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Saturday, September 6, 2014

लाजो (क. शम्‍भु सौरभ)

लाजो


अजगर सन अथबल आ पहाड़ोसँ नमहर ई करि‍याही राति‍ आइ ठेलनौं ने ठेलाइत अछि‍। बि‍जुरी आ जोगनीक चोरा-नुक्कीक संग झिंगुरक झंझनाहटि‍क बीच लाजोक करुण-क्रंदनक ति‍रोहि‍त स्‍वर-वायुक हि‍लकोरमे जेना बि‍ला जाइत होन्‍हि‍। सुगबा नाकक दुनू कछेर दऽ बहैत आँखि‍क नोर सुखा कऽ पीपरी जकाँ परि‍ गेलै। ऐ बीच भनसा चारपर सँ एकटा टि‍टही टि‍टकारी भरैत दछि‍न दि‍स उड़ि‍ गेल।
पोखरि‍क उतरवारि‍ भि‍ण्‍डापर पछुआर दि‍स आएल गामवालीकेँ भयाैन सन लगलनि‍‍। ओ चट आँगन दि‍स घूमि‍ गेली आ गोसाँइ असोराक ओरि‍आनी लग आबि‍ धड़फड़ा कऽ खसि‍ पड़ली। धब्‍ब दऽ कि‍छु गि‍रबाक अवाज सुनि‍ हाथमे टार्च नेने घरसँ लालकाकी बहरेली।
लाल, मर एना कि‍ए! की भेल अहाँकेँ?” कनि‍याँकेँ उठबैत बजली लालकाकी।
माँ।  
हँ-हँ, बाजू ने। कि‍छु देखलि‍ऐहेँ की, एना डेराएल जकाँ कि‍ए छी?” कनि‍याँकेँ भयभीत देखि‍ पुछलनि‍ लालकाकी।
कनि‍याँ-
ऐ पोखरि‍क दछि‍नवरि‍या भि‍‍ण्‍डापर सँ कोनो मौगीक कानबक अवाज आबि‍ रहल छै। एतेक रातिमे के कनतै। हमरा तँ लागल कोनो डाकि‍नीक अवाज छि‍ऐ। ओम्‍हरका भाग तँ भुताहि‍यो छै ने।
लालकाकी-
दुर बताहि‍, अहाँकेँ कि‍छु बेसी डर लगि‍ गेल। ओम्‍हर एहेन कोनो बात नै छै। ओइ भि‍ण्‍डापर तँ बैंक बाबूक पोखरा-पाटन मकान छन्‍हि‍।
कनि‍याँ-
हि‍नका हमर बातपर बि‍सवास नै होइ छन्‍हि‍ तँ चलथु वारी आ सुनथुन ओइ अवाजकेँ।
लालकाकीकेँ घि‍चने-ति‍रने कनि‍याँ लऽ गेलखि‍न। वारीमे स्‍वर आरोहि‍त होइत दि‍सा दि‍स आँगुर बतबैत कहलखि‍न।
लालकाकी कि‍छुकाल धरि‍ ओइ कानबकेँ अकानैत रहली। तेकर बाद बजली-
कनि‍याँ, ई तँ बैंक बाबूक कनि‍याँ लालपुरवालीक कानब छी। नै जानि‍, की भेलै। अखनि‍ तँ बि‍आहक सालो ने लगलै हेन। कनि‍याँ तँ इन्‍द्रक परीए सन बुझू। नीक-नकार सि‍कार, सुन्नरि‍ आ गुणगरि‍।
तखने आँगुरसँ कि‍यो सोर पाड़लकनि‍-
अहाँ सभ एतए की करै छी। जल्‍दी आँगन जाउ।
दुनू सासु-पुतोहु नमहर डेगे आँगन दि‍स चल गेली।
ताधरि‍ टोल-पड़ोसक सभ जागि‍ गेल छेलै। वि‍षादपूर्ण आभाक संग राति‍क अन्‍ति‍म पहरक सम्‍पूर्णाहुति‍ भऽ गेल छल। बैंक बाबूक आँगन आ दलान लोकसँ भरि‍ गेल छेलनि‍। आँगनसँ दलान धरि‍ गुदुर-गुदुर-फुसुर-फुसुर भऽ रहल छेलै। कि‍यो कहै छेलै-
आह, बैंक बाबू बड़ नीक लोक छला। भगवानोकेँ केकरो नीक देखल नै जाइ छन्‍हि‍। एहेन मेहनति‍या आ एहेन बेवहारि‍क। भरि‍ मुँह केकरोसँ बजबो ने करै छला।
तैबीच ठोरमे खैनी दैत टुनटुन बाबू बजला-
भाइ, आइए साँझमे तँ सबहक संग बैसि‍ कऽ भोज खेने छला फेर ई छने-मे-छनाक! महा आश्चर्य।
आश्चर्य कोन, कोनो आश्चर्य नै। उढ़ारि‍ कऽ जे अनने छथि‍ एगो डाइनकेँ। गोर चमरी देखि‍ कऽ लोभा गेला। कोनो टेना-मानी भेल हेतनि‍। पेस देने हेतनि‍। ओकरा की छै। एक बुलाया तेरह आया। हमर भतीजीसँ कथा लगैत रहै। बुड़हा-बुड़ही आ घरक सभ सदसकेँ हमर भतीजी पसीन रहै मुदा...।
बुढ़ि‍या काकी, बड बजै छी। चुप रहू ने।
बि‍च्‍चेमे बात कटैत बजला लूटन पुरहि‍त। आ ओम्‍हर आँगनमे लाजो-अक्क-बक्क। एकदम बौक। मुहसँ बोल आ आँखि‍सँ नोर दुनू जेना बि‍ला गेलनि‍।
ओरि‍यानीसँ ओंगठल एकटक बैंक बाबूक पार्थिव शरीरकेँ देखि‍ रहल छेली। हृदए प्रान्‍तमे उठल बि‍हाड़ि‍ हुनक हृदएस्‍त बुधि‍-वि‍वेक आ वि‍चारकेँ उधेश-पुधेश कऽ रखि‍ देने छेलनि‍। हुनका मोनपर लगलनि‍, ओ कौलेज जइमे दुनू गोटे संग-संग पढ़ै छेली। हुनका मोन पड़ऽ लगलनि‍ ओ काली मन्‍दि‍र जैठाम काली माँक समक्ष दुनू गोटे संगे-संग जीऐ-मरैक सप्‍पत खेने छेली। मुदा आइ सभ बात फूसि‍। सामनेक सत् गत सभ सत्तकेँ मटि‍यामेट कऽ देने छल। आइ ओ केकरो लेल डाइन छेली तँ केकरो लेल काल रात्रि‍। केकरो लेल कि‍छु तँ केकरो लेल कि‍छु। वि‍भि‍न्न अभद्र उपाधि‍सँ उपालम्‍भि‍त भऽ लाजो ओत्तै ओरि‍आनीएमे ओङ्घरा गेली।
सभ सामान जुटा लेल गेल छेलै। बाँसक रथ तैयार छेलै। बैंक बाबूक पार्थिव शरीरकेँ उठा-पुठा असमसान दि‍स वि‍दा भऽ गेल। आ एमहर टोलक कि‍छु वि‍धवा सभ लाजोकेँ ओरि‍यानीसँ उठा कऽ असोरापर बैसौलखि‍न। ओहीमे सँ कि‍यो हाँइ-हाँइ सींथ धोइत बजली-
जो गे अभगली, भरले जुआनीमे चि‍बा गेलेँ साँएकेँ।
कि‍यो ओकर हाथकेँ सि‍लौटपर रखि‍ लोढ़ी लऽ चूड़ी फोरैत बजली-
गे, खाइए कए छेलौ तँ खइतेँ अपन बाप-भाएकेँ। हमर पोता तोरा की बि‍गारने छेलौ। डनि‍याही कहींके!
अही क्रममे चूड़ीक एकटा टुकड़ी लाजोकेँ पहुँचामे भोंका गेलै। मुदा नि‍स्‍तेज लाजोक मुहसँ इस तक नै बहराएल। लाजो यथावत् सभ स्‍वीकारैत रहली। मुदा हुनक सासु हुनक गरदनि‍पर एक मुक्का मारैत बजली-
जो गे हरासंखनी, कनी कनबो तँ कर। ऐ इस-इसेबो तँ कर। हमरा बेटाकेँ भरल-जुआनीमे चि‍बा गेलेँ। रह हमरे जकाँ राँड़।
गालमे एक ठुनका मारि‍ ओतएसँ उठि‍ कऽ चल‍ गेली।
श्राद्धक भीड़-भाड़क पश्चात् कटाैन आ डेरौन एकान्‍तसँ लाजो घबरए लगलीह। सासुक ओल सनक बोल आ ननदि‍क ठुनका आ तैपर ससुर आ भैंसुरक दुत्‍कार-फटकार। बेसहारा लाजोक आँखि‍क समक्ष एकदम अन्‍हारे अन्‍हार। मुदा लाजो हि‍मतगरि‍ आ कमासुत छेली। हुनका अपन चरि‍त्र आ आचरणपर पूरा भरोस छेलनि‍। ओ सासु-ससुर वा परि‍वारक अन्‍य सदसक बेवहारसँ कखनो दुखी नै भेली। घरसँ नि‍कालि‍ देला पछाति‍ ओ ओइ काली मन्‍दि‍रपर गेली जेतए ओ आ कि‍सुन (बैंक बाबूक) संग-संग जीबा-मरबाक सप्‍पत नेने छेली। ओ कालीक समक्ष वि‍नय-भावसँ सजले नेत्र एक टंगा दऽ कि‍छु काल धरि‍ ठाढ़ि‍ रहली। तत्‍पश्चात बैसैक चेष्‍टामे भेली आकि‍ पाछूसँ कि‍यो टोकारा देलकनि‍-
लजवन्‍ती?”
ओ अकबका कऽ पाछू तकली-
शालीग्राम?”
हर्ष-वि‍षादक बीच मुहसँ बकार तक नै बहरा सकलनि‍ मुदा हृदैक करूर्णाद्र भाव आँखि‍सँ मोती बनि‍ झहरए लगलनि‍। ताधरि‍ शलीग्राम सहटि‍ कऽ आर नि‍कट आबि‍ गेलनि‍। लाजो हुनक कन्‍हापर अपन मुड़ी गोंति‍ हि‍चुकऽ लगली।
शालीग्राम लाजोक पति‍क घनि‍ष्‍ठ मि‍त्र छेलखि‍न। परि‍स्‍थि‍ति‍क जानकारी भेटलासँ ओ बड़ दुखी भेला। ओ लाजाेकेँ अपन घर लऽ जा कि‍छु ट्यूशन आ एकटा प्राइवेट स्‍कूलमे नोकरी धड़ा देलखि‍न। लाजो एकाग्रचि‍त भऽ अपन ड्यूटी करए लगली। हि‍नक करतब नि‍ष्‍ठासँ संतुष्‍ट भऽ स्‍कूलक डायरेक्‍टर हि‍नका ओइ स्‍कूलक प्रिंसि‍पल बना देलकनि‍। ऐ बीच लाजो अपन दरमाहाक तीन-चौथाइ भाग अपन सासु-ससुरकेँ पठबैत रहलखि‍न। शनै: शनै: सासुरक परि‍वार सहानुभूति‍ हि‍नका भेटए लगलनि‍। एक दि‍न बैंकक भैकेंसी नि‍कललै। ईहो बी.कम. ऑनर्स फस्‍टक्‍लास छेली। शालीग्रामक सहयोगसँ हि‍नका बैंकमे नोकरी भऽ गेलनि‍। समए बदललै बि‍तलाहा बात सभ नहु-नहु तरऽ लगलै मुदा लाजवन्‍तीक वि‍चार आ बेवहार यथावत्। अखनो हुनका अपन सासु आ ससुरक प्रति‍ श्रद्धा आ सि‍नेह ओहि‍ना छन्‍हि‍ जेना पूर्वमे छेलनि‍।
यद्यपि‍ ठामो-ठि‍म ई चर्चाक वि‍षय बनि‍ गेल छेलै जे लाजवन्‍तीकेँ दोसर बि‍आह कऽ लेबाक चाहि‍यनि‍। जि‍नगी पहाड़ सनक छन्‍हि‍। कि‍यो कहथि‍ जे जइ सासुरसँ ओ ति‍रस्‍कृत भऽ नि‍कालि‍ देल गेली ओइ सासुरक प्रति‍ एते मोह-ममता उचि‍त नै। मुदा लाजो अपन नैहर आ सासुरक परम्‍पराक लीकसँ एक मि‍सि‍यो टस्‍ससँ मस्‍स होमए लेल तैयार नै।
समए बीतैत गेलै। बैंक बाबूक हि‍नक क्रि‍या-कलाप आ करतब परायणसँ प्रसन्न भऽ हि‍नकर कुर्सी अपन स्‍पेशल रूममे लगबा देलखि‍न। लाजो सेहो प्रसन्न रहए लगली। काम अधि‍क बढ़ि‍ गेलापर लाजवन्‍तीकेँ छुट्टीक बादो देर साँझ धरि‍ मेनेजर साहैबक संग काज करए पड़ै छेलनि‍। कहि‍योकाल ओ मैनेजर साहैबक संग हुनक डेरापर जा हुनक पत्नीक काम-काजमे सेहो सहायता कऽ दइ छेलखि‍न। एवम प्रकारेँ मैनेजर साहैब आ लाजो, लाजो आ मैनेजर साहैब, दुनू एक दोसराक प्रति‍ पूर्ण वि‍श्वस्‍त आ सि‍नेहि‍ल भऽ चुकल छला। ई बात ऑफि‍समे बहुचर्चित भऽ गेल छेलै मुदा कानो-कान, माने-मोन।
एक दि‍न।
सुनै छी, कनी घुसकि‍ कऽ एमरे आउ।
पूजाक दीप लेसैत बजली लक्ष्‍मी अपन पति‍ मैनेजर साहैबसँ।
लक्ष्‍मी जीक आदेश आ हम घुसकी नै, से केना हेतै।
मुस्‍कि‍याइत मैनेजर साहैब घुसकि‍ कऽ पत्नीक देहमे सटैत पुन: बजला-
आइ मोन बड़ हरि‍यर लगैत अछि‍, की बात छै?”
बात की रहतै। मोनमे एकटा बात केतेक दि‍नसँ फुदकैत अछि‍, मुदा ठोरपर अबैत-अबैत...।
बि‍ला जाइत अछि‍ सएह ने। एहेन कोन बात अछि‍ जेकरा प्रगट करैमे एतेक संकोच।
बि‍च्‍चेमे लोकैत मैनेजर साहैब बजला-
पुन: बाजू, नि‍:संकोच बाजू।
लक्ष्‍मी-
हमरा इच्‍छा अछि‍ जे आब आलोकक बि‍आह कऽ दि‍यनि‍‍। कारण जे ओहो आब इंजीनि‍यरिंग कौलेजक प्रोफेसर भऽ गेला अछि‍। आ बि‍आहक योग्‍य सेहो। हमहूँ आब बरबरि‍ अस्‍वस्‍थे रहै छी। जँ लाजो नै रहि‍तथि‍ तँ हम कहि‍या ने सठि‍ गेल रहि‍तौं।
मैनेजर साहैब-
हँ हमरो इच्‍छा अछि‍ जे आब घरमे सुलक्षण आ सुशील लागलि‍ पुतोहु आबथि‍। मुदा...।
लक्ष्‍मी-
मुदा की?”
मैनेजर साहैब-
मुदा यएह जे कोनो नीक कथा आबए तब ने।
लक्ष्‍मी-
कथा तँ...।
मैनेजर साहैब-
तँ की नीक कथा आएल अछि‍। लड़की अहाँ देखने छि‍ऐ।
लक्ष्‍मी-
जँ अहाँ तमसाइ नै तँ बताबी।
मैनेजर साहैब-
ऐमे तमसाइक कोन बात।
लक्ष्‍मी–
लड़की तँ अहूँ देखने छि‍ऐ। अहाँक हाथेमे अछि‍ ई कथा।
मैनेजर साहैब-
हे, बुझौल जुनि‍ बुझाउ। खेलाउ खुलि‍ कऽ।
लक्ष्‍मी-
लाजो।
मैनेजर साहैब-
अहाँ तँ अन्‍तर्यामी छी यै। हमर मोनक बात...।
कनी रूकि‍ कऽ पुन:-
हमरो तँ यएह इच्‍छा छल, मुदा भय छल जे कहीं अहाँ...।
लक्ष्‍मी-
नै-नै, हम की। हम तँ आलोकसँ स्‍वीकृति‍ आ सहमति‍ दुनू लऽ नेने छी।
मैनेजर साहैब-
से तँ ठीक, मुदा...।
लक्ष्‍मी-
मुदा-तुदा कि‍छु नै। अहाँ कहए चाहै छी से बुझलौं। बौआकेँ ओकर वि‍धवा होइक बात मालूम छै। हम सभ बात फरि‍छा कऽ कहि‍ देने छि‍ऐ। ओकरा ओ कनि‍याँ बड़ पसि‍न छै। हम ऊपरका मोने कि‍छु वि‍रोधो करए चाहलि‍ऐ मुदा ऐ धँसल परम्‍पराकेँ ओ मानैले तैयार नै अछि‍।
मैनेजर साहैब-
लाजो मानथि‍ तखनि‍ ने। ओ वर्तमान परम्‍परासँ हटि‍ कऽ कि‍छु करैले तैयारी नै होथि‍। ओना, हमरो ओ जीमे गरि‍ गेल छथि‍। जहि‍यासँ ओ हमर कार्यालयमे हमर सहयोगी बनि‍ एलीह आ हम चैनक जि‍नगी जीबए लगलौं। हमरा मोनमे तँ अछि‍ जे जे काल्हि‍ होइ से आइ भऽ जाए। मुदा...।
लक्ष्‍मी-
एकटा बात करू ने। शालीग्राम बाबूकेँ फोन कऽ बजबि‍यनु ने। हुनक बात लाजो नै टारथि‍न्ह। हमरा बि‍सवास अछि‍।
मैनेजर साहैब-
अच्‍छा ठीक अछि‍।
कहि‍ घरसँ चल गेला।

वएह काली मन्‍दि‍रक परि‍सर जेतए कहि‍यो लाजो आ कि‍सन संग-संग जीऐ-मरैक सप्‍पत नेने छला। आइ फेर एकबेर वि‍वाह-मण्‍डपक रूपे सुसज्‍जि‍त भऽ सुशोभि‍त भऽ रहल अछि‍। लाजोक नैहर आ सासुर दुनू पक्ष लड़कीक दोसर बि‍आहक वि‍रोधमे अपन अरि‍यल रूख अपनौने छथि‍। परम्‍पराक वि‍रूद्ध आचरण करब अपन बाप-पुरखाक अपमान बुझै छथि‍, प्रति‍ष्‍ठा बुझै छथि‍। शालीग्राम बाबूसँ नै रहि‍ भेलनि‍‍ ओ गरजैत बजला-
अँए यौ, जहि‍या ऐ निर्दोष अवला वि‍धवाकेँ मारि‍-पीट कऽ घरसँ नि‍कालि‍ देने रहि‍ऐ, केतए रहए अहाँ सबहक प्रति‍ष्‍ठा। आइ जँ कि‍यो हि‍नका पत्नीक रूपमे स्‍वीकार कऽ हि‍नक पुनर्जीवन देबए चाहै छन्‍हि‍ तँ एकरा अहाँ सभ अपन प्रति‍ष्‍ठाक वि‍षय बनौने छी। धि‍क्कार ओइ परम्‍पराकेँ अछि‍ जे असमैमे भेल वि‍धवाकेँ अपन जर्जर शि‍शकीक सि‍क्करि‍मे बान्‍हि‍ कऽ रखैत अछि‍ आ ओकरा कुहरि‍-कुहरि‍ कऽ जीबऽ लेल वि‍वश करैत अछि‍। आउ तोड़ू ओइ परम्‍पराकेँ आ कालीकेँ साक्षी मानि‍ सभ कि‍यो दि‍यौन्‍ह असि‍रवाद ऐ बर-बधूकेँ।
तखने केम्‍हरोसँ वसन्‍ती पूर्वा सि‍हकल आ हर्षोन्‍मुख भऽ गीत-नादक संग पुनर्विवाह सम्‍पन्न भेल।

शम्‍भु सौरभ
पि‍ताक नाओं- चि‍रंजीव लाल दास
गाम- भरवाड़ा
जि‍ला- दरभंगा।
सम्‍प्रति‍-
गाम- बैका, पोस्‍ट- बैका-वि‍ष्‍णुपुर, भाया- घोघरडीहा,

जि‍ला- मधुबनी।   

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