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Saturday, August 31, 2019

सुरता (कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)


सुरता
जेठ बेटा विलासक उड़न्‍ती समाचार कानमे पड़िते सुरत कक्काक सुरता खींचि लेलकैन। मने-मन विचार करए लगला जे पिताजीक मुँह कहलकैन पितृ-ऋृणक चुकता तँ पुत्र-सिर अबैए, मुदा पुत्र-ऋृणक चुकता पिताक सिर आबए..? ऐठाम आबि मन भन-भना उठलैन-
बेटाक रीन नै भार माए-बापपर ओतेकाल रहै छै जाबे मड़बा बान्‍हि, चुल्हि-चौकाक पूजा नै भेल रहै छै, जखन से नै तखन अनेरे उड़ी-बीड़ी मनमे किए लगौने छी।
मन ठमकलैन, मुदा लगले भेलैन जे कहाँदन हमरो नाओं केसमे दऽ देने अछि। झाँपल रिपोट छै जे विलास दुनू परानीक नाओंसँ जे पकड़ेलै से तँ पकड़ेबे केलै, कहाँदन ईहो छै जे पिताक हाथे सेहो रूपैआक निकासी भेल, तखन तँ दोखी भेबे केलौं किने। किए ने कोट-कचहरी करबाइ करत, मुदा कोटो-कचहरी की केकरो अनकर छिऐ जे हमर बात नै सुनत। मन थीर भेलैन, मुदा लगले दोसर बात मनमे खसलैन। खसलैन ई जे कहाँदन ईहो कहनिहार गवाह सभ भऽ गेल अछि जे कहै छै- जँ सरकारकेँ सही-सही जानकारीक गवाह बनि गवाही दिऐ, तखन...।
ईहो सुनै छी जे कहाँदन सरकार मानि रहल अछि जे जे सही जानकारी देत, ओइसँ तँ शासनेक मदैत ने भेल, ओकरा कोनो सजा नै हेतइ, संगे अबै-जाइक भत्ता सेहो भेटतै। मुदा ने सुरत काका पत्नीकेँ कहलखिन आ ने कमली काकी पतिकेँ। कहनाइयो उचित नहि। परिवारक बात छी, तहूमे जेठ बेटा! छोट रहैत तँ बाल-बोध कहि टारिओ देल जा सकै छल। अधखिजू समाचार कानमे रहैन तँए दुनूमे सँ कियो अवाच बात मुहसँ बाजए नै चाहैथ। जे उचितो अछि। सरकारी कोषक गमनक मामिला अछि, नोकरीक दरमाहाक आंशिक रूपमे भागीदारी अछि, तखन वेतनक अतिरिक्‍त हाथ बढ़ाएबकेँ के उचित कहता। केकरोसँ की छिपल छै जे दू-दिसिया गमन छइ। एक दिस आम-जन दोसर दिस शासन-जन, तैबीचक मामिला छी!
दिनक सुर्ज खसैत-खसैत रातिक कगनीपर पहुँच गेल। केते पतियानी लगा आ केते बिनु पतियानीए चिड़ै सभ अकासमे उड़ैत। ओना, अवसान बुझि बगुलाक पाँती पच्छिमसँ पूब दिस उड़ि-उड़ि भरिसक पानिक किनछरि तकैले जाइत, से नै गाछ सभपर बनौल अपन-अपन खोंतामे रात्रि विश्राम करए जाइत। जखन गाछपर शयन-कक्ष छै तखन अनेरे किए अन्‍हारमे सुर्ज तकैले समुद्रक कात जाएत। सुर्ज समुद्रमे होथु आकि पहाड़पर जखने उगता तखने गाछपर पड़ि जगेबे करता, तैबीच ब्रह्म नीनकेँ किए छोड़ि देब। मुदा कौआ-चिलहोरियाक अखनो पतियानी नै लगल अछि, चारूकात टाँहियो मारैए आ कुचड़बो करैए। उल्‍लू तँ सहजे अखैन ब्रह्म नीनेमे हएत। जाबे दीया नै जड़त ताबे लछमी जगती केना, जाबे लछमी जागि कऽ सोल्हो कलासँ विभूषित भऽ बहराइले तैयार नै हेती ताबे हमर कोन काज। बाझ हम थोड़े छी जे जेकराले जेहने दिन तेहने रातियो, एके वृत्तमे लगल रहब।
बाध-बोन दिससँ आबि सुरत काका हाथ-पएर धोइ दरबज्जाक मुहथरिपर पएर रखबे केलैन आकि कमली काकी चाह नेने पहुँचली। आन दिनसँ भिन्न सुरत कक्काक सूरत कमली काकीकेँ बुझि पड़लैन। मने-मन सोचए लगली जे किएक दिन अछैते सुर्ज मड़ियाएल छैथ? सभ दिन केहेन बढ़ियाँ हँसी-खुशीसँ चाहो पीबै छला आ दिन भरिक काजक नीको-बेजए सुनबै छला, मुदा आइ उदास जकाँ किए छैथ। जरूर मनमे कोनो ने कोनो सन्ताप छैन, जखने सन्ताप तखने विलाप! मुदा लगले मन आगू घुसैक गेलैन। घुसैकते घुरघुरेलैन जे बौआबला बात ने तँ कियो कहलकैन हेन? जखन अपनो सुनलौं तखन ओ नै सुनने हेता सेहो केना मानल जाए। तखन? तखन तँ यएह ने नीक हएत जे जहिना पुरुख नारीकेँ अनुकूल बना घाटक घटवारि करै छैथ तहिना ने नारियोक दायित्व बनै छैन जे पतिकेँ अनुकूल बना बाटमे बटमेर करैथ। मनमे अबिते पतिव्रत जगलैन। जैगते, जहिना अछाहे कुकुर भुकैए तहिना भुकली-
माए-बाप बेटा-बेटीकेँ जन्‍म दइ छै, मुदा अपन पतिपाल तँ अपने करए पड़ै छइ। तइले किए बेटाक सन्तापसँ माए-बाप सन्तापित हएत? आगूमे चाह आएल अछि, चैनसँ पीबू। आब ऐ दुनियाँ आकि ऐ जिनगीमे रहि की गेल जे अनेरे मन वेपिरीत करब।
पत्नीक बात सुनि सुरत कक्काक मनक दोसर दरबज्जा खुजलैन। खुजिते बजला-
चाह ते रीब-रीबेमे चलि गेल, कनी नीक चाह पीबैक मन होइए।
कमली काकी बुझि गेली जे अखैन हिनका लेल नीक चाह तँ वएह ने हएत जइमे चिन्‍नी कम आ लीकर बेसी होइ। बजली-
कनी थम्‍हू, अपनेसँ बनौने अबै छी। 
पत्नीकेँ लगसँ हटैत देख सुरत काका बजला-
किए अपने चाह बनबए जाइ छी। जखन चुल्हि तर पुतोहु बैसल छैथे तखन अपने किए अनेरे हमरा निमित चुल्हिक भीर जाएब। हुनके कहि दियनु जे कनी कड़गरसँ चाह बनौती।
कमली काकी अनुकूलताक बाटमे प्रतिकूलताकेँ आएब नीक नै बुझलैन। कनी फड़िक्केसँ पुतोहुकेँ कहलखिन-
कनियाँ, चाहमे लीकर हिसाबे चिन्नी कनी कम देबइ।
कहि पतिक आगूमे पुन: आबि ठाढ़ भेली। आँखि उठा सुरत काकाकेँ देखली तँ बुझि पड़लैन जे बेसी बेथाएल छैथ। बेसी बेथाएल छैथ आकि जिनगीमे केतौ बेधाएल छैथ से कमली काकी बुझबे ने केली। खोह परहक दौनक बरद जकाँ टोकारा भरली-
जँ केकरो मुहेँ सुनी जे कौआ कान नेने जाइए ते अपन कान देखब आकि अनेरे दुनियाँमे छिछियाएल फीड़ब?”
एक तँ अपन सीमांकनक विचार दोसर कड़गड़ लीकर देल चाह, तैपर सँ पत्नीक टोकारा, सुरत कक्काक मनकेँ डोलौलकैन। डोलिते बजला-
एकटा उड़न्‍ती बात परिवारक सुनलौं...।
जहिना दूटा कौआक बीच एकटा टुकड़ी रोटीले मुहसँ लुका-झुकी होइए तहिना सुरत कक्काक बोलकेँ लूझि कमली काकी बजली-
ओना, परसुए विलासक विषयमे सुनलौं, सुनला पछाइत जखन टोहियबऽ लगलौं तँ कोनो भाँजे ने बैसल।
किए ने कोनो भाँज बैसल?”
केकरो गपक कोनो ठेकाने नहि। सभ अपने-अपने शिकारी जकाँ शिकार सधैए।
सभ अपने-अपने शिकार साधैए’, ई तँ कोनो अधला नै भेल, मुदा एते तँ हेबे करत जे बेसी मुसहैनमे मूस केनए नुका रहत, से सभ बुते ताकल थोड़बे हएत? ओना, अखैन तक दुनू परानीक सोझहामे रहितो बात परोछे-परोछी भेलैन, मुदा जाबे सोझा-सोझी परगट नै हएत ताबे घटनाकेँ जड़ियाएब सम्भव नहि। सुरत काकाकेँ मनमे उठिते मुँह खुललैन-
देखू, अखैन दुइए परानी छी, घरक इज्जत-आवरूक बात छी, तँए मुँह दाबि बजलासँ नै हएत। दुनू गोरे मुँह-मिलानी करैत चलू जे अहाँ की सुनलिऐ आ हम की सुनलौं।
पतिक बात सुनि कमली काकी सहैम गेली। सहैम ई गेली जे कियो जे किछु बजैए, से ओहिना थोड़े बजैए। जँ सोल्होअना सत् नै बजैए तँ सोल्होअना फुइसो तँ नहियेँ बजैए। जँ अदहो-छिदहो सत् हएत तैयो तँ परिवार कलंकित भइये जाएत। अपना अछैत जँ परिवार कलंकित भऽ गेल तखन बँचल की जइ लऽ कऽ आगूक जिनगीक बाट काटब। मुदा सम्बन्‍धो तँ देहा-देही अछि। केकरो बेटा जँ कुरसी पबैए तँ ओकरा ऊपर ने कुरसीक भार भेल, आकि ओकर परिवारक ऊपर? जँ से नै भेल तखन नीक-अधलाक भागी ओ बनत आकि परिवार? मुदा जँ परिवारक आनकेँ ओइमे लटपटौल जाए तखन ओ बँचि केना पौत? निरदोसो तँ दोखी बनबे करत? कमली काकीकेँ आगूक कोनो बाट सेरियाम देखिये ने पड़ैन। बजली-
ओना, ने विलास अपने आ ने पुतोहुए अपना मुहेँ किछु कहलैन, मुदा गाममे तँ लाबा-फरही उठिये रहल छइ। जे सुनबो केलौं आ सुनितो छी।
सएह ने पुछै छी, जे कोन बात अहाँ केना सुनलिऐ आ हम केना सुनलिऐ।
पतिक बात सुनि कमली काकी फेर बात घुड़ियबऽ चाहलैन। मुदा मनमे जेना झोंक उठलैन, तहिना बजली-
बौआ कहाँदन सरकारक कोष गमन कऽ लेलक अछि?”
पत्नीक बात सुनि सुरत काका आगू बढ़ैत बजला-
हम तँ ईहो सुनलौं हेन जे रूपैआ बैंकसँ बरामदो भेल अछि।
कमली काकी-
ई बात हम नै सुनलौं। सुनलौं जे कहाँदन लोकोक पाइ गमन केने अछि।
नमहर साँस छोड़ैत सुरतकाका बजला-
सुनैमे आएल अछि जे हमरो नामे कहल गेल अछि जे हुनको हथौटी पाइयक कारोबार भेल अछि।
पतिक बात सुनिते कमली काकी बजली-
एहनो अनसोहाँत होइ छइ। घरमे जँ पाइ आएल रहैत तँ हम नै देखतिऐ।
तैपर मुँह दाबि सुरत काका बजला-
मुदा, से घरमे बजने नइ ने हएत। ओ तँ कानून-कायदाक बात भेल किने, तत्खनात ते थाना-बहानाक काज शुरू भइये जाएत किने! तखन?”
पतिकेँ निराश होइत देख कमली काकी बजली-
थाना पुलिसकेँ बुझा कऽ कहबै।
सुरत काका-
जँ नै मानए, तखन?”
कमली काकीकेँ जेना मनमे झोंक उठलैन। बजली-
जँ नै मानत तखन बुझल जेतइ। ओना, परसुए हुलास  मधमन्नी गेल। घुमि कऽ एलापर सभ बात बुझबे करबै, तइले मनकेँ किए छोट करै छी।
सुरत काका-
हुलासकेँ केना पता लगलै?”
कमली काकी-
ओकरा कहाँदन भौजाइ फोन केने छेलखिन।
की सभ कहने छेलखिन?”
पतिकेँ उत्‍सुक देखते कमली काकीकेँ अपना विचारमे अनुकूलता बुझि पड़लैन। अवसरकेँ बिना गमौने बजली-
अपना दुनू गोरे ते सहजे अथवल  भेलौं। तखन तँ हुलासे ने घरो-बाहर करैए आ बाहरो-घर करैए। तँए जाबे ओ मधमन्नीसँ नै अबैए ताबे, जहिना मुँह दाबि बिसरल छेलौं, तहिना ताबे धरि मुँह दाबि बिसरल रहू।
पत्नीक एकोसिया रूप देख सुरत कक्काक मन मुसकलैन। मुसैकते फुरफुरेलैन। फुरफुरेलैन ई जहिना एक दिन माघ जीने वा नहेने वा मुकावलाक शक्ति पेने, मासो भरिक माघकेँ खेलौना लोक बना लइए, तहिना जाबे हुलास नै आबि जाइए ताबे किछु बाजब अनुचित हएत। एकर माने ई नै जे घटने बिसैर जाइ। विचारणीय प्रश्न तँ ऐछे जे एना भेल किए? कोषागारमे कोष पड़ल अछि, तँए ने। जँ धारक गतिये कोषो चलए तखन किए केतौ ठहराउ हेतै आकि चकभौरमे मोनि फुटतै।
सामंती बेवस्था जखन अर्द्ध-विकसित पूजीवादी बेवस्थामे संक्रमण हुअ लगैए, तखन संस्कार संस्कारक बीच नमहर खाधि बनि जाइए। जइसँ टकराहैटक जगह बनि जाइ छै, टुट-फुट शुरू होइ छइ। जइसँ धारक कातक खेतक जेहने दशा होइ छै तेहने जिनगियो आ विचारोक होइ छइ। जहिना धारक कातक खेतक माटि आ पानिक लहैरक बीचक जे स्थिति रहै छै जे कखैन कटनमा रूप पकैड़ काटि कऽ पेटमे थाल-कादोकेँ घोरि-घारि पाँक बना माटिक ऊपरो आ पानियोँक संग भँसियबैत चलैए तहिना भऽ जाइ छइ।
सुरत कक्काक परिवार मध्यम किसानक छैन। ओना, मध्यमो किसान केतेक रंगक छैथ, कियो एहनो छैथ जिनका बीस बीघा जमीन छैन, कागजी रूपे मध्यम किसान भेला, मुदा खेतमे धार बहै छैन। तहिना एहनो छैथ, जे बालुक भाँजमे पड़ल छैथ। कियो एहनो छैथ जे चौर-चाँचरक भाँजमे पड़ल छैथ, तँ कियो एहनो तँ छैथे जे बीस बीघाक परिवार रहितो सम्पन्न परिवार छैथ। नीक जमीन, उपजबैक नीक बेवस्थाक संग जे परिवार अछि ओ किए ने सम्पन्नता आनत। मुदा से नहि, सुरत काकाकेँ आठ बीघा जमीन जइमे बोरिंग-दमकल अपना छैन।
सुरत काकाकेँ तीन सन्तान। जेठ बेटा माझिल बेटी आ छोट बेटा। नवका हवा-विहाड़िसँ बेसी प्रभावित परिवार नहि, तँए समटल खर्च, समटल जिनगीक गति। खेतक उपजासँ परिवारो चलैत आ दुनू बेटोकेँ कौलेज धरि पढ़ौलैन। ओना, अपन इच्छा रहैन जे जहिना बेटा-तहिना बेटी, सभ तँ अपने सन्तान भेल, तँए परिवारमे सभकेँ एक रंग खेनाइ-पीनाइसँ लऽ कऽ कपड़ा-लत्ता बर-बेमारीक इलाज तक तँ निमहैत रहैन मुदा पढ़ाइ लग आबि भदवा ठाढ़ भऽ गेलैन। भदवा ई ठाढ़ भेलैन जे पत्नी कहलकैन-
मैट्रिक तक बेटीकेँ पढ़ा लेलौं, जेते खर्च पढ़बैमे केलौं, तेते खर्च बिआहोमे हएत, खर्च दोबरा जाएत। से अपने जानी।
पत्नीक विचार अकाट्य बुझलैन। मन दुनू दिस कुदलैन। एक दिस ई कुदलैन जे जेते बेटीक हिस्सा खेत-पथारमे हएत तेते ओकर चुकता करि दिऐ, जइसँ खर्च भारी नै बुझि पड़ैन। मुदा दोसर दिस जखन अपनापर नजैर पड़ैन तखन होइन जे बेटी तँ घरसँ चलि जाएत। अपने दुनू परानीक जिनगी केना चलत। जँ बेटा-पुतोहु कहैथ जे बारह मासमे चरि-चरि मासक हिस्सा भेल तँए चारि मास बेटियो ऐठाम किए ने रहब? तखन केहेन हएत जे अपने गामक समधि बनि खेलौना भऽ जाएब आ पत्नीकेँ भरि गामक लोक समधीनियाँ सरऽ रऽऽ करए लगतैन...! ऐठाम विचार ठमैक गेलैन। ओना, बेटी-जमाइक परिवारसँ नीक बेटा-पुतोहुक होइ छइ। अपन घर-दुआर, खेत-पथार, सर-समाज सभ समटल रहै छइ। मुदा तैयो मैट्रिक पास बेटीकेँ बी.ए. शिक्षक लड़का संग बिआह कए माथक बोझ हल्‍लुक केनहि छैथ। जेठ बेटा विलास बी.ए. पास कऽ प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षा पास केला पछाइत अफसरक जिनगीसँ जिनगी शुरू केलैन। छोट बेटा हुलास बी.ए. केला पछाइत हाइ स्कूलक शिक्षक बनला। 
जातक हुलास नोकरीक जिनगी प्रारम्भ नै केने छल तातक जेठ भाय- विलास-केँ सेहो अभिभावके रूपमे मानै छेलैन। मुदा जखन नोकरी शुरू केलक तखन अपन जिनगीकेँ ठिकियौलक। ठिकियौलक ई जे परिवारमे भैयारीक सम्बन्ध अछि मुदा ओहो- जेठ भाय- नोकरी करै छैथ, हमहूँ नोकरी करै छी, हुनका दरमहो बेसी छैन आ बाहरियो आमदनी छैन। मुदा हमरा तँ से नै अछि। जँ बाहरी आमदनी ट्यूशन पढ़ा कऽ करए चाहब तँ पढ़ावी वा नै पढ़ावी मुदा समय तँ लगबे करत। जखने अधिक समय आर्थिक उपारजनमे लगाएब तखने वैचारिक रूपे जिनगीक आन-आन काजमे विघ्न-बाधा उपस्थित हएत। अपनासँ लऽ कऽ परिवार-समाज धरि। तखन तँ भेल नियमित वेतनपर नियमित जिनगी बना चलब तखने चलि सकै छी। चारि कोस साइकिलो चला हुलास परिवारक बीच अपनाकेँ रखने रहल अछि।
दोसर दिन भिनसरे समदिया दिया हुलास माएकेँ समाद पठौलक जे सभ काज सेरियाएल चलैए, तँए कोनो चिन्ता नै करैथ। समदियो कियो आन नहि, दियादिये पितियौत। तँए अबिसवास करैक प्रश्ने नै कमली काकीकेँ रहलैन। एक तँ भोरुका समय, तैसंग चाहक गिलास नेने कमली काकी पतिक हाथमे पकड़ैबते, जेना समाद सुनबैले मुँह लुसफुसेलैन। मुदा बिच्चेमे दुनू विचार ओझरा गेलैन। एकटा विचार उठनि जे कोनो अधला समाद छी जे पहिने किछु खा-पीब लेता तखन कहबैन? दोसर ईहो उठनि जे जाबे किछु अनजल नै कऽ लेता ताबे अनेरे माथ किए भरयेबैन। जखने बात उठत तखने रंग-बिरंगक अनेको बात चलत। अपना तँ ओतबे बुझल अछि जे काज सेरियाएल अछि चिन्ता नै करब। मुदा चिन्ता की लोक अपन विचारक मने करैए। जँ अपने मने करैत तँ विचारि कऽ समय बना लैत जे एतेकाल चिन्ते करब आ एतेकाल नै करब। मुदा चिन्तो की छोट-छीन खेलाड़ी अछि। अन्ने-पानिटा अरूचि करैए सएहटा नै ने छै, आँखिक नीनो हराम करैए। ओ तँ काजक जड़िमे कहियौ आकि गपक जड़िमे तेना नुकाएल रहैए जे जखने चालबै आकि फुरफुरा कऽ आबि पकैड़ लेत। मुदा से सभ कमली काकीकेँ नै भेलैन। पतिकेँ चाह पीबैसँ पहिने बजली-
बौआ समाद पठौलक हेन जे काज सेरियाएल अछि, चिन्ताक कोनो बात नहि।
पत्नीक बात सुनि सुरत काका हाँइ-हाँइ दू घोँट चाह पीब बजला-
केकरा दिअए समाद आएल अछि?”
लाला कहलक।
लालाक नाओं सुनि सुरत कक्काक मन ठाढ़ भेलैन। ठाढ़ होइते हिया कऽ आगू-पाछू ताकि बजला-
आउरो की सभ समादमे कहलक?”
बस एतबे, काज सेरियाएल चलैए, अहाँ सभ चिन्ता नै करब।
चिन्ता नै करबसुनि सुरत कक्काक मनमे जेना ऑक्‍सीजन बढ़लैन। मनमे उठलैन, ओहुना तँ लोक बजिते अछि जे कोट-कचहरीक बात अनका कान तक नै जाए। एते तक कि घरवाली आ धियो-पुतो तक नहि। मुदा, जँ परिवारक अपना  छोड़ि दोसर नै बुझै, आ एते जे गाड़ी-सवारी बढ़ि गेल अछि, जँ केतौ ठोकरे-तोकरे लगि गेलै आ अपन हाथ-पएर टुटि गेल, तखन परिवारक गाड़ी केना चलत? मुदा परिवार तँ कोनो सजीव नै अछि, सजीव अछि ओइ बीचक लोक, जे चलबैए परिवारक गाड़ीकेँ। मुदा ओइमे बाल-बोध तँ बाले-बोध भेल, अखैन ओकरा एहेन काजक भीर किए आनल जाए। बँचली घरवाली, हुनका किए ने कहल जाए। मुदा घरोवाली तँ घरेवाली छैथ, जँ नाक नै रहितैन तँ कौआक सभ वृति करितैथ। मुदा कौआ केना काग बनत ओ तँ अपने ऊपरक काज भेल किने? भेल तँ जरूर मुदा बदलैत समाजिक ढाँचामे काजक जे छीना-झपटी भऽ गेल अछि, ओइमे बढ़ोत्तरी भेल अछि। एक-चलिया समाजिक ढाँचामे परिवारिक-समाजिक किरिया-कलाप सीमित दायरामे रहने, सबहक नजैरक बीच रहैत छल जइसँ सुरक्षाक दोहरी रूप छल। मुदा काजक असीमिता लोकक विचारकेँ तेना डोला देलक अछि, जे पगला जकाँ गेल अछि।
जेते सम्पन्नता आबि रहल अछि ओते पेट-मन दुनूक भूख जगि रहल अछि, जेकरा पाछू दौगैत जिनगी बेचैन भेल अछि। जैठामक दिशा- मिथिलांचलक दर्शन- कट्ठा भरि सागपर आत्‍माभिमानसँ सज्‍जित जिनगी बनबैत रहल अछि तैठाम एते दौड़ा-दौड़ी किए? ऐंड़ी-दौड़ी किए एते बेसी लगि रहल अछि?
सुरत काका पत्नीकेँ लगमे बैसा बजला-
देखू, परिवारक बीच जे समस्या उठि गेल अछि ओकरा नीक जकाँ ताकि कऽ अपन जीबैक रस्‍ता सुरक्षित बना चलैक अछि। अहीं कहू जे जे साड़ी विलासक पत्नीक देहपर अछि, ओ हुलासेक पत्नी आकि अहींक देहपर कहाँ अछि?”
पतिक बात सुनि कमली काकी ठमकली। ठमैकते दुनू बेटा-पुतोहुक जिनगी नाचि उठलैन। नचिते विचार असथिर भेलैन। अखनो तक तँ हुलासे ने बेटा जकाँ निमाहैत आएल अछि। पैंसैठ-सत्तैरक दुनू परानी भइये गेल छी। दस-बीस बर्ख आरो जीब, तेकरे-ले ने रस्‍ता सुरक्षित बनबैक अछि। जेना हेराएल वस्‍तु आकि कोनो नवे वस्‍तु भेटने मनक उमकी उमैक जाइ छै तहिना कमली-काकीकेँ सेहो उमकलैन। दहिना हाथक ओंगरीक गिरहक पोर गनि-गनि बजली-
छोटकी पुतोहुकेँ पएर रखना घरमे तेरह बर्ख भऽ गेल, कहुना हिल-मिल जँ एतबो दिन आरो खेप जाएब तखन बँचले की रहत जे तइले नीक-अधलाक विचार नै करौं?”
पत्नीक विचार सुनिते सुरत काकाकेँ जेना जिनगीक नव दिनक सुर्ज उगैत बुझि पड़लैन। सहोदर रहितो तीनू भाए-बहिन केते हटि-हटि कऽ अछि, मुदा माए-बाप रहितो दुनू परानी केते सटि कऽ छोटका बेटा-पुतोहुक संग छी। तँए नीक हएत जे हुलासो मधमन्नीसँ अबैए, तखन सभ बात सविसतर सुनब, सुनला पछाइत विचारब जे की केने केते नीक हएत आ की नै केने केते अधला हएत, से तँ अपने चारू गोरे ने विचारि कऽ एक मत बना चलब। 
पाँचम दिन, सभ काज सम्‍हारि हुलास शनिक साढ़े-बारह बजे रातिमे गाम पहुँचल। बेसी राति भेने केकरो उठबैसँ नीक चुपचाप अपन कोठरी खोलि, एक डिब्‍बा बिस्कुट खा सुति रहल। ओना, पाँचो दिनक धुरफन्‍दा काज रहने, नीन पड़ाएल रहै, जइसँ पाँचो दिनक नीन आँखिपर लटकले छेलै...।
भोरे सुरत काका उठला तँ बुझि पड़लैन जे हुलास आबि गेल। मनमे कछमछी उठलैन मुदा अपने मन रोकि कहलकैन जे जेकर एहेन मोटगर नीन अछि, ओकर काज जरूर पतराएल अछि। सवुर भेलैन। मुदा तैयो पोखैरक डेढ़बा माछ जकाँ घाटपर चाल-चूल दिअ लगलखिन जे जखने चाल-चूल हएत तखने हुलासोक नीन टुटत। मुदा चालो-चूल तँ सभ रंगक होइ छइ। एकटा होइ छै चुपेचाप, दोसर होइ छै घोल करि कऽ। हरलैन ने फुरलैन खूब जोरसँ कमली काकीकेँ कहलखिन-
बाँस भरि सुर्ज ऊपर आएल आ अहाँ सभले रातिये छइ।
मुदा भोरके वोहैन ने भरि दिनक काजक शुभ-लाभ करैए। कमलियो काकी अपन वोहैने केलैन-
अहीं जकाँ सभ साँझहे सुति रहैए। अनेरे भोरे-भोर हकबाहि उठल अछि।
आँखि मीड़िते हुलासक मनमे उठल जे पहिने दुनू गोरेकेँ भैयाक हाल-चाल सुना दिऐन। अपने रग्‍गड़ो थमि जेतैन। हुलासकेँ देखते सुरत काका बजला-
कखैन एलह?”
बड़ रतिगरकेँ एलौं, तँए नै उठेलौं।
की हाल-चाल सभ छह?”
हुलास अपन पाँचो दिनक काजक वृतान्त सुनबैक विचार केलक। मुदा मनमे एलै जे पहिने ऐगला बात कहि कऽ मनकेँ रोकि देब नीक हएत। नै तँ अनेरे उझैक-उझैक गिरहे-गिरह सवाल उठौता। बाजल-
बाबू, अपना सभ निसचिन्त भऽ गेलौं, नै तँ बड़का फेरामे पड़ि जइतौं।
एक दिस निसचिन्त आ दोसर दिस बड़का फेरा सुनि सुरत कक्काक मनक ठेह जगलैन। ठेह ई जगलैन जे दुनू प्रश्नक दूरी तँ अकास-पतालक भेल! तैबीच एहेन कोन सूत्र लगि गेल जे दुनूकेँ जोड़ि देलक? बजला-
झब दे चाहक ओरियान करू ताबे बौओ मुँह-कानमे पाइन लऽ लइए। निचेनसँ सभ बात बुझब।
चाह बनल, चारू गोरे- सुरत काका, कमली काकी, हुलास आ हुलासक पत्नी-केँ एकठाम देख सुरत काका बजला-
बौआ, परिवारे तीर्थ स्थल छी आ घरे धरमशाला। सभ एकठाम छी, तोहर भाए विलास भेलह, मुदा हमर तँ सन्तान छी। तँए सत् बात छिपबैक नै छह, आ झूठ बात जोड़ैक ने छह। जेना जे भेल से जड़िए-सँ सबहक बीच बाजह।
पिताक बात सुनि हुलास माए दिस तकलक। मुदा माइक चेहरासँ ई नै परेखि पेलक जे माइक मनमे की अछि। ओना, पत्नीक मन बेसी खुशी बुझि पड़लै। पत्नीक खुशीक कारण ई जे अनुचित केनिहारकेँ जँ सजा नै हुअए तँ उचित केनिहारक घटबी हएत। हुलास बाजल-
जखने भैयाकेँ पुलिस पकैड़ कऽ लऽ गेलैन, तखने भौजी फोन केली। ओना, मनमे भेल जे नै जाइ। मुदा गामक कुटी-चालि दुआरे जाइले बाध्य भेलौं।
सुरत काका-
की कुट्टी-चालि?”
हुलास-
गामे दू-दिसिया बनि गेल अछि। दुनू कात मुँह बनि गेल छइ।
की दू-दिसिया?”
कोनो नीक काज केनिहारकेँ थोपड़ी बजा सुआगत सेहो होइ छै आ थोपड़ीए बजा ओकर हहास सेहो होइ छइ। तहिना खुशी भेने हँसी सेहो अबै छै आ वएह हँसी हहास होइत परिहास सेहो भऽ जाइ छइ। अनेरे लोक खिधांश करितए तँए गेलौं।
आगू की भेलह?”
हमरा पहुँचैसँ पहिने भैया जहल पहुँच गेल छला। मुदा संगियोँ-साथीक तँ कमी छैन नहि। खुआ-पीआ सेहो देने रहैन। केसक नकल सेहो निकैल गेल रहैन। दौड़-धूप शुरू भऽ गेल। पहुँचते मुंशी कहलक जे अहूँ आ बुड़हो लपेटमे छैथ। तँए अहूँ सभ अपन कारवाइ शुरू कऽ दियौ।
सुरत काका-
तखन की भेलह?”
पिताक बात सुनि हुलासक मन उल्लसित भेल। बाजल-
नीकक फल नीके होइ छै, अधलाक फल अधले होइ छइ।
हुलासक बात सुनि सुरत लाल उत्‍सुक होइत पुछलखिन-
से की? से की?”
हुलास-
अपन भैयारीक सम्पैतक जे कागजी बँटवारा अछि ओ जान बँचा लेलक। लीखि कऽ दऽ देलिऐ जे परिवार अलग तँए कोनो सम्बन्ध नै अछि।
सुरत काका-
आरो की भेलह?”
हुलास-
अहूँक सम्बन्धमे लिखि कऽ दऽ देलिऐ जे सत्तैर-पचहत्तैर बर्खक छैथ, दवाइ-दारूपर जीबै छैथ, तँए जँ कोर्टकेँ उपस्थितिक जरूरत होइ तँ चौकीदार द्वारा दर्ज कराबह। नै तँ जखन सुनवाहिक बेर औत तखन ओहो रहता।
हुलासक बात सुनि सुरत काकाकेँ आशा जगलैन। बजला-
बौआ, यएह बाहर रहि अपन नियमानुसार काज करब जिनगीक जीवन्तता भेल। कोर्ट-कचहरी छी, कहिया की हएत तेकर कोनो ठेकान छइ।
पिताक बात सुनि हुलास बाजल-
अखैन लोकक बीच चर्चक विषय बनि गेल अछि। तँए किछु दिन जहलमे रहऽ पड़तैन। मुदा छह मास जाइत-जाइत सभ निपटि जेतैन, फेर ओहिना काज करए लगता।
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तिथि : 15 जनवरी 2015, शब्द संख्या :  3304

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