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Thursday, September 4, 2014

दोख केकर (क. राजदेव मण्‍डल)

मधुबनी जि‍लाक सखुआ-भपटि‍याहीमे आयोजि‍त 83म सगर राति‍ दीप जरय- नारी केन्‍द्रि‍त कथा गोष्‍ठीमे पठि‍त-

दोख केकर


इजोरि‍या रहै मुदा मेघक कारणे कनी अन्‍हार सन लगै छेलै। नि‍शि‍भाग राति‍। सभ सूतल। कि‍न्‍तु दि‍नेश दुनू परानीकेँ नि‍न्ने ने होइत। जेना नि‍न्ने रूसि‍ रहल। नै रहल गेलै तँ पत्नीकेँ कहलकै-
केतेकाल भूखल रहब? उठू खा लि‍अ।
पत्नी चुप्‍पे करोट फेड़ि‍ लेलक। पति‍ बाँहि‍ पकड़ि‍ हि‍लबैत पुछलकै-
की भेल? बजबै तब ने बुझबै।
बूझि‍ कऽ की करबै? अहाँ बुते कि‍छो ने हएत। अहाँ तँ उनटे...।
बुझबै तब ने। हमर दोख हेतै तँ हमरे दण्‍ड देब।
कोनो बुझने नै छि‍ऐ। दोख अहाँ माएकेँ रहै आ गारि‍-बात हमरा देलौं। अहाँ हमरा बजा नै सकै छी।
पति‍-
तँ कहू जे रूसलासँ दि‍न-गुजर चलतै?”
तमसाइत पत्नी बाजलि‍-
केतबो गल्‍ती अहाँक माए करै छै, तँ अहाँ एकोबेर बजै छि‍ऐ आ हमरापर डाँग लऽ कऽ हुड़कै छी। कहै छी, हमरा बजाउ नै। हम अहि‍ना भूखले मरि‍ जाएब।
समझाबैत पति‍ बाजल-
अच्‍छा एकटा खि‍स्‍सा सुनि‍ लि‍अ। फेर नै बजब। सुनि‍यौ। ई कथा चौबीस-पचीस बरख पहुलका छी। एकटा औरतक कथा। सुखक लीलशामे दुखक कथा। ओ बड्ड सुन्दर आ सुशील रहए। तँए शुरूमे पति‍क आँखि‍मे ओकरा लेल परेम भरल रहै। मुदा एक-आधटा एहेन घटना घटले जे ओइ औरतकेँ ससुर आ पति‍ दुनू दुख दि‍अ लगलै। ससुरकेँ मोनमाफि‍त दहेजो नै भेटल रहै आर बहुतो कारणेँ तमसाएल रहै छेलै। ओइपर सँ ओहने समए आ अवसर सेहो भेट गेल रहै। एहेन समैमे केतबो डाँट-डपट करतै तँ उनटा कऽ जवाबो केना देत।
दू बेरसँ पँचमसु चि‍ल्‍का नोकसान भऽ जाइ छेलै। पाँचम मास चढ़ि‍ते दरद करै आ गरभपात भऽ जाइ। तँए ओकरा पति‍ओकेँ हरि‍दम नाकेपर तामस रहै। जे सभ सोचने रहए ओ सभ पूरा नै होइत देखि‍ मोन हरि‍दम बि‍धुआएले रहै छेलै। देखैत सपना टूटि‍ गेलासँ कठ तँ हेबे करै छै।
...सासु नै रहै। औरति‍या केकरा कहि‍तै। आ के ओकर दुख बाँटि‍तै। जेमहरे जाए तेमहरे डाँट-डपट आ ठोकर। कि‍यो अपन नै, सभ आन। काज-उदेममे लगल समए कटबाक परि‍यास करए आ असगरमे बैसि‍ भरि‍ मन कानि‍ मनकेँ हल्‍लुक करए। समए बि‍तैत रहै छै। बि‍तैत रहल।
अहूबेर ओरति‍या तीन महि‍नासँ गरभवती रहए। कानसँ स्‍वर टकरा जाइ-
फेर ओहि‍ना हेतै। ऐबेर भगा बेटाकेँ चुमौन करा देबै।
फेर दोसर काने पति‍क स्‍वर सुनै-
कोन-कोन डागदर-बैद आ ओझहा-गुणीसँ देखेलौं। कोनो फेदा नै। हेतै केतएसँ? पपि‍याही अछि‍ ई।
भातक दुख नै बातक दुख। जेना सान्‍हि‍ मरै। कलेजामे भूर करै।
मोन आ शरीर दुनू संगी। एककेँ दुखि‍त भेने दोसर केना ठीक रहि‍ सकत।
औरत बि‍मार रहए लगल। माए-बापकेँ पता लगलै। समाद गेलै आ एलै। ओ नैहर आबि‍ गेल। जेना बैशखा रौदमे गाछतर। नैहराक छाँह।
सभ गप्‍प सुनि‍-बूझि‍ माए-बाप उपचारमे लगि‍ गेलै। की-की नै केलक। केतए-केतए ने गेल।
अही क्रममे एकटा साधु बाबा उपदेश देलखि‍न-
एकरा छह महि‍ना वोनबास करबए पड़तौ।
औरत तँ अहुना बोनवासेमे रहैत अछि‍। फेर कोन वोनबास?”
घर-अँगनासँ अलग। रहि‍ओ कऽ नै आबि‍ सकैत अछि‍। अपने हाथसँ बनौल खाएत-पीअत। आर सभ गप्‍प बुझए पड़तौ।
माए-बापकेँ मोन उड़ल रहै। सन्‍तानक सुखक लीलशा।
वोनबास शुरू भऽ गेल। घर-अँगनासँ अलग। आमक गाछीमे। बास करए लगल। टोलक लगेमे रहै मुदा गप्‍प तँ केकरोसँ नै कऽ सकैत अछि‍। इशारासँ काम चलाउ। आन लोक हटले रहै। दि‍न तँ कटि‍ जाइ मुदा राति‍ पहाड़।
कुशक ओछाइनपर गुदरी बि‍छौना। माटि‍एपर खाना आ माटि‍एपर सोना। मूजक डोरासँ डाँड़मे जखम भऽ गेलै।
जाड़ा-गरमी-बरखा। अन्‍हरि‍या राति‍। साँप-कीड़ा, बि‍लाय-कुत्ता नढ़ि‍या-खि‍खि‍र। एकान्‍त बास। भरि‍ दि‍न तँ जे कि‍छु मुदा राति‍मे माएकेँ नै रहल जाइ। बारहो बजे राति‍मे आबि‍ बनवासी बेटीकेँ भरि‍ पाँज पकड़ि‍ सुति‍ रहए। नि‍न्न टुटि‍ते ओइठामसँ चलि‍ आबए। जे फेर कोनो दोख ने भऽ जाए। आ आबैबला संतानपर कोनो वि‍पति‍ ने पड़ि‍ जाए।
केहनो कठि‍न समए रहै छै। कटि‍ तँ जेबे करै छै। लोको कोनो कम लगराह होइ छै।
वोनबासक समए बीतल।
गरभकाल पूरा भेलापर औरति‍याकेँ बेटा जनमलै। फेरसँ ओकर सुखक दि‍न घुरि‍ एलै। सभ दिससँ सि‍नेहक बरखा हुअ लगलै।
कि‍छुकाल  चुप रहला पछाति‍ दि‍नेश अपना पत्नीकेँ पुछलकै-
आब कहू जे ओइ माएकेँ जँ बेटा गारि‍-बात देतै तँ ओकर की दशा हेतै?”
पत्नी गुम्‍मी साधने। कि‍छो बलजे ने जाइ। फेर दि‍नेशे बाजल-
ओ औरत हमर माए छि‍ऐ आ ओ बेटा हमहीं छि‍ऐ।

दुनू परानी चुप। राति‍क चि‍ड़ै केतौ-केतौ बजै छेलै। आर सभ कि‍छु नि‍शब्‍द भेल। दुनू परानीक बीचसँ शब्‍द हेरा गेल छेलै। कि‍न्‍तु  हाथ-पएरक क्रि‍यासँ गप्‍प शुरू भऽ गेल छेलै। साँस-प्रश्‍वाँस गवाही दइ छेलै। मुस्‍कीकेँ अन्‍हार झँपने छेलै। आ दुनू परानीक बीच दोख बि‍ला गेल छेलै।  

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