यूज एण्ड थ्रो
लिखो-फेको,
राखू-फेकू वा यूज एण्ड थ्रो, एके बात अछि। नव बजारवादक यएह परिपाटी अछि।
हाट-बजारमे सभ तरहक वस्तुजात बिकाइत अछि। भौतिक सुख सुविधा सम्पन्न लोक
असंवेदनशील होइ छथि जइ कारणेँ देह वेपारक अदान-प्रदान बढ़ल अछि। पहिनौं मनुख बिकाइत
छल आ अखनो बिकाइत अछि। जेतए धरि नारी सबहक नव-नव छबि अभरैत अछि तइमे माॅडलिंग
चरमोत्कर्षपर अछि। नव यौवनाक मनभावन लोभावन सम्मोहक विज्ञानपनक भाव-भंगिमा
पुरुखकेँ अपना दिस आकृष्ट करैत अछि ओ मधुरवाणी हृदैमे बैसि जाइत अछि। ई स्त्री-पुरुख
लिंग भेद प्रकृति प्रदत्त जीवक गुण धर्म छी जे रूप लावण्य आ श्रृंगार-पेटारसँ
उत्प्रेरित होइत आर आलिंगनवद्ध भऽ जाइत अछि। तखनि नवयुवक ओ नवयुवती सबहक
उमंग-तरंग देखिते बनै छै।
राजग्रामसँ
राजधानी पटना पहुँचनिहार मित्र त्रय रहथि- राधेश्याम, गौरीशंकर आ मधुरेश। तीनू
गोटे बालसंगी रहथि। ओ प्रथम श्रेणीमे मैट्रिक पास कऽ पटना कौलेजमे पढ़बाक हेतु
आएल छथि। दैवयोगसँ पटना कौलेज पटनामे तीनू गोटेकेँ नामांकण भेल, ओ एकेठाम
नयाटोलामे डेरा भाड़ापर रखलनि। गामसँ शहर आबि कौलेजयाबाबू उड़ाँत भेला। स्वच्छंद
आहार-विहारमे सारिका, निहारिका ओ सुषभा सन रूवतती चतुर नारी अपन चंचलावृत्तमे
घेरि लेलखिन। वैचारिक आदान-प्रदान भेल तैसंग परिचए-पात भेल आ दोस्तीक हाथ
बढ़ल। व्यायफ्रेंड-गर्लफ्रेंडक नवोन्मेष भेल। जीवनमे नव उत्साह जागल, ओ उत्प्रेरित
केलक। ई नव कल्चरल चेंज भेल, अल्ट्रामॉर्डन भेल।
मित्र
त्रय संग-संग घुमैत-फिरैत छला। साँझ-भोर टहलबाक आदति रहनि। एकेठाँ फिल्डमे स्त्री-पुरुख,
युवक-युवती आ नेना-भुटका सभकेँ दौगैत देखि नीक लगल रहनि। ईहो दण्डबैसकी, कूदफान संगे दौगबाक अभ्यास करए लगला। हिनका
सबहक गर्लफ्रेंड सेहो दौग लगबै छेली। एक संग पढ़ब-लिखब, खेल-धूप करब सम्बन्ध
प्रगाढ़ बनौलक। एक-दोसराक डेरापर आन-जान लगल रहै छल। जौं कोनो कारणसँ सहपाठी
अनुपस्थित होथि तँ हिनका लोकनिकेँ कछमच्छी लगि जाइ छल। जखनि केतौ भेँट-घाँट
भऽ जाइ छल तँ बूझि लिअ जे मन एकदम गद्गद्। संध्याकाल निअमित कृष्णाघाटसँ
गाँधीघाटक फेरी लगबै छला। कहियोकाल मन्दिर-मस्जिद, चिड़ियाँघर, तारामण्डल,
अजायबघर जाइ-अबै छला। केतौ-ने-केतौ सारिका, निहारिका आ सुषमा सेहो टकरा जाइत
रहनि।
राधेश्यामकेँ
नव-नव मोबाइल कीनैक आदति रहनि ओ गौरीशंकरकेँ नव-नव कनियाँ पसिन करब। ऊफाँटिमे
मधुरेश मने-मन गुड़-चाउर फँकै छला। कम्मल ओढ़ि कऽ ओ घी पीबै छला।
एक
दिन यएह मित्रगण अशोक राजपथ, गाँधी मैदान दिस जाइ छला। गुलाबी सलवार-शूटमे एकटा
नवयुवती अस्पतालसँ निकलल गोड़-नारि, छड़गर, कटगर लचकैत-मटकैत चलल जाइत रहए।
गौरीशंकर झटकि कऽ ओकर पछोड़ धऽ लेलनि। पिरबहोर थाना पार केला बाद ओ टोकलनि-
“हेलौ डार्लिग, हाउ आर यू?”
ओ
पलटि तकलक, कनियेँ काल ठमकल, फेर उत्तर देलकनि-
“आइ डोंट नो यू।”
“डोंट माईंड। आइ एम योर्स कजींस फ्रेंड।”
ई
प्रत्युत्तर रहए। ‘सॉरी’ कहि ओ आगू बढ़ि कऽ गलीमे चल गेली। गलीक मोड़पर अबिते
ओ घूमि तकली आ मुस्काइत ससरि गेली।
“जे हँसल से फँसल।”
-मधुरेश
बाजल।
“की भेलौं?”
-गौरीशंकरसँ
राधेश्याम पुछलक।
“औटर सिग्नलपर ठाढ़ छौ।”
-गौरीशंकरक
कहब रहनि।
घुमतीकाल
तीनू ओही गली बाटे टपलनि। कनियेँ आगू बढ़ला, एकटा छौड़ी छतपर सँ बजै छल-
“रानी को भोली-भाली मत समझ। बड़ा महँगा पड़ेगा। जाओ, अभी झुनझुना बजाओ।”
ऊपर
ताकि तीनू गोटे अग्रसर भेला।
“चल चल। डेग उठा। झटकारि कऽ चल। हमरा लगैए जेना शनिचरा सवार होउ।”
-मधुरेश
घबराएल।
“जे डरि गेल से मरि गेल। कियो किछु नै करतौ।”
-गौड़ीशंकर
सम्हारलनि। बाट चलैत सुबोध आ प्रबोध दुनू भाँयकेँ अबैत देखलनि।
“एने का करऽ?”
-सुबोध
टोकलक राधेश्यामकेँ।
“किछु नै। ऐ गलीसँ हमसभ रूपक सिनेमा होइत डेरापर जाएब।”
-ई
राधेश्यामक उत्तर छल।
“ठीक छै। जो।”
-एतबा
बाजि ओ दुनू गोटे आगू बढ़ि गेला। समए संग कम्पनीक एकटा मोबाइल कीनलनि आ
खुशी-खुशी घर घुरला।
घुरैत-फिरैत
रातिक आठ बाजि गेल रहै से चटपट खिच्चड़ि अल्लूक सन्नाक जोगाड़ धरा स्टोव
पजारलनि गौरीशंकर। मधुरेश पिआैज सोहए लगला। राधेश्याम डोल भरि पानि अनलनि आ
थारी-बाटी गिलास पखारि कऽ रखलनि। अपन अंगपोछामे हाथ पोछैत राधेश्याम बाजल-
“ई गौरीशंकर हमरा सभकेँ कहियो ने कहयो मारि खुआ देतह, हार-पाँजर तोड़बा
देतह। ओ ई नै बुझै छै जे गामक छौंरी चुपे रहै छै आ शहरक छौरी मुँहफट्ट मुँहजोरगर
होइ छै ओ मँह तोड़ि देतह से बूझि लैह।”
“धुर बुड़ी। तों की बुझबह? ओ जालमे फँसलौ। से मंतर ने
हम मारलिऐ जे अपने घुरिया कऽ लटपटा जेतौ। ओ लट्टू तँ भाइए गेल छौ।”
ई
गौरीशंकरक उत्तर रहै।
“तों तकबहक की ओ तकतौ?”
-मधुरेश
पुछलक।
“पहिने हम तकलिऐ आब वएह तकतै।”
-ई
गौरीशंकरक कहब रहै।
“प्रेमक गंगा एकरंगा बहै छै। धार दुनू कछेरकेँ एके रंग छुबै छै। जखनि हिलकोर
मारतै तँ कात लगि जेतै।”
-राधेश्याम
बाजल।
“जे छिटकि कऽ चलै छै से लपकि कऽ धरै छै।”
-मधुरेश
कहलक।
“हे, बड़ लबड़-लबड़ करै छँह। आब मुँह बन्न कर साढ़े दस बजै छै।”
-उनटि
कऽ गौरीशंकर बाजल।
फेर
तीनू पड़ि रहल। ओछाइनपर जाइते मातर निन पड़ि गेल। किताब-कौपी जस-के-तस छिड़िआएल
रहै।
विश्व
विद्यालय स्तरीय सेमीनारक आयोजन- ‘नारी समस्या ओ समाधान’ विषयपर भेल। कौलेजक
दस चयनपित प्रतिभागीमे सँ तीन सारिका, नहारिका आ मधुरेश रहथि। सारिकाक कहब
रहनि नारी प्रताड़नाक मुख्य कारण अंधविश्वास संगे पुरुखक प्रभुताइ रहल अछि।
अखनो लोक झार-फूक, टोना-टापर, तंत्र-मंत्रमे लटपटाएल अछि जे मिथ्या छिऐ। डाक्टर-वैद
लग नै जा कऽ रोगीकेँ लोक ओझा-गुणी लग लऽ जाइए। ओ भूत-प्रेत, डाइन-गोगिनपर बिसवास
करैए। ओझा-गुनी द्वारा कठोरसँ कठोरतम शारीरिक पीड़ा देल जाइए। ओ मरैए, पीटैए
निर्मम हत्या करैए। रूक्त-भुक्त भोगी चिकरैए-भोकरैए दम तोड़ि दइए। ई सभ
राक्षसी प्रवृति छी। लोक असंवेदनाशील दया-धर्म सभटा बिसरि जाइए। नारीपर जन्मसँ
मृत्यु धरि केतेको अत्याचार होइए। ओ भ्रुण हत्या, दहेज हत्या, अपरहण आ बलत्कार
दैनंदिनी भऽ गेल अछि। तँए नैतिक अनिवार्यता अछि जइसँ चरित्रवान नागरिक बनत।
ऐ संग दुराचारीकेँ सार्वजनिक रूपसँ सामाजिक बहिष्कार ओ बलात्कारकेँ मृत्युदण्ड
ओहिना जहिना ओ केकरो तड़पा-तड़पा कऽ मारैए।
मधुरेशक
कहब रहनि नव-नव तकनीकसँ बड़ चमत्कार होइए। टेस्ट ट्यूब बेबी भेल ओ ठाम-ठाम
फर्टिलिटी सेंटर खुजल अछि। आब एकटा एहेन तकनीक नव अन्वेषण भेल अछि जे महिलाक
गर्भसन गर्भाशय बना सम्पुष्ट ओ हृष्ट-पुष्ट नेना बाहर बनत। मात्र पति-पत्नीक
सीमन-ओभमकेँ ओइ उपकरणमे राखल जाएत, मिलाैल जाएत। तखनि पुरुखे जकाँ महिला स्वतंत्र
विचारण करती। सोइरीघर नै देखती आ प्रसव पीड़ासँ छुटकारा पाबि जेती। स्त्री-पुरुख
दुनू एक रंग भेला उत्तर देशक खूब तरक्की हएत नेना सबहक लालन-पालन करत। तखनि निश्चित
‘परम सुखम’ प्राप्त हएत।
निहारिकाक
कहब रहनि नारीक पूर्णता मातृत्वमे छै। जौ नेना फर्टिलिटी सेंटरमे पलत-बढ़त तखनि
ओ माएकेँ केना चिन्हत आ बापकेँ की हेतै। माए-बापक कोनो महत नै रहतै। परिवार
सेहो नै रहतै ओ पति-पत्नीक सम्बन्ध नै बनतै। हास-परिहास, रोग-रभसमे जे प्रेम
तत्व छै से सभ नै रहतै। दया-करुणा, ममता किछु नै रहतै। राग-द्वेषसँ लोक भरल रहतै
आ मारि-काट, लूट-पाट, अपहरण, हत्या आ बलात्कार उद्योग भऽ जेतै। परिवार, समाज,
राष्ट्र सबहक परिकल्पना बेकार भऽ जेतै। नारी भोग्या बनल रहती आ देवी नै हेती।
जखनि लोकक जमीर मरिए जेतै तँ नैतिक शिक्षा पोथिए धेने रहत। जीवनमे प्यार,
प्रीत, नम्रता परमावश्यक छै। जौं आबो नै चेतब तँ कंकाली काली खड़ग-खधर धय नरसंहार
करती। आब तरुआरि उठत से बूझि लिअ। बेर-बेर मरबसँ एकबेर मरब नीक। यूज एण्ड थ्रो
नै चलत।
“तों मधुरेशकेँ बुद्धु बुझहै छीही। आब की करबीही।”
-सारिका
सुषमासँ पुछलखिन।
“ऐ हेँ एहेन बुधु नै समझ।”
-सुषमाक
उत्तरपर सभ हँसि देलनि। मधुरेश सकपका गेला।
“मधुरेश बड़ काबिल छथि से सभकेँ मानए पड़त।”
-गौरीशंकरक
कहब रहनि।
एलीफिस्टन
सिनेमा हॉलक बाहर तीनू गोटे मिलि कऽ दसटा टिकट कटौलनि। पाँचो गोटे गेटपर निहारिकाक
बाट जोहैत रहथिन। गौरीशंकर कात दबल टिकट बेर-बेर गनै छला। छमकैत-दमकैत रानी
गौरीशंकर लग पहुँचि गेली। ओ अनुनय-विनय करैत चारिटा टिकट मंगली। ‘दू सएमे चारि
टिकट’ दाम सुनौल गेल। झट पर्ससँ दू सए रूपैआ बहार कऽ गौरीशंकरकेँ देलखिन आ मुस्किआइत
‘थैंक्यू’ कहि गेली। सबहक नजरि हिनकेपर रहै। औटोसँ निहारिका उतरली। गौरीशंकर
बजला-
“हम मैडमसँ इन्टरटेनमेंट टैक्स लेलिऐए। इन्टरभल इनज्वाय करबै।”
“चलू-चलू लाइनमे लागू ओकरे लग सटि कऽ बैसब।”
-सुषमा
बाजि मुँह फेरि लेली।
(83म सगर राति दीप जरय' भपटियाहीमे पठित।)
उमेश
नारायण कर्ण
गाम-
रामपुर, सरिसव पाही,
जिला-मधुबनी।
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