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Friday, May 31, 2019

गामक ढहल समाज_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


गामक ढहल समाज
बीस बर्खक उमेर पार केला पछाइत रीतलाल बुझलक जे हम ढहल समाजक लोक छी। जहिना दुनियाँमे सुरेबगर देशसँ लऽ कऽ ढहल देश तकक बास अछि, जहिना देशमे सुरेबगर राज्यसँ लऽ कऽ ढहल-ढनमनाएल राज्य तकक बास अछि आ जहिना सुरेबगर जिलासँ लऽ कऽ ढहल जिला, ढहल अनुमण्डल, ब्लौक होइत गामोमे गाम अछि आ समाजोमे समाज अछि तहिना गामोमे समाज अछि आ समाजोमे गाम अछिए...।
नव जाड़क मासमे रूइयाक बजार देख जोलहा जकाँ नवकवरिया रीतलाल माथा-हाथ दए कानल नहि जे बाप रे एते रूइया धुनब हमरे बापक दिन छी, असथिरसँ रीतलाल ओइ रूइयाक ढेरीकेँ कबीर बाबा दिस टारि मनकेँ हल्लुक बनौलक। कबीर बाबा जकाँ कियो रूइया धुनैत जिनगी बीता लिअए ई महानता भेबे कएल। ओना, बीच्चेमे छोड़ि जिनगी भरि ढेकार मारनिहारक संख्या बेसी अछिए।
रीतलालक जन्म समाजक ओइ ढहल समाजमे भेल अछि, जे सभ तरहेँ समाजमे ढहल अछि, तँए बोनैया चिड़ैक चिड़ीमार जकाँ पाँखि पकैड़-पकैड़ लड़ैबतो अछि आ ठहाका मारि हँसबो तँ करिते अछि। हजार परिवारक वस्ती मनोरमपुर गाम अछि। परिवारक हिसाबसँ मनोरमपुरमे जातिक संख्या तँ कम अछि मुदा तैयो चालीस-बियालिसटा जातिक वस्ती छीहे। आने गाम जकाँ गामबाससँ लऽ कऽ बहरबासू धरिक समाजो आ गामो मनोरमपुर छीहे। जहिना रंग-रंगक जाति तहिना रंग-रंगक बिधो-बेवहार आ रीतो-रिवाजक संग देवियो-देवता आ हुनकापर चढ़ैबला फूलो-पात आ अच्छतो-चानन अछिए। कियो सुन्दर वनक सुन्नर चाननक साड़ीलकेँ रगैड़ चानन करै छैथ तँ कियो अधपकू पीसल पजेबाक चानन मांगमे नइ लगबै छैथ सेहो बात नहियेँ अछि, सेहो अछिए। आनठाम-आन गाममे हुअए वा नइ हुअए मुदा मनोरमपुरमे अखनो अछिए। जे बात रीतलाल गामवासी भेने देखियो रहल छल आ भागबो तँ करिते छल।
अँगनाक दुरुखा लग बैसल रीतलाल एक दिस अपन आँगन देखैत आबि रहल छल तँ दोसर दिस गामक अगवास सेहो देखिये रहल अछि। एक्के जातिक तीन घरक वस्तीमे बसैबला एक परिवार रीतलालक अछि, जे सभ तरहेँ सभ दिनसँ सकपंज समाजमे रहबे कएल अछि। समाजसँ ओकरा–माने सकपंज समाजकेँ–की भेटै छै आ ओ समाजकेँ किछु दऽ पबैए वा नहि, ओइ-जोकरक ओ अछि वा नहि, ई दीगर बात भेल। जे मनुख जेत्तै अछि ओ कोनो-ने-कोनो रूपे ओत्तै आनन्दित जीवन जीविये रहल अछि। भलेँ ओ बुझैक नजैरिक दूरी रहने नीककेँ अधला वा अधलोकेँ नीक किए ने बुझैत हुअए। ओना, बाल-बिआही प्रथाबला समाजक लोक रीतलाल, मुदा अखन धरि बिआह नइ भेल छेलै। हँ, ई दीगर प्रश्न अछि जे रीतलालक बिआह भेबे ने केलइ आकि अपने फुरने नइ केलक। ओना, एहेन जिज्ञासा केकरो मनमे रहबे किए करत, जइ समाजमे बाल-बिआहसँ लऽ कऽ अधवेसू उमेरबलाक बिआह होइत आबि रहल अछि, तइ समाजमे बिआह मुद्दे की रहि जाइए। माएकेँ हाक पाड़ि रीतलाल बाजल-
माए, कनी एम्हर अबिहेँ।
चिपरी पाथैत माए बजली-
बौआ, काजो अधखड़ुआ भऽ गेल अछि आ हाथोमे तेना गोबर लागल अछि जे धोइमे जेतेक समय लागत तइसँ पहिने काजे उसैर जाएत।
परिवारसँ लऽ कऽ समाज धरिक एक-एक विचार आ एक-एक काजकेँ दौड़ लगा देखै-परखैक परियास रीतलाल मने-मन कए रहल छल। ओना, लोको आ लोकक मनो अपन-अपन होइए, कियो कीर्तन कम करैए आ जयकार बेसी दइए, तँ कियो कीर्तनेमे तेना हेरा जाइए जे जय-जयकारक ठेकाने बिसैर जाइए जे कोन पतियानीक पछाइत केहेन जय-जयकार करब।  
गोबरक चिपरी पाथि सुचिता रीतलाल लग आबि बजली-
बौआ, मन किए खसल देखै छिअह?”
मातृ सोभावक जे गुण अछि, बच्चाक हर अधला रूपकेँ नीक जकाँ निखारि बनाबी जइसँ हँसै-हँसबैक रूपे बिला जाइए। हँसमुख फुटा कऽ किए हँसत। जे कनमुँह अछि वा कननमुँह अछि ओकरा ने फुटा-फुटा कऽ हँसबैक खगता अछि, मुदा से केते अछि आ केना बनत, यएह ने मूल भेल...।
जगैत चेतनाक चेतल जकाँ रीतलाल बाजल-
माए, मन खसल कहाँ अछि! हँ, कनी गहींर दिस झूकि गेल अछि।
अवोध माए सुचिता, तँए रीतलालक भावकेँ नीक जकाँ नहि पकैड़ पेलैन। ओना, मातृत्वक जुआर-मन सुचिताक रहबे करैन। जँ देखल जाए तँ परिवारक सभसँ महत्पूर्ण काज बच्चाक उत्पैतसँ लऽ कऽ पालन-पोषन करब धरिक होइते अछि, मुदा ई तँ एहेन बेवहारिक रूप पकैड़ नेने अछि जे अज्ञानी-सज्ञानी मनुखक कोन बात जे पशु-पक्षीसँ लऽ कऽ चुट्टी-पीपरी धरिकेँ ई वोध छइहे। विचारधारी मनुखक होइक नाते ई विचार करबे करै छैथ जे परिवारक सृजन पुरुख-नारीक बीचक जे पुरुषपनक सम्बन्ध अछि तइसँ होइए।
रीतलालक बात बिनु बुझने सुचिता बजली-
बौआ, अखन हम हाथी सन माए तोरा आगूमे छिऔ, बाप परोछ भऽ गेलखुन तइसँ की, तोरा कोनो चिन्ता हमरा रहैत नइ करक चाही।
ओना, रीतलाल मने-मन बुझि रहल छल जे माए अपन माइयक भाषामे बाजि रहली अछि, मुदा ओइ सिनेहकेँ रोकबो तँ कठिन अछिए किने। समाजक बीच अपनो आ अपन परिवारक संग अपन समाजोक (समाजक माने जातिक समाज) रूप-रेखा रीतलाल देख रहल छल तइमे ई देख रहल छल जे बहुतो गाम एहेन अछि जे अपन-अपन सुधरल रीत-रिबाज बनौने अछि, अपने जैठाम छी ओकरा सुधारि चलब अपन मानवीय कर्तव्य जरूर होइए। मुदा एहेन स्थितिकेँ सुस्थिति केना बनाएब..!
जहिना धिया-पुता पोखैर वा कोनो फलेक गाछपर अन्हा-गाहिंस गोला फेक दइए तहिना रीतलाल सेहो अन्हा-गाहिंस बाजल-
माए, ऐ गाममे नइ रहब..!”
तीस बर्खक जिनगी बितौल अनुभवी सुचिता, गामक रीत-नीत अंग-अंगमे समा गेल छेलैन। छोट जिनगी तँए पैघ घटनासँ भेँटे किए भेल रहितैन। सुचिता बजली-
बौआ, जेमे नेपाल कपार संगे जेतौ। एहेन गाम संसारमे केतए अछि जे तेकरा छोड़ि कऽ जेमे। परिवार नइ रहने अहिना लोकक मन छुछुआइए। ऐबेर तोरो बिआह करि देबौ।
मातृसागरमे दहाइत-भँसियाइत माइक रूप देख रीतलाल दिल खोलि कऽ हँसियो रहल छल आ समुद्रमे भँसैत माएकेँ भाषित करैत बजबो कएल-
माए, जखन गामेक काजमे रौदी लागि गेल अछि तखन परिवारक काज तँ सहजे रौदियाएल रहबे करत। तँए गाममे नीक नइ लगैए।
ओना, बजैक क्रममे रीतलाल बाजि गेल मुदा मनक मेघमे घुमैड़ रहल छेलइ। आइये नहि, अदौसँ दाव-चापक समाजक बीच अपन समाज रहल अछि, जइसँ जीवन शैली विपरीत दिशामे मुड़ि गेल। तँए जाधैर गाम-समाजक बीच प्रीति-पथ नइ बनत ताधैर सुधारमे गुणात्मक रूप नइ औत। आजुक जे गामक परिदृश्य बनि गेल अछि वा बनैक प्रक्रियामे अछि तैपर नजैर तँ दिअ पड़त...।
सामंजस करैत सुचिता बजली-
बौआ, अपनेटा परिवार एहेन नइ ने अछि जे रहै-जोकर नइए। अपना सन-सन परिवारसँ ते गामे भरल अछि।
माइक विचारकेँ सीमांकन करैत रीतलाल बाजल किछु ने, मुदा गामो आ गामक लोकोक चित्र-विचित्रक संग विचित्र-चित्र सेहो मने-मन देखए लगल।
q शब्द संख्या : 966, तिथि : 27 मार्च 2019

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