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Friday, October 18, 2013

(46) फागु

फागु

कौआ डकैसँ पहि‍ने केतौ-केतौ गाछपर ‍‍पौरुकीक बोल फूटल कि‍ रघुनी बाबाक नीन टुटलनि‍। जहि‍ना अर्द्ध-चेत अवस्‍थामे कि‍छु बजा जाइत तहि‍ना मुहसँ नि‍कललनि‍-
आइ फगुआ छी। राति‍ भरि‍क हँसैत चान सुरूजक लालीमा धरि‍ अरियाति आबि‍ चुकल अछि‍। केते सुन्नर राति‍-दि‍नक संग मि‍लि‍ रहल अछि‍। जे जीबए से खेलए फागु
बजैत-बजैत चेतना चेत गेलनि‍। चेतिते मन दोहरौलकनि‍-
जे जीबए से खेलए फागु।
मुदा जीवि‍त-मृत्‍युक बीच एहेन लट्टा-पट्टी अछि‍ जे के मरल के जीबैए, बि‍लगाएब कठि‍न अछि‍। कि‍यो जीवि‍त-मृत्‍यु बुझबे ने करैत तँ कि‍यो बुझि‍तो मानबे नै करैत। कि‍यो जौं बुझबो करैत तँ काते हटौने रहैत। शि‍वजीक सीमा खि‍ंचब कठि‍न अछि‍। पौह फटि‍ते जहि‍ना सुरूजक आगमन हुअ लगैत तहि‍ना रघुनी बाबाक अलि‍साएल मन जि‍नगी दि‍स नजरि‍ उठौलकनि‍।  
जहि‍ना कोनो ि‍वद्यार्थीक पहि‍ल कलम कोनो प्रश्नमे अँटकि‍ जाइत तहि‍ना रघुनी बाबाक मन अँटकि गेलनि‍। ओछाइनपर पड़ले-पड़ल कर करोट फेरलनि। मनमे उठलनि‍, अनाड़ीओ-धुनाड़ीओ कोदारि‍सँ परती खेत तामि‍ लइए। कहाँ ओकरा हर जकाँ लूरि‍ सि‍खए पड़ै छै। मुदा बि‍ना लूरि‍ए तँ कोदारि‍ओ नै पारल जा सकैए। अँटकल मनमे उठलनि‍, कि‍छु लूरि‍ देखि‍यो कऽ भऽ जाइत, कि‍छु हाथ पकड़ि‍ सि‍खाैल जाइत आ कि‍छु रगड़ि‍-रगड़ि‍ कऽ सि‍खए पड़ै छै। ठमकला। पुन: मनमे उठलनि‍, जहि‍ना पानि‍ माटि‍क ऊपर छि‍छैल‍ धारा बनि‍ आगू बढ़ैत, तहि‍ना तँ सुरूजोक कि‍रि‍ण छि‍छलैत पूबसँ पछि‍म चलैए‍। अँटकै कहाँ अछि‍। हँ अँटकैए। खाधि‍मे पानि‍ अँटकैए, तामल खेतक गोलामे सुरूजक कि‍रि‍ण अँटकैए। मनमे संचार भेलनि‍। दि‍नक सगुन उचाड़ए लगला। फगुआक दि‍न छी। फागुनक वि‍दाइ सेहो छी। आइए राति‍मे चैतक आगमन सेहो हएत। मन मधुएलनि‍। पावनि‍क दि‍न छी। वसन्‍ती पावनि‍। पुआ-मलपुआ खाएब, रंग-अबीर खेलब, होलीक संग वि‍रहा वसन्‍त, ढोल-डम्‍फाक संग गेबो करब आ नचबो करब। मन पसीज गेलनि‍।
एक दि‍नक भोजे की आ एक दि‍नक राजे की।
ठमकल मन पाछू बढ़लनि‍। वसन्‍तक मध्‍य, होली पावनि‍। माघक इजोरि‍या पंचमी होलीसँ एक मास बीस दि‍न पूर्व वसन्‍तक जनम भेल। मुदा चैत-बैशाखकेँ वसन्‍त मानने तँ पूर्व पक्षे हरा जाइत अछि‍। जौं मध्‍य मानब तैयो पचास-साठि‍क दूरी बनि‍ जाइत अछि‍। ओझराएल मन मुड़छि‍ कऽ तुड़ुछि‍ गेलनि‍। भने दस बरखसँ होली मनाएबे छोड़ि‍ देने छी। लऽ दऽ कऽ भाेजने टा शेष बँचैए। सेहो दि‍नेक फल छी। मुदा फलो तँ अनेक तरहक होइए- मि‍ठो होइए, खट्टो होइए आ षट-मधुर सेहो होइए। तीनू संगो रहैए आ अलगो-अलगो रहैए। जामंतो प्रकारक भोजनमे तीनूक अपन-अपन महत छै। भोजमे जएह अचार अपन वि‍शेष मतह बनौने अछि‍, वएह असगरमे दाँतकेँ कोंतिया कात कऽ दइ छै‍। जे काज करैसँ हनछि‍न करए लगैए। मनकेँ घुमि‍ते उपकलनि‍, वसन्‍तक आगमनक दि‍न। आइए सरस्‍वती पूजा सेहो छी आ हरबाह गृहस्‍तक हर परतीपर ठाढ़ करत। ठाढ़े नै करत अढ़ाइ मोड़ घुमबो करत। अढ़ाइए मोड़क बोइनो तहि‍ना। सभ परानी खेबो करत आ जेते धानसँ हरक नाश डुमतै तेते लैयो जाएत। पसारी भाथीक आगि‍मे धान-मरूआ लाबा फोड़ि‍ सालक समए गुनत। मुदा सेहो होइ कहाँ छै? हेबो केना करतै, गाए-महिंसिक मास एक्कैस-बाइस दि‍नक होइ छै आ मनुखक भऽ जाइ छै तीस दि‍नक। जहन कि‍ दुनू संगे रहैए। संगे लक्ष्‍मी बनैए, संगे ऐरावत। रघुनी बाबाक मनमे उठलनि‍- अनेरे कोन फेड़मे पड़ै छी। पावनि‍क दि‍न छी हँसी-खुशीसँ उठब खाएब-पीब मौज-मस्‍ती करब। जे गति‍ सबहक से गति‍ हमरो। तइले अनेरे एते मगज-मारी करैक कोन जरूरति‍। राम-श्‍याम करैत रघुनी बाबा ओछाइनसँ उठैक वि‍चार केलनि‍। तखने गाम दि‍ससँ पीह-पाहक अवाज कानमे पड़लनि‍। भोरहरबा नढ़ि‍याक अवाज जकाँ अकानए लगला जे की कहै छै।
रघुनी बाबाक मनमे उठलनि‍, ओह, अनेरे पावनि‍ छोड़लौं। जाबे जि‍बै छी ताबेए ने। मरि‍ जाएब तँ के देखत आ केकरो देखब। मनमे फेर उपकलनि‍, किए नै पावनि‍ छोड़ी? जइ होली पावनि‍क नाओंपर इज्‍जत-आबरूक, धन-सम्‍पति‍क लूट हुअए ओ पावनि‍ किए करब। मुदा भुताहि‍ गाछ बूझि‍ कि‍यो आमक गाछ तर जाएब छोड़ि‍ देत तँ आम केना खाएत? जामुनपर सहजे‍ जम बैसलै अछि‍। बेल फड़ने‍ कौआकेँ की? खैर जानह जओ जानह जात। गामक बात गौआँ जानह। मुदा परि‍वार तँ अपन छी। परि‍वारक नीक-बेजाएक तँ जवाब दि‍अए पड़त। मुहोँ चोरा कऽ रहब नीक नै। केते दि‍न जीबे करब। आइसँ फेर फगुआ खेलब। मुदा खेलब केतए? परि‍वारक संग खेलब...।
रघुनी बाबाक मन नीक जकाँ असथि‍रो नै भेल छेलनि‍ आकि‍ दादी आबि‍ टोकलकनि‍-
सौंसे गामक लोक हर-बि‍र्ड़ो करैए आ अहाँले भोरो ने भेल। आबो उठब की‍ सुतले रहब?”
जहि‍ना नोनगर बि‍स्‍कुट खेलापर चाह पि‍ऐक मन होइत तहि‍ना रघुनी बाबाब मन भेलनि‍। घोकचल भौंहुक बीचक करि‍या तीर तनैत बजला-
जखनि अहाँ आबि‍ए गेलौं तखनि किए ने गाछक जड़ि‍एमे पानि‍ ढारी जे डारि‍-पात सगतरि‍ पहुँचतै। अहीं संग फगुआ खेलब।
बाबाक बात दादीक हृदैकेँ बेधि‍ देलकनि‍। छटपटाइत उत्तर देलखि‍न-
अखनि जे तीस-पैंतीस गोरेक फुलवाड़ी लगल अछि‍ ओ केकर छि‍ऐ? जहि‍ना कृष्‍ण वृन्‍दावनमे फागु खेलाइ छला तइसँ कि‍ कम हमर अछि‍।
मुस्‍की दैत रघुनी बाबा कहलखि‍न-
अखनो धरि‍ मनमे बेइमानी अछि‍ए जे अपन कहलि‍ऐ आ हमर छोड़ि‍ देलि‍ऐ?”
अड़हुलक कली सदृश तीर साधि‍ दादी दगलनि‍-
अहाँकेँ आन बुझै छी जे फुटा कऽ कहि‍तौं।
अच्‍छा छोड़ू ऐ सभकेँ। परि‍वारमे सभकेँ कहि‍ दि‍यौ जे दुपहर तक सभ कि‍यो नहा-खा तैयार भऽ जाए। बेरू पहर दुनू गोरे केना जुआनी बि‍तेलौं से सौंसे परि‍वारकेँ सुना देबै।
बाबाक बात सुनि‍ते दादीक आँखि‍ मधुआ गेलनि‍। बजली-
आबक लोककेँ नि‍महतै। मन अछि‍ की नै जे दुरागमनक तेसरे दि‍न पटुआ काटए पू-भर गेल रही।। ऐठाम रौदी भऽ गेल रहै आ डेढ़ बरख पछाति‍ आएल रही।
दादीक बात सुनि‍ते रघुनी बाबा उठि‍ कऽ बैसैत बजला-
अझुका लोकक मने बदलि‍ गेल अछि‍। जेकर देखा-देखीसँ बालो-बच्‍चा प्रभावि‍त भऽ रहल अछि‍।
बजैत-बजैत जहि‍ना दादी-दुनि‍याँ बि‍सरि‍ गेली तहि‍ना सुनैत-सुनैत कथा-वक्‍ता-श्रोता जकाँ रघुनी बाबा जि‍नगीक बोनमे बोना गेला। एक मन औनाए लगलनि‍ तँ दोसर मन गाबए लगलनि‍-
सदा आनन्‍द रहे अही दुआरे मोहन खेले होरी हो।
दादी दरबज्‍जासँ आँगन दि‍स‍ गुनगुनाइत बढ़ली-
कि‍यो लुटाबए अपन महि‍मा।
जुआनीक रंगमे रंगि‍ रघुनी बाबा गाम दि‍स‍ वि‍दा भेला। दरबज्‍जाक बाट टपि‍ गामक बाटपर पहुँचिते मनमे उठलनि‍- देखा चाही, केते नवतुरि‍या सभ देहपर रंग फेकैए आ केते जुआन-जहान अकाससँ अबीर उड़बैए। मुदा लगले मनमे उठि‍ गेलनि‍, लोको लाज तँ छी। धि‍या-पुता केना रंग देत? किए ने देत, खेलाएत तँ अपनामे, मुदा छि‍च्‍चा उड़ि‍ जे पड़त आेकरा की कहबै।
एका-एकी दादी परि‍वारक सभकेँ अपने मुहेँ कहलनि‍। बाबाक समाद दादी भरि‍ मन बँटलनि‍। नीक-बेजाए दुनूक समीक्षा हुअ लगल। अन्‍त-अन्‍त यएह सभ बुझलक जे कहि‍यो ने से पावनि‍ दि‍न। बूढ़-पुरानक हुकुम छि‍यनि‍, तँए यादि‍ स्‍वरूप सुनि‍ लेब नीके हएत। के कहलक अगि‍ला होली देखता आकि‍ नै। जौं देखबो करता तँ के कहलक जे पाँखि‍ तोड़ि‍ कऽ देखता आकि‍ ओछाइन धेने देखता तेकर कोन ठेकान। मुदा ईहो बात मने-मन उठैत जे वएह देखता हमहीं नै देखि‍ऐ। कम-सँ-कम तँ ई हएत कि‍ने जे सौंसे परि‍वार एकठाम बैस‍‍ पवनि‍क दि‍न बि‍ताएब। दादीकेँ पोती कहि‍यो देलकनि‍ जे आइ भानसो तोरे करए पड़तौं।
समैसँ कि‍छु पहिने परि‍वारक सभ कि‍यो दरबज्‍जापर पहुँचल। बाबा-दादीक बात तँए महादेव-पार्वतीक फागु सबहक मनमे घुमैत सबहक मुँह बन्न। सभ बाबा-दादीक बात सुनैले कान पाथि‍ नजरि‍ अँटकौने। रघुनी बाबाक मनमे उठलनि‍ जे ति‍ल-तण्‍डुल जौं फेंटा जाए तँ बि‍लगाएल जा सकैए मुदा जौं पानि‍-माटि‍ फेंटा जाएत तखनि केना बिलगौल जाएत। तीन खाड़ी बीच परि‍वार अछि‍। सबहक अपन-अपन स्‍तर अछि,‍ अपन-अपन जि‍नगी अछि‍। जि‍नगीएमे खुशीओ अबैत जाइत रहैए‍। मुदा जहि‍ना लोक अपन नीक लेल सभ कि‍छु करैए तहि‍ना ने परि‍वारो लेल करैए। भलहिं परि‍वार पैघसँ छोटे किए ने भऽ गेल हुअए। फगुआ दि‍नक उमकीमे मन उमकि‍ गेलनि‍। जहि‍ना बर्खा पानि‍मे धि‍या-पुता उमकैए तहि‍ना बबो-दादीक मन उमकए लगलनि‍। दादीकेँ बाबा टीप देलखि‍न-
जइ साल दुरागमन भेल रहए आ परदेश गेल रही, से मन अछि‍ आकि बि‍सरि‍ गेलौं?”
बाबाक प्रश्नक उत्तर दादी केना नै देथि‍न। बाबाक ने रोच (धाख) मुदा परि‍वारक तँ गारजने। नि‍चलासँ ऊपर छीहे। सि‍नेमाक कलाकार जकाँ दादी पोजमे बजली-
लोक सुख बि‍सरि‍ जाइ छै, दुख मोने रहै छै। किए ने मन रहत।
दादीक पोज देखि‍ छोटकी पर-पुतोहु अपन हालक दुरागमन बूझि‍ बाबाक प्रश्नपर जोर देलक। पुतोहुक टॉट बोली सुनि‍ दादीक मनमे उठलनि‍ जे मुँहजोर पुतोहु अछि‍ एकटा उत्तर देबै तँ दोसर दोहरा देत। मुँह नोचि‍ कऽ खा जाएत। तइसँ नीक जे अपने मुहेँ कहए दियनि‍।
दादीकेँ हारि‍ मानैत बूझि‍ रघुनी बाबा लपकि‍ प्रश्न पकड़ि‍ बाजए लगला-
कनि‍याँ, नव-कबरिए रही। मोँछ-दाढ़ीक पम्‍ह अबि‍ते रहए। तीन सालसँ परदेश खटैत रही। जेठ मास दुरागमन भेले रहए। दुरागमनक तेसरे दि‍न मेड़ि‍या सभ पू-भर जेबाक समए बनौलक। अपनो घरमे चूड़ा-भुसबा रहबे करए बटखरचा लऽ लेलौं। भाड़ा-भुड़ी लेल गोर लगाइबला रूपैआ रहबे करए। तेसरा दि‍न चलि‍ गेलौं।
जि‍ज्ञासा करैत पुतोहु पुछलकनि‍-
पएरे गेलखि‍न आकि गाड़ी-सवारीसँ।
जेना गुड़ घावसँ पीज नि‍कलै काल सुआस पड़ै छै तहि‍ना बाबाक मनमे सेहो भेलनि‍। वि‍ह्वल होइत बजला-
कनि‍याँ, नि‍रमली तक रेलगाड़ीसँ गेलौं। तेकर बाद पूब दि‍सक रस्‍ता धेने कोसी घाटपर पहुँचलौं।
धार केना टपलखि‍न?”
कनि‍याँ, जेठुआ समए रहै। धारक पेट खाली भऽ गेल रहै मुदा तैयो अगम पानि‍ तँ रहबे करै। ओना फुलाइक समए भऽ गेल रहै मुदा फुलाएल नै रहए। बेसी नाव भदबरि‍यामे डुमै। एक बेर अहि‍ना भेल जे अपने गौआँक मेड़ि‍या घुमैकाल डूमि‍ गेलै।
उत्सुक होइत पुतोहु पुछलकनि‍-
केते गोरे रहथि‍?”
तेरह-चौदह गोरे अपना गामक रहथि‍ आर गोटे आन-आन गामक। चालि‍स-पैतालिस गोरे नावपर चढ़ल रहथि‍।
केते दि‍न पू-भर कमाइ लेल गेलखि‍न?”
मन पाड़ैत रघुनी बाबा कहलखिन-
तेकर ठेकान अछि‍। मुदा तैयो बीस-पच्‍चीस बरख तँ गेलै हएब।
कएक दि‍ने पहुँचै छेलखि‍न?”
ऐबेर तीनि‍येँ दि‍नमे रंगैली पहुँच‍‍ गेलौं। बजारसँ थोड़बे हटि‍ कऽ पकड़ा गेल। चि‍न्‍हरबे गि‍रहत रहए।
जौं ओइठीम काज नै पकड़ैतनि‍ तखनि की‍ करि‍तथि‍न?”
पुतोहुक प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक जुआनी मनमे उठलनि‍। जोशमे बजला-
की करि‍ति‍ऐ! कोनो कि‍ ओतबे देखल-सुनल रहए। मोरंगमे नै काज भेटि‍तए तँ आगू बढ़ि‍ जैति‍ऐ। सि‍लीगुड़ी असाम, ढाका तक ठेका दैति‍ऐ। मुदा काज केने बि‍ना नै अबि‍ति‍ऐ।
कोन काज करै छेलखि‍न?”
काजक नाओं सुनि‍ बाबाक मन बौरा गेलनि‍। कहलखिन-
कनि‍याँ, काजक कोनो ठेकान अछि‍। गि‍रहस्‍तौआ सभ काजक लूरि‍ अछि‍। ओना धन रोपनी-कटनी आ पटुआ कटैले जाइ छेलौं।
केते दि‍न रहै छेलखि‍न?”
सालमे दू-बेर जाइ छेलौं। घुमा-फि‍रा कऽ छह मास लगि‍ जाइ छेलए। धन कटनीमे तँ एक-लगना काज रहै छेलै। मुदा पटुआ समैमे काज छि‍ड़ि‍या जाइ छेलए।
मुँहपर एकटा आँगुर लैत पुतोहु पुछलकनि‍-
एक-लगना काज केकरा कहै छथि‍न?”
पुतोहुक प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक गुरुमन जागि‍ उठलनि‍। नजरि‍पर नजरि‍ दैत कहए लगलखि‍न-
एक-लगना काज ओ भेल जे क्रमबद्घ चलैए। एकक बाद एक काज अबैए। जेना भानस करै काल चूल्हि‍ पजारि‍ बरतन चढ़बै छी। अदहन दइ छि‍ऐ। पानि‍ गरम होइए तखनि सि‍दहा लगबै छी। यएह क्रम एक-गलना भेल। मुदा जखनि रोटीओ पकाएब रहत, तरकारीओ बनाएब रहत आ भातो रान्‍हब रहत तखनि ओ काज छि‍ड़ि‍या जाएत। छि‍ड़ियाएल काजमे अधि‍क भनसीओ आ चुल्हि‍ओक जरूरति‍ पड़ि‍ जाइ छै। नै जौं भनसि‍आ असगरुआ रहल तँ छि‍गड़ी-तानमे पड़ि‍ गेल।
एक-लगना काज केना करै छेलखि‍न?”
पटुऐक कहै छी। पहि‍ने ओकरा कटलौं। काटि‍ कऽ जमा कऽ देलि‍ऐ। ती-चारि‍ दि‍नमे पत्ता झड़ि‍ जाइ छेलै। तखनि ओकरा अँटियाहा बोझ बनबै छेलौं। पानि‍ ठेकि‍ना उघि‍ कऽ लऽ जाइ छेलौं। पानि‍मे बाँसक खुट्टी पाटि‍‍ कऽ, तीन-चारि‍ छल्ली लगा दइ छेलौं एक-दोसराकेँ दबबो केलक आ ऊपरसँ माटि‍क चेका चढ़ा दइ छेलौं। पानि‍क तरमे सभ डुमि‍ जाइ छेलै। गोरलाक बीस-पच्‍चीस दि‍नमे सीझ जाइ छेलै। तखनि ओकरा मुंगरीसँ झाड़ि‍-झाड़ि‍ साफ करै छेलौं।
पटुआमे भरि‍गर काज की होइ छै?”
प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक आँखि ढबढबा गेलनि‍। आँखि‍ ढबढबाइते पानि‍ पड़ल खजुरी जकाँ मधुर भऽ गेलनि‍। कहलखिन-
कनि‍याँ, अखनि अहाँ बाल-बोध छी। दुनि‍याँक तीत-मीठ नै बुझलि‍ऐए मुदा कहै छी। काजे जि‍नगी छी। तँए काजसँ सटबाक कोशि‍क हरिदम करी। हरिदम करैक मतलब ई नै जे भरि‍ दि‍न देहे धुनी। जहि‍ना राजमि‍स्‍त्री मकानक नक्‍शा बना मकान बनबैए तहि‍ना काजोक छै। छोटे-काज नम्‍हर लग लऽ जाइ छै आ आगू मुहेँ टुस्‍कीएबो करै छै।
प्रश्न छूटि‍ गेलनि‍ बाबा?”
कनि‍याँ, की कहब? तरकारी तँ ओलो छी जे गाछमे एकेटा होइए, जा कऽ खट दे उखाड़ि‍ लेब। उखाड़ैमे जेते समए लगल ओइसँ कम समैमे सजमनि‍ तोड़ल जा सकैए। मुदा सैकड़ो फड़ैबला सजमनि‍ बि‍ना देखने-सुनने टेबि‍ केना सकै छी। टेबब असान काज तँ नै। मनमे दूटाक तुलना करब छी। तहूमे कि‍छु एहेन होइत जे कमे उमेरमे फुफुआ कऽ नम्‍हर भऽ जाइत आ कि‍छु लुलुआ कऽ बौना भऽ जाइत। जौं छोट जानि‍, छोड़ैत जाएब तँ ओ तरेतर जुआ जाएत, मेहनति‍ डूि‍म जाएत। तँए हल्‍लुको काज भारी होइए।
बाबा, फेर भँसिया गेलखि‍न?”
नै कनि‍याँ, भँसियाइ कहाँ छी। होइए जे हृदए फाड़ि‍ अहाँ सबहक बीच छि‍ड़ि‍या दी आ अहाँ सभ ति‍ति‍र जकाँ सभ पीब‍ ली। मर्द बनि‍ जखनि काज करए नि‍कललौं, तखनि भरि‍गर की आ हल्‍लुक की। मुदा एकटा बात धि‍यानमे जरूर रखक चाही जे कोन काजमे केते जोखि‍म उठबए पड़त। जइ काजमे जेते जोखि‍म होइ ओइमे ओते सतर्क रही। तर्के रस्‍ता बनबैए। पटुआ काजमे सभसँ भरि‍गर अछि‍ पटुआ झाड़ि‍ सोन बनौनाइ। जहि‍ना एक-दोसर जि‍नगी पबैत तहि‍ना डाँड़ भरि‍ सड़ल पानि‍मे जइमे जोंक-ठेंगीक संग वि‍षैला साँप सेहो रहैत। चानि‍पर टहटहौआ रौद, नि‍च्चाँ डाँड़ भरि‍ पानि‍। सर्द-गर्मक बीच शरीर। तैपर एक-लगना ठाढ़ भऽ कखनो एकटंगा ठेहुन बना पटुआ जड़ि‍ जोड़ल जाइत, तँ कखनो वामा हाथमे उठा दहि‍ना हाथे मुंगरीसँ झाड़ल जाइत। माछी-मच्‍छड़क तँ ठेकाने कोन।
सि‍नेहासि‍क्‍त होइत पुतोहु पुछलकनि‍-
केते दि‍नक पछाति‍ घुमलखिन?”
डेढ़ बरखपर घुमलौं। आेइ साल रौदी भऽ गेल रहै। रूपैआ पठा दि‍ऐ आ अपने कमाय।
अनदि‍ना, बि‍ना सि‍जनक समैमे कोन काज करै छेलखि‍न?”
कनि‍याँ, वएह समान सभ जेना- पटुआ, तोरी, धान इत्‍यादि‍ देहातमे उपजै आ तैयार भऽ कऽ बजार अबै छेलै। बजारोमे काज बढ़ि‍ जाइ छेलै। उठा काज करै छेलौं।
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