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Tuesday, September 2, 2014

गावीस मोइस (क. जगदीश प्रसाद मण्‍डल) 83म सगर राति‍, भपटि‍याहीमे पठि‍त

गावीस मोइस‍

बड़का छि‍ड़ि‍एलहा छि‍ट्टामे छाँछी-मटकुरी नेने दौरीवाली कुमहनि‍ अँगने-अँगने चौरचनक छाँछी-मटकुरी दैत हमरो अँगना एली। हमहींटा नै हमर टोले हुनके सीमामे पड़ैए। जहि‍ना जमीन्‍दारक अपन जमीन्दारीक सीमा होइए तहि‍ना पसारी-उसारीक सेहो होइते अछि‍। परि‍वारमे भि‍नौज भेने जमीन्दारोक जमीन्दारी बँटाइए आ पसारीओ-उसारीक तँ बँटाइते अछि‍। मुदा से नै, एक पुरखि‍याह परि‍वार रहने तीन पुश्तसँ एके कुमहार परि‍वारक गाम रहल अछि‍। ओना पहि‍ने एक परि‍वार रहने डोमो-चमारक रहलनि‍, मुदा बेटाक बाढ़ि‍ एने दुनूक गाम टोल-टोल बँटा गेल। टोलो-टोल कि‍ एक रंग बँटाएल, चारि‍ बेटा भेने डोम चारि‍ टुकड़ीमे गाम बाँटि‍ लेलक मुदा तीन बेटाक परि‍वार भेने चमार तीनि‍ए टुकड़ीमे बँटने अछि‍। पछि‍ले शुक्र दि‍न दुआइत फुटि‍ गेल। सि‍लौट सोझहे, खोलि‍यापर मोसि‍क दुआइत रखै छी आ बगलेक खुटीमे पाटी लटका कऽ रखै छी। स्कू‍ल जाइबेर दुआइत उतारए लगलौं आकि‍ हाथसँ छुटि‍ सि‍लौटपर खसि‍ पड़ल, फुटि‍ गेल। सौंसे सि‍लौट गावीस मोइस‍ पसरि‍ गेल, आ मोसि‍दानी-लत्ता जे देने रहऐ ओ दुआति‍क पेनीए धेने रहल। तही दि‍नसँ स्कूल कामे भऽ गेल। ओना माए शनि‍ए दि‍न दौरीवालीसँ दुआइत मंगलखि‍न मुदा सठि‍ गेल रहै, तँए वेचारी चौरचनक आबाक नाओं कहलकनि‍। माइयो मानि‍ गेली। मानि‍ओं केना नै जैतथि‍, पहि‍ने माटि‍केँ काँच दुआत बनत, तखनि‍ रौदमे सुखौल जाएत, पछाति‍ आबामे पकि‍ ने काजक हएत, से थोड़े मुहसँ निकलने पुरि‍ जाएत। ओना सुरुजो भगवान ऐबेर कुमहारपर खुशी छथि‍न, आबासँ पनरह दि‍न पहि‍नैसँ जे रौद रहल, ओ अनका ले जे होउ मुदा कुमहारक तँ भागे भेल। भादोक रौद कुमहारे हि‍स्सा मे अछि‍। भेल रहै तेसराँ, तेहेन सतैहि‍या चौरचनसँ पहि‍ने लधलक जे आबामे पकैकेँ के कहए जे सेरि‍आ कऽ एकोटा छाँछी-मटकुरी सुखबो ने कएल। बि‍नु पकौल छाँछी आकि‍ मटकुरीमे दही केना पौरल जाएत। मुदा तँए कि‍ लोक पावनि‍ छोड़ि‍ देत, अरबा चाउरक पीठर घोरि‍-घोरि‍ पावनि‍ तँ पुरेबे करत। चौरचनमे हाथ उठेबे करत। सगुन-अपसगुन तँ अपन-अपन सीमामे अछि‍, कि‍यो खीर-पुड़ीसँ हाथ उठबैए तँ कि‍यो अढ़मे रहि‍ चानकेँ मुँह दुसैए। जहि‍ना हमर कान खड़ल रहए तहि‍ना माइओ आ कुमहनि‍ओक रहनि‍। छि‍ट्टा रखि‍ते दौरीवाली मटकुरीक दोगसँ दुआइत नि‍कालि‍ बजली- 
“काकी, पहि‍ने तीनि‍एटा भूरबला दुआइत बनबै छेलौं, जइमे कनीओं धक्का लगने उनटि‍ जाइ छेलै, तँए चारि‍टा लटकबैबला अछि‍, आब उनटै-पुनटैक डर कम रहत।” 
दुआइत देखि‍ मन चपचपा गेल। केना ने चपचपाइत, आठ दि‍नमे आठटा खाँत सीखने रहि‍तौं, से तँ पछुएबे केलौं। मुदा काल्हि‍सँ से थोड़े हएत। दुआइतकेँ माए नि‍ङ्गहारि‍-निङ्गहारि‍ देखए लगली जे पाक नीक छै की नै। कि‍एक तँ भरि‍ जि‍नगी थाले-पानि‍मे रहत। जँ कनीओं कँचकुह रहत तँ भसकि‍ये जाएत माइयक परेखबकेँ दौरीवाली अपन तराजूपर तौलि‍ बुझलनि‍ जे भरि‍सक काकी पाक देखै छथि‍। जहि‍ना वेचारी अपन सौदाकेँ गारंटी दि‍अबैए जे एते दि‍न एक्केउपे चलत तहि‍ना दौरीवाली बजली- 
“काकी, एना कि‍ए नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ देखै छथि‍न, जहि‍ना वि‍धाता अपन चाकक गढ़लकेँ देखै छथि‍न तहि‍ना हमहूँ ने अपन गढ़लकेँ देखै छि‍ऐ। जँ से नै देखबै तँ बाल-बोधक काज रोकैक दोखी के बनत।” 
वस्त्र उतरल बरकेँ जहि‍ना दाइ-माइ आगू पाछू-पाछू चला नाक पकड़ि‍ परीछा लइत तहि‍ना माए आँगुरसँ ठोकि‍-ठोकि‍ दुआइति‍क परीछा लऽ नेने छेली। जे बात कुमहनि‍ओ बूझि‍ गेली। तैबीच हमरो मन पाछू घुसकि‍ गेल। घुसकि‍ ई गेल जे दुआइत भाइए गेल, गावीस चाही। बजलौं- 
“माेइस‍ कथीकेँ बनाएब। गावी‍सो तँ नहि‍येँ अछि‍।” 
अोना केते दि‍न गावीस नै रहने चि‍क्कनि‍ माटि‍ सेहो घोड़ने छी। दुआइतमे जे से भट्ठा तँ सोलहो आना चि‍कनीए माटि‍क बनबै छेलौं। गावीस मुलाइम माटि‍ होइ छै। तहूमे पड़तदार सेहो होइ छै। मुदा चि‍क्कनि‍ माटि‍ सक्कतो होइ छै आ रंगगरो तँ होइते छै। गावीस सुनि‍ते जेना कुमहनि‍केँ बि‍सरल बात मन पड़ि‍ पानि‍ चढ़ा देलकनि‍ तहि‍ना हाँइ-हाँइ कऽ लत्तामे बान्हैल गावीस छि‍ट्टाक पेनी लग देखैत बजली- 
“बौआ, अबैकाल ओरि‍या कऽ ते रखने छेलौं, मुदा तर पड़ि‍ गेल अछि‍, अखनि‍ जे हाथ गोड़ि‍येबै तँ बरतन ढनमना जाएत। तहूमे चौरचनक छी, टोनाह होइत अछि‍।” 
माए कहलखि‍न- 
“आेरि‍या कऽ ऊपरसँ उतारि‍-उतारि‍ आँगनमे रखि‍ लि‍अ, गावीस नि‍कालि‍ फेरि‍ सेरि‍आ लेब।” 
माइयक बात सुनि‍ दौरीवाली बाजलि‍- 
“जाबे बरतन सेरि‍आएब ताबे चारि‍-पाँच अँगनामे बाँटि‍ सधाइए लेब। घुमैकाल देने जेबनि‍।” 
नव दुआइत देखि‍ मन खुशी रहबे करए बजलौं- 
“जाबे अहाँ चारि‍ पाँच अँगनासँ घूमब ताबे हमहूँ दुआइतकेँ धोइ, लत्ता भीजा लइ छी।” 
घुमैकाल गावीसक मोटरी दौरीवाली माइयक हाथमे दैत बाजलि‍- 
“काकी, अपने एकरा चोरा कऽ रखि‍ लथु, जहि‍या-जहि‍या बौआकेँ मोइस‍ सधतै तहि‍या-तहि‍या दि‍हथि‍न, नै तँ सोहनगर होइ छै, माटि‍ ने खए लगनि‍।” 
एकटा ढेकरी दुआइतमे दैत कड़चीसँ घोड़ैत कुमहनि‍केँ कहलि‍ऐ- 
“यएह गावीस तँ सालोसँ बेसी चलत।”
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२९ अगस्तस २०१४

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