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Friday, October 18, 2013

(34) सरोजनी

सरोजनी
मझोलका कि‍सान भेलोपर जमीन्‍दारीक ठाठ-बाठ आ रूआब अखनो हरदेवकेँ छन्‍हि‍ए। वएह हथि‍सार सन-सन घर, बीघा भरि‍क फुलवाड़ी, घरक आगूमे झील सन पोखरि‍ जेकरा चारू महारमे मेड़हाैल घाट। कलम-गाछीक कमी नै‍। सभ रंगक आम फुटा-फुटा लगौने। सरही फुटे, कलमी फुटे। एक भागमे सभ रंगक इलची पाँच कट्ठामे। आसामक वोन जकाँ बँसबारि‍ जइमे हजारो बाँस ूखल। शीशोक गाछक डारि‍ सभ मोटा-मोटा गाछे जकाँ भऽ गेल। लताम, बेल, धात्री, सपाटू, शरीफा, आँता, कटहर, बरहर इत्‍यादि‍क बगीचा सेहो छन्‍हि‍ए। सालो भरि‍ कोनो-ने-कोनो फल गाछमे लुबधले रहै छन्हि। अनेको रंगक देशी-वि‍देशी केराक करजान। दोसराक खेतमे पएर नै देब, एहेन रूआब हरदेवक बाबाक अमलदारीमे रहनि‍। बनसी खेलै दुआरे पोखरि‍क बीचो-बीचो पुल जकाँ सेहो बनौने।
जमीन्‍दारी टुटलोपर बाहरसँ तँ नै बूझि‍ पड़ैत मुदा भीतरे-भीतर फोक भऽ गेल छन्‍हि। महाजनी चलि गेलनि‍। बखारी टूटि‍ गेलनि‍, नोकर-चाकर नै रहलनि‍, मुदा मनमे अखनो ओ टेंढ़ी छन्हि‍‍ए। पाँच भाँइक भैयारीमे सभ कि‍छु बँटा गेल। अपन समांग सभ तँ अधि‍क पढ़ल-लि‍खल नै मुदा पढ़ल-लि‍खल नोकर रखि सभ कारोबार चलबैत रहथि‍। एते दि‍न झाँपि‍-तोपि‍ नि‍महलनि‍। मुदा आब ने दोसर रूआब मानैले तैयार आ ने अपना दम जे दाेसरपर रूआब करब।
बच्‍चेसँ हरदेव बाबाक संग कोट-कचहरी अबैत-जाइत रहला। तइ क्रममे कानून-कायदा, लड़ाइ-झगड़ाक भाँज बुझने छला। घरोपर हरदेव नि‍अमि‍त क्रि‍या-कलाप बनौने छला। भाेरे उठि‍ दतमनि‍ आ कुड़ा-अाचमनि‍ कऽ भरि‍ छाँक पानि‍ पीब‍, पान खा, लोटा लऽ मैदान दि‍स‍ जाइ छल। घंटो भरि‍ सि‍नुरि‍या आमक गाछक नि‍च्‍चाँमे लोटा रखि‍ सौंसे गाछी टहलि‍-बूलि‍ देखै छला। पाकल फल तोड़ि‍-तोड़ि‍ गमछामे बान्‍हि‍ घुमै काल घरपर नेने अबै छल। सभ दि‍न टटका फल खेने दुनू परानीक शरीर बुलन्‍द रहनि। चारि‍टा गाए पोसने छला। गाए तँ देहातीए छेलै‍ मुदा नम्‍हर कदक। एकवर्णा कारी। डेढ़ि‍यापर बाहैत-बि‍आइत तँए सभ दि‍न दूधक लाट रहबे करनि। सभ दि‍न बेरू पहर असेरी गि‍लाससँ दू गि‍लास दूधमे भाँग घोड़ि‍ पीब‍ हरदेव बनसी खेलए जाइ छला। बीच पोखरि‍मे चौखुट बनसी खेलैले जे बनौने रहथि‍ ओइ‍‍पर जा कुरता नि‍कालि‍ रखै छला। पानक सभ सामान सेहो नेने जाइ छला। एयर कंडीशन जकाँ जलहवा तहूमे झूलैत झि‍झड़ीदार परदा जकाँ भाँगक नि‍शाँ हरदेवक हृदैकेँ झूलबैत रहै छल। हरि‍अर-हरि‍अर कुमही हवाक सि‍हकीक संग जलक सवारीपर सपरि‍वार सवार भऽ रसे-रसे पोखरि‍मे टहलै छल। बहुत पहि‍ने हरदेवक पि‍ता पोखरि‍भि‍ंडासँ ललका कमल आ बेरमा बड़की पोखरि‍सँ उजड़ा कमलक गाछ आनि‍ लगौने रहथि‍। दुनू रंगक कमलक शोभा देखैमे अद्भुत लगै छल। आनन्‍दक समुद्रमे असकरे हरदेव सभ दि‍न मगन भऽ झूमैत रहै छला। छोटकी माछ सभ बनसी बोर नि‍चेनसँ खा लैत। लूक-झूक गोसाँइ होइते हरदेव बनसी समेटि‍ रखि घुमि कऽ घर अबै छला। घरपर आबि‍ चाह पीब‍ टहलैले नि‍कलि‍ जाइ छला। बच्‍चेसँ घुरन हरदेव ऐठाम नोकरी करै छल। साते-आठ सालक जखनि रहए, बाप मरि‍ गेलै। बपटुग्‍गर घुरन माएक संग नम्‍हर जि‍नगी जीबैले दुखक पहाड़सँ संघर्ष करए लगल। जखनि घुरन छँटगर भेल, बि‍आह-दुरागमन भेलै तखनि पाँच रूपैआ मासक नोकरी छोड़ि‍ बोनि‍याती काज हरदेव ऐठाम करए लगल। घुरन आ हरदेव एकतुरि‍या। हरदेव सुखक बीच आ घुरन दुखक बीच जि‍नगी बि‍तबै छल। एकतुरि‍या रहने दुनूमे घनि‍ष्‍ठ प्रेम। एकठीम रहने घुरनपर हरदेवक असीम वि‍श्वास सेहो रहनि‍। जौं कहि‍यो हरदेव केतौ बाहर जाइ छला तँ घुरनेपर खेती-वाड़ीक भार दऽ जाइ छला। घुरनक घरवाली सोमनी हरदेवक अँगनाक काज, वर्तन-बासन धोनाइसँ लऽ कऽ पानि‍ भरनाइ चूल्हि‍‍‍-चि‍नमार नि‍पनाइ सभ करै छेली, जइसँ खेनाइ-पीनाइ चलि‍ जाइ छेलनि। बेटा रमेश माएक संग हरदेवक आँगनमे खाइ-खेलाइ छेलए। सरोजनी आ रमेश कहि‍यो अटकन-मटकन खेलए तँ कहि‍यो चोरा-नुक्की।
गामेमे स्‍कूल रहने रमेशक नाओं घुरन लि‍खा देलक। सरोजनी सेहो स्‍कूल जाए लगल। पढ़ैमे रमेश चन्‍सगर। हरदेवक परि‍वारसँ लाट रहने रमेशक गरीबी छि‍पल। रमेश दू बरख सरोजनीसँ जेठ। बच्‍चेसँ रमेश रोगसँ आक्रान्‍त भऽ गेल। कि‍यो रमेशकेँ बाल-ग्रह कहै छेलै तँ कि‍यो पछुआ लागब कहै छेलै। घुरन आ सोमनी केते गहवर रमेशकेँ लऽ लऽ गेल मुदा रोग नै छुटलै। दि‍नानुदि‍न रोग बढ़ि‍ते गेलै। अंतमे नि‍राश भऽ घुरन सोने वैदसँ रमेशक इलाज करौलक। साते दि‍नमे बिमारी छूटि‍ गेलै। मुदा रमेशक शरीर खि‍दखि‍दाहे रहल।
परसूए माघक पूर्णिमा। गंगा नहाइले गामक मरद-स्‍त्रीगण उमड़ल। सुशीला सेहो पति‍ हरदेवकेँ चलैले कहलकनि‍। दुनू परानी हरदेव गंगा-नहाइले रतुके गाड़ीसँ सि‍मरि‍या वि‍दा भेला। हरदेव अँगनाक भार सोमनीकेँ आ माल-जाल भार घुरनकेँ दऽ गेला। सि‍रि‍फ सरोजनीएटा रहल। सोमनीकेँ सरोजनी चाची कहैत।
चारि‍ साल पहि‍ने गामक स्‍कूलसँ नि‍कलि‍ सरोजनी आ रमेश हाइस्‍कूलमे पढ़ै छल। संगे दुनू गोटे स्‍कूल अबैत जाइत छल। रमेश आ सरोजनी ओसारक चौकीपर बैस‍ पढ़ै-लि‍खैक गप-सप्‍प करै छेली। साेमनी आँगन बहारि‍ बाढ़नि‍ रखि‍ते छेली‍ आकि‍ सरोजनी पुछलकनि-
चाची, अगि‍ला मासमे मैट्रि‍कक परीक्षा हेतै। मैट्रि‍क पछाति‍ रमेशकेँ पढ़ेबै की नै?
सोमनीक मनक आशापर गरीबीक चद्दरि झँपने छलि‍। सोमनी ठाढ़ भऽ एकटक सरोजनीकेँ देखि‍‍ बजली-
बुच्‍ची कहलौं तँ बड़ नीक बात। कोन माए-बापकेँ बेटा-बेटीक पढ़बैक मनोरथ नै होइ छै मुदा खरचा जुमतै?‍ गरीब लोक कोनो लोक होइए। सभ मनोरथ संगे जाइ छै।‍
सोमनीक बात सुि‍न सरोजनीक मुँहक हँसी बि‍ला गेल। कनीकाल चुप भऽ बाजल-
कहलौं तँ ठीके चाची। हमहीं अखनि बाप-माएक ऐठाम छी, सुख करै छी। जौं हमरे गरीब घरमे बि‍आह हुअए तँ अखुनका सुख रहत।‍
‍जेकरा जे भाग-तकदीरमे लि‍खल रहै छै से होइते छै। रमेशक भागे खराप छै तँ सुख केतएसँ आैत।
‍चाची, गाममे तँ नोकरी नहियेँ हेतै, तब तँ बाहरे जाए पड़तै?”
कि‍यो चि‍न्‍हारेकेँ संग लगा दि‍ल्‍ली पठा देबै। कोठीमे कोनो काज भइए जेतै।‍
रमेश दि‍ल्‍लीमे नोकरी करत। अहाँ दुनू परानी ऐठाम रहब।‍ बड़-बिमारीमे केकरा के देखबै?”
जेकरा जे दुख आकि सुख लि‍खल रहै छै से अान थोड़े बाँटि‍ लइ छै।‍
सरोजनीक नजरि‍मे आशाक किरिण चमकि‍ रहल अछि जहनकि‍ सोमनी नि‍राशाक पहाड़ तर दबाएल अछि। बच्‍चेसँ जुड़ल सि‍नेहकेँ जेना वीणाक ध्‍वनि‍केँ हथौरीक चोट भग्‍न कऽ दइ छै तहि‍ना सरोजनीक स्‍वरकेँ सोमनीक अवाज ध्‍वस्‍त कऽ देलक।
पाँचतारा होटलमे डेरा। जहाजसँ देश-ि‍वदेशक एनाइ-गेनाइ। नीक नोकरीक संग नीक दरमहो। तैपर सँ चोरा-नुका कऽ दोहरी धंधो। एेश-मौजक जि‍नगी जीबैत, पुष्‍ट गोर शरीर हृदयनारायणक। ने घरक चि‍न्‍ता ने ‍परि‍वारक बोझ। होटलक मालि‍क अंग्रेज, जि‍नका दुइ गोट कन्‍या। दुनूकेँ एक-एक होटल दऽ अपन भार हटौने। अपने अंग्रेज साहैब दुनू बापूत लोहाक कारखाना चलबैत। होटल चलौनि‍हारि‍ रोजी। जखनि हृदयनारायणकेँ होटलमे अबैत रोजी देखै तँ आँखि‍ गड़ा एकटकसँ नि‍च्‍चाँ-ऊपर नि‍हारैत रहए। कोठरीमे गेलापर अनेरे जा-जा रोजी हृदयनारायणकेँ पुछैत-
कोनो वस्‍तुक दि‍क्कत तँ नै अछि?
बी.ए.पास रोजी। बीस बर्खसँ ऊपरे उमेर। सोनहुल केश, भुल्‍ल गोर। छरहरा शरीर, फुर्तीसँ छट-छट करैत।
हृदयनारायण क्‍लबक सदस्‍य सेहो रहथि‍। मन-माफि‍त मनोरंजन करथि। वसन्‍तक बहार छोड़ि‍ पतझड़क अनुभूति‍सँ अनभुआर भऽ गेल हृदयनारायण। देहाती जि‍नगीसँ गुजरल हृदयनारायण छल-प्रपंचसँ कोसो दूर छला। ड्यूटीसँ आबि‍ कपड़ा बदलि‍ स्‍नान-जलखै कऽ, सोफापर लेटि‍ अगि‍ला जि‍नगीक सम्‍बन्‍धमे सोचए लगला। बि‍आह करब, परि‍वार बनाएब। हृदयनारायणक कोठरीमे प्रवेश कऽ रोजी कुरसीपर बैसैत बाजलि-
चि‍न्‍ताक पहाड़क तरमे किए दबल छी?
ूखल मुस्‍की दैत हृदयनारायण उत्तर देलक-
थाकल छी।‍
रोजीक मुस्‍की भरल मधुर स्‍वर हृदयनारायणक हृदैमे चुभए लगल। प्रेमक अँकुड़ अँकुड़ि‍त हुअ लगल। चि‍न्‍ताकेँ दबबैत हृदयनारायण मुस्‍कीअए लगला। रि‍ंग कऽ रोजी नोकरकेँ कौफी आनैक आदेश देलक। नोकर कौफी-सि‍गरेट-सलाइ नेने आएल। जखने हृदयनारायण कौफीक चुस्‍की लऽ कप रखलक आकि‍ रोजी कप-सँ-कप भि‍रा पीबए लागलि‍। कप रखि‍ रोजी दूटा सि‍गरेट सुनगौलक। एकटा हृदयनारायणकेँ हाथमे दऽ दोसर अपने कौफीक संगे पीबए लागलि। पाँच साल पहि‍ने रोजी बी.ए. पास केने छलि‍। पसि‍नगर संगी नै भेटने अखनि धरि‍ अवि‍वाहि‍ते छलि‍। बि‍ना हि‍चककेँ रोजी हृदयनारायणसँ पुछलक-
बि‍आह भऽ गेल अछि‍?
नै‍।‍ परि‍वारमे माता-पि‍ता छथि‍‍।‍
अखनि धरि‍ बि‍आह कि‍एक ने केलौं?
नोकरीसँ पहि‍ने सोचैत रही जे जाधरि‍ अपना पएरपर ठाढ़ नै भऽ जाएब ताधरि‍ बि‍आह नै करब।‍
तीन सालसँ तँ नोकरीओ करै छी?
वएह सोचि‍ रहल छी।‍
हृदयनारायणक हृदैक आँखि‍ रोजीकेँ देखए लगल। औगता कऽ उठि‍ रोजी हँसैत चलि गेलि‍। हृदयनारायणकेँ आरो गप्‍प करैक इच्‍छा छल जे अखनि नै भऽ सकलनि। गामक पछुआएल जि‍नगीकेँ शहरक अगुआएल जि‍नगीमे बदलैक वि‍चार हृदयनारायणक मनमे एलनि। मुदा गंगाजल ताबे धरि‍ गंजाजल रहैए‍ जाबे धरि‍ गंगा नदीक बीच रहैए‍ मुदा वएह अथाह समुद्रमे मि‍ललापर बदलि‍ जाइए‍। एे द्वन्‍द्वमे हृदयनारायण पड़ल-पड़ल सि‍रमापर माथ दऽ कछमछ करए लगला।
दस बजे राति‍क घंटी घड़ीमे टनटनाएल। बाहरक गँहि‍कीक आएब बन्न भऽ गेल। मुख्‍य दरवाजामे ताला लगि‍ गेल। रोजी सि‍गरेटक डि‍ब्‍बा, सलाइ आ ह्वि‍स्कीक बोतल नेने हृदयनारायणक कोठरीमे पहुँच‍‍ गेलि‍। दूटा गि‍लासमे ह्वि‍स्कीक बोतलक मुन्ना खोलि‍ ढारलक। एकटा गि‍लास हृदयनारायणक आगूमे बढ़ा दोसरमे अपने पीबए लागलि‍। दू-दू गि‍लास दुनू गोटे पीब‍ सि‍गरेट पीबए लगल। सि‍गरेटक धुआँ रोजी दि‍स‍ उड़बैत हृदयनारायण पुछलखिन-
हमर परि‍चए तँ बुझलौं अपन कहू?
मुस्‍कीआइत रोजी बाजलि‍-
दू गोट होटल दुनू बहि‍न‍केँ पि‍ताजी देने छथि‍। अपने पि‍ताजी आ भाय लोहाक मि‍ल चलबै छथि‍।‍
अखनि धरि‍ अहाँ बि‍आह किए ने केलौं?
मनगर जोड़ीक अभावमे।‍
केते दि‍न प्रतीक्षा करब?
बरि‍सो-बरि‍स, अखनो।‍
की मतलब?
जौं अहाँ हँ कहि दी तँ लगले भऽ जाएत।‍‍
पि‍तासँ बि‍ना पुछने?
अपन पसि‍नक उपरान्‍त हुनका कहि‍ देबनि‍।‍
जाउ हम तैयार छी, हुनकासँ पूछि‍ लियनु।
दोसर श्रेणीमे सरोजनी आ रमेश मैट्रि‍क पास भेल। नीक वि‍द्यार्थी रहि‍तो रमेश कम अंक पौलक। उत्‍साह आ लगने एहेन जे रमेश पढ़ि‍ सकल। सरोजनी वय:संधि‍क सीमा पार करैत कि‍शोरीक सीमामे प्रवेश करैत‍ रहए। लज्‍जाक आगमन भऽ गेलै। कि‍शोरीक वि‍शेषता सरोजनीकेँ अंग-प्रत्‍यंगसँ हुलकी देमए लगलै‍। अपन रि‍जल्‍टक जानकारी रमेश हरदेवकेँ देमए पहुँचल। ओना सरोजनी पि‍ताकेँ पहि‍ने‍ कहि‍ देने छल।
हरदेव दलानक कुरसीपर ओंगठि‍ कऽ बैस‍ सरोजनीक बि‍आहक सम्‍बन्‍धमे आँखि‍ मूनि‍ सोचैत रहथि‍। मैट्रि‍क पास बेटीले बी.ए. पास बर चाही। घरो अपनासँ दब नै होअए। समए एहेन भऽ गेल जे खर्चक कोनो हि‍साब नै रहत। जमीन्‍दारी चलि गेल मुदा ठाठ-बाठ तँ वएह अछि।
बेटाक रि‍जल्‍ट सुि‍न घुरन हँसैत आबि‍ हरदेवकेँ पुछलकनि-
मालि‍क एना मन्‍हुआएल किए छी?
आँखि‍ खोलैत हरदेव बजला-
नै-नै, मन्‍हुआएल कहाँ छी। सरोजनीक सम्‍बन्‍धमे सोचै लौं। तोराे रमेश तँ बि‍आह करै जोगर भऽ गेलह।‍
मालि‍क बेटा-बेटीक बि‍आह तँ माए-बाप लेल करजे छी। देहक कोन ठेकान तँए जौं भऽ जाएत तँ ऐबेर कऽ लेब।‍
दछि‍‍नबरि‍या घरमे पलंगपर पड़ल सरोजनी अपन भविस दि‍स‍ तकै छलि‍। भैया कलकत्तासँ गाम नहियेँ औता। माए-बाबू रसे-रसे बुढ़े होइत जेता। दुनू गोटेकेँ बुढ़ाड़ीमे के सेवा करतनि‍?‍ अछैते बेटा-बेटी दुख हेतनि‍। रमेश गुरु जकाँ पढ़बैए। माए-बाप नोकर जकाँ सेवा करैए। दुनू गोटेक -रमेश आ सरोजनीक- बीच धन आ जाति‍क अन्‍तर अछि। राजा दशरथोकेँ स्‍त्री तीन जाति‍क छेलथि‍‍। अधर्म कहाँ भेलनि‍। जि‍नगी हँसैत शान्‍ति‍सँ चलए, यएह तँ सबहक इच्‍छा होइ छै। रमेश दि‍ल्‍ली-बम्बइ जा कोठी आकि‍ मि‍लमे नोकरी करत। आइ धरि‍क जे सि‍नेह रहल ओ टूटि‍ जाएत।
हरदेवकेँ गोड़ लागि‍ रि‍जल्‍टक जानकारी दैत रमेश आँगन गेल। सरोजनी घरसँ नि‍कलि‍ आबि‍‍ रमेशकेँ पुछलक-
कौलेजमे नाओं लि‍खाएब आकि नै‍?
पढ़ैक इच्‍छा तँ अछि मुदा...।‍
भगवतीक रूप जकाँ आँखि‍ नि‍आरने सरोजनी कहलक-
रमेश, हम नि‍श्चय कऽ लेलौं जे अहींसँ बि‍आह करब। तखने दुनू परि‍वारक कल्‍याण होएत।‍
सरोजनीक बात सुनि‍ रमेशक करेज डरसँ काँपए लगल। आँखि‍मे डर सन्‍हि‍या गेलै। मुदा सरोजनी बजि‍ते रहल-
दुनू गोटे एम.ए. तक पढ़ि‍, गामेमे हाइस्‍कूल बना शि‍क्षक बनब।‍
कँपैत हृदैसँ रमेश पुछलक-
पि‍ताजी वि‍रोध करता, तखनि?
अपन मालि‍क हम स्‍वयं छी। हुनको बुझैबनि‍। पुतोहु इसाइ भेलनि‍ से बड़ बढ़ि‍याँ। अखनि धरि‍ जाति‍क पहाड़ जे समाजमे बनल अछि ओकरा मेटाएब। जे समाज भूखलकेँ पेट नै भरैए‍, नांगटकेँ वस्‍त्र नै दऽ सकैए‍, बेघरकेँ घर नै बना सकैए‍, मूर्खकेँ पढ़ा नै सकैए‍, लुटैत इज्‍जतकेँ बचा नै सकैए‍, ओइ‍‍ समाजकेँ वि‍रोध करैक कोन अधि‍कार छै‍?
सभ रहलाक बादो समाजमे मि‍लि‍ कऽ रहब आवश्‍यक होइ छै।‍
हँ होइ छै। जे समाज अछि ओ हमरा अहाँ छोड़ि‍ कऽ नै अछि। जे समाज हमरा वि‍चारकेँ महत नै देत ओहो अपन वि‍चार थोपि‍ नै सकैए। तँए समाज सोचऽ जे हमर कल्‍याण केना होएत।‍
सरस्‍वतीक फोटोमे पहि‍रौल फूलक माला धरसँ उतारि‍ सरोजनी रमेशक गरदनि‍मे पहि‍रा देलक।

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