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Friday, May 31, 2019

थैंक्यू पापा_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


थैंक्यू पापा
चारि बजे भोरेसँ धीरज भाय जे किछु कऽ रहला अछि, माने नित्य कर्म ओ हाथ-पैरसँ कऽ रहला अछि आ ठोर पटपटबैत भगवानोक नाम लऽ रहला अछि...। भाय, एकरा अहाँ शंकराचार्यक अद्वैत नहि बुझब। कोसी प्रोजेक्टक कार्यालयसँ सेवा निवृत्ति बड़ाबाबू छैथ। जहिना अपन काम-धाममे लागल धीरज भाय मने-मन तृप्त रहै छैथ तहिना खुशीसँ उधियाइतो तँ रहबे करै छैथ। औझुका उधियाइक कारण छैन जे बेटा आइ मेडिकलक अन्तिम परीक्षा दिअ जा रहल छैन। ओना, होस्टलक विद्यार्थी अनुप, जे अपन ऐगला खेबा-खर्चाले काल्हियेँ गाम आएल।
मासे-मास अनुप अपन खर्चा लइले अबिते अछि तँए परिवारमे कोनो हलचल नहियेँ छल। धीरज भाय सेहो मने-मन बुझिये रहल छला जे सभ मास जहिना अनुप अबैए तहिना आएल अछि। ओना, धीरज भाय किसान-परिवारक लोक सभ दिन रहला, बीचमे नोकरीसँ सेवा-निवृत्त भेला पछाइत फेर अपन वृत्तिसँ किसानी जिनगी धारण कइये लेलैन अछि। दू साल पहिनहि नोकरीसँ सेवा-निवृत्त भेला। 
धीरज भाइक जिनगीक स्वर्णकाल ओ छेलैन जखन कोसी नहरक खुनाइ चलै छल। ऑफिसोक ओ चुहचुही आब कहाँ रहल जे ओइ समय छल। भरि दिन प्रणाम-पाती आ भोज-भात चलैत रहै छेलैन। ओइ संस्कारमे धीरज भाइक नोकरीक आधा समय बीतल छेलैन। नोकरी शुरू केलाक नअ बर्खक पछाइत अनुपक जन्म भेल। विभागो–जल-सिंचाई विभाग–आ विभागक कार्यालयो सबहक नीक चला-चलती छेलैहे। नोकरी शुरू केलाक तीन सालक पछाइतसँ धीरज भाय सौनक बरखा जकाँ पाइयक बर्खातर पड़ि गेल छला। एक दिस ठिकेदारीक तँ दोसर अस्थायी बहाली आ तेसर दिस दिल्लीक कार्यालयसँ लऽकऽ जिला कार्यालयक कार्यकर्त्ता सबहक आबाजाही रहने खेबा-पीबा-रहबाक ओरियान करैक जिम्मा धीरजे भायपर रहै छेलैन, जइसँ ऊपर-सँ-निच्चाँ तकक कर्मचारीसँ सम्बन्ध बनियेँ गेल छेलैन। ऐसँ एते बिसवास तँ बनियेँ गेल छेलैन जे जँ हरिद्वारसँ गंगासागर देखैत रहब तँ कोनो वैतरणी टपि सकै छी।
पाइयक आमदनीक चढ़ाउ समय, तँए धीरज भाइक मन सेहो चढ़िये गेल रहैन। अनुपक छठियार दिन चुपे-चाप पत्नीक दर्दमे मलहम लगबैत फुस-फुसा कऽ कहबे केने रहथिन जे ई बेटा तँ तेहेन लाल हएत जे कमाल करि कऽ देखौत।कबीरक जे पहिल चेलबा कमालरहैन से कमाल नहि, ऐठाम धीरज भाइक बेटा अनुपक प्रति अछि। सरकारी योजनाक क्रियान्वित केनिहार धीरज भाय, अपनो परिवारक योजना ओही रूपमे बनबै छला। जइसँ अनुपक पढ़ाइक ओरियान बच्चेसँ ओहन विद्यालय सभमे कएल गेल जे ग्रामीण परिवेशक कोन बात, बजरूओ परिवेशमे अगुआएल छल। माने हाइ लेभेलक।
नित्यकर्मसँ निवृत्ति भऽ धीरज भाय बेटाक खर्चक ओरियान केने दरबज्जापर बैसल-बैसल अपन जीवनक समीक्षा करए लगला। भाय रचनाकारक रचनामे ने गोल-माल हएत जे कखनो प्रिंटक दोख तँ कखनो बुझैक दोख तँ कखनो बुझबैक ढंगक दोख तँ कखनो किछु तँ कखनो किछु कहि दुतकारि लेल जाइए। मुदा जीवन तँ से नहि छी, ओ तँ हर ब्रह्मक अपन-अपन सिरजन छी, रचना छी तँए अपन रचनाकेँ अपने समीक्षा करबसँ नीक भइये की सकैए। सेवा निवृत्त धीरज भाय, तहूमे मन तेते विचलित भऽ गेल छैन जे एकठाम असथिर रहिते ने छैन। कखनो किम्हरो तँ कखनो किम्हरो डोलिये रहल छैन। डोलैत-डोलैत बिसवास एते टुटि गेल छैन जे अपनोपर बीराने जकाँ बिसवास रहै छैन। तँए अपन समीक्षो करब कठिन भइये गेल छेलैन। मुदा तैयो धीरज भाय जी-जाँति कऽ पराती जकाँ असगरे गाबि रहल छैथ। पराती गीतक एक ओहन विधा छी जेकरा लोक जाड़क भोरमे बेसी आ आन मौसममे कम गबै छैथ। ओना, अखनो ओहन ठकुरवारी सभ अछियो जैठाम पराती गबैक नियमित समय सालो भरि रखनहि छैथ। नीक बात, जैठाम ढोल-डम्फ, लॉडस्पीकरसँ जगौल जाइए तइसँ परातीक जगाएब नीक भेबे कएल। मुदा ओ पराती गबैक विधान की अछि। असगरे ओछाइनपर बैस कोकिल कण्ठसँ जन-जनकेँ जगाएबे ने भेल। ने साज-बाजक जरूरत आ ने दोसराइत-तेसराइत पलगाँइक खगता।
जननक प्रक्रियाक सुख-दुख आ दुख-पीड़ा सभ जनानीकेँ बुझले रहै छैन, जानले-मानले रहै छैन। तँए बिसवासक मलहम-पट्टी मनमे भेले रहै छैन। समयानुसार चंगा हेबे करै छैथ, बुझलमे अगुताएब की। मास दिनक पछाइत जखन भौजी–धीरज भाइक पत्नी–धीरज भायकेँ पुछलकैन- अपन लाल केहेन कमाल करत?’ तँ मुँह फोरि धीरज भाय बिसवासक संग बजला-
“अनुप डॉक्टर बनत।”
धीरज भाइक मन आइ डोल-पत्ता भऽ रहल छैन। जइसँ नख-सिखक विचार नहि उठि सिख-नखक भाव मनमे जगने मन तरसए लगलैन। तरसैत मनक बीच एकाएक विवेक बरैस गेलैन- केकरा-ले एते केलौं..!
ऑफिसोक ओ चला-चलती धीरज भाइक जिनगीमे नोकरीक अदहे समय बितलैन। जइसँ चढ़न्त जिनगीमे अनेको मोड़ आबिये गेल छेलैन।
एक तँ सेवा-निवृत्तिक आमदनी, जे जीवन-पद्धतिकेँ एक्केबेर अदहा-अदही कइये दइए, तैपर परिवारमे उठल विवाद सेहो छेलैन्हे। चारू बेटाक बीच बटबारा भऽ गेल छेलैन। मुदा तैयो अनुपकेँ पढ़ा धीरज भाय जी-जाँति कऽ समाजमे अपन कीर्त्ति स्थापित कइये लेलैन। जइसँ मनमे संकल्पक कल्प सेहो जगलैन। जिनगीक नाह भलेँ भँसिया गेलैन मुदा डॉक्टर बेटा गढ़निहार समाजमे पहिल कुम्हार भेबे केलौं किने। मन बिहुसलैन। बिहुसलैन ई जे ब्रह्मचारी जीवनक अन्तिम विदाइये ने अनुपक भेल। आठम दिनसँ परीक्षा छिऐ
तहीकाल अनुप अपन कोठरीसँ निकलल कि धीरज भाय दरबज्जापर सँ उठि हाथमे रूपैआ नेने अनुपक आगूमे ठाढ़ भेला। तैबीच अनुप पिताकेँ ठढ़िया प्रणाम कइये नेने छल आ माइयोसँ असिरवाद लइये नेने छल जे एते-दिनक आस-बिसवास तोहर हम छेलियह आब तों हमर भेलह। जेकरा अनुप मुस्कुराइत अंगीकार केलक। मुदा केतेक अंगीकार केलक से तँ वएह जानत।
ओना, धीरज भाइक जे जीवन अखन बनि गेल छैन ओ पाइक पियासल भइये गेल छैन मुदा जिनगियोक तँ अपन व्रत-संकल्प होइते अछि। पाइयक पियासकेँ धीरज भाय मरूभूमि इलाकामे बसनिहार मोर जकाँ मनेमे मोड़ि मुस्की ठोरपर लऽ अनने छला।
पिताक हाथसँ पाइ अपना हाथमे लैत अनुप बाजल-
थैंक्यू पापा..!”
बेटाक मुहसँ थैंक्यूसुनि धीरज भाइक हृदय चूर-चूर भऽ गेलैन। तैबीच अनुप सेहो आगू बढ़ि गेल छल आ पत्नी सेहो ऑंगन चलि गेल छेलैन। दरबज्जाक चौकीपर आबि बैसते धीरज भाइक मन फुटलैन- यएह छी जीवन..!”
जे जीवन अखन धरि प्रणाम-पातीसँ लऽ कऽ भाए-भैयारीमे बीतल अछि, ओहन जीवनकेँ गतिमान बना सकै छी? आइ हम अपन बेटाक ऋृणसँ जरूर उऋृण भऽ रहल छी, तैसंग बेटा अपन कन्हापर भार उठबैक स्थितिमे सेहो आबि गेल अछि। तैठाम जँ बेटाकेँ एतबो ठेकान नहि अछि जे थैंक्यूशब्द छी की। केकरो नाँगैर केकरो मुँहमे सटा पशुक जँ रूपे बदैल दिऐ, ई दीगर भेल!
अन्तो-अन्त धीरज भाइक मन ऐठाम आबि अँटैक गेलैन जे दुनियेँ छी, अरबो-खरबो जीवन अछि, तही बीच ने अपनो जीवन अछि, तइले तँ एतबे लूरिक ने काज अछि जइसँ अपने जीबैक लूरि भऽ जाए।  
q शब्द संख्या : 965, तिथि : 24 फरवरी 2019

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