Pages

Friday, October 18, 2013

(52) सतभैंया पोखरि‍

सतभैंया पोखरि‍

पोखरि‍ कहि‍या खुनौल गेल, के खुनौलनि‍? मि‍थि‍लांचलक इति‍हासे जकाँ अखनि धरि‍ हराएले अछि, मुदा एते गामक सभ मानैए‍ जे पोखरि‍क बतारी ने एकोटा गाछ-बि‍रि‍छ अछि‍ आ ने आन कोनो। ओना पोखरि‍ नम्‍हर रहने रंग-बि‍रंगक खि‍स्‍सा-पि‍हानी अछि‍ए। कि‍यो दैंतक खुनौल कहैए‍ तँ कि‍यो राजा-रजवारक। मुदा जे होउ, हजार बरखसँ ऊपरक पोखरि‍ जरूर अछि‍ जे सभ मानैए‍। शुरूमे पोखरि‍क महार वा अग्‍नेय जेहेन रहल हुअए मुदा अखनि महारो झड़ि‍-झुड़ि‍ गेल अछि‍ आ पोखरि‍क पेटो गदि‍याह भऽ गेल अछि‍। गाममे एकेटा पोखरि‍ मुदा एहेन अछि‍ जे एते सघन गाम रहि‍तो पोखरि‍क अभाव गौआँकेँ नै हुअ दइ छन्‍हि‍। चाकर-चौड़गर पेट अखनो अछि‍ए। मुनहर जकाँ दर्जनो ठेक-बखारी सदृश तँ अछि‍ए।
गाममे सभसँ पुरानो आ झमटगरो परि‍वार मात्र सतभैंयाकेँ रहलनि‍। पोखरि‍ओ हुनके सबहक छि‍यनि‍। केना भेलनि‍ से तँ नीक जकाँ कि‍नको नै बूझल छन्‍हि‍ मुदा जहि‍यासँ देखै छी तहि‍यासँ हुनके सबहक कब्‍जामे रहलनि‍ अछि‍। ओना पोखरि‍ तँ गामे-गाम अछि‍ मुदा आन गामक पोखरि‍सँ अलग पहि‍चान अखनो अछि‍ए। ने एते नम्‍हर कोनो गामक पोखरि‍ अछि‍ आ ने चौबगली महारक घाट छै। एक घाट रहने पारो नै लगैत जेना आन-आन गामक पोखरि‍मे अछि‍। आन गामक पोखरि‍मे बड़ बेसी अछि‍ तँ एकटा दूटा घाट अछि‍। एकटा मरद आ दोसर जनाना लेल। तहूमे रंग-बि‍रंगक बेवहार बनल अछि‍। जइक चलैत जौं कहि‍यो गाममे आगि‍-छाइ लगैए तँ गामे सुन भऽ जाइए, मुदा एकोटा पोखरि आइ धरि‍क इति‍हासमे कहि‍यो ऐ गाममे नै भेल अछि‍। ओना गामक बनाबटि‍ आन गामसँ भि‍न्न अछि‍। केते गाम पूबे-पछि‍मे सूर्यमंडलक गढ़नि‍क बनल अछि‍ जइसँ पूर्बा-पछबाक झोंकमे, आगि‍ लगने धुआ-पोछा जाइए।
बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍ रहने, अनगाैआँ तँ पोखरि‍ मानबे ने करैत मुदा पोखरि‍क सभ काजक पूर्ति होइत, तँए गौआँ लेल धैनसन। कि‍यो अनगौआँक गपपर धि‍यानो ने दैत। सभ यएह मानि‍ चलैत जे कि‍यो अपन मुँह दुइर‍ करैए। नीककेँ अधला कहने थोड़े अधला भऽ जाएत आ अधलाकेँ नीक कहने थोड़े नीक भऽ जाएत जौं एहेन बजनि‍हार अछि‍ तँ ओ अपन मुँह दुइर करैए। सभकेँ अपन-अपन गुण-धर्म होइ छै से तँ अछि‍ए। चारू महार घाट रहने सबहक काजो चलि‍ते अछि‍। तहूमे आन गाम जकाँ कोनो रोक-राक अछि‍ए नै जे ई घाट पुरुखक छि‍ऐ तँ ई घाट जनानाक। ई फल्‍लांक खुनौल छि‍यनि‍ तँए दोसरकेँ नहाए देथि‍न आकि‍ नै, ई हुनकर मन-मरजी छि‍यनि। कि‍यो जाठि‍ गाड़ि‍ पोखरि‍क पहि‍चान बनौने छथि‍ तँ छथि‍। पोखरि‍क पहि‍चान भलहिं जाठि‍ होउ मुदा झील, सरोवर आ धारमे जाठि‍ कहाँ रहैए। तँए कि‍ ओकरा कुमार कहि‍ कात कऽ देबै। आम खेनि‍हारकेँ आम चाही आकि‍ गाछ आ गाछी गनत। हँ, ई बात जरूर जे आमक गाछ केना होइ छै, केना लगौल जाइ छै, केना ओकर सेवा कएल जाइ छै एकर जानकारी रहक चाही। जइ जाठि‍ लऽ लऽ अनगौआँ नचै छथि‍ ओ तँ ईहो कहता ने जे जाठि‍क काज की होइ छै? जौं बीच पोखरि‍क पानि‍क नाप मानल जाए तँ जइ पोखरि‍क कि‍नछड़ि‍एमे उपयोग करै जोकर -नहाइ-धोइ-क पानि रहत ओकर बीचक नाप नपैक जरूरते की रहत। ओहन पोखरि‍क मानि‍ए केते हएत जे एकटा घाट, जे भलहिं सि‍मटी‍ए-ईटाक किए ने होउ, बना बाँकी भागमे मोथी रोपि‍ खेत बना लेब। जौं कहीं आगि‍ लागत तँ‍ छूत-अछूत कहि‍ गामे जरा देब, मुदा आगि‍ लगबे ने करै से ने सोचब आ करब। जनि‍येँ कऽ पोखरि‍केँ अघट बना दुइर कऽ लेब, नहाइ-धोइ जोकर नै रहए देब तँ ओइमे दोख केकर? खएर जे होउ मुदा चारू महार घाटो आ बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍ तँ अछि‍ए।
शुरूहेसँ गामक सतभैंया परि‍वार जोतल-चौकियौल खेत जकाँ समतल रहल अछि‍। बीच-बीचमे बाढ़ि‍-भुमकममे थोड़-बहुत उभर-खाभर बनबो कएल तँ ओकरा पुन: सेरि‍या समतल बना लेल गेल। मुदा भवि‍स  दि‍स नै देखि‍, भूते दि‍स देखने तँ भूत लगबे करै छै। मुदा तेकरो भगबैक तँ उपए होइते अछि‍। बाबेक अमलदारीसँ सतभैंया अपन परि‍वारक पहि‍चान परोपट्टामे बनौने रहल अछि‍। ओना सात भाँइक भैयारीमे तीन भाँइक परि‍वार नावल्‍द भऽ गेलनि‍ जइसँ अगि‍ला पीढ़ी अबैत-अबैत सातसँ चारि‍ भैयारी रहि‍ गेल। सात भाँइसँ सतरह हेबाक चाहै छल से नै भऽ चारि‍पर उतरि‍ गेल, तेकर कारण भेल जे एक भाँइ बेटीक बाढ़ि‍मे दहा गेला। ढेनुआर नक्षत्र जकाँ बेटीक आगमन जोड़ा-पल्‍ला जे अाबए लगलनि‍ से ठीके सातसँ सतरह तँ नै मुदा एकसँ एगारह जरूर भऽ गेलनि‍। मुदा एकसँ एगारह होइतो हुनकर मुँह कहि‍यो मलीन नै भेलनि‍। मनक वि‍श्वास अंत धरि‍ बनले रहि‍ गेलनि‍ जे प्रकृति‍केँ अपन गति‍ छै, ओ अपन नि‍अम-नि‍ष्‍ठासँ चलैए‍। से नै तँ एक कम्‍पनीक वस्‍तु एक रंग होइ छै मुदा तइमे ओहन मेल-पाँच केना भऽ जाइ छै जे मेल-पाँच भेलोपर चारि‍-पाँच वा पाँच-छहसँ आगू-पाछू नै होइत अछि‍। भऽ तँ ईहो सकैत छल जे एक रंगाहे होइत वा एकसँ पाँचो होइत वा आरो अन्‍तर भऽ सकै छल। मुदा से कहाँ होइए। जहि‍ना एकसँ सए धरि‍ गनू आ सएसँ एक दि‍स गनू पचास तँ बि‍च्‍चेमे रहत। तँए बेटा-बेटीक बाढ़ि‍ अबौ आकि रौदी होउ, मुदा अपन व्‍यासक अनुकूले रहैत आएल अछि‍ आ रहबो करत।
दोसर भाए जे बच्‍चेमे कुभेला भेलासँ गाम छोड़ि‍ परदेश गेला। से पुन: घूमि‍ कऽ नहि‍येँ एला। बाल-बोधकेँ सेवाक जरूरति‍ होइ छै, होइत एलैए आ सभ दि‍न होइत रहतै। मुदा जखनि वएह बाल-बोध चेतन भऽ जाइ छथि‍ तखनि हुनक वि‍वेक की कहै छन्‍हि‍ से तँ आनक-आन नै बूझि‍ सकत। ओ अपने अपन कर्तव्‍यकेँ ि‍नर्धारि‍त कऽ जीवन-पथपर चलता। खैर जखनि धरतीए भूमि‍ छी तँ जेतए बास करब ओकरे मातृभूमि‍ बना लेब। तहूमे ओइ बच्‍चाक तँ अधि‍कार बनि‍ए जाइए जेकर जनम जेतए बनि‍ गेल हुअए। मुदा प्रश्न तँ अहूसँ आगू अछि‍। जौं धरती स्‍वर्ग वा वैकुण्‍ठ बनए चाहए तखनि अपनामे बँटि‍ कऽ बनत आकि‍ सम्‍मलि‍त भऽ कऽ? जौं से नै तँ हम केतए छी, ई तँ देखए पड़त। मुदा मि‍थि‍लांचलोक भूमि‍ तँ वएह भूमि‍ छी जे सभ दि‍न प्रकृति‍ प्रदत्त रहल अछि‍, अखनो अछि‍ आ आगूओ रहबे करत। जौं से नै तँ कहाँ अरब करोड़पर लटकल आ करोड़ लाखपर। सभ दि‍न जहि‍ना रहल तहि‍ना अखनो अछि‍। भलहिं‍ं केतौसँ हमहूँ कहि‍ऐ जे छीहे।
तेसर भाँइक परि‍वार ऐ लेल आगू नै बढ़लनि‍ जे शरीरसँ ि‍नरोग रहि‍तो मनसनक बच्‍चेसँ भऽ गेला। जइसँ ने बि‍आह केलनि‍ आ ने कोनो भाँइक बात-वि‍चारमे कहि‍यो रहला‍। तहि‍ना बाँकी भैयारी मि‍लि घरक मोजरे समाप्‍त कऽ देलकनि‍। मुदा तइले हुनको मनमे कहि‍यो दुखो नहि‍येँ जनम लेलकनि‍। जखनि भाय सभ लगमे बैसथि‍ तँ गरजि‍-गरजि‍ बजथि‍ जे मने सभ कि‍छु छी। जे मनक मालि‍क ओ सबहक मालि‍क। मुदा भाएओ सभ बि‍ना कि‍छु टोकारा देने चुपे-चाप सुनि‍ लैत जे अनेरे टोकने आरो बरदियाएब। से नै तँ एक झोंक बाजि‍ नारद जकाँ वीणा हाथमे लेता आ जेम्‍हर मन हेतनि‍ तेम्‍हर वि‍दा हेता। असगरूआ परि‍वारमे एककेँ बौरने परि‍वारेक उसरन होइए मुदा गनगुआरि‍ जकाँ एकटा टाँग टुटनहि‍ की‍ हएत। एक तँ परि‍वार, टोल, समाज गढ़ि‍ लइए। हम सभ तँ कहुना तैयो चारि‍ भाँइ बँचल रहबे करब। बाँझी लगने डारि‍ फड़ै नै छै मुदा तँए ओ गाछसँ हटल रहैए, एहेन तँ नै होइत।
पि‍ताक अमलदारीमे चाकर-चौड़गर, चौघारा घरक आँगन हथि‍सार सन दरबज्‍जा, चन्‍द्रकूप सदृश इनार, सरोवर सदृश बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍क बीच जि‍नगीओ संयमि‍त तँए हर-हर खट-खटक प्रश्ने किए उठत। ओना सातो भाँइक सातो काज सात रंगक। जि‍नगी लेल सातो उपयोगी मुदा गुण, बेवहार आ उपयोगक हि‍साबसँ छोट-पैघ। हर-हर खट-खट नै होइक कारण एकटा दोसरो छल जे अपन-अपन बुधि‍क उपयोग कऽ स्‍वतंत्र रूपसँ अपन-अपन काज सम्‍हारै छला। एक काजमे ने करैक बखेरा ठाढ़ होइत जे एना-हेतै, एना नै हेतै। मुदा एक वि‍चारमे तँ से नै होएत। समटल बि‍छानक सुख जहिना सुति‍नि‍हारकेँ होएत, तहि‍ना ने समटल परि‍वारोकेँ होएत। छोट ओसार रहत आ बच्‍चा बेसी रहत तँ ओंघरा-ओंघरा खसबे करत। खाइ काल भि‍न्ने छि‍पली-बाटी फुटत, जहि‍ना वस्‍तु वेपारक सहायक छी तहि‍ना वेपार उपयोगक। जइ वस्‍तुक जेते उपयोग जि‍नगी लेल होएत ओ वेपार ओते चतरैए‍। मुदा प्रश्न अछि‍ जौं सभ फूल फूले छी तँ देवताक बीच बँटाएल किए अछि‍? जौं देवताक परसाद परसादे छी तखनि महादेव किए बॉतर?
अखनि धरि‍ सतभैंया परि‍वारमे घराड़ीसँ लऽ कऽ बाध धरि‍क जमीनमे दुइए बेर बँटबारा भेल छेलनि‍ जे खूटे-खूट भेल छेलनि‍‍ मुदा ऐबेर रूप बदलि‍ गेल। भीतरि‍या गुमराहटि‍ आबि‍ गेल छेलनि‍। मुदा खुलि‍ कऽ आगू भऽ बजैले कि‍यो डेग आगू नै बढ़बए चाहैत। जहि‍ना सूखल जारनि‍क बीच आगि‍ हवा पबि‍ते धधकि‍‍ उठैए तहि‍ना पोखरि‍क लहरि‍ जकाँ सतभैंया परि‍वारमे उठए लगलनि‍। कारणो छन्‍हि‍ जे कहि‍या केतए जे कँचका ईटापर खपड़ा घर बनौलनि‍ सएह अखनो धरि‍ चलि‍ आबि रहल छन्‍हि‍‍। नि‍च्चाँ जहि‍ना मुसहनि‍ माटि‍ भरल तहि‍ना अकासक तरेगन जकाँ फुटल खपड़ा लग इजोत होइत। शुद्ध कि‍सानक घर। चाहे खेतमे रहि‍ बर्खा हुअए आकि‍ सुतली राति‍क बर्खा हुअए कोनो अन्‍तर नै। जहि‍ना गोनरि‍क दुनू भाग एक्के रंग भेने उनटा-पुनटाक प्रश्ने नै, पहुलका चद्दरि‍क चारू भाग बरबैरे होइ छेलै आ जे बँचल अछि‍ ओ अखनो अछि‍ए! तहि‍ना धोतीओक मुदा आजुक जे सि‍ंह-मांगबला चद्दरि‍ वा अन्‍य जे वस्‍त्र अछि‍ ओ एकभग्‍गुए नै, संयुक्‍त परि‍वारक एकाकी रूप जकाँ बनि‍ गेल अछि‍! जहि‍ना जनमौटी बच्‍चा छोटसँ पैघ बढ़ैत सि‍रि‍फ मानवे नै महामानवो बनैए‍ मुदा वएह मनुख मृत्‍युक पश्चात अछि‍यामे जखनि जरबैले जाए लगैए‍ तँ पैघसँ छोट बनैत-बनैत लोथरा जकाँ बनि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना ने भऽ रहल अछि‍! ओना खूटे-खूट बँटनौं छुतकाबला केश कटबैकाल सभ बरबैरे भऽ जाइ छथि‍। बाधक जमीनमे कनी घटि‍ओ-बढ़ी भेलनि‍ मुदा घराड़ी आ पोखरि‍मे कोनो तरहक कमी-बेसी नहि‍येँ भेल छेलनि‍। अपन-अपन उपयोगक अनुकूल रहैत आएल छथि‍। मुदा सतभैंया परि‍वारकेँ गामक लोक एके परि‍वार बूझि‍ ने कि‍यो कि‍छु बजैत आ ने कि‍छु पुछैत। जइसँ पूर्बा-पछबाक कोनो लसरि‍ नहि‍येँ लगल छेलनि‍। जखनि लसरि‍ए नै तँ असरि‍ किए । तेतबे नै, ईहो बुझैत जे जहि‍ना गाछक डारि‍ फुटने -छि‍टकने- फूल-फड़ थोड़े बदलि‍ जाइ छै तहि‍ना अनेरे देह रगड़ने तँ अपनो रगड़ा लगबे करै छै। मुदा से नै भेल, भऽ ई गेल जे सात भैयारीमे तीन भाँइकेँ सुखने गाछक डारि‍ जकाँ चारि‍ए टा रहि‍ गेलनि‍। तहू चारि‍मे दूटा बँझियाइए गेलनि‍ तँए फल-फूलक असे नै रहलनि‍। मुदा दुइओ भाँइ रहने चारि‍ भैयारीक परि‍वार पसारै जोकर तँ भइए गेला‍। गड़बड़ एतबे भेलनि‍ जे एक भाँइकेँ एक आ एक भाँइकेँ तीन बेटा भेलनि‍। एक रहि‍तो मानवीय वि‍चार आर्थिक वि‍चारमे बदलिते रगड़ा-रगड़ी शुरू भेल। जखने तीन भाँइ एक दि‍स हएत आ दोसर दि‍स कि‍यो असगरे पड़त तँ नि‍श्चि‍ते छह हाथ पएरक जगह दूटा हाथ-पएर झँपेबे करत। मुदा चद्दरि‍ तँ ओइठाम ने झाँपि‍ चारूकात अड़ि‍यबैत जैठाम ओढ़ि‍नि‍हारसँ डेढ़ि‍या-दोबर होइत, से तँ परि‍वारमे भइए गेल छन्‍हि‍।
वि‍चारवान परि‍वार सभ दि‍नसँ रहलनि‍ जौं से नै रहलनि‍ तँ आन-आन गाममे एहेन-एहेन परि‍वार मटि‍यामेट भऽ गेल। मटि‍यामेटे नै केते जहल भोगलक तँ केते अस्‍पताल, केते फाँसीपर लटकल तँ केते कपार फोड़ा मरल। मगर वि‍चारेक चलैत ने परि‍वारकेँ ने कहि‍यो सम्‍प्रादायि‍क आ ने जाति‍क हवा कनीओ डोलौलकनि‍। समैक प्रभाव तँ सभ कि‍छुपर पड़ि‍ते अछि‍ से तँ परि‍वारोमे भेलनि‍। ओना जेकरा समए कहै छि‍ऐ -दि‍न-राति‍- ओइमे ओते बदलाव कहाँ आएल, कि‍एक तँ अखनो बारहो मास आ छबो ऋृतु होइते अछि‍। अपन-अपन गुण-धर्म तँ सभ बँचौने अछि‍। मुदा एकटा गड़बड़ तँ परि‍वारमे भइए गेलनि‍। ओ ई जे एक भाँइक बेटा श्‍याम, भैयारीमे असगरे छथि‍न। असगर भेनाइ तँ बड़ पैघ बात नहि‍येँ भेल मुदा पि‍ताक भैयारीमे छोट भाएक बेटा रहने कि‍छु गड़बड़क संभावना तँ जनैमि‍ए गेलनि‍।
बाबाक अमलदारीमे सातो भाँइक बीच बँटबारा भेलनि‍ मुदा ओ पुन: समटा गेलनि‍। कारण ई जे शुरूमे तँ बँटबारा भेलनि‍ मुदा तीन भाँइक परि‍वार घटने फेर समटा गेलनि‍। केना नै समटाइत, तीनूकेँ कियो पानि‍ओ देनि‍हार तँ नहि‍येँ रहलनि‍।
चारू भाँइक बीच एहेन सम्‍बन्‍ध बनल रहलनि‍ जे भीन-भीनौजीक परि‍स्‍थि‍ति‍ए पैदा नै लेलकनि‍। तेकर कारण भेल जे चारू भाँइक चारि‍ तरहक कारोबार रहलनि‍। एक काजमे चारि‍ गोटेकेँ रहने वैचारि‍क मतभेद होइक संभावना रहै छै। कि‍एक तँ एक्के काज केते ढंगसँ कएल जा सकैए‍। तहूमे जखनि समैक मोड़ अबै छै तखनि काजोमे मोड़ अबै छै। सभठाम भलहिं‍ं नै आबौ मुदा नहि‍येँ अबै छै सेहो नै कहल जा सकैए। चारू भाँइकेँ परोछ भेने परि‍वारमे भीन-भिनौजक संभावना बनलनि‍। संभावनाक कारण भेलनि‍ जे एक भाँइकेँ एकेटा बेटा जखनि कि‍ दोसरकेँ तीनिटा भेलनि‍। दू भाँइ तँ मेटाइए गेलखि‍न।
छोट भाएक बेटा रहि‍तो श्‍याम भैयारीमे सभसँ जेठ खाली भैयारीएमे जेठ नै पढ़ै-लि‍खै दि‍स वि‍शेष झुकान रहनि‍। एक तँ पढ़ैक लगन दोसर सुभ्‍यस्‍त परि‍वार रहबे करनि‍। मुदा तीनू भाँइ घनश्‍याम खेलौड़ि‍या बेसी। सदिकाल सि‍नेमे-पत्रि‍का आ खेले-पत्रि‍का उनटा-पुनटा देखैत। पढ़ैपर तँ ओते नजरि‍ नै, मुदा फोटोपर बेसी नजरि‍ पड़ैत। ओना अखनि धरि‍ श्‍यामक वि‍चारमे कोनो दूजा-भाव नै आएल छेलनि‍ जइसँ कोनो तरहक नीक-अधलाक प्रश्ने नै उठल छल। जे कि‍छु कारोबार छेलनि‍ सामूहि‍क छेलनि‍। तहूमे एकटा जबरदस गुण श्‍याममे छन्‍हि‍ जे घरसँ बाहर धरि‍क जे कोनो काज होइ छन्‍हि‍ ओ तीनू भाँइ -अपना लगा चारू- केँ जरूर जानकारीमे दइए दइ छथि‍न‍। मुदा भैयारीक संग दि‍यादनीओ तँ बरबरि‍ भइए जाइत अछि‍। एक बाप-माए वा सहोदर पीती-पि‍तियाइनि‍क बीच जे सि‍नेह रहैत ओ तँ चारि‍ गामक चारि‍ दियादनी एने तँ कि‍छु-ने-कि‍छु गड़बड़ भइए जाइत अछि‍। कारणो छै‍, मि‍थि‍लांचलोमे एक सीमा कातक गाम आ दोसर सीमा कातक गामक बीचक दूरी खान-पीन, रहन-सहन, बोली-वाणीमे कि‍छु-ने-कि‍छु दूरी बनले आबि‍ रहल अछि‍। तहूमे जइ इलाकामे बाढ़ि‍क उपद्रव कम छै आ जइ इलाकामे बेसी छै, दुनूक जीवन शैलीमे बदलाब अबै छै। जखने जीवन-शैली बदलत तखने जीवन पद्धति‍ बदलत। जखने जीवन पद्धति‍ बदलत तखने जीवन लीला बदलए लगै छै। तहि‍ना गाममे अखड़ाहा रहने कि‍छु-ने-कि‍छु लूरि‍ कुस्‍तीक भइए जाइ छै।
तहि‍ना मध्‍य मि‍थि‍लांचलक भाषामे पश्चि‍म भोजपुरी सीमा क्षेत्रक सुआसि‍न एने, भाषामे कि‍छु-ने-कि‍छु रूप बदलले रहै छै जइसँ, भाषा -बोली-वाणी- पर प्रभाव पड़ै छै। तहि‍ना पूवरि‍या इलाका वा दछि‍नवरि‍या इलाकाक प्रभाव से पड़ि‍ते आबि‍ रहल अछि‍। जहाँ धरि‍ कुटुमैतीक प्रश्न अछि‍ ओ तँ भागलपुरसँ मोति‍हारी आ जनकपुरसँ सि‍मरि‍या धरि‍ होइते आबि‍ रहल अछि‍।
एकाएक श्‍यामक मनमे भैयारीक प्रति‍ सि‍नेह कि‍छु कमए लगलनि‍। सि‍नेहमे कमी एने काजमे कमी आबए लगलनि‍। जेना शुरूसँ परि‍वारक काजक जानकारी सभकेँ दैत अबै छेलखि‍न तइमे कि‍छु कमी आबए लगलनि‍। तीनू भाँइ खेलौड़ि‍या स्‍वाभावक रहबे करथि‍‍, तैबीच काजक आदेश कम पाबि‍ आरो खेलौड़ि‍या भऽ गेला। अखनि धरि‍ घनश्‍यामक नजरि‍मे श्‍याममे कोनो कमी नै देखि‍ पड़नि‍। हि‍साबक जरूरते ने बुझथि‍। श्‍यामक मनमे िसनेह कमैक कारण भेल जे पत्नी सदति‍ काल कानमे घोरि‍-घोरि‍ पि‍अबनि‍ जे सम्‍पति‍‍ अपन आ सुख-मौज दि‍याद सभ करैए। पहि‍ने तँ श्‍याम पत्नीकेँ सेवक बुझैत आबि‍ रहल छला। ई नै बुझै छला जे दियाद‍नीसँ दि‍यादीओ ठाढ़ होइत अछि‍। मुदा वि‍चारो तँ कि‍छु छिऐ, अड़ि‍ कऽ पत्नी पूजे करैकाल खि‍सि‍आ-खि‍सि‍आ बाजए लगलखि‍न-
जइ पुरुखकेँ कोनो बात बुझैक ज्ञाने ने छै, ओ पुरुख नै पुरुखक झड़ छी।
पत्नीक बात श्‍यामकेँ छातीमे धक्का देलकनि‍। मन कहए लगलनि‍ जे झड़क अर्थ तँ ओ होइत जे कखनि अछि‍ आ कखनि अपने झड़ि‍ जाएत तेकर कोनो ठेकान नै। जे पाछू दि‍स ससरत ओ पौरुष केना पाबि‍ सकैए। मुदा अखनि मुँह खोलैक तँ समए नै अछि‍ सि‍रि‍फ सुनैक समए अछि‍। जहि‍ना बाल्‍टी भरि‍ पानि‍मे नेबो आ चीनी रखि‍ए देने तँ सरबत नै बनैए‍। नेबोकेँ काटि‍ कऽ गाड़ि‍ रस मि‍लौल जाइत अछि‍ तहि‍ना चिन्नीओक अछि‍। जहि‍ना एक शब्‍द वा एक पाँति‍ पढ़लासँ बूझि‍मे नै अबैत, या तँ दोहरा-दोहरा पढ़लासँ वा अगि‍ला-पछि‍ला पाँति‍क मि‍लानसँ बूझल जाइत अछि‍ तहि‍ना अगि‍ला बातक प्रतीक्षामे श्‍याम आँखि‍ उठा पत्नीपर देलनि‍। नजरि‍क पानि‍ देखि‍ पत्नी बूझि‍ गेलखि‍न जे अगि‍ला बात सुनैक प्रतीक्षा कऽ रहल छथि‍‍। जहि‍ना मधुमाछीक सभ छत्तामे एक्के रंग मधु नै रहैत, कोनोमे कम तँ कोनोमे बेसीओ रहैत आ संग-संग नव-पुरान -पहुलका-पछि‍ला- सेहो रहैए‍। तँए ठि‍कि‍या कऽ ओइ छत्ताकेँ पकड़ब बुधियारी छी जइमे डगडगी भरल नवका मधु रहैए‍। पुरना तँ दबाइ-दारू लेल नीक, खाइले तँ नवके नीक, तहि‍ना वकील जकाँ अपन पक्ष रखैत पत्नी बजली-
अखनि धरि‍ अहाँ एतबो ने बुझै छि‍ऐ जे चारू भाँइक बीच पनरहटा बाल-बच्‍चा आँगनमे अछि‍। पनरहोक खर्च तँ सागि‍रदेमे सँ चलैए। एके रंग लत्ता-कपड़ा, खेनाइ-पीनाइ अछि‍ मुदा ई बुझै छि‍ऐ जे ऐमे अपन केते हएत आ दि‍याद-वादक केतबे छै?”
श्‍यामक नजरि‍ धँसए लगलनि‍। पत्नीक वि‍चारमे कि‍छु तत्व बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा स्‍पष्‍ट नै भऽ सकल‍। प्रतीक्षाक नजरि‍ उठा आगू दिस तकला। अवसरक लाभ उठबैत पत्नी दोहरौकनि‍-
पनरहटा बाल-बच्‍चामे अपन तीनटा अछि‍। बाँकी बारह तँ भैयारीएक भेल। तइ संग अपने दू परानी छी आ ओ छह परानी अछि‍। कनी जोड़ि‍ कऽ देखि‍यौ जे अदहा हि‍स्‍सामे अपन केते हएत आ केते हुनका सबहक।
श्‍यामक मन सहमलनि‍। मन कहलकनि‍ जे पत्नी अक्षरत: सत्‍य कहलनि‍। सम्‍पति‍‍क अर्थ होइ छै सुख-भोग आकि‍ परसादी बाँटब।
पूजासँ उठि‍ भोजन कऽ श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
घनश्‍याम, दुनि‍याँक तँ बेवहारे भैयारीमे भीन होएब रहल अछि‍। अपनो सभकेँ कम नै नि‍महल। गाममे देखै छि‍ऐ जे केते छौड़ाकेँ मोँछक पम्‍हो ने आएल रहै छै आ बापसँ भि‍न भऽ जाइए अपना सभ तँ सहजे‍ धीगर-पूतगर भेलौं। भीन भऽ जाह।
जेना धनश्‍यामो प्रतीक्षेमे रहए तहि‍ना धाँइ दऽ बाजल-
भैया, सभ दि‍न अहाँक आदेश मानैत एलौं, आइ नै मानब से उचि‍त हएत। मुदा अहाँ जहि‍ना जेठ भाय छी तहि‍ना तँ रामो-बलराम अछि‍। भलहिं‍ं ओ छोट भाए छी, जे कहबै से करत। मुदा तैयो बि‍ना पुछने कि‍छु नै कहब।
बड़ बढ़ि‍या, अखनि जा कऽ पूछि‍ लहक। सुति‍ कऽ उठै छी तखनि फेर गप करब। घनश्‍याम उठि‍ कऽ वि‍दा भेल।
तीनू दि‍यादनीओ आ दुनू भाएओकेँ एकत्रि‍त कऽ घनश्‍याम पुछलक-
सबहक बीचमे कहै छी। भैया बजा कऽ कहलनि‍ जे भीन भऽ जाह। से की विचार?”
बलराम कहलकनि-
वि‍चार की भैया, ओ असगर छथि‍ तँ जीविए लेता आ हम तँ सहजे‍ तीन भाँइ छी। हुनका जे मनो खराप हेतनि‍ तँ ने कि‍यो डाक्‍टरो ऐठाम लऽ जाइबला हेतनि‍ आ ने बजारसँ दबाइ कीनि‍ कऽ अनैबला हेतनि‍।
घनश्‍याम कहलक बाँकी सभकेँ पुछलक-
अहाँ सबहक की वि‍चार?”
पहि‍ल दियादनी कहलकनि-
अपन परि‍वार बूझि‍ नौरी जकाँ दि‍न-राति‍ खटै छी तैपर जे पाँचो मि‍नट चाहमे देरी हेतनि‍ तँ साँढ़-पारा जकाँ गर्द करए लगता। भने नीक हएत। जानो हल्‍लुक हएत।
सुति‍ उठि‍ चाह पीब पान खा श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़लखि‍न। अबि‍ते घनश्‍याम लगमे बैस‍‍ कहलकनि-
जे वि‍चार अहाँक अछि‍ भैया, से हमरो अछि‍। अखने बाँटि‍ लिअ।
घनश्‍यामक बोली सुनि‍ श्‍याम सहमला। मनमे उठलनि‍, हम जे बुझै छि‍ऐ तइसँ भि‍न्न ने तँ बुझैए। मुदा बात तँ आगू बढ़ि‍ गेल आब जौं पाछू हटब सेहो नीक नै। बजला-
बँटबारामे कोनो बेवधान तँ छहे नै। सभ कि‍छु अदहा-अदही भेलह। तखनि बाप-पुरुखाक बनौल जेठौंस होइए से तँ तोहीं बजबह?”
श्‍यामक वि‍चार सुनि‍ घनश्‍याम कहलकनि‍-
अहाँ पि‍तासँ हमर पि‍ता जेठ छला। संयोग नीक रहलनि‍ जे भि‍नौजी नै भेलनि‍। जखनि पि‍ताक अधि‍कारक हि‍साबसँ आइ बँटै छी तँ हुनकर जेठौंस केते हेतनि‍ से तँ हमर हएत कि‍ने?”
श्‍याम कहलकनि-
देखह, तमसा कऽ नै बाजह। सभ दि‍न अपन सतभैंया परि‍वार वि‍चारक परि‍वार मानल जाइत रहल अछि‍, तैठाम कनी-मनी चीज लेल झगड़ब नीक नै।
घनश्‍याम मुड़ी डोलबैत बाजल-
बात तँ बड़ सुन्‍दर आ बड़ सोझगर कहलौं मुदा एक वंशक सभ रहि‍तो अहाँ अइल-फइलसँ रही आ हम सभ बँटाइत-बँटाइत एते बँटा जाइ जे घसाएल सि‍क्का जकाँ सभ कि‍छु रहि‍तो चलबे ने करी, से केहेन हएत?”
तैपर श्‍याम पुछलखिन-
तोहर की वि‍चार?”
घनश्‍याम कहलकनि-
तीनू भाँइक वि‍चार अछि‍ जे घरसँ घराड़ी, खड़िहाँनसँ खेत धरि‍ चारू भाँइ एकरंग कऽ लिअ। जौं से नै तँ...।
श्‍याम प्रश्न केलखिन-
तँ की?”
घनश्‍याम जवाब देलकनि-
ई तँ माटि‍क चर्च केलौं। पोखरि‍ सेहो तहि‍ना बाँटब। जौं से दइले तैयार नै हएब तँ जमीनक फैसला जमीनपर हएत।
श्‍याम पुछलखिन-
सएह।
घनश्‍याम कहलकनि-
हँ, सोलहन्नी सहए।

m m m

No comments:

Post a Comment