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Monday, September 8, 2014

यूज एण्‍ड थ्रो (क. उमेश नारायण कर्ण)

यूज एण्‍ड थ्रो


लि‍खो-फेको, राखू-फेकू वा यूज एण्‍ड थ्रो, एके बात अछि‍। नव बजारवादक यएह परि‍पाटी अछि‍। हाट-बजारमे सभ तरहक वस्‍तुजात बि‍काइत अछि‍। भौति‍क सुख सुवि‍धा सम्‍पन्न लोक असंवेदनशील होइ छथि‍ जइ कारणेँ देह वेपारक अदान-प्रदान बढ़ल अछि‍। पहि‍नौं मनुख बि‍काइत छल आ अखनो बि‍काइत अछि‍। जेतए धरि‍ नारी सबहक नव-नव छबि‍ अभरैत अछि‍ तइमे माॅडलिंग चरमोत्‍कर्षपर अछि‍। नव यौवनाक मनभावन लोभावन सम्‍मोहक वि‍ज्ञानपनक भाव-भंगि‍मा पुरुखकेँ अपना दि‍स आकृष्‍ट करैत अछि‍ ओ मधुरवाणी हृदैमे बैसि‍ जाइत अछि‍। ई स्‍त्री-पुरुख लिंग भेद प्रकृति‍ प्रदत्त जीवक गुण धर्म छी जे रूप लावण्‍य आ श्रृंगार-पेटारसँ उत्‍प्रेरि‍त होइत आर आलिंगनवद्ध भऽ जाइत अछि‍। तखनि‍ नवयुवक ओ नवयुवती सबहक उमंग-तरंग देखि‍ते बनै छै।
राजग्रामसँ राजधानी पटना पहुँचनि‍हार मि‍त्र त्रय रहथि‍- राधेश्‍याम, गौरीशंकर आ मधुरेश। तीनू गोटे बालसंगी रहथि‍। ओ प्रथम श्रेणीमे मैट्रि‍क पास कऽ पटना कौलेजमे पढ़बाक हेतु आएल छथि‍। दैवयोगसँ पटना कौलेज पटनामे तीनू गोटेकेँ नामांकण भेल, ओ एकेठाम नयाटोलामे डेरा भाड़ापर रखलनि‍। गामसँ शहर आबि‍ कौलेजयाबाबू उड़ाँत भेला। स्‍वच्‍छंद आहार-वि‍हारमे सारि‍का, नि‍हारि‍का ओ सुषभा सन रूवतती चतुर नारी अपन चंचलावृत्तमे घेरि‍ लेलखि‍न। वैचारि‍क आदान-प्रदान भेल तैसंग परि‍चए-पात भेल आ दोस्‍तीक हाथ बढ़ल। व्‍यायफ्रेंड-गर्लफ्रेंडक नवोन्‍मेष भेल। जीवनमे नव उत्‍साह जागल, ओ उत्‍प्रेरि‍त केलक। ई नव कल्‍चरल चेंज भेल, अल्‍ट्रामॉर्डन भेल।
मि‍त्र त्रय संग-संग घुमैत-फि‍रैत छला। साँझ-भोर टहलबाक आदति‍ रहनि‍। एकेठाँ फि‍ल्‍डमे स्‍त्री-पुरुख, युवक-युवती आ नेना-भुटका सभकेँ दौगैत देखि‍ नीक लगल रहनि‍। ईहो दण्‍डबैसकी,  कूदफान संगे दौगबाक अभ्‍यास करए लगला। हि‍नका सबहक गर्लफ्रेंड सेहो दौग लगबै छेली। एक संग पढ़ब-लि‍खब, खेल-धूप करब सम्‍बन्‍ध प्रगाढ़ बनौलक। एक-दोसराक डेरापर आन-जान लगल रहै छल। जौं कोनो कारणसँ सहपाठी अनुपस्‍थि‍त होथि‍ तँ हि‍नका लोकनि‍केँ कछमच्‍छी लगि‍ जाइ छल। जखनि‍ केतौ भेँट-घाँट भऽ जाइ छल तँ बूझि‍ लि‍अ जे मन एकदम गद्गद्। संध्‍याकाल नि‍अमि‍त कृष्‍णाघाटसँ गाँधीघाटक फेरी लगबै छला। कहि‍योकाल मन्‍दि‍र-मस्‍जि‍द, चि‍ड़ि‍याँघर, तारामण्‍डल, अजायबघर जाइ-अबै छला। केतौ-ने-केतौ सारि‍का, नि‍हारि‍का आ सुषमा सेहो टकरा जाइत रहनि‍।
राधेश्‍यामकेँ नव-नव मोबाइल कीनैक आदति‍ रहनि‍ ओ गौरीशंकरकेँ नव-नव कनि‍याँ पसि‍न करब। ऊफाँटि‍मे मधुरेश मने-मन गुड़-चाउर फँकै छला। कम्‍मल ओढ़ि‍ कऽ ओ घी पीबै छला।
एक दि‍न यएह मि‍त्रगण अशोक राजपथ, गाँधी मैदान दि‍स जाइ छला। गुलाबी सलवार-शूटमे एकटा नवयुवती अस्‍पतालसँ नि‍कलल‍ गोड़-नारि, छड़गर, कटगर लचकैत-मटकैत चलल जाइत रहए। गौरीशंकर झटकि‍ कऽ ओकर पछोड़ धऽ लेलनि‍। पि‍रबहोर थाना पार केला बाद ओ टोकलनि‍-
‍हेलौ डार्लिग, हाउ आर यू?”
ओ पलटि‍ तकलक, कनि‍येँ काल ठमकल, फेर उत्तर देलकनि‍-
आइ डोंट नो यू।
डोंट माईंड। आइ एम योर्स कजींस फ्रेंड।
ई प्रत्‍युत्तर रहए। ‘सॉरी’ कहि‍ ओ आगू बढ़ि‍ कऽ गलीमे चल गेली। गलीक मोड़पर अबि‍ते ओ घूमि‍ तकली आ मुस्‍काइत ससरि‍ गेली।
जे हँसल से फँसल।
-मधुरेश बाजल।
की भेलौं?”
-गौरीशंकरसँ राधेश्‍याम पुछलक।
औटर सि‍ग्‍नलपर ठाढ़ छौ।
-गौरीशंकरक कहब रहनि‍।
घुमतीकाल तीनू ओही गली बाटे टपलनि‍। कनि‍येँ आगू बढ़ला, एकटा छौड़ी छतपर सँ बजै छल-
रानी को भोली-भाली मत समझ। बड़ा महँगा पड़ेगा। जाओ, अभी झुनझुना बजाओ।
ऊपर ताकि‍ तीनू गोटे अग्रसर भेला।
चल चल। डेग उठा। झटकारि‍ कऽ चल। हमरा लगैए जेना शनि‍चरा सवार होउ।
-मधुरेश घबराएल।
जे डरि‍ गेल से मरि‍ गेल। कि‍यो कि‍छु नै करतौ।
-गौड़ीशंकर सम्‍हारलनि‍। बाट चलैत सुबोध आ प्रबोध दुनू भाँयकेँ अबैत देखलनि‍।
एने का करऽ?”
-सुबोध टोकलक राधेश्‍यामकेँ।
कि‍छु नै। ऐ गलीसँ हमसभ रूपक सि‍नेमा होइत डेरापर जाएब।
-ई राधेश्‍यामक उत्तर छल।
ठीक छै। जो।
-एतबा बाजि‍ ओ दुनू गोटे आगू बढ़ि‍ गेला। समए संग कम्‍पनीक एकटा मोबाइल कीनलनि‍ आ खुशी-खुशी घर घुरला।
घुरैत-फि‍रैत राति‍क आठ बाजि‍ गेल रहै से चटपट खि‍च्‍चड़ि‍ अल्‍लूक सन्नाक जोगाड़ धरा स्‍टोव पजारलनि‍ गौरीशंकर। मधुरेश पि‍आैज सोहए लगला। राधेश्‍याम डोल भरि‍ पानि‍ अनलनि‍ आ थारी-बाटी गि‍लास पखारि‍ कऽ रखलनि‍। अपन अंगपोछामे हाथ पोछैत राधेश्‍याम बाजल-
ई गौरीशंकर हमरा सभकेँ कहि‍यो ने कहयो मारि‍ खुआ देतह, हार-पाँजर तोड़बा देतह। ओ ई नै बुझै छै जे गामक छौंरी चुपे रहै छै आ शहरक छौरी मुँहफट्ट मुँहजोरगर होइ छै ओ मँह तोड़ि‍ देतह से बूझि‍ लैह।
धुर बुड़ी। तों की बुझबह? ओ जालमे फँसलौ। से मंतर ने हम मारलि‍ऐ जे अपने घुरि‍या कऽ लटपटा जेतौ। ओ लट्टू तँ भाइए गेल छौ।
ई गौरीशंकरक उत्तर रहै।
तों तकबहक की ओ तकतौ?”
-मधुरेश पुछलक।
पहि‍ने हम तकलि‍ऐ आब वएह तकतै।
-ई गौरीशंकरक कहब रहै।
प्रेमक गंगा एकरंगा बहै छै। धार दुनू कछेरकेँ एके रंग छुबै छै। जखनि‍ हि‍लकोर मारतै तँ कात लगि‍ जेतै।
-राधेश्‍याम बाजल।
जे छि‍टकि‍ कऽ चलै छै से लपकि‍ कऽ धरै छै।
-मधुरेश कहलक।
हे, बड़ लबड़-लबड़ करै छँह। आब मुँह बन्न कर साढ़े दस बजै छै।
-उनटि‍ कऽ गौरीशंकर बाजल।
फेर तीनू पड़ि‍ रहल। ओछाइनपर जाइते मातर निन पड़ि‍ गेल। कि‍ताब-कौपी जस-के-तस छि‍ड़ि‍आएल रहै।
वि‍श्व वि‍द्यालय स्‍तरीय सेमीनारक आयोजन- ‘नारी समस्‍या ओ समाधान’ वि‍षयपर भेल। कौलेजक दस चयनपि‍त प्रति‍भागीमे सँ तीन सारि‍का, नहारि‍का आ मधुरेश रहथि‍। सारि‍काक कहब रहनि‍ नारी प्रताड़नाक मुख्‍य कारण अंधवि‍श्वास संगे पुरुखक प्रभुताइ रहल अछि‍। अखनो लोक झार-फूक, टोना-टापर, तंत्र-मंत्रमे लटपटाएल अछि‍ जे मि‍थ्‍या छि‍ऐ। डाक्‍टर-वैद लग नै जा कऽ रोगीकेँ लोक ओझा-गुणी लग लऽ जाइए। ओ भूत-प्रेत, डाइन-गोगि‍नपर बि‍सवास करैए। ओझा-गुनी द्वारा कठोरसँ कठोरतम शारीरि‍क पीड़ा देल जाइए। ओ मरैए, पीटैए निर्मम हत्‍या करैए। रूक्‍त-भुक्‍त भोगी चि‍करैए-भोकरैए दम तोड़ि‍ दइए। ई सभ राक्षसी प्रवृति‍ छी। लोक असंवेदनाशील दया-धर्म सभटा बि‍सरि‍ जाइए। नारीपर जन्‍मसँ मृत्‍यु धरि‍ केतेको अत्‍याचार होइए। ओ भ्रुण हत्‍या, दहेज हत्‍या, अपरहण आ बलत्‍कार दैनंदि‍नी भऽ गेल अछि‍। तँए नैति‍क अनि‍वार्यता अछि‍ जइसँ चरि‍त्रवान नागरि‍क बनत। ऐ संग दुराचारीकेँ सार्वजनि‍क रूपसँ सामाजि‍क बहि‍ष्‍कार ओ बलात्‍कारकेँ मृत्‍युदण्‍ड ओहि‍ना जहि‍ना ओ केकरो तड़पा-तड़पा कऽ मारैए।
मधुरेशक कहब रहनि‍ नव-नव तकनीकसँ बड़ चमत्‍कार होइए। टेस्‍ट ट्यूब बेबी भेल ओ ठाम-ठाम फर्टिलि‍टी सेंटर खुजल अछि‍। आब एकटा एहेन तकनीक नव अन्‍वेषण भेल अछि‍ जे महि‍लाक गर्भसन गर्भाशय बना सम्‍पुष्‍ट ओ हृष्‍ट-पुष्‍ट नेना बाहर बनत। मात्र पति‍-पत्नीक सीमन-ओभमकेँ ओइ उपकरणमे राखल जाएत, मि‍लाैल जाएत। तखनि‍ पुरुखे जकाँ महि‍ला स्‍वतंत्र वि‍चारण करती। सोइरीघर नै देखती आ प्रसव पीड़ासँ छुटकारा पाबि‍ जेती। स्‍त्री-पुरुख दुनू एक रंग भेला उत्तर देशक खूब तरक्की हएत नेना सबहक लालन-पालन करत। तखनि‍ नि‍श्चि‍त ‘परम सुखम’ प्राप्‍त हएत।
नि‍हारि‍काक कहब रहनि‍ नारीक पूर्णता मातृत्‍वमे छै। जौ नेना फर्टिलि‍टी सेंटरमे पलत-बढ़त तखनि‍ ओ माएकेँ केना चि‍न्‍हत आ बापकेँ की हेतै। माए-बापक कोनो महत नै रहतै। परि‍वार सेहो नै रहतै ओ पति‍-पत्नीक सम्‍बन्‍ध नै बनतै। हास-परि‍हास, रोग-रभसमे जे प्रेम तत्‍व छै से सभ नै रहतै। दया-करुणा, ममता कि‍छु नै रहतै। राग-द्वेषसँ लोक भरल रहतै आ मारि‍-काट, लूट-पाट, अपहरण, हत्‍या आ बलात्‍कार उद्योग भऽ जेतै। परि‍वार, समाज, राष्‍ट्र सबहक परि‍कल्‍पना बेकार भऽ जेतै। नारी भोग्‍या बनल रहती आ देवी नै हेती। जखनि‍ लोकक जमीर मरि‍ए जेतै तँ नैति‍क शि‍क्षा पोथि‍ए धेने रहत। जीवनमे प्‍यार, प्रीत, नम्रता परमावश्‍यक छै। जौं आबो नै चेतब तँ कंकाली काली खड़ग-खधर धय नरसंहार करती। आब तरुआरि‍ उठत से बूझि‍ लि‍अ। बेर-बेर मरबसँ एकबेर मरब नीक। यूज एण्‍ड थ्रो नै चलत।
तों मधुरेशकेँ बुद्धु बुझहै छीही। आब की करबीही।
-सारि‍का सुषमासँ पुछलखि‍न।
ऐ हेँ एहेन बुधु नै समझ।
-सुषमाक उत्तरपर सभ हँसि‍ देलनि‍। मधुरेश सकपका गेला।   
मधुरेश बड़ काबि‍ल छथि‍ से सभकेँ मानए पड़त।
-गौरीशंकरक कहब रहनि‍।
एलीफि‍स्‍टन सि‍नेमा हॉलक बाहर तीनू गोटे मि‍लि‍ कऽ दसटा टि‍कट कटौलनि‍। पाँचो गोटे गेटपर नि‍हारि‍काक बाट जोहैत रहथि‍न। गौरीशंकर कात दबल टि‍कट बेर-बेर गनै छला। छमकैत-दमकैत रानी गौरीशंकर लग पहुँचि‍ गेली। ओ अनुनय-वि‍नय करैत चारि‍टा टि‍कट मंगली। ‘दू सएमे चारि‍ टि‍कट’ दाम सुनौल गेल। झट पर्ससँ दू सए रूपैआ बहार कऽ गौरीशंकरकेँ देलखि‍न आ मुस्‍कि‍आइत ‘थैंक्‍यू’ कहि‍ गेली। सबहक नजरि‍ हि‍नकेपर रहै। औटोसँ नि‍हारि‍का उतरली। गौरीशंकर बजला-
हम मैडमसँ इन्‍टरटेनमेंट टैक्‍स लेलि‍ऐए। इन्‍टरभल इनज्‍वाय करबै।
चलू-चलू लाइनमे लागू ओकरे लग सटि‍ कऽ बैसब।
-सुषमा बाजि‍ मुँह फेरि‍ लेली।

(83म सगर राति‍ दीप जरय' भपटि‍याहीमे पठि‍त।)


उमेश नारायण कर्ण
गाम- रामपुर, सरि‍सव पाही,
जि‍ला-मधुबनी।

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