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Friday, May 31, 2019

चितवनक शिकार_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


चितवनक शिकार  
आइ गणेश जन्मोत्सवक दिन छी। गणेश जन्मोत्सवक उमंगक संग-संग चितवनक शिकारक दिन सेहो छी। रंग-रंगक शिकारी शिकार खेलए निकलबे करता। की राजा, की परजा, की धनीक, की गरीब, की बुधियार, की बुड़िबक, की लूल्ह-नाँगर की हरगर-कटगर देहबला.., सबहक मनमे जहिना उत्साहक संग-संग उमंग जगल छैन तहिना शिकार पकड़ैक बिसवासो छैन्हे। औझुका दिन वएह दिन छी जे शिव-पार्वती कहियौ आकि गौरी-शंकर कहियौ, जहिना अपन बिआहक समय गणेशक पूजन केने रहैथ तहिना...।
चितवन ओहन वन अछि जे धरतीसँ अकास धरि पसरल सेहो अछि आ उसरलो तँ अछिए। ओना, केते गोरे ईहो बुझै छैथ जे चितवन ने धरतीएपर अछि आ ने अकासेमे अछि। खाएर जे अछि ओ तँ भूगोल पढ़निहार सभ अपन सीमा बनौता जे चितवन केतए मानब। अकासमे मानब कि धरतीपर मानब आकि पहाड़ जकाँ धरतीपर जनैम अकासक बीच मानब।
चितवन जहिना सुन्दर सुगन्धयुक्त धरतीपर पसरल अछि, तहिना रंग-रंगमे रंगाएल फूलो-पात आ बेलो-पात अछिए। तैसंग चन्दन सन सुकाठ, तहूमे ओहन चन्दनक वृक्ष जे चन्द्रकृत आकारक फलो दइए आ फलक रसमे रसियाइत लबनता[i] सेहो दइते अछि। तँए कहब जे चितवनमे सभ एहने गाछ-बिरीछ अछि सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। जहिना बोनाएल सौखक गाछ अकास टेकने अछि माने वनक ओहन वृक्ष जे नमहर होइतो ने अपन फूलमे ओहन गुण सिरैज सकल जे देवसिर चढ़ैत आ ने फले ओहन सिरैज सकल जे देवमुख पहुँचा सकल। ओ चाहबे ने केलक कि मनमे उठबे ने केलै आकि बुझबे ने केलक से तँ वनक सौखक गाछ बुझत-जानत आकि गाम-घरक बाग-बगियाक शीशो गाछ जानत। कहब जे ताड़ तँ ओहूसँ नमहर होइए, मुदा ओ तँ वृक्ष छीहे नहि, किए तँ वृक्षमे डारि-पात होइ छइ। ओना, घर बनबैमे दुनूकमाने सौखोक आ शीशोओक–योगदान भरपुर अछिए। 
जहिना खाइले फूल-फलक खगता होइए तहिना ने रहैले घरोक खगता अछिए। दुनू जीवनक अंग छीहे, तँए अंगीकार करब तखने ने ओ खगता-बेगरता पूरत जइसँ जिनगीक सड़कपर कटारि-कोचाढ़ि नइ हएत।
चितवनमे जहिना अकास ठेकल-ठेकनाएल गाछ-बिरीछ अछि तहिना जीव-जन्तुसँ सेहो भरल-पुरल अछिए। चितवनमे बाघ-सिंह आ हाथी-घोड़ासँ लऽ कऽ नढ़िया-कुकुर धरि सेहो बसिते अछि। वनक जहिना बाघ-सिंह तहिना गाम-घरक हाथी-घोड़ा छीहे। मुदा दुनूक-दुनू एहेन अलूरि-अल्हर अछिए जे ने अपने अपन भोजनेक उपैत कऽ सकैए आ ने अपन घरे बना सकैए। ओइसँ नीक तँ बाध-बोनक मूस अछि जेकरा गणेशजी सन दरबारो भेटल छै आ धोधिगर-पेटगर सवारो तँ छइहे। किए तँ वएह ने माने मूसे ने अपनाकेँ ओहन बुझैए जे धरतीक भार बनि नइ छी। तँए, कियो–चरिटंगा जानवर–जे आँखियो देखौतै से ओ थोड़े मानत आकि मानैले तैयारे हएत। जहिना खाइ-पीबैक अन्न-ले बखारी बनौने अछि तहिना भरल-पूरल सम्पन्न परिवारो बना वएह ने रहैए। वैहटा ने एहेन वनक चरिटंगा अछि जेकरा परिवारोक चिन्ता छै आ परिवारक संग गुजरो-बसर करब तँ छइहे।
रंग-रंगक रूप-मोहनी चिड़ै-सभसँ जहिना चितवन सम्पन्न अछि तहिना मोर-मोरनीक नाचसँ सेहो सम्पन्न अछिए। चितवनक चित्त चिकोर पकड़ैबला जहिना चिड़ै-चुनमुन एक दिस अछि तहिना कौआ-मेना नइ अछि सेहो केना नइ कहल जाएत। पेट भरने जहिना फल भोगैए तहिना पेट जरने जेतए जे भेटै छै सेहो तँ भोगिते अछि। दुनियाँक बीच बसल ने चितवन अछि, तँए सभ कथुक बासो अछिए जे उचिते अछि किने। नदी-सरोवर-झील भलेँ बोनमे नइ हुअए मुदा चितवनक मनमे मानसरोवर आ कैलाश पर्वत नइ बसल अछि सेहो केना नइ कहल जाएत। जखन ओहो अछि तखन ओइ पानिमे बसैबला चिड़ै/राजहंससँ लऽ कऽ भ्रमित भोम्हरा धरि सेहो अछिए। तैसंग जीव-जन्तु-जानवरोक बेहिसाब बास तँ अछिए। जहिना धरतीपर थलकमल तहिना झील-सरोवरक पानिमे कमल सेहो फुलाइते अछि। भलेँ ओइ झील-सरोवरक जलदाता बहैत धारे वा झहड़ैत अकासेमे होइ वा नइ होइ मुदा बहैत धारक धारामे जलकमले आकि थलकमले फुला सकैए। सबहक अपन-अपन सीमा छै, सरहद छै, आड़ि छै, मेड़ छै, विचार छै आ विचारक संसार सेहो छइहे।
से की कोनो कमले आकि थलकमले टाक मुँह अछि। सबहक अछि। वएह कोसी कि कमला आकि नारायणीए अछि, सभ गामोक आ सभ लोकक अपन-अपन अछिए। ओहुना देखै छी जे जहिना दूटा मनुखक मुँहक रंग-रूप एकरंग तनाउतार नइ होइए, तहिना दू गोरेक[ii] हाथक लिखक अक्षरक गति सेहो एकरंग नहियेँ होइए। आब अहाँ कहबै जे अक्षरकेँ नापि-जोखि एकरंगमे प्रयोग करू से अपने बुझलासँ हएत आकि हस्त-ब्रह्मक जे चित्तपन रहत ओइ अनुकूल हएत। कहब जे जहिना लोकक हड़गर-कठगर मुँह आ हाथक लिखक अक्षर दू गोरेक एकरंग नइ होइए तहिना कि ओइसँ ओकर मन कम छइ। ओहो ने ओही दुनू जकाँ बेजोर सेहो अछिए। गामे ने वन छी। ओकरे ने लोक अपन-अपन मने बनो कहै छै आ गामो कहै छइ। वन ओइ रूपमे कहै छै जे रूपमे ओ अपन रूप-रूपायित करए चाहैए। जेना लोकक वन, आमक गाछीक वन, गाइयक वन, इत्यादि-इत्यादि...। परिवार जहिना एगच्छा गाछ भेल आ परिवारक समूह टोल-गामक रूप परिवारक बोने ने भेल।
शिकारक मुहूर्त्त जगल। सौंसे गामक लोक शिकार खेलैले घरसँ निकलल। चरित्तर आ चतुरानन सेहो संगीक भाँजमे अपन-अपन रस्ता ओगइर शिकारी सभ दिस देख रहल छला। थोड़बेकालक पछाइत दुनू गोरे अपन-अपन दुआर-दरबज्जासँ उतैर सड़कपर एला। अबिते घोड़ा जकाँ हिहिया कऽ नहि बल्कि मुस्कुराइत चरित्तरो आ चतुरोनन मुँह-मिलानी केलैन। दुनू जहिना एक टोलक तहिना एक उमेरक सेहो छथिए। चरित्तर बजला-
भजार, अखन तँ शिकारक मुहूर्त्त अछि।
चतुरानन-
से की अपने दुनू भजार बुझै छी आकि सौंसे गामक सभ बुझै छैथ।
चरित्तर-
सब आगू बढ़ि गेल, अपना सब तँ..?”
चतुरानन-
भजार, कियो आगू बढ़ह आकि पाछू रहह, सबहक मनक अपन-अपन शिकार अछिए, जेकरा पाछू जिनगी भरि ओ रने-बने वौआइते अछि।
मुड़ी डोलबैत चरित्तर बजला-
भजार, रने तँ कम लोक वौआइ छैथ मुदा वने बेसी वौआइते छैथ जे सभ देखबे करै छी। तखन अपना-सबहक शिकार केना हएत। आ जखन शिकारे नइ हएत तखन शिकारीक मुहूर्त्त केना भेल। आइ ओकर मुहूर्त्त छी, कहॉंदन गणेशजीक पतरामे उचरलैन अछि।
चतुरानन-
भजार, जखन पतरा उचारनिहारे मूसक सवारीपर चढ़ि माए-बापक तीरपेखैन करिते स्वर्ग-नर्क सभकेँ देख अबै छैथ तखन तँ अपना सभ सहजे मनुख भेलौं तँए किछु करैक अछिए नहि..!”
तैबीच बोन दिससँ कियो नढ़िया तँ कियो गीदरकेँ मारि अपन-अपन कान्हपर लटकौने आबि रहल छला। जेकरा देख चतुरानन बजला-
भजार! मुहूर्त्त तँ मुहूर्त्त छी। ओ ने केकरो कखनो संग छोड़ैए आ ने केकरो संग दइए, अपना-अपना मने लोक ओकर नीक-अधला रूप बना उपयोग करैए। उपयोगेटा नइ करैए, अपनाकेँ तेहेन उपयोगी सेहो बनाइये लइए जे दुनियाँक चाह बनैए।
एक तँ दुनू गोरे–चतुरानन आ चरित्तर–बच्चेसँ एकठाम रहला, तहूमे भजारक अपेक्षा सेहो छेलैन्हे। तैपर चतुराननक दादीक कहब छैन जे दुनूक नक्षत्र (लक्षण) एक्केरंग छै, किए तँ दुनूक जन्म एक्के समय एक्के दिन भेल तँए जेतबे दिन-राति, बरखा-बुन्नी पानि-पाथर, झाँट-बिहाड़ि आ भुमकम चरित्तर देखलक तेतबे चतुरानन सेहो ने देखने अछि, तँए दुनूक नक्षत्र एक्केरंग ने भेल। 
चतुरानन बजला-
भजार, हमर एकटा विचार।
चरित्तर- की?”
चतुरानन- जहिना जानवर जानवरक शिकार करैए तहिना जेतेक जीव-जन्तु अछि अही प्रक्रियामे सेहो अछिए। मुदा मनुख तँ मनुख छी किने भजार।
चरित्तर-
भजार, जहिना शिकार शिकारीक तहिना ने शिकारीक शिकार सेहो छीहे।
चतुरानन-
बरबेस।
q शब्द संख्या : 1071, तिथि : 02 मार्च 2019


[i] लावण्यता
[ii] बेकतीक

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