पतझाड़
अंतिम पेजसँ..........................................................................
३१
दिसम्बर २०१३
पलंगपर पड़ल राघोबाबाकेँ आँखि मुनाइते ताड़क छोटका पंखा
हाथसँ निच्चाँ खसलनि। पंखा खसिते पसेनाक टघारसँ कोढ़ियाएल नीन अकचका कऽ टुटि
गेलनि। बन्ने आँखिए दहिना हाथसँ सिरमाक बगलमे पंखा हँथोड़ए लगला मुदा निच्चाँ
खसल पंखा नै अभरलनि। आँखि खोलि सिरमापर सिर सेरिया पजराक मसलनक बीच देह सेरियबैत
मुड़ी उठा निच्चाँ देखैक कोशिश केलनि। चीनीपट्टा सन पेट, फीलपाँव पएर, सड़ल
साँप जकाँ दुनू बाँहिक गड़ लगबिते बजला-
“की समए छल, की भऽ गेल आ की हएत तेकर कोनो ठेकान
नै।”
मड़ियाएल पतिक बात सुनि, बगलक चौकीपर पड़ल सुमित्रा
बिअनि हौंकैत बजली-
“सभ कर्मक फल छी।
जेहने पीसब तेहने ने उठाएब।” अंतिम पेजसँ..........................................................................
पत्नीक प्रेम भरल बात सुनि राघोबाबा घरसँ बाहर सुरूज दिस
देखलनि। बेर टगि गेल छल। साँझो लगिचा गेल छल। पुन: बाहरसँ घर आबि बजला-
“बेर टगि गेल, चलू रौतुका ओरियान करए।”
पतिक बात सुनि सुमित्रा बजली किछु ने, सिहकि कऽ मन
कलशि मुड़-मुड़िया गेलनि। जेना जीवनक नव शक्ति सिरजित भऽ गेल होन्हि। सिरजिते ने
जीत शक्ति छी असिरजितेक हरल-हारल-मारल भेल।¦२५८७¦
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