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Friday, October 18, 2013

(60) सूदि‍ भरना

सूदि‍ भरना

बालपनमे लगल चोट जहि‍ना अधवेशू वा बुढ़ाड़ीमे उपकि‍ जाइत तहि‍ना डोमीकाकाकेँ बेटी बि‍आहक चोट मास दि‍न पछाति‍‍ उपकलनि‍। रोगाएल अवस्‍थामे जखनि कि‍यो जि‍नगी-मृत्‍युक मचकीपर झुलए लगैत तखनि जहि‍ना धर्मराजक दरबार लगैत तहि‍ना हुअ लगलनि‍। नि‍ष्‍पक्ष समीक्षक जहि‍ना साहि‍त्‍यक कोण-कोणक समीक्षा करैत तहि‍ना डोमीकाका सेहो करए लगला। अन्‍तो-अन्‍त अही ि‍नर्णएपर पहुँचला जे गाममे रहने जीवन-यापन नै कऽ पएब तँए बि‍नु परदेश गेने जीब असंभव अछि‍। केना नै असंभव होएत? पाँच बीघा जमीनबला डोमीकाकाकेँ दू बीघा घर-घराड़ीसँ लऽ कऽ गाछी-बि‍रछी, खरहोरि‍मे बरदाएल बाँकी तीन बीघा जोतसीम। समाजोक देखा-देखी आ कुटुमो-परि‍वारक स्‍तरक अनुकूल तँ करए पड़तनि‍। जहि‍ना धरमोक स्‍वरूप समायानुसार बदलि‍ जाइ छै तहि‍ना ने समाजोमे जे बेसी लाम-झामसँ बेटीक बि‍आह आ माए-बापक सराध करैत ओ समाजमे ओते ऊपर होइत। तेतबे नै, जइ समाजमे दोससँ बेसी दुश्‍मन रहैत तइ समाजमे ईहो पुरौनाइ तँ जरूरीए होइत जे अनकासँ कि‍ मोर छी।
दलानक ओसारक दछि‍नबरि‍या चौकीपर चीत भेल पड़ल, दहि‍ना हाथ मोरि‍ दुनू आँखि‍पर नेने डोमीकाका परि‍वारक बदलैत स्‍वरूपपर आँखि‍ गड़ा सोचि‍ रहल छथि‍। मनमे उठलनि‍ गलती अपनो भेल। ई तँ नजरि‍पर आएल जे समाज आ कुटुम-परि‍वारक देखौंस करब जरूरी अछि‍ मुदा ई नै आबि‍ सकल जे ओहूमे पतियानी लगल अछि‍। एकठाम सभ समटल कहाँ छथि‍। भैयारीओमे तँ होइते अछि‍ जे संगे-संग जि‍नगी बनौनि‍हारि‍ पि‍ति‍यौत बहि‍नक बीच एककेँ इंजीनि‍यर-डाक्‍टर संगी भेटैत तँ दोसरकेँ ऑफि‍सक कि‍रानी वा स्‍कूलक शि‍क्षक भेटैए‍। भूल भेल, आगू दि‍स तकलौं मुदा पजरबािह आ पाछू दि‍स नै तकलौं। एकरा के उचि‍त कहत जे एक-ओद्रक बेटा-बेटीक बीच इमान-बेइमान बनि‍ जाउ। पाँच बीघा जमीन अछि‍ चारू भाए-बहि‍न हि‍स्‍साक संग पाँचम अपनो दुनू परानीक हेबे करत। जौं से नै हएत तँ अपन जि‍नगी अनका हाथमे जेबे करत। मुदा गलती भेल, औगताइ केने। तहूमे पत्नी आरो मन घोर कऽ देलनि‍। ई कहू जे अर्द्धांगि‍नी भऽ केहेन वि‍चार देलनि‍ जे ऐ गाममे कर्ज नै भेटत तँ हम नैहरसँ आनि‍ देब। एकटा मुर्गीक जौं दसठाम हलाल हुअए तँ ओकरा की कहबै?
एक तँ ओहि‍ना परि‍वार महजालमे ओझराएल अछि‍ तैपर हमरा कि‍रतबे समाजक ऊपर आन समाजक कर्ज आबि‍ जाए, एहेन काज जीता-जि‍नगी नै करब। मुदा तइमे कनी औगताइ भेल। औगताइ ई भेल जे पच्‍चीस-तीस हजार रूपैए कट्ठाक चीज पाँचे हजार रूपैए भरना लगा देलि‍ऐ। मुदा बितलकेँ बि‍सरबे नीक। जौं से नै करब तँ भूतलग्‍गू जकाँ अपन देह-हाथ अपने नोचए पड़त। फेर मन भरना जमीनपर घुमलनि‍। केना लोक पावनि‍-ति‍हारमे सेर-पसेरी लऽ खेतो भरना लगबैए आ बेचबो करैए। मनमे खौंझ उठलनि‍, कानूने बनने कि‍ सुथनी हएत जे आठ बरख पछाति‍ भरना जमीन घूमि‍ जाएत, मुदा होइ की‍ अछि‍। तेतबे किए, जहि‍ना महाजनीक सूदि‍केँ सीमामे बान्‍हि‍ देल गेल जे दोबरसँ बेसी कहि‍यो ने हएत, तहि‍ना बैंकक कर्जकेँ किए ने बान्‍हल जाइए, जे ग्रामीण-दशा (गामक लोकक जि‍नगी) आगू मुहेँ नै ससरि‍ पाछुए मुहेँ ढरकि‍ रहल अछि‍। जैठाम एते महग पढ़ाइ भऽ गेल अछि‍, लाखक इलाज (शरीरक) भऽ गेल अछि‍, लाखक घर बनि‍ रहल अछि‍ तैठाम, की‍ उपए अछि‍। हँ एते जरूर हेबाक चाही जे जखनि सभ अपने छी तखनि बीचमे इमान-बेइमान नै बनए। जहि‍ना बरसातक मासमे एक दि‍सुका पानि‍केँ दोसर दि‍सुका रोकि‍ तेसर दि‍सक रस्‍ता पकड़ैत तहि‍ना घीचा-तीरीमे डोमीकक्काक मन असथि‍र भेलनि‍। पड़ले-पड़ल पत्नीकेँ शोर पाड़लखि‍न।
आँगनक ओसारक शीतल पाटीपर बैस‍‍ दायरानी बि‍आहक उनटा गि‍नती करैत रहथि‍। फल्लांक करौछ हरा गेलै, ओकरा तँ कहब जरूरी अछि‍। जौं से नै कहबै तँ अनेरे ओ दस ठाम बाजत जे फल्‍लाँ करौछ रखि‍ लेलक। कोन चीज छी जखनि एते खर्च भेबे कएल तखनि एकटा करौछे की छी। जि‍नगी बनबैमे जहि‍ना जि‍नका जेहेन कठि‍न मेहनति‍ भेल रहैए तहि‍ना ने ति‍नकर जि‍नगीओ ठाढ़ होइए। जौं से नै तँ लाखक जि‍नगी केना पाँच-दसमे हारि‍ मानत। फेर दायरानीक मनमे खुशी एलनि‍, अपना जौं बौको डाँड़ लगल तैयो बैहरी दादीकेँ नफे भेलनि‍।
टुटल चंगेरा लेलि‍यनि‍, नवका कीनि‍ कऽ देलि‍यनि‍। केना नै दैति‍यनि‍ ओ थोड़े बुझलखि‍न जे हमरा चंगेरामे केरा-आम छोड़ि‍ दोसर चीज जाइबला नै अछि‍। ओना हमरो तँ काज चलि‍ऐ गेल भने पुरना गेल नव आएल से नीके भेल। पति‍क अवाज सुनि‍ ओसारेपर सँ एते जोरसँ बजली जे डोमीकाकाकेँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे लगमे नै कनी हटल छथि‍।
डोमीकाका लग तँ दायरानीकाकी पहुँच‍ गेली मुदा मनमे अपने घि‍रनी नचैत रहनि‍। एक चालि‍ चलि‍ जहि‍ना घि‍रनी वि‍श्राम लैत तहि‍ना काकीकेँ सेहो भेलनि‍। आँखि‍ उठा तकलनि‍ तँ देखलखि‍न जे ग्रीष्‍मकालीन घास-पात जकाँ कुम्‍हलाएल मुँह, जेठुआ गरेक मेघ जकाँ चि‍न्‍तासँ लदल आँखि‍, नि‍रजन वनमे हेराएल बटोही जकाँ देखि‍ मन सहमि‍ गेलनि‍। अपन करतबक एहसास भेलनि‍। पि‍यासल लेल जहि‍ना पानि, तबधल लेल पंखाक हवाक जरूरति‍ होइत तहि‍ना चि‍न्‍ताएल मन लेल सेहो मीठ बोलक जरूरति होइए। आँचरसँ ढबढबाएल पति‍क दुनू आँखि‍ पोछैत बजली-
एहेन सकल-सूरत किए बनौने छी?”
सि‍कीक वाण सदृश पत्नीक बोल डोमीकक्काक हृदैमे बेधि‍ देलकनि‍। छटपटाइत बजला-
उपए कथी अछि‍ जे...?”
दायरानी पुछलकनि-
तखनि?”
डोमीकाका कहलखिन-
परदेश जाएब। दुनू बेटोकेँ नेने जाएब, नहियोँ कमा कऽ देत पेट तँ पालत ने। जौं दसो हजार महिना कमाएब तँ एक बरखे नै दू बरखे, पाँचो बरखे तँ खेत छोड़ाइए लेब।
दायरानी पुछलखिन-
तैबीच?”
डोमीकाका कहलखिन-
अहाँकेँ जाबे धरि‍‍ बरदास हएत ताबे धरि‍ रहब नै तँ भाएकेँ नैहर समाद पठा देबनि‍।
नैहरक नाओं सुनि‍ते दायरानी बजली-
अहाँ सभ जखनि चलि‍ऐ जाएब तखनि घरमे कोठीए-भरली लऽ कऽ की करब। मसोमातक चुड़ी जकाँ किए ने ओकरो सभकेँ फोड़ि‍-फाड़ि‍ कऽ फेकि‍ए देबै।
पत्नीक बातकेँ डोमीकाका ताड़ि‍ गेला। कहलखि‍न-
हँसी-ठठा छोड़ू एहेन गरूगर समए केना टपब, से वि‍चार दिअ। आखि‍र अहूँ तँ अर्द्धांगि‍नीए छी कि‍ने?”
पति‍क वि‍चार सुनि‍ वि‍चारवान पत्नी जकाँ दायरानी कहलखि‍न-
पच्‍चीस-तीस हजार रूपैए कट्ठाक जमीन अछि‍। दस-बारह कट्ठा बेचि‍ लेब, भरना छूटि‍ जाएत। बुझबै जे तीन बीघा जोतसीम नै अढ़ाइए बीघा अछि‍।
अखाढ़क पहि‍ल बर्खाक पहि‍ल बून पड़लासँ जे माटि‍क सुगंध नि‍कलैत ओहने सुगंध डोमीकाकाकेँ पत्नीक वि‍चारमे लगलनि‍। मुस्‍की दैत आँखि‍-पर-आँखि‍ गड़ा धैनवाद देलखि‍न।

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