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Friday, October 18, 2013

(57) मान

मान

तराजूक दुनू पलड़ा बीच डंडी लगल रहैत, जइ सहारासँ वस्‍तु-जातक वजन मानल जाइत तहि‍ना जि‍नगीक तराजू सेहो होइत अछि‍। कमल फूलक डंटीक सहारासँ जहि‍ना फूलक सभ अंग समान रूपे खि‍ल-खि‍ल खि‍लैत तहि‍ना जि‍नगीओक होइत, मुदा से कहाँ होइए?
जि‍नगीक तराजूक पलड़ा दू रंग होइए, एक सही दोसर घटबी। पलड़ाक घटी-बढ़ी भेने तराजू पसङाह भऽ जाइए जइसँ घटैत-बढ़ैत जि‍नगी जीवनक दू धारामे प्रवाहि‍त होइत चलए लगैए।
एक महि‍ना अखाढ़ रहि‍तो दू नक्षत्रमे वि‍भाजि‍त होइत, ओना एक पूर्ण होइत दोसर अपूर्ण भेने तेसरो चलि‍ अबैत। तैबीच आद्रा नक्षत्र अपन पूर्ण जि‍नगी बि‍तबैए‍। भलहिं‍ं अखाढ़क पहि‍ल भाग हो वा मध्‍य वा अंत। पनरह दि‍न अन्‍हार बित आठ इजोरि‍या मास टपि‍ गेल। हाजरी भुकबैले मौसम जोगार लगा नेने अछि‍ मुदा आद्राक उपस्‍थि‍ति‍ दर्ज नै भेल अछि‍। ओना कहैले सालक पाँच बर्खा भऽ चुकल अछि‍ मुदा तैयो आद्रक जगह उम्‍मस अपन पूर्ण जुआनीमे जगमगा रहल अछि‍। गोनू झाक हरबाहि‍क जलखैक खीर जकाँ हाल धरतीकेँ छुछुओने अछि‍।
दि‍न उगि‍ते जेना दीनानाथक दर्शन होइत तहि‍ना कि‍सानक बीच नव दर्शन आएल। ओ छी श्री-वि‍धि‍सँ खेती करब। मास दि‍न पूर्व धानक बीआ, जैवि‍क खाद, कीटनाशक दबाइ इत्‍यादि‍क बँटबारा, पछि‍ला हि‍साबे इमानदारीसँ भेल। इमानदारी ऐ लेल जे जहि‍ना बैंकक कर्जकेँ लोक चौक परहक भुज्‍जा खा सठा दैत तहि‍ना अखनि धरि‍क बीआ-बालि‍क हि‍साब रहल। वैचारि‍क रूपमे बीआ पाड़ि‍ खेती करैक समए सेहो पौलक। संयोगो नीक रहल जे एकटा बर्खा सेहो भेल। बर्खा हाथ लगने कि‍छु गोटे बीआ खसौलनि‍। देखबामे बर्खा भेल, मुदा बीआ पाड़ैबला नै भेल। जइसँ बीआ अदहा-छिदहा जनमल। कि‍छु गोटे कल आ घैलसँ पटा डूमा हाल बना खसौलनि‍। जनम्‍बैमे ओ जीतला। मुदा कि‍छु गोटे अखनो बीआ घरेमे आद्राक आशापर रखने छथि‍। ओना अद्रोसँ रोहणिक बीआकेँ नि‍राेग मानल गेल अछि‍। मुदा रोहणिक पछाति हि‍साबकेँ अनदेखी केने बीराड़ेमे बीआ जरबो करैत। खेतीक एक उपए तँ हाथ आएल मुदा मूल उपए पानि‍ नै आएल। एक पाशापर भगवान बैसल दोसर २००८ ई.क कोसीक विभिषिका नहर खा गेल, तइ लगल १९८७ ई.क बाढ़ि‍ आ १९८८ई.क भुमकम बीस-पच्‍चीस बरख पहिने‍ बोरि‍ंगकेँ खा गेल छल। जुड़शीतल पावनि‍क चलती कमने पोखरि‍क उड़ाही रूकि‍ गेल जइसँ ओ अपने तेहेन रोगा गेल अछि‍ जे जान लेल रवि‍क संग एकादशीओ करैए।
मनुखक जनम संस्‍कार ओतए पनपब शुरू होइत जेतए ओकर जनम होइत अछि‍। ई दीगर बात जे केतौ पेटक बच्‍चाक सेवा पोनगैक पहि‍नेसँ हुअ लगैत आ केतौ रस्‍ते-पेरे जन्‍मो लैत आ पाललो-पोसलो जाइत।
आद्राक कर्त्तव्‍यक लापरवाहीसँ जन-जनक बीच तबाही तँ अछि‍ए श्रमक घटबी सेहो बेसियाइए गेल अछि‍। मुदा कि‍छुओ किए ने हुअए आखि‍र वसन्‍तक उनाड़िओ मास तँ छी। किए ने बाग-बगीचामे बगवार वसन्‍तक संग चैतावर आ बरहमासा गाएत। आमक संग-संग जमुनि‍या धार सेहो बहि‍ते अछि‍।
टोलक पाँच गोटेक गाछी एकठाम। साधारण परि‍वार तँए छोट-छोट गाछी। मुदा कलमी-सरही सभ आम लुबधल। करीब पच्‍चीस तीस गाछ सभ मि‍ला कऽ पाँचो परि‍वारक जीवन-शैली एक रंग तँए वि‍चारोमे एकरूपता छन्‍हि‍। एते जरूर छन्‍हि‍ जे बि‍नु कहने कि‍यो कोनो गाछपर ने ढेला फेकैत आ ने हाथसँ तोड़ैत। मुदा खसल आमक कोनो रोक नै। जइसँ चेतन तँ अपन-आनक ठेकान जरूर बुझैत, मुदा बाल-बोध नै। पाँचो परि‍वारक धि‍या-पुता एकेठाम खेलबो करैत आ आम खसलापर पबैले दौगबो करैत। ओना अबोध बच्‍चा रहने, अवाजकेँ ठीकसँ नै अकानि‍ कि‍यो केम्‍हरो कि‍यो केम्‍हरो दौग जाइत मुदा केकरो भेटलापर एते खुशी सभकेँ जरूर होइत जे हराएल भेटल।
राति‍क दू बजैत। उमस भरल दि‍नक संग अदहा रातिओ बित गेल। एक बजेक बाद पूर्बाक लहकी उठल। दि‍न भरि‍क गुमराएल मन नीन दि‍स दौगल।
दुनू बेटाक संग गुलजारी, आमक गाछी वि‍दा भेल। अष्‍टमीक चान लुप्‍त भऽ गेल छल। जइसँ अन्‍हारक साम्राज्‍य पसरि‍ गेल छेलै। आठ गोटेक परि‍वार गुलजारीक। तीनू बापूत मि‍ला आठटा पाकल आम भेटलै।
आँगन आबि‍ डि‍बि‍याक इजोतमे आठो आम गनि‍ छोटका बेटा-राधेश्‍याम बाजल-
जेते गोरे घरमे छी एक-एकक हि‍साबसँ आमो अछि‍।
राधेश्‍यामक बात सुनि‍ जेठका भाय गौरीशंकर बाजल-
जहि‍ना छोट-पैघ आम अछि‍ तहि‍ना तँ घरमे लोको अछि‍ कि‍ने। तँए...।
अखनि माएकेँ रखैले दऽ दहक। खाइ बेरमे खाएब। राधे श्‍याम बाजि कऽ चुप भऽ गेला।
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