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Friday, October 18, 2013

(47) लफक साग

लफक साग

गाममे खेतीक चर्च उठि‍ते लाल काकीक लफक सागक चर्च उठि‍‍ए जाइत अछि‍। ओना चरचोक क्रम अछि‍, मुदा लाल काकीक अलग पहि‍चान रहने उपजासँ उठैत चर्चक संग बेक्‍ति‍त्‍वक चर्च उठि‍ते रामायण-महाभारतक प्रमुख पद्यक चर्च जकाँ हुनको होइते छन्‍हि‍‍। चरचोक भि‍न्न-भि‍न्न क्रममे एना होइत जे केतौ-केतौ खाली गहुमेक चर्च चलैत तँ केतौ अगबे धानक। केतौ खइहनक संग दलिहनोक चर्च चलैत तँ केतौ खइहन, दलि‍हन, तेलहनोक उठि‍ जाइत। केतौ अन्नक संग तीमनो-तरकारीक उठैत तँ केतौ तीमन-तरकारीक संग फलो-फलहरि‍क। केतौ एहनो होइत जे खेतीक संग माछो आ दूधोक चर्च उठि‍ जाइत। भनडाराक भजनमे जहि‍ना केतौ साखीसँ भजन शुरू होइत तँ केतौ भजनक बीच-बीचमे, तँ केतौ साखीएसँ वि‍सर्जनो होइत।
तहि‍ना लाल काकीकेँ सेहो छन्‍हि‍‍। लफ सागक संग लाल काकीक सि‍नेह खाली सि‍नेहे नै जि‍नगी सेहो ओहन छन्‍हि‍ जेहेन वैवाहि‍क बंधन होइत। जहि‍ना कनाह-खोरसँ लऽ कऽ दि‍बड़ा भीड़मे बसैबलाक संग एकसँ एक देवसुनरि‍ अपन जि‍नगी समरपित कऽ अपन कुल-खनदानक संग समाजक पाग मुरेठा सम्‍हारि‍ रखैत तहि‍ना लालो काकी छथि।
जइ दि‍न लाल काकी सासुर एली तही दि‍नसँ लफ साग सेहो संगे-संग एलनि‍। दुरागमन भेलापर जखनि लाल काकी सासुर वि‍दा हुअ लगली तँ सतरि‍या धान खोछि‍मे दइले जे रखल रहनि‍ तहीमे लफ सागक बीआ छि‍पा कऽ ओही धानमे ई सोचि‍ मि‍ला लेलनि‍ जे जौं कागतक पुड़ि‍यामे वा लत्तामे बान्‍हि‍ राखब तँ खोंछि‍ भरनि‍हारि‍ देखि‍ए जेती, जखने देखती तँ खोलबे करती। जखने खोलती आ सागक बीआ देखती तँ हो-ने-हो डाइन-जोगि‍नक फसाद ने कहीं उठि‍ जाए। नि‍छोहैमे कनी समैए ने लगत मुदा कि‍यो बूझत तँ नै। सएह केलनि‍। सागक बीआ नैहरसँ सासुर अनैक कारणो रहनि‍। जहि‍ना हजारोक भीड़मे प्रेमीक नजरि‍ प्रेमि‍कापर रहैत तहि‍ना लाल काकीक प्रेमी साग तँए संग नै छोड़ए चाहथि‍। ओना मनमे ईहो होइत रहनि‍ जे अनेरे किए सागेक बीआ लऽ जाएब, जइ गाम जाएब तोहू गामे तँ लफ साग होइते हेतै, मुदा मन नै मानलकनि‍। मनोक मानब तँ साधारण नहि‍येँ अछि‍। भलहिं साधारणो बात वा काज कहि‍ मना लेब, ई अलग अछि‍। लाल काकीक मन ऐ दुआरे नै मानलकनि‍ जे गाम-गाममे जहि‍ना धानक खेती होइतो एकरंगाहो धान होइत आ नहि‍योँ होइत। तहि‍ना ने सागोक अछि‍, केतौ मतौना, ढेकी साग होइत तँ केतौ पालक-ठढ़ि‍या। केतौ ललका ठढ़ि‍या तँ केतौ हरि‍अरका। केतौ उजड़ा भुल्‍ला होइत तँ केतौ सतरंगा सेहो होइत। तँए जहि‍ना गाम-गामक पानि‍, तहि‍ना वाणि‍, तहि‍ना खेती तहि‍ना वाड़ी तहि‍ना झाड़ी, तहि‍ना फुलवाड़ी, तहि‍ना ने आनो-आन होइत। तँए कोनो जरूरी नै अछि‍ जे लफ साग ओहू गाममे होइते हेतै। जौं नै होइत हेतै तँ लल्‍लो-वि‍हल्‍लो भऽ जाएब। लइए जाइमे की लगत बूझब जे धाने अछि‍। यएह सभ सोचि‍ लाल काकी जहि‍ना तीर्थस्‍थानक यात्री पनपीबा बर्तनक संग सि‍दहो-समर संगे लऽ चलैत तहि‍ना लफ सागक बीआ सेहो लऽ लेलनि‍।
लफ सागक गुण लाल काकीकेँ बूझल रहनि‍। कि‍एक तँ नैहरोमे बेसी काल खेबो करथि‍ आ उपजेबो करथि‍। खेतीओ हल्‍लुक। जखनि सागक गाछ जुआ जाइत तखनि ओइमे फड़ल बीआ सेहो रसे-रसे पाकि‍ जाइत। जहि‍ना बूढ़-बुढ़ानुसक वि‍चार बि‍नु पुछनौं फूटि‍-फूटि‍ झड़ए लगैत तहि‍ना सागोक बीआ गाछक आशा छोड़ि‍ खापड़ि‍क लाबा जकाँ चनकि‍-चनकि‍ बहरा जाइत। केतबो पानि‍-पाथर बरसौ आकि‍ ठनका खसौ पृथ्‍वीक कोरामे छह मसुआ बच्‍चा जकाँ माइक छातीमे सूति‍ रहैत तहि‍ना सागोक बीआ सूति‍ रहैत। मुदा अचेतन रहि‍तो चेतन भऽ ओइ दि‍न फुड़फुड़ा कऽ उठि‍ जाइत जइ दि‍न उठैक समए होइत। तँए कि‍यो बीआ जोगा समैपर खेतकेँ तामि‍-कोरि‍ बागु करैत तँ नहि‍योँ बागु केने ओइ खेतमे अपनो उगि‍ जाइत जइमे पछि‍ला साल भेल रहैत।
लफक सागमे लाल काकी जहनि‍क कारण छन्‍हि‍ जे ओ जनै छथि‍ जे जैठाम लोक नून-भात आकि‍ नून-रोटी खा जीवन बसर करैए‍ तैठाम जौं चारि‍टा लफ सागक पत्ताकेँ एकलोटा पानि‍मे कनी नून दऽ मेरचाइक फाेरनसँ फोरना देबै तँ तेहेन सि‍नेही भऽ भात-रोटीमे सटि‍ ओहन गति‍ पकड़ि‍ लैत जेना खाली सड़कमे बाहन धड़ैत। चारि‍ए पातक मेजनक संग अदहा कि‍लो मीटर ससारि‍ लिअ।
जि‍नगीक संग पुरनि‍हार साग अपन कथा-बेथा ललकारी छोड़ि‍ केकरा लग बाजत। जे ओकरा दि‍स घुमि‍ओ कऽ ने तकैए तेकरा कहि‍ए कऽ की हेतै। खेतक आड़ि‍पर पहुँचिते भुखाएल नेरू-पर्ड़ू जकाँ लालो काकीकेँ साग कहैत-
काकी, आइ नै हजारो बरखसँ गेनहारी बथुआ-नोनी इत्‍यादि‍ संगे-संग चलैत एलौं कि‍यो हवाइ जहाजपर भोज-भात करैए मुदा हमरापर किए ने केकरो नजरि‍ पड़लै। जौं नजरि‍ पड़ल रहि‍तै तँ अहिना धरती धेने रहि‍तौं?”
सागक दुखनामा सुनि‍ लाल काकी वि‍ह्वल भऽ कहलखि‍न-
बहिन, कि‍यो अपना भागे-करमे जीबैए-मरैए। तइले अनेरे किए दुख करै छह। जइ दि‍न उपटि‍ जेबह तइ दि‍न बुझि‍हक जे या तँ ई धरती नै रहए दि‍अए चाहैए वा ई धरती रहै जोकर नइए।
साग बाजल-
लाल काकी, लोक बड़ कुभेला करैए। नै तँ कहू जे सि‍मटीक आँगन-घर बना कऽ रहैए आ हमरो जौं अखाढ़मे कनी माटि‍ छि‍ड़ि‍या सि‍मटीक अँगनोमे आकि‍ छज्‍जीओपर लगा देत तँ की अासीन-काति‍क तक भाँज नै पुरबै। मुदा आने साग जकाँ जे फुटा दइए जे ई गरमीक छी तँ ई जाड़क। भदवारि‍मे साग खेबोक नै चाही से कहू जे ई होइ?”
सान्‍त्वना दैत लाल काकी कहलखि‍न-
अइले किए दुख करै छह, तोहर तँ मान-मर्जादा एते छह जे बि‍नु तोरे अपन माएओ-बापक उद्धार नै कऽ सकैए। करह दहक जेते कुभेला करतह से करह।
मि‍थि‍लांचलक भोज जहि‍ना अदौसँ आइ धरि‍क भोजनक इति‍हास अपना पेटमे समेटिने अछि‍ तहि‍ना गामो ने समेटिने अछि‍। एक दि‍स भात दालि‍क संग तरकारी, तइ संग संग पानि‍मे बनल अदौरी, तँ तेलमे बनल बर-बरीक संग, दही-चि‍न्नीक संग वि‍सर्जन होइत। जे भोज्‍यक इति‍हास प्रदर्शित करैत तहि‍ना बाधक बनल रखबारक खोपड़ीक संग बहुमंजि‍ला मकानक बीच आदि‍क मनुखसँ लऽ कऽ सभ्‍य -आधुनि‍क- मनुख तकक इति‍हासक झलकी सेहो दैत अछि‍।
जइ दि‍न लाल काकी सासुर एली तइ दि‍न ओ पनरहे-सोलहे बरखक रहथि‍। आने-आन जकाँ दुइए बरखक पछाति‍ पति‍केँ मुइने वि‍धवा भऽ गेली। मुदा दुइए बरखक अभि‍यन्‍तर लाल भौजी, लाल काकी, लाल दादीक माला समाज पहि‍रा देलकनि‍। एकोटा संतान नै भेल छेलनि‍। जइ दि‍न पति‍ मुइलनि‍ तइ दि‍न एहेन ओझरीमे लाल काकी ओझरा गेली जे भरि‍ पोख कानि‍ओ नै सकली। ओझरी लगलनि‍ जे जइ समाजमे वैधव्‍य बान्‍ह एते सक्कत अछि‍ जे ता-जि‍नगी वैधव्‍य धारण केने रहैत। तैपर अशुभक उपराग ऊपरसँ। मुदा, की समाज ई भार लइए जे ओकर जि‍नगी इज्‍जतक संग केना चलतै। जे समाज केकरो जीवन नै दऽ सकैए की ओइ समाजकेँ केकरो ओंगरी बतबैक अधि‍कार छै? वि‍धवाक संग जे-जे कि‍रदानी समाज करैत आएल अछि‍ आ कएओ रहल अछि‍ कि‍ ओ समाज सामाजि‍क बंधन बनबैक अधि‍कार रखैए? नारी जागरण लेल ओकर सुरक्षाक पक्का बेवस्‍था सेहो हेबाक चाही जौं से नै तँ ने ओ परि‍वारक संग अपन प्रति‍ष्‍ठा बँचा सकैए आ ने बाहर बँचा सकैए।
पति‍क परोछ भेलापर माएओ-बाप आ सरो-समाज लाल काकीकेँ केतबो हि‍लौलखि‍न-डोलौलखि‍न, मुदा लाल काकी अड़ि गेली जे समाजमे हमरा सन बहुतो छथि‍, जहि‍ना हुनका सबहक जि‍नगी कटतनि‍ तहि‍ना हमरो कटत। जेते भोग-पारसमे छल तेते भोगलौं आ माँ मि‍थि‍लाक फुलवाड़ी छाेड़ि‍ केतौ ने जाएब। जखनि अपने हँसुआ, खुरपी कोदारि‍ चलबैक लूरि‍ अछि‍, तखनि केतौ रहि‍ जीवन-यापन कऽ सकै छी। अपन मान-मर्यादा अपने नै बि‍गाड़ब।
अस्‍सी बरख पार केलापर लाल काकीक नजरि‍ ओइ दि‍स गेलनि‍ जे नजरि‍सँ देखने रहथि‍। नजरि-‍सँ-नजरि मि‍लाएब, टकराएब दुनू होइत तहि‍ना लाल काकीक मनमे सेहो उठलनि‍। एहेन नि‍चेनसँ जि‍नगीमे कहि‍यो बैसबो ने कएल रहथि‍ जे बुझबो करि‍तथि‍ आ सोचबो करि‍तथि‍। जइ ि‍जनगीमे बुधि-वि‍चार जौं जि‍नगीक संग नै चलत ओ जि‍नगीए केहेन? गुनधुनमे पड़ल एकटा मन कहलकनि‍-
हमरा सन-सन लोक लेल जे बेवहार चलि‍ रहल अछि‍ ओकर नि‍मरजना के करत?”
दोसर मन उत्तर देलकनि‍-
जे नि‍मरजना करैबला छथि‍ ओ अपने चालि‍ए ओंघराएल छथि‍ तखनि अनका की देखथि‍न। पछि‍म मुहेँक गाड़ी पकड़ि‍ पूब मुहेँ जाए चाहै छथि‍, से केना हेतनि।
मनक घाेंघौज देखि‍ लाल काकी काल्हि‍ए जे ओराहैले बदाम अनने रहथि‍, ओराहैले वि‍दा भेली।

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