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Friday, October 18, 2013

(24) भाइक सि‍नेह

भाइक ि‍सनेह

बारहसँ बेसी राति‍ ढहि‍ चुकल मुदा एक नै बजल छल। अगहन मासक अन्‍हरि‍याक चतुर्दशी। एक तँ डम्‍हाएल अन्‍हार तैपर झक्‍सी जकाँ ओस खसैत। आँखि‍क रोशनी एते दुबरा गेल जे अपनो देह भरि‍ नै देखि‍ पबै छेलौं। जाड़क राति‍, तँए लोक सबेरे सीरक सेरि‍या कऽ ओछाइन पकड़ि‍ लइ छल। पहि‍ल नीन पूरि कऽ टुटिते शि‍ष्‍टदेवक मन छोट भाए वि‍चारनाथपर पहुँचल। सभ तरहेँ श्रेष्‍ठ रहि‍तो आँखि‍क सोझहेमे परि‍वार टूटि‍ गेल। जि‍नगी तँ ओहन जाल नै‍, जइमे ओझराएब अनि‍वार्य अछि। वि‍धाता तँ सभ कि‍छु दऽ मनुखकेँ पठबै छथि‍न तहन किए लोक मकड़ा जकाँ अपने करनीसँ ओझरा जाइत अछि। वि‍वेकमे केना भूर भऽ जाइ छै जे हंस नै बनि‍ कऽ कार-कौआ बनि‍ जाइत अछि। परि‍वार भलहिं फूट भऽ गेल हुअए मुदा वि‍चारनाथ तँ छोटे भाए छथि‍। पि‍तातुल्‍य छि‍ऐ। कि‍यो बुझै वा नै बुझै, अपने तँ जरूर बुझै छी। अखनि धरि‍ जेते दुनि‍याँ आ उगैत सुरूजक दर्शन हमरा भेल अछि ओतेक तँ वि‍चारनाथकेँ नहियेँ भेलैहेँ। परि‍वार टुटैक दोख केकरा लगतै। पि‍तातुल्‍य तँ प‍रि‍‍वारमे हमहीं छि‍ऐ। मनुखक जि‍नगीक गाड़ी समैक संग चलैत आएल अछि आ आगुओ चलि‍ते रहत। सोचैत-वि‍चारैत शि‍ष्‍टदेवक हृदए बर्फ जकाँ पिघलि‍-पिघलि‍ पानि‍ हुअ लगल। पि‍पनीमे अँटकल नोरक बून सरस्‍वती नदीक धार जकाँ पहाड़पर सँ समतल भूमि‍मे बहए लगल। नोरक संग भाइक सि‍नेह सेहो नि‍कलल। जि‍नगीक सभ बाटमे वि‍चारनाथ पाछू अछि तँए ओकर बाँहि‍ पकड़ि‍ आगू खि‍ंचबाक अछि। पाँच समांग कमेनि‍हारक परि‍वार अछि। ओ दुइए परानी अछि। घरक कोनो वस्‍तु नि‍कालि‍ कऽ देलासँ पत्नी देखि‍ लेती मुदा खड़िहाँनक धानक बोझ तँ नै ने देखती।
बि‍नु ठेकानल राति‍मे वि‍चारनाथक नीन सेहो टुटल। नीन टुटिते मनमे उठलै जे जइ भैयाक संग चंदेसर, वि‍देसर, जागेसर महादेव स्‍थान संगे जाइ लौं। की बेटो-भाति‍ज संगे जाएत? एहेन टूट परि‍वारमे केना। भेल? जहि‍यासँ ज्ञान-पराण भेल तहि‍यासँ जहि‍ना भैयाक संग रहैत एलौं, भीन होइसँ पहि‍नो धरि‍ तँ ओहि‍ना रहलौं। मुदा कोन रोग परि‍वारमे के‍म्‍हरसँ घुसि‍ आएल जे दुनू भाँइ महिंस‍क सींग जकाँ भऽ गेल छी। मुदा भैयाक दोख कहाँ केतौ छन्हि। दू परि‍वारसँ दुनू दि‍यादि‍नी आबि‍ दुनू भाँइकेँ दू दि‍याद बना देलक। दुनू भाँइमे जेठ-छोटक बेवहार कहाँ अछि। दुनू भाँइ तँ भैये-बच्‍चा छी मुदा दि‍यादि‍नीमे से कहाँ छै? माएतुल्‍य भौजीक दोख केना लगेबनि‍ मुदा की ओ छोट दि‍यादि‍नीकेँ छोट बहि‍न बुझै छथि‍न‍...?
मनुक्‍खोक अजीब गति‍ अछि। जाधरि सम्‍मि‍लि‍त परि‍वार रहैए ताधरि‍ दुनि‍याँक सभ रोग परि‍वारकेँ पकड़ने रहै छै मुदा परि‍वार टुटिते रोग पड़ा जाइ छै। खैर जे होउ, जाधरि‍ जीबै छी ताधरि‍ भैयाकेँ भैये बुझबनि‍ भलहिं ओ जे बुझथि‍। जहि‍ना आमक वंश बढ़ैक दू रस्‍ता अछि। डारि‍सँ गाछ जोड़ि‍‍ जे कलम बनैए‍ से पुन: वएह आम रहैए‍ मुदा आँठीक जनमल गाछ दि‍नानुदि‍न रूप बदलैत, सभ कि‍छु बदलि‍ लैत अछि। एक ि‍हस्‍सा रहि‍तो भैयाकेँ पाँच गोटे खेनि‍हारो छन्हि आ तीनू भाए-बहिन‍केँ पढ़बैओमे खर्च होइ छन्हि। हमर तँ नापल-जोखल अढ़ाइ गोटेक परि‍वार अछि। एक सम्‍पति‍‍मे भैयाक दोबर खर्च छन्हि। सहोदर रहैत जौं भैयाक दुख हम नै बुझबनि‍ तँ आन थोड़े बुझतनि‍? जइ धरतीपर राम-लक्ष्‍मण सन भैयारी भऽ चुकल अछि, की हम ओइ धरतीपर जनम नै लेने छी।
चुपचाप ओछाइनपरसँ उठि‍ खड़िहाँन जा धानक जाकमे सँ एक बोझ उठा भाइक खड़िहाँन दि‍स वि‍दा भेल। तैकाल शि‍ष्‍टदेवो अपना खड़िहाँनसँ धानक बोझ उठा‍ वि‍चारनाथक खड़िहाँन दि‍स चलल। दुनू भाँइक खड़िहाँनक मुँह दू दि‍स रहने कि‍छु क्षणक रस्‍ताक दूरी बनि‍ गेल। बीच बाटपर दुनू दि‍ससँ दुनू भाँइ बोझ उठौने एक दोसराक आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। मुदा अन्‍हार राति‍क दुआरे कि‍यो केकरो चि‍न्‍हलक नै‍। दुनूक मनमे चोरक शंका भेल। मुदा हल्‍लो केना करत? अखनि तँ दुनू चोरे छल। भलहिं अपने धान किए ने छेलै। मक्‍खन चोर कृष्‍ण तँ नै छल जे चोरा कऽ खाइयौ लैत आ झूठ बाजि‍ छि‍पाइओ लि‍तए। खरहोरि‍क कड़ची जकाँ दुनू भाँइ सजीव रहि‍तो नि‍र्जीव आ नि‍र्जीव रहि‍तो सजीव ठाढ़ रहल। मुँहमे बोल नै‍, आँखि‍मे नोर नै। अमरलत्ती जकाँ दुनूक हृदए ओझरा कऽ लटपटा गेल। एक क्षण लेल जेना सरस्‍वती नदीक धार बहब छोड़ि‍ असथि‍र भऽ मोटाए लगल।
मुड़ी उठा शि‍ष्‍टदेव अकास दि‍स तकलक। उतरे-दछि‍‍ने डगहर आ माथसँ कनेक नि‍च्‍चाँ सतभैंयाकेँ पच्‍छि‍‍म दि‍स हि‍या-हि‍या कऽ देखए लगल। सतभैंयापर सँ नजरि‍ नि‍च्‍चे ने उतरैत। तैकाल उतरबरि‍या गाछपर चकबी-चकेबाक झुण्‍ड देह डोलबैत भोरक इशारा करैत बोली देलक। चकवीक अवाज सुनि‍ते शि‍ष्‍टदेवक मनमे आएल, हो-ने-हो, कहीं पत्नी जागि‍ नै गेल होथि‍। मुड़ी नि‍च्‍चाँ करिते‍ मुहसँ फूटलै‍-
के?
बोलीक अवाज अकानि‍ वि‍चारनाथ उत्तर देलक-
हम।‍
‍हम सुि‍न शि‍ष्‍टदेवक मन कहलकै भाय वि‍चारनाथ छी मुदा- तर्क कहलकै एत्ती राति‍ कऽ बोझ उठौने केतए जाइए? ताड़ीओ-दारू तँ नहियेँ पीबैए जे पसिखाना जाइत होएत आकि‍ भट्ठीखाना। सामंजस्‍य करैत मुहसँ बाजल-
बौआ।‍
भैया।‍
दुनूक मुँह एक्केबेर बाजल-
हँ।‍
शि‍ष्‍टदेव दोहरौलक-
एहेन काजर सन कारी राति‍मे बोझ केतए नेने जाइ छहक?
जहि‍ना कारि‍खकेँ सि‍नेह हृदए लगा चमक आनि‍ दैत आ आँखि‍क गुण बढ़बैत तहि‍ना वि‍चारनाथक हृदए चमकल-
भैया, अहाँक खर्च देखि‍ मन कहलक जे पाँच बोझ धान दए अबहुन।‍
दुनू भाँइक मनमे उठल-
भीन किए...?
जाधरि‍ सदनदेव आ श्रद्धावती जीबैत रहथि‍ ताधरि‍ स्‍वर्गक परि‍वार छेलनि‍। अपन अमलदारीएमे सदनदेव दुनू बेटाकेँ गामक स्‍कूल धरि‍ पढ़ा बि‍आह-दुरागमन करा जि‍नगीक लीलासँ नि‍चेन भऽ गेल छला। सोलह बीघा जमीनक कि‍सान परि‍वार, बाढ़ि‍-रौदीक बीच रहि‍तो दोसराक सेवाकेँ कर्ज बूझि‍ अपन परि‍वारकेँ सालक आमदनीक भीतरे खर्च कऽ रखि‍ उगरल आमदनीसँ काति‍क मास भागवत आ भोज कऽ अगहनसँ नव जि‍नगीमे पएर रखै छला। ने बेटाकेँ कि‍छु अढ़बै छला आ ने पत्नीकेँ। अढ़बैक प्रयोजने नै रहनि‍। परि‍वारकेँ संस्‍था बूझि‍ अपन-अपन समैक उपयोग शक्‍ति‍क अनुकूल सभ कि‍यो काजमे लगबैत रहै छला। अपने अनुकूल परि‍वार देखि‍ सदनदेव दुनू भाँइक बि‍आह केने छला। शि‍ष्‍टदेवक बि‍आह बीस बीघाबला लालबाबूक परि‍वारमे आ वि‍चारनाथक बारह बीघाबला श्रमदेवक परि‍वारमे भेलै।
तैसमए महि‍ला शि‍क्षा अबैध रहने कैकेयी सेहो नि‍अमक पालन करैत रहली। जइसँ पि‍तो -लालबाबू- खुश भेला। माल-जाल पोसैले एकटा नोकर छेलै आ खेती जने-हरबाह हाथे होइ। अँगनाक मालि‍क पत्नीए रहनि‍। खाइ-पीऐक चहटि‍ पत्नीकेँ नैहरेसँ लगल रहनि जइ दुआरे बेटी-पुतोहुकेँ रहि‍तो भानस अपने करै छेली। गठुलासँ बेटी जारनि‍ आनि‍ दइ छेलनि‍ आ घरसँ वर्तन-बासन आनि‍ पुतोहु चूल्हि‍‍‍ लग दऽ दन्‍हि‍। अपने तँ तरकारीए बनबए, चाउरे फटकए आ दालि‍एक खोंइचा बीछैमे पसेना पोछैत रहै छेली। चूल्हि‍‍‍क एक भाग पुतोहुकेँ आ दोसर भाग बेटीकेँ बैसा बीचमे अपने बैस‍ सभ दि‍न नैहरक खि‍स्‍सा सुनबै छेली जेकरे चलैत, ने बेटी परबाबाक नाओं आ ने ददि‍या ससुरक नाओं पुतोहु बुझै छेलनि‍।
बाढ़ि‍क उपद्रवसँ परि‍वार चलब कठि‍न बूझि‍ श्रमदेव पितियौत भायकेँ सातो बीघा खेत सुमझा परि‍वारक संग कलकत्ता चलि‍ गेल। माए-बापक संग साते बर्खक दमयन्‍ती सेहो चलि‍ गेली। रि‍सरा जूट मि‍लमे श्रमदेव नोकरी ज्‍वाइन केलक। पक्का आठ घंटाक ड्यूटी। रस्‍ताक समए श्रमि‍कक। डेराक बगलेक स्‍कूलमे दमयन्‍तीक नाओं लि‍खा देलक। संगी-साथी सभसँ पँइच रूपैआ लऽ कऽ दस कि‍लो दूधवाली गाए कीनि‍ पत्नी लेल सेहो काज ठाढ़ कऽ लेलक। बच्‍चेसँ माने साते बर्खसँ दमयन्‍ती थैर-गोबर करैत‍-करैत‍ गाए पोसनि‍हारि‍ भऽ गेली‍। आठ बरख नोकरीक उत्तर मि‍लमे वेतन लेल श्रमि‍क सभ हड़ताल केलनि‍। मि‍लमे ताला लटकि‍ गेल। नोकरीक डगमगाइत स्‍थि‍ति‍ देखि‍ श्रमदेव अपन अर्जल सभ कि‍छु बेचि‍ पुन: घर घूमि‍‍ गेल। सस्‍त जमीन रहने पाँच बीघा जमीनो आ तीनटा गाएओ कीनि‍ दोहरी काज ठाढ़ केलक।
समैक संग चलि‍ दुनू भाँइ शि‍ष्‍टदेव सेहो परि‍वारक गाड़ीकेँ पटरीपर चढ़ा अपन गति‍ए चलबैत रहल।
अँगनाक मालि‍क कैकेयी आ सहयोगीक रूपमे दमयन्‍ती रहए लगली। जेठ होइक नाते कैकेयी मुँहक बले जुइतो चलबए लगली आ हाथ-पएरकेँ अारामो दिअ लगली। यएह आराम काल भऽ भीन करौलकनि। से केतेक उचि‍त? मुदा दुनू भाँइक बीचक सि‍नेह पुन: एकाकार कऽ देने छल।

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