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Saturday, September 13, 2014

प्रेमक अधिकार (क. अक्षय कुमार झा)

प्रेमक अधिकार


अपन माँ आ पिताक हम आज्ञाकारी पुत्र छी, मुदा जहियासँ बिआह भेल, हुनका नजरि‍मे संदिग्ध भऽ गेल छी। हमर सोभाव, आचरण, आ हृदैक भावना पहिने जकाँ स्थिर आ तटस्थ अछि, मुदा हुनका नजरि‍मे अपन कनियाँक गुलाम छी। हमरा बुझने आनो घरमे हमरा सनक आज्ञाकारी बेटा ई मनोवैज्ञानिक दबाबमे अपन जि‍नगी बिता रहल छथि। कनियाँ घर कि एली, जेना नांगरि‍ हमरा लगि गेल। आब ई आरोप सहनाइ कठिन लागैत अछि कि हमरा कियो कनियाँक आदेशपाल कहए। जेना लगैत अछि, बिआहे केनाइ हमर अपराध छल। जहिना एकटा बेटाक अपन माए-बापक प्रति दायित्व अछि तहिना अनकर घरक ओ बेटी जे अपन घर-दुआर छोड़ि कऽ हमरापर आश्रित छथि‍। हुनका प्रति जिम्मेवारीक निर्वहन केनाइ हमर फर्जे नै अपितु धर्म अछि।
डरैत-डरैत एकबेर माएकेँ कहलियनि-
माए, रूकमणिक माइक मोन सप्ताह दिनसँ खराप छन्हि भोरे फोन आएल छल कि ओझा दुइए दिनक लेल आबए देथुन बुच्चीकेँ देखला बड़ दिन भऽ गेल।
हमर गप अधुरे अखनि छल, माए झटसँ कहली-
तोरा दुनूक पेट मिलले छौ। कनियाँकेँ नैहरेमे कहुन रहैले। दू आदमीक भोजन कि बनबै छथि, जेना लगैए बड़का उपकारे हमरा सबहक करै छथि।
ई कहैत मुँह चमकबैत आ पटपटबैत अपना कोठलीमे माँ चलि गेली। दू दिनक बाद रूकमणिक तबीयत बेसी बिगड़ि गेलनि। संयोगवश हम दरभंगामे छेलौं। सुलेखा हमर छोट बहि‍न फोन केली, भैया, भौजीक तबीयत खराप छन्हि। साँझ तक घर आबि हुनका अस्पतालमे डाक्टरसँ देखा दबाइ लऽ घर एलौं। डाक्‍टर साहैब दस दिनक बेडरेस्ट पूर्जापर लिखि देलखिन। गामपर आपस एलापर उमेद छल माए पुछती कनियाँक केहेन तबीयत अछि? डाक्‍टर साहैब की कहलनि? मुदा हमर सोचक उन्‍टा माए पुछै लगली-
दबाइमे पाइ केतेक लगलो?”
जहाँ हजार टकाक नाओं कहलियनि, आकि‍ तुरन्ते ताना मारए लगली-
छह माससँ बिजली बि‍ल बकाया छै ओ तोरा नै सुझाइ छौ। हमर बातरसक दबाइ अखनि तक अबि‍ते अछि‍। ओ तोरा नजरि‍पर किए रहतौ? अपन नौटंकीबाज कनियाँक बहानापर हजार टका फटसँ बुकि देलहिन। ई सभ हुनकर अराम करैक बहाना छियनि।
एक दिन रातिमे सूतल छेलौं, घड़ी दिस देखलौं, दू बजैत छल, नीन नै होइत छल। सोचैत रही बिआहसँ पहिने माए केतेक हमरा मानै छेली। मुदा आइ एहेन कोन अपराध हमरासँ भेल, जे ठीकसँ बातो ने करै छथि? आँखि डबडबा गेल।
बहुत सोचलापर एकटा निष्कर्षपर पहुँचलौं कि जे बेटाकेँ माए जनम दइ छथि, एते कठीनसँ पालै-पोसै छथि। बिआहक बाद प्रेमक एकटा हिस्सेदार कनियाँ भेलासँ माइक अन्तर आत्मामे एकटा नाकारात्मक भावनाक जनम होइ छै। कि‍ जे हमर हिस्साक प्रेम कियो बाँटि तँ नै रहल अछि। ई सोच हमरा जनैत गलत अछि। प्रेम तँ सागर सनक अथाह आ अनंत अछि। जेकरा अनन्त तक बढ़ौने आ बंटनै अपन हाथमे अछि। ईहो सोच हमर अहाँक हेबाक चाही जे अलग-अलग तरहक सम्‍बन्‍धक लेल, अलग-अलग तरहक प्रेमक रंग आ रूप छै। जेकरा उचित रूपमे देनाइ आ लेनाइ हमर अधिकार क्षेत्रमे अछि।

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