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Thursday, October 23, 2014

खर्च

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ओना समैया काका भोरेसँ ठोह फाड़ि‍-फाड़ि‍ कनै छला मुदा हम बुझलौं नअ बजेमे। सेहो ओना नै बुझलौं, रबि‍ रहने गामक अपनो टोलवैया आ आनो-आनो टोलवैया सभकेँ, जेरक-जेर काकाकेँ देखए जाइत-अबैत देखि‍ जखनि‍ पुछलि‍ऐ तखनि‍ भाँज लागल। पहि‍ने भेल जे माघक तेसर मकड़ छी लोक हरड़ी मेला जाइत हएत मुदा लगले घूमि‍ कि‍ए रहल अछि। भाँज लगि‍ते मनमे उठल जे काम-धाम तँ जि‍नगी भरि‍ चलि‍ते रहत मुदा जँ कहीं बि‍च्‍चेमे कक्काक प्राण छूटि‍ जेतनि‍ तखनि‍ तँ भेँटो ने हेता। मात्र चेतनशून्‍य देहसँ भेँट हएत। ओना देहोक महत तँ अछि‍ये, जँ से नै अछि‍ तँ जि‍नगी भरि‍ एकरे पाछू कि‍ए लगल रहै छी।
टोहियबैत-बीहियबैत वि‍दा भेलौं। रस्‍तामे जेते लोकसँ पुछि‍ऐ तेते रंगक बात सुनि‍ऐ। पहि‍ल गोटेसँ पुछलि‍ऐ तँ बाजल-
अपने करमे ने कि‍यो हँसैत मरैए तँ कि‍यो बपहारि‍ काटि‍ मरैए।
एक तँ ओहि‍ना रंग-बि‍रंगक मनक वि‍चारमे ओझराएल रही तैपर कर्मक फल हँसब भेल आकि‍ कानब, भाँजे ने बुझलौं। मन भेल जे फेर पुछि‍ऐ मुदा फेर भेल जे जँ कहीं कहि‍ दि‍अए जे समैक फल पाबि‍ कयो हँसैए तँ कि‍यो कनैए। तखनि‍ तँ एकहरी घुरछी दोहरा जाएत। जखने दोहराएत तखने आरो सक्कत हएत तइसँ नीक जे दोसर-तेसरकेँ पुछबे ने करि‍ऐ। जखनि‍ भेँट करए जाइए रहल छी तखनि‍ पहुँचला पछाति‍ जे पुछैक आकि‍ बुझैक हएत से मुखाैत्रीए भऽ जाएत। जहि‍ना छि‍ड़ि‍याएल-बीति‍याएल पानि‍ आकि‍ गनहाएल-मनहाएल वायु मुखात्र होइते अपन गति‍ पकड़ि‍ लइए तहि‍ना ने भवैत भव मुखात्र होइत भवसागरमे समा समाधि‍ लैत अछि‍।
नजरि पड़ि‍ते देखलि‍यनि जे समैया काका घौना पसारि‍ कऽ कानियोँ रहला अछि‍ आ घुन-घुना कऽ अपन जि‍नगीक गीतो गाबि‍ रहला अछि। एक तँ ओहि‍ना ओझराएल मन तैपर आरो ओझरी लगि‍ गेल। चलचलौ देखि दुनू हाथ जोड़ि प्रणाम करैत पुछलि‍यनि-
काका, मन केहेन लगैए?” 



अंतिम पेजसँ...............................................................




ले बलैया! जि‍ज्ञासा करए जि‍ज्ञासु बनि‍ गेल छेलौं मुदा ओ तँ जेना बि‍हाड़िमे उधि‍या गेल होथि तहि‍ना बजला-
जेते धएल-धड़ल छल सभ सठि गेल, मुदा मनक ताप नै मेटाएल, जे घड़ी जे पहर छी, छी। भने भेँट-घाँट भऽ गेल। 
समैया काका जेना कालचक्रक पूजापर बैसल होथि तहि‍ना बाजए लगला। भुजंगप्रयात जकाँ सुनैत रहलौं, सुनैत रहलौं।¦३३०¦
 
०७ फरवरी २०१४

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