समाजक एकटा खुट्टा हमहूँ छि‍ऐ तखनि‍ गराड़केँ किए चोरा कऽ रखब! मुदा दोसर पक्षक कहब रहनि‍ जे पसीना चुबौल काजकेँ लोक लग बजैमे हर्ज नै। पसीनाक धार आनोक-आन देखैए। मुदा बि‍नु पसीना चुबौल काजक आमदनी बजलासँ केहेन हएत? कि‍न्‍तु डारि‍क चुकल बानर जहि‍ना अपनाकेँ मरले बुझैए तहि‍ना मनमे अबि‍ते फरकि‍ कऽ लुटनी भौजी बजली-
अहाँ सभ जे पंचैतीमे जाइ छि‍ऐ तँ झगड़ाकेँ उनटा-पुनटा कऽ नै देखै छि‍ऐ। जखनि उनटा-पुनटा कऽ देखबै तखने ने सुपत बात बाजल हएत।
  जइ आवेशमे लुटनी भौजी बजली ओइ आवेशकेँ धीरू भैया सूखल पछि‍या हवा जकाँ वि‍र्ड़ो बुझलनि‍। दस-बीस मि‍नटक खेल, भलहिं घर-दुआरक कोन बात जे मोटगर-मोटगर गाछो किए ने उखाड़ि‍ दि‍अए...। अपनाकेँ समटैत धीरू भैया कहलखिन-
आबो की भेल, बाजू। अखनि‍ तँ दुइए गोरे छी, कोनो बात झाँपि‍-तोपि‍ नै राखू। जौं पनचैतीमे इशारोसँ आएल हएत आ ओइपर पंचक धि‍यान नै गेल हेतनि‍, तैठाम पंच दोखी। मुदा जैठाम काजक कोनो गपे ने उठै, तैठाम तँ घरबैए दोखी। छातीपर हाथ रखि‍ बाजू।
  धीरू भैयाक जि‍ज्ञासा पाबि‍ लुटनी भौजी सहमि‍ गेली। सहमैक कारण भेलनि‍ परि‍वारक अर्थवि‍न्‍दु केना दोसर लग बाजब। अखनि धरि‍ तँ आबि‍ए रहल अछि‍ जे अपन मेन्‍टेन करैले भुखलो पेट बाबरी उनटा मुँहमे पान फुलबैत चलि‍ते अछि‍। जहि‍ना बि‍नु गुनाक रिंच धीरू भैया लगा खोलए चाहै छथि‍ तहि‍ना लुटनी भौजी दालि‍ तँ बाजथि‍ मुदा राहड़ि आकि खेसारी, से छि‍पबैमे माहि‍र। बजली-
मन अछि‍ कि‍ने जे अहूँ रस्‍तेपरसँ सुनैत रहि‍ऐ।
नै मन अछि‍। कनी मन पाड़ि‍ दिअ?”
सह पाबि‍ लुटनी भौजी छड़पि‍ बजली-
अहीं सन-सन बि‍सराह पंच न्‍यायालयमे अपन गवाही बदलि‍ दइ छै।
छि‍ड़ियाएल लुटनी भौजीकेँ देखि धीरू भैया पुछलखिन-
सुनू, जे गप करै छी तेकरा पहि‍ने मुड़नसँ सराध धरि‍ वि‍चार कऽ लिअ तखनि दोसर बात चालब। अच्‍छा, ओइ दि‍नका मन पाड़ि‍ दिअ जइ दि‍नक नाआें कहै छी।
जाल सुतरैत देखि लुटनी भौजी टुसि‍आइत कहलकनि-
सुनने रहि‍ऐ ने जेठकी पुतोहु बाजल रहए। ई केहेन भेल जे एक शीशी लोहासव भाए दऽ गेलै तेकर उपराग दि‍अए, से एहेन होइ। कहै कि‍ नै जे नैहरसँ दबाइ-दारू नै अबि‍तए तँ कहि‍या ने मरि‍ गेल रहि‍ताैं।
नै मन पड़ैए। कनी सेरिया कऽ मन पाड़ि‍ दिअ।
  जहि‍ना खि‍स्‍सकरकेँ सुनि‍नि‍हार भेटि‍ते मन खुशी भऽ जाइ छै तहि‍ना पुतोहुक पि‍तमरी ओढ़ि‍ लुटनी भौजी बजली-
अहींकेँ पुछै छी जे एकटा लोहासवक शीशीकेँ केते दाम हेतै। बड़े हेतै तँ एक सए रूपैआ। एक दि‍नक एक गोरेक खेनाइ केते होइ छै। से जोड़ि‍ लिअ। तखनि मि‍ला कऽ देखियौ जे तीस दि‍नक खर्चा जोड़लक तेकर कोनो मोजरे ने आ एक शीशी लोहासव जोड़ि‍नि‍हारक ढोल पीटए, से अहींकेँ बरदास हएत?”
धीरू भैया जवाब दैत पुछलखिन-
बरदास हुअए आकि‍ नै हुअए, मुदा जे परि‍वार तीस दि‍नक खर्च जोड़ैए तइ परि‍वारमे एक शीशी दबाइए किए बाहरसँ औत? मुदा नैहरक देल वस्‍तुकेँ बेसी आ सासुरकेँ कम कहब केहेन हएत। होइ किए अछि‍, होइए ऐ दुआरे जे नैहरक सम्‍पति‍क नाओंपर परि‍वारमे चोरि‍ पनपैए। तँए किए ने सम्‍मिलित परि‍वारक बीच बाहरक सभ वस्‍तु, सहबक आँखि‍क सोझहा आबि‍ जाउ। जखनि परि‍वार सबहक छि‍ऐ तँ परि‍वारक वस्‍तुओ ने सबहक भेल?”
बोहि‍याइत धीरू भैयाकेँ देखि बिच्‍चेमे लुटनी भौजी टोकलकनि‍-
एना नै हएत। जखनि अहूँ सुनए चाहै छी आ हमहूँ कहैए लेल एलौं तखनि‍ सुकचेनसँ सुनिए लि‍औ।
कहि‍ लुटनी भौजी चौकीपर पल्‍था जमा बैसली।
भौजीक नि‍श्चि‍न्‍ती देखि धीरू भैया बूझि‍ गेला जे पेटमरूक घरमे दुपहरि‍या सि‍दहा रहने भि‍नसुरका उखड़ाहामे नि‍श्चि‍न्‍ती आबि‍ए जाइ छै। तहि‍ना भरि‍सक भेलनि‍ अछि‍। मुदा हमहूँ तँ आब अपनाकेँ पहुलका जकाँ नहि‍येँ बुझै छी। सबहक झगड़ा हमरे छी से बुझै छेलौं, मुदा गंगा डूम देला पछाति‍ एते तँ भेल जे सभ झगड़ा बूझब अपन छी। झगड़ा तँ झगड़ौआक छि‍ऐ। जखनि भौजी आशा लगा कहए एली तँ पनचैती करए नै जाएब, मुदा चलैक रस्‍तामे जेतए जे गीरह-गेंठी छै तेकरा ताकि‍ नै बेड़ाएब सेहो तँ नीक नहि‍येँ भेल। जहि‍ना माघक सि‍ताएल कुत्ताकेँ छाउरक ढेरीपर बैसल देखि उकट्ठी छाउरबला, लोटो भरि‍ पानि‍ ऊपर उझैल दइ छै तहि‍ना धीरू भैया भौजीपर उझलैत बेटीकेँ कहलखि‍न-
बुच्‍ची, बहू दि‍न भऽ गेल लुटनी भौजीक संग बैस खेना, तँए पहि‍ने जलखै लाबह। पछाति‍ कलौऔ खुअबि‍हऽ।
धीरू भैयाक आग्रह सुनि‍ते लुटनी भौजीकेँ पछि‍ला एकटा घटना मन पड़लनि‍। घटना मन पड़ि‍ते कनबात बि‍सरि‍ लुटनी भौजीकेँ धीरू भैयाक बात अनसून हुअ लगलनि‍। जेकर फल भेलनि‍ जे वि‍चारमे जबरदस धक्का लगलनि‍। जे पाछू बुझलखि‍न‍। मन पड़लनि‍ ओ घटना जइमे लुटनी भौजी पार्टीक पंच बनि‍ पनचैतीमे गेली। जैठाम बूझि‍ नै पेली जे ई जगह केहेन छै। गाम-गामक चालि‍-ढालि‍ भि‍न्न-भि‍न्न छै। जइसँ गाम-गामक जगहो चोटाह भऽ गेल छै। कोनो गामक बेसी लोकक हाथमे कि‍ताब रहै छै तँ कोनो गामक बेसी लोकक हाथमे चुटपुटि‍यासँ नम्‍हरका हथि‍यार रहै छै। कोनो गामक बेसी लोकक हाथमे खेलक सामग्री रहै छै तँ कोनो गाममे हँसुआ-खुरपी-कोदारि‍, कोनो गामक बेसी लोकक हाथमे रि‍ंच-हथौरी, पेंचकश रहै छै तँ कोनो गाममे एजेंसीक फार्म-जि‍ल्‍द।
गपक हलहलीमे लुटनी भौजीकेँ शर्बतमे बीख मि‍ला देने रहनि‍। संयोग नीक रहलनि‍ जे लोकक बीच रहथि‍, उठा-पुठा कऽ डाक्‍टर लग जा जान बँचौलकनि‍। तही दि‍न लुटनी भौजी कान धऽ लेलनि‍ जे जगह देखि कि‍छु करैक चाही। मुदा लुटनी भौजीक भक्क तखनि‍ खुजलनि‍ जखनि‍ धीरू भैया दोहरा कऽ आग्रह केलखिन-
पहि‍ने कि‍छु खाइए लेब तखनि गप-सप्‍प हेतै।
‘खेनाइ’ सुनि‍ लुटनी भौजी चमैक बजली-
खाइ-पीबैक अरसट्ठा छोड़ू। गपेमे कनी तेजी आनि‍ लिअ। अखनि‍ खाइ बेरो ने भेल अछि‍। अहुना काज-उदममे कनी-मनी अबेर-सबेर भइए जाइ छै।
अपन जाल सुतरल देखि‍ धीरू भैयाक मन असथि‍र भेलनि‍ जे जहि‍ना गोनू झाक बि‍लाइ दूध देखि‍ भागि जाइत तहि‍ना खेनाइक नाओंपर लुटनी भौजीकेँ भगा सकै छी। मन थीर होइते धीरू भैया कहलखि‍न-
अहीं तेजीओक बात कहै छी आ अनठेबो करै छी?”
नै-नै, अनठबै कहाँ छी। एकटा ओझड़ी रहए तखनि‍ ने, तहूमे तेहेन-तेहेन भत्ता सभ धेने अछि‍ जे केकर मुँह केम्‍हर छै आ केकर नांगरि‍ केम्‍हर छै जे बति‍या जकाँ नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ ने देखए पड़ैए। ई तँ नै जे घेरा-झुमनीक बीआ जकाँ रोपैकाल केकरो मुड़ी अकास दि‍स आ केकरो पताल दि‍सकेँ दऽ दियौ आ जनमै काल जे पछुआए ओकरा भोरेसँ गरि‍याबी।
  जहि‍ना कथाकार लोकनि‍केँ सालक कि‍छु मास वि‍षैए खेजैमे राजगीर चलि‍ जाइ छन्‍हि‍ तहि‍ना लुटनी भौजीक कथा हराइत देखि धीरू भैयाक हजार नम्‍बर बि‍जली बौल जकाँ भुक्क दऽ मनमे उठलनि‍, जहि‍ना शि‍कारी जालक एकटा सूत पकड़ि‍ सौंसे जाल खोलि‍ लइए, तहि‍ना तँ गपे-गपमे झगड़ोक रग्‍गड़ पकड़ि‍ खोलल जा सकै छै। बजला-
जएह सोझहामे पड़ै तेकरे अन्‍है जकाँ कि‍म्‍हरोसँ मुट्ठीएने आउ। अपने ने देखबै जे अगि‍ला जन्‍ममे कोन साँप हएत।
धीरू भैयाक सह पाबि‍ लुटनी भौजी समधि‍-समधि‍न दि‍स छड़पैत बजली-
कहू तँ एहेन बात अहींकेँ बरदास हएत?”
बि‍नु मुड़ीक बात सुनि‍ धीरू भैया अकचकेला। कालीए ने अन्‍हरि‍या राति‍ छी। जि‍नकर जि‍ह्वा लपकि‍-लपकि‍ दुष्‍ट नाश करै छन्‍हि‍। मुस्‍की दैत भौजीकेँ टुसकि‍यबैत कहलखि‍न-
एना झाँपि‍-तोपि‍ बजने काज नै चलत। उघारि‍-उघारि‍ बाजू।
सह पाबि‍ सहटैत लुटनी भौजी आँखि‍-कान, मुँह-नाक आ दहि‍ना हाथक पाँचो ओंगरी छि‍ड़ि‍यबैत बजली-
घरक बात छी आनठाम बजैमे लाज होइए मुदा अहाँ तँ जि‍नगी भरि‍क संगी छी, बारह-बजे दि‍न आकि‍ बारह बजे राति‍ संगे लोकक बीच रहलौं, दुनू गोरेक तीत-मीठ दुनू गोरे जनै छी। तँए कहै छी। कहू जे ई केहेन बात हरिदम जेठकी कहै छेलए जे हमरा माएक पएर धोनो जकाँ हि‍नकर छीछा-बीछा नै छन्‍हि‍।
लुटनी भौजीक बात सुनि‍ धीरू भैया पुछलखि‍न-
ऐमे अहाँक कोन लखराज-बह्मोत्तर चलि‍ गेल। जे बात पुतोहुकेँ माए-बापक सि‍खौल मन नै रहलनि‍। जौं मन रहि‍तनि‍ तँ वि‍चारि‍ कऽ ने बजि‍तथि‍ जे जखनि दुनू समधीनक बीच हम बेटी-पुतोहु दुनू भेलौं, तखनि हमरा लि‍ऐ दुनू ने एक्के रंग। एक जि‍नगीक पूर्व पक्ष आ दोसर उत्तर पक्ष। तइले एते अहीं किए आमील पीने छी?”
मीठगर बात रहि‍तो लुटनी भौजीकेँ अमताइन लगलनि‍। मन गबाही दइले तैयार भेलनि‍ जे कोनो बौस रसगुणसँ खट्टा होइए मुदा जे रसगुणसँ खट्टा नहि‍योँ होइए ओहो बाइस-तेबाइस भेने तँ खटाइए जाइए। जौं से नै होइए तँ दहीक सुआद खट्टा तँ नै छि‍ऐ मुदा चीनीक काज किए पड़ै छै। पेराशूत जकाँ मजगूती लुटनी भौजीक मुँहकेँ धकेल खोललकनि‍-
अच्‍छा अहीं कहू तँ एक्के विद्यार्थी कौलेजमे प्रोफेसरसँ पढ़ैए, हाइ स्‍कूलमे उच्‍च शि‍क्षकसँ तइसँ कम मि‍ड्ल स्‍कूल आ सभसँ पहि‍ने अपना परि‍वारक भाए-बापक संग अगुआएल भाए-बहि‍नसँ सेहो पढ़ैए, तइमे के कम श्रेष्‍ठ के श्रेष्‍ठ आ के बेसी श्रेष्‍ट भेल, से पहि‍ने बुझा दिअ।
लुटनी भौजीक प्रश्न सुनि‍ धीरू भैया टेढ़ रस्‍तापर जहि‍ना साइकि‍लक मुँह घुमौल जाइ छै तहि‍ना भौजीक मुँह घुमाएब बुझलनि‍। तेहेन नेतागि‍रीबला सबाल पटकए चाहै छथि‍ जे अनेरे दि‍नक-दि‍न मासक-मास खाइबला अछि‍। मुदा आँखि‍-मुँहक चढ़ती देखि अपनाकेँ चढ़बैत बजला-
देखू, अखनि‍ धरि‍ नै कहने छेलौं मुदा जखनि गप-पर-गप उठैए तखनि‍ कहिए दइ छी।
  हराएल बौस भेटैक संभावना देखि जहि‍ना जिज्ञासा जगैत तहि‍ना जि‍ज्ञासु लुटनी भौजी बजली-
मनक बात जे चोरा कऽ रखैए ओ चोरे भेल। अखनि‍ धरि‍ अहूँ सएह भेलौं।
लुटनी भौजीक तीनकमियाँ बंशी धीरू भैयाकेँ लगलनि‍ जरूर मुदा जीहमे नै कातक गलफरमे झि‍ट्टा मारने रहनि‍। जे कनीमनी धाउ भेने तँ छुट्टिओ जाइ छै। मुदा अमती काँट नि‍कालैले बगूर आकि‍ बेलक काँटक जरूरति‍ पड़ि‍ते अछि‍। पुछलखि‍न-
केते दि‍न अहाँक जेठकी पुतोहु कहलनि‍ जे सासु-सासु जकाँ हुअए तखनि ने, बुढ़ि‍या तेहेन लुपकाहि‍ छथि‍ जे भेल भानसपर चुल्हि‍ गरमे रहै छन्‍हि‍, केम्‍हरोसँ एकटा करैला, तँ केम्‍हरोसँ एकटा झुमनी नेने औती आ हाँइ-हाँइ कऽ दू-तीनटा टुकड़ी तड़ि‍ लेती। तड़ै छथि‍ तइले दुख नै होइए मुदा तेहेन अपसोगारथी छथि‍ जे आगूमे बैसल मुँह तकैत रहब, मुदा एक टुकड़ी देती नै।
कोठीक मुँहसँ जहि‍ना धान-चाउर भुभुआ खसैए तहि‍ना लुटनी भौजी भुभुएली-
बौआ, पेटक बात बजै छी। हमरा एक खढ़ इच्‍छा नै हुअए जे जेठकी साझही रहए। तीनि‍टा बेटा अछि‍ तीनि‍टा पुतोहु हएत। अहीं कहू जे तीन-तीन गोटे जइ घरक भनसि‍ये भऽ जाएत तइ घरमे भानसक जोगार के करत। कनि‍येँ उच्‍छन्नर देने भीन भेल, अपन परि‍वारक भार उठौलक।
सम्‍मि‍लि‍त परि‍वारक माने ई नै ने जे कि‍छु गोटे कमेलौं बाँकी सभ बैस खेलौं। सम्‍मि‍लि‍त परि‍वारक माने सम्‍मि‍लि‍त जि‍नगी होइ छै। तँए...।
धीरू भैयाक बात सुनि‍ लुटनी भौजी बजली-
अखनि‍ जाए दिअ।
‘अखनि‍ जाए दिअ’ बजि‍ते लुटनी भौजीकेँ धुक दऽ मन पड़लनि‍ छोटकी पुतोहु। ओकरे कारनामा कहैले धीरू भैया ऐठाम आएल छी।
तखने धीरू भैया चड़ि‍यबैत पुछलकनि‍-
देखू, बेर-बेर एक्के घरक पनचैती केने घर हेहरू भऽ जाइ छै। तँए जेते झगड़ा अछि‍ से सभटा आइए सुनि‍ लेब। बाजू, दोसर पुतोहु किए परदेश चलि‍ गेल?”
  पहुलका पुतोहुक खेरहा ओराइते लुटनी भौजी खड़हीसँ नि‍कलि‍ परतीपर डण्‍ड-बैसकी करैत नढ़ि‍या जकाँ बजली-
देखि‍यौ बौआ, मझि‍ली सोहरदे मने गेल। कहि‍यो झगड़ा-झाँटी नै भेल। ओना झगड़ा-झाँटी करए चाहि‍तौं तँ दुनू साँझ होइतए मुदा अपने परहेज करैत रहलौं।
‘अपन परहेज’ सुनि‍ धीरू भैया दोहरौलकनि‍-
की परहेज केलौं?”
की पुछै छी जेते करूतेल सात दि‍नमे खर्चा होइ छेलए तेते एक्के दि‍नमे करै छेली। मुदा घरक बात बूझि‍ केकरा कहि‍ति‍ऐ। लोक कहैत जे पुतोहुकेँ खाइओ ले ने दइ छै।
अच्‍छा छोड़ू, भरि‍ दि‍न अहाँ पुतोहुकेँ नीक-नि‍कुत खुअबि‍ते रहलौं। परदेश किए जाए देलि‍ऐ। बेटा कमाइले गेल आकि‍ घर-दुआर बनबैले?”
धीरू भैयाक प्रश्न लुटनी भौजीक मनकेँ हौंर देलकनि‍। जहि‍ना छाँछीमे दूध, मक्‍खन आ पानि‍ रेहीक बले संगे नचैत तहि‍ना लुटनी भौजीक मन नचलनि‍। बजली-
बौआ, ओकर बापो शहरे-बजारमे परि‍वार रखि‍ बेटीकेँ पढ़ेबो केलक आ ट्रेंनि‍ङो करा देलकै। ओतए ओ दुनू परानी नोकरी करत, कमाएत। ऐठाम कोन काज करैत, तँए वि‍चारेसँ जाए देलि‍ऐ।
जहि‍ना दुनू जेठकी-छोटकी बेटा-पुतोहु घर छोड़ि‍ चलि‍ गेल तहि‍ना जौं तेसरो चलि‍ जाए तखनि की करबै?”
  धीरू भैयाक प्रश्न लुटनी भौजीकेँ मरोड़ि‍ देलकनि‍। चारू दि‍स नजरि‍ दौगए लगलनि‍। मुदा, जवाबक कोनो बाट नै देखि पाशा पलटैत बजली-
देखि‍यौ बौआ, गण्‍डा हुअए आकि‍ गाही, दर्जन हुअए आकि‍ सोरे, असल बेटा तँ दुइएटा ने होइ छै। औरो -बीचलका- संग तँ कटा-कटी भइए गेल छै।
‘कटा-कटी’ सुनि‍ धीरू भैया प्रश्न उठौलनि‍-
की कटा-कटी भेल छै?”
  धीरू भैयाक प्रश्न सुनि‍ते लुटनी भौजी मचि‍यापर बैसल मचि‍बाह जकाँ मचमचबैत बजली-
जेना कोइ बि‍लेँतसँ आबि‍ कहै छै जे गामक कि‍छु ने बूझल अछि‍ तहि‍ना अनठा कऽ बजने नै हएत।
लुटनी भौजीकेँ धकि‍यबैत देखि धीरू भैया बामा ठेहुनकेँ अरकबैत झमाड़ि‍ बजला-
अच्‍छा बाजू, की कटा-कटी भेल छै?”
धीरू भैयाक आग्रह सुनि‍ लुटनी भौजी अगुआ जकाँ अगराइत बजली-
अहाँकेँ नै बूझल अछि‍ जे जेकरा चारि‍ या पाँचटा बेटा रहै छै, ओइमे बीचला बि‍नु कि‍छु केनौं पाक-साफ रहैए, मुदा से जेठका छोटकाकेँ समाज बनए देत?”
लुटनी भोजीक प्रश्न सुनि‍ धीरू भैया बौलकेँ आगु बढ़बैत गोलकीमे सेरिया कऽ फेकलनि‍-
अहाँ मने बीचला जेते बेटा भेल ओ बेटा भेबे ने कएल?”
दुनू हाथसँ गोली-बौलकेँ पकड़ि‍ जहि‍ना गोल होइसँ बँचा लइए तहि‍ना लुटनी भौजी बजली-
बेटा भेबो कएल नहि‍योँ भेल। रीति‍-रेबाजकेँ मानबै तँ नै भेल, अपन बेटत्‍व बुझबै तँ जहि‍ना एकटासँ छोट अछि‍ तँ दोसरसँ नम्‍हरो तँ अछि‍ए कि‍ने।
लुटनी भौजीक बात सुनि‍ दोसर दि‍स मुड़ैत धीरू भैया बजला-
एहनो बेटा -बीचला- तँ होइते छै जे जेठका-छोटकाक सीमा तोड़ि‍ माए-बापक सेवा करैत अपनाकेँ जेठका, मझिला, सझि‍ला, छोटकाक पति‍यानीक बीच ठाढ़ भऽ जाइए?”
धीरू भैयाक प्रश्नक उत्तर नै पाबि‍ लुटनी भौजी करोटि‍या मारलनि‍-
देखि‍यौ, जेठका-छोटका नै कोनो बात भेल। जौं से होइत तँ हजारक-हजार बेटाबला सगरकेँ कि‍यो काज नै देलकनि‍। खाइओ बेर भेल जाइए मुदा बात पछुआएले रहि‍ गेल अछि‍।
अहाँ तँ अपने खापड़ि‍क मकइ जकाँ कुदि‍-कुदि‍ छि‍ड़ि‍येबो करै छी आ तीसी जकाँ चनचनेबो करै छी। बाजब की फेर बौएबे करब।
टि‍कासनपर बैसल घरछाड़ा जकाँ मठौठक खढ़-बत्ती अजमबैत अजमौनि‍हार जकाँ लुटनी भौजी बजली-
अहीं कहू जे ई केहेन भेल जे ठेँसगरि‍ जकाँ बाजलि रहए‍।
‘ठेँसगरि’‍ सुनि‍ धीरू भैया टि‍पलनि‍-
खाली टीकमे ककही चलौने बाबरी नै होइ छै। सेरिया कऽ बाजू जे झगड़ाक जड़ि‍ की‍ अछि‍?”
झगड़ाक जड़ि‍ की रहत? अहाँ नै देखै छि‍ऐ जे घरसँ बलजोरी घि‍च-घि‍च स्‍त्रीगणक संग की होइ छै, तैठाम कहैए जे केमरा लऽ कऽ बि‍आह-मुड़नमे फोटोग्राफी करब। तेकरा हम रोकबै नै। लुच्‍चा-लम्‍पटक बरियाती भऽ गेल अछि‍ आकि‍ नीक लोकक अछि‍। ताड़ी-दारू पीब छौड़ा सभ नाच करैए तैठाम इज्‍जत-आवरू लोक अपने नै बँचाएत तँ आन गोरे लेतै की बँचौतै।
लुटनी भौजीक बात सुनि‍ धीरू भैया ठमकला। अपनाकेँ नि‍रूत्तर पाबि‍ पुछलखि‍न-
बीचमे तँ बेटो अछि‍ तेकरा पहि‍ने की कहलि‍ऐ?”
बेटाक नाओं सुनि‍ते लुटनी भौजी चौकीपर सँ कुदि‍ निच्‍चाँ आबि‍ बजली-
ओ तँ हि‍जरा छी हि‍जरा। ने मौगीए ने पुरूखे। बलि‍गोबना। ओकरे सहसँ तँ पुतोहुओ दूरि‍ भेल अछि‍। ओइ ि‍नर्लज्‍जाकेँ कथी‍ कहबै?”
तखनि मुँह किए तकैत रहै छी, दुनू हाथे झोंटा पकड़ब से नै?”
मन अपनो होइए मुदा फेर सोचै छी कहीं हाथा-वाहीं भेल तँ ऐ बुढ़ाड़ीमे मारि‍ खाएब, नै जे झोंटा-झोंठौअलि‍ भेल तँ ओकर तड़गर केश छै गोटे-आधे उखड़तै मुदा अपन तँ पकलाहा गोट-गोट कऽ बीछा जाएत, तेकरो डर होइए कि‍ने? एकबेरक जौं पकलाहा केश रहैत तँ ओते दुख नहि‍येँ होइतए मुदा समरथाइएसँ जे गोटि‍-पंगरा शुरू भेल ओ आब सोलहन्नी भेल।
‘डर’ सुनि‍ धीरू भैया बजला-
बेटा-पुतोहु दुनूकेँ कहि‍ दियौ, तुकपर खाइले दि‍अए। ऐसँ बेसी आब कथीक जरूरति‍ अछि‍। इन्‍दि‍रा अवासक घर भइए गेल, तेहेन-तेहेन स्‍वीटर, कम्‍मल, साड़ी पुतोहुओ पठा दइए आ बड़ो-वि‍दाइ तेते होइए जे लत्ता-कपड़ाक जरूरते ने अछि‍। तखनि की चाही? ओना करैए वा नै करैए ई ओकर धर्म काज भेलै। जौं नहि‍योँ करत तँ अहाँकेँ छोड़ि‍ भगती से काज चलतनि‍।
धीरू भैयाक बात सुनि‍ लुटनी भौजीकेँ कि‍छु हराएल बौस जेना भेटलनि। पुछलखि‍न-
नै बुझलौं जे की कहलि‍ऐ, नै बनतनि‍?”
गदगदाइत लुटनी भौजीक चैहरा देखि धीरू भैया कहलखि‍न-
जीता जीनगी अहि‍ना होइ छै हेबै करतै। कहुना अहाँ माए भेलि‍ऐ। जीबैसँ मरै धरि‍क भार ओकरा छै। से जाबे नै पुरौत ताबे परतवाएक भागी रहत। तँए अहाँ मुइलोपर बि‍सेबनि‍।
  मुइलि‍क असरा देखि लुटनी भौजीकेँ अपन ओछाइनि‍क जि‍नगी मनमे उठलनि‍। दबाइओ-दारू तँ करैए पड़तै...।
धीरू भैया लुटनी भौजीक झगड़ा समापन केनौं ने रहथि‍ आकि‍ लुटनी भौजीक छोटका बेटा-सोमना आबि‍ रूआब झाड़ैत बाजल-
काका, ऐ बुढ़ि‍याकेँ पुछि‍यौ जे एहेन गप्‍पकरि‍ किए अछि‍ जे अपनो भूखे टटाइत हएत आ हमरो सभकेँ टटबैए।
सोमनाकेँ सम्‍हारैत धीरू भैया कहलखिन-
पुरना गप-सप्‍प मन पड़ि‍ गेल छेलै तँए देरी भऽ गेल।
आँखि‍क इशारा लुटनी भौजीकेँ दैत सोमनाकेँ कहलखि‍न-
माएकेँ अण्‍डा-तण्‍डा खुअबै छहक कि‍ने?”
की खुएबै, बुढ़ि‍या अपने हथकट्टू अछि‍। सोमना बाजल।
अागू-आगू लुटनी भौजी आ पाछू-पाछू सोमना घरमुहाँ भेल। मुदा अमती काँटमे लुटनी भौजीक मन ओझराइते रहनि‍, होन्‍हि‍ जे अखनि मुहेँ कान-तोपि‍ दि‍ऐ मुदा फेर सोचथि‍, एक तँ अबेरक सगुन छी जौं तेकरा भंगठाइए लेब तँ अौझुका दि‍ने ओहि‍ना रीब-रीबेमे चलि‍ जाएत। तँए चुपे रहब नीक।
तहि‍ना सोमनाक मनमे अपन तँ कम्मो-सम्म मुदा घरवालीक बात कहैले आन गोटे लग किए गेल, से तामस रहै। होइ जे लोक जौं नीक कहि‍तए तँ अखने चारि‍ए थापरमे मुँह घूमा घर दि‍स कऽ दैति‍ऐ। मुदा एक तँ ओहि‍ना समाजमे अबाह छी तैपर जँ एहेन काज करब तँ आरो दोखी हएब। तँए चुपे रहब नीक।
m m m

No comments:

Post a Comment