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Friday, October 18, 2013

(42) गोहि‍क शि‍कार

गोहि‍क शि‍कार

बच्‍चासँ सि‍आन धरि‍, जाबे‍ तीनू धाम-सि‍ंहहेश्वर, कुशेश्वर आ जनकपुर नै देखने छेलौं ताबे‍ अपनो बाबा आ समाजिको काका, बाबासँ सुनैत रहलौं जे तीनू धाम एक्के रंगक दूरीपर अपना सभकेँ अछि‍। ई भि‍न्न बात जे जैठाम पृथ्‍वीपुत्री सीता छथि‍ तैठाम सि‍ंह सदृश सि‍ंहेश्वरबाबा सेहो छथि‍। मुदा आब जखनि तीनू धाम देखलौं तखनि जौं वि‍चारै छी तँ स्‍पष्‍ट दूरी बूझि‍ पड़ैए।
बान्‍ह-सड़कक अभावमे गामसँ गाड़ी-सवारी नै तँए नाहसँ कुशेश्वर आ सि‍ंहेश्वर आ जनकपुर पएरे गेलौं। भलहिं‍ं अकास मार्गसँ एक रँगाह होइ मुदा जमीनी रस्‍तामे अंतर अछि‍। कहैले तँ कोसीओ धार तँ टपै पड़ैए‍ मुदा सप्‍तकोसीओसँ बि‍कट रस्‍ता। ओना जखनि जाए लगलौं तखनि सात दि‍नक बटखरचाक संग धानक जुट्टी-चढ़बैले- लऽ नेने रही तँए चि‍न्‍ता नहि‍येँ जकाँ रहए। मुदा कोसीक लहरि‍‍ देखि‍ मन डराएल जरूर। जनकपुरक ठेही बाट तँए कच्‍चीओ रहने पएरे चलैमे सुगम अछि‍। जहि‍ना छोट-छीन शब्‍द संगीक संग -संयुक्‍ताक्षर- नम्‍हर बनि‍ ओझरी लगबैत जाइत तहि‍ना कुशेश्वरक रस्‍ताक धार सभ केने अछि‍। कोन धार केतए मि‍ल अपनो बदलि‍ गेल आ दोसरोकेँ बदलि‍ गंगो-बह्मपुत्रसँ वि‍कराल रूप बना नेने अछि‍। जइसँ टपब समुद्र जकाँ भऽ गेल अछि‍। मुदा बि‍ना टपने कुशेश्वर पहुँचब केना?
संयोग नीक जे धार सबहक बीच मातृक अछि‍। काति‍क बितैत ममि‍यौत भाय नाह बनबए अपना गाम पहुँचला। जे नाह चलनि‍ ओ अहीबेर भँसियाएल अबैत एकटा ढेंगमे लगि‍ फुटि‍ गेलनि‍। हुनका सबहक ने गाछी-बि‍रछी बाढ़ि‍क पानि‍ एने सूखि‍ गेलनि‍ मुदा अपना सबहक तँ बँचल अछि‍। अपने जामुन गाछ देखा देलि‍यनि‍। सुरेब गाछ देखि‍ मन मुस्‍कीआ गेलनि‍। हलसि‍ कऽ कहलनि‍-
बौआ, नाहो भऽ जाएत आ हरि‍सो, पालो, चौकी भऽ जेतह आ साल भरि‍क जारैनो भऽ जेतह।
जारनिक नाओं सुनि‍ कहलि‍यनि‍-
भैया, माले-जाल तेते अछि‍ जे ने जारनि‍क दुख होइए आ ने खेत सभमे बजरूआ खादक।
जलखै करैकाल कहलनि‍-
जखनि लकड़ीक गर लगि‍ए गेल तखनि चलह बनौनि‍हारोकेँ कहि‍ हाथ लगाइए देब।
कहलि‍यनि‍-
हँ तँ बेजाइए कोन।
पान-सुपारी मुँहमे दैते डेग बढ़ौलनि‍। पाछू-पाछू वि‍दा भेलौं। बरहीक घर लगेमे तँए जाइमे देरी नहि‍येँ लागल। पहुँचिते राजि‍न्‍दर पूछि‍ देलक-
पाहुन कहाँ रहै छथि‍ कहि‍ हाथेसँ चौकीपर ओछाएल ओछानि‍केँ हाथेसँ झाड़ए लगल। दुनू भाँइ बैसलौं। बैसिते भाय पुछलखि‍न-
मि‍स्‍त्री एकटा नाह बनाएब।
भैयाक मुँह दि‍स राजि‍न्‍दर ठकुआएल टकर-टकर देखए लगल। कि‍छु फुड़बे ने करै जे बाजत। ठेही परहक बरही हर, पालोक संग हँसुए-खुरपी बनौनाइ आ फाड़े पि‍टनाइ खाली बुझैत। राजि‍न्‍दरकेँ ठकुआएल देखि‍ राजि‍न्‍दरक पीसा जे दू दि‍न पहि‍ने आएल छला, पुछलखिन-
केतेटा नाह बनाएब?”
भाय कहलखिन-
तेरह हाथक।
घरैया आकि‍ घटवारि‍बला?”
घरैए।
मने-मन नाहक पेटक हि‍साब जोड़ि‍ पिसा कहलखिन-
पनरहि‍या लगि‍ जाएत। दू दि‍न एनो भऽ गेल।
पीसाक बात सुनि‍ राजि‍न्‍दक मन हलसि‍ गेल। जहि‍ना हँसैत फूल सुगंध बना भाय वायुक संग वायुमंडलमे वि‍चरण करैत तहि‍ना हलसल मन राजि‍न्‍दरक बाजि‍ उठल-
पीसा, एक पंथ दू काज। अहाँक पहुनाइओ सुतरि‍ जाएत आ हमरो एकटा लूरि‍ बढ़ि‍ जाएत। उपकार तँ नफ्फामे हएत।
ओकर बात सुनि‍ अपनो मन कलसि‍ गेल जे भरि‍ आँखि‍ बनबितो देखब आ जाबे नाह रहत ताबे भैयौ गुण गबैत रहता। तँए स्‍टेशनक कुल्‍ली जकाँ, जे हैयौ, हैयौ कऽ सि‍मटीक बनल पुलक पायाकेँ ठेलैत तहि‍ना ठेलैत बजलौं-
भैया, अखनि ठरपर छी, ऐठीन जे काज हएत से नीक हएत। अनभुआर जगहमे पच्‍चीसटा बि‍‍हंगरा होइ छै?”
सह पाबि‍ राजि‍न्‍द फुदकि‍ उठल-
पीसा, कमाइ अपन अपने राखब। खेनाइक चि‍न्‍ता नै करू।
कमाइ देखि‍ पीसा कहलखि‍न-
भाय, जहि‍ना अहाँ धारऽ कातक छी तहि‍ना हमहूँ छी। पूवारि‍ पार रहै छी।
बनाइक गप-सप्‍प भेल। मुदा खेनाइक गप-सप्‍प भेबे ने कएल। किएक तँ हुनका दुनू गोटेकेँ बूझल। दोसर दि‍न जखनि काज शुरू भेल तखनि बुझलौं।
दोसर दि‍न जामुनक गाछ खसा, पाँगि-पुँगि, तेसर दि‍न चि‍राइमे हाथ लगि‍ गेल। भरि‍ दि‍न भैया गमछाक अराम कुरसी बना ि‍मस्‍त्रीए लग बैस अपन देश-कोसक महाभारत सुनबए लगलखिन। खनि अँगना खनि खेत खनि भैया लग आबि‍-आबि‍ हाजि‍री पुरबए लगलौं।
बारहम दि‍न नाहक सकल ठाढ़ होइते भैयाक मन जेठुआ बाढ़ि‍ जकाँ फुलाए लगलनि‍। जहि‍ना धार फुलेने चरो-चाँचरमे फूल पकड़ि‍ लइ छै तहि‍ना अपनो मन फुला गेल। पथि‍या नेने माए तख्‍ताक छोलनि लेल पहुँचिले छेली आकि‍ पछबारि‍ बाधसँ घुमि‍ पहुँचलौं। मुस्‍की दैत भैया कहलनि-
बौआ, कुशेसर चलह।
भैयाक बात सुनि‍ माए कहलखिन-
बहू दि‍न गेना भऽ गेल।
भैयाक मनमे कि‍ रहनि‍ से तँ नीक नहाँति नै बुझलौं। मुदा अपना भेल जे भरि‍सक रस्‍तामे छीना-छीनी दुआरे बजला। संगीक जरूरति‍ छन्‍हि‍। जहि‍ना नाहक सभ काज भेलनि‍ तहि‍ना सुहरदेसँ गामो पहुँचाएब जरूरी अछि‍। के कहलक रस्‍ता पेरामे नाहक संग जानो चलि जान्हि‍। कहलि‍यनि‍-
कएक गोटेकेँ लऽ जेबनि‍?”
सभ तूर तलह।
सभ तूरक नाओं सुनि‍ माए बजली-
बौआ, सभ तूर जे जाएब से बनत। कोनो कि‍ नोकरि‍या-चकरि‍याक घर छि‍ऐ जे ताला लगा दि‍यौ आ वि‍दा भऽ जाउ। चारि‍टा माल अछि‍। धानक लड़ती-चड़ती अछि‍, तखनि?”
बिच्‍चेमे भैया कहलखिन-
एको गाेरे जौं पीठपोहू रहत तैयौ चलि‍ जाएब।
कुसेसरेक रस्‍तामे मातृक। मामा गामसँ चारि‍ए कोस आगू-दछि‍न- कुसेसर। कहलि‍यनि‍-
भने कुसेसरो बाबाक दर्शन भऽ जाएत आ दू दि‍न मात्रि‍कोमे रहि‍ जाएब।
नाह बनि‍ गेल। जेते छाँट-छुट, तख्‍ता उगड़ल सभ सेरि‍या कऽ रखि‍ लेलौं। काल्हि‍ भोरमे जाएब। पुछलि‍यनि‍-
भैया, रस्‍ता भँजियाएल अछि‍ कि‍ने?”
हँसैत बजला-
तूँ सभ ठेही परहक छह तँ रस्‍ता तकै छहक। हमरा सभ लि‍ए जेहने धार तेहने डूमल खेत। सुपेन (सुपर्णा) मे होइत गहुमा पहुँचब। गहुमासँ भुतही कमलामे चलि‍ जाएब। जखने कमला पहुँचलौं तखने बुझह जे धाम पहुँच‍‍ गेलौं। घुमती काल सि‍रा रहत तँ एक गोरे गुन खि‍ंचब दोसर गोरे नाहपर रहब।
माएकेँ कहलि‍ऐ-
खेबा-खरचा-बटखरचा- ओरि‍या मोटरी बान्‍हि‍ दि‍हनि‍। जाइ बेरक आशा नै रखि‍हेँ। हड़बड़मे कोनो चीज छूटि‍ ने जाए।
माए कहलक-
तीन सालसँ घीओ रखल अछि‍ ऊहो नेने जइहऽ।
बड़बढ़ि‍याँ। मोटरीएमे बान्‍हि‍ दि‍हनि‍।
हरा-तरा जेतह।
से की अखनि गरमी मास छी। ओ तँ अपने तेहेन जनमल हएत जे बि‍ना मुन्नोक काज चलि‍ जाएत।
मकैक नेरहाबला मुन्ना अछि‍। ओ छि‍छलाह होइए। कहीं नाहक झमारमे छिछैल‍ कऽ खुजि‍ जेतह तखनि तँ हराइए जेतह।
दोसरे मुन्ना लगा दि‍हनि‍?”
बड़बढ़ि‍याँ। नेरहाबला बदलि‍ कटकटा कऽ कोढ़िला लगा देब। ओ थोड़े छि‍छलाह होइए।
जाड़क मास रहने भदबाि‍र जकाँ ने धारे नचैत आ ने चरे-चाँचरक ओ रूतबा। भट्ठा दि‍स जाएब छल तँए मि‍सि‍ओ भरि‍ भैयाकेँ थकान नै बूझि‍ पड़नि‍। जहि‍ना ढलानपर गाड़ी तहि‍ना सि‍रासँ भट्ठाक नाह। माथपर गोसाँइ देखि‍ कहलि‍यनि‍-
भैया, पानि‍ तँ अछि‍ए केतौ खा लिअ।
कहलनि‍-
गर लगा कऽ ने नाह लगाएब।
कि‍छु दूर आगू बढ़लापर धारेकातमे एकटा पीपरक गाछ। खूब झमटगर। एक भागक (धार दि‍सक) अदहासँ बेसी सि‍र अलगल रहए। नाह बन्‍हैक सुवि‍धा आ छाहरि‍ओ तहि‍ना। धारक पेटेमे चहटी जकाँ। जैपर घास जनमि‍ गेल। पवि‍त्र जगह देखि‍ भैया चपचपा गेला। बजला-
बौआ, नीक जगह अछि‍। कनीखान अरामो कऽ लेब।
कनी पाछूए रही आकि भैया कहलनि‍-
बौआ, तूँ नाहेपर रहऽ, हम बन्‍है छी।
कहि‍ धाँइ दऽ मांगि‍सँ कूदि‍ रस्‍सी पकड़ने हाँइ-हाँइ कऽ सि‍रमे लपटए लगला। नाह ठाढ़ भेल। उतरलौं। ओइठाम धार भकमोड़ नेने। एतेकाल दछि‍न मुहेँ आब पछि‍म मुहेँ भऽ गेल। उतरि‍‍ कऽ आगू तकलौं तँ बूझि‍ पड़ल जे मरकाठीक डेंगरी सभ छि‍ड़ि‍याएल अछि‍। रहि‍-रहि‍ कऽ गन्‍ह सेहो अबै। कहलि‍यनि‍-
भैया, ई तँ मुर्दघट्टीमे चलि‍ एलौं। ऐठाम कन्ना रहब आ खाएब?”
मुस्‍कीआइत भैया कहलनि‍-
ई सभ अधजरू डेंगरी नै गोहि‍ सभ छी। रौद तापैले ऊपर आएल अछि‍।
भैयाक बात सुनि‍ डरे मन डोलि‍ गेल। आँखि‍ उठा-उठा निहारि‍-निहारि‍ देखए लगलौं। मन पड़ल कलकत्ताक चि‍ड़ि‍या खानाक गोहि‍। बाप रे! ई तँ जीवि‍ते लोककेँ गीर जाइए। माघक जड़ाएल बच्‍चा जकाँ देह डोलए लगल। मुदा हुनका लेल धैनसन।
ओइ भकमोड़पर खूब नम्‍हर मोइन। जेहने नम्‍हर तेहने गहींर। जेठोमे अगम पानि‍ रहैत। तैबीच भुक दऽ पारा जकाँ शोंश भुक दऽ उगल आ डूइम‍ गेल। आरो डर बढ़ि‍ गेल। कहलि‍यनि‍-
भैया, नाह पार केना करब। ई तँ तेहेन-तेहेन पनियाँ जानवर सभकेँ देखै छी जे एक्के हुड़कान मारत तँ नउए उनटा देत।
मुदा ओ मुस्‍कीआ कऽ रहि‍ गेला। जेना-जेना डर बढ़ैत जाए तेना-तेना आँखि‍ निड़ारि‍-नि‍ड़ारि‍ देखए लगलौं। कट्ठा पनरहेक मोइन। धारक पानि‍ चकभौर लि‍अए! कखनो-कखनो बुल-बुला सेहो नि‍कलै। पछि‍या हवाक संग दुरगंध पसरि‍ गेल। कहलि‍यनि‍-
भैया, कोनो सड़ैत मुरदाक गन्‍ह छी।
भैया कहलनि‍-
ऊँहू भरि‍सक मलेछ छी।
अपन वि‍चारकेँ मजगुत करैत पुछलियनि-
जौं मरचर नै छी तँ मलेछ केतएसँ आएल?”
आब मुदा हुनको मनमे डर पैसलनि‍। बजला-
एक बेर सुहतरि‍या घाटमे मलेछ नाहे उनटा देलकै।
बजैकाल तँ बाजि‍ गेला मुदा लगले बात बदलि‍ बजला-
बौआ, कोशि‍कन्‍हाक मलेछ की लोककेँ कि‍छु कहै छै। देखबहक जे अपि‍यारी सभमे एक दि‍स ओ माछ बि‍छैत रहतह आ दोसर ि‍दस मलेछ सभ। तोरा इलाकामे परसौती स्‍त्रीगणकेँ मलेछ बेसी हरान करैए।
अपनो मन मानि‍ गेल। किएक तँ एक खुट्टापर गाए-बड़द पटका-पटकी करैए, मुदा दोसर खुट्टापर संगी पशु बनि‍ दूधक धार बहबैए।
तैबीच लोकक सुन‍-गुन पाबि‍ गोहि‍ सभ धाँइ-धाँइ पानिमे कूदल। मोइनसँ कनि‍येँ हटि‍ एकटा पीराड़क गाछ भीतापर। गाछ तँ बड़ नम्‍हर नै मुदा साहोरे जकाँ पकठाएल। गाछक नि‍च्‍चाँमे एक गोटे ठाढ़। भैया कहलनि‍-
हइ वएह मलेछ छी। ओकरे महक अबैए! अखने पीड़ारक गाछपर सँ उतरल।
डरो हुअए मुदा देखैओक मन हुअए। लोके एतेटा। कहाँ दन लंकाक राछस जकाँ मलेछ बड़ी-बड़ी होइए। से कहाँ छै। ओना भूत-परेतकेँ नै मानै छी। कि‍एक तँ मनुखक आत्‍मा पंचतत्‍वमे विलीन भऽ जाइ छै आ शरीरकेँ या तँ जरा देल जाइ छै वा माटि‍क भीतर आकि‍ बाहर कि‍ड़ी-मकौड़ी, चि‍ड़ै-चुनमुनी खा लइए‍। तखनि भूत जनमत कथीक।
दुनू भाँइ हि‍आसि‍-हि‍आसि‍ ओकरा देखए लगलौं। लोक रहैत तँ दोसरो संगी रहि‍तै। से कहाँ छै। भूत-परेत तँ असगरो रहैए। ओकरा कि‍ कोनो चीजक डर होइ छै। मुदा ओ मोइन दि‍स बगुला जकाँ धि‍यान लगौने। सहसा ओ मोइनकेँ गोड़ लागि‍ पाि‍नमे पैस गेल। रस्‍सीक एकटा भीड़ी डाँड़मे बन्‍हने आ हाथमे मोटका तारक काँकोड़। रस्‍सीक एक ओर गाछमे बान्‍हल। मोइनमे डूमल। अनासुरती मनमे उठल जे भरि‍सक अहि‍ना लंकाक मोती बाहर करैबला पनि‍डुब्‍बा, उत्तर सागरक सील ह्वेल आ बालरसक शि‍कारी जकाँ ईहो पानि‍क शि‍कारी छी।
कि‍छु क्षणमे उक्-उक्क अवाज उठलै आ ओ लपकि‍ कऽ डारि‍ पकड़ि‍ ऊपर आबि‍ गेल। ऊपर आबि‍ दोहरा कऽ गोड़ लगलक। ताबे बि‍सवास भऽ गेल जे ओ आदमीए छी मलेछ नै। मुदा मलेछे जकाँ गन्‍ह! पातर साँस बना लगमे गेलौं तँ देखलि‍ऐ जे ओ आदमी दुनू बाँहि‍मे गोहि‍एक खलड़ीक खोल बना पहि‍ने अछि‍। जाड़े थरथराइत! बेर-बेर हाँफी होइ। जेना थाकल हुअए।
ओइ ओ! ओइ ओक अवाज तीन-चारि‍ बेर लगौलक। अवाज सुनि‍ लगले बीस-पच्‍चीस गोटे जमा भऽ गेल। जेना लगेक बोन-झाड़मे नुकाएल रहल हुअए। जमा होइते सभ रस्‍सा पकड़ि‍ खि‍ंचए लगल। आ बाजए लगल-
ले जवान!”
हैसा।
आगू बढ़ैत!”
हैसा।
रस्‍सा-कस्‍सी शुरू भेल। मोइनमे जेना बि‍हाड़ि‍ आबि‍ गेल! महजाल लगौला पछाति जेना माछ सभ तड़पैत, तहि‍ना।
करीब डेढ़-दू घंटा रस्‍सा-कस्‍सी चलल। कखनो ऊपर दि‍स खि‍ंचै तँ कखनो मोइन दि‍स। मोइन दि‍स खि‍ंचते भड़भड़ा कऽ सभ खसि‍ पड़ै।
करीब दस-एगारह हाथक गोहि‍ ऊपर भेल। ऊपर होइत तीन-चारि‍ठाम बाँसक टोन दऽ चरि‍-चरि‍, पँच-पँच आदमी बैस गेल। गोहि‍क ठोंठमे रस्‍सा कसाएल! तरूआरि‍ जकाँ एकटा तेजगर अस्‍त्रसँ एक गोटे हाँइ-हाँइ चीर देलक। मुदा अखनो धरि‍ सभ दबनहि‍ रहल। कि‍छु काल पछाति प्राण छूटि‍ गेलै। प्राण छुटि‍ते बाँसक टोन हटा काटए लगल। काज अगुआएल देखि‍ लग जा पुछलि‍ऐ-
केना-केना गाेहि‍ पकड़ै छहक?”
अनभुआर बूझि‍ ओ अदमी हाथक इशारासँ गाछक छाहरि‍मे चलैक इशारा केलक।
गाछक छाहरि‍मे बैसिते हमर नाओं पुछलक कहलि‍ऐ, हमहूँ पुछलि‍ऐ तँ बाजल-
भोला तीयर। कहि‍ गोहि केना पकड़ै छै से कहए लागल-
पानि‍मे पैस गाेहि‍ लग जाइ छि‍ऐ। नम्‍हर अन्‍दाजि‍ कऽ ओकर नांगरि‍सँ बँचैत अपन केहुनी आगू केने रहलौं। आँखि‍ ने तँ मुँह बौने रहल। जौं मुँह बौने रहल तँ हाँइ-हाँइ कऽ काँकोर मुँहमे दऽ दइ छि‍ऐ। लोहाक काँकोर। लाेकक देहक गन्‍ह गोहि‍केँ मति‍सून बना दइ छै। खाली नांगरि‍सँ अपन बँचाउ केने रहै छी। ओना सभ कमला माइक परतापसँ होइए। ने तँ लोकक बुत्ते हएत!”
हम पुछलि‍ऐ-
एकरा की करबै?”
भोला तीयर बाजल-
मासु खेबै आ खलड़ी बेचबै।
सुनि‍ गुम्‍म भऽ गेलौं। देशक दृश्‍य आँखि‍पर लटकि‍ गेल। जइ देशमे कि‍यो भरि‍ दि‍न भोग करै पाछू बेहाल रहैए तँ कि‍यो जानक कीमतपर दुरगंध मासुक पाछू बेहाल अछि‍। हाय रे हाय!
हमरा गुम्‍म देखि‍ ओ बाजल-
कोन गाँ रहै छी?”
कहलि‍ऐ-
बेला रहै छी।
कनी मन पाड़ि‍ पुन: पुछलक-
रौदी तीयरकेँ चि‍न्‍है छि‍ऐ?”
कहलि‍ऐ-
ममियौत भायक गामक लोककेँ किए ने चि‍न्‍हबै। गाम की कोनो शहर-बजार छी जे अपनो समांग देखि‍ कऽ मुँह घुमा लेत।
ओ साढ़ू छि‍आ।
भैयारीए जकाँ अछि‍।
भैयारी नाअाें सुनि‍ बाजल-
तब केना जाए देब। गरीब छी तँए इज्‍जत नै अछि‍। एहेन शि‍कार केलौं आ अहाँ चलि‍ जाएब। साढ़ू की कहता। हुनका पता लगतनि‍ तँ नै कहता जे खाइ डरे समाजसँ मुँह चोरबै छी। एकर मासु बड़ सुअदगर जहि‍ना अंडाएल रोहू, तेलाएल खस्‍सी होइए तहि‍ना।
मन तँ होइए मुदा कुशेसरक घी संगेमे अछि‍। ओतए जाइ छी।
तँ की हेतै काल्हि‍ चलि‍ जाएब।
मने-मन डरो हुअए। तेतबेमे एक गोरे आबि‍ कहलकै-
भोला कक्का, पेटसँ चानीक हँसुली आ पइत नि‍कलल।
मुदा भोला लेल धैनसन। जेना कोनो नव बात नै। मुदा मन मानलक जे भरि‍सक लोककेँ गि‍रने अछि‍। हमरा मुहसँ अनासुरती नि‍कलल-
आब की करबै, एकरा?”
मासु बना, सोना कमला माइक पवि‍त्र पानि‍मे धोइ लऽ जाएब। अमैनि‍यासँ साँझू पहर रान्‍हब। झालि‍-मि‍रदंग बजा कमला माइकेँ मासु-भात-परसादी चढ़ाएब। सौंसे टोलक बाले-बच्‍चे मि‍लि‍-जुलि‍ कऽ खाएब।
चमड़ाकेँ?” हम पुछलिऐ।
कहलक-
सुखा कऽ रखि‍ लेब। जखनि बेसी भऽ जाएत तखनि वेपारीकेँ खबड़ि‍ देबै। गाड़ी नेने औत, गि‍नती कऽ कऽ सभटा कीनि‍ लेत।
ओहो चलि‍ गेल आ हमहूँ दुनू भाँइ नाहपर चढ़ि‍ वि‍दा भेलौं।
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