Pages

Saturday, August 31, 2019

असुध मन (कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)


तीन पहर रातियेसँ करिया काका आ गुड़की काकीक बीच उत्तरा-चौड़ी जे शुरू भेलैन ओ लधले रहलैन। दू-बजिया गाड़ी तमौरिया टीशनसँ आगू बढ़ि गेल। एक तँ माघ मास तैपर शीतलहरीक जुआएल राति, हाथ-हाथ नै सुझैत। मुहोँ देखैक शक्ति आँखिकेँ नहि, तेहेन अन्‍हार पसैर गेल छल। मुदा तैयो करिया कक्काक आ गुड़की काकीक उत्तरा-चौड़ी शीतेलैन नहि, पाला पाबि आरो पलाइते गेलैन।
कटही गाड़ी जकाँ जेतए दहिना भाग खच्चा रहै तेतए दहिना पहिया आ जेतए बामा भाग खच्चा रहै तेतए बामा पहिया दब-उनार होइत चलिते रहल। चलबक कारणो रहैन, कारण रहैन करिया काका मध्यमा पास छैथ, शिक्षा मित्रबला मध्यमा नहि, रटि कऽ पास केलहा। जइसँ अपनापर बिसवास छैन्‍हे, तँए पाछू घुसकैक प्रश्ने नहि। मुदा गुड़कीओ काकीकेँ टटके अनुभव- पनरह दिन पहिलुका- रहैन तँए बन्‍ठा साँढ़ जकाँ माथा अड़ौने रहली। तहूमे एक-उमेरिया दुनू-परानी रहने दुनियाँकेँ जेते करिया काका देखने तेते गुड़कीओ काकी, जइसँ दुनूकेँ अपना-अपना नजरिये देखैक अपन-अपन शक्ति छैन। ओना, दुनूक बीच जे उत्तरा-चौड़ी होइत रहैन ओ कखनो-कखनो बेठेकानो भऽ जाइन। मुदा तैयो उनटैत-पुनटैत विचार एकठाम भऽ रगड़ी बनि रग्‍गड़ रगैड़ते रहल, पाछू घुसकैले कियो तैयार नहि।
एक-चलिया करिया कक्काक उपजौल ज्ञान रहैन तँए अपन चौबिसो घन्टाक रूटिंग नियमित बनौने छैथ। कखैन सुति कऽ उठी, उठला पछाइत की करी, तैठामसँ लऽ कऽ रातिमे ओछाइनपर गेला पछाइत की करी, से सभटा बेवहारमे रखने छैथ। ओना, कमी एते जरूर छैन जे मौसमक अनुकूल किरियो बदलै छैई पढ़ैमे छूटि गेल छैन। जेना केतौक लोक मल उत्सर्जनक पछाइत छोंछ करैए, आ केतौ पनि-छू करैए। तहिना केतौ भरि छाती पानिमे पैसि नहाइए, तँ केतौ एक चुरूक पानि छीटि नहाइए। से बुझैक कमी करिया काकामे छैन। ओ ई नै बुझि पाएल रहैथ जे माघ मास केते पानिसँ छोंछ करी आ बैशाख मास केतेसँ। सुखल आ गील उत्सर्जनक पछाइत केते पानिक खगता होइए। नै बुझैक कारण भेलैन जे मध्यमे तक अध्ययन केने रहैथ, तँए विस्‍तृत रूपे नै बुझि सकला। पुबरिया मेघ सुरूजक धाहीसँ ललिया गेल मुदा किरिण नै फूटल। तरे-तर करिया काका एते तरिया गेल छला जे बरदास नै भेलैन। घरसँ निकलैत पत्नीकेँ कहलखिन-
जेमा तँ जाइते छी मुदा घुरि कऽ फेर नइ मुँह देखब।
ओना, करिया काका ठिकिया कऽ बजलैथ जे कानमे पड़िते छातीकेँ चालैन बना देतैन, मुदा से भेल नहि। हेबो केना करैत पनरह दिन पहिलुके ने घटना छी जे गुड़की काकी करिया काकाकेँ मृत्युक मुहसँ घुमा अनने छेली। तँए पतिक सेवा धर्म तेते प्रवल भऽ गेल छेलैन जे पतिक बात गरदेनसँ निच्‍चाँ उतरबे ने केलैन। बजली-
अहाँ नै मुँह देखब आकि अहाँक नइ देखब?”
पत्नीक समगम उत्तर पाबि करिया काका विचलित भऽ गेला। डोरा-सूइयासँ अपन मुँह सीब, मात्र चद्दरि ओढ़ने घरसँ बहरा ओहिना आगूए-आगू देखैत जाइत रहैथ जहिना असमसानसँ घुमतीकाल कियो पाछू उनैट नै तकैए।
अखैन धरि गुड़की काकीकेँ मनमे नै छेलैन जे पति घर छोड़ि पड़ेता, मुदा जेना-जेना करिया काका आगू बढ़ैत जाइत रहैथ तेना-तेना डेगो नमहर हुअ लगलैन। दूर हटैत देख गुड़की काकीक मन सहमलैन। मुदा अपने पाछूसँ दौग पतिकेँ वौसब नीक नै बुझि पड़ोसिनीकेँ अपनासँ बेसी उमेरक बुझि लगमे जा बजली-
देखथुन की मनमे उठलैन की नहि, घर छोड़ि अपने पड़ाएल जाइ  छैथ, कनी आगू बढ़ि वउस कऽ घुमा अनथुन।
ओना, पड़ोसिनीक मन अपने दुनू बेकतीपर तमसाएल रहैन। तमसाइक कारण रहैन सवा पहर रातियेसँ तेना दुनू परानी नट-बखो जकाँ कुकुर-कटौज करैत एली जे तखनसँ जगले छी। एना केतौ मनुखक घरमे हुअए! तँए भने एकटाकेँ घरसँ गेने झगड़ा तँ नै हएत। कियो अपने ने नीक सोचैए, भने हएत। मुदा से कहलो केना जाएत। ओना, गुड़की काकीक मन पघिल कऽ मोमिया गेल रहैन। मुदा सोलहन्नी नै पिघलल रहैन। तरक मन सक्कत रहबे करैन। खूब जोरसँ बोलकेँ जुमा फेकैत बजली-
जेकर मन असुध अछि ओकरा लिए दुनियाँ असुधे छै, अनेरे किए पड़ाएल जाइ छी। पाछू घुरि ताकू। हे मुरहा घुरि ताकू।
करिया काका पत्नीक बाजब सुनलैन, मुदा उत्तर किछु ने देलखिन। तही बीच पड़ोसिनी पाछूसँ दौड़ कऽ पाछूए-सँ बाँहि पकैड़ पाछूसँ रोकैत कहलखिन-
हमरा लिए जेहने अहाँ, तेहने ओ । तेहल्‍ला बनि कहै छी- घरसँ पड़ाउ नहि, दुनियाँमे केत्तौ जाएब, पेट-माथ संगे रहत। ओकरा सुधारि लिअ। आब ऐ उमेरमे अनेरे केतए वौआइले जाएब। पेट-ले भीख मांगि खाएब से नीक भेल?”
पड़ोसिनीक बोल करिया कक्काक कानक ठेकीकेँ ठेलि मन तक पहुँच गेलैन। मन तँ मने छी केतौ आध मन, केतौ चौथाइ मन, केतौ एक-बटे तीन, तँ केतौ एक-बटे पाँच, तँ केतौ सवा मन, डेढ़ मन, पौने दू मन तकक सीमा-सरहद तँ छइहे। मुदा से बात करिया कक्काक मनमे नै उठलैन, परिस्थितिक अनुकूल ई उठलैन जे जहिना अनभुआर जगहमे माल-जाल पएरो बाड़ैए आ मलकबो करैए, मुदा बिसवासू तँ कोनो एक्केटा अछि, चाहे पएर बाड़ह, चाहे मलकह। मलकै काल जँ काँट गड़तै तँ अपने मलकबक गुण बुझत तखन जे मलकबे करत तँ मलकह...। करिया कक्काक अपन दैनंदिनक सूत्र गड़बड़ा गेलैन। जे उचितो तँ ऐछे, ने घरसँ सभ दिन पड़ाइ छला आ ने ओहन सूत्रकेँ बुझैक खगता छेलैन, आ ने ओइपर नजैर गेलैन। मुदा आइ तँ पड़ोसीक पछड़ा अछि। एक दिस घरक देवी दोसर दिस पड़ोसिनी-देवी। एकटा दइवाली, एकटा लइवाली। मुदा वाह रे अज्ञान! केहनो प्रश्नक उत्तर ठोरपर सदिकाल रखैए। ज्ञानकेँ तत-मती होइ छइ। मुदा अज्ञानकेँ कोन लाज-धाक छै जे तत-मती रहतै। तँए कि अज्ञान निरलज अछि सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकै छै, वेचारा अपन मान-अपमान उठा कऽ पीब गेल अछि। जेकरा माने-अपमान नइ छै, से अनेरे किए ऐ पाछू दौड़त। केकरो कियो बाधा कहाँ उपस्थित करै छै, जे भाय! जबरदस्ती तोरा घर रहबे करबह। तोहर खुशी छिअ जे नीक रस्‍ते भगाबह आकि अधला रस्‍ते। हमरा कोनो लाज-सरम नै अछि...। जेना किछु मनमे पीनपिनेलैन। जहाँ पीनपिनेलैन आकि भेलैन जे ई जे अनेरे देवा-देवी, देवी-अदेवीक भाँजमे पड़ि मगजमारी कऽ रहल छी। असल बात तँ ई अछि जे रावण सन महापण्डित आ रावण सन राक्षसक बास एकठाम केना भेल? भऽ सकैए, होइए। मुदा ऐ बातकेँ पहिनहि ने बुझैक छल जे पण्डिताइक मोल की? मनमे अबिते करिया कक्काक मन पड़ोसिनीपर पड़लैन। ओना, उमेरो बेसी आ वंशो दोसर, मुदा सभ दिनसँ दुनू गोरेक घर एकठाम अछि। केते पुश्‍तसँ हुनको परिवार छैन आ अपनो परिवार अछि। ने एक जाति आ ने एक दियादवाद, मुदा तैयो बोली-चालीसँ लऽ कऽ मनगानी-जिनगानी तक केना निमहल अछि। ओना, भैयारीक भाइक बँटवारा पड़ोसी पैदा करैए। जइसँ दियादवाद, पड़ोसवाद बढ़ैए। मुदा दोसरो पड़ोसी तँ छैथे जे दियादवाद आकि पड़ोसवादसँ अलग छैथ। ओना, पड़ोसियोपन आ वंशोपन तँ अछिए। मुदा पड़ोसीपनक बीच अन्तरो तँ अछिए। अन्तर एते अछि- एक दिस दियाद आ राहैरक दालि जेते ढहै छै तेते रंगरो आ सुआदो बनबै छै, तँ दोसर दिस पट्टा-कुरथीकेँ बिनु दरड़नौं तँ दालि सुअदगरो आ रंगरो तँ बनिते छइ। तेतबे किए, केतौ मीठ, मीठनूनो बनैए तँ केतौ दालियो दालचीनी नै बनैए सेहो बात तँ नहियेँ अछि। जैठाम करिया काकाकेँ बुझैमे दम नै अँटैन। तेतए हाँफए लगैथ। तही बीच पड़ोसिनी दोहरबैत कहलकैन-
अनेरे कोन तितम्‍हामे पड़ल छी। भिनसुरका पहर छिऐ, घूमै-फिड़ैले लोक बहराएत, पत्रकार जकाँ तेतेक सवाल पुछत जे अनेरे माथा ढील भऽ जाएत। तइसँ नीक भरमे-सरमे चलू। अनेरे किए कियो दोसर दुनू बेकतीक झगड़ा बुझि कठिया-लाड़ैन चलौत।
पड़ोसिनीक बात करिया काकाकेँ जँचलैन। अपनो बुझल रहैन जे पुरुख तँ बहरबैया सभ दिन रहला तँए पड़ाएब अधला नहि। मुदा झगड़ा करि कऽ पड़ाएबो तँ नीक नहियेँ भेल। जँ सएह हएत तँ सृष्‍टीए अँटैक जाएत। जखने खेत जकाँ अँटकल कि उपटब शुरू हएत। पड़ोसिनीक विचार मानैत करिया काका एकटा शर्त लगबैत बजला-
जखन घुमि कऽ जाएब तखन पहिले काज फड़िछाएब भेल। से जँ फरिछा दी तखन घूमब?”
जेना पड़ोसिनीक ठोरेपर रहैन तहिना बजली-
ब्रह्म मुहूर्तमे कियो ब्रह्मक उपासना करै छैथ, तँ एहेन की कियो नै छैथ जे दौड़-दौड़ छाती सक्कत करै छैथ।
पड़ोसिनीक बातपर बिनु सोचनहि करिया कक्काक मुहसँ खसलैन-
हँ से तँ छैथे।
बजैक वेगमे तँ करिया काका बाजि गेला मुदा लगले मन पड़लैन, योगक्रिया तँ नीक छी, मुदा पैछला एते नमहर इतिहासमे पाछू पड़ल, किए? मुदा आब उपाइये की? करिया काका तँ घरमुहाँ भऽ गेल छला।
गुड़की काकीक तामस अखनो तक नै कमल छेलैन। मने-मन खौंझ उठै छेलैन जे एहेन सियाखी पुरुखे की जे अनेरे सियाखमे जाने गमबाए। कुकुर जकाँ अपने खून पीब रस लिअए। भगवान रच्छ रखलखिन जे लगमे छेलिऐन। जँ अनका बेटा जकाँ हमहूँ बेटा-पुतोहुक संग परदेशमे रहितौं तँ की अखैन तक सराध नै भऽ गेल रहितैन। भेल ई जे पैछला अन्हरिया पख माघमे पूसेसँ लधाएल शीतलहरी दौगल आबि रहल छल। तैपर कश्‍मीरी हवाक पथराएल लहकी, आ ऊपरसँ बंगालक खाड़ीसँ उठल मेघ बरिस गेल छल। असाध कनकनी पसैर गेल छल। आने दिन जकाँ करिया काका अढ़ाइए बजे उठि कऽ नित्य क्रियामे लगि गेला। छोंछसँ लऽ कऽ आचमन धरिक जेते पानिक काज बैशाख-जेठमे करैथ, तहिना जाड़ो-ठाढ़ मासमे कैरते छैथ। कलपर सँ घुमि कऽ अबैत-अबैत जाड़क असैरसँ खसि पड़ला। धड़फड़ाएल खसबक अवाज सुनि गुड़की काकी दौग कऽ लगमे पहुँच, लटुआएल देहकेँ पजिया कऽ समेट ओछाइनपर अनलैन। कियो दोसराइत परिवारमे नहि। आन किए औत? भोज खाइबेर जाति-जवार भँजियबै छिऐ आ बेर-बिपैतमे पड़ोसिया फड़त! मुदा..? मुदा हाइ रे मिथिलांगना! जे अपन संग आकि दोसराइतिक संग मिलि मिथि-मालिनी बनि चुहैट कऽ पकैड़ लेती ओ अपन व्रतकेँ प्रियवत बनबैत प्रियात्‍मा बनि परमात्‍माक बीच साक्षात्कार लइ छैथ। मुदा से नहि, गुड़की काकीक तामसोक कारण छेलैन। कारण छेलैन जे जिनगीकेँ सम्‍हारि कऽ चललासँ लोक पाओल नै जाइए। जखने बेसम्‍हार हएत तखने रंग-बिरंगक अक्रमित हेबे करतै।
ओना, करिया कक्काक इच्छा रहैन जे आगू-आगू पड़ोसिनी चलैन। मुदा पड़ोसिनीक मनमे शंका रहैन जे भगौआक कोन भरोस, जे घरसँ भागि सकैए ओ रस्‍ता-बाटसँ नै घुमि कऽ भागि सकैए? ओना, करिया कक्काक मनमे रहबे करैन जे जखन पड़ोसियाक मध्यस्तमे आबि गेल छी तखन बीचमे कोनो बाधाक बीआ रोपब नीक नहि। तँए बेसी जोर-जार नै करैत करिया काका आगू-आगू डेग उठौलैन। एक दिस पएरक नापल डेग उठबैथ, दोसर दिस आँखि उठा घर दिस तकलैन तँ किछु झल जकाँ बुझि पड़लैन। मनमे उठलैन पत्नीक कहल- असुध मन!
...कोन बेजा बात कहली जे अहाँक मने असुध अछि? अशुधो-शुद्धोक की सींग-नाँगैर छै? जहिना कखनो भूत वर्तमानमे नाचि देखनिहारेकेँ भुतिया दइए, तहिना तँ ने भरिसक अपनो भेल? जखने केकरो मन शुद्ध हेतइ तखने दुनियोँ शुद्ध हेतइ। जँ बीचमे केतौ अशुधो छै तँ ओकरा निकालि शुद्ध कएल जा सकै छइ। तइले दुनू बेकतीक बीचक सम्बन्ध तोड़ि भागव उचित भेल? मुदा तँए कि सोल्होअना अनुचिते भेल सेहो तँ नहियेँ मानल जा सकैए। कोनो कि हमहींटा छी जे पत्नीसँ रगैड़-झगैड़ कऽ सम्बन्ध विच्छेद करैत घरसँ पड़ेलौं। आकि हमरा सन-सन बहुत छइ। मुदा शुद्धो-अशुद्ध बेराएब बाल-बोधक खेलौना नै ने छी जे गुड़का दियौ। मन शुद्ध, वाणी शुद्ध, वाणी शुद्ध विचार शुद्ध, विचार शुद्ध काज शुद्ध, मुदा शुद्ध पानि- स्‍वच्छ पानि- आ अशुद्ध पाइनिक दूरीकेँ बिनु देखने-परखने केना शुद्ध बनौल जा सकै छै? वाणी शुद्ध आ विचार शुद्ध ओ तँ मात्र अक्षर बदललासँ शुद्ध भऽ जाइ छै, मुदा मूर्त रूपमे जखन अशुद्ध भऽ जाइ छै, तखन शुद्ध बनाएब असान थोड़े होइ छै? हँसनी-कननी आ कननी-हँसनीक रूप तँ बनियेँ जाइ छै, जइसँ धनुषक छुटल तीर जकाँ तँ भइये जाइ छै!!
आँगनक डेढ़ियेपर बैस गुड़की काकी आगूए दिस तकैत रहैथ। ओना, आगू-आगू करिये काका रहथिन आ पाछू-पाछू पड़ोसिनी, मुदा आगूमे रहितो करिया कक्काक धौना जेना खसल रहैन। गुड़की काकीक आँखि तरेगन जकाँ तरँगल रहैन। तरँगल ई रहैन जे पुरुख सबहक एहेन छीछे भऽ गेल अछि, जे ताड़ी-दारू पीब कऽ आएब आ ओछाइनेपर बोकरब।
आब कहू जे जँ ओछाइनकेँ सुतली रातिमे धुअब तँ लोक ओइपर सुतत केना। मुदा लगले मन बदैल गेलैन। बदैल ई गेलैन जे अपना सेने से तँ नै भेल अछि, तँए केतौक ईटा, केतौक सिमटीपर साटब नीक नै हएत। मुदा फेर लगले मन तरङ्गि गेलैन। तरङ्गि ई गेलैन जे दस-बारह दिन जे एहेन समयमे दिन-राति एकबट कऽ सेवा करए पड़ल, तेकर कोन खगता छेलइ। जैठाम बेसी ठण्‍ढ पड़ै छै तैठाम लोक छछाड़ी काटि कऽ अपनाकेँ शुद्ध बना लइए, जैठाम तइसँ कम ठरल रहल तैठाम पनि-छू करि कऽ शुद्ध भऽ जाइए, आ कोन सियाख भेल जे तमघैलिया लोटासँ छोंछ करब? मुदा पतिक नजैर खसल देख गुड़की काकीक नजैर सेहो ओंघरा गेलैन। तँए किछु उपराग देबसँ नीक चुपे रहब बुझलैन।
बिना किछु सुनने-बुझने पड़ोसिनी मध्यस्‍ता करैत बजली-
हम पड़ोसी भेलौं। जेहेन मिलानसँ दुनू बेकती रहब तेहेन मिलानसँ परिवार चलत। जेहेन परिवारक सिख-लिख हएत तेहने सिख-लिखक ने पड़ोसियाक पड़ोसीपन भेल। आगू जानी अपने।
कहि पड़ोसिनी प्रतिक्रिया सुनैक खियालसँ कान ठाढ़ केलैन मुदा कोनो सुनि-गुनि नै पाबि मुस्‍की भरैत विदा हुअ लगली आकि पाछूसँ गुड़की काकी बजली-
दीदी, बजली तँ बड़ निम्मन बात। मुदा एकटा कहने जथु- हम ओहन जनाना नै छी जे पुरुखपर ओंगठल रहब आकि पुरुखकेँ ओंगठौने रहब। अपन-अपन जिनगीक बर-बेमारी अछि खाइ-पीऐसँ जीबै धरिक उपाय करैक अछि, तैठाम जे ओंगठा-ओंगठी हएत तँ इहे कहथु जे अपन जान देखब कि हिनकर देखबैन?”
गुड़की काकीक बात सुनि पड़ोसिनी ठमैक गेली। गुड़की काकी दिस नजैर गड़ा देखए लगली जे अनभुआर बात बजली आकि भुआर बात। भुआर परीक्षा भेल अनभुआर जानैक इच्छा भेल। पड़ोसिनीकेँ चुप देख अपन चुटका सम्‍हारैत गुड़की काकी दोहरौलैन-
चुप भेने हेतैन, पुरुखक मुँहक कोनो ठेकान अछि। लगले पतिव्रत कहि टिरका देता आ अपना बेर मे गबदी मारि देता। बजबे ने करता जे स्त्रीव्रत-नारीव्रत की छी!
गुड़की काकीक बात पड़ोसिनीकेँ नीक लगलैन। ठोर-रंगू राँगी धान जकाँ बिहुसली। पड़ोसिनीक बिहुसी गुड़की काकीकेँ सेहो बिहुसा देलकैन। पड़ोसिनी विदा होइत बजली-
हे बहिना, बड़-बड़ लीला अछि मोरंगमे। तखन तँ फुटा कऽ एते सुनि लएह जे तोहर पनचैती हम करियह आ हमर तूँ करह, तइसँ नीक ने भेल जे केकरो कियो किए खगैत काजकेँ आरो खगाएत। अपन-अपन फड़िछौठ लोक अपना बुधिये करह। जखने छोट बुधिबलाक पनचैती नमहर बुधिबला करतै, तखने ने ओकर गरदेन-कट्टी करतै। जे अखैन बुझै-जोकर नै अछि ओकरा बुझनुक बना जखन पनचैती हएत तखन ओकरा संग न्याय हएत।
ओना, पनचैतीमे जँ पंचो हँसैत आ दुनू पक्षो हँसैत विदा हुअए तँ ओ सफल भेल। मुदा करिया काकाकेँ से नै भेलैन। अखनो तक मन मानैले तैयार नै छैन जे जेते न्याय पत्नीक संग भेलैन तेते हमरा संग नै भेल। मुदा तीन गोरेमे दू गोरे जखन एक-भगाह भऽ गेली तखन तँ उनार हेबे करब। ओना, करिया काकाकेँ जेते अध्ययन छेलैन ओइ हिसाबक जिनगी बना, जीबैत आबि रहल छला। एते तँ मनमे बैसले छेलैन जे नै केकरो नीक कएल हएत तँ अधलो नै करबै। मनमे एते छैन्‍हे जे भूल-चूकमे जँ केकरो अधला भऽ गेल होइ, तँ अखनो कहह। जँ वैचारिक बात हएत तँ विचारक तराजूपर तौल देबइ, नै जँ नइ हएत तँ जे गलती भेल हेतइ तइ हिसाबसँ सकारि लेबइ। नीक जिनगी आ नीक विचार रहितो करिया काकाकेँ सौनक ओइ कोदरवाह जकाँ भेलैन, जेकरा पहिने हवा-विहारि आ झाँट झँटियबै छै, लगले पछाइत मेघ फाटि पानिक वोरा देहपर उझलै छै, आ लगले पछाइत तड़ैक कऽ ठनका बनि तड़तड़ा दइ छै! मुदा लगले मन घुमलैन। घुमिते विचार उठलैन, पत्नी तँ जिनगीक संगिनी ने भेली। तँए ओइ रूपे चलब तखने ने निमहत।
करिया काकाकेँ गुम देख पड़ोसिनी डेग बढ़बैत बजली-
सँए-बहुक झगड़ा, पंच भेल लबड़ा। जाइ जाउ अपन-अपन हाल-रोजगार देखू।
q
तिथि : 19 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 2353

No comments:

Post a Comment