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Thursday, October 23, 2014

घरवास

घरवास








चारि‍ बजे भोरेसँ दुनू भाँइओं ‘नवीन आ कि‍शोर’ आ दुनू दि‍यादि‍नीओं ‘मणि‍का आ प्रेमा’ आ माइओ ‘कमला काकी’ ओछाइन छोड़ि‍-छोड़ि‍ उठि‍ चारू दि‍सक काजमे जुटि‍ गेल। चारू दि‍सक काजक माने अँगना-घर बाहरैसँ लऽ कऽ फूल तोड़ब, ठाँउ करब, माल-जालकेँ घरसँ बाहर करब इत्‍यादि‍ इत्‍यादि। तैसंग अगि‍ला काज करैले सेहो अपनाकेँ तैयार केने। ओछाइनपर पड़ल सुवल काका मने-मन सोचथि‍ जे आइ केम्‍हर सुरूज उगला जे सभ कि‍छु बदलल-बदलल बूझि‍ पड़ैए। आन दि‍न अपने छह बजेमे ओछाइन छोड़ै छेलौं तँ देखै छेलौं जे सभ ओछाइनि‍येँ धेने अछि‍ आ आइ की बात छि‍ऐ जे चारि‍ बजे भोरेसँ सभ बीन-बीन केने घुड़ैए। सुवल काकाकेँ बूझल नै जे आइ घरवास छी, बुझलो केना रहि‍तनि‍, घरमे जखनि‍ रहि‍ते छथि‍ तँ बास की भेल? मुदा मनकेँ थामि‍ रखने छथि‍ जे कि‍यो कि‍छु पूछत तखनि‍ ने कि‍छु बाजब। भने ओहो सभ बुझैए जे सुतले छथि‍। मुदा कमला काकीकेँ चुप भेल नै रहल गेलनि, रहलो केना जैतनि‍? सभ घरवासक ब्‍योंतमे लागल आ हि‍नका कोनो धनि‍येँ ने। दरबज्‍जापर आबि‍ पति‍केँ उठबैत बजली-
घरमे धुमसाही काज अछि‍ आ अहाँ अखनि‍ तक सुतले छी।
एक तँ भि‍नसुरका समए तैपर पत्नीक दुतकार सुनि‍ सुवल काका बजला-
कोन धुमसाही काज घरमे आएल आ हम बुझबो ने केलौं।
पति‍क बात सुनि‍ कमला काकीकेँ जेना अस्‍सी मन पानि‍ एक्केबेर मनमे पड़ि‍ गेल होन्‍हि तहि‍ना भेलनि‍। जे घरक सि‍रि‍ष[1] छथि‍ हुनके नै बूझल छन्‍हि‍, कहू ई केहेन भेल। हम पत्नीए भेलि‍यनि‍, नवीन आ कि‍शोर बेटे भेलनि‍, पुतोहुकेँ छोड़लो जा सकैए, मुदा जइ परि‍वारमे घरक सि‍रि‍षकेँ पत्नीए आकि‍ बेटे नै पुछ करनि‍ हुनक मन केहेन कलपैत हेतनि‍। फेर नजरि‍ अपनापर पड़लनि‍। दुनू बेटा तँ सहजे अपना-अपना काज-रोजगारमे लगल रहैए, अपनो काज आ धि‍यो-पुतो, परि‍वारोक चि‍न्‍ता  करए पड़ै छै, बि‍सरि‍ओ गेल हएत। बि‍सरबो कोनो अनरगल नहि‍येँ भेल। काज-उदेममे बौड़ा गेने अहुना होइ छै, नीको काज नजरि‍सँ उतरि‍ जाइ छै, मुदा अपने तँ से नै छी। घरे-अँगनामे रहैवाली छी, तखनि‍ जँ एना भेल तँ अपनाकेँ दोखी होइसँ केना बँचा सकै छी। मुदा अपन दोखो मानैक सोभाव तँ लोकमे एहेन अछि‍ए जे घोरन आकि‍ चुट्टी जकाँ जेतए पकड़त ओ पकड़नइ रहि‍ जाएत, भलहिं अधडड़ेरेपर सँ कि‍ए ने टूटि‍, जान गमा लि‍अए। तहि‍ना कमलो काकीकेँ भेलनि‍। बेटा दि‍ससँ नजरि‍ उतारि‍ पुतोहु दि‍स देलनि‍। कोनो कि‍ हमहींटा आँगनमे रहै छी, बुढ़-पुरान भेलौं, बि‍सरि‍ओ गेल हएब मुदा ई दुनू ‘पुतोहु’ तँ से नै अछि‍। तहूमे जाबे घरक भार दुनू परानीपर छल, जइमे बेटा-बेटीक सेवा, पढ़ौनाइ-लि‍खौनाइसँ लऽ कऽ बि‍आह-दानक छल, से तँ नि‍माहबे केलौं, आब तँ ओ सभ अपने करबारी भेल तखनि‍ हमरा कोन मतलब अछि‍ जे अनेरे दोखी बनब। अपनाकेँ नि‍रदोख बूझि‍ कमला काकी बजली-
दुनू भाँइओं आ दुनू पुतोहुओक बीच हमहूँ छेलौं तेहीमे वि‍चार भेल जे एकादसीए दि‍न घरवासो लऽ लेब आ कि‍छु उधवो-बाधव कऽ लेब।
सुवल काका काजक पारखी तँए मुँहक ओते महत नहि‍येँ दथि‍ मुदा चालि‍-ढालि‍सँ आगम बुझि‍ते रहथि‍। नजरि‍ ओइठाम गरौने रहथि‍ जे काज नीक करए आकि‍ अधला मुदा समैकेँ जँ काजमे लगौने रहल तँ काजे ओकरा सीखबैत रहतै जे नीक केना होइ छै आ अधला केना। तँए मन समगमपर सुवल कक्काक रहबे करनि‍। तहूमे चारि‍मपनक पत्नी आ भि‍नसुरका समए सेहो परि‍ लागि‍ए गेल रहनि‍ बजला-
मर, ई की भेल, जइ घरमे रहि‍ते छी तइ घरक बास हएत! खैर जे हउ। आरो की सब हएत?”
‘आरो की सब हएत’ पाछूसँ बाजल रहथि‍ तँए कमला काकीक ऊपरक मनमे खुशी भेलनि‍, मुदा जखनि‍ पछि‍ला बातक सोर पकड़ि‍ पाछू दि‍स बढ़ली तँ मन धुमनाइन हुअ लगलनि‍। धुमनाइनक माने आगि‍पर देल धुमनक सुगंधो आ धुमनाहा आमक जे सुआद होइ छै सेहो, दुनू कमला काकीकेँ मन पड़लनि‍। एके रस्‍तामे कटारि‍ओ आ टाटो लगौल रहत तँ चलनि‍हारकेँ ओइठाम अँटकि‍ आगूक रस्‍ता जहि‍ना हि‍याबऽ पड़ै छै। तहि‍ना कमला काकी हि‍यबैत बजली-
जेठका बेटो आ जेठकी पुतोहुओकेँ बहूदि‍नसँ मनमे छेलै जे चौपहरा पूजा करब।
एक तँ सत्-नारायण भगवानक पूजा तहूमे चौपहरा, सुनि‍ सुवल कक्काक मन गद्-गद् होइत जान्‍हि‍ मुदा कमला काकीक परेशानी बेसि‍याएले जाइत रहनि‍। बसि‍येबो केना ने करि‍तनि‍, परि‍वारक ति‍मुहाँनीपर बैसल ने कमला काकी छेली। एक दि‍स पि‍ता-पुत्रक बीच, दोसर- माए-बेटाक बीच, तेसर- पति‍-पत्नीक बीच। दूटा बाँसकेँ कनोतब असान होइ छै, मुँह मि‍ला कऽ बान्‍हि‍ देबै, मुदा तीनटा बाँसकेँ कनोतब माइए सन कलाकार बान्‍हि‍ सकै छथि‍, मुदा गर लगबैमे तँ कि‍छु नजरि‍क काज पड़ि‍ते छै तँए कमला काकीकेँ गर अँटबैमे कनी-मनी परेशानी होइते रहनि‍। काकीक परेशानी देखि‍ सुवल काका बजला-
जेठजन आ जेठजनीक वि‍चारसँ ने चौपहरा पूजा हएत, आ छोट जनक?”
जेठ छोट सुनि‍ कमला काकीक वि‍चारलाहा काज फुड़फुड़ेलनि‍। फुड़फुड़ाइते बजली-
जेठ जन-जनीक तँ एकमुहरी वि‍चार भेल चौपहरा पूजा, मुदा छोट जन-जनीक बीच मन-भेद भऽ गेल।
‘मन-भेद’ सुनि‍ सुवल कक्काक मन सेहो फुड़फुड़ेलनि‍। अकचकाइत बजला-
की मन-भेद भेल?”
पति‍क जि‍ज्ञासा देखि‍ कमला काकी माए-बेटा आ सासु-पुतोहुक सीमापर ओझरा गेली। ओझरा ई गेली जे दुनू दि‍यादि‍नीक अपन माए तँ हमरे ने पुतोहु बना बेटीकेँ पठौलक। जँ पुतोहु जनीक मनमे कि‍छु कमना हेतनि‍ तँ ऐ घरमे नै पुड़तनि‍, तँ आन घरमे थोड़े पुड़तनि‍। दोसर दि‍स ईहो होन्‍हि‍ जे बेटा-बात पुतोहु सोझा-सोझी नै मानि‍ रहल अछि‍, तखनि‍ एहेन पुरुखकेँ टीक पकड़ि‍ झुलौत की नै। असमंजसमे कमला काकीकेँ पड़ल देखि‍ सुवल काका, सम्‍हारैत बजला-
अनेरे अहाँ मनकेँ वि‍सवि‍साइन-वि‍सवि‍साइन केने छी, ओकरे सबहक ने घर छि‍ऐ तइले अहाँ कि‍ए एते तबाह छी।” 


अंतमे................................................................................



जादूगर जहिना अपन खेल पसारैसँ पहि‍ने देखि‍नि‍हारकेँ नजरि‍ बन्न कऽ दैत तहि‍ना भावुक प्रेमाक नजरि‍ बन्न भऽ गेल। कल्‍पना लोकमे पहुँच सासुक नजरि‍ नि‍हारि‍ बुदबुदाएल-
कि‍यो पागल कहए आकि‍ दि‍वाना, मुदा धरती तँ बादले बुझैए।
समए मंगैत बाजलि‍-
माए, काज केतौ पड़ाएल जाइ छै, ओ तँ गुड्डी जकाँ अकासमे उड़ै छै, लपेटाक संग केना लपेटबै ओ तँ उड़ौनि‍हारेक काज भेल कि‍ने?”
ओना सुवल काका दरबज्‍जेपर सँ प्रेमाक बात सुनि‍ नेने रहथि‍ तँए बुझैमे केतौ बेवधान नै रहनि‍, मुदा एते तँ शंका मनमे उठि‍ए गेल रहनि‍ जे जइ माध्‍यमसँ जवाब औत, ओइमे कि‍छु नून-मि‍रचाइ मि‍लाएले रहत। तँए अपना ढंगसँ बुझैक अछि‍। सएह भेल। कमला काकी प्रश्नोत्तर करैत पति‍केँ कहलखि‍न-
कनि‍याँक मन बड़ खुशी देखलि‍यनि‍।
पत्नीक बातकेँ सुवल काका चौपेत कऽ मनमे रखि‍ आगूक कि‍रि‍या दि‍स नजरि‍ फेकलनि‍। मनमे उठलनि‍ प्रेमाक प्रेमि‍ल वि‍चार। एते पैघ आराधनाक साहस। अदौसँ ‘जखनि‍ साग आश्रि‍त मनुख छल, तहि‍यासँ लऽ कऽ बर-बरी धरि‍क जुटान, जे दलि-उसनासँ बर-बरी बनैमे पचीसो-पचास हजारक जि‍नगी पौने अछि‍, जे कुशि‍यार चीनी बनैमे हजारो बरख खेलक, एतेक जुटान बाल-बोधक खेल छी। देखा चाही, केनि‍हारि‍केँ?
आराधनाक अनुकूल वातावरण भेटनौं प्रेमा औगताएल नै। चुप्‍पी  साधि‍, पहि‍ने भोजक वि‍चार केलक। भोजक वि‍चार ई जे, भोज्‍य-पदार्थ बढ़ने भोजन वि‍परीत दि‍शामे बढ़ने अवघाती बनि‍ गेल अछि‍। अधि‍क भोज्‍य पदार्थ अनुकूल-प्रति‍कूल गुणोक तँ समावेश भाइए जाइए। तैसंग ईहो तँ होइते ‍अछि‍ जे हमरा सन चारि‍म सीढ़ीक लोक, एते एकत्रि‍त केना कऽ सकत। नान्‍हि‍टा अँचारे अछि‍ फल-फलहरीसँ लऽ कऽ तीमन-तरकारीक संग सागो-मुरै धरि‍क बनल अछि‍। सागेकेँ की कहबै? बरहमसि‍या छी, मुदा एके साग बारहो मास थोड़े हएत। अपन-अपन समैक संग ने रंग पकड़ने अछि‍। जँ से नै अछि‍ तँ ललका ठढ़ि‍या रंग-बदलैत बेदरंग होइत हरि‍अर होइत उज्जर भऽ भुल्‍ला कहबए लगैए। अगममे बहैत प्रेमा अपन वि‍चारकेँ दोसर दि‍स मोड़लक। मोड़लक ई जे एते वृहत पदार्थक बीच जँ गोटे चि‍तकाबर भऽ जाइए, तइले एते लोक ढोल कि‍ए पीटैए। ओकर नौति‍कता अहीमे छै, पचासो वि‍न्‍यासक बीच पेट नै भरलै। यएह छी मि‍थि‍लाक गौरव जे खाइकाल नै बाजी। एहेन समाजमे नीको काज तँ अधले दि‍स बढ़ि‍ जाइए। तखनि‍? तखनि‍ कि‍छु ने, जे जुड़त तइसँ मनकमना पुड़ाइए लेब। ने समाज केतौ पड़ाएल जाइए आ ने अपने केतौ पड़ाएल जाइ छी। जि‍नगी रहत तँ दि‍नकेँ के कहए जे मि‍नटो-क्षण परीछेक घड़ी रहैए। तइले एते मनमे घमरथने कि‍ए।
प्रेमाक आराधनाक भोजक परीछा सेहो भाइए गेल।
भोजक दस बजे राति‍, सभ काज समाप्‍त भऽ उसरि‍ गेल। सभ कि‍यो अपन-अपन ओछाइनपर पहुँच गेल। सुवल काका, काकीकेँ पुछलखि‍न-
पचास बर्खक संगी तँ अोहूँ भेलौं कि‍ने, ऐबेरक घरवास कैअम छी?”
पति‍क प्रश्न सुनि‍ कमला काकी जि‍नगीक पछि‍ला छोर पकड़ि‍ पाछू मुहेँ ससरैत सासुरक पहि‍लवास लग पहुँच गेली। पहुँच गेली ओतए जेतए पहि‍ल दि‍न गाममे प्रवेश केली। यएह देह छी, तीनटा टटघर आ एकटा भीतघरमे बसै छेलौं, तेहेन रौदी भेल जे घर छारल नै गेल। तीन सालक अँटकल पानि‍ डूम्‍मा बरि‍सल। एकोटा घर दढ़ नै रहल जेतए चैनसँ रहि‍ सकि‍तौं। मुदा समए बदलल, नार हटा खपड़ा देलि‍ऐ। नि‍च्‍चाँ भीत ऊपर खपड़ा, सतासीक बाढ़ि‍मे भीते खसि‍ पड़ल। जि‍नगीमे अहि‍ना सभ दि‍नसँ होइत एलैए, मुदा आइक परि‍स्‍थि‍ति‍केँ अनुकूल जि‍नगी बनबैक खगता तँ अछि‍ए।
खपड़ाक पछाति‍ भीतघरो आ टटघरोपर एस्‍वेस्‍टस चढ़ौला पछाति‍क घरवास सुवल काका आ कमला काकीक छेलनि‍। तँए मनमे ओते उत्‍सुकतो नहि‍येँ। मुदा ई तँ खुशी भेबे केलनि‍ जे अपना अछैते अगि‍लोक बास भेल।¦४,८८४¦

२६ सि‍तम्‍बर २०१४


[1] श्रेष्‍ठ

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