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Friday, October 18, 2013

(63) पटि‍याबला

पटि‍याबला

जेठ मास, दि‍नक तीन बजैत। देखैमे राति‍सँ बहुत बेसी नम्‍हर दि‍न बनैत मुदा जहि‍ना कायाक संग माया आ रौदक संग छाया चलि‍ते रहैत तहि‍ना नम्‍हर दि‍नक संग धूपो एते बढ़ि‍-चढ़ि‍ जाइत जे श्रमशक्‍ति‍क दौड़मे मझोलको दि‍नसँ छोट बनि‍ जाइत। सुरूजक शक्‍ति‍वाण एते उग्र रूप पकड़ि‍ लइत जे धरतीओ धधड़े जकाँ आगि‍ उगलैपर उताहुल भऽ जाइत। धरती-अकास बीच लुलुआएल लू एक-ताले बाधमे नचैत। जेना राम-रावणक बीच वा महाभारतक सतरहम दि‍न भेल, तहि‍ना। तेहने तीरसँ बेधि‍त सुलेमान बेहोश भेल ओइ चि‍ड़ै जकाँ श्‍यामसुनरक दरबज्‍जापर आबि‍ दाबामे साइकि‍ल ओंगठा ओसारक भुँइएपर चारू नाल चीत खसि‍ते आँखि‍ मूना गेलै। जहि‍ना बन्न आखि‍ साँस चलैत अधमरूक होइत तहि‍ना भेल। श्‍यामसुनरकेँ बेरूका तीन बजेक चाह पीबैक अभ्‍यास। बगलक घरक ओसारपर चाह बनबैत रहथि‍ तँए साइकि‍लक खड़खड़ाएबसँ नै परेखि‍ सकला जे वाण लगल बाझ जकाँ कि‍यो छथि‍। साइकि‍लक बात सामान्‍य तँए समुद्र उपछबसँ नीक जे जइ काजमे हाथ लगल छी अोकरा पूरा ली। सएह केलनि‍। चाह पीऐत दरबज्‍जापर अबि‍ते देखलनि‍ जे ई अधमरू भेल के छिआ। मुँह नि‍हारलनि‍ तँ चि‍न्‍हल चेहरा सुलेमानक। आँखि‍ बन्न, कुहरैत मनबलाक तँ बोलीओ अस्‍पष्‍टे जकाँ भऽ जाइ छै, तँए बाल-बोध वा पशु जकाँ दुख बूझब कठि‍न भऽ जाइत, तथापि‍ छाती थीर करैत श्‍यामसुनर टोकलखि‍न-
सुलेमान भाय, सुलेमान भाय?”
पानि‍क तहक अवाज जहि‍ना ऊपर नै अबैत, मुदा पानि‍क ऊपरक अवाज कम्‍पि‍त होइत, लहरि‍क अनुकूल तेतए धरि‍ जाइत जेतए ओ पूर्ण अस्‍थि‍र नै भऽ जाइत। श्‍यामसुनरकेँ उत्तर अबैसँ पहि‍नहि मन पड़ि‍ गेलनि‍ भि‍नसुरका अवाज। पटि‍या लेब पटि‍या, पटि‍या लेब पटि‍या।
मुदा लगले मनकेँ नअ घंटा उचटि‍ कहलकनि‍। भरि‍सक रौदक चोट आ मेहनति‍क मारि‍सँ एते बेथा गेल छथि‍ जे आँखि‍ खोलैक साहसे नै होइ छन्‍हि‍। चि‍न्‍हल दरबज्‍जा आ चि‍न्‍हार बोली अकाि‍न करोट फेड़ैत अध-खिल्‍लू आँखि‍ उठा सुलेमान बाजल-
श्‍याम भाय, केकर मुँह देखि‍ घरसँ नि‍कललौं जे एको पाइक बोहनि‍ नै भेल। उधार-पुधार ऐ उमेरमे खाएब नीक नै बुझै छी, कखनि छी कखनि नै छी, केकरो खा कऽ मरब तँ कोसत। जलखै खा कऽ जे नि‍कललौं, सहए छी। खाली पेटमे पानि‍ओ भोंकबे करै छै। पेटमे बगहा लगैए।
सुलेमानक बात सुनि‍ श्‍यामसुनरकेँ भेलनि‍ जे भरि‍सक एकरे बि‍लाइ कुदब कहै छै। भुखाएल बि‍लाइ जहि‍ना छटपटाइत अपनो बच्‍चाकेँ कंठ चभैले तैयार हुअ लगैत तहि‍ना भरि‍सक होइत हेतै। मुदा रोगो तँ असान नै एक संग केते तीर लगल छन्‍हि‍। कोनो घुट्ठीमे तँ कोनो बाँहि‍मे कोनो छातीमे तँ कोनो माथमे। भूख-पि‍यास, थकान इत्‍यादि‍सँ बेधल छथि‍। तोसैत श्‍यामसुनर कहलखि‍न-
सुलेमान भाय, आँखि‍ नीक नहाँति‍ खोलू। एक्के कप चाह बनौने छेलौं जे अँइठ भऽ गेल अछि‍। बाजू पहि‍ने चाह पीब आकि‍ खेनाइ‍ खाएब?”
पाश भरल बातमे आस लगबैत सुलेमान बाजल-
भाय, ऐ घरकेँ कहि‍यो दोसराक बुझलौं जे कोनो बात बजैमे संकोच हएत। देहमे तेते दर्द भऽ रहल अछि‍‍ जे कनी पीठपर चढ़ि‍ खुनि‍ दिअ पहि‍ने, तखनि बूझल जेतै।
  सए घरक जुलाहा परि‍वार गोधनपुरमे। झंझारपुरसँ पूब सुखेत पंचायतक गाम गोधनपुर। जैठाम मरदे-मौगीए मि‍लि‍ बि‍छानक कारोबार करैए। गाम-गामसँ मोथी कीनि‍, अपनेसँ सोनक डोरी बाँटि‍ बि‍छान बीनि‍, उत्तरमे अंधरा ठाढ़ी, दछि‍न घनश्‍यामपुर, पूब घोघरडीहा आ पछि‍म मेंहथ-कोठि‍या-रैमा धरि‍क बजार बना कारोबार करैए। ओना जुलाहा खाली गोधनपुरे टामे नै आनो-आनो गाममे अछि‍ मुदा बि‍छानक कारोबार गोधनपुरे टामे होइत। शहर-बाजरमे जहि‍ना रंग-बि‍रंगक वस्‍तु-जात बि‍काइत तहि‍ना गामो-समाजक बजारमे चलैए। जइमे रंग-बि‍रंगक वस्‍तु-जातक बिकरी-बट्टा होइए। कि‍छु वस्‍तुगत अछि‍ आ कि‍छु भावगत।
सएओ परि‍वार अपन-अपन क्षेत्र बना भि‍नसरे जेर बना-बना नि‍कलि‍ जाइए। ओना कहि‍यो काल सुलेमानो जेरेमे नि‍कलैत मुदा, आइ असगरे नि‍कलल छल। अपनामे सीमाक अति‍क्रमण करबो करैत आ नहियोँ करैत। खुल्‍ला बजार तँ ओहए ने टि‍काउ होइत जे बि‍सवासू वस्‍तुक बिकरी करए। नै तँ घटि‍या माल आ बेसी दाममे वस्‍तुक बिकरी हएत। मुदा गोधनपुरक पटि‍याबलामे से नै एकरंगाह वस्‍तु एक रंगाहे दाममे बि‍काइत।
पीठ-सँ-घुट्ठी धरि‍ जखनि श्‍यामसुनर दस बेर बुलला तखनि सुलेमान पड़ले-पड़ल बाजल-
भाय, आब उतरि‍ जाउ। एह, अरे बाप रे! आेइ जि‍नगीसँ घुरलौं। मन हल्‍लुक भेल।
कहि‍ फुड़फुडा कऽ उठि‍ बैसैत बाजल-
भाय, अचेत जकाँ भऽ गेल छेलौं। आँखि‍ चोन्‍हि‍या गेल छेलए। सौंसे अन्‍हारे बूझि‍ पड़ए लगल छेलए। ई तँ रच्‍छ रहल जे दरबज्‍जाक पछि‍ला देबालक ठेकान रहल, नै तँ केतए बौआ कऽ मरि‍तौं तेकर ठीक नै।
श्‍यामसुनर सुलेमानक बातो सुनैत आ मोने-मन वि‍चारबो करैत जे हो-न-हो दरबज्‍जापर मरि‍ जाइत तँ मुँहदुस्‍सी चि‍ड़ै जकाँ लोक केना मुँह दुसैत तेकर कोनो ठीक नै। जैठाम घरपर चि‍ड़ै बैसने घरक सभ कि‍छु चलि‍ जाइ छै तैठाम की होइत! मुदा जइ दुर्गति‍क दुर्गपर सुलेमान पहुँच‍‍ गेल छल ओइठाम मनुखक मनुखपना केहेन होइ, ईहो तँ अछि‍। सत्तरि‍-पचहत्तरि‍ बरखक सुलेमान सभ दि‍न पचास कि‍लो मीटर बि‍छानक बोझ लऽ कऽ टहलि‍ बेचि‍ जीवि‍कोपार्जन करैत अछि‍, ओहनकेँ की कहल जाए। जे खून-पसीना एकबट्ट कऽ जीब रहल अछि‍। ओकर अंतीम बोलो कि‍यो परि‍वारक सुनि‍ पबि‍तै? मन ठमकि‍ते पुछलखि‍न-
सुलेमान भाय, आब केहेन मन लगैए, कि‍छु खाइ-पीबैक इच्‍छा होइए?”
मुस्‍की दैत सुलेमान कहलकनि-
भाय, आब जीब गेलौं। आब खेबे करब कि‍ने। कि‍छु दि‍न आैरो दुनि‍याँक खेल-बेल देखि‍ लेब।
जहि‍ना गुड़-घाउक टनक जेते बहैसँ पहि‍ने रहैत अछि‍ मुँह बनि‍ नि‍कलि‍ते कि‍छु बेसीआ जाइत मुदा मूल-खि‍ल नि‍कलला पछाति‍ सुआस पड़ए लगैत, जइसँ रूप बदलि‍ जाइ छै, पाशा आस लगबए लगै छै, तहि‍ना सुलेमान बाजल-
भाय, सरेलहा भात-रोटी खाइक मन नै होइए।
तखनि?”
टटका जे गहुमक चारि‍टा रोटी भऽ जाइत तँ मन ति‍रपि‍त भऽ जइतए। ताबे नहा सेहो लेब।
सुलेमानक बात सुनि‍ श्‍यामसुनर कहलखि‍न-
कल देखल अछि‍? बाल्‍टीन-लोटा आनि‍ दइ छी, नीक नहाँति नहा लेब।
श्‍यामसुनरक बात सुनि‍ हँसैत सुलेमान बाजल-
भाय, एना किए बजै छी। पचासो दि‍न पानि‍ पीने हएब, आ केतेको दि‍न नहेने हएब, तखनि कल देखल नै रहत। लोटा-बाल्‍टीन कथीले आनब, आँगनमे काज हएत। हम सभ तरहक लूरि‍‍ रखने छी ओहुना ठाढ़े-ठाढ़ वा बैस‍‍ कऽ नहा लइ छी आ जौं सासुर-समधियौर गेलौं तँ लोटो-बाल्‍टीन लऽ कऽ नहा लेलौं। ओना, भाय की कहूँ लोको सभ अजीब-अजीब अछि‍। ने माल-जाल जकाँ नागरि‍ छै‍ आ ने मनुखपना छै। एक दि‍न अहि‍ना रौदमे मन तबधि‍ गेल। एक गोरेक दरबज्‍जापर कल देखलि‍ऐ, साइकि‍ल अड़का नहाइले गेलौं। मन भेल पहि‍ने चारि‍ घोँट पानि‍ पीब ली। तही बीच एकटा झोंटहा आबि‍ झटहा फेकलक जे कल छूबा जाएत।
सुलेमानक बात सुनि‍ श्‍यामसुनरक मनमे वाल्‍मीकि‍ आबि‍ गेलखि‍न। तमसा नदीक तटपर वाण लगल क्रोंच पक्षी। मुदा अपनाकेँ सम्‍हारि‍ कहलखि‍न-
अहूँ सुलेमान भाय कोन खि‍स्‍सा भुखाएलमे पसारै छी। झब दनि नहाउ, आँगनमे ताबे रोटी बनबबै छी।
  सुलेमान कल दि‍स आ श्‍यामसुनर आँगन दि‍स बढ़ला। जहि‍ना भोजनक पूर्व स्‍नानसँ खुशी होइत तहि‍ना सुलेमान कल दि‍स बढ़ला। मुदा श्‍यामसुनरक मनमे प्रश्न-पर-प्रश्न उठए लगलनि‍। पहि‍ल प्रश्न उठलनि‍ जे मृत्‍युसज्‍जापर पड़ल यात्रीकेँ वा फाँसीपर चढ़ैत यात्रीकेँ पूछि‍ भोजन देल जाइत अछि‍ तैठाम अपना मुहेँ सुलेमान कहलक जे गहुमक रोटी। बि‍नु मेजनक गहुमक रोटी ओहने होइत जेहेन डम्‍हाएल मालदह आम। जौं सोझहे रोटी कहैत तँ मरूआ रोटीक मेजन अचार, पि‍आजु, नून-मि‍रचाय, तेल सेहो होइत, मुदा टटका गहुमक रोटी केहेन हएत? सभकेँ अपन-अपन प्रेमी होइ छै। जौं से नै होइ छै तँ जुड़शीतलमे बसि‍या अरबा चाउरक भात लेल पहि‍ने लोक तरूआ-भुजुआ किए बना लइए मुदा तँए कि‍ मोटका चाउरक बसि‍या भातक प्रेमी नून-पि‍आजु-अँचार नै हेतै। मुदा जेते जल्‍दि‍बाजीक जरूरति अछि‍ -जल्‍दि‍वाजी ऐ लेल जे भुखाएल पेट स्‍नान पछाति‍‍ दोसर रूप पकड़ैत- तइमे रसदार तरकारी बनाएब संभव नै, तँए दूटा घेरा पका चटनी आ रोटीसँ काज चलि‍ सकैए। सएह केलनि‍।
  स्‍नान कएल नोतहारी जकाँ दरबज्‍जापर अबि‍ते सुलेमानक भुखाएल मन प्रेमी भोजनक बाट तकए लगल। बेर-बेर आँगन दि‍स‍ तकैत।
आगूमे थारी देखि‍ते सुलेमानक मन सौनक सुहावन जकाँ हरषि‍ उठलनि‍। रोटीक पहि‍ल टूक चटनीक संग मुँहमे अबि‍ते दँति‍या कऽ दाँत पकड़ि‍ जीह रस चूसए लगलनि‍। रस पबि‍ते बिहुँसैत सुलेमान बाजल-
भाय, दुनि‍याँमे केतौ कि‍छु ने छै। छै सबटा अपना मनमे। जाबे आँखि‍ तकै छी ताबे बड़ बढ़ियाँ, आँखि‍ मुनि‍ते दुनि‍याँ धि‍या-पुताक खेल जकाँ उसरि‍ जाइ छै। अपने मुइने सृष्‍टि‍क लोप भऽ जाइ छै।
  सुलेमानक गंभीर वि‍चार सुनि‍ श्‍यामसुनरक मनमे उठलनि‍ जे भोजैत जौं भोजहरि‍क रसगर बात सुनै छै तँ ओ आरो बेसी आनन्‍दि‍त होइ छै। मुदा अपन बात तँ बि‍नु प्रश्न पुछने नै हएत। द्वैतमे दुनि‍याँ हेराएल छै। बाढ़ि‍ आएल धार जकाँ केतए-सँ-केतए भँसि‍या जाएत तेकर ठेकान रहत। श्‍यामसुनर पुछलखि‍न-
सुलेमान भाय, ऐ उमेरमे एते भारी काज किए करै छी?”
  श्‍यामसुनरक प्रश्न सुनि‍ सुलेमान वि‍ह्वल भऽ गेल। जि‍नगीक हारल सि‍पाही जकाँ तरसैत बाजल-
भाय, जखनि अहाँ घरक बात पुछि‍ए देलौं तखनि किए ने सभ बात कहि‍ए दी।
सुलेमानक बात सुनि‍ श्‍यामसुनर बूझि‍ गेला जे बरियातीक भोज हुअ चाहैत अछि‍, से नै तँ चरिया दियनि‍-
सुलेमान भाय, कहने छेलौं जे गरम-गरम रोटी खाएब सराएल नै खाएब आ अपने गपक पाछू सरबै छी?”
श्‍यामसुनरक बात सुनि‍ हाँइ-हाँइ दूटा रोटी आ अदहा चटनी खा एक घोंट पानि‍ पीब सुलेमान कहलकनि-
भाय, माए-बापक बड़ दुलारू बेटा छेलिऐ। खाइ-पीबैक कोनो दुख-तकलीफ परि‍वारमे नै रहए। कपड़ाक कारोबार छल। चरखा चलबैसँ लऽ कऽ खादी भंडारसँ हाट धरि‍क कारोबार छल।
श्‍यामसुनरक मनमे उठलनि‍- मोबाइल, टी.बी, कम्‍प्‍यूटर, कपड़ा, जूतासँ घर भरल रहै छै मुदा सबुरक केतौ ठेकान नै। भरि‍ पेट अन्न नै, फटलो वस्‍त्र नै, छुच्‍छहो घरमे सबुर केना फड़ि‍ जाइ छै!! सुलेमानक परि‍वारि‍क जि‍नगीक ललि‍चगर गप सुनि‍ श्‍यामसुनर जि‍ज्ञासा केलनि‍-
ओ कारोबार किए छोड़ि‍ देलि‍ऐ। मेहनतो आ आमदोक खि‍यालसँ तँ नि‍के छेलए?”
बामा हाथ चानि‍पर ठोकैत सुलेमान कहलकनि-
गाम-गामक बाबू-भैया सभ गरीबक कारखाना उजाड़ि‍ देलक। खादी भंडारकेँ लूटि‍ लेलक। छुच्‍छे हाथे की‍ करि‍तौं।
फेर जि‍ज्ञासा करैत श्‍यामसुनर पुछलखि‍न-
कोन-कोन तरहक कपड़ा बनबै छेलि‍ऐ?”
सुलेमान कहलकनि-
पहि‍रन वस्‍त्रसँ लऽ कऽ ओढ़ैक सलगा धरि‍ बनबै छेलि‍ऐ।
डुमैत नाव देखि‍ जहि‍ना नैया -नावि‍क- नि‍राश भऽ जाइत जे जौं जि‍नगी बँचिओ जाएत, तँ जीब केना। तहि‍ना सुलेमानक तरसैत मन काँपए लगल।
आगू बढ़बैत श्‍यामसुनर पुछलखि‍न-
ई तँ धि‍या-पुताक खेल भेल, जाए दियौ।
  श्‍यामसुनर सुलेमानकेँ तँ कहि‍ देलखि‍न मुदा मन ठमकलनि‍। काजक रूपमे समाज बँटल अछि‍। ओइ काजक लूरि‍ तँ ओकरा लेल सुरक्षि‍त अछि‍। जौं कागजी ज्ञानक अभावो रहतै आ वि‍कसि‍त बेवहारि‍क ज्ञान देल जाइ तँ की घर-घर पाठशाला नै बनतै। जरूरति‍ छल समायानुकूल ओकरा बनबैक। से नै भेल।
तेसर रोटी खाइत सुलेमान बाजल-
भेल तँ सहए, मुदा परि‍वार बि‍लटि‍ गेल।
परि‍वारक बि‍लटब सुनि‍ श्‍यामसुनर आगू बढ़ि‍ पुछलखि‍न-
अपन परि‍वारक कारोबार मरि‍ गेला पछाति‍ की केलि‍ऐ?”
श्‍यामसुनरक प्रश्न सुनि‍ उत्‍साहि‍त होइत सुलेमान बाजल-
की केलि‍ऐ! हमरो जुआनीक उठानि‍ रहए। मनमे अरोपि‍ लेलि‍ऐ जे दुनि‍याँमे केतौसँ कमा कऽ परि‍वार जीवि‍त रखबे करब।
सुलेमानक संकल्‍पि‍त बात सुनि‍ वाह-वाही दैत श्‍यामसुनर पुछलखि‍न-
दोसर कोन काज केलि‍ऐ?”
सुलेमान कहलकनि-
गाम-गामक कपड़ा बुनि‍नि‍हार बम्‍बई चलि‍ गेलि‍एे।
बम्‍बईमे केतए?”
भि‍वंडी। भि‍वंडीमे लूम चलै छै। ओइमे कपड़ा बुनाइ होइ छै। गमैया लूरि‍ तँ रहबे करए, लगले नोकरी भऽ गेल। ओना मजदूरी रेट कम रहए मुदा काजक माप सेहो रहै। जेते करब तेते हएत। जुआन-जहान रहबे करी दि‍नकेँ ने दि‍न आ राति‍केँ ने राति‍ बुझि‍ऐ। खूब कमेलौं।
श्‍यामसुनर पुछलखिन-
तखनि ओकरा किए छोड़ि‍ देलि‍ऐ?”
श्‍यामसुनरक बात सुनि‍ सुलेमानकेँ ओहि‍ना भेलनि‍ जहि‍ना चोटेपर दोहरा-तेहरा कऽ चोट लगलासँ होइत। कुम्‍हलाएल फूल जकाँ मुँह मलि‍न आ ठोरमे फुड़फुड़ी आबए लगलनि‍ नम्‍हर साँस छोड़ैत बाजल-
भाय, चारि‍ साल खूब कमेलौं, पाँचम साल बि‍हारी-मराठीक हल्‍ला उठल। हल्‍ले नै उठल केतेकेँ जान गेल, केतेकेँ बहु-बेटी छि‍नाएल, केतेकेँ कमाइ लूटाएल। सभ कि‍छु छोड़ि‍ जान बँचा गाम अाबि‍ गेलौं।
तैपर श्‍यामसुनर फेर पुछलखिन-
गाममे आबि‍ फेर की केलि‍ऐ?”
सुलेमान कहलकनि-
तेही दि‍नसँ पटि‍याक ई कारोबार शुरू केलि‍ऐ। सभ परानी लगल रहै छी, घीचि‍-तीड़ि‍ कऽ कहुना दि‍न बितबै छी।
सुलेमान भाय, हम ई नै कहब जे अहाँ नै काज करू, मुदा काजक ओकाति‍ तँ देखए पड़त कि‍ने। कहुना-कहुना तँ चालीस-पचास कि‍लोमीटर साइकि‍ल चलबिते हेबै?”
हँ से ने किए चलबिते हेबै। आब की‍ ओ कोस रहल जे घंटामे एक कोस लोक चलै छेलै।
एक तँ अोहि‍ना शरीर ढील भऽ रहल अछि‍ तैपर साइकि‍ल चलबै छी। तेतबे नै, हो-न-हो केतौ रस्‍ता-पेरामे गीरि‍ए परब आ हाथ-पएर टूटि‍ जाएत तँ के देखत?”
एक तँ सुलेमानक जरल मन ठंढ़ाएल तैपरसँ परि‍वार लेल हाथ-पएर टुटब सुि‍न बाजल-
भाय, केतबो अन्‍हारमे अनचि‍न्‍हार लोक ढेरि‍या किए ने गेल, मुदा हमहूँ कोनो समाजक लोक छी तँए सभ समाज अपन-अपन धर्मक पालन करैए। तहूमे हम तँ चि‍न्‍हार छी, गोटे-गोटे अनठा कऽ आगू बढ़ि‍ जाइत मुदा सभ तेहने तँ नहि‍येँ अछि‍। तहूमे जागल लोककेँ थोड़े वि‍नास होइ छै।
सुलेमानक जागल बात सुनि‍ श्‍यामसुनर ठमकला। बात तँ बड़ सुनर अछि‍ मुदा जागलक की अर्थ बुझै छथि‍, से बि‍नु जनने बात नै बूझि‍ सकब। एक्के चीजक नाओं-शब्‍द ढेर अछि‍, नाओंक संग काज जुड़ल अछि‍। तैठाम बि‍नु पुछने काज नै चलत। पुछलखि‍न-
भाय, जागल केकरा कहै छि‍ऐ?”
जेना सुलेमानकेँ रटले होइ तहि‍ना धाँइ-दऽ बाजल-
भाय, जखनि आँखि‍ मूनल देखै छि‍ऐ तँ बूझि‍ जाइ छि‍ऐ जे सूतल अछि‍ आ आँखि‍ तकैत रहैए तँ बूझि‍ जाइ छि‍ऐ जे जागल अछि‍।
फेर ताकब आ मुनबक ओझरी श्‍यामसुनरकेँ लगलनि‍। मुदा ओझरीमे नै पड़ि आगू बढ़ैत पुछलखि‍न-
केते गोटेक परि‍वार अछि‍।
सुलेमान कहलकनि-
अछि‍ तँ बहुत मुदा चारू बेटीकेँ सासुर बसने अखनि तीनिए गोरेक अछि‍।
श्‍यामसुनर पुछलखिन-
बेटासँ ने किए ई काज करबै छी। ओ तँ जुआन हएत?”
बेटाक नाओं सुनि‍ सुलेमान वि‍ह्वल भऽ गेल। जेना केतौ सुख-दुख दुनू बहि‍न गारा-जोड़ी कऽ सामाक गीत गबैत तहि‍ना सुलेमान बाजल-
भाय, उमेरक ढलानेमे बेटा भेल। सभसँ छोट अछि‍। ओकरो दू अक्षर नै पढ़ा देबै, तँ लोक की कहत?”
  लोक लाज सुनि‍ श्‍यामसुनर हरा गेला। एहनो जि‍नगीमे लोक-लाज जीवि‍त अछि‍। बिहुँसैत पुछलखि‍न-
मन लगा कऽ पढ़ैए कि‍ने?”
केकरा मनक बात ऐ युगमे के कहत। सभ अपने बेथे बेथाएल अछि‍। सुलेमान बाजल-
भाय, से तँ ओकरे मन कहतै जे मन लगा कऽ पढ़ै छी आकि‍ मन उड़ा कऽ पढ़ै छी।
अहाँ की देखै छि‍ऐ?”
भाय, हम तँ अपना धंधामे लगल रहै छी। तखनि केना देखबै?”
संगी-साथी सभ कहैत हएत कि‍ने?”
हँ, से तँ कहैए जे जाइए पढ़ैले आ चलि‍ जाइए सि‍नेमा देखए, मैच देखए।
परीछामे पास करैए कि‍ने?”
हँ से तँ ढौऔ-कौड़ी लगने पास कइए जाइए।
तब तँ आशा अछि‍?”
हँ, से तँ ओकरेपर टक लगौने छी। जौं कहीं नोकरी भेलै तँ दि‍ने बदलि‍ जाएत।
बेटाक बात छोड़ि‍ श्‍यामसुनर पुछलखि‍न-
घरवाली की सभ करै छथि‍?”
पत्नीक नाओं सुनि‍ सुलेमान पसि‍ज गेल। पत्नी, पत्नी रहल। संग चलनि‍हारि‍, काँट-कुशक परवाह केने बि‍ना कखनो गुरुक काज करैत तँ कखनो संगीक, कखनो प्रेमीक, जि‍नगीक अंति‍म क्षण धरि‍ रहैक प्रतिज्ञा...। बाजल-
भाय, कहुना कऽ बुढ़ि‍या भानस भात कऽ लइए। बेचारी दम्मासँ पीड़ि‍त अछि‍।
इलाज किए ने करा दइ छियनि‍?”
गरीब घरक लोकक इलाज की हेतै। जेते पथ होइ छै तइसँ बेसी कुपथ होइ छै। तखनि तँ चाहै छी जे बेचारी पहि‍ने मरए।
पहिने मरए सुनि श्‍याम सुन्‍दर पुछलखिन-
से किए?”
एतेटा जि‍नगीक सभ कमाइ लूटा जाएत, जखनि हम मरि‍ जेबै आ ओइ बेचारीक भीखक कलंक लगत।
  सुलेमानक बात सुनि‍ श्‍यामसुनर गुम भऽ गेला। कि‍छु काल पछाति‍ कहलखि‍न-
आइ रहि‍ जाउ। काल्हि‍ ऐम्‍हरेसँ बेचैत-वि‍कनैत चलि‍ जाएब।
हँसैत सुलेमान बाजल-
भाय, जेना आइ एको पाइ बोहनि‍ नै भेल तेना नीके हएत। मुदा, बेमरयाह घरवालीकेँ एक नजरि‍ नै देखि लेब से केहेन हएत।
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