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Friday, October 18, 2013

(54) पनि‍याहा दूध

पनि‍याहा दूध

आँगन बहारि‍, बाढ़नि‍ धोय पछबरि‍या दावा लगा रखि, सुनयना दरबज्‍जा दि‍स तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे मास्‍टर साहैब (पति‍) भरि‍सक सुतले छथि‍ उठा देब उचि‍त हएत मुदा मन ठमकि‍ गेलनि‍। आठमे दि‍न गाम आएल रहथ तँ चारि‍ बजे भोरेसँ हरवि‍र्ड़ो केने रहै छला जे घरमे कोढ़ि‍याक बाढ़ि‍ आबि‍ गेल अछि‍, जे काजक बेरमे सूतल रहत ओकरा कहि‍यो भाभन्‍स हेतै? मुदा आठे िदनक दूरीमे एना किए देखै छी। फेर मन घूमि‍ कहलकनि‍ उमेरोक दोख होइ छै, ओना सठि‍या तँ गेले हेता। तत्-मत् करैत सुनयना दरबज्‍जा–आँगनक बीच ठकुआ कऽ ठाढ़ भऽ गेली, ने आगू डेग उठनि‍ आ ने पाछू।
ओना जीवानन्‍दक नीन समैपर टूटि‍ गेल रहनि‍, एक तँ ओहुना उमेर बढ़ने खूनो पनि‍याए लगै छै आ नीनो पतराए जाइ छै। नीन टुटि‍ते जीवानन्‍दक मनमे उठलनि‍ जे उठि‍ए कऽ की करब? काजे कोन अछि‍ जइ पाछू लागब। आँखि‍ बन्न केने सोचैत रहथि‍। जहि‍ना चि‍न्‍तक चि‍न्‍तन अवस्‍थामे नि‍स्‍तेज भऽ जाइत तहि‍ना भऽ गेला। ओना आँखि‍ओ खुजैक आ बन्न होइक ढेरो कारण अछि‍ मुदा हुनका से नै रहनि‍। मनमे केतेको रंगक वि‍चार टकराइत रहनि‍, तँए अगि‍ला रस्‍ता देखैमे एकदि‍शाह भऽ गेल रहनि‍। आलमारीक कि‍ताब जकाँ रंग-रंगक वि‍षयक एकेठाम सैंतल रहनि‍, असल वि‍चार परि‍वारमे गड़ल रहनि‍। मुदा परि‍वारसँ पहि‍ने जे अपनापर नजरि‍ पड़लनि‍ तेतए गड़ि‍ गेला। सेवा-नि‍वृत्त भऽ गेलौं, जीवैक उपए भलहिं‍ं जे हुअए मुदा काज तँ हरा गेल। काजे की अछि‍ जइ अनमेनामे समए गूदस करब। जखनि काजे हरा गेल तखनि जि‍नगी केना चलत। जौं जि‍नगी चलत नै तँ जीवि‍त-मृत्‍युमे अन्‍तरे की भेल? मनमे लधले रहनि‍ आकि‍ दोसर उठि‍ गेलनि जे करबो केकरा लेल करब? पछिला (पूर्वज) कि‍यो छथि‍ए नै अगि‍लो उड़ि‍ए गेल। बीचमे अपनाकेँ पाबि‍ मन दहलि‍ गेलनि‍। सेवा-नवृत्ति‍क तँ एक अर्थ ईहो होएत ने जे काज करै जोगर नै रहलौं। फेर मन ओझरा गेलनि‍। ‘अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा’क पइर भऽ गेल। काजो तँ दू रंगक होइत अछि‍, एक शरीरक शक्‍ति‍सँ कएल जाइत अछि‍ दोसर बौद्धि‍क शक्‍ति‍सँ। हम तँ शरीरक शक्‍ति‍सँ नै बौद्धि‍क शक्‍ति‍सँ करै छेलौं तखनि किए नै करैबला रहलौं। आमक आँठी जहि‍ना कोइलीसँ धीरे-धीरे सक्कत बनि‍ सृजन शक्‍ति‍ प्राप्‍त करैत, से कहाँ भेल? जौं बौद्धि‍क शक्‍ति‍केँ शरीरक शक्‍ति‍क सीमांकन कएल जाएत तँ केहेन हएत? खैर जे होउ, ठनका ठनकै छै तँ कि‍यो अपना माथपर हाथ दइए। मुदा सेहो तँ नै भऽ रहल अछि‍। जे ठनका शरीरक के कहए जे घरो-दुआर आ गाछो-बिरिछकेँ तोड़ि‍-फाड़ि‍ दइए ओइ ठनकाकेँ हाथ केते काल बँचा सकैए?
फेर मन ठमकलनि‍। मुइल धार जकाँ परि‍वारो भऽ गेल अछि‍, की‍ हमरा बँचौने बँचत। बँचबो केना करत? ने पछि‍ला घूमि‍ औता आ ने अगि‍ला आबए चाहत। लऽ दऽ कऽ दू परानी भेलौं, तहूमे तेहेन पाकल आम जकाँ भऽ गेल छी जे कखनि तूबि खसब तेकर कोन ठेकान अछि‍। खैर जे होउ, जाबे आँखि‍ तकै छी ताबे तँ जीबए पड़त आ जाबे जीब ताबे जीबैक उपए करै पड़त। अपने जीने जि‍नगी आ अपने मुइने मृत्‍यु।
गुन-धुनमे पड़ल जीवानन्‍दक मन समाज दि‍स बढ़लनि‍। समाजे लेल की केलि‍ऐ जे हमरा लेल करत। जहि‍ना देवस्‍थान दस गोटेक सहयोगसँ ठाढ़ो होइत आ चलबो करैत तहि‍ना तँ समाजो अछि‍। मुदा से तँ कि‍छु ने केलि‍ऐ। थकथकाएल मन कहलकनि‍-
की ओछाइने धेने रहब आकि‍ उठबो करब?” मुदा लगले दोसर मन कहलकनि‍-
उठि‍ए कऽ की करब?”
मन आगू बढ़ि‍ शि‍क्षक समाज दि‍स बढ़लनि‍। सभ सेवा-नि‍वृत्ति‍ होइ छथि‍। मुदा, की‍ हमरे जकाँ सभकेँ हेतनि‍। भलहिं‍ं सभकेँ होन्‍हि‍ वा नै कि‍छु गोटेकेँ तँ हेबे करतनि‍। जखनि सबहक जि‍नगी एक वृत्तमे बितल तखनि किए सभकेँ सभ रंग हेतनि‍। परि‍वारो आ समाजो तँ सबहक सभ रंग छन्‍हि‍। से तँ छन्‍हि‍ए। दीनानाथ बाबूकेँ देखै छि‍यनि‍ जे सेवा-नि‍वृत्ति‍क उपरान्‍तो वि‍द्यालय छोड़ि‍ नै रहलनि हेन। जखनि कि‍ सुखदेव बाबू सेवा-नि‍वृत्ति‍ होइसँ पूर्वहि‍ जे तीन बरख ओछाइन धेलनि‍ से अखनो धेनहि‍ छथि‍। परि‍वारमे जौं केकरो कि‍छु अढ़बै छथि‍न तँ मुँह दूसि‍ कहै छन्‍हि‍ जे भरि‍ दि‍न कौआ जकाँ काँइ-काँइ करैत रहै छथि‍। मनुखकेँ जौं कौआ मानि‍ लेल जाए तँ बोलकेँ की कहबै? जीवानन्‍दक मन आरो घुरि‍या गेलनि‍। फेर मनमे उठलनि‍ जे अनेरे औनाइ छी। जेतबे रहए तेतबे टाँग पसारी नै तँ पओल जाएब। सुतले-सूतल पत्नीकेँ सोर पाड़लखि‍न-
कनी एम्‍हर आउ?”
आँगन-दरबज्‍जाक बीच जे सुनयना ठाढ़ छेली से आगू डेग बढौलनि‍। केबाड़ लग ठाढ़ भऽ हि‍या-हि‍या देखए लगली। पहुलका (सेवा-नि‍वृत्ति‍सँ पूर्वक) अपेक्षा बदलल-बदलल रूप बूझि‍ पड़लनि‍। एना केना भेलनि‍, अखनि धरि‍ तँ कि‍छु कहबो ने केलनि‍ हेन। तखनि किए पानि‍ उतरल बूझि‍ पड़ै छन्‍हि‍। केबाड़क एकटा पट्टा खोलि‍ देने रहथि‍न आ दोसर ओहि‍ना लागल रहै। तही बीच जीवानन्‍दक मनमे उठलनि‍ जे जाबे नोकरी करै छेलौं ताबे बाहरसँ कमा कऽ आनि‍ पत्नीक हाथमे दइ छेलि‍यनि‍, आ अपने अपनाकेँ गारजन बुझै छेलौं। से तँ आब नै हएत। जौं से नै हएत तँ परि‍वार आगू मुहेँ केना ससरत? पाहुन जकाँ आठ दि‍नपर अबै छेलौं आ कमासुत बनि‍ जाइ छेलौं।
पति‍क बदलल रूप देखि‍ सुनयनाक मनमे उठलनि‍ जे अखनि धरि‍ कि‍छु करबो ने केलनि हेन आ तरे-तर फटि‍ रहल छथि‍। नवकवि‍रयाक चुटकीक अवाज जकाँ सुनयनाक आगमन बुझि‍तो जीवानन्‍दकेँ उठैक हूबा देहमे नै रहलनि‍। मनोक बोझ तँ माथकेँ ओहि‍ना भरि‍या दैत जहि‍ना कोनो वस्‍तुक बोझ भरियबैत। मनकेँ जि‍नगीक बाेझ ऐ रूपे दबने जेना सवारी कसल घोड़ा वा खलीफा होइत। जाबे धरि‍ बाहरसँ कमा घर अनै छेलौं, जइ बले परि‍वार ससरै छल ओ तँ टूटि‍ गेल। ओहीपर ने अपनो छहर-महर आ घरो-परि‍वारक छल। मुदा से नै भेने तँ ओहि‍ना भऽ जाइ छै जहि‍ना माटि‍क बनल रस्‍ताकेँ पानि‍क धार काटि‍ अवरूद्ध कऽ दइ छै‍। की कमाइएपर गारजनी छल? पत्नीएकेँ की सुख हमरासँ भेलनि‍? घर-गि‍रहस्‍ती सम्‍हारैमे दि‍न-राति‍ एकबट्ट केने रहै छथि‍। एक तँ मि‍थि‍लांचलक कि‍सान परि‍वारक अजीव गढ़नि‍ अछि‍, जैठाम एलापर देवि‍ओ-देवता भोथि‍या गेला। सौंसे जनकपुरमे जनकेक दरवार जकाँ बूझि‍ पड़लनि‍। नान्‍हि‍टा बात थोड़े छी। गाम-गाम व्‍यास भागवत बचै छथि‍, गाम-गाम कीर्तन-भजन, भोज-भनडारा होइत रहैए‍, तैठाम समाज वि‍परीत दि‍शामे बहि‍ गेल, मुदा देखलनि‍ कोइ ने। दरबज्जाक सौभाग्‍य छल नीक-नीक बात-वि‍चार करब। तैठाम दरबज्‍जा टूटि‍ आँगन घरक कोठरी बनि गेल अछि!!! जैठाम कम-सँ-कम लोकक पैठ रहैए, जैठाम आनक सुख-दुख सुनैक आ सुख-दुखक दबाइ बुझैक अवसर नै भेटैए! तैठाम पति‍-पत्नीक सम्‍बन्‍धक आधार की‍ बनि‍ सकैए। देखा-देखीक दुनि‍याँमे चि‍न्‍ता–चि‍न्‍तन किए रहत। जौं से नै रहत तँ मनक सुखक दि‍शाक धारा किए ने बदलत। जीवि‍त-मृत्‍युक ि‍नर्णए के करत? केना हएत? कोनो मुसरा गाछ होइ आकि‍ लतियाएल लत्तीक होइ, ओकर बाढ़ि‍ ताधरि‍ समीचीन होइत जाधरि‍ ओकरा अनुकूल वातावरण भेटैत रहैत। ओना लाखो कि‍ड़ी-मकौड़ी कोमल कि‍सलयकेँ नष्‍ट करैबला अछि‍ मुदा प्रकृतोक तँ गजब गढ़नि‍ अछि‍, एक-दोसराक नष्‍ट करैबला सेहो मौजूद अछि‍। बि‍नु मुँहक गाछ वा लत्तीक दशा तँ ओहने होइ छै जेहने साँपक मुँह थकुचेलाक पछाति‍ होइ छै।

जीवानन्‍दकेँ एहसास भेलनि‍ जे हमरापर नै, पत्नीपर घर-ठाढ़ अछि‍। जँए घर ठाढ़ अछि‍ तँए समाजक परि‍वार कहबैक लाली अछि‍। मुदा समाज तँ ओहि‍ना नै केकरो महत दैत? सेवाक अनुकूल केकरो महत दैत अछि‍। से हमरासँ की भेलै? जखनि कि‍छु ने भेलै तखनि केते महत हेबाक चाही? मुदा जेकरा घर-परि‍वार गाम बुझै छी, तेकरा छोड़ि‍ए केना देब। मुदा ई प्रश्न तँ गामक छि‍ऐ, अपन नै। परि‍वारमे जे छहर-महर भेल ओइमे हमरा कमाइसँ की भेल? यएह ने भेल जे बेटीक बि‍आह केलौं, बेटाकेँ पढ़ेलौं-लि‍खेलौं। अंति‍म अवस्‍थामे अपन घर बनेलौं। मुदा बेटीक बि‍आह, पढ़ाइ-लि‍खाइ एते भारी किए अछि‍ जे जि‍नगी भरि‍क कमाइसँ लोककेँ पारो ने लगै छै। जौं एतबेमे सभ ओझरा जाए तँ समाजक गति‍ केहेन हएत? जौं समाज दुरगति‍क चालि‍ पकड़ि‍ चलत तँ मनुखक पैदाइस केहेन हएत। जैठामक जेहेन मनुख तैठाम तेहने दुनि‍याँ।
करोट फेरिते जीवानन्‍दक मनमे उठलनि‍ जे हारि‍ मानी झगड़ा फड़ियाए। पत्नीसँ क्षमा माँगि‍ लेब। जौं से नै माँगब तँ हुनकर वि‍चार छि‍यनि‍ जे घरमे रहए दथि‍ वा नै। समाजक संग तँ वएह रहली। पत्नीक प्रति‍ जे प्रेम हेबाक चाही से कहाँ कहि‍यो भेल। क्षण-पलक सम्‍बन्‍ध रहल जीवन-लीलाक सम्‍बन्‍ध कहाँ रहल। हुनकर दुनि‍याँ हमरासँ भि‍न्न रहलनि‍। मुदा आइ तँ ओही दुनि‍याँक जरूरति‍ हमरो भऽ गेल अछि‍। खंड वि‍कसि‍त देशमे जहि‍ना जनता-सरकारक बीच सम्‍बन्‍ध रहैत, तहि‍ना ने भऽ गेल अछि‍। जेना पति‍ रूपमे ओ सेवा केलनि‍ तेना कहाँ केलि‍यनि‍। जौं से करि‍ति‍यनि‍ तँ ओ ओहि‍ना ओतै अँटकल रहि‍तथि‍, जेतए नामो-गाम नै सीखि‍ पेली। जतबो समए गाममे बि‍तेलौं, हुनकर कमाइ खेलि‍यनि‍, तेतबो तँ हुनका नै कऽ सकलि‍यनि‍।
 तेतबे नै, दरबज्‍जापर जे माल अछि‍, हुनका (पत्नी) देखि‍ भूख-पि‍यास कहए लगै छन्‍हि‍ मुदा हमरा देखि‍ घि‍रनी जकाँ नाचि‍ भगबए चाहैए। अठबारैओ जौं अबैत रहलौं तैयो तँ अपन बूझि‍ खाइ-पि‍ऐले कि‍छु ने केलि‍ऐ। कोनो कि‍ मनुख छी जे घड़ी-मोबाइल देखि‍ मि‍नट-सेकेण्‍ड बूझत, ओकरा लेल तँ अठबारैओ सटले-दि‍न भेल। तहि‍ना तँ गाछीओ-बि‍रछीक अछि‍। जुड़शीतल दि‍नसँ ओकरा जलढार हेबाक चाही से अनका तँ कहलि‍ऐ, मुदा...?
... किए ओ अपन बूझत?
जहि‍ना सासुरमे जमाए सासु-ससुरक आगू लाड़-झाड़ करैत जे ई नै अछि‍ ओ नै अछि‍। तहि‍ना जीवानन्‍द ओछाइनसँ उठि‍, बैसैत पत्नी दि‍स देखि‍ बजला-
एते दि‍नक जि‍नगीमे कहयो नि‍ठूर दूध नै खेलौं? आब अहाँक दरबारमे छी, जेना राखी।
पति‍क बात सुनि‍ सुनयना वि‍ह्वल भऽ गेली। अपन कर्तव्‍यक बोध भेलनि‍। पति‍क सेवा पत्नीक पहि‍ल दायि‍त्‍व। लटारम्‍ह करैत बजली-
एना संस्‍कृतमे नै कहू, भखियौटीमे कहू जे की कहै छी?”
पत्नीक बात सुनि‍ जीवानन्‍दक मन हरा गेलनि‍। जैठाम सुग्‍गा-मेना संस्‍कृत पाठ करै छल तैठाम मनुखक दूरी एते किए भेल? प्रश्नमे ओझराइते बुकौर लगि‍ गेलनि‍। बोली नै फुटलनि‍।
आजुक शि‍क्षक जकाँ जीवानन्‍दक जि‍नगी नै रहलनि‍। शि‍क्षक समाजक प्रति‍ समरपित छला। ओइ समाजक बीच पढ़ाइ-लि‍खाइ प्रति‍ष्‍ठाक मूल बि‍न्‍दु छल। ओ सभ मानै छथि‍ जे जइ वि‍षयक जरूरति‍ वि‍द्यार्थीकेँ ट्यूशन पढ़बाक होइ छै ओइ वि‍षयक पढ़ाइमे कमी छै। वि‍द्यार्थी लेल कि‍छु सहज वि‍षय होइत अछि‍ कि‍छु कठि‍न। मुदा जइ वि‍षयक जे शि‍क्षक होइ छथि‍ हुनका लेल तँ ई समस्‍या नै भेल। जौं हुनकामे शि‍क्षण-कलाक पूर्णता हेतनि‍ तँ वि‍द्यार्थीकेँ किए समस्‍या ग्रस्‍त रहए देथि‍न। की वजह छै जे अपना ऐठाम अदौसँ लऽ कऽ अखनि धरि‍ शि‍क्षण-संस्‍थानमे छड़ीक चलनि‍ नै रहल मुदा तँए कि‍ कि‍यो पढ़ि‍-लि‍खि‍ विद्वान नै भेला। भेला।
जइ हाइ स्‍कूलमे जीवानन्‍द शि‍क्षण कार्य करै छला ओइ वि‍द्यालयकेँ अपन छात्रावास सेहो छै। जइमे पचाससँ ऊपर छात्रो आ अदहासँ बेसी शि‍क्षको रहै छथि‍। मेसमे भोजन बनै छै आ जएह वि‍द्यार्थी लेल सहए शि‍क्षको लेल होइ छै। ओना शि‍क्षक सभ अलगसँ दूध कीनि‍ राति‍मे सुतै बेर पि‍ऐ छथि‍। जीवानन्‍दो पि‍ऐ छथि‍।
जहि‍ना बाटमे हराएल बटोही दोसरकेँ पुछैत, मुदा उत्तर देनि‍हारो बटोही तँ रंग-बि‍रंगक होइत अछि‍। कि‍यो एहनो होइत जे अपने हरेबाक चर्च करैत तँ कि‍यो हराएब छि‍पबैत आरो दोसरकेँ हराएल बाट देखा दैत आ कि‍यो एहनो होइत जे कहैत जे संगे चलू। ऐ आशाक संग चलैक बात कहैत जे जौं कि‍छु नै कहबै तँ गोंग कहत, मुदा बि‍नु बूझलमे की जवाबो देल जा सकैए। ओ संग केने ताधरि‍ चलैत रहैए जाधरि‍ आँखि‍गर नै भेट जाइत अछि‍। अर्द्धांगि‍नीक रूपमे सुनयना पुछलखि‍न-
की सुच्‍चा दूध कहलि‍ऐ?”
जीवानन्‍द बजला-
पैंतीस सालक नोकरीमे कहि‍यो सुच्‍चा दूध नै पीब सकलौं। पीलौं जरूर मुदा एकरा अदहासँ बेसी खाएब थोड़े कहल जेतइ।
जहि‍ना मृत्तासनपर चढ़ल राहीकेँ सर-समाज आ कुटुम-परि‍वारक लोक आबि‍-आबि‍ जि‍ज्ञासा करैत जे भैया, कि‍ काका, आकि‍ बाबा कथी खाइ-पीबैक मन होइए, तहि‍ना सुनयना पुछलखि‍न-
एते दि‍न जेतए अहाँ छेलौं छेलौं, हम छेलौं छेलौं। मुदा आब तँ ओतए अहूँ रहब जेतए हम छी।
पत्नीक वि‍चारक गांभीर्यसँ जीवानन्‍द आँखि‍ पड़ल अजगर साँपक सोझसँ पड़ा नै पाबि‍, बजला-
कहलौं तँ बेस बात मुदा मनुख तँ मनुखक बीच कि‍छु बंधन ि‍नर्धारि‍त कऽ रहैए। डोरी-पगहाक जरूरति‍ तँ पशु लेल होइत। मुदा बान्‍ह तँ एकमुड़ि‍या नै भऽ सकैए। ओकरा लेल तँ जाधरि‍ दू-मुड़ि‍या नै लटपटौल जाएत, ताधरि‍ गीरह केना पड़तै। जाधरि‍ कुशि‍यारक गाछ जकाँ गीरह नै बनत ताधरि‍ रस-जल केना समटाएल रहत।
पत्नीक प्रश्न सुनि‍ जीवानन्‍द जि‍नगीक ओझरी देखए लगला जे ई बन्‍धन छूटल कहि‍या। तड़सैत मन पत्नीक करेजमे पहुँचलनि‍। जहि‍ना नि‍शाँएल लोक अपने अड़-दड़ बजैत तहि‍ना जीवानन्‍द बाजए लगला-
कामि‍नी, सेवि‍काक रूप छोड़ि‍ संगी कहि‍या बुझलयनि‍। ई दोख केकर। मुदा दोख तँ दुनू दि‍स देखए पड़त। पत्नी कोन रूप देखलनि‍। सभ दि‍न ओ पति‍ बूझि‍ सेवा करैत एली। कहि‍यो कि‍छु नै मंगलनि‍। अपन परि‍वारक स्‍तर बूझि‍ अपनाकेँ सम्‍हारि‍ रखली।
बड़बड़ाइत पति‍केँ देखि‍ सुनयना बजली-
हारि‍ मानी झगड़ा फड़ियाए। एके बेर बाजि‍ जाउ जे जे हूसल से हराएल। जे जीबए से खेलए फागु।
मरैत रोगी जकाँ जीवानन्‍द बजला-
सुच्‍चा दूध आबो नै पीब सकै छी?”
पीब सकै छी। जखनि गाए पोसैक लूरि‍ अछि‍ तखनि किए ने पीब सकै छी। मुदा जैठाम दि‍न-राति‍ लुटनि‍हार लूटि‍ रहल अछि‍ तैठाम थनक दूध कंठ लग पहुँचत कि नै, तेकर कोन बि‍सवास अछि‍।
पत्नीक प्रश्न सुनि‍ जीवानन्‍द जी-जी कऽ उठला। बि‍सरल बात मन पड़लापर जहि‍ना ओकर रूपो-रेखा सोझमे अाबए लगैत तहि‍ना भेलनि‍। बजला-
शुद्ध-अशुद्ध दूध ने एक परि‍वारक समस्‍या छी आ ने एक गामक। दूधमे पानि‍ देब चलनि‍ भऽ गेल अछि‍। ओना जे अपने गाए-महिंस पोसि‍ दूध खाइ छथि‍ ति‍नकर संख्‍या कम छन्‍हि‍‍। जे बेचि‍नि‍हार छथि‍ ओ दूध बेचि‍ चाउर-दालि‍, तरकारी इत्‍यादि‍ कीनै छथि‍, खाली दूधेटामे पानि‍ नै देखै छथि‍न। आनो-आनो तहि‍ना, तखनि कएल कि‍ जाए। कुल-मि‍ला कऽ देखलापर यएह ने देखि‍ पड़ैत जे ताड़ी पीयाक गांजा पीयाककेँ गारि‍ पढ़ि‍ कहैत जे फोकटि‍या अछि‍। अहि‍ना एक-दोसरमे सटल सम्‍बन्‍ध अछि‍। सभकेँ सभ गारि‍ पढ़ैए आ सबहक सभ सुनैए। तहूसँ टपि‍ अपने मुहेँ गरि‍या अपने सेहो सुनैए।
वि‍ह्वल भऽ सुनयना टोकलकनि-
तखनि उपए?”
उपए एतबे जे जेते परि‍वारमे खर्च हएत कम-सँ-कम तेते उपारजन कऽ लेब तखनि परि‍वारक पार लगि‍ जाएत। गाममे जेते खर्च अछि ओते गौआँ मि‍लि‍ उपारजन कऽ लेता तँ गामक पार लगि जाएत। समाजेक कल्‍याण ने देशक कल्‍याण छी।‍

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