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Friday, October 18, 2013

(58) मनोरथ

मनोरथ

जहि‍ना शोभा काका सभ छुट्टी गामेमे बि‍तबैत तहि‍ना सभ रवि‍ओ बि‍तबै छथि‍। सुवि‍धो छन्‍हि‍। कोस पाँचेपर वि‍द्यालय छन्‍हि‍, साइकि‍ल छन्‍हि‍ए तँए अबै-जाइमे असोकर्जो नहि‍येँ होइ छन्‍हि‍। शनि‍केँ स्‍कूलो अदहे होइ छन्‍हि‍, सेहो सुवि‍धा भइए जाइ छन्‍हि‍। आने शनि‍ जकाँ सात बजे साँझमे शोभा काका गाम पहुँचला। पछबरि‍या घरक दाबा लगा साइकि‍ल ठाढ़ कऽ कैरि‍यरपर सँ झोरा उतारि‍ आँगन पएर रखि‍ते छथि‍ आकि‍ पत्नी सुगि‍या काकीपर नजरि‍ पड़लनि‍। जेठ-अखाढ़ मास तँए डि‍बि‍या नेसैक ओरि‍यान करैत रहथि‍। ओना डेढ़ि‍यापर जखने साइकि‍ल खड़खड़ाएब सुनलनि‍ कि‍ बूझि‍ गेली जे एहेन अवाज तँ अपने साइकि‍लक छी। आँखि‍ उठौलनि‍ तँ नजरि‍ पड़ि‍ गेलनि‍। जेठ-अखाढ़ मास ऐ लेल जे पूर्णिमा भऽ गेल मुदा संक्रान्‍ति‍ पछुआएले। मुदा काकीक संयोग नीक रहलनि‍ जे नजरि‍मे नजरि‍ नै मि‍ललनि‍। जौं नजरि‍ मि‍लि‍ जइतनि‍ तँ चूल्हि पजारि‍ डि‍बि‍या नेसब बाधि‍त भऽ जइतनि‍। तेकर लाभ सुगि‍या काकी उठेबो केलनि‍। लाभ ई उठौलनि‍ जे पति‍क आगत-भागतकेँ एक नम्‍बर काजक सूचीसँ नि‍च्‍चाँ उतारि‍ दू नम्‍बरमे रखलनि‍। कुशल कारीगर-कलाकार जकाँ एक काजकेँ वि‍सर्जन करैसँ पहि‍ने दोसरक संकल्‍प लऽ लेलनि‍। वि‍चारि‍ लेलनि‍ जे जाबे जारनक धुआँ फरि‍च्‍छ हएत ताबे साँझो घुमा लेब। काजमे लगल देखि‍ शोभो काका बि‍नु कि‍छु बजने कोनचरे लगसँ झोरा ओसारक चौकीपर रखि‍ पानि‍क प्रतीक्षा करए लगला। केना ने करि‍तथि‍ जाधरि‍ घरबैया दि‍ससँ पएर धोइले पानि‍ नै पहुँचैत ताधरि‍ कारखाना जकाँ उपस्‍थि‍ति‍ केना बनैत। मुदा ईहो तँ भऽ सकैए जे अभ्‍यागतक सेवा योग्‍य परि‍वार नै हुअए। सुगि‍या काकीक मनमे ईहो उठैत रहनि‍ जे भाषणक कलाकारी होइत जे एतबे समैमे एतेटा बात बाजि‍ देब मुदा काज तइसँ बहुत दूर होइत। चलनि‍हारकेँ पएरक गति‍ रोकि‍नि‍हार सेहो बीचमे आबि‍ सकैए। नहि‍योँ औत, तँए जइमे हँ-नै दुनूक संभावना होइ ओकर गारंटी शत-प्रति‍शत नै कएल जा सकैए। तँए सुगि‍या काकीकेँ होन्‍हि‍‍ जे जैठाम दुवि‍धा अछि‍ तैठाम सावधानी नै करब तँ रेलबेक ट्रेन जकाँ एकठाम बि‍लंम भेने गन्‍तव्‍य स्‍थान धरि‍‍ बिलमिते ससरब। तेतबे नै, अदहा दि‍नक चलल छथि‍, बाटमे केतए आ की देखने हेता, जौं कहीं एहेन समस्‍या देखने आएल होथि‍ आ रस्‍तापर अमती काँटक झाँगड़ि‍ जकाँ रखि‍ दथि‍ तखनि तँ जि‍नगीए ढंस भऽ जाएत। भोजनकाल जौं पानि‍ेक बर्तने फूटि‍ जाए तखनि पानि‍ केना परसब।
सभ काज सम्‍हारि‍ काकी शोभा कक्काक हाथमे लोटा धरबैत पुछलखि‍न-
हाल-चाल सभ आनंद कि‍ने?”
काकीक पूछब जेना शोभा कक्काक मन हौंड़ देलकनि‍। मन सहमि‍ गेलनि‍ जे भरि‍सक कोनो आक्रोश छन्‍हि‍। मुदा अनुकूल समए नै पाबि‍, उत्तर देखखि‍न-
पुरबते।
शोभा कक्काक उत्तर सेहो सुगि‍या काकी तारि लेलनि‍। तँए उचि‍त समए नै पाबि‍ सुगि‍या काकी सोचलनि‍ जे पएर धोइले दरबज्‍जापर जेबे करता तँ किए ने टि‍कमे चि‍ड़चि‍ड़ी लगा दि‍यनि‍ जे जाबे चि‍ड़चि‍ड़ी छोड़ौता ताबे चाह बना लेब। काज औगतेने तँ नै होइ छै। बड़ भूख लागए तँ पातक बदला हाथे नै पसारि‍ दि‍ऐ! बजली-
नीमक गाछमे गराड़ लगि‍ गेल अछि‍ से कनी देखि‍ लेब?”
सुगि‍या काकीक बात सुनि‍ शोभा काका बजला कि‍छु नै, मुदा मनमे उठलनि‍ जे नीमक गाछमे केतौ दि‍वार लगै। एहेन बात किए कहलनि‍। गराड़केँ म‍ीठ जड़ि‍ पचै छै। तीत केना पचत। मुदा फेर मनमे उठलनि‍ जे पुरुखक नाड़ी, नारीक नाड़ीसँ भि‍न्न चलैए‍ तँए समए लगबै दुआरे जौं कहने हाेथि‍। मुदा से केना बूझब जे केते समए लगाएब। भऽ सकैए जे जेतबे समए जड़ि‍ खोड़ि‍ गराड़ देखैमे लगत तेतबे ने मुदा अपने केना बूझब? तइसँ नीक जे जाबे बजबए नै औती ताबे नै जाएब। पछिलो शनि‍मे जखनि आएल रही पएर धोलाक बाद चाह पि‍औने रहथि‍। तहि‍ना चाहे बनबै दुआरे जौं टारने होथि‍। नीक हएत जे ताबे धरि‍ कड़ची लऽ कऽ जड़ि‍ खोड़ैत-खाड़ैत रहब जाबे धरि‍ बजबए नै औती।
चाह छानि‍ ओसारक चौकीपर रखि‍ काकी दरबज्‍जा दि‍स बढ़ैत बजली-
जअो काटए गेलौं तँ शतुआइन केनहि‍ एलौं। चाह सेरा कऽ पानि‍ भऽ गेल। आ झूठै-फूसेमे लटकल छी।
झूठ-फूस सुनि‍ शोभा काका चौंकला, कहू जे अपने लटकल छी आकि हुनके कि‍रदानीए लटकल छी। मुदा कि‍छु बजला नै। मनमे उठलनि‍ जे जइ शून्‍यक कोनो मोजर नै छै सेहो घुमैत-फि‍ड़ैत केतए-सँ-केतए उड़ि‍ जाइत अछि‍। मुदा ई तँ शब्‍दवाण छी, कागभुशुण्‍डी जकाँ सभ दुनि‍याँ देखौत। पुछलखिन-
केहेन चाह बनेलौं जे लगले पानि‍ भऽ जाएत‍?”
जहि‍ना मंदि‍रक बीच भक्‍त भगवानक आगू ठाढ़ भऽ दुनू हाथ जोड़ि‍ अपन मनोरथ मनमे दाबि‍ पहि‍ने स्‍तुति‍ करैत तहि‍ना मनक बात मनेमे रखि‍ सुगि‍या काकी बजली-
तबधलमे तपते चाहक ने सुआद होइ छै जौं से नै तँ जहि‍ना अधि‍क बोखारक आगू कम बोखार बोखार नै रहि‍ जाइत तहि‍ना ने चाहो होइ छै।
भूखलकेँ जहि‍ना पहि‍ल कौर आ पि‍यासलकेँ पहि‍ल घोंट सुखद होइ छै तहि‍ना चाहक घोंट लगबिते शोभा काका बजला-
गाम-घरक की हाल्‍-चाल अछि‍?”
गाम-घरक हाल-चाल सुनि‍ सुगि‍या काकीक मन उड़ए लगलनि‍। बजैसँ पहि‍ने सोचए लगली जे कि‍म्‍हरसँ बाजी। गाम दि‍ससँ आकि‍ परि‍वार दि‍ससँ। सम्‍हारैत बजली-
गाममे तँ ऐबेर साक्षात् सरोसतीए आबि‍ गेली। एकोटा वि‍द्यार्थी फेल नै भेल।
सभकेँ पास सुनि‍ शोभा कक्काक मन ओझरा गेलनि‍। जखनि सभ पास केलक तखनि सुशीलक केना बूझब जे केतेसँ नीक केतेसँ अधला केलक। पाशा बदलैत पुछलखिन-
केकरा कोन डि‍बीजन भेल?”
काकीक मन पहि‍नेसँ उड़ले रहनि‍, जहि‍ना दौगैकाल पएरक ठेकान नै रहैत तहि‍ना प्रश्नकेँ सुआदने बि‍ना बजली-
सभसँ बेसी नम्‍बर अपने सुशीलकेँ अछि‍।
सभसँ नीक सुनि‍ शोभा काका बजला-
अपने जे हुअए मुदा सुशीलकेँ आगूओ पढ़ाएब।
आगूक नाओं सुनि‍ सुगि‍या काकी, भकरार फूल जकाँ बजली-
रि‍जल्‍ट नि‍कललापर जखनि सुशील संगी-साथी सभसँ भेँट कऽ आएल तखनेसँ मन खसल देखै छी।
से किए?”
कहैए जे आगू पढ़ैले सभ बाहर जाएत...?”
सुगि‍या काकीक वि‍चारकेँ शोभा काका वि‍चारक अलमारीमे चौपेतैत बजला-
नीक हएत जे बौऔकेँ सोर पाड़ि‍ लि‍औ। परि‍वारक सभ मि‍लि‍ किए ने परि‍वारक काजक वि‍चार करब। केकरो मनोरथकेँ किए कि‍यो दाबत?”
शोभा कक्काक वि‍चार सुनि‍ सुगि‍या काकीक मन खापड़ि‍क धान जकाँ ऐ भागसँ ओइ भाग करए लगलनि‍। मुदा पति‍क बात बूझि‍ हनछि‍न नै कऽ कन्‍हलग्‍गू बड़द जकाँ जू गेली।
सुशीलक संग आबि‍ काकी अपन घरमे अभ्‍यागत जकाँ बजली-
बौआ, पहि‍ने बाबूकेँ गोड़ लगहुन।
ओना सुशीलक मनमे अपनो रहबे करै जे अपन कर्त्तव्‍यक पालन केना केने छी से तँ पि‍तेक बताैल रस्‍ता छि‍यनि‍। तँए ओइ पगक पग-सँ-पग टपलौं तखनि किए ने ओकरे हथि‍यार बना जीवन कर्म करब। पि‍ताकेँ गोड़ लागि‍ सुशील मुँह उठा असि‍रवादक प्रति‍क्षा करए लगल।
शोभा काका कहलखिन-
बाउ, आगूक की विचार होइए?”
सुशील बाजल-
सभ बाहर जा-जा नाओं लिखौत।
शोभा काका कहलखिन-
मनोरथ अपनो अछि‍, माएओक मन तेहने देखै छी। चारि‍-पाँच साल नोकरी रहल अछि‍। तैबीच देखबे करै छी चारू भाए-बहि‍न पढ़ै छी, दि‍नो-दि‍न आगूए बढ़ब। जइसँ खरचो बढ़ि‍ते जाएत। केते कमाइ छी से केकरोसँ छि‍पल अछि‍। तखनि तँ आमद-खर्च देखि‍ कऽ जौं परि‍वारक गाड़ी नै खि‍ंचब तँ केते दि‍न परि‍वार ठाढ़ रहत।
पति‍क बातकेँ अनसुन करैत सुगि‍या काकी बि‍च्चे‍मे टपकि‍ उठली-
हम केकरासँ थोड़ छी जे अपन मनोरथ पूरा नै करब। जहि‍ना सबहक बेटा पढ़ैले बाहर जाएत तहि‍ना हमरो जाएत।
पत्नीक वि‍चारसँ शोभा काका सकपकेला नै। अपनो मनोरथ, पत्नीओक मनोरथ आ बेटोक मनोरथकेँ पानि‍-चि‍न्नी-नेबोक रस जकाँ घोड़ए लगला।
मनक बात कहथि‍न केकरा। नजरि‍ उठा कखनो पत्नी तँ कखनो पुत्रपर दैत वि‍चारए लगला। वि‍चि‍त्र स्‍थि‍ति‍ बनि‍ गेल अछि‍। नोकरीक चाहमे लोक केतए-सँ-केतए भागि‍ रहल अछि‍। किए ने भागत? जे हवा बनि‍ गेल अछि‍ आकि‍ बनल जा रहल अछि‍ तइमे जि‍नगीक ज्ञान पाछू पड़ि‍ रहल अछि‍। नव तकनीक संग नव मनुख पैदा लऽ रहल अछि‍ जेकर दूरी एते-बढ़ि‍ रहल अछि‍ जे चि‍न-पहचि‍न्‍ह समाप्‍त भऽ रहल अछि‍।

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