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Friday, October 18, 2013

(68) बगबारि‍‍

बगबारि‍‍

अदरा अपन चौदहम दि‍न बि‍ता काल्हि‍ चलि‍ जाएत। बहुत दि‍न पछाति‍‍ अदराकेँ एहेन जश भेल। जशो केना ने होइत, पहि‍ल दि‍न अबि‍ते बरि‍स गेल जइसँ धू-धू जरैत धरतीकेँ असमानी पानि‍ भेटि‍ते मन ति‍रपि‍त भेल तँ दोसर दि‍स पछि‍ला सात साल पछाति‍‍ एहेन आम-कटहरसँ भेँट भेलै। तहूमे पछि‍ला सालक छगाएल मन आमक अभावमे रहने आरो बेसी सि‍नेहासि‍क्‍त भऽ गेल। दोसर साँझ जारनि-काठी चुल्हि‍ लग ओरि‍या फुलि‍या पति‍-हराननकेँ अदरा नक्षत्रक अंति‍म दि‍न मन पाड़ैत कहलखिन-
काल्हि‍ए भरि‍ अदरा अछि‍, तँए...?”
फुलि‍याक बात सुनि‍ हरानन ओहि‍ना मनमे औंटए-पौड़ए लगला जहि‍ना नेबोरस, चीनी आ पानि‍केँ औंट-आँटि‍ शर्बत बनाैल जाइ छै। बातकेँ औंटैत-पौरैत हरानन बजला-
काल्हि‍ जाए कि‍ परसू जाए, आकि‍ नहि‍येँ अबि‍तए-जइतए तइसँ अपना की। ने आम-कटहर अछि‍ आ ने खुट्टापर लगहरि‍ गाए-महिंस। तखनि अदराकेँ एने आ गेने की?”
हराननक बात फुलि‍याकेँ आन घरक जनि‍जाति‍ जकाँ छुलकनि‍ नै बल्‍की‍ पति‍क वि‍चारकेँ गौर केलनि‍। कहै तँ ठीके छथि‍ मुदा साल भरि‍क पावनि‍ छी, बाल-बच्‍चा घरमे केना छोड़ि‍ओ देब। एकबेर छुटने तँ जि‍नगीए भरि‍ छूटि‍ जेतै। बजली-
नै पान तँ पानक डंटि‍ओसँ पावनि‍ नै करब से केहेन हएत?”
फुलि‍याक आग्रह सुनि‍ हरानन सामंजस करैत बजला-
घरमे रहने सभ दि‍न पावनि‍ए-पावनि‍ होइ छै आ नै रहने पावनिओ फोंक भऽ ओहि‍ना चलि‍ जाइ छै जहि‍ना आन दि‍न जाइ छै।
फुलि‍या मुड़ी डोलबैत कहलखिन-
हँ, से तँ जाइ छै मुदा पावनि‍क अपन ‘रूपं मधुरम् ति‍लकं’ मधुरम होइ छै।
फुलि‍याक बात सुनि‍ मुस्‍की दैत हरानन बजला-
हँ से तँ होइ छै। मुदा एहनो तँ होइ छै जे सालक सत्ताइस नक्षत्रमे अदरो एकटा छी। जे पनरहो दि‍न अरबा चाउर, दूध-चीनी, आम-कटहरसँ पूजल जाइए आ दोसर एहनो नक्षत्र तँ होइते अछि‍ जेकरा एको दि‍न पूजन-पावनि‍ नै होइ छै। तँए कि‍ ओ सालक नक्षत्र नै भेल?”
भेल किए ने, मुदा सभकेँ लौल रहै छै कि‍ने जे आगत-भागत हुअए।
फुलि‍याक बात ओराएलो ने छेलनि‍ कि‍ बि‍च्‍चेमे हरानन टपकला-
लौलो-लौलमे भेद होइ छै। कि‍यो अपन सेवा कएल छागड़ बलि‍ चढ़बैए आ कि‍यो नगद नारायणसँ कीनि‍ चढ़बैए, चढ़बैत तँ दुनू अछि‍। मुदा अहीं कहू जे दुनू एक्के मोने चढ़बैए?”
जखनि घरमे अरबा चाउर नै अछि‍, दूधक जोगार नै अछि‍, ओहो जे बगबारि‍‍मे आम-कटहर होइ छेलए सेहो छीना गेल, तखनि तँ ठीके...। छुछ मुहेँ शंख बाजत?”
हँ से तँ नै बाजत। मुदा...?”
साठि‍ बरखक हरानन अपन अंति‍म हार पछि‍ला साल तखनि मानि‍ गेला जखनि अपन लगौल-सजौल गाछी-कलमक टुकलोसँ बंि‍चत भेला।
  पि‍ता परोछ भेला पछाति‍ हरानन पाँच बीघा चास, तीन कट्ठा बास आ आठ कट्ठा गाछी-कलमक रक्षक छला। ओना चास-वास अरजैमे हराननक कोनो योगदान नै छेलनि‍ मुदा आठ कट्ठा गाछी-कमल लगबैमे तँ छेलनि‍हेँ।
दस-बारह बरखक जखनि हरानन रहए तखने पि‍ता-रूपलाल अपन पुरना गाछी उपटबैक वि‍चार केलनि‍। उपटबैक कारण रहनि‍ जे एक तँ आम सभ नीक नै अछि‍ दोसर जेहो छेलै से पुरान भेने या तँ फड़बे नै करैत या तँ फड़ला पछाति‍ रोगाइए जाइ छेलै। रूपलालक मनमे उठलनि‍ जे गाछी-कलम कि‍ लोक अपना नापसँ लगबैए जे हम तीस बरख जीब तँए आमो गाछ तीसे बरख रहत। तीन-तीन-चरि‍-चरि‍ पुश्‍तक गाछी-कलम, पोथी-कलम सभसँ परि‍वार सुख करैए। से नै तँ दस बारहे बरखक हरानन अछि‍ तइसँ कि‍ मुदा अपना संगे ओकरो कि‍छु भार देबै। दुनू बापूतक सीमानपर एकटा गाछीओ रहत। पुरना गाछीक गाछ हटा रूपलाल पाँच बरख जोत-कोर केलनि‍। अन्न उपजौलनि‍। गाछी लगबैसँ पहि‍ने हराननकेँ कहलखि‍न जे बौआ नीकहा आमक आँठि‍ बीछि‍ एकठाम रोपिहऽ आ कलम लगबैले सहरगंजा एकठाम। हाथ-हाथ भरि‍पर रोपि‍ दि‍हक जे उखाड़ैमे असान हएत। अपन लगौल गाछी-कलम अधि‍क बि‍सवासू होइए। समए तेहेन भऽ गेल अछि‍ जे बि‍सवास अपन चेहरे बदि‍ल लेलक। जे नर्सरी गाछी-कलम, वाड़ी-फुलवाड़ीक बीआ बेचैए ओहो ओहन भऽ गेल अछि‍ जे कहत सागवानक गाछ छि‍ऐ आ भऽ जाइए वौनैया काँट। खैर जे होउ, अपन गाछी अपने लगाएब।
  सालभरि‍ पछाति‍ आँठीसँ डेढ़-डेढ़, दू-दू हाथक गाछ भऽ गेलै। सरहीकेँ मुसरा काटि‍, बड़द जकाँ सुरेब बनैले थल्ला उखाड़ए कहलखि‍न। अपने आगूमे आबि‍ केना खुरपी उनटा-सुनटा चलत तइ ताकमे बैसला। आठे कट्ठा कलम-गाछी लगत तइमे गाछे केते रोपल जाएत। तहूमे नवका बौना कि‍स्‍म नै, बड़का कि‍स्‍म छेलै। मेल-पाँच कऽ सरही एक भाग आ कलमी एक भाग लगेनाइ नीक हएत। सएह केने रहथि‍। अपन खेती-पथारीक जि‍नगी हराननक तँए झूठ-फूससँ कम भेँट।
  एक्कैस बरखक अवस्‍थामे हराननकेँ बेटा भेलनि‍। तीन मास पछाति बच्‍चाक माथ नम्‍हर हुअ लगलै। साल भरि‍ जाइत-जाइत असर्द्ध देखैमे लगए लगलै। दुनू परानी हरानन ि‍वचारलनि‍, कोखि‍क पहि‍ल सन्‍तान छी। केना छोड़ि‍ देब। जमीन-जत्‍था लोक किए रखैए। से नै तँ जाबे तक जीबैक आशा रहतै ताबे तक तकति‍यान करबै। तइले जे होउ। खेत-पथार रहौ आकि‍ चलि‍ जाउ। जौं मनुख बँचत तँ ओहूसँ बेसी अरजि‍ लेत आ जौं मनुक्‍खे ने रहत तँ खेते-पथार कोन काजक। गणेशजी माथ सन ओइ बच्‍चाक माथ भऽ गेलै। एनमेन हाथी माथ सदृश।
समाजक चलैनानुसार हरानन दुनू दि‍स बढ़ल। एक दि‍स गामक डाक्‍टरी-इलाज तँ दोसर दि‍स झाड़-फूक, टोना-टापर। बिमारीक चक्रमे पड़ने दुनू बेकतीक जीवनचक्रे बदलि‍ गेलै। एक दि‍स हरानन भरि‍-भरि‍ दि‍न झाड़-फूक केनि‍हारक भाँजमे बौआइत तँ दोसर दि‍स फुलि‍या घरेक आइ-पाइमे समए गमबए लगली।
एक दि‍स सौनक बून जकाँ खर्च बरसए लगलनि‍ तँ दोसर दि‍स खेती-पथारीसँ वि‍मुख भेने आमदनी हराए लगलनि‍। छह मास बि‍तैत-बि‍तैत तीन बीघा बि‍का गेलनि‍। मुदा अखनो आशा ओहने बनल छन्‍हि‍ जहि‍ना छह मास पहि‍ने छेलनि‍। जे कि‍यो डाक्‍टरसँ लऽ कऽ झाड़-फूक केनि‍हार धरि‍ देखैत ओ कि‍यो ने कहैत जे रोग नै छूटत। एते बोल-भरोष दैत जे रोग नि‍श्चि‍त भगबे करत। जइ खेतक अन्नसँ हराननक परि‍वार चलै छेलनि‍ वएह खेत बेचि‍-बेचि‍ अपनो खाए लगला। ठाकुरक बरियाती जकाँ सभ ठाकुरे-ठाकुर। उचि‍त-अभ्‍यागतक भाँजमे अपनो दुनू परानी हरानन सएह बनैत चलि‍ गेला। खेत बीक रहल अछि‍ आ रोगो बढ़ि‍ रहल अछि‍। समुद्रमे भँसैत नाव जकाँ केतए जाएत कोनो ठीक नै। बि‍नु महारक पानि‍मे अहिना होइ छै।
दस मास पुरैत-पुरैत बच्‍चा मरि‍ गेलै। बच्‍चा तँ मरि‍ गेलै मुदा परि‍वारोक कोनो तन-भगन नै रहए देलकै। खेतक लूट भऽ गेलै। कि‍यो उचि‍त मूल्‍य दऽ लेलनि‍, तँ कि‍यो हथपैंच एकक तीन केलनि‍। घराड़ी छोड़ि‍ हराननकेँ कि‍छु ने बँचलनि‍। खाली एतबे जे चास बटाइ करता आ गाछी-कलम ओगरवाहि‍।
बेटो-मृत्‍यु तँ सबहक एक्के रंग नै होइत। कि‍यो जनमि‍ते मरि‍ जाइए तँ कि‍यो रोग-वि‍याधि‍सँ चट-पटा मरैए। मुदा तइ संग ईहो ने होइ छै जे कि‍यो जनमरोगी बनि जीबैए तँ कि‍यो रोगाएले जि‍नगीक आनन्‍द लुटैत जीबैए। जहि‍यासँ हरानन बेटाक बिमारीक इलाजक पाछू बढ़ला तहि‍येसँ दुनू बेकतीक मन-मोटाउ सेहो बढ़ए लगलनि‍। मन-मोटाउक कारण रहनि‍ दुनूक दू धारणाक धारा। हराननक मनकेँ पकड़ने जे डाक्‍टरी इलाजसँ रोग भागत। मुदा फुलि‍याक मन झाड़-फूकमे पकड़ाएल। जेकर फलाफल डाक्‍टर आ झाड़-फूक केनि‍हारकेँ एलापर स्‍पष्‍ट देखि पड़ैत। जैठाम हरानन डाक्‍टरक आइ-पाइ नीक जकाँ करै छला तैठाम फुलि‍या झड़नि‍हार-फूकनि‍हरक। काजक दौड़मे परि‍वारोक बीच अहिना होइ छै। कि‍यो काजकेँ काज बूझि‍ करैए आ कि‍यो काजकेँ काज बुझैए। भलहिं कि‍यो काजक आ कि‍यो अकाजक किए ने बनि‍ जाए। बि‍लाइक झगड़ामे बानर पंच। जखनि मंतरि‍या अबैत तँ घंटो बैस डाक्‍टरी इलाजकेँ अदखोइ-बदखोइ करैत। दुनूक बीचक लट-पट-सट-पट दुनू बेकती हराननक वि‍चारपर सेहो पड़ि‍ते छेलनि‍। रोगकेँ कमैत नै देखि‍ दोसर-तेसर साँझमे सभ ि‍दन दुनूक बीच एक आखर होइते छेलनि‍। एक दि‍स खेत बोहाइत देखि‍ हरानन झाड़-फूककेँ अनुचि‍त खर्च बूझि‍ झपटथि‍ तँ दोसर दि‍स फुलि‍या डाक्‍टरी इलाजकेँ। पंच कि‍यो ने। दुनू पार्टी लड़ि‍ए कऽ फड़ियेता। जे दसम मासमे ि‍नर्मूल भेल।
हरानन बोनि‍हार-बटेदार नै कि‍सान-बटेदार बनि‍ नव जीवन धारण केलनि‍। जि‍नगी बदलने बहुत कि‍छु बदलैओ पड़ै छै आ बहुत कि‍छु अपनो बदलि‍ जाइ छै। हराननक अपन खड़ि‍‍हाँन उसरि‍ गेलनि‍। खेतक उपजा अदहा-अदही सेहो अपना मोने ने लगा सकै छी, ने काटि‍ सकै छी आ आमक बगबारि‍‍ कलमी चारि‍मे एक आ सरही तीनमे एक भेटतनि‍। भलहिं कलमीसँ सरहीए किए ने नम्‍हरो आ गुदगरो हुअए।
वसन्‍त पंचमीक दि‍न। सरस्‍वती पूजाक संग कि‍सान हरो ठाढ़ करता। जोड़ा बड़दक बटेदार कि‍सान रहि‍तो हरानन हर केतए ठाढ़ करता। कि‍सान तँ अपन ओजार -हर-कोदारि‍-खुरपी-हँसुआ- बड़ही ऐठामसँ सान करा अपना घरमे पूजा करत आकि‍ अपन हाथ आ हाथक ओजार अनका घर? हर ठाढ़ केतए करब, हराननक मनकेँ हौंड़ि‍ देलकनि‍! सतंजा अन्न सतंजा तीमन-तरकारी जकाँ हरानन बेड़ा नै पाबि‍ रहला जे की कथी छी। अपन रंगे बदलि‍ नेने अछि‍। खेतमे मेहनति‍ ओतबे करब मुदा उपजा अधि‍या हएत। जइ साल रौदी-दाही हएत तइ साल बटेदारक खर्च जाएत आकि‍ खेतबलाक खेत। मुदा उपाएओ तँ दोसर नहि‍येँ अछि‍। फेर मन घुमलनि‍, कि‍छु खेती जोति‍-कोरि‍ होइ छै आ कि‍छु ओहुना -छि‍टुआ- सेहो होइ छै, तइमे की‍ नीक? आगू सीमा घेरल अछि‍। अधि‍या। जखनि अदहे हएत तखनि किए ने लागतमे कटौती कएल जाए। ओते तँ बँचत हेबे करत कि‍ने। मुदा जौं बीए खा जाएब तखनि खेती कथीक करब। श्रमक ह्रास मन्‍थर गति‍ए नै दुरूत गति‍ए भेल। जहि‍ना सौनक झटकीमे पानि‍क नम्‍हर-नम्‍हर बूनक संगबे हवा भेने आरो दगनि‍याँ रूप पकड़ि‍ बरि‍सैए तहि‍ना श्रमक ह्रास भेने रंग-बि‍रंगक रोग श्रम-शक्‍ति‍केँ धेलक। केतौ श्रमक चोरि‍ तँ केतौ श्रमक बेइमानी, केतौ अनदेखी तँ केतौं बलजोर!
तेसर सालक पंचायत चुनाव हराननकेँ आरो धकि‍यौलकनि‍। जि‍नगीमे दुनू परानी हराननकेँ छल-प्रपंच, गरीब भेनौं नै छूबि‍ सकलनि‍। भगवानक लीला बूझि‍ सभ दुख-सुखकेँ दुनू परानी घोंटि‍ गेला। मनो मानि‍ लेलकनि‍ जे जहि‍ना बेटा आएल तहि‍ना गेल। दुनि‍याँ थोड़े दोखी बनाएत जे बेटाक तकति‍यान नै केलिऐ। धर्म-कर्म धने ने सुधन कहबैए। की ई हमर सफलता नै जे बेटा लेल अपन सर्वस्‍व गमा लेलौं। मुदा दोखोक तँ एक नै अनेक कारणो छै। जेकर फलो सोझहेमे अछि‍।
तीन गोटे पंचायतक मुखि‍या लेल उम्‍मीदवार रहथि‍। तीनूमे के नीक ओ वि‍चारि‍ दुनू परानी हरानन भोँट देलखि‍न। जि‍नका हाथे गाछी-कलम बेचने रहथि‍ आ अखनि हुनके बगवार बनि‍ गाछी ओगरवाहि‍ करै छला। अपन बगवार बूझि‍ हराननकेँ अपन भोँटर बुझै छला कुलानन। चुनावक हारि हराननक कपारपर हड़हड़ा कऽ खसौलकनि।
अँगनाक ओसारपर दुनू परानी हरानन अपन द‍ीन-दुनि‍याँक गप-सप्‍प करैत रहथि‍। साठि‍ बरखसँ ऊपरेक दुनू बेकती। जि‍नगीक संगी खाली लभे-मैरेजक नै, चलैत-फि‍ड़ैत समाजोक बन्‍धन तँ छि‍ऐ? एहेन स्‍थि‍ति‍मे दू-दि‍लक दि‍लराजक बास केतए हएत? ओहुना लोक बुझैए जे ओल्‍ड बेटल, ओल्‍ड वाइन आ ओल्‍ड वाइफ बेसी चसगर होइ छै। दुनू परानी फुलि‍याक अवस्‍था चेहराक रूपे-रंग बि‍गाड़ि‍ देने अछि‍। फुलि‍याक मुँहमे तीनटा चहु बँचल आ हराननकेँ सेहो नै। बि‍नु दाँतक मुँहसँ अदन्‍त बच्‍चा जकाँ गुलावी हँसी हँसैत हरानन फुलि‍याकेँ कहलखि‍न-
आब ऐ दुनि‍याँमे रहैक मन नै होइए। होइए जे जल्‍दी मरि‍ जैतौं जे अपनो भार हटि‍तए आ दुनि‍योँक भार घटि‍तै।
जि‍नगीक तीत-मीठ जे फुलि‍या आ हराननकेँ पति‍-पत्नीक रूप बि‍गाड़ि‍ देने छल ओ ठमकि‍ पुन: जि‍नगीक धार लग पहुँच गेल। एक तँ उमेरक उपजा दोसर संगी बनि‍ संग-संग चलैक। बजली-
कहलौं तँ बैस बात मुदा एते दि‍न जे केलौं से केलौं। जहि‍ना अहाँ केलौं तहि‍ना हमहूँ केलौं, मुदा आबो जे ओहि‍ना पहुलके जकाँ करब से थोड़े मानि‍ लेब?”
फुलि‍याक बात सुनि‍ हरानन ठमकला। ठमकैक कारण भेलनि‍ पछि‍ले जकाँ आब नै जीबए चहै छथि‍। वैचारि‍क मेल-मि‍लानक मन बना जीबए चहै छथि‍। पुछलखि‍न-
एना किए करुआएल बात बजलौं?”
पति‍क शान्‍त भाव देखि‍ फुलि‍या सह पौलनि‍। भरि‍यबैत कहलखिन-
जखनि दुनू बेकती संगीए नै अर्द्धांगि‍नीओ छी तखनि एहेन बात बि‍ना वि‍चारने किए बजलौं जे मरि‍ जाएब। अहाँकेँ जीबैक मन नै अछि? अकछि‍ गेलौं तँ मरि‍ जाउ! मुदा हमरा जे मारब से दोखी के हएत?”
वि‍धवो नारी तँ अधमौगैते जि‍नगी जीबै छथि‍। तहूमे फुलि‍या-हराननक उमेरक दूरी मात्र साले भरि‍क। तहूमे साल भरि‍ फुलि‍या आरो नि‍च्‍चे। गुम्‍म भऽ हरानन वि‍चारि‍ते रहथि‍ आकि‍ कुलानन बेधड़क आँगन पहुँच हराननकेँ दबारैत मना केलखिन-
हमरा गाछी भीर काल्हि‍सँ कि‍यो नै जइहऽ। देखि‍ लेलिअ जे केहेन हि‍तैषी बगवार छह।
जहि‍ना ध्‍वनि‍ साधनाक समए बमक अवाज साधनाकेँ भंग करैत तहि‍ना फुलि‍याक बात बि‍सरि‍ हरानन कुलाननकेँ उत्तर देलखि‍न-
बेटा चलि‍ गेल से छातीए लगा मारलौं आ बगबारि‍‍क जे आमे चलि‍ जाएत तेकर सोच अछि? जे मन फुड़ए से करब।
हारैत-हारैत हरानन जि‍नगी हारि‍ चुकल छला। मि‍सि‍ओ भरि‍ कलेज नि‍राेग कहाँ रहि‍ गेल छेलनि‍ जइसँ हूबा कऽ बजि‍तथि‍ जे अही हाथक लगौल गाछी-कलम छी, हि‍स्‍सेदारी टूटि‍ गेल मुदा अखनो ओहि‍ना मन अछि‍ जे लोटे-लोटा जड़ि‍मे पानि‍ देने रहि‍ऐ।
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