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Saturday, August 31, 2019

धरमूदासक अखड़ाहा (कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)



देवालय, शिवालय, विद्यालय इत्यादिक जेहेन बास-भूमि, नहेबाले जेहेन पवित्र सरोवर, चन्द्रकूप पानि पीबैले, धर्मशाला रहैले इत्यादि-इत्यादि बेवस्थासँ सम्पन्न रहैत, जेहेन बास-स्थल बनि असथल, असथान, ठकुरवारी, इत्यादि-इत्यादि सभ बेवस्थासँ सम्पन्न रहैत तहिना धरमूदासक अखड़ाहा सेहो छैन।
ओना, धरमूदासक पूर्वजक अखड़ाहा कहियासँ छैन, से तँ बेठेकान अछि मुदा एते तँ ठेकनाएल ऐछे जे पाँच पीढ़ीक नामो आ गामो जगजियार छैन। अखड़ाहाक नामसँ पाँच बीघा जमीन अछि तँए कहियो निलामक मुँह आँखि सम्पैत नै देख पेलक। अपना ऐठाम जमीनक बीच सेहो अहिना अछि।
जेहेन-जेहेन समय अबैत गेल तेहेन-तेहेन अपन चालि पकैड़ अखड़ाहा जीवित रूप पकैड़ चलैत आबि रहल अछि। मुदा अपन जे वैचारिक दिशा छैन ओ तँ कसिया कऽ पकड़नहि छैथ। ओना, गाममे केते स्थानो अदैल-बदैल गेल आ केते महंथो सभ अपन तिलक-चानन बदैल लेलक। मुदा तँए हुनका सभकेँ दोखियो मानल जाए सेहो उचित नहियेँ कहल जा सकैए।
जेहेन देश तेहेन भेष, जेहेन सोर तेहेन बोल! समैयक जे मांग रहल सएह ने कियो करत। जहिना आन स्थानमे परसादक मेनू टाँगल रहैत तहिना धरमूओंदासक अखड़ाहाक प्रसादक मेनू छैन। मुदा आन स्थान जकाँ एकहारा प्रसाद नहि, अमुककेँ अमुके परसादो आ फूलो चढ़तैन, से धरमूदासक स्थानमे नहि। ऐठाम तँ अल्हुआ-सुथनीक परसादसँ लऽ कऽ मक्‍खन-मिसरी धरिक अँटावेस अछि। जहिना कामरूपमे बोन-चिड़ैसँ लऽ कऽ नर-चिड़ै धरिक पाठ पढ़ौल जाइत तहिना धरमूओंदासक अखड़ाहामे छैन्‍हे। ओना, सभसँ पैघ गुण अखड़ाहाक ई अछि जे जँ कियो राति-विराति आकि दिने-देखार किछु पुछैए-आछैले अखड़ाहापर अबैत तँ ओ जरूर हँसी-खुशीसँ आपस होइत। धरमूदासक पाँचो पीढ़ी एकरंगाहे चालि पकैड़ अखनो चलि रहल छैन, ओना, गामक बीच बसल अखड़ाहा, तँए गामक अखड़ाहा नहि गामे अखड़ाहा बनल अछि। अन्‍हार साँझ भेने अनगौंआँ दस-बीस गोरे जँ राति-विराति अँटकऽ चाहैथ तँ हुनका लेल जहिना गामक आन परिवार दरबाजा बना अखड़ाहा बनौने छथिन तहिना धरमूओंदासक अखड़ाहा छैन।
ओना, समय बढ़ने आ आबा-जाहीक सुविधा भेने कनी-मनी कमी तँ भेबे कएल अछि मुदा सोलहन्नी बेमाक भऽ गेल सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। अखनो अछि आगूओ रहत। धार-धुरक इलाका तँए एहेन मकड़जाल पसरल अछि जे धारक एक महारमे आँगन तँ दोसर महारमे दरबज्जा  चाहे मालक घर रहैए। तहूमे अपना ऐठामक भदवरिया समय तँ ओहन होइए जइमे बालो-गोपाल हाथेसँ इनारक पानि निकालि पीबैए। तेतबे किए कहबै, बैशाख-जेठक रौदोमे ठेंगापर ठेंगा वा फट्ठीपर फट्ठी माटि चढ़ा रगैड़ आगिक लूत्ती सेहो बहार करैए आ पूस-माघक जाड़मे हाथपर आगि रखि नचेबो करैए। तँए सबहक अपन-अपन गुण-धर्म छइ। जँ माघमे सुखाएल सखुआक चेराक लहकैत घूर आनन्द बँटैए तँए कि बैशाख-जेठमे पानिक तलहती अपन धरम छोड़ि दइए।
समैयक संग विचारो चलिते छइ। मुदा विचारो तँ विचार छी- सुविचार, कुविचार आ दुरविचारो तँ संगे चलिते अछि। जेकरा जेहेन भवलै से तेहेन भजलक। मुदा भवनहिटा सँ थोड़े होइ छै, भवलोकक संग विचारलोक, भक्‍तलोक, अभक्‍तलोक सेहो तँ अछिए।
ओना, धरमूदास अखनो भरि-भरि राति इतिहास-पुराण पढ़ै छैथ मुदा असल पढ़ब हुनकर छैन, स्थान सबहक कटौज पढ़ब। किताब जकाँ पन्ना-तरमे दाबल तँ कटौज रहिये ने सकैए। ओ तँ अधिकसँ अधिक उड़ि-उड़ि पसरए चाहैए। जइ श्रोतसँ धरमूदासकेँ कटौजक भाँज असानीसँ लगि जाइ छैन, तैबीच अपन विचारकेँ रन्‍दा चढ़ा चिक्कन-चुनमुन करैत हँसैत-हँसबैत अपनो चलै छैथ आ स्थानो चलिते अछि। ओना, स्थानो सभ केते रंगक अछि, जेना कोनो महंथाना अछि तँ कोनो महंथिऐन सेहो अछि। मुदा से नहि, धरमूदासक अखड़ाहा तइ सभसँ हटि मिश्रित अछि। जहिना देशक नीति मिश्रित अछि जे से मिक्‍स इकोनोमी अछि तहिना। सात गोरेक परिवारमे आबाल-वृद्धोक बास छैन। समय-साध अपन परिवारक गति-विधि बनौने छैथ, तँए ने बेसी अरकट आ ने बेसी मरकट छैन। ओना, सेहन्ता तँ जगरनाथे पुरीक खेती करैक छैन, मुदा ओइठाँ जकाँ समुद्री लहैर तँ एतए अछि नहि, ऐठाम तँ समुद्रसँ उठल वादलक अछि, जे बरैसतो अछि आ नहियोँ बरसैए। मौसमो तँ बँटाएले अछि। जइसँ सभ दिना खेती करैक सभ काजक समैये ने भेट सकैए। तैयो सभ-दिनाकेँ मास-महिना-मौसममे बान्‍हि अपन पुड़ीखाना नै खानापुरी कऽ साल पुराइए लइ छैथ।
समय बढ़ने वा बदलने हवामे जे गति अबै छै, से तँ एबे कएल। एक दिस एकैसमी शदीक देश तँ दोसर दिस अर्द्ध-विकसित पूजीवादी बेवस्था बनबैक प्रश्न अछि। देवालयसँ वेश्यालय तक वसन्‍ती हवा बहबे कएल। गाछपर कोइली तान भरए लगल, जेरक-जेर मौधमाछी गाछमे छत्ता लगबए लगल। फुलवारीक गुलाबेटा नहि, बेली-चम्‍पा सेहो अपन रूप सजबए लगल। मुदा तइ सभसँ सटि-हटि आ हटि-सटि धरमूदास चलि रहला अछि। एहनो जमाना आबि गेल जे जैठाम अतिथि अभ्‍यागतक सेवा धर्मक कोटिमे छेलै आ ऐछो तैठाम अनठियाक कोन बात जे अपन लगो-लगीचकेँ देख लोक मुँह घुमैए! ओना, एकरा बहुत गड़बड़ो नहियेँ कहल जा सकैए। आब ने ओ जुग रहल जे अल्हुओ-सुथनी आ मकैक लाबो, सतुओ आकि रोटी संग खेसारीक उसना आकि मरूआ रोटी संग नूनक अभ्‍यागती हँसैत-हँसबैत चलत, आब तँ हजार- दस-बीस हजारक अभ्‍यागती भऽ गेल अछि। अपन उजरल-उपटल बाप-दादाक खेत-पथार, घर-घराड़ी छोड़ि जे पड़ा परदेश गेल, ओ अपन परिवारकेँ ठाढ़ करैक जोगाड़ नै कऽ अभ्‍यागतीएमे लगाएत से केते उचित? मुदा यएह तँ विचारणीय अछि जे केना अपन पूर्वजक देल धरोहरकेँ बँचा पाएब आ अपनो परिवारकेँ ठाढ़ कऽ जुगानुकूल चलै-जोकर बना सकब। ओना, धरमूदास पिच्छराह तँ छैथे, तँए माटिसँ पानि धरिक बास छैन। माटिसँ पानिक माने भेल, मटियार माटि ऊपर रहऽ आकि पानिमे, पिच्छराह तँ होइते अछि।
साढ़े आठ बजेक रतुका हरिबोल अखैन अखड़ाहापर नै उठल छल। हरिबोल भोजनक सूचनाक अपन शब्द छैन। अखड़ाहाक निअम छैन जे साढ़े आठ बजेसँ भोजन शुरू हएत आ नअ बजेमे विसर्जन हएत। तइमे स्पष्ट धारणा धरमूदासक छैन जे भनसियाकेँ परिवारक भारक संग अपनो बेकतीगत काजक भार छैन्‍हे। तँए जँ हुनको नियमानुसार काज नै होइन तँ अनेरे विग्रह बढ़त। ई तँ नै जे भरि दिन खेनाइए-पीनाइ चलत, आ ललैक कऽ भनसियाकेँ कहबै जे महाकोढ़ि अछि, अखैन तक बरतनो ने धोलक।
आठ बजे रातिमे पाँच गोरेक कफला अखड़ाहापर पहुँचलैन। अखड़ाहाक सभ अपन-अपन पहिल पहर साँझक वन्धनमे लागल। स्थानपर अबिते बच्चा सभ लोटामे पानि आनि सभकेँ सुआगत करैत कहलकैन-
पहिने हाथ-पएर धोउ।
अखड़ाहापर पाँचटा अभ्‍यागत एला, तँए पहिने हुनका सबहक बेवस्था होइन। धरमूदास परिवारक गति-विधिपर नजैर रखने जे कोनो तरहक असुविधा नै होइन। ई नै जे गारजनेपर सुआगतक सभ भार भेल, एहेन विचार गारजनक वेइज्जतीक भेल। पाँचोमे एक गोरे पएर धोलैन बाँकी चारू गोरे मुँहक पान थुकैड़ मात्र कुड़ुड़ केलैन। ओना, पाँचो गोरेक धारणा रहैन जे अतिथि-सेवापर जे स्थान टिकल अछि ओकरा भंग कऽ दिऐ, मूल मंशा पाँचोक छेलैन तँए एबो कएल रहैथ। समय देख धरमूदास बजला-
आब तँ भोजन बनबैक बेर नइ रहल, तँए जएह किछु भेल अछि सएह भोजन कऽ लिऔ।
ओना, पाँचो खाइ-पीबैबला छैथे, एक गोरे उनटौलकैन-
अखैन साढ़े आठो ने बाजल?”
धरमूदास ओहन अतिथि अभ्‍यागतसँ परहेज कैरते छैथ जे मनोनुकूल भोजन चाहैत। मुदा बजनौं की हएत। बेसीसँ बेसी एते हएत जे कियो कहता जे भरि पेट खाइयो-ले ने देलैन। भाय! खाइ-पीबैक ठेकान अछि, कियो एक लोटा पानि पीब पान खा, जल-पानक मिनहा करैत तँ कियो दर्जनक-दर्जन अण्‍डा खेला उपरान्तो दोहरा-तेहरा कऽ खाइते छैथ। मुदा धरमूदास अपनाकेँ अनेरे औनाबऽ नै चाहलैन। भरमे-सरम ऐ दुआरे चुप रहला जे अपना सीमामे तँ सभ यत्र-कुत्र बजिते अछि, मुदा जलखैक बेर आएल अभ्‍यागतकेँ जलखैक आग्रह, भोजन बेर आएलकेँ भोजनक आग्रह करबे ने तूक बुझब भेल। जँ कियो कोसो चलि कऽ भूखल आएल छैथ, जे अहुना रस्‍ताक भुखाएल भेला, तैपर जँ हुनका कहल जाइन जे भानस करै छी, पछाइत भोजन कराएब। तँ ई केहेन हएत, एक तँ भूखे आत्‍मा पहिनेसँ कलपै छैन तैपर आरो कलपाएब केते नीक हएत। ओना, एहनो तँ होइते अछि जे किछु ओहनो छैथे जिनका कहबैन- भोजन करए चलू, तँ कहता- हम बड़ भूखल छी! बकठाँइ शुरू कऽ देता।
भोजन केला पछाइत एक गोरे बजला-
किछु काजे आएल छेलौं।
धरमूदास जवाब देलखिन-
भोजनक पछाइत अराम होइ छै, जँ कोनो काजे एलौं तँ भोरमे हेतइ।
तैपर ओ फेर बजला-
भोरमे तँ नइ रहब। एकटा काजे दोसरठाम जाइके अछि।
काजक धुमसाही सुनि धरमूदास चुप भऽ गेला। किछु समय चुप रहला पछाइत बजला-
भोरमे जाइसँ पहिने काज कऽ लेब।
कहि हुनका सभकेँ ओछाइनपर छोड़ि अपने भोजन करए चलि गेला। पीढ़ीपर बैसते बिहुसैत पत्नी लगमे आबि कहलकैन-
आइ तँ विटामिनेक भोज खुआएब।
बोलो तँ बोल छी। बोलेमे सभ किछु अछि। एहनो बोल होइए जे खेबेकाल अट्ठा-बज्जर खसबैए आ एहनो बोल होइए जे भोज्य-वस्‍तुकेँ अमृत सदृश बना दइए। मनुखकेँ भोज्य-वस्‍तुयेक माध्यमसँ शक्ति-संचयक ऊर्जा भेटैत, जइमे विटामीन सेहो एकटा छी। पत्नीक बात सुनि धरमूदास बजला-
अपने तँ साक्षात् लछमी छी, कहू जे की सभ परसाद पेबाएब।
पतिक बात सुनि, पत्नी बजली-
अपन सातो गोरेक भोजन वएह सभ कऽ लेलैन। समैयक अँटावेस करैत बाड़ीसँ नअ-दसटा बन्‍धा कोबी काटि अनलौं। नोन-मिरचाइ नइ देने छिऐ। ओ अपना-अपना विचारे जे जेते खाइ।
लवनचुस जकाँ चुसैत ठोरे धरमूदास बजला-
अहाँ केना बुझलिऐ जे उमेरगर लोककेँ नोन कम खेबा चाही। नोनेमे जखन रोग अछि, तखन किए ने मधनोन खाइत मीठनोने खाए लगी।
अन्नक अनुपातमे फूलदार आ पत्तादारक ओजन बेसी हएत। सोल्होअना भुखलो आकि बत्तीसोअना खेनौंसँ तँ नीक नहियेँ होइ छइ। तखन तँ कियो जीबैले खाइए आ कियो खाइले जीबैए। ई तँ मनक विचार भेल। जेहेन अन तेहेन मन।
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तिथि : 21 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 1410

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