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Friday, October 18, 2013

(44) भबडाह

भबडाह

चहकैत चि‍ड़ैक चलमली कानमे पड़ि‍ते नि‍त्‍यानन कक्काक नीन छि‍टकलनि‍। कोनो काज करैसँ पहि‍ने तर्क-वि‍तर्क ओहने महत रखैत जेहने नि‍रजन आँखि‍ए दि‍नमे चलब होइत। ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल नजरि‍ आजुक समैपर गेलनि‍। काल्हि‍ शनि‍, राखी पावनि‍ छी। परसू रवि‍, वि‍देसर स्‍थानमे ठसम-ठस मेला हएत। हएबो उचि‍त, एक तँ बैद्यनाथ बाबा साैनक पूर्णिमा वि‍देसरेमे बि‍तबै छथि‍, दोसर कमलो उमड़ल अछि‍, एक संग दुनू काज। भैयारी रहि‍तो जहि‍ना भवि‍सद्रष्‍टा युगद्रष्‍टासँ ऊपरक सीढ़ी होइत, तहि‍ना ने औझुकेपर काल्हि‍ ठाढ़ होएत। काल्हुक सुरूज केहेन उगत ई तँ प्रश्न अछि‍ए। चारि‍म दि‍न पनरह अगस्‍त। भारतक स्‍वतंत्रताक चौसठि‍म वर्षगाँठ। साठि‍ बरखक उपरान्‍त अनाड़ीओ-धुनाड़ी लोक वरिष्‍ठ नागरि‍कक उपहार पबैत तेहेनठाम स्‍वतंत्रता की आ देश केतए! मुदा लगले मन घूमि‍‍ गाम दि‍स बढ़लनि‍। हि‍न्‍दु-मुसलमानक गाम। पनरहि‍यासँ हि‍न्‍दु राधा-कृष्‍णक झुलासँ लऽ कऽ भोला बाबाक जलढरीमे बेस्‍त तँ तहि‍ना मुसलमानो दस दि‍न ऊपरेसँ रोजा-नवाजमे। एको पाइ लोक नै बँचल। सभ धर्मक काजमे हृदैसँ जुटल। जखनि सोलहन्नी लोक पवि‍त्र मने धर्मक काजमे जुटले छथि‍ तखनि नि‍श्चि‍त गामक काल्‍याण हेबे करत! प्रेमि‍काक आगू जहि‍ना प्रेमी दुनि‍याँकेँ नि‍च्‍चाँ देखि‍ ऊपर भ्रमण करैत तहि‍ना नि‍त्‍यानन कक्काक मन कल्‍याणक संग टहलए लगलनि‍। उत्‍साह जगलनि‍! फुड़-फुड़ा कऽ ओछाइनसँ उठि‍ कलपर जा माटि‍एसँ चारि‍ घूसा दाँतमे लगा, आँगुरेक जीभि‍या कऽ हाँइ-हाँइ चारि‍ कुर्ड़ा मारि‍ चारि‍ घोंट पानि‍ओ पीब लेलनि‍। आँखि‍ उठा वाड़ी दि‍स देखलनि‍ तँ पत्नीकेँ मचानपर चठैल तोड़ैत देखलनि‍। आँखि‍ उतारि‍‍ गाम दि‍स वि‍दा भेला।
दरबज्‍जापर सँ आगू बढ़ि‍ते हि‍आैलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे घर-दुआर छोड़ि‍ लोक चौके दि‍स आबि‍ गेल हेता तँए नीक हएत जे चौके दि‍स जाइ। सोचि‍ नि‍त्‍याननकाका आगू बढ़ैक वि‍चार केलनि‍। डेग उठि‍ते मन सि‍हरलनि‍। भाए-बहि‍नक ओहन पर्व काल्हि‍ छी जइमे दुनूक प्रगाढ़ प्रेमक, सि‍नेह-सि‍क्‍त जलक उदय हएत। आशाक संग जि‍नगीक बि‍‍सवासो जगलनि‍। डेग बढ़ौलनि‍।  
पनरह-बीसटा डमहाएल चठैल खोंइछामे लेने सुचि‍ताकाकी मुस्‍की दैत, गद्-गद् होइत जे महि‍ना दि‍न तँ चलबे करत, तेकर पछाति‍ ने दौंजी हएत। सालमे जौं एक्को पनरहि‍या चठैलक तरकारी खा लेब तँ की चीि‍नया बिमारी हएत। लफड़ल आबि‍ पछबरि‍या ओसारपर सूपमे चठैल उझलि‍ पुतोहुकेँ पुछलखि‍न-
कनि‍याँ, दोकानक काज अछि‍?”
डि‍ब्‍बा-डुब्‍बी हड़बड़बैत पुतोहु कहलकनि-
हँ।
की सभ लेब?”
नोन, हरदी।
पुतोहुक साँस कि‍छु गर्म सुचि‍ताकाकीकेँ बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा अनठा देलनि‍। नोनक पौकेट दस रूपैआमे देत, हरदीओ की‍ कोनो सस्‍ता अछि‍। ओकरो पौकेट दस रूपैआसँ कममे कहाँ दइ छै। हाथमे तँ पनरहेटा रूपैआ अछि‍। केना दुनू चीज लेब। मन फुनफुनेलनि‍। बड़बडाए लगली, केहेन बढ़ि‍याँ खुदरा-खुदरी नून बि‍‍काइ छेलै, जेतबे जेकरा सकड़ता रहै छेलै से तेतबे लइ छेलए। आब तँ तेहेन पोलीथीनक पौकेटमे रहैए जे कमो रहत तँ बनि‍याँ कहत जे घमि‍ गेल हएत। खाएर एक चुटकी नूने ने कम देत। एक-ने-एक दि‍न सैरियत दि‍अए पड़तै। जहि‍ना बच्‍चा लगले कनैए, लगले हँसैए तहि‍ना सुचि‍ताकाकीकेँ मन लहरए लगलनि‍। जे नून हाथीकेँ गला दइए ओ प्‍लास्‍टि‍ककेँ की नै गलबैत हएत। आब की कोनो नून खाइ छी आकि‍ प्‍लास्‍टि‍कक रस पि‍ऐ छी। हे भगवान तोड़े हाथ-बाठ छह। जेते दि‍न जीबए दैक हुअह से जीबह दि‍हऽ, नै जे लऽ जाइक हुअह तँ लऽ जहि‍हऽ। कहू जे प्‍लास्‍टि‍के कलमे पानि‍ पि‍ऐ छी, दोकानक चीज-बौस अनै छी, खाइ- पि‍ऐक समान रखै छी। जूत्ता-चप्‍पल, कपड़ा-लत्ता पहि‍रै छी। मुदा...?
लगले मन पुतोहु दि‍स घुमलनि। कहू जे चारि‍टा गाछ घरोक दावापर हरदी रोपि‍ लेब तँ साल भरि‍ किनए पड़त? जाबे माल-जाल नै छेलए ताबे वाड़ी-झाड़ी करै छेलौं। आब तँ मालोक नेकरमसँ नहाइओ-खाइओक पलखति‍ नै होइत रहैए। कनि‍याँ सहजे‍ कनि‍येँ छथि‍। कोनो लूरि‍-ढंग बाप-माए सि‍खा कऽ पठौलखि‍न आकि‍ सोलहो आना सासुरे भरोसे छोड़ि‍ देलखि‍न। मुदा गलती बुढ़होक छन्‍हि‍। कोन दुर्मति‍या चढ़ि‍ गेलनि‍ चरि‍कोसी पारक पुतोहु उठा अनलनि‍। एकेटा वस्‍तुक चरि‍-चरि‍, पँच-पँच तरहक ि‍वन्‍यास बनैए, जरूरति‍क हि‍सावसँ रूप-बदलि‍ उपयोग करब। तइ कालमे कहती जे खाली, अल्‍लूक, तरुआ, भुजुआ, भुजि‍या टा बनबैक लूरि‍ अछि‍। अपसोच करैत बजली-
जा हे भगवान, जे पुत हरबाहि‍ गेल, देव-पि‍तर सभ से गेल। कोनो मनोरथ रहए देलह। जखनि मनोरथे नै तखनि सतयुग, त्रेता, द्वापरे की‍।
तैबीच मोख लागल ठाढ़ पुतोहु बजली-
आइ शुकरवारी छि‍ऐ। जखनि चौक दि‍स जाइते छथि‍ तँ अंगुरो आ केरो फलहार लेल लेने अबि‍हाथि‍।
पुतोहुक बात सुनि‍ सुचि‍ताकाकी छगुन्तामे पड़ि‍ गेली। मनमे हुअ लगलनि जे एक हजार बात एक्केबेर कहि‍ दियनि‍ मुदा केतौ-केतौ नहि‍योँ टोक देब नीक होइत अछि‍। तँए, कि‍छु नै बजैसँ परहेज केलनि‍। मुदा, जहि‍ना आगि‍पर चढ़ल पानि‍क बर्तनमे ताउ लगि‍ते तरसँ बुलकारा उठए लगैत तहि‍ना काकीक मनमे उठए लगलनि‍। कहू जे अखनि पनपि‍आइक बेर छै, पहि‍ने तेकर ओरि‍यान कऽ पुरुख-पात्रकेँ खुआएब अपने खाएब आकि‍ सौझुका फलहारक ओरि‍यान करब। बीचमे कलौ सेहो अछि‍ए। भगवानो टेबि‍ए कऽ पुतोहु देलनि‍। एहेन-एहेन गि‍रथानि‍ बुते केते दि‍न घर-परि‍वार चलत। काकीकेँ चुप देखि‍ पुतोहु दोहरबैत बजली-
नै सुनलखि‍न। जखनि चौक दि‍स जेबे करती तँ अंगुरो आ केरो नेनहि‍ अबि‍हाथि‍।
पुतोहुक बात सुनि‍ते काकीक मनमे तरंग उठलनि‍। तरंगि‍ कऽ बाजए लगली-
अहाँ सभ कोन उपास करै छी जे सहैसँ पहिने‍ फलहारेक ओरि‍यान करए लगै छी। कहुना-कहुना तँ सातटा हरि‍बासय केने छी। कहाँ कहि‍यो पहि‍ने फलहारेक ओरि‍यान करै छेलौं।
शब्‍द-वाण जकाँ काकीक बात पुतोहुक हृदैमे लगलनि‍। तीर बेधल चि‍ड़ै जकाँ छटपटाइत पुतोहु कहलकनि-
अपना जे मन फुड़ै छन्‍हि‍ करै छथि‍ से बड़बढ़ि‍याँ मुदा हमरा बेरमे भबडाह हुअ लगै छन्‍हि‍?”
भबडाह सुनि‍ काकीओक मन बेसम्‍हार भऽ गेलनि‍। कहलखि‍न-
कनि‍याँ, हम भबडाहि‍ नै छी जे केकरोसँ भबडाह करब। अखनि आँखि‍ तकै छी तँए चि‍न्‍ता अछि‍। अखने आँखि‍ मूनि‍ देब, घर सम्‍हारए पड़त। तखनि अहूँ यएह बात बुझबै।
भनडार कोणक जेठुआ गड़ै जकाँ दुनूक बीच रसे-रसे अन्‍हर-वि‍हाड़ि‍ पकड़ए लगलनि। कि‍यो पाछू हटैले तैयार नै। दुनूक सीमा-सरहद टूटि‍-एकबट्ट भऽ गेल। एक्के-दुइए धि‍यो-पुतो आ जनीजाति‍ओ सभ आबए लागलि‍। आँगन भरि‍ गेल।
चौकसँ कि‍छु पाछूए नि‍त्‍याननकाका रहथि‍ कि‍ मनमे उठलनि‍, चौरंगी हवा बहैक समए अछि‍। कखनि कोन हवा केम्‍हरसँ उठत आ घर-दुआर खसबैत केम्‍हर मुहेँ चलि‍ जाएत तेकर ठेकान नै। ठोर बि‍दकि‍ गेलनि‍। हुलकी दैत मुस्‍की बहरेलनि‍-
एह, अजीब-अजीब करामाती मनुखो सभ भऽ गेल। कनि‍येँ गलती वि‍धातोक भेलनि‍ जे सींग-नांगरि‍ काटि‍ लेलखि‍न।
तहीकाल लाँडस्‍पीकरक अवाज कानमे पड़लनि‍। राधा-कृष्‍ण मंदि‍रपर झूला चलि‍ रहल अछि‍। अवाज सुनि‍ मन पसीज गेलनि‍। साैन मास। सुहावन। मन भावन। वि‍शाल वसुंधरा, रंग-रंगक वस्‍त्र पहिरि मधुमय वातावरणक बीच, बि‍‍हुँसि‍ रहल अछि‍। कृष्‍णक कदमसँ कदम मि‍लबैत राधा बि‍‍हुँसैत झूला झूलए कदमक गाछ दि‍स जा रहल छथि‍। असीम उल्‍लास। अदम्‍य साहस दुनूक बीच। कातेसँ गाछमे गोल-गोल, लाल-पीअर झुमका लगल फल-फूलसँ लदल देखि‍ राधा कृष्‍णकेँ पुछलखि‍न-
डोरी लगा डारि‍मे झूला लगाएब आकि‍ डारि‍एपर बैस झूलब?”
राधाक प्रश्न सुनि‍ कृष्‍ण आँखि‍एक इशारासँ उत्तर देलखिन-
जेहेन समए तेहेन काज।
चौकक गनगनाइत अवाज, नि‍त्‍याननकक्काक धि‍यान अपना दि‍स खि‍ंचलकनि‍। तखने एकटा नवयुवककेँ स्‍कूलमे भेटल बहिनक साइकि‍लपर ‘रेशम की डोर’ गुनगुनाइत सुनलनि‍। चि‍प्‍पी सजल वि‍देशी वस्‍त्रमे युवक। जहि‍ना दि‍न-राति‍क मध्‍य, जाड़-गरमीक मध्‍यक संग जि‍नगीओक मध्‍य मधुआएल होइत, तहि‍ना कक्काक मन सेहो भेलनि‍। युवककेँ पूछि‍ देलखि‍न-
बाउ, परि‍वारमे के सभ छथि‍?”
युवक कहलकनि-
बाबा, हि‍नका सबहक चरणक दयासँ सभ छथि‍। माएओ-बाबू आ दूटा बहि‍नो अछि‍। एक बहि‍न सासुर बसैए, जेतए जा रहल छी आ दोसर पढ़ैए। सोलहम बरख छि‍ऐ। दू-तीन साल बाद बिआहो करब।
काका पुछलखिन-
अपने?”
युवक कहलकनि-
बाबा, ई देवतुल्‍य छथि‍, झूठ नै बाजब। अपना खेत-पथार नहि‍येँ जकाँ अछि‍ मुदा खेतबला सभकेँ बाहर गेने बँटाइ खेत पर्याप्‍त अछि‍। एक जोड़ा बड़द रखने छी। बाबू-माए खेते-पथारमे खटै छथि‍, अपने बम्‍बईमे रहै छी।
काका पुछलखिन-
राखी पावनि‍ तँ काल्हि‍ छि‍ऐ, आइए किए जाइ छी?”
युवक कहलकनि-
साल भरि‍पर बम्‍बईसँ एलौंहेँ। एको दि‍न पहि‍ने जौं बहि‍नक ऐठाम नै जाएब, से केहेन हएत? भगिनो-भगिनीओ लेल आ बहि‍नो-बहनोइ लेल सालो भरि‍क कपड़ा नेने जाइ छि‍यनि‍। काल्हि‍ बेरमे घूमब तखनि छोटकी बहि‍नक हाथे राखी पहि‍रब। अच्‍छा अखनि जाइ छी बाबा। काल्हि‍ फेर घुमती बेर भेँट करब।
काका कहलखिन-
काजे जाइ छी। जाउ?”
जेना-जेना ओ युवक साइकि‍लसँ आगू बढ़ल जाइत तेना-तेना नि‍त्‍याननो कक्काक मन दौगए लगलनि‍। मनमे एलनि‍ पछिला सालक मोबाइलि‍क घटना। कनी मन खुशी भेलनि‍। बुदबुदेलथि‍-
अजीब-अजीब मदारी सभ अछि‍। गर लगा-लगा नचबैए।
मन रूकलनि‍। पहि‍नेसँ ने लोक किए बुझैए जे एहेन-एहेन घटनाकेँ बढ़ैए नै देत। मुदा मन ठमकलनि‍। घटना भेल। राखी पावनि‍ दि‍न, दस बजे राति‍मे बम्‍बैसँ एक गोटेकेँ मोबाइलसँ समाचार आएल जे बौआ सबहक हाथक राखी जल्‍दी खोलि‍ दि‍यौ नै तँ अनहोनी घटना हएत! इम्‍हर मुहेँ-मुँह समाचार पसरब शुरू भेल, ओम्‍हरसँ मोबाइलि‍क समाचार दि‍ल्‍ली, कल्‍कत्ता, बंगलोर इत्‍यादि‍सँ अकासमे गनगनाए लगल। हाँइ-हाँइ राखी हाथसँ उतरए लगल। भरि‍ राति‍क हलचल दि‍नक दस बजे धरि‍ चलि‍ते रहल। राति‍ भरि‍क नीनो दि‍नेमे बौआ गेल। मुदा दस बजेक पछाति‍क तीखर रौद पाबि‍ वातावरण शान्‍त भेल। मनमे उठलनि‍ बाल-बच्‍चाक संग माए-बापक सम्‍बन्‍ध? केना मनुखक वंश आगू मुहेँ ससरत जेतए माइए-बाप दुश्‍मन बनि‍ ठाढ़ भऽ रहल अछि‍। तहूमे जि‍नगीक अंति‍म बेलामे नै, उदयक तीनि‍येँ मासमे हथि‍यार लऽ आगूमे ठाढ़ भऽ जाइत अछि‍! मन तुड़छए लगलनि‍। थूक फेकि‍ मन हल्लहुक केलनि‍। मन पड़लनि‍ भाए-बहि‍नक ओ पुरान बात। भाए-बहि‍न ऐठाम पहुँचल तँ बहि‍न भायकेँ कहलकनि‍- भैया जखनि अकासक डगर उत्तरे दछि‍ने हएत तखनि आएब। मन पड़ि‍ते उठलनि‍ सालो भरि‍ तँ प्राकृतक संग खेल होइते रहैए‍, जि‍नगीसँ केतेक लग धरि‍ सम्‍बन्‍ध बनि‍ सकैए, तेतबे ने।
जेना मेघौनमे हवाक सि‍हकी लगने घुसकैत-फुसकैत तहि‍ना नि‍त्‍यानन कक्काक मन घुसकलनि‍। देखलनि‍ जे चकेबा कोन तरहेँ बहि‍न समाकेँ जरैत वृन्‍दावनमे संग दऽ रहल छथि‍। जे मनुख चि‍त्ती कौड़ी फेकि‍ नागसँ दोस्‍ती करैत, बाघ-सि‍ंह, भाउल सहि‍त गाए-महिंस, बकरीक संग मुनि‍यासँ हंस धरि‍ प्रेमसँ एकठाम रहैत ओकरा मनुखसँ एते घृणा कि‍एक छै। जे धी-जमाए-भगि‍ना लेल कहल जाइत, ओइमे कि‍यो अपन नै! तहि‍ना भाए-बहि‍नकेँ महिंसक सींग सदृश कहल जाइत। एक जाति‍क संहार कऽ बगीचाक काँट हटाएब कहल जाइत अछि‍! मन तरंगि गेलनि‍। तखने एकटा बेदरा आबि‍ कहलकनि‍-
बाबा, अँगनामे बि‍‍र्ड़ो उठल अछि‍।
बेदरासँ कि‍छु पुछब उचि‍त नै बुझलनि‍। उड़ैत अकासमे कौआ अपन टाँहि‍ थोड़े दोहरबैए। ओ तँ समैक घड़ी छी। मन आँगन पहुँचलनि‍। पत्नीपर नजरि‍ पड़ि‍ते वि‍चार उठलनि‍। झगड़ी आकि रगड़ी ओहो छथि‍। बूढ़ भेलौं, एतबो होश नै रहै छन्‍हि‍। होशो केना रहतनि‍ जइ परि‍वारकेँ फुलवाड़ी सदृश जि‍नगीक कमाइसँ बनौने छथि‍ तेकरा जौं कि‍यो उजाड़ए चाहत से केना उजाड़ए देथि‍न। मुदा रगड़ी रहि‍तो एकटा गुण तँ छन्‍हि‍ जे, ने रग्‍गड़ ठाढ़ करैमे देरी लगै छन्‍हि‍ आ ने सीढ़ीक भीतर फरि‍यबैमे। नजरि‍ पुतोहु दि‍स बढ़लनि‍ अजीब-अजीब लोको सभ फड़ि‍ गेल हेन। कहत जुगे बदलि‍ गेल। की‍ जुग बदलल से कहबे ने करत आ कहत जे जुगे बदलि‍ गेल। तहमे तेहेनठाम देखाएत जे अनेरे देहमे झड़क उठत। सासुकेँ उनटा-पुनटा पुतोहु कहथि‍न तैकाल जुग बदलि‍ गेल। मुदा सासुक लगौल फुलवाड़ीकेँ केते समृद्ध बनेलौं तइ काल...। जहि‍ना अपन बाप-माए लगसँ कानि‍ कऽ एलौं तहि‍ना अहू परि‍वारकेँ कनाएब। अनठा चौकपर पहुँचलथि‍।
चौकपर पहुँचिते चाहक दोकानमे गदमि‍शान होइत देखलनि। चाह पीबनि‍हार अपना धुनि‍मे आ दोकानदार अपन धुनि‍मे। चाहबला आगि‍-अगोंड़ा होइत जे सभटा फोकटि‍या आबि‍ बैस पूजी बुड़बै पाछू अछि‍। गि‍लासपर गि‍लास चाह ढारने जाइए आ पाइक कोनो पते नै। मुदा खुलि‍ कऽ ऐ दुआरे नै बजैत जे अखनि दोकानपर सँ थोड़े चलि‍ गेल जे बुझबै पाइ बुड़ि‍ गेल। तँए दम कसि‍ लि‍अए। ओना भीतर शंका पुन: उठि‍ जाइ। चेहरा मि‍लानी करै तँ वएह चेहरा बूझि‍ पड़ै जे अदहासँ बेसी ओहन अछि‍ जे सौ-पचास पीब-पीब कऽ दोसर दोकान पकड़ि‍ लेने अछि‍। कि‍छु जे अछि‍ ओकरासँ कोनो नै कोनो काज हेबे करत। तँए पहुलके उपकार ने पछाति‍ जुआ कऽ नम्‍हर भऽ जाइए। तँए मुस्‍की दऽ मन माड़ि‍ लि‍अए।
मुदा चाह पीबनि‍हारक उत्‍साह भि‍न्ने रहए तँए चाहबला दि‍स कि‍यो तकबे ने करैत। खाली एतबे कहैत जे दूध जरा कऽ स्‍पेशल बनाएब। गप्‍पोक धारा एहेन रहै जे, जहि‍ना जुलुशमे लोक पएरमे लगैत गंदगीकेँ रस्‍तापर आरो चारि‍ बेर रगड़ि‍ आगू बढ़ैए। एक संग अनेको पर्व। लोक भलहिं‍ं लोकसँ जेते हटि‍ जाए, मुदा पावनि‍ थोड़े हटत। कम-बेसी भलहिं‍ं भऽ जाए। अजीब-सि‍नेहक संग राधा-कृष्‍ण बाँहि‍-मे-बाँहि‍ जोड़ि‍ झूला झुलै छथि‍। भाए-बहि‍नक बीच एहेन पर्व दोसर कहाँ अछि‍। भरदुति‍या तँ भरदुती‍ए छी। कमलाक जल सेहो बैद्यनाथ बाबाकेँ वि‍देसरमे भेटबे करतनि‍। अजीब उमंग-उत्‍साहसँ हँसि‍ते-हँसि‍ते महि‍ना दि‍नक संकल्‍प नि‍माहि‍ लइ छथि‍। नि‍त्‍यानन काकापर नजरि‍ पड़ि‍ते प्रेम कुमार चाहेक दोकानपर सँ कहलकनि‍-
काका, एतै आउ। सभकेँ-सभ छथि‍।
मुस्‍की दैत नि‍त्‍याननकाका कहलखि‍न-
खाली लोकेटा नै ने फगुआक रमझौआ होइए। ऐमे की सुनब आ की‍ बाजब। तइसँ नीक बाहरेमे आबह। चौसठि‍म स्‍वतंत्रता दि‍वसक बरखी छी, नै पान तँ पानक डंटीओ लऽ कऽ सुआगत करबे करबनि‍।
तहीकाल अँगनाक समाचार नेने बेटा पहुँचलनि‍। हाथसँ आँखि‍ मलि‍-मलि‍ बलौसँ ललि‍या-करि‍या नोर बहबए चाहैत। बेटाकेँ बजैसँ पहि‍ने पूछि‍ देलखि‍न-
किए मन मन्‍हुआएल छह?”
दुनू-गोटे -सासु-पुतोहु- अँगनामे झगड़ा करै छथि‍।
झगड़ा शान्‍त करि‍तह आकि कहए एलह?”
हमर बात के सुनत।
मुस्‍की दैत नि‍त्‍याननकाका घर दि‍स वि‍दा भेला। जेते घर लग आएल जानि‍ तेते झगड़ो नरमाएल जाइत रहए। सुनै दुआरे कक्को छोटकी डेग बनबैत रहथि। मुदा जहि‍ना-जहि‍ना डेग छोट होइत जानि‍ तहि‍ना-तहि‍ना अछि‍आक मुरदा जकाँ झगड़ा शान्‍त भऽ गेल।
दुआरपर पहुँचिते देखलनि‍ जे जहि‍ना भारी काज केलापर वा रौदाएल एलापर छाहरि‍मे ठाढ़ भऽ नम्‍हर-नम्‍हर साँस लैत तहि‍ना अँगना-दलानक कोनचर लग ठाढ़ भऽ साँस छोड़ि‍ रहल छथि‍। आगू आँखि‍ उठा देखलनि‍ तँ पुतोहु थारी-लोटा मँजैबला ओचानि लग ठंठाइते साँस छोड़ि‍ रहल छथि। बजैत कि‍यो नै। जहि‍ना मुकदमाक खलीफा मुद्दालह बनि‍ लड़ैमे प्रति‍ष्‍ठा बुझैत, तहि‍ना दुनू गोटे। मनमे उठलनि‍ केकरो प्रति‍ष्‍ठाक सीमामे नै जेबाक चाहि‍ऐ।
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