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Friday, May 31, 2019

एकटा नमहर दुख मेटा गेल_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


एकटा नमहर दुख मेटा गेल
सूर्य अस्त भऽ गेल रहै मुदा अन्हार नहि भेल छल। गहुमक खेत देख बाध दिससँ घुमि घरपर अबैत रही। मन तीताएल जकाँ रहए। तीताइक कारण छल जे बहुत मेहनतसँ गहुमक खेती केने छेलौं जे बुड़ि गेल। कहब जे जेते मेहनतक जरूरी गहुमक खेतीमे होइए, सएह ने भेल हएत। ओ तँ सामान्य भेल, बहुत केना भेल? मुदा बात किछु आरो अछि...।
आन गृहस्त जकाँ ने अपन घरक बीआ बाउग केने छेलों आ ने आन जकाँ कुभाँज खादे देने छेलिऐ। माने अन्नागाहींस खादक प्रयोग नइ केने छेलौं, समुचित ढंगसँ जहिना तीनू खाद–नाइट्रोजन, फस्फेट आ पोटाश–क उपयोग केने छेलौं तहिना समुचित ढंगसँ बीआ सेहो देने छेलिऐ। तैंसग आरो-आरो जे सोलहो पौष्टिक तत्त्व खेतीक लेल अनिवार्य अछि, सेहो सभ समुचित ढंगसँ उपयोग केने छेलौं।
गहुम फुटि कऽ निछार भऽ गेल, मुदा जे बँचल अछि बस तेतबे। बाधमे मूसक बाढ़ि आबि गेल अछि। कारण, दू सालसँ बाढ़ि नहि एने मूसक बढ़बाड़ि तेते भऽ गेल अछि जे बारह कट्ठाक कोलामे मात्र गोटे कट्ठाक उपज हाथ लगत, बॉंकीकेँ मूस तेना खरैर कऽ काटि नष्ट कऽ देने अछि जे लाभक उपजाक कोन गप जे लागतोमे डाँड़े लागत। मुदा उपाइये की? खाएर.., एना अपनेटा नहि भेल, गामक प्राय: सभ गृहस्तकेँ भेलैन–जे सभ गहुमक खेती केने छैथ। माने सबहक एक्केरंग गति...। ओना, सबहक खेतीक दशा देख कखनो-कखनो मनक तीनपन कनी-मनी कमो हुअए, किए तँ दसक काज हार-जीतक कोनो ने लाज’, मुदा जखन आन गृहस्त नजैरसँ हटि जाथि आ अपन खर्च-बर्चक संग मेहनत मन पड़ि जाइए कि एकाएक तीतसँ तीतेबे करैए। गुन-धुन करैत घरपर अबैत रही कि सुगिया माइक नजैर हमरापर पड़लैन कि दरबज्जेपर सँ बजली-
रघुनी बौआ, चाह पीब लिअ तखन जाएब।
मनमे गहुमक डुमल चास नाचिये रहल छल, तइ बिच्चेमे सुगिया माए चाह पीबैक आग्रह केली। रस्तापरसँ सहैट कऽ सुगिया माइक दरबज्जापर एलौं।
तिरपन-चौबन बर्खक सुगिया माइक उत्साहक दप-दप चेहरासँ बेहद खुशी छिटैक रहल छेलैन। अपन मन तीताएले छल मुदा तैयो मनकेँ मन बुझबैत कहलक, ‘कियो केकरो दुखकेँ हेरि थोड़े लइए, बेसीसँ बेसी बाँटि सकैए। तइले अपन दुख माने गहुक खेतीक नोकसान कियो बाँटि थोड़े लेत। तखन जँ अनेरे मन घोघचेने रहब से नीक नहि। उत्सित विचार मनकेँ उत्साहित केलक।
ओना, गामक अधिक-अधिक उमरदारसँ लऽ कऽ कमो उमरबला सभ सुगिया माएकेँ सुगिये माएकहै छैन मुदा हम भौजी कहै छिऐन। तेकर कारण अछि समाजिक सरोकार। ओना, हमहूँ सभ दिन सभकाल भौजीए कहै छिऐन सेहो बात नहियेँ अछि, ‘सुगिया माए सेहो कहै छिऐन। फगुआमे रंग खेलेबाकाल आ जुड़शीतलमे थाल खेलेबाकाल अरवैध कऽ भौजीकहिते छिऐन, मुदा आन समयमे जखन जेहेन मन खनहन-खरहर रहल तखन से कहै छिऐन...।
अपन मनक पीड़ाकेँ सुगिया माइक सुखक सुखपनसँ प्रीति जोड़ि बजलौं- भौजी, अहाँ बहुत दिन जीब। ओना, जीब अहाँ मुदा खुशी हमरे बेसी हएत।
बिना नाकर-नुकर[i] केने सुगिया माए बजली-
से केना?”
बजलौं-
गाम-समाजमे जँ भाए-भौजाइक इलाका बेसी रहल तँ बेसी नीक, नहि जँ एकोटा रहल तैयो हँसी-खुशीसँ दिन कटिते अछि।
तैबीच सुगिया माइक जेठकी पुतोहु चाह नेने दरबज्जापर पहुँच सुगिया माइक आगूमे रखि चोट्टे आँगन दिस घुमली। बिच्चेमे सुगिया माए बजली-
बौआ, लोहा मिसिलक पाट-पुरजा जकाँ सभ परानी मिलि परिवारक एकटा नहमर दुखक बेरा ऐबेर पार केलौं।
ओना, पुतोहु आगू बढ़ैत गेली मुदा सासुक विचारकेँ असीरवाद सरूप बुझली। जेना-पियासलकेँ पानि देख पानिक आकर्षण बढ़ैए तहिना छअ घन्टा मेहनत केला पछाइत नहा कऽ दरबज्जापर सुगिया माए एबे केली कि हमरापर नजैर पड़ल छेलैन, तँए चाह पीबैक तृसना[ii] उग्र भऽ गेल छेलैन। हाँइ-हाँइ कऽ तीन-चारि घोंट चाह सुगिया माए पीब लेली। जइसँ मनक जल-थम्हन सेहो भइये गेल छेलैन। बजली-
बौआ, दस बर्खसँ जे तबाही होइत आबि रहल छल ओ तबाहीक बेरा ऐबेर हँसी-खुशीसँ पार केलौं।
ओना, विचारक दौड़मे सुगिया माइक विचारक झलक मनमे आबि गेल, मुदा तबाहीक भाँज बुझले ने छल, तँए की बजितौं। एतबे बजलौं- से की?”
सुगिया माए दिल खोलि बजली-
बौआ, जड़ियेसँ कहै छी। किए तँ जहिना हम बुढ़ भेलौं तहिना आब ओहूँ ने भेलिऐ। मरै-जीबैक कोनो ठेकान अछि।
भौजीक विचारकेँ जँ दिअर धारक दियर जकाँ विचारक धारमे स्थान नहि दिअए, ओहो केहेन हएत! तँए मुड़ी डोलबैत बजलौं-
से तँ ठेकान नहियेँ अछि।
मध्ययुगीन रचनाकार जकाँ सुगिया माए नख-शिखक वर्णन नहि करैत शिख-नखक वर्णन शुरू करैत बजली-
बौआ, सभ दिनसँ अहूँ देखैत एलौं हेन जे तीन-चारिटा गाए खुट्टापर रहैए। पैछला साल बीस हजार रूपैआक गहुमक भुस्सी कीनने छेलौं तखनो दिके-सिके पार लागल।
ऐगला बात तँ बुझल नहि छल मुदा तैयो बिच्चेमे बजा गेल-
हँ से तँ कीननहि छल हएब।
ओना, हमरा पुछक चाही जे पैछला सालक पैछला गप की भेल आ ऐबेर केना पार लागत, मुदा भौजी बाढ़िक धारमे भँसिया गेलौं। खाएर.., भौजी रच्छ रखली। ओ हमरा संगे नइ भँसियेली अपन दियर धेनहि बजली-
बौआ, गाम-घरसँ माल-जाल तँ उपैटिये गेल अछि, हमरे सन-सन गोटि-पङ्गरा गिरहस्त माल पोसने छैथ, जइसँ मालक चाराक खपत कमने जहाँ-तहाँ नष्ट भऽ रहल अछि। दोसर दिस सुखल चारामे जहिना गहुमक भुस्सी तहिना नारक कुट्टी।
बजलौं- हँ, से तँ भेबे कएल।
सुगिया माए बजली-
बौआ, गाम-घरमे टाट-फरकक घर कमने नारो-पातक उगार भेबे कएल अछि। केतए-कहाँक भुस्सी जे गाम अबै छल ओहो ऐबेर रूकि जाएत। गाममे नारक उगार भेने सस्ता भेल। तैसंग इंजनबला कुट्टी-कट्टा मशीन आबि गेने एते दुख तँ मेटेबे कएल जे बीस हजारक काज ऐबेर डेढ़ हजारमे भेल अछि।
एक तँ साल भरिक मालक भोजनक जोगार तैपर साढ़े अठारह हजारक बचत भेने सुगिया माइक मनक चपचपी किछु बेसी रहबे करैन। देहक दोहारा हार-काठक लोक सुगिया माए, तैपर दूध-दहीक लाट सभ दिन रहने उमेरो हेराएले जकाँ छैन आ वएस[iii] सेहो झँपाएले छैन। जहिना जुआनीमे जइ दुलकीसँ छाउर-गोबरक छिट्टा माथपर नेने खेत जाइतो छेली आ घुमितो छेली से देखल अछिए, बिसरब केना। ओहन दुलकी काजक अभ्यास रहने सुगिया माइक ओ रूप अखनो ओहिना छैन जहिना जवनकी वएसमे छेलैन।
सुगिया माइक चपचपीमे जँ छोट-छीन सुखल गोलो फेकितौं तँ ओ लगले ओइ चपचपीमे चपि कऽ चपाइये जाइत, तँए मनकेँ मनाही करैत बजलौं-
साढ़े अठारह हजारक बँचत आइक जुगमे कोन मोलक भेल।
बेवहारिक जिनगीक धाँगल सुगिया माए, तँए पाइक मोल सेहो बुझिते छेली। बजली-
बौआ, जइ आमदनी-ले बीस हजारक काज छल ओ डेढ़ हजारमे आबि गेल, जइसँ काजक बढ़बारि आबिये गेल किने। आब जँ केतबो काजकेँ बढ़बए चाहब तँ पूजीक अभाव हएत!”
ओना, सुगिया माए अपन धारक पेटे-पेट बहि रहल छेली मुदा अपन जिनगी तँ अपने जिनगी जकाँ अछि तँए गोटे-गोटे बात बुझबो केलौं आ बेसी नहियेँ बुझलौं। मुदा तैयो जी-जाँति बजलौं-
भौजी, गामक सभ अहाँकेँ सुगिये माए कहैए से किए?” 
हमर प्रश्नकेँ सुगिया माए सोल्होअना अपन डायरीमे नोट केलैन। ओना, मुँह उठा-उठा हमरा दिस तकबो करिते छेली। जे कोनो आरो बात ने तँ छुटि गेल छैन। अपना जनैत हमहूँ सुगिया माइक जड़ियेक बात पुछने छेलिऐन।
शिखसँ उतैर सुगिया माए नखे दिससँ शुरू करैत। बजली-
बौआ, अखन जेहेन हमर देह-दशा अछि तइसँ नीक बच्चामे छल। मुदा बुइध तोहूसँ बेसी मोटाएल छल।
टोकारा दैत बजलौं-
सुआइत अहाँकेँ अखनो छटपटी लगले रहैए..!”
अपन विचारकेँ आगू बढ़बैत सुगिया माए बजली-
बौआ, बापक हम बड़ दुलारू बेटी छेलिऐन। खाइ-पीबैसँ लऽ कऽ जे जे काज ओ करै छला तइमे संग-साथ दइ छेलिऐन। ओहो गाइये पोसै छला। गाइयक पोसमे कोनो भारी काजो ओहन नहियेँ होइत।
बिच्चेमे बजा गेल-
हँ से तँ नहियेँ अछि।
जेना अपन नामकेँ प्रमाणित करैले गजेटेड अफसरक साइन जरूरी होइत तहिना भरिसक हमरो साइनिक खगता सुगिया माएकेँ पड़लैन। बजली-
बौआ, लोक हमरा सुगिया माएकहै छैथ मुदा दुनू बेटाक नाओं कियो ने जोड़ै छैथ से किए? ओना, हमरा कोनो तइसँ मान-रोख नहियेँ अछि। जेहने बेटा तेहने बेटी, तहूमे जेठ सन्तान।
सह पबिते बजलौं-
एकरा के काटत।
सुगिया माए फुटैत बजली-
बौआ, एकबेर गामक लोकक संगे जनकपुर मेला गेलौं। ताबे सुगियाक जनम भऽ गेल रहइ। दोसर सन्तान नहि भेल छल। तेते लोकक करमान मेलामे लगल रहै जे गामक संगीक जेरसँ हेरा गेलौं।
हेराएलो लोक भेटैए’, सुनि हँसी लगि गेल। बजलौं-
केते दिनक पछाइत गाम घुमि कऽ एलौं?”
सुगिया माए- ता डेढ़े बर्खक सुगिया छल, अपने तँ तीन दिन तक पानियेँ पीब रहलौं मुदा पेट-ले केकरोसँ किछु मंगलिऐ नहि। जइसँ अपन दूधे सुखि गेल, सुगिया-ले दूध मरि गेल! भीख मांगि ओकरा जीयौने छी। तँए सभ सुगिया माए कहैए।
सुगियाक भाँज लगिते बजलौं-
जखन मोटगर-डटगर बुधि तहियेसँ रहए तखन केते गोरेसँ ढुसि लेलौं?”
गम्भीर सुगिया माए, हमर बातकेँ अनसून करैत बजली-
बौआ, जहिना बापक सेवा केलौं तहिना ओहो गाए-पोसैक सभ लूरि अपना सोझमे देखा-सुना सन्तोखसँ मुइला आ तहिना...।
q शब्द संख्या : 1349, तिथि : 15 मार्च 2019


[i] तर्क-वितर्क
[ii] तृष्णा
[iii] जिनगीक खाड़ीक अवस्था।

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