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Friday, October 18, 2013

(33) धर्मनाथ

धर्मनाथ
प्रशासनि‍क सेवाक पच्‍चीस साल पछाति धर्मनाथ एहेन दलदलमे फँसि‍ गेला जइसँ ि‍नकलब कठि‍न भऽ गेलनि‍। सुसम्‍पन्न परि‍वारमे जनम भेने जि‍नगीमे कहि‍यो दुखक अनुभव धर्मनाथकेँ नै भेल छेलनि‍। परि‍वारमे सरबे-सरबा पि‍ता रहथि‍न तँए कोनो पैघ-सँ-पैघ काज उपस्‍थि‍त भेने निपटि जाइन। लोप होइत जमीन्‍दारी बेवस्‍था, ढेरो सम्‍पति‍‍ गाम-सँ-बाहर धरि‍ रहनि‍। चारि‍ भाँइक भैयारी रघुनाथकेँ। चारू भाँइक बीच बँटवारा भऽ गेलनि‍। मंदि‍र, स्‍कूल, खेत, पोखरि‍ सभ बँटा गेलनि‍। भैयारीमे जेठ रहने रघुनाथकेँ पाँच बीघा जमीन जेठौंस तरे भेटलनि‍। रघुनाथकेँ चारि‍ कन्‍या तीन पुत्र। दू कन्‍याक बि‍आह साझीएमे भेल छेलनि‍। बाँकी‍ दुनू कन्‍याक बि‍आहमे आठ बीघा खेत बि‍कलनि‍। घरक वर्तन-बासन आ गहना-जेबर सेहो बन्‍हकी लगि‍ गेलनि‍। तैयो पहुलका अपेक्षा कुटुमैती हल्‍लुके भेलनि‍।
बच्‍चेसँ घर्मनाथ सुशील, सौम्‍य आ कर्मठ, जइसँ आइ.ए.एस. परीक्षा नीक-नहाँति‍ पास केलनि‍। आइ.ए.एस. अफसर बनि‍ते खानदान रूपी वृक्षमे फूल खि‍लल। अखनि धरि‍ परि‍वारमे सरस्‍वतीक अपेक्षा लक्ष्‍मीक सेवा अधि‍क होइत, जे बदलल। खानगी शि‍क्षा सार्वजनि‍क रूपमे बढ़ए लगल। घरक चि‍न्‍तासँ मुक्‍त धर्मनाथ परि‍वारक भविस, मात्र अनुमानसँ करथि। अखनि धरि‍क सेवा (नोकरी) धर्मनाथक इमानदारीक गंगामे बितल। जहि‍ना गंगामे सुरूजक प्रकाश पड़लासँ चमकैए‍ तहि‍ना धर्मनाथक जि‍नगीमे इमान स्‍पष्‍ट झलकै छल।
आरम्‍भमे कम वेतन, छोट परि‍वार धर्मनाथकेँ रहनि‍। आस्‍ते-आस्‍ते धर्मनाथक परि‍वारो बढ़लनि आ वेतनो। पाछू-पाछू महगीओ पछुऔलकनि। बासी बँचए ने कुत्ता खाए। मासक कमाइ मासेमे सठि‍ जाइन। परि‍वारक बजट, धर्मनाथ एहेन बनौने जे वेतनक भीतरे चलैत। मुदा संगी-साथीक बीच पैंच-पालट चलैत। कर्ज लेब आ सूदि‍पर कर्ज देब, दुनूकेँ धर्मनाथ पाप बुझथि‍। हुनक सदि‍खन प्रयास रहनि‍ जे परि‍वार मेहनती बनए। पत्नी समैक उपयोग नि‍अमबद्ध भऽ करनि‍। खाइ-पीबैक वस्‍तुसँ लऽ कऽ नुआ-बस्‍तरपर वि‍शेष धि‍यान राखथि‍‍। कपड़ा साफ करब, आइरन करब, सुइया-डोराक छोट-छीन काज अपने कऽ लइ छेली। पढ़ै-लि‍खैक वातावरण धर्मनाथक क्रि‍या-कलापसँ प्रभावि‍त छल।
सालक मास भरि‍क छुट्टी धर्मनाथ गामेमे सपरि‍वार बि‍तबै छला। छुट्टीए मासक वेतनसँ गाड़ीक मासूलक संग सनेस तक पुरबै छला। रघुनाथ मने-मन सोचै छला जे गामक अज-गज देखि‍‍ धर्मनाथकेँ होइत हेतनि‍ जे कोनो वस्‍तुक कमी नै मुदा बि‍ना खेत बेचने परि‍वारक गाड़ी ससरब कठि‍न अछि‍। जेते खेत बि‍काइ छेलनि‍ ओते उपजो कमि‍ते जाइ छेलनि‍।
नम्‍हर-नम्‍हर घर। कर मरम्‍मति‍ आ रंग-टीप करैमे सेहो अधि‍क खर्च होइ छेलनि‍‍। ढहल-ढनमनाएल हथि‍सार। घोड़ाक घर ओहि‍ना पड़ल जइमे बि‍ढ़नी, मधुमाछी, बादुर खोंता लगौने। कटैया काँट आ अंडीक गाछ सौंसे घरमे जनमल। जौं टुटलाहा घरक पजेबो रघुनाथ बेचि‍‍ लि‍तथि‍ तैयो केते काज ससरि‍ जैतनि‍ मुदा जौं घरक पजेबा बि‍काएत तँ बाँकी‍ए की रहत। घरक आगू झील जकाँ पोखरि‍। पोखरि‍क चारू महारमे चारि‍टा ईंटा-सीमटीक घाट बनौल। पुरान भेने चारू घाट टूटि‍ गेल छल, जइसँ नहाइओ जोकर नै रहल छल। पजेबा गुड़कि‍-गुड़कि‍ निच्चाँ पानिमे छिड़िआ गेल। पएरमे चोट लगै दुआरे लोक नहेनाइए छोड़ि‍ देलक। सौंसे पोखरि‍ समाढ़ आ कुम्‍ही तेना वोन जकाँ भेल जे पैसब मोसकि‍ल। बीघा भरि‍क फुलवाड़ी, जइमे सएओ रंगक फूल लगाैल छल। चारि‍टा नोकर सभ दि‍न फूलेक देखभाल करै छल जे अखनि गाए-महिंस‍क चारागाह बनि‍ गेल।
एक मास अधि‍क छुट्टी लऽ धर्मनाथ गाम एला। मनमे वि‍चारि‍ आएल रहथि‍ जे जेठ बेटीक बि‍आह करब। बेटी आशा बी.ए. आनर्सक परीक्षा देने छलि‍। कन्‍यादान माए-बाप लेल ओहने होइत जेहने बेटा लेल वृद्ध माए-बापक सेवा। उन्नैसम बरख आशा टपि‍ गेल छलि‍ तँए बि‍आह करब आवश्‍यक छेलै। मने-मन धर्मनाथ सोचै छला जे ओहन कार्य उपस्‍थि‍ति‍ भऽ गेल अछि जइ सम्‍बन्‍धमे कि‍छु ने बुझै छी। केना हएत? की करब? कनि‍का कहबनि‍? वि‍चि‍त्र उलझनमे धर्मनाथक मन उलझल रहनि। हमहूँ तँ समाजमे केकरो कोनो उपकार नै केलि‍ऐ तँए कि‍यो हमरे किए करत?‍ गुनधुन करैत कोठरीसँ नि‍कलि‍, असकरे टहलबो करथि आ सोचबो करथि। गामक बेरोजगार युवक सभ, धर्मनाथकेँ बाहर बुलैत देखि‍‍ कि‍यो साइकिलपर चढ़ि‍ तँ कि‍यो मोटर साइकिलपर छींटबला शर्ट-पेंट पहि‍रि‍ केश फहरबैत, बामा हाथे रुमाल साइकिलक हेण्‍डि‍‍लपर पकड़ि‍, मुँहमे सि‍गरेट लगौने धर्मनाथक आगूमे अँठि‍-अँठि‍ कऽ धुँओ उड़बैत आ चक्करो कटै छल। ओना धर्मनाथ मुड़ी नि‍च्‍चाँ केने चलथि मुदा अफसरक आँखि‍ बि‍ना देखने केना रहत। इमानक आँखि‍ रहने धर्मनाथमे कोनो करुआहटि नै अबैत। जे प्रति‍ष्‍ठाकेँ मि‍सि‍ओ डगमगबितनि नै‍। मने-मन यएह होइन जे प्रति‍ष्‍ठा ओहन वस्‍तु छी जे ने केकरो देने होइ छै आ ने केकरो लेने जाइते छै। ओ अपने केने होइ छै आ अपने केने जाइ छै।
गाम एला धर्मनाथकेँ सात दि‍न भऽ गेलनि‍। मुदा अखनि धरि‍ बि‍आहक कोनो चरचो नै भेल। आठम दि‍न धर्मनाथ आशाक बि‍आहक चर्चा पि‍ता लग केलखि‍न। पि‍ता असमंजसमे पड़ि‍ मने-मन सोचए लगला‍ जे अखनि धरि‍ जेहेन खानदानी आ सम्‍पन्न परि‍वारमे कुटुमैटी करैत एलौं, ओहन घरमे एते पढ़ल-ि‍लखल बर भेटब मोसकि‍ल अछि। जौं भेटबो करत तँ खर्चाक इत्ता नै रहत। धर्मनाथ केते खर्च करता से कहबे ने केलनि‍। पुछबनि‍ केना? हमरो तँ पोतीए छी। बोल-भरोस दइक खि‍यालसँ रघुनाथ फोन उठा कुटुमसँ लऽ कऽ दोस-महि‍म धरि‍केँ जानकारी दैत भँजि‍यबैले कहलखि‍न। जि‍नगीक चढ़ा-उतरी रघुनाथक वि‍चार बदलि‍ देलकनि‍। जखनि पहुलका सुख-भोग मन पड़ै छेलनि‍ तखनि आँखि‍सँ नोर टघड़ए लगै छेलनि‍। मुदा पछतेनहि‍ की‍ हेतनि‍। चि‍ड़ि‍या तँ चुकि‍ गेल। जेतबो दि‍न मृत्‍युक शेष छन्हि ओहो केते नि‍च्‍चाँ ढड़कतनि सेहो ठीक नै‍। सि‍रि‍फ एक्केठामसँ एम.ए. पास लड़काक भाँज लगलनि‍ मुदा कुल-मूल दब।
जमा केलहा आ बि‍आह लेल खर्च मि‍ला धर्मनाथ एक लाख रूपैआ लऽ आएल छला। परि‍वारक खर्च पुरौलापर जेतेक बँचैत ओ जौं जि‍नगीओ भरि‍ जमा कएल जाए तैयो आइक युगमे एकटा बेटीक बि‍आह पार लगब कठि‍न अछि।
प्रशासनि‍क काजमे धर्मनाथ दक्ष बूझल जाइत तँए वि‍शेष इज्‍जत रहनि‍। इमान आ चरि‍त्रकेँ बँचबैत धर्मनाथ ऊपर-निच्‍चाँक बीच ताल-मेल बैसा आसानीसँ आँफि‍सक काज नि‍पटा लइ छला। मुदा परि‍वारक काजसँ अनभि‍ज्ञ रहने कि‍छु फुड़बे ने करनि‍। गाम एलापर मने-मन अन्‍दाजैत जे कि‍यो मदति‍ करैबला छथि‍ आकि‍ नै! एकाएक धर्मनाथकेँ पच्‍चीस-तीस साल पहुलका बात मन पड़लनि‍। प्रोफेसर रामरतन, जे वि‍चारवान आ सामाजि‍क लोक सेहो छथि‍, गुरुओ छथि‍, दू साल पढ़ेनौं छथि‍, हुनका जा कऽ कहि‍यनि‍। हमरासँ तँ कहियो हुनका मुहाँ-ठुट्ठी नै भेलनि‍ मुदा पि‍ताजीसँ बक्क-झक्क कहियो काल जरूर होइते रहै छन्हि।
सायंकाल धर्मनाथ राधाकेँ कहलखि‍न-
काकीजी, ऐठाम जा रहल छी। जौं काकाजी -प्रोफेसर रामरतन- भेँट भऽ जेता तँ बात-वि‍चार करैमे अबेरो भऽ सकैए। तँए अनदेशा नै करब।
एक टकसँ राधा पति‍ दि‍स‍ देखैत रहली। चि‍न्‍ता आ परेशानी धर्मनाथक चेहरासँ स्‍पष्‍ट झलकै छेलनि‍, जे देखि‍‍ राधाक नजरि‍ चन्‍द्रमुखी आशापर गेलनि‍‍, जे अखनि धरि‍ दुलार आ सि‍नेहक मूर्ति छलि। अनासुरती कमी बूझि‍ पड़ए लगलनि‍। थलकमल जकाँ। जे सूर्योदयसँ पहि‍ने उज्‍जर रहैए‍ आ रसे-रसे लाल होइत गाढ़ भऽ जाइए‍, तहि‍ना आशाक प्रति‍ बदलैत सि‍नेह राधाकेँ बूझि‍ पड़ए लगलनि‍। मने-मन सोचए लगली। यएह छी आजुक समाज। जे बेटी समाजक बूझल जाइए‍ वएह अगम पानि‍मे गड़गोटियो दैत। गुम-सुम राधा ओसारपर बैस‍ रहली। राधाक खसल मन देखि‍‍ आशा पुछलकनि-
माए, मन किए एते खसल छौ?
अपनाकेँ छि‍पबैत राधा बजली‍-
नै- नै- कहाँ- क...।‍
राधा अपन बेथाकेँ छि‍पबए लगली मुदा मलि‍न मुँह आ बोल‍क ध्‍वनि‍ बेथाकेँ अढ़े-अढ़ नि‍कालै छल।
प्रोफेसर रामरतनक दरबज्जा सुन्न देखि‍‍ धर्मनाथ ठाढ़ भऽ सोचए लगला जे भरि‍सक नै छथि‍। मुदा बि‍ना भाँज लगौने घुमबो उचि‍त नै‍। असगरे धर्मनाथ प्रोफेसर रामरतनक दुआरपर ठाढ़ भेल रहला। थोड़े काल पछाति‍ तीन-चारि‍ गोटेकेँ अबैत देख‍,‍ बोली अकानैत धर्मनाथक हृदैमे अाशा जगलनि‍। एक गाेटेक हाथमे दूधक लोटा रहए। प्रोफेसर रामरतनकेँ देखि‍ते जेना भादवक दुपहरि‍यामे कारी मेघसँ झाँपल सुरूज हवाक सि‍हकीसँ छँटि‍ जाइ छै आ भुक दऽ सुरूज देखि‍ पड़ै छै तहि‍ना धर्मनाथकेँ भेलनि‍। लग अबि‍ते धर्मनाथ प्रोफेसर रामरतनकेँ गोड़ लगलनि‍। धर्मनाथकेँ असीरवाद दैत बाँहि‍ पकड़ि‍ चौकीपर बैसबैत अपने हाथ-पएर धोइले कलपर गेला। पत्नी ि‍चत्रलेखा लालटेन नेसि आँगनसँ नेने एली। चि‍त्रलेखाकेँ देखि‍‍ धर्मनाथ गोड़ लगलनि‍। असि‍रवाद दैत चि‍त्रलेखा बजली-
भगवान, एक-सँ-एक्कैस करथि‍। बौआ, अखनि केतए छी?
चाची, छी तँ बड़ दूर। जनि‍ते हेबै केरल।‍
परि‍वार आनन्‍दसँ रहै छथि‍ किने?
हँ, अपने लोकनि‍क दयासँ सभ आनन्‍द अछि।
बच्‍चा?
तीन भाए-बहि‍न। जेठ बेटी, छोट दुनू बेटा। आशा बी.ए.मे परीक्षा देलक। जेठ बेटा आइ.ए.मे आ छोट मैट्रि‍कमे पढ़ैए।‍
‍आशा बि‍आह करै जोग तँ भऽ गेल हएत। काज केनहि‍ बढ़ि‍याँ?”
अपनो सएह वि‍चार अछि। तखनि तँ...।‍
भगवान थोड़े अधला करता। जे मनमे अछि से हेबे करत। अहाँ सन बेटा भगवान सभकेँ देथुन।‍
चि‍त्रलेखाक बात सुनि‍ धर्मनाथक आँखि‍ सि‍मसि‍मा गेलनि‍ जे नोरक बून बनि‍ नि‍कलए चाहै छल। मुदा धर्मनाथ हाथसँ आँखि‍ पोछि‍ नोर सुखौलनि‍। मुदा बोली फुटि‍ते धर्मनाथक हृदैक बेथा नि‍कलए लगलनि‍। एकाएक धर्मनाथक मनमे एलनि जे एते पैघ पदपर रहनि‍हारकेँ जौं आँखि‍सँ नोर खसै छै जे देशक सभसँ पैघ बूझल जाइए‍। तँ खुशीसँ के रहैत हएत। ताबे प्रोफेसर रामरतन चापाकलपर सँ हाथ-पएर धाेइ खराम पटपटबैत दरबज्‍जापर एला।
चाहो बनल। लोटामे पानि‍ नेने चि‍त्रलेखा एली। गि‍लासमे लोटासँ पानि‍ ढारि‍ धर्मनाथकेँ देलखि‍न। एक गि‍लास पानि‍ पीब‍ धर्मनाथ चाह पीबए लगला। प्रोफेसर रामरतन चाहक चुस्‍की लैत धर्मनाथकेँ कुशल पुछलखि‍न। कुशलक क्रममे धर्मनाथ आशा बि‍आहक चर्च केलनि।
प्रोफेसर रामरतन कहलखिन-
केकर बाँकी रहलैए जे अहाँक नै हएत।‍
चाचाजी, समाजसँ तँ सभ दि‍न हटल रहलौं। जि‍नगीक पहि‍ल काज छी तँए अगम-अथाह बूझि‍ पड़ैए।‍
मुड़ी डोलबैत रामरतन बजला-
हँ, ठीके कहलौं। अहाँ हमर समाजे नै छात्रो छी तँए अहाँक बेटी की हमर बेटी नै‍?
प्रोफेसर रामरतनक वि‍चार सुि‍न धर्मनाथक हृदैमे आशाक अँकुड़ उदि‍त हाेअए लगलनि‍। जहि‍ना धारामे भँसैतकेँ कि‍छु सहारा भेटलापर खुशी होइ छै तहि‍ना धर्मनाथोकेँ भेलनि‍। पच्‍चीस-तीस बरख पहुलका रूप प्रोफेसर रामरतनक धर्मनाथक हृदैमे ओहि‍ना नाचए लगलनि‍। धर्मनाथ जि‍नगीक ओइ‍ चौबट्टीपर आबि‍ ठाढ़ भेल छला, जैठामसँ आगूक रस्‍ता की हएत से बुझबे ने करथि। अपन बेथा बेक्‍त करैत धर्मनाथ कहलखि‍न-
‍दू मासक छुट्टी लऽ कऽ एलौं जे बेटी बि‍आहक प्रक्रि‍या पूरा कऽ घूमब। मुदा आठ दि‍न ओहि‍ना बीति‍ गेल।
सभ काज हँसी-खुशीसँ सम्‍पन्न भऽ जाएत आ समैपर चलि‍ओ जाएब। बीचमे कि‍छु प्रश्न अछि। अखनि धरि‍ जमीनदार खनदानमे रहलाैं, जेकर पतन भऽ गेल। सि‍रि‍फ ओकर ढाँचा ठाढ़ छै। जे उदीयमान अछि ओइ‍‍ दि‍शामे बढ़ब बुधि‍यारी होएत।‍
अपनेक ऊपर बि‍आहक भार दए रहल छी तँए कोनो तरहक मान-अपमानक प्रश्न मनमे नै अछि।
दहेज वि‍रोधी हम सभ दि‍न रहलौं जेकरे चलैत अहाँक पि‍ताजीक संग मतभेद रहल। मतभेदोक उपरान्‍त कहियो कोनो अधला केलौं, शायद मन नै अछि। आशा हमर बेटी छी। कन्‍यादान हम करब!‍
जोशमे बजैत प्रोफेसर रामरतन उठि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेला।
अन्‍हरि‍या राति‍क दुआरे राधा बेटा-बेटीक संगे प्रोफेसर रामरतन ऐठाम एली। दरबज्‍जासँ थोड़े फरि‍क्के रहथि‍ आकि‍ प्रोफेसर रामरतनकेँ जोरसँ बजैत सुि‍न ठाढ़ भऽ अकानए लगली। मुदा कोनो अनर्गल बात नै सुनि‍ सभ दरबज्‍जाक आगू एली। दरबज्‍जा लग चारू गोटेकेँ देखि‍‍ प्रोफेसर रामरतन पुछलखि‍न। धर्मनाथक परि‍वार सुनि‍ते प्रोफेसर रामरतन उठि‍ कऽ चारू गोटेकेँ आँगन लऽ जा पत्नीकेँ कहलखि‍न-
जल्‍दी हि‍नका सभकेँ खुआउ। बि‍ना खेने केना जाए देबनि‍?
चारू गोटेकेँ चि‍त्रलेखा रोटी-तरकारी खुऔलनि‍।
प्रोफेसर रामरतनक ऐ‍ठामसँ घुमैकाल धर्मनाथ पत्नीकेँ कहलखि‍न-
जहि‍ना आशा बि‍आहक चि‍न्‍तासँ हृदए थरथराइ छल तहि‍ना चाचाजीक आश्वासनसँ मन हल्‍लुक भऽ गेल। ओ सभ भार लऽ लेलनि‍।‍  
हँसैत राधा कहलखि‍न-
ि‍नर्बलकेँ बल राम होइ छै। नीकक फल कखनो अधला नै होइ छै। थोड़े काल लेल सामाजि‍क परि‍वेशमे भाइओ जाइ छै मुदा ओकर परवाह मनुखकेँ नै करैक चाही।‍
प्रोफेसर रामरतन दीनानाथसँ बि‍आहक सम्‍बन्‍धमे सभ बात केलनि‍। दीनानाथक बेटा एम.ए. कऽ पेट्रोल पम्‍प चलबैत। एकटा मैक्‍सी, भाड़ामे सेहो चलबैत। खेत तँ बहुत नै मुदा पाँच कोठरीक पक्का मकान आ घराड़ीओ नमगर-चौड़गर। दीनानाथ हि‍न्‍दुस्‍तान मोटर कम्‍पनी कलकत्तासँ रि‍टायर भऽ गामेमे लेथ मशीन चलबैत। अपने पुरान मैकेनि‍क। आशा आ श्‍यामक बीच बि‍ना दहेजक बि‍आह पक्का भऽ गेल।
बि‍आहसँ पहि‍ने‍ समाचार पसरि‍ गेल। रघुनाथक कानमे समाचार पहुँचल। समाचार सुनि‍ एहेन चोट लगलनि‍ जे एकाएक अचेत भऽ गेला। होश होइते‍ सोचए लगला‍। एक दि‍स‍ प्रोफेसर रामरतनक अगुआइमे बि‍आह होएत जे पुश्‍तैनी दुश्‍मन। दोसर जमीन्‍दारीक ठाठ-बाठकेँ पानि‍मे धर्मनाथ फेक‍ रहल अछि। ओछाइनपर पड़ल रघुनाथ पत्नीकेँ कहलखि‍न-
जइ आशासँ धर्मनाथकेँ पढ़ेलौं, सभ पाि‍नमे चलि गेल।‍
पत्नी पुछलकनि-
कि‍ए एते करुआएल छी?
‍बोली करुआएल अछि? होइए जे लोढ़ीसँ कपार फोड़ि‍ मरि‍ जाइ।
‍एना बताह जकाँ किए बजै छी?”
हम बताह नै छी, करेजमे चोट लगल अछि। एक क्षण ऐठाम रहब पहाड़ बूझि‍ पड़ैए। जाबे धर्मनाथ रहत, हम एे घरमे नै रहब। चलू, कल्हि‍ए दुनू परानी काशी। ओत्तै रहब। बाप-दादाक प्रति‍ष्‍ठाकेँ पानि‍मे फेक‍ देलक। तखनि जीवि‍‍‍ए कऽ...।
बड़ीटा दुनि‍याँ छै, नै हरि‍अर गाछ भेटत तँ सूखलो गाछ तँ भेटबे करत। आेतै रहब।
पति‍क बात सुनि‍ पत्नीक मनमे एलनि‍, बीचमे हम की कऽ सकै छी। माथपर दुनू हाथ दऽ ओसारपर बैस‍ गेली।‍ दुनू आँखि‍सँ नोरक टघार चलए लगलनि‍। असकरे रघुनाथ ओछाइनपर पड़ल बड़बड़ाइत रहला। बड़बड़ाइत-बड़बड़ाइत बोम फाड़ि‍ कानए लगला। रघुनाथक कानब सुनि‍ चारू कातसँ लोक दौगल आएल। डाक्‍टर बजौल गेल। जाँचि‍ कऽ डाँक्‍टर कहलखि‍न-
दि‍मागक नस फटि गेलनि‍। अखने लहेरि‍यासरए लऽ जैयनु।
गाममे हल्‍ला भऽ गेल जे रघुनाथ बाबा मरि‍ गेला। जनि‍जाति‍‍ सभ अपनामे गप्‍प करैत‍ जे रघुनाथ बाबाकेँ भूत लगि‍ गेलनि‍। नवकी कन्‍या सभ बाजए लगली-
‍बाबाकेँ चुड़ीन लगि‍ गेलनि‍...।
धि‍या-पुता सभ थपड़ी बजा-बजा नचबो करैत आ बजबो करैत-
‍बाबा मुइला पुड़ी-जि‍लेबीक भोज खाएब।

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