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Wednesday, September 24, 2014

चतुर बालक (क. फागु लाल साहु)

83म सगर राति‍ दीप जरय, सखुआ-भपटि‍याही गोष्‍ठीमे पठि‍त कथा-  



चतुर बालक






ई कथा सोनू नामक एकटा दस बर्खक बालकक छी। सोनू गरीब परि‍वारमे जनम भेने गामक-घरक लड़का सभसँ कतराइते रहै छल जे,  हमर माए-बाबू गरीबीक जि‍नगी जीब रहल अछि‍।
एक दि‍न सोनू अपना गामसँ बजार चलि‍ देलक। बाटमे सोचैत रहल जे गरीबसँ धनीक केना हएब। ई सोचैत सोनू एकटा होटलक सोझहा सड़कपर ठाढ़ भऽ गेल। सोचैत-सोचैत सोनू होटल दि‍स डेग बढ़ेलक। तखने होटलक मालि‍क मनेजरकेँ कहलक-
हम ऊपरका रूपमे सुतैले जाइ छी, बेसी खगता हुअए तखने हमरा उठाएब।
सोनू ऐ बखतकेँ मोनासीब बूझि‍ दस मि‍नट रूकि‍ कऽ मनेजरकेँ कहलक-
होटलक माि‍लक- बौधू बाबू हमर पि‍ताक दोस्‍त छथि‍न। हुनकासँ भेँट करबाक अछि‍।
मनेजर एकटा बेड़ा दि‍यए सोनूक समाद मालि‍क लग पठेलक। माि‍लक अधकचुआ नीनमे रहैक कारणे बेड़ाक बातकेँ ठीकसँ नै बूझि‍ कहलनि‍-
जाउ, जे मगैत होइ से दऽ देबै।
नि‍च्‍चाँ आबि‍ बेड़ा मालि‍कक कहब मनेजरकेँ सुना देलक। आ अपन काजमे लगि‍ गेल।
मनेजर सोनूकेँ पुछलक-
बौआ, की लेबह?”
सोनू उत्तर दैत कहलक-
खेनाइ खि‍आ दीअ आ जे बढ़ि‍याँ मि‍ठाइ हुअए से दूटा डि‍ब्‍बामे दऽ दीअ।
मनेजर सोनूकेँ खेनाइ खि‍आ दू डि‍ब्‍बा बढ़ि‍याँ मि‍ठाइ सजा कऽ दऽ देलक। सोनू होटलसँ दुनू डि‍ब्‍बा मि‍ठाइ लऽ वि‍दा भऽ गेल।
हाथमे दुनू डि‍ब्‍बा लेने चतुराइ करबाक तजूरबा करबाक लेल दोसर शहर चलि‍ गेल। ओतए सोना-चानीक दोकानमे पहुँचल। दोकानक मालि‍क लोभी छल। ई बात सोनूकेँ मालूम भऽ गेल छेलै। सोनू ओइ लोभी मालि‍ककेँ चि‍न्‍ह, प्रेम-भाव देखबैत मि‍ठाइक सुन्‍दर साजौल दुनू डि‍ब्‍बा दैत बाबूजी शब्‍दसँ सम्‍बोधि‍त करैत हाथमे थम्‍हा दैत अछि‍।
लोभी मालि‍क मि‍ठाइक डि‍ब्‍बा अपन पत्नी नि‍रूकेँ बजा दऽ दैत अछि‍। कि‍छुए कालक बाद, जखनि‍ दोकानमे गहिंकी सबहक भीड़ लगल, तखने बाजल-
बाबूजी, डि‍ब्‍बा महक मि‍ठाइ रखि‍ लि‍अ आ डि‍ब्‍बा हमरा दऽ दि‍अ।
मािलक बि‍नु सोचने सोनूकेँ कहलक-
जा भीतर, चाचीसँ डि‍ब्‍बा मांगि‍ लि‍हऽ।
सोनू भीतर गेल आ मालि‍कि‍नकेँ कहलक-
चाची, बाबूजी दूटा सोनाक सि‍क्का दइले कहलनि‍।
सुनि‍ते मलि‍कि‍नी वि‍चारए लगली। देबाक मन नै देखि‍ सोनू जोरसँ बाजल-
बाबूजी, जाबए अपनेसँ नै कहबै ताबए चाची थोड़े देती, अपनेसँ कहि‍यौ ने।
मालि‍क दोकानपर भीड़क कारणे गद्दीएपर सँ पत्नीकेँ कहलखि‍न-
दऽ दि‍औ ने।
पति‍क आदेश पाबि‍ मलि‍कि‍नी सोनाक दूटा सि‍क्का सोनूकेँ दऽ देली। लऽ कऽ साेनू ओतएसँ ससरि‍ गेल।
आब सोनू ओतएसँ तेसर बजार गेल आ ओतए ओ दुनू सोनाक सि‍क्का बेचि‍ धन इकट्ठा करए लगल।  
ऐ बातक जानकारी गामक मालि‍क नवीन बाबूकेँ सेहो भेलनि‍। नवीन बाबू दरबारक सि‍पाहीकेँ कहि‍ सोनूकेँ बजा पूछ-ताछ केलनि‍। सभटा बात साँचे-साँच बतबैत कहलक-
अपन गरीबीसँ छुटकारा पबैले हम एना कऽ रहल छी।
ई बात कहैत सोनू मालि‍ककेँ प्रणाम कऽ सोझहेमे ठाढ़ भेल रहल। कि‍छुए कालक बाद सोनू फेर बाजल-
जाबे हमहूँ धनीक नै हएब ताबे कोनो ने कोनो चतुराइ तँ करि‍ते टा रहब ने।
मालि‍क नवीन बाबू सोनूक चतुराइ संग धनीक हेबाक दृढ़ सोचकेँ देखैत गुम्‍म भऽ गेला। डण्‍डि‍त करब सेहो मनमे एलनि‍ मुदा ओ सोचलनि‍ जे से नइ तँ एकरा नि‍अमि‍त काजमे लगा दि‍ऐ जइसँ ऐ तरहक ठकपानासँ दूर भऽ जाएत। यएह सोचि‍ अपना दरबारमे रखि‍ लेलक।          

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मर्दानी नारी (क. फागु लाल साहु)

83म सगर राति‍ दीप जरय, सखुआ-भपटि‍याहीमे पठि‍त कथा-

 

मर्दानी नारी

 






मर्दानीक मतलब होइत अछि‍, नि‍डर, साहसी, स्‍वतंत्रता व आत्‍मनिर्भरता। नारी जेतेक अछि‍ सबहक अन्‍दर ई तागत अछि‍, परन्‍तु   खगता ऐ बातक अछि‍ जे नारी सभ ई बातकेँ समझौ आ समझि‍ कऽ बाहर नि‍कालौ।
ई कथा छी एकटा अब्‍बल-दुब्‍बर गरीब नारीक। बर्ख २०१३ ति‍थि‍ स्‍वतंत्रता दि‍वसक दि‍न हरि‍पुर डीह टोलक रूपनी देवी, मधुबनीसँ कलुआही जाइवाली पक्की सड़कक कातमे एकटा छोट-छीन चाहक दोकान खोलि‍ अपन रोजगारक शुरू केलक‍। रूपनीकेँ ई दोकान खोलैक प्रयोजन ऐ लेल पड़ल जे एक दि‍न अन्नक अभावमे बाले-बच्‍चे भूखले सूतए पड़लै। वि‍हान भने रूपनीक पति‍ भोला रोजी वास्‍ते गामक मालि‍क टुनटुन ठाकुरक हबेलीमे पहुँच मजदुरी करए लगल।
दोकान खोलैसँ पनरह दि‍न पहि‍नेक बात छी। रूपनी अपन पति‍क कमाएल बोइन लबैले टुनटुन ठाकुर हबेलीपर गेल। भि‍नसरक आठ बजैत रहै। रूपनीकेँ देखि‍ते ठाकुर साहैब पुछि‍ बैसल-
केतए एलेँ रूपनी?”
बाजलि‍-
मालि‍क, बोइन लइले।
एतबे बात सुनैत टुनटुन बाबू भड़कि‍ उठला। रूपनीकेँ फटकारैत बजला-
अखनि‍ तँ भोलबा खेतमे पहुँचबे कएल आ तूँ बोइन ले चलि‍ एलेँ।
रूपनी सकदम भऽ ठाढ़े छल। आकि‍ पुन: टुनटुन बजला-
खुरपी ले, दरबज्‍जाक सभटा घास उखार तखने बोइन देबौ।
ई बात सुनि‍ते रूपनीक आगू राति‍क तरेगन सोझहामे आबि‍ गेल। माथपर हाथ दऽ सोचए लगल। की करूँ, राति‍मे तँ सब परानी भूखले सुति‍ रहलौं। अखनि‍ की खाएत आ खाएब। मालि‍कक बात तँ नि‍ठुर होइते अछि‍। कमाएलो बोइनपर लुलकार सुनैए पड़ै छै। आब की करब! पेटमे अन्न नै, गामपर बच्‍चा बाटे तकैत हएत जे मालि‍क ऐठामसँ कि‍छु आनत माए तँ खाएब। मुदा ई कोन भगवानक चक्र छी। नै आब छूछ हाथे घर नै जाएब। सोचैत रूपनी चटे हबेलीसँ धुरि‍याएले पएरे घूमि‍ बजार पहुँचल। बजारक एकटा कि‍राना दोकानपर आबि‍ दोकनदारकेँ कहलक-
मालि‍क, ई हमर नाकक छौंक रखि‍ लि‍अ आ चाउर-आँटा दि‍अ।
दोकनदार बाजल-
भोला हमर दू दि‍न काज केने छल, जे बोइनो पछुआएल छै। अहाँ जे समान लेब से बाजू दऽ दइ छी।
रूपनी सोचैत बाजलि‍-
एक दि‍नक बोइनक चाउर-आँटा दऽ दि‍अ आ एक दि‍नककेँ चाहपती-चीनी आैर बि‍स्‍कुट आैरो पलाष्‍टि‍कक पचासटा गि‍लास दऽ दि‍अ।
दोकानदार बाजल-
पाहुन अबै छथि‍ की?”
रूपनी-
नै, चाहक दोकान खोलब।
दोकानदार चाहक दोकान खोलै जोकर सभ समान दैत समझबैत-बुझबैत दोकान चलबैक सभ तरीका बुझा रूपनीकेँ वि‍दा केलक।
रूपनी घर अबि‍ते पहि‍ने खेनाइ बना बाल-बच्‍चाकेँ खि‍आ पति‍ लेल खेनाइ लऽ ठाकुर साहैबक खेत जा भोलोकेँ खि‍एलक। पछाति‍ ओतएसँ घर आपस वि‍दा भेल। बाटमे अबैत रूपनीकेँ ठाकुर साहैबक मलि‍काना बात झुड़झुड़ाइत माथकेँ घुड़ि‍यबैत, पछाति‍ बरहम स्‍थानमे बैसि‍ दोकानक जगह टोहि‍या‍ लेलक। टोहि‍यबि‍ते ओतए घर आबि‍ पहि‍ने खेनाइ खेलक।
दोसरे दि‍न रूपनी स्‍वतंत्रता दि‍वसक अवसरि‍पर चाहक दोकान खोलि‍ अपन मधुर भाषाक सहयोगसँ चाह-बि‍स्‍कुट बेचए लगली। अपन हूनर संग साहसकेँ बटोरि‍ पति‍केँ मजदूरी करैसँ मना करैत दोकानेपर काज करैक बोध देबए लगली। भोला सेहो मालि‍क ठाकुरक झझकारकेँ मोन पड़ैत दोकानक काजमे जतनसँ लागि‍ गेल।
रूपनी साले भरि‍मे काफी उन्नति‍ करैत दोकानक रंग-ढंग बदलि‍ देलक और अपन पति‍ भोलाकेँ मालि‍क कहि‍ सम्‍बोधि‍त करैत चाहक दोकानसँ मि‍ठाइ, जलपान आ भोजनक दोकान बना रूपनी अपन साहस आ मर्दानीक संग आत्‍म निर्भरताक परि‍चए दैत स्‍वतंत्रताक जि‍नगी जीवि‍ रहल अछि‍।   

 

 

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Thursday, September 18, 2014

तरकारी चोर (कथाकार- ललन कुमार कामत)

 ललन कुमार कामत जीक ई पहि‍ल कथा छि‍यनि‍, 80म सगर राति‍ दीप जरय- निर्मली गोष्‍ठीमे कथाकार स्‍वयं वाचल केने छला।


तरकारी चोर


जे पापकेँ बुझैत पाप करैए, वएह सभसँ बड़का पापी होइए। आ चोरिकेँ नैतिक हनन, सामाजीक अपराध आ बुिधक छति जनैत, जे चोरि करैए आकि करबैए, ऊहो सभसँ बड़का चोर होइत अछि। बाल बोध जे अबोध होइए, से जखनि चोरि करैए, तब एकर जिम्मेदार के? हमसभ किए नै सोचै छी, ई संस्कार पैसल केतएसँ? बच्चाकेँ जब खरापकेँ, खराप कहि, चोरिकेँ, अनैतिक कहि समझाएल-बुझाएल जाएत तँ बच्चासभ एे बुराइक दल-दलमे कहियो नै फँसत। मनुखक पहिलुक गुरु तँ माइए-बाप होइत अछि। छोट-मोट चोरि आकि खराप आदतिकेँ रोकए चाहत तँ ऐ गुरुकेँ अवज्ञा नै भऽ सकत। जैठामक धिया-पुता चोरि करत ओइठामक असली गुनहगार माए-बापसँ बढ़ि‍ कऽ आर के भऽ सकैए?
बाल-बोध चोरि केहेन कऽ सकैए? शीन नै काटि सकैए। ताला नै तोड़ि सकैए। छोट-मोट चोरि। दुआरि बाटसँ कोनो चीज-बीत उठा सकैए आकि वाड़ी-झाड़ीसँ तीमन-तरकारीक चोरि कऽ सकैए। सजमनि‍पुरक पुवारि टोल, बेदरूकिया चोरिसँ त्रस्त अछि। वास्तविक चोर गाममे दुइए-तीनिएटा अछि मुदा, शकक नजरि‍ सभटा बेदरूकियापर जाइत रहैए। चोरक सरदार दूटा छौड़ा, झबरा आ गोबर जे केते बेर पकड़लो गेल अछि आ गाम-घरमे बदनामो अछि। दुनू बारह बर्खक, कद-काठीमे भुटाँड़ि‍ आ एक दोसरकेँ संगी छी।

झबरा निछट गरीब अछि। नन्हि‍एटा रहए तँ बापक मृत्यु जॉण्‍डि‍ससँ भऽ गेलै। झबराक माए सुगीया बोनि‍हारि‍न। बोइन करि, कहुना-कहुना गुजर-बसर करैए। झबराकेँ जन्मक नाओं गणेशी छी, मुदा जन्मक केश अखनि‍ धरि माथपर झबरले छै, तँए टोला-मोहल्लाक लोक सभ झबरा-झबरा कहैए। झबरा छोटे-मोट चोरि करैए मुदा सभसँ बेसी बदनामी झबरेकेँ छै। कि‍यो चोर कहि बजबै छै, कि‍यो लप्पर-थप्पर जमा दइ छै, तँ कि‍यो दूटा गारि पढ़ि‍ दइ छै.....।

जारी.....

Wednesday, September 17, 2014

मनकमना By Jagdish Prasad Mandal

दीर्घ कथा- मनकमना
कथाकार- श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल 


रामखेलौनकेँ अपन तेहेन भीठगर एको धूर खेत नै मुदा बच्‍चेसँ लोकक देखसीसँ सेहन्‍ता लगल रहै जे अपन एक बीट केरा आ कलमी-सरही मि‍ला पाँचटा आमक गाछ होइतै। पाँचटा ऐ दुआरे जे केरा एकोटा बीट रहने सालमे पान-दसटा घौर हेबे करत, मुदा एकटा आमक गाछसँ मन छुछुआइते रहत। छुछुआइत ई रहत जे कलमी रहल तँ रसगर सरही-ले आ सरही रहल तँ गुदगर कलमी-ले। तेतबे कि‍ए, केरा जकाँ कि‍ आम थोड़े होइए जे नि‍श्‍तुकी मोजरबे-फड़बे करत। गोटे साल मोजरबे ने करत, तँ गोटे साल बि‍जलोकेमे जरि‍ जाएत, गोटे साल रौदीमे सुर्ड़े लगि जाएत तँ गोटे साल वि‍हाड़ि‍मे फड़लाहा डारि‍ए टूटि‍ कऽ खसि‍ पड़त। एक तँ गामेक तकदीर फुटल जे जेहो चौथाइ (२५ प्रति‍शत) हि‍स्‍सा  भीठगर जमीन छेलै ओहो कोसीक बान्‍ह टुटने गामे देने धारक नासी फोड़ि‍ ओहो भीठका जमीनकेँ चौरीओसँ नीचाँ उतारि‍ देलक। जइसँ गामे चोकर आम जकाँ चोकरा गेल। मछबड़बा सबहक पतरा कहै जे गामे कि‍ए गामक लोकोक भाग जगलनि‍। तेते ने गहींर जमीन गाममे भऽ गेल जे एकरे बान्‍हि‍-छेकि‍ लोक अपना-अपना खेतमे माछ-मखान उपजौत तँ गामक के कहए, अमेरि‍का-इग्‍लैंडक वेपारी पहुँच-पहुँच कीनत। जइसँ बड़का-बड़का होटल, नीक सड़क बनि‍ नीक-नीक गाड़ी दौड़ए लगत। जेहने पूजाक परसाद मखान तेहने मनुखक परसाद माछ भेल। मुदा वैष्‍णव सभ गाम छोड़ि‍ वृन्‍दावनक बास करैक वि‍चार करए लगला। मन दुतकारए लगलनि‍ जे गामे मछाह भऽ गेल। लंकाक वि‍भीषण थोड़े छी जे मन-चीत मारि‍ रावणसँ अराड़ि‍ केने रहब। अपने ने माछ पोसब आ ने खाएब मुदा जखने गेनहारी-पटुआ साग जकाँ वाड़ी-झाड़ीमे माछे उपजत तँ सहरगंजा लोक खेबे करत। बड़बढ़ि‍याँ खाएत तँ अपना मुहेँ खाएत, मुदा रन्‍हि‍तो काल आ कलपर धोइतो काल जे गंध पसरत तेकरा केना पेटमे जाइसँ रोकब। चाहे मुँहक माध्‍यमसँ जाए आकि‍ नाकक माध्‍यमसँ, जाएत तँ पेटेमे। पेटमे नै जाए, तेकरे ने संकल्‍प लऽ कण्‍ठी बान्‍हि‍ वैष्‍णव भेलौं। गामक पानि (कलक पानि‍) गंधक दुआरे ठठा जाएत, अपन कल छोड़ि‍ केकरो कल पानि‍ पीबैबला रहत? सबहक कलक पानि‍ इछाइन-मछाइन महकत कि‍ने। ओहन छुतहरो तँ नहि‍येँ छी जे लगले दुधि‍या घरहर बनि‍ जाएब आ लगले गोबराह बनि‍ छुतहर भऽ जाएब। जइसँ कण्‍ठी तोड़ि‍ आन-आन जकाँ मछरबौक बनि‍ खत्ता उपछए लगब। मुदा गाम छोड़ि‍ पड़ेबो केना करब? अपन बाप-दादाक खति‍आनी जमीनक हि‍स्‍सा सभ दि‍नसँ रहल तेकर ति‍यागो केना करब? केकरो हाथे बेचि‍ लेब आकि‍ ओहि‍ना छोड़ि‍ कऽ चलि‍ जाएब, मुदा जे कीनत आकि‍ ओहि‍ना दफनौत, करत तँ अपना मने। जँ कहीं खाधि‍ (कोचाढ़ि‍, डबरा) खुनि‍ माछे पोसए लगत तखनि‍ तँ आरो घि‍नमा-घीन हएत। तैसंग ईहो तँ लोक कहबे करत जे फल्‍लाँ वंशमे फल्‍लमा तेहेन बतौर भऽ गेल जे अपने तँ केतए-कहाँ वौआ-ढहना भीख मंगि‍ते अछि‍ जे बापो-दादाक नाक-कान कटा जनम धरतीओकेँ मेटा लेलक‍। जखनि‍ जनम-डीहे नै रहत तखनि‍ मरन-मरौसी केतए रहत।
जहि‍ना सभकेँ अपनो, अपन बालो-बच्‍चा आ परि‍वारोक प्रति‍ कि‍छु ने कि‍छु मनोरथ होइते छै, जैपर चढ़ि‍ मन जीवन-यात्रा करैत रहै छै, तहि‍ना रामखेलौनोकेँ खेनाइ-पीनाइक आशा तँ बोइन-बुत्तापर छेलैइहे मुदा फल-फलहरीक मनोरथ मनमे रोपनै छल। गाम देने बड़का सड़क बनने, सड़कक कातक जमीन जहि‍ना आन-आन दफानलक तहि‍ना रामखेलौनो दस धुर भीठ जमीन पकड़लक। ओ जमीन पहि‍ने गौंऐक रहै जे सड़क बनौनि‍हारक हाथे बेचि‍ लेलक, जइसँ केकरो कोइ वि‍रोध नै केलक। मुदा ई तँ खतरा रहबे करै जे आगू जहि‍या सड़कपर माटि‍क काज हेतै तइ दि‍न ओही सभमे सँ उठौल जाएत। घरे सोझे कनीए हटि‍ कऽ दस धुर चौमास रामखेलौनकेँ क्षणि‍क नसीव भेल। खेत अड़ि‍येबि‍ते बि‍सरभोर भऽ गेलै जे (जमीन) केकरो अनकर थोड़े छि‍ऐ ई अपन भेल, जेना जे मन फुरत, तेना से करब। अपनेमे तेना मन मोहि‍या गेलै जे रंग-रंगक वि‍चार मनमे जागए लगलै। बि‍सरि‍ गेल रामखेलौन जे जे जमीन क्षणि‍क हाथमे आएल ओकर केते भरोस। जेतबे भरोस तेतबे ने लाभो हएत। जेकर छि‍ऐ ओ केते काल रहए देत, तखनि‍ तँ ई भेल जे सालक अनुमान कऽ‍ लेब आ तइ हि‍साबसँ जेतबे आशा तेतबे आशा। मुदा से रामखेलौनक मनमे एबे ने कएल। एबो केना करि‍तै जेते पानि‍मे बुधि‍ ठाढ़ छेलै ओतबे तकक ने थाह छेलै। मुदा प्रश्न तँ गहींर पानि‍क अछि‍ जे रामखेलौन सन-सन लोक लेल अगम भेल। अगममे बेसी लोककेँ डुमैक सम्‍भावना रहै छै, हेलि‍ कऽ ऊपर होइक कमे रहै छै, जेना गंगा स्‍नान सभ करए चाहै छथि‍, करि‍तो छथि‍ मुदा कि‍यो माटि‍क बीचक घाटपर बैसि‍ लोटामे भरि‍-भरि‍ करै छथि‍ तँ कि‍यो घुट्ठी भरि‍ पानि‍मे, कि‍यो जाँघ भरि‍ पानि‍मे, कि‍यो छाती भरि‍ पानि‍मे तँ कि‍यो माथ डुमा डुमकीओ लगा करि‍ते छथि‍। तखनि‍ तँ भेल जेते पानि‍ तेहेन स्‍नान आ जेहेन स्‍नान तेहेन मन-मनोरथक फल।
कि‍रि‍ण उगि‍ते जेना कि‍यो अपन दि‍नुका काजे बि‍सरि‍ जाइए, तहि‍ना रामखेलौनोकेँ बि‍सरभोर भऽ गेल। भेल ई जे शुरूहेसँ मनोरथ रहै जे एक बीट केरा आ पाँचटा आमक गाछ होइतए। मुदा खेत (जमीन) अड़ि‍आति‍ते मन तेना उड़ि‍ गेलै जे बि‍सरि‍ गेल पछि‍ला मनोरथ। मुदा तैयो जेना जमीन जी घीचने होइ तहि‍ना भोरे सुति‍-उठि‍ घरवालीकेँ रोबमे कहलक-
हमरा अबेर भेल जाइए, एको क्षण रूकने काज गड़बड़ाएत।
कहि‍ चाहो-ताहो ने पीलक कोदारि‍ कान्हपर नेने खेत पहुँचल। बीच खेतमे कोदारि‍ रखि‍, पुवरि‍या-उत्तरवरि‍या कोणपर पहुँच खेतक कोण-काण मि‍लबए लगल। ओना कोण-काण मि‍लबैले चारू कोण मि‍लाएब जरूरी अछि‍, मुदा से रामखेलौन सन लोकक मनमे उठबे कि‍ए करतै। ओहन भूमि‍क ने खेति‍हर छी जे जेते हाथ-पएरसँ काज करैए तेतबे नजरि‍ओसँ। जँ अपने नीक जकाँ नै बुझैए, तँ की हेतै। सबहक अपन-अपन नीको होइ छै आ अधलो होइ छै। अपने मने ने कि‍यो मनकेँ बुझा-सुझा बि‍सवासमे आनि‍ काज करैए। कोणा-कोणी खेत मीलल देखि‍ रामखेलौन खेतीक मि‍लान करए लगल। खेतीक लूरि‍ रहि‍तो रामखेलौन केतौ ठौरोपर वि‍चार करैत आ केतौ बेठौरो भऽ जाए। बेठौर तखनि‍ हुअए जखनि‍ बुधि‍-वि‍चड़ा मनकेँ बुधि‍-चि‍तरा रोकि‍ अपन काज आगू करा ि‍लअए। तँए बुधि‍ वि‍चड़ा धकि‍याइत पाछू पड़ि जाए आ बुधि चि‍तरा आगू भऽ जाए। जइसँ अपन पहि‍लुका मन-मनोरथ पछुआ गेलै। मुदा अखनि‍ धरि‍क काज अकास मार्गी छेलै तँए जमीनी कोनो नोकसानो नहि‍येँ भेल रहै। कि‍छु काजे आगू बढ़लै जे तामि‍-कोड़ि‍, गोला फोड़ि‍ चौरऽसे बनबैमे लगल अछि‍। जखनि‍ कि‍रि‍ण माथसँ नीचाँ कनि‍येँ पूब दि‍स चढ़ैत बूझि‍ पड़लै तखनि‍ कोदारि‍ कान्‍हपर लऽ आँगन आएल। जहि‍ना परदेसीक घरवाली घरक सोलहन्नी जि‍म्मा बूझि‍ सभ काजकेँ समैपर सम्‍हारै छथि‍ मुदा वएह घरवाली घरबलाकेँ घरमे रहने घरे भरि‍क काजकेँ माने भानसे-भात केनाइटा केँ काज बुझै छथि‍। खैर जे होउ, मुदा रामखेलौन दुनू बेकतीक बीच तेसर कारण भेल। कारण भेल जे जहि‍ना रामखेलौनक मन खेत पाबि‍ते अपन बोनि‍हारक रूप बदलैत कि‍सानमे देखैत तहि‍ना पत्नीओं आनसँ अपना दि‍स अबैत देखलनि‍। जइसँ चाँकि‍ बढ़लनि‍। चाँकि‍ बढ़ि‍ते अँगना-घरमे चकोना हुअए लगली, जइसँ बोनाएल-बि‍सराएल पति‍क काज सेहो कन्‍हेठ लेलनि‍। जेना दुनू बेकतीक काजक हि‍साबे ि‍दनो बढ़लै। कहै काल तँ सभ कहि‍ते अछि‍ जे फल्‍लाँक दि‍न-बढ़ल आ फल्‍लाँक दि‍न घटल। मुदा की बढ़ल, की घटल, तेकरो तँ तजबीज करए पड़त। चाहे पाथर तर दबाएल, केंकि‍आइत कि‍यो हुअए आकि‍ हवाइ जहाजपर उड़ैत अकासमे हुअए, ने सुरूजक गति‍-वि‍धि‍ कमैए आ ने घड़ी-पहरक। तखनि‍ दि‍न केना घटैए आ केना बढ़ैए? मुदा ईहो तँ होइते अछि‍ जे एके स्‍कूलमे एके शि‍क्षकक पढ़ाएल एके पोथी पढ़ि‍ कि‍यो शत-प्रति‍शत नम्‍बर हाँशि‍ल कऽ ऊपर चढ़ि‍ जाइए आ कि‍यो नीचाँ धकि‍या तेते नि‍च्‍चाँ चलि‍ जाइए जे चि‍न्‍हे-पहचीन समाप्‍त भऽ जाइ छै। माने ई जे जेना ने ओकरा ओहेन पोथीसँ भेँट भेल होइ आ ने ओहेन शि‍क्षक आ ने ओहेन स्‍कूलेसँ। तखनि‍? हँ तखनि‍ ई जे दि‍न-राति‍क बँटवारा खाली चाने-सुरूजटा लेल नै, सभले भेल अछि‍। जे जेते जि‍नगी जीवैक ढंग पकड़ि‍ जेते सफर करत ओ ओते अगुआएत आ जे जेते कुढंग आकि‍ वेढंग भऽ चलत ओ ओते धक्का खाइत पाछू मुहेँ धकि‍याइत-धकि‍याइत धरतीपर खसैए।
दसे धुर खेत, करवारी हाथ पड़ने पाँचे दि‍नमे अड़ि‍या चौरस बनि‍ बीआ दइ जोकर बनि‍ गेल। बेरुका उखड़ाहाक काज केने रामखेलौन कि‍रि‍ण लहसैत पोखरि‍-झाँखरि‍ दि‍ससँ आबि‍, डेढ़ि‍एपर चटकुनी बि‍छा चैनक साँस छोड़लक। आँगन बाहरैत पत्नीकेँ सोर पाड़ि‍ बाजल-
तेहेन जुग-जमाना भऽ गेल जे केकरोसँ कि‍छु पुछबो गरदनि‍येँ कटाएब हएत। सोझ मुहेँ, सोझ बात कि‍यो केकरो कहै छै। काज रहत आमक आ कहि‍ देत कटहरक फड़ बड़ी-बड़ी होइ छै। मुदा अहाँ तँ कि‍यो आन नइ भेलौं, तँए अहींसँ वि‍चारि‍ खेतीक आगूक काज करब।
पति‍क बात सुनि‍ते जसमति‍क मन टि‍कुली जकाँ अकासमे उड़ि‍ गेल। उड़ि‍ ई गेल जे पति‍क वि‍चारी कोन पत्नी नै बनए चाहै छथि‍, मुदा जि‍नगीक बेढंगपन तेते दूरी बना देने अछि‍ जे चाहि‍तो अनचाहै रहैए। परि‍वारक प्रति‍ पति‍-पत्नीक बि‍सवास आ पत्नी-पति‍क बि‍सवास जँ नै पाबि‍ सकल तँ श्रद्धा कागजक पन्नाक शब्‍द भेल। ओना से बात जसमति‍क मनमे नै उठल, जहि‍ना परि‍वारो-परि‍वारो आ गामो-घरमे ओहेन अभाव तँ अछि‍ए जे काज-उदमसँ मतलब-माने कम आ देश-दुनि‍याँक गप करैसँ बेसी अछि‍ए। तेहने जसमति,‍ तँए अदहा अँगना बहारब छोड़ि‍ पति‍ लग बैसैले नुर-सुर करए लगली। रामखेलौनक नजरि‍ पत्नीक काजपर पहि‍ने पड़ि‍ गेल छल मुदा जहि‍ना डायरीमे लोक अपन काज दर्ज करा रखऽ चाहै छथि‍ तहि‍ना अपन काजक प्रस्‍ताव पत्नीक डायरीमे दर्ज करै दुआरे बाजल छल। पत्नीकेँ बैसैक नुर-सुरी देखि‍ रामखेलौन बात अन्‍त करैत बाजल-
पहि‍ने आँगन बहारि‍ लि‍अ, हाथ-पएर धोइ, चुल्हि‍ पजारि‍ चाह बनौने आउ। दुनू गोरे एकठाम बैसि‍ पीबो करब आ जाबे चाह पीब ताबे गपो-सर्ड़का करि‍ लेब।
ओना पति‍क बोलमे झाँससँ बेसी जसमति‍केँ मीठाँसे भेटल, तँए पति‍क बोलकेँ अपन बात कहि‍ जसमति‍ अपना दि‍ससँ टारि‍ पति‍ए दि‍स घुसका ई कहि‍ देलक जे ‘पुरुख-पातरक बोल अहि‍ना होइ छै।’ असलमे जसमति‍क मन, ‘दुनू गोरे एकठाम बैसि‍ चाह पीअब’ सुनि‍ उधि‍या गेल छल‍। आइ धरि‍ एहेन कहि‍यो ने भेल छल। गमैया लोक गमैया चालि‍क दुनू परानी। परदेसी आकि‍ नब वि‍चारक लोकक बीच एहेन बेवधान नहि‍येँ अछि‍। जसमतिक‍ उड़ैत मनकेँ रामखेलौन परेखि‍ लेलक। परेखि‍ ई लेलक जे आँगन बहारि‍, जारनि‍-काठी चुल्हि‍ लग रखि‍, बरतन-बासन कलपर धोइ, चुल्हि‍ पजारि‍ चाह बना कतबे कालमे पुरा लेलक। एहेने पानि‍क ने पत्नी हेबा चाही। एहेन तँ नै ने जे अपन माथ चाह पीबैले दुखाए आ पत्नीक माथ बनबैसँ‍।
एके ओछाइनपर बैसि‍ रामखेलौन दुनू परानी चाहो बीबए लगल आ अपन खेत अधारि‍त गपो शुरू केलक। एक तँ खेतीक पहि‍ल प्रकरण समाप्‍ति‍क खुशी तैपर सँझुका चाहक चुहचुही, संग-संग एक ओछाइनपर पत्नीकेँ बैसल पाबि‍ मुस्‍कुराइत रामखेलौन बाजल-
खेत ते ढुढ़ुर तैयार भऽ गेल आब ते बीआ दइते लहलहा उठत।  
हूँ-हकारी भरैत जसमति‍ बाजलि‍-
अइमे कोन काल खाएत।
पत्नीक सह पाबि‍ रामखेलौन-
रोपब कथीक बीआ, से तँ वि‍चारि‍ लेब कि‍ने?”
पति‍क प्रश्न सुनि‍ जसमति‍क मन फेर तेते उधि‍या गेल जे थाहे ने रहल। जहि‍ना मैट्रि‍क पास केला पछाति‍ वि‍द्यार्थी एम.बी.बी.एस; इंजीनि‍यरिंग आकि‍ एम.ए इत्‍यादि‍ उच्‍च कोटि‍क रि‍जल्‍ट पौनि‍हारकेँ उधि‍याइत अपना बरबरि‍ बुझैत, जे नेनमति‍ भेल, तहि‍ना जसमति‍केँ सेहो भेल। एके सुरे दस रंगक फलोक नाआें, दस रंगक तरकारीओक नाओं आ दस रंगक अन्नोक नाओं गना देलकनि‍। ई होशे ने रहलै जे दसे धुरमे की सभ हएत। एहनो चीजक नाओं कहलक जेकर आँट-पेट दसो धुरसँ बेसीए होइ छै। बेसीए नै होइ छै जे एहनो होइ छै जे अपना लग दोसराक बासो ने हुअ दइ छै। दुनू परानी रामखेलौन जि‍नगीक लीला करैसँ पहि‍ने हेरा गेल। माटि‍क हेरेलहा, पानि‍क डुमलाहा, बुधि‍क भोति‍येलहा केतए आड़ा लगत तेकर कोनो ठेकान रहै छै। दुनूक बीच गुमा-गुमी पसरि‍ गेल। दुनू मन चुल्हि‍क खोंरना जकाँ दुनूकेँ खोरि‍यबै जे ‘झगड़ा ने दन, मुहाँ-मुहीं कि‍ए बन्न’ मुदा काज मानत हवा-वि‍‍हाड़ि‍। जाबे मास-मौसमकेँ ठेकना खेतमे बीआ नै देब, ताबे उपजाउ केना बनत।
दुनू परानीक बीच कि‍छु काल गुमा-गुमी रहला पछाति‍ रामखेलौन बाजल-
बैसलौं वि‍चार वि‍नि‍मय करैले, भऽ गेल गुमा-गुमी, तखनि‍ आगू की करब?”
हेराएल-भोथि‍याएल जसमति‍ ठकमुड़ा गेली। ठकमुड़ा ई गेली जे अखनि‍ तक जे कोनो नब काज[1] करै छेलौं से गामवाली जेठकी बहि‍नसँ पूछि‍ लइ छेलौं, दुनू बहि‍नक सासुर एके गाम, तैठाम ई[2] तेहेन बान्‍ह  बान्‍हि‍ देलनि‍ जे ओहो पुछब बन्न भऽ गेल। बान्‍ह ई जे गामक बेसी लोक ठके अछि‍, काेनो बातकेँ तेना कऽ बुझा देत जे नीकक बदला अधले भऽ जाएत। ओना ईहो अछि‍ जे कि‍छु लोक जानि‍ओं कऽ एहेन वि‍चार दोस्‍तीआरीमे दैत जे तमाकुलो गाछ मड़ुए जकाँ चौकि‍आएल जाइए। मुदा से नै, अधि‍क लोक ओहन छथि‍ जि‍नका समुचि‍त बोध नै छन्‍हि‍, तँए कि‍ ओ दोखी नै भेला? भेला। मुदा ठकक दोख लगाएब अनुचि‍त, हुनका ऊपर ई दोख भेल जे बि‍नु बुझलो काजक वि‍चार, बुझि‍नि‍हार जकाँ दऽ दइ छथि‍। ई बुधि‍क दोख भेल। दोख ई भेल जे हुनका अपन जनकारीक जानकारी भरि‍ देब अछि‍। अनेको रंगक जानकारी लोक कर्मभूमि‍मे पबैए। तैठाम ओही नजरि‍सँ ने देखए पड़त जे के अपन बुधि‍बलसँ हथि‍यार हथि‍या रणभूमि‍मे केते दूर धरि‍ पहुँचल छथि‍। ई तँ नै जे कि‍यो हथि‍यार उठा जीवन संघर्ष करै छथि‍ तँ कि‍यो शब्‍दवाण अकासमे फेकै छथि‍। अपनाकेँ अनाड़ी बूझि‍ जसमति‍ बजली-
भानसो-भातक समए भेल जाइए, भरि‍ राति‍ गपे-सप्‍प करब तखनि‍ भानस कखनि‍ हएत, कखनि‍ खाएब, कखनि‍ सूतब।
पत्नीक बात रामखेलौन बूझि‍ गेल। बूझि‍ एना गेल जे कोनो वि‍चार बहि‍नसँ वि‍चारि‍ करै छल। तैठाम रतुका काजक बहाना बना बहि‍नसँ पुछैक गर देखलक। बाजल-
अपन गामवाली जेठकी बहि‍नसँ वि‍चारब अधला नै भेल मुदा ओइसँ पहि‍ने बुझए पड़त जे ने सभ गामक खेत एक रंग अछि‍ आ ने माटि‍ एक रंग अछि‍ आ ने उपजावाड़ी।
एक तँ ओहि‍ना जसमति‍क मन बौआइत जे बालो-बोध अपन काजक जश चाहैए, तैठाम तँ सहजे दुनू परानी चेष्‍टगर छी, तखनि‍ जे एहेन हूसल काज भऽ जाए जे काजक जश हुअ आकि‍ अजश मुदा पेटमे लात तँ लगबे करत। जखने पेट लति‍औल जाएत तखने जि‍नगीक रथ केते दि‍न पथ पकड़ि‍ पथि‍ककेँ लऽ चलत। बाजलि‍-
बीचमे की कहि‍ देलि‍ऐ जे ने सभ गाम एकरंग अछि‍ आ ने खेती-वाड़ी?”
पत्नीक बात रामखेलौन बूझि‍ गेल जे कति‍या कऽ कतरए चाहै छथि‍। मुदा लगले मनमे उठि‍ गेलै जे अपन आकि‍ अपन परि‍वारकेँ समेटि‍ चलब तँ अपने काज भेल कि‍ने। कि‍ए ने वेचारीकेँ दू गामक दूरी बुझा दि‍अनि‍। मुदा अगि‍ला काज[3]क समए भऽ गेल अछि‍, जँ जि‍नगीक कथा-पि‍हानी शुरू करब तँ राति‍ए ससरि‍ जाएत। जखने समए ससरत तखने अपन बोझ माथपर चढ़बैत जाएत, तँए नीक हएत जे अखनि‍ गप-सप्‍पकेँ समए लैत वि‍राम दऽ दि‍ऐ आ भानस करै दि‍स ठेलि‍ दि‍अनि‍। बाजल-
ने घर केतौ पड़ाएल जाइए, आ ने दुनू परानी केतौ पड़ाएल जाइ छी, तखनि‍ एते धड़फड़ेने कोनो गप हएत। ताबे हमहूँ नजरि‍ खि‍रा गाम दि‍स देखै छि‍ऐ आ अहूँ देखब। जखनि‍ खा-पी, नि‍चेन भऽ ओछाइनपर आएब तखनि‍ अगि‍ला गप-सप्‍प हेतइ।
जान छुटैत देखि‍ जसमति‍ पाल-पाल कऽ भानस करए वि‍दा भेलि‍। असकरे रामखेलौन दू गामक दूरीक वि‍चार करए लगल। कोसे भरि‍ हटि‍ रूद्दपुरो अछि‍ आ रामपुरो। मुदा दुनूमे केते दूरी अछि‍। ओना दुनू दू परगने नै जि‍लो रहने लगीओ-डंटाक दूरी अछि‍ मुदा से नै, पारि‍वारि‍क भोजन-साजनक बात अछि‍, एक गाममे कुरथी दालि‍ प्रमुख अछि‍ जे भोजो-काजमे तेबखाक संग चलैए आ दोसर गामे बेठेकान अछि‍, जैठाम कोनो दालि‍क प्रमुखता छइहे नै। तेकर पाछू दुनूक धरतीक बनाबट अछि‍। जइ गाममे कुरथीक प्रमुखता अछि‍ तइ गाममे उचरस जमीन बेसी अछि‍। तँए तेबखा-कुरथीक उपज बेसी अछि‍। ओना ओहन खेतमे गहुमो आ आनो दलि‍हनक नीक खेती हएत मुदा कृत्रि‍म पानि‍क जोगाड़ नै तइसँ लोक कुरथीए-तेबखा उपजबैए। मुदा दोसर गाम तेहेन चापी अछि‍ जैठाम दलि‍हनक खेती होइते ने अछि‍, तँए जि‍नका जेते ओकाइत से तेहेन दालि‍ अपनो खाइ छथि‍ आ भोजो-काजमे रन्‍है छथि‍। ओना दुनू गामक धरतीओक सतह अलग-अलग अछि‍। एक गामे पचास फीट नीचाँ पानि‍क लेअर अछि‍ तँ दोसर गाममे अढ़ाइ-तीन सए फीट नीचाँ पानि‍क लेअर अछि‍। जेहेन माटि‍-पानि‍क मीलान रहत तेहने ने उपजो हएत। तेतबे कि‍ए, कि‍छु जगह एहनो होइत जे बालु पबि‍ते पानि‍क आगमन भऽ जाइए आ कि‍छु जगह एहनो अछि‍ जे बालु रहि‍तो पानि‍ बि‍लाएल अछि‍। माटि‍ओ की एके रंग अछि‍, केतौ नीक उपजाउ अछि‍ तँ केतौ ओइसँ दब आ केतौ एहनो अछि‍ जे साफे उपजाउ नै अछि‍। उपजाउओ की एके रंग अछि‍, रंग-रंगक अछि‍। माटि‍ रहि‍तो कोनो खास अन्नो, तीमनो-तरकारी आ फलो-फलहरी खास-खास माटि‍क खास प्रेमी अछि‍ आ दोसरकेँ तेना नै पकड़ए दि‍अ चाहैत अछि‍। माटि‍-पानि‍क वि‍चार करैत-करैत रामखेलौन ओहेन सघन वनमे भोति‍या गेल जेतए चारू कात अन्‍हारे-अन्‍हार बूझि‍ पड़ैत।
जहि‍ना पानि‍ चढ़ल लोहाक औजार काजमे रत-रत करैत आरो पानि‍क सान चढ़ा लइए आ माटि‍क परता पाबि‍ भोंथ भऽ जाइए, तहि‍ना जसमति‍योक बेवहारि‍क काज[4]मे पानि‍ चढ़ि‍ रत-रत करै छलि‍, मुदा मनक वि‍चारमे भोथि‍आइते छलि‍। ताड़क गाछ जकाँ बि‍नु-डारि‍ पातक गाछपर चढ़ब जेहने उकड़ू होइ छै, तेहने डारि‍-पातबला गाछपर चढ़ब असान सेहो होइ छै, मुदा छी तँ दुनू गाछे। भोथि‍आइत-भोथि‍याइत रामखेलौनक मनमे उठल, ने खेतीक एकेटा रस्‍ता अछि‍ आ ने कोनो काजक, तखनि‍ अनेरे कि‍ए मनकेँ भरि‍औने छी। दू गामक बात अछि‍, एक तँ ओहुना कहल जाइ छै, ‘चारि‍ कोसपर पानी बदले आठ कोसपर वाणी।’ जखने दू गाम भेल तखने बहुत कि‍छु एकरंगाहो हएत बहुत कि‍छु अलगो हएत। दू गामे कि‍ए, गामोमे दू जाति‍क बीच बहुत रंगक दूरीओ अछि‍, बहुत मि‍ललो अछि‍।
सँझुका नअ बजि‍या घड़ी-घण्‍ट ठकुरवाड़ीमे बजबो ने कएल तइसँ पहि‍ने जसमति‍ भानस कऽ, थारी-लोटा अखारि‍, चि‍नमारपर रखि‍, ओसारक पीढ़ि‍या ठीक करैत लोटामे पानि‍ नेने पति‍ लग पहुँचि‍ बजली-
भरि‍ दि‍नक कोदरवाहि‍क थाकल-ठेहि‍याएल छी, चलू पहि‍ने खा लि‍अ। पएरो एक हाथ तेलसँ ससारि‍ देब।
पत्नीक आगत-भागत देखि‍ रामखेलौनक मन उड़ि‍या गेल। उड़ि‍याइत मनमे उठल, कहू जे आन दि‍न तगेदा करए पड़ै छल जे भानस भेल? मुदा आइ केम्‍हर चान उगल। चानो तँ चान छी कखनो चानी देत कखनो चाइन तोड़त। कोनो बात[5] केतौ प्रेमोसँ बाजल जाइ छै आ केतौ दुसप्रेमोसँ बाजल जाइ छै। से नै रामखेलौन प्रेमसँ बाजल-
आन दि‍न कहै छेलौं जे कलेपर पएरो धाेइ लेब आ लोटामे पानि‍योँ लऽ लेब, आइ इजोरि‍या चान उगल कि‍ अनहरि‍या।
आन दि‍न जकाँ जसमति‍योक मन नै, जेना पति‍क प्रति‍ प्रेमक नब इति‍हास लि‍खैत हुअए तहि‍ना मने मतंग। बाजलि‍-
इजोरि‍याक चान हुअए आकि‍ अन्‍हरि‍याक चान, हमरा ओइसँ कोन काज अछि‍ चान-सुरूज तँ दुनू गोरे छीहे। जखनि‍ घरेमे चान-सुरूज अछि‍ तखनि‍ केतए इजोत-अन्‍हार, अकास-पतालमे तकए जाएब।
सि‍नेहासि‍क्‍त पत्नीक बात सुनि‍ रामखेलौन बामा नजरि‍ पत्नीक दहि‍ना नजरि‍पर दैत बाजल-
की सभ खेनाइ बनेलौं?”
खेनाइ सुनि‍ जसमति‍ ठमकि‍ गेलि‍। ठमकि‍ ई गेल‍ जे जहि‍ना कुशि‍यारेसँ गुड़, चीनी, मि‍सरी बनि‍ आनो-आनो वस्‍तुक संग पकड़ि‍ ओकरो मीठ करि‍ मि‍ठाइ बना दइ छै, मुदा मि‍सरी आ चीनीक आगू गुड़ो आ कुशि‍यारोक मोल केते अछि‍, तहि‍ना खाइक वस्‍तुक वि‍न्‍यासोकेँ तँ अछि‍ए। जेना गहुमेक रोटीओ बनैए, सतुओ बनैए पुड़ीओ बनैए आ पकवानो बनैए मुदा पुड़ी-पकवानक आगू सतुओ आ रोटीओक वएह मोल छै। ओकरेटा कि‍ए कहबै, तीमनो-तरकारीक तँ वएह गति‍ अछि‍। जे भँट्टा आकि‍ अल्‍लू आकि‍ आने कोनोकेँ पका कऽ सन्नो बनौल जाइए, रसगर तरकारीओ बनैए आ तेलमे तड़ि‍‍ तड़ुओ बनैए मुदा तँए कि‍ ओकरा एके कहबै? जहि‍ना मि‍सरी आगू गुड़, तड़ुआक आगू सन्ना, तहि‍ना ने पकवानक आगू रोटीओ अछि‍। लगले मन आगू घुसकि‍ रामखेलौनकेँ अपनेपर पड़ि‍ गेल। अपनापर पड़ि‍ते नजरि‍ उठलै। नजरि‍ उठि‍ते, चोन्‍हि‍आएल आँखि‍मे जहि‍ना बि‍जलोका छि‍टकै छै तहि‍ना छि‍टकलै। छि‍टकि‍ते देखलक जे कि‍यो एहनो नारी छथि‍ जे पति‍क पावन व्रत[6]केँ पूर्ति करेबा लेल अपनो व्रती बनि‍ पति‍व्रता छथि‍, तँ कि‍यो एहनो तँ अछि‍ए जे अपन जि‍नगीक अदहा उमेर पति‍क प्रेम-संग रहि‍, बाल-बच्‍चा-परि‍वारक सेवा करैत, अपन मनीषा रहि‍तो आगूओ जि‍नगीक ओहने कहाँ रहि‍ पबैए। एहनो तँ होइत अछि‍ जे ओकरा धक्का मारि‍ पतीत बना देल जाइ छै। जेकरा लोक जि‍नगीक हार कबुल करैत दि‍न कटि‍ते अछि‍। ओना जहि‍ना पुरुखकेँ पतित हेबामे कि‍यो बाधक नै बनैत तहि‍ना नारि‍ओक अछि‍। अपन मनक मरती सभकेँ अपन-अपन अछि‍। चाहे नीक वृत्ति‍ पकड़ि‍ स्‍वर्ग जाऊ आ अधला वृत्ति‍ पकड़ि‍ नर्क जाऊ, दुनू तँ देवलोकेक बास छी। धर्मराजेक राज छी। हाथमे पानि‍ भरल लोटा जखनि‍ जसमति‍केँ भरेलासँ भारी लागए लगल तखनि‍ भक्क खुजल। भक्क खुजि‍ते मन पड़लै जे पति‍क प्रश्न तँ भोज्‍य पदार्थक छल। वि‍रहाएल-बौआएल जसमति‍ हृदए खोलि‍ बजली-
गहुमक रोटी आ भँट्टाक चोखा बनेलौं?”
बजैबेर जसमति‍ बाजि‍ गेली मुदा लगले मन चनकि‍ गेलनि‍। चनकि‍ ई गेलनि‍ जे जे पुरुख भरि‍ दि‍न कोदारि‍ भँजलनि‍ आ हुनका गहुमक रोटी आ भँट्टाक सन्ना’क खेनाइ केहेन भेल? प्रश्न उठि‍ते जसमति‍क मन ओतए जा ठहरि‍ गेलनि‍ जे घरमे जएह रहत तेकरे बना कऽ ने देबनि‍। मुदा तैयो पति‍क ओ सि‍नेह जैठाम पुरुखक शक्‍ति‍क काज पड़ै छै ओ केना बनि‍ पौत। जेना परि‍वारक हार कबुल करैत जसमति‍ हारल बटोही जकाँ नेप झाड़ैत बजली-
काल्हि‍एसँ घरमे आँटा सधल अछि‍ अहाँ बोनाएले रहै छी, मि‍लपर जाइके छुटि‍ए ने भेल, हाँइ-हाँइके चारि‍ घानी गहुम उला-पीस कऽ रोटी बनेलौं।  
भानसक अपन बढ़ोत्तरी काज पति‍क सोझमे जसमति‍ रखि‍ देलनि‍। पत्नीक बात सुनि‍ रामखेलौन पाछू दि‍स उनटि‍ तकलक तँ बूझि‍ पड़लै जे अपनो जे काज दुआर-दरबज्‍जाक करै छेलौं सेहो आ अपनो काज ओ जे करै छेली तहूमे तीन-तेकठ भेल। गहुम-उला पीसबपर नजरि‍ अबि‍ते रामखेलौनक मनमे खुशी उपकल। खुशी ई उपकल जे जहि‍ना राहड़ि‍क अरबा आ ओकरे उलौला पछाति‍ जे दालि‍क सुआदमे बढ़ोत्तरी होइ छै, तहि‍ना ने उलबा गहुम आ अरबा गहुमक रोटीक सुआदमे सेहो हेतइ। पत्नीक वि‍चारसँ सहमति‍ जतबैत रामखेलौन बाजल-
बुझलौं बड़ काजुल छी, गहुमक रोटी अमृत छी अमृत, एकरा के दूसत जे अहाँ अधला भोजी छी।
पति‍क हरखि‍त मन देखि‍ जसमति‍ बजली‍-
अपना ते एको डाँट भँट्टाक गाछ नहि‍येँ अछि‍ हाटपर पुरना गाछक भँट्टा सस्‍ता छेलै वएह एक सेर अनने छेलौं, ओकरे सभटाकेँ साना बनौने छी।
‘साना’ सुनि‍ रामखेलौनक मन अखनि‍ धरि‍ जेना खसले छेलै तहि‍ना अदहा-अदही खुशी-दुखी पति‍केँ देखि‍ जसमति‍ पोचारा दैत बजली-
अपनो मन रहए जे, भँट्टाकेँ पहि‍ने मोटगरे-मोटगरे तड़ि‍‍‍ लेब आ ओकरे झोड़गर तीमन करि‍तौं। मुदा ने घरमे तेल छेलए आ ने कोनो मसल्‍ला। नूनटा छेलए, दाबापरसँ चारि‍टा मि‍रचाइ तोड़ि‍ अनलौं आ साना बना लेलौं, तरकारीक कोनो रस्‍ता नै सुझल केना करि‍तौं।
जसमति‍क बात सुनि‍ रामखेलौन मगन भऽ गेल। जहि‍ना सत् बात बजला पछाति‍, नि‍रोग फल पेला पछाति‍ आ दुनि‍याँक रस-सभसक परि‍चए भेलापर होइत। बाजल-
भगवानकेँ के कहए जे भगवानक बापो नै ति‍रि‍याक सोभावकेँ पकड़ि‍ सकैए। हम तँ हमहीं छी...।
मुस्‍की दैत पुन:,
लाउ लाेटा।
लोटा दइसँ पहि‍ने जसमति‍ इजोतक गरे पानि‍केँ देखलक देखैक कारण, माछी-मच्‍छर पड़ब छेलै। एकटा खढ़क महि‍क्का टुकड़ी जकाँ ऊपरमे दहलाइत रहै तेकरा कनछि‍या कऽ नीचाँ फेकि‍ पति‍क हाथमे लोटा पकड़बैत जेना देब-लेबक वि‍चार दुनूक मनमे उठलै। जसमति‍क मनमे उठल, अहि‍ना पहनुमा नि‍वेदन पति‍केँ सभ दि‍न करि‍यनि‍। पति‍क आँखिपर आँखि‍ घुसकौलनि‍। तहि‍ना रामखेलौनक मनमे उठैत, यएह छी परि‍वार आ अही परि‍वारमे रहब भेल हमर जि‍नगी। मुदा लगले मन पत्नीक देल समैपर उनटि‍ गेलै। हाँइ-हाँइ कऽ जसमति‍क हाथसँ लोटा पकड़ि‍ मुँह-कान धोइले आगू-आगू अचोना दि‍स बढ़ल। मुँह-हाथ धोला पछाति‍ रामखेलौनकेँ जसमति‍ कहलकनि‍-
लाउ लोटा।
पत्नीक बात सुनि‍ रामखेलौन ठमकि‍ गेल। मन पड़ि‍ गेलै सासुर। केना बड़का भायक लोटा छोटका भाए हाथमे लऽ, दि‍शा-मैदान दि‍स जाइतो काल आ अबि‍तो काल हँसैत खुशीसँ अबैत-जाइत अछि‍। मनमे तरंग उठए लगलै। पैखानासँ पहि‍ने आ पछाति‍क एके परि‍स्‍थि‍ति‍ अछि‍। अपन गंदगी दोसराक सि‍र मढ़ब की नै भेल? धड़फड़ा कऽ रामखेलौन ओसारपर बैसि‍ खेनाइ खए लगल। अदहा सेर भँट्टाक तरकारी, अदहा सेरक सन्नामे की अन्‍तर भेल। सन्नो अछि‍ तँ की हेतइ, झोरक बदला पानि‍ पीब लेब, कोनो कि‍ आन जकाँ खोंइचा फेकल जाइ छै जे सेहो कमत। आगूमे बैसि‍ जसमति‍ अपन परीछा-फल पुछए चाहलनि‍, ई तँ जि‍नगीक परीछा छी जे कहि‍या की खाइले की भेटत। तखनि‍ वि‍न्‍यास बनबैक परीछा तँ दि‍नानुदि‍नक छीहे। एक भनसि‍याक बनौल तरकारी सभ दि‍न एक रंग नै होइ छै। मुदा सन्ना बनबैक परीछे की, आगि‍मे पका पानि‍मे धोइ कऽ सि‍लौटपर लोढ़ीक जोगाड़सँ बनेलौं। एतबेमे की कलाकारी भेल जे पुछबनि‍ आ कहता। तँए पाशा बदलैत जसमति‍ बजली-
ताबे अहाँ खाउ, बि‍छान बि‍छौनाइ छुटले अछि‍, बि‍छेने अबै छी।
कहि‍ जसमति‍ उठि‍ बि‍छान बि‍छबए गेली। बि‍छान समेटि‍ जखनि‍ बाढ़नि‍सँ बाहरए लगली आकि‍‍ धक दऽ मनमे उठलनि‍, राति‍मे बाढ़नि‍ बर्जित अछि‍। मुदा उपए? हँ उपए अछि‍, बि‍छानकेँ बि‍छा दुनू कातक कोण पकड़ि‍ दू-चारि‍ झाड़ैन देला पछाि‍त अदहा बाढ़नि‍क काज भऽ जाइ छै। मुदा बि‍छान बि‍छैबि‍ते काल मनमे उठलनि‍, खेबाकाल पुछलि‍यनि‍ कहाँ जे खाइ जोकर भेल कि‍ने? एक तँ दुनि‍याँमे के केकरा पुछैए, मुदा हमरा दुनि‍याँसँ कोन काज। हमर तँ दुनि‍याँ अपन घरे छी। बि‍छान तँ बि‍छा नेने छेली मुदा धड़फड़ेने सि‍रमा बि‍च्‍चेमे छूटि‍ गेलनि‍। पति‍ लग आबि‍ जसमति‍ कानक सोझहे मुँह बना बजली-
पुरुख जाबे परसन नै लइ छथि‍, ताबे मन झुड़झुड़ाइते रहै छन्‍हि‍, भरि‍सक खेबा जोग नै बनल की?
पत्नीक बातकेँ अनसुनी करैत रामखेलौन खा कऽ उठि‍, हाथ धोइ कऽ ओछाइनपर पहुँच गेल।
ओछाइनपर पति‍केँ पहुँचल देखि‍ जसमति‍क देहक पानि‍ आरो तेज भऽ गेलनि‍। तेकर कारण अपन खेतीक वि‍चार करब छेलनि‍। खेति‍हर तँ वएह ने भेला जे खेतक प्रति‍ समरपि‍त छथि‍। हाथ-पएरसँ कर्म कऽ फसि‍ल लगबए, सेवा करैक माने फसि‍लक जन्‍मसँ मृत्‍यु धरि‍क बीचक कि‍रि‍याक लूरि‍ भेल। दुनू योगक बीच खेति‍हर भेला। यएह ने भेल जि‍नगी आ वएह खेत ने भेल जीवनदात्री दाता। जेते देबनि‍ तइसँ बेसी देती। मुदा नि‍मूधन रहने हुनका ई दोखो लगाएब केतए धरि‍ उचि‍त अछि‍, जे हुनके कि‍रदानीसँ नाशो भऽ गेल। खैर-जे-से। अपन जि‍नगीक वि‍चार जँ अपन परि‍वारक बीच नै करब तँ समस्‍या ओहेन भऽ जाइ छै जेहेन घोड़ागाड़ीमे इंजन लगौने हएत। जसमति‍क हाथ-पएर घरक काज सम्‍हारैमे बेस्‍त आ मन दस धुर अपन खेत पति‍क मन्‍दि‍रमे बैसि‍ भवि‍सक चान-सुरूज देखैत। थारी-लाेटा धोइले जसमति‍केँ रहबे करनि‍ तइ बि‍च्‍चेमे मन उमैक‍ गेलनि‍। उमैक‍ ई गेलनि‍ जे हो-न-हो अपने बि‍छानपर पहुँचैसँ पहि‍ने ने हुनका[7] नीनि‍याँ देवी आबि‍ कऽ दाबि‍ दन्‍हि‍, तखनि‍ तँ सभ पानि‍मे चलि‍ जाएत। बि‍ना आँइठ-काँठ धोने, ओसारेपर थारी लोटा छोड़ि‍, पति‍ लग आबि‍ हि‍यासए लगली जे जागल छथि‍ आकि‍‍ सूतल। ओना रामखेलौन जगले मुदा अपन जि‍नगीक हि‍साब जोड़ैमे तेते बौड़ा गेल जे आँखि‍क पीपनी खसल, शरीर नि‍श्‍तेज भेल पड़ल। जसमति‍क उताहुल मन मानि‍ गेलनि‍ जे सुति‍ रहला। सूतबमे मन अबि‍ते ठनका जकाँ खसलनि‍। मुदा ठनको खसैकाल लोक अपन आँखि‍-कान‍ बन्न कऽ लगोक खसल ठनकासँ अपन आँखि‍-कान बँचाइए लइए। मुदा जसमति‍केँ से नै भेलनि‍, पहि‍ने जरैत डि‍बि‍याकेँ अढ़ केलनि‍, जइसँ झल अन्‍हार भेने आँखि‍ खोलता। जँ नै खोलता तँ बूझब सूतल छथि‍। जागलसँ नीन भेर सूतल बीचक हजारो सीढ़ी छै, पहि‍ले सीढ़ीपर सँ जसमति‍ टपि‍ गेली, पति‍ ने पीपनी उठौलकनि‍ आ ने झल अन्‍हारी एलै। डि‍बि‍या लगसँ कनी आगू घुसकि‍ जसमति‍ हाथपर हाथ देलनि‍। हाथपर हाथ पड़ि‍ते रामखेलौन पति‍क स्‍वरमे बाजल-
थारी-लोटा समेटि‍ घरमे रखलौं?”
पति‍क बोल सुनि‍ जसमति‍ ठमकि‍ गेली। सूतल छथि‍ कि‍ जागल, तइ बि‍च्‍चेमे तेना लटकि‍ गेली जे ने अक चलनि‍ ने बक। एकटा मन कहनि‍ जे कहू ई केहेन भेल जे हुनका हाथपर हम हाथ देलि‍यनि‍। सभ दि‍न ओ दैत रहला, आगूओ देता। मुदा तखनि‍ पत्नी आ परि‍वारी भेने वि‍चारैक अधि‍कार तँ अछि‍ए। ओहनो तँ लोक अछि‍ए जे अपनेटा देखैए, जँ एहेन पैदाइस भेल तँ परि‍वार आगू कथी बढ़त जे केतए दहला-भँसि‍या जाएत तेकर ठेकानो रहत? दुनि‍याँक झाड़ीमे तेना झड़ा जाएब जे ठेकाने ने रहत जे अपना-ले की केलौं आ जेकर जवाबदेही, बाल-बच्‍चासँ समाज धरि‍, अपना ऊपर छल तेकरा-ले की केलि‍ऐ।
पति‍क बोल सुनि‍ जसमति‍ बि‍ना अकार-सकार केने उन्‍टे पएरे थारी-लोटा माँजए वि‍दा भेली। पीपनी खसौने रामखेलौन अपनाकेँ पढ़ैत- जखने बोनि‍हारक घरमे जनम भेल, तखने ने दस दुआरी भेलौं? चि‍ड़ै जकाँ जेतए अहरा-चहरा भेटत तेतए जा कऽ ने बास करब। जहि‍यासँ काज करैबला हाथ-पएर भेल तहि‍एसँ ऐ समाज आ गामक ने एकोटा खेत अछि‍ जइ खेतमे काज नै केने छी आ ने ओहेन कि‍सान छथि‍ जि‍नका काजमे सहयोग नै केने छी, आ अन्न नै खेने छी। गामक एहेन एकोटा कल नै अछि‍ जेकर पानि‍ नै पीने छी। नै नौत-पि‍हाने तँ काजक जलखैओ तँ जरूर केनै‍ छी। जइ धरतीक एते सेवा केलौं, ओ हमरा कि‍छु ने देली? ऐठाम आबि‍ रामखेलौन लसकि‍ गेल। लसकि‍ ई गेल जे केलहे बि‍सरि‍ गेल जे कोन खेतमे कोन जजाति‍ कोन मासमे लगेलौं आ कोन मासमे कटलौं। कटैपर नजरि‍ पड़ि‍ते मन पड़लै, केते जजात तँ जनि‍जाति‍ये कटै-उसारै छथि‍ से केना पुरुख बूझत। तँए पत्नीक जि‍ज्ञासा करैत रामखेलौन खोंखी केलक। पति‍-पत्नीक बीचक खोंखीक माने तँ ओतए अछि‍ जेतए पति‍ आ पत्नीक संख्‍या अछि‍। मुदा से नै जसमति‍ बुझलनि‍ जे भरि‍सक सोर पाड़ि‍ रहल छथि‍, तँए ओसारक चौकैठे लगसँ बजली-
अबि‍ते तँ छी।
अबि‍ते सुनि‍ रामखेलौन बाजल-
कुरथी कोन महि‍नामे उखाड़ल जाइ छै?”
जसमति‍ओ बि‍सरि‍ गेली। बि‍सरबो केना ने करि‍तथि‍। गामसँ कुरथीक खेतीए उपटि‍ गेल। बरसाती दलि‍हन, अधि‍क बरखा भेने आकि‍ बाढ़ि‍मे डुमने फसि‍ल नष्‍ट भऽ जाइ छै। जहि‍ना करहर आकि‍ मखानक पनि‍पत पकड़ि‍ करहरो उखाड़नि‍हार आ मखानो उखाड़नि‍हारे ने नार पकड़ि‍ उखाड़ि‍ गजुरा फलो खाइत। गजुराएल खेरही आकि‍ बदाम ओते तगतगर होइए जे माटि‍क ऊपर होइए, सौरखी आ मखान तँ सहजे ओहेन माटि‍पर होइ छै जे अथाह पानि‍मे डुमल रहै छै।
बि‍सरा-बि‍सरीमे जहि‍ना रामखेलौन तहि‍ना सजमति‍। बात आकि‍ वि‍चार तँ काजमे सटल चलै छै, काज चलैत रहल, वि‍चार चलैत रहल। काज छूटि‍ गेल आकि‍ बि‍सरि‍ गेल तँ बातो-वि‍चार हराइए जाइ छै। दुनू एक दोसरपर नजरि‍ओ दैत आ नजरि‍ नि‍च्‍चो कऽ लैत। नजरि‍ उठा जेना बि‍सरबकेँ गलती बूझि‍ डाँटए चाहैत तहि‍ना अपन बि‍सरब बूझि‍ नजरि‍ नीचाँ कऽ लैत। राति‍ओ अपना गति‍ए चलि‍ रहल अछि‍ रामखेलौन आ जसमति‍ बि‍सरा-बि‍सरीमे झूलि‍ रहल अछि‍। मखाने बीची जकाँ कुरथीक नांगरि‍ पकड़ि‍ नचबैत जसमति‍ बजली-
कोन मासमे कुरथी बागु करै छेलि‍ऐ, से कहू तँ मन पड़ि‍ जाएत। कुरथी मौसमी फसि‍ल छी तँए तीन-चारि‍ मासमे हेबे करत। बागुसँ उखाड़ैक समए तीन-चारि‍ मास आगू भेल।
पत्नीक प्रश्न सुनि‍ रामखेलौन बाजल-
जाए दि‍यौ कुरथीकेँ, जहि‍ना बाढ़ि‍-पानि‍ गामसँ ओकरा उपटौलक तहि‍ना ओहो पथरोगीआ सभकेँ उपटबैत रहऽ।
एके चौतालमे जहि‍ना घोड़ा मि‍लान होइ छै तहि‍ना दुनूक बीच समझौता भऽ गेल। रामखेलौन बाजल-
ऐ समैमे कोन-कोन फसि‍ल लगौल जाएत आ कोन-कोन कटत, से ठेकानपर अछि‍?”
जेना जसमति‍केँ ठोरेपर रहनि‍ तहि‍ना बजली-
आँखि‍ कि‍ भगवान नै देने छथि‍, अपना नहि‍योँ अछि‍ तैयो तँ अनकर देखि‍ते छि‍ऐ। काल्हि‍ अहूँ टहलि‍ कऽ गाम घूमि‍ लेब आ हमहूँ घूमि‍ लेब।
पत्नीक वि‍चार सुनि‍ रामखेलौनक मनमे शीतल समीरक सि‍हकी सि‍हकल। अनायास हाफी भेलै। हल्‍लुक मन होइत देखि‍ नीनि‍याँ देवीक स्‍मरण केलक, करि‍ते अपना अपना गोदीमे सुता लेलनि‍।
भोरमे नीन टुटि‍ते रामखेलौन ओछाइनेपर सँ हि‍याबए लगल जे गामक पाहि‍ केना लगाएब। जँ एक भागेसँ दुनू परानी देखब शुरू करब तँ बामी-दहि‍नीक भाँजमे कि‍छु छुटि‍ओ सकैए। तइसँ नीक हएत जे एक भागसँ अपने आ दोसर भागसँ हुनका देखैले कहि‍ दि‍यनि‍। वि‍चारमे मजगूती देखि‍ सूतले-सूतल रामखेलौन बाजल-
नीन तोड़ू, भोर भेल।
‘नीन तोड़ू भोर भेल’ सुनि‍ जसमति‍ कड़कि‍ बजली-
नी तँ टुटले अछि‍, अहाँकेँ की खगल से कहू।
पत्नीक बोल सुनि‍ रामखेलौन आगू बात कहब छोड़ि‍ मने-मन वि‍चार करए लगल जे एना कि‍ए भेल? भोरे-भोर भगवानक नाओं लोक मधुर ध्‍वनि‍सँ लैत अछि‍ तैठाम फुटल झालि‍ जकाँ अवाज कि‍ए खनखनाएल छन्‍हि‍। मुदा लगले मनमे उठलै जे जहि‍ना कड़ची, संठी आकि‍ कोनो बौस तोड़ैकाल गोटे टन दे टुटि‍ दू टुकड़ी भऽ जाइए आ गोटे टुटलो पछाति‍ जोड़ले रहैए, भरि‍सक तहि‍ना भेल। मन मानि‍ गेलै, बाजल-
साफसँ नीन तोड़ू, आब उठैबेर भेल अहूँ काज करए जाएब हमहूँ जाएब। काजे छि‍ऐ, जँ डेढ़-वार भेल तँ दि‍ने डेढ़-वार भऽ जाएत। जखने समए डेढ़-वार भेल आकि‍‍ बातो-वि‍चार डेढ़-वार भऽ जाएत। जइसँ कहीं रौतुका नि‍अरलाहा काजे ने छूटि‍ जाए।
पति‍क गपसँ जसमति‍केँ सुतैकालक बात मन पड़लनि‍। मन पड़लनि‍ ई जे दुनू बेकती एके ओछाइन, एके सि‍रहौनापर मुड़ी रखि‍ ने वि‍चारने रही तखनि‍ जँ ओ मन पाड़ए चाहलनि‍ तँ एना कि‍ए दुतकारलि‍यनि‍। भि‍नसुरका समए तँ जि‍नगीक प्रभात बेला छी, जखने अपन ठर-ठेकान छोड़ब तखने हवा-वि‍हाड़ि‍ सुगंध लऽ कऽ उड़ि‍ जाएत। जइसँ बि‍नु गंधक फूल जकाँ ने भऽ जाएब। जखनि‍ ओहन भऽ जाएब तखनि‍ सुगंधि‍त फूल कहेबा जोकर रहब? कि‍छु छी तँ पति‍-पत्नीक बीचक वि‍चार छी। ओना पति‍-पत्नीक सम्‍बन्‍धक जे रूप पकड़ने अछि‍, तइसँ भि‍न्न, चाहे दोस्‍तीआरे हुअ आकि‍ पति‍-पत्नीक बि‍आह, पहि‍ल प्रश्न तँ यएह ने होइत जे नमहर जि‍नगीक बीच मि‍लानसँ डेगमे डेग मि‍ला चलब केना? क्षणि‍क दोस्‍तीओ होइ छै, आ केते देशमे बि‍आहो ओहेन होइ छै जे भोर घटकैती दुपहर बि‍आह आ साँझमे छोड़ा-छोड़ी कऽ दुनू पुरबते कुमार बनि‍ जाइए। मुदा तेहल्‍ला–तेहल्‍लीक काजकेँ नजरि‍सँ कनी घुसका अपन दुनू बेकतीक बीच नजरि‍ राखू, पहि‍लुका हि‍साबे (बाल बि‍आह) पाँच-सात बर्खक अवस्‍थासँ मरै धरि‍क सम्‍बन्‍धक व्रत छी बि‍आह। तैठाम जँ सए बर्खक जि‍नगी मानब तँ नबे-पनचानबे बरख भेल। नै जँ अस्‍सी मानब तँ सत्तरि‍-पचहत्तरि‍ बरख भेल। सेहो नै जँ सरकारी मानब तँ साठि‍ बर्खक भेल। तैयो तँ पचास-पचपन बरख भेबे कएल। मुदा समए एहेन दुरकाल भऽ गेल जे...। वि‍द्योपति‍ कानि‍-काि‍न कहलनि‍- ‘जनम अवध हम रूप नि‍हारल, नयन न ति‍रपि‍त भेल।’ कि‍छु काल गुमा-गुमीमे समए घुसकि‍ गेल। मुदा घुसकल कहाँ, जहि‍ना रामखेलौनक मन पति‍-पत्नीक प्रेमक खेत तामए लगल तहि‍ना जसमति‍ अपन बोधक खेत। सि‍नेहक पान करैत रामखेलौन बाजल-
भकुआएल छी, नीन तोड़ू। राति‍ओमे तँ तेहेन जगरना नहि‍येँ भेल जे आँखि‍ करूआएत।
जहि‍ना कोढ़ि‍या बरद मारि‍क डरसँ आड़ि‍क कातमे जा कऽ देह पटवैत जे मारि‍ओ लागत तँ अदहा आड़ि‍एकेँ लगतै, तहि‍ना आड़ि‍क गर देखि‍ जसमति‍ बि‍हुँसैत बजली-
मेद-मेदीनक राति‍ जकाँ राति‍ बीतल तखनि‍ कि‍ए करूआएले आकि‍ भकुआएले रहब। हम कि‍ रौतुका निअरलाहा बात बि‍सरि‍ गेलौं।
लत्तीक मुड़ी जकाँ सुढ़ि‍आएल जसमति‍क वि‍चारमे वि‍चारक सोंगर लगबैत रामखेलौन बाजल-
सौंसे गाम घुमि‍ कऽ दुनू परानीकेँ देखै-परखैक अछि‍। तँए बामा भागक भाँज अहाँक रहल आ दहि‍ना भागक भाँज अपन रहल।
बामा-दहि‍नाक कारण जसमति‍केँ बूझल नै तँए पूरक प्रश्न उठौलनि‍-
जँ दुनू गोरे, संग मि‍लि‍ देख-देख मुँहमि‍लानी करैत चलब से बेसी नीक हएत कि‍ने?”
एक संग रामखेलौनक सोझहामे दूटा प्रश्न उठि‍ गेल। पहि‍ल जे चलैकाल जँ नजरि‍ दुनू कात चलाएब तँ रस्‍ताक घुचीमे पएर पड़ने आकि‍ ठेँसे लगने खसैओक डर आ ठोकरोक कारण तँ अछि‍ए। दोसर ईहो तँ नीके अछि‍ जे दुनू बेकती देखि‍-देखि‍ मुँहमि‍लानी करैत चलब। जइसँ कोनो ओझरी पछुआएल नै रहत। तर्क-वि‍तर्क करैत रामखेलौन ओछाइनसँ उठैत बाजल-
बेसी ओझरी-सोझरीमे कथीले पड़ब, अपना नजरि‍ये जे देखैक मन हुअए से देखब, जे नै देखैक मन हुअए तेकरा छोड़ि‍ देबै।
सि‍रमापर सँ मुड़ी उठबैत मुँह-मि‍लानी करैत जसमति‍ बजली-
हमर माए-बाप अहाँकेँ पुरुख जानि‍ हाथ पकड़ौने रहथि‍, से की हम बि‍सरि‍ गेलौं। पति‍-पत्नीक बीच जि‍नगीक सम्‍बन्‍ध छी, तँए, सूतलोमे आ जगलोमे अहाँक संग छोड़ि‍ केतए जाएब, जँ केतौ अपना मने असगरे चलि‍ओ जाएब तेकर रक्‍छाक भार अहाँ ऊपर थोड़े रहत।
जहि‍ना राति‍-दि‍नक संगम स्‍थल भोर-भि‍नसर छी तहि‍ना रामखेलौन, दुनू परानीक बीच संगम घाट बनबैत बाजल-
अपने दुनू बेकती ने नट-नटीन आ जट-जटीन भेलि‍ऐ, दुनि‍याँक रंगमेचपर दुनू मि‍लि‍ नचबै, लोक देख-देख खूब हँसतै।
बजै काल तँ रामखेलौन बाजि‍ गेल मुदा लगले मनमे भेलै जे हँसीओ तँ नीकोक होइ छै आ अधलोक, से केना बूझब। सौनक मेघ जकाँ रामखेलौनक मन उमड़ए-घुमड़ए लगल। उमड़ए-घुमड़ए ई लगल जे हँसी तँ ओहन महाभारतक पात्र जकाँ अछि‍ जे मौगी छी आकि‍ मरद से कि‍यो परेखि‍नि‍हरे नै। नीकोमे खुशी रूपमे हँसब होइ छै, आ अधलो देखि‍ तँ लोक हँसि‍ते अछि‍। तखनि‍? हँ तखनि‍ ई जे खुशीक जे हँसी होइ छै, ओ नीक भेल। मुदा जेतए लोक अनका हँसीक पात्र बनबैए तैठाम की अपन मन नै हँसै छै? हँसै छै। मुदा भि‍नसुरके सुरूज देखि‍ ने कि‍यो दि‍न भरि‍क अनुमान करैए तहि‍ना हँसबकेँ चौपेत जेबीमे रखि‍ बाजल-
अनेरे दुनू गोरे संगे गाम घुमब। जहि‍ना केरा खेली-ले भादो भदबा होइ छै तहि‍ना पुरुख-पुरुखक गपक बीच अहूँ भदवा भऽ जाएब, तँए नीक हएत जे अहाँ घरे-अँगनाक काज सम्‍हारू जइसँ तुकपर खेनाइओ-जलखै हएत आ काजोक तुक मि‍लत।
नीन टुटि‍ते बि‍छानपर सँ उठब आ टुटल नीने बि‍छानपर पड़ल रहब, दुनू दू भेल। बि‍छान छोड़ि‍ लगले उठि‍ जाएब पुरुखपना भेल आ पड़ल रहब रोगपना वा कोढ़ि‍पना भेल। ई बात जसमति‍केँ मनमे उठि‍ते बि‍छानसँ नीचाँ उतरैत बजली‍-
जाउ अहूँ जेतए जाएब से जाउ, अनेरे सभटा काज जकथक भेल अछि‍।
पनरह अखार बीति‍ गेल मुदा बरखा नै भेने अजोध जेठ जकाँ समैयक रूपरेखा। केतौ-केतौ कोनो-कोनो वस्‍तु रोपलो जाइत आ सूखल-अधसुखू सजमनि‍-कदीमाक लत्तीकेँ उनटा-उनटा पसाहीओ लगबैत। चैतक रोपल आमक गाछ केकरो-केकरो कलशो देने केकरो-केकरो सूखि‍ओ गेल। धानोक तहि‍ना, बोरिंग-नहरबला बाधक रोपनि‍ भऽ गेल, बि‍नु बोरिंग-नहरबलाक धानक वि‍हनि‍ काटि‍-काटि‍ गाए-महिंसक पूजा होइत। इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍। गाम घुमला पछाति‍ रामखेलौन निर्णये नै कऽ सकल जे की देखलौं। मन हुमड़ले, एना कि‍ए भेल? जि‍नगी भरि‍ जे गाममे रहि‍ देखबो केलौं, आ काजो केलौं, रोपबो केलौं, कटबो केलौं, मुदा ई नै बूझि‍ पेलौं जे अखनि‍ खेतमे कथी लगौल जाए? एना कि‍ए भेल? करैक लूरि तँ सभ रंगक अछि‍ मुदा बुझैक लूरि‍ कि‍ए ने भेल? पाछू उनटि‍ तकलक तँ बूझि‍ पड़लै जे खेत-बोनि‍हार रहने एकर खगते ने भेल। जइसँ कि‍सानक बीच तँ रहल मुदा बोनि‍हारक बीचसँ ससरि‍ गेल। तखनि‍?
मने-मन रामखेलौनक बीच घमर्थन उठल। घमर्थन ई उठल जे एक तँ सभ कि‍सानकेँ सभ रंगक- ऊँचगर, मध्‍यम, नीचरस खेत नै छन्‍हि‍, जइसँ कटा-खोंटा कऽ एकभग्‍गु भऽ गेल छथि‍, दोसर ईहो तँ अछि‍ए जे बखारी-बखारी धान-गहुम उपजेनि‍हार कि‍सान खेत रहि‍तो तीमनो-तरकारी आ फलो-फलहरी हाटे-बजारसँ कीनि‍ कऽ खाइ छथि‍। जेते रामखेलौन आगू बढ़ैत तेते मछाही भेल घाट जकाँ मन इछाइन-बि‍साइन हुअ लगलै।  मुदा लगले मनमे उठलै- ‘मन चंगा कठौती गंगा।’ अनेरे मनकेँ वौअबै छी। एते तरहक हवा-वि‍हाड़ि‍ मनुखक बीच उठल मुदा वि‍मले भायटा एहेन छथि‍ जे चौथापनोमे झूठ बजैसँ परहेज केने छथि‍। अनेरे केतए जाएब, केकरासँ पुछब।
रामखेलौनकेँ देखि‍ते वि‍मल भाय बजला-
पहि‍ने तमाकुल खुआबह रामखेलौन, पछाति‍ कुशलवर्ता हेतै।
रामखेलौनकेँ फबल, बाजल-
भाय, बूढ़ भेने अहूँ भँसि‍या जाइ छी, पहि‍ने तमाकुल चुनौल जाइ छै, पछाति‍ ने मुँहमे पड़ै छै। जाबे तमाकुल चुनाएब ताबे तँ गामसँ लऽ कऽ अमेरि‍का तकक गप कऽ लेब।
रामखेलौनक खनहन मन आँकि‍ वि‍मल काका बूझि‍ गेला जे पहि‍ने कि‍छु गप करए चाहैए। बजला-
की हाल-चाल गाम-घरक अछि‍।
गाम-घर सुनि‍ रामखेलौन कैरमवोर्डक गोटी जकाँ ठि‍कि‍या कऽ बाजल-
भाय की रहत, दस धुर चौमास वाड़ी भेल, तामि‍-कोरि‍ ठुठुर बना सेरि‍यौने छी...।
अगि‍ला बात रामखेलौनक पेटेमे रहल आकि‍ बि‍च्‍चेमे वि‍मल भाय टोकि‍ देलखि‍न-
अपन की वि‍चार छह?”
वि‍मल भायक बात सुनि‍ रामखेलौन टीक कुरि‍यबए लगल, जेना कि‍छु मनमे होइ मुदा नि‍कलि‍ नै पबैत रहै, तहि‍ना। वि‍मल भाय बूझि‍ गेला जे कि‍छु मनमे छै जेकरा नि‍कालैत संकोच भऽ रहल छै। दहलबैत बजला-
मन छह आकि‍ बि‍सरि‍ गेलह हौ रामखेलौन?”
बि‍सरब सुनि‍ रामखेलौन बाजल-
कोन गप, भाय साहैब कनी आगूसँ कहि‍यौ ने।
तेसर साल जे माघक शीतलहरीमे बारह बजे बोरिंगक पानि‍क नम्‍बर बोरिंगबला देलक, आ दुनू गोरे चोरबत्ती हाथे खेत पटेलौं की छोड़ि‍ देलि‍ऐ।
वि‍मल भायक बात सुनि‍ जेना रामखेलौनक काज मनकेँ हुमचलक। हुमैचि‍ते जेना पुरुखपना जगलै। बाजल-
पुरुख बनि‍ जखनि‍ काज करए डेग उठेबै तखनि‍ माघक शीतलही हौउ, आकि‍ हथि‍याक झटकी, बि‍ना केने घूमि‍ जाएब।
रामखेलौनक जगैत पुरुखत्‍वकेँ आँकि‍ वि‍मल भाय अपना दि‍स अनलनि‍। बजला-
वाड़ी-झाड़ीक की हाल-चाल छह?”
अपन गोटी ससारैत रामखेलौन बाजल-
भाय साहैब, नौउए-कौउए कऽ दस धुर चौमास वाड़ी नसीब भेल, तइमे कथीक खेती करब से बुझि‍ए ने पाबि‍ रहलौं हेन? अपना मनमे बहु दि‍नसँ सि‍हि‍न्‍ता लगल अछि‍ जे एक बीट केरा आ पाँचटा आमक गाछ होइतए।
रामखेलौनक मनक मुरादक समए नै। भदवारि‍मे केराक खेती करब जहि‍ना वर्जित अछि‍, तहि‍ना आमोक अछि‍। आमक उपयुक्‍त समए चैत होइत, जे गाछ लगि‍ते कलशि‍ जाइत। अखाढ़ छी पानि‍ पछुआएल अछि‍ तँए ने, नै तँ आद्रा अन्‍ति‍मपर अछि‍, लगले मनमे भेलनि‍ जे सभ बात कि‍ए ने कहि‍ दि‍ऐ। बजला-
रामखेलौन, दस गाछ बैगन लगा लि‍अ, घेरा-सजमैन लगबैले मचान बनबए पड़त। केरा-आम अखनि‍ नै लगाउ। आसीनमे जखनि‍ दुर्गा महरानी औती तखनि‍ दसो दुआरि‍ खुजत। अन्न-तीमन, फल-फलहरी, सभ कि‍छु लगबैक समए औत। अहूँ लगा लेब।
वि‍मल भायक बात सुनि‍ रामखेलौन बाजल-
गेल माघ उनतीस दि‍न बाँचल, भाय एतेटा जि‍नगी सबुरे केलौं तीन मास कोन पहाड़ भेल। जे कहलौं सएह करब।¦६११८¦
१९ सि‍तम्‍बर २०१४


[1] अनभुआर
[2] पति‍
[3] भानस
[4] घर-अँगनाक काज
[5] शब्‍द
[6] संकल्‍पि‍त संकल्‍प
[7] पति‍