Pages

Thursday, October 23, 2014

सगहा

सगहा








जेठ मास उतारपर, स्‍कूल-कौलेज, कोट-कचहरीक गरमी छुट्टीक मजा कि‍यो दार्जिलिंग तँ कि‍यो कश्‍मीर तँ कि‍यो समुद्री इलाका मुम्‍बई पहुँच-पहुँच उठा रहल छथि‍। आइ धरि‍ कहाँ कहि‍यो बुझै छेलौं जे ऐ बेरक गरमी तीस-चालि‍स सालक पछाति‍ भेल, चाहे बरखे एहेन भेल, आकि‍ शीतलहरीए एहेन भेल! रमाकान्‍त सेहो कौलेजसँ सोझहे गाम चलि‍ आएल। इण्‍टर साइंसक वि‍द्यार्थी, इण्‍टरक पछाति‍ जि‍नगीक अनेको बाट फुटै छै, देखि‍ अपनो जि‍नगीक बाट तकैक खि‍यालसँ, बाटे चललासँ ने बातो बनै छै आ नाशो होइ छै। खि‍याल ई जे पि‍ताजी दस बीघा खेतबला कि‍सान छथि‍, तँए नीक हएत जे इण्‍टरक पछाति‍ एग्रीकल्‍चरे कौलेजमे पढ़ि‍ वंशकेँ आगू बढ़ाएब। पि‍ता जीक मूल सम्‍पति‍ तँ ओही मुरतीमे समाएल छन्‍हि‍ कि‍ने, जे केना हाथ पहुँचा पकड़ि‍ दस बीघा जमीनपर ठाढ़ अपन इज्‍जत-आबरू, मान-सम्‍मान, बँचबैत आएल अछि‍, ओही परि‍वारक ने वि‍धि‍-बेवहार, कि‍रि‍या-करमकेँ काल-क्रमसँ धारक धार अनवरत बहैत रहल, तखनि‍ ने परि‍वारक समुचि‍त समग्र वि‍कास भेल, आगू बढ़ल आकि‍ एक भग्‍गू बनि‍ अर्थक गंगा तँ टपि‍ गेलौं, मुदा जमुना, सरस्‍वती, त्रि‍वेणी गंगा टपब तँ नहि‍येँ कहल जा सकैए। गाम अबि‍ते रमाकान्‍त कि‍सुनलाल ऐठाम पहुँचल। एक तँ जेठ मासक रौद तैपर धरती तबधल! ओना तीन बेर बरखो भेल मुदा तैयो जेठ अपन रंग पकड़ि‍ए लेलक। दू छि‍ट्टा ठढ़ि‍या साग बाड़ीसँ आनि‍ कि‍सुनलाल दरबज्‍जापर तराजू-सेरसँ जोखै छला। सौदो तँ ओहन सौदा छी जे लगले पानि‍ चढ़ा तौल लि‍अ, सबाइओ बढ़ि‍ जाएत आ पानि‍ चढ़ाएब छोड़ि‍ दि‍यौ तँ मनुखे जकाँ सेर-पौआ कमि‍ जाएत। मुदा कि‍सुनलाल ओहेन कि‍सान जे बाड़ीसँ टटका काटि‍ आनि‍ पहि‍ने सागकेँ तौल मुट्ठी बान्‍हि‍, पछाति‍ पानि‍ चढ़ौता जे लेवालकेँ जेहेन भाग हेतै तेहने ने सागो हेतै। जि‍ज्ञासा भरल अवाजमे रमाकान्‍त कि‍सुनलालकेँ पुछलकनि‍‍-
काका, अहाँ तँ जि‍नगीक चारि‍मपनमे पहुँच गेलि‍ऐ, तैयो देखै छी...?”
आगूक बात रमाकान्‍त जी तर दाबि‍ लेल, मुदा कि‍सुन काका ओकरा अधला नै बुझलनि‍। खोदि‍-खोदि‍ जहि‍ना घाउ बहाएब बहौनि‍हारक काज छी, से बूझि‍ कि‍सुनलाल पुछलखि‍न-
बौआ, साग देखि‍ मन झुझुआइत हेतह, मुदा अपन जि‍नगी दू कट्ठा बाड़ीमे समेटि‍ बारहो मास सागक खेती करै छी आ अपना ढंगक मनुख बनि‍ अपन जि‍नगीक बाट धेने जा रहल छी।” 


अंतमे.............................................




रमाकान्‍तक प्रश्न सुनि‍ कि‍सुनलालक मनधारमे जुआर जकाँ उठलनि‍, उठलनि‍ ई जे जि‍नगीक चारि‍मपनमे पहुँच गेल छी, एक दि‍नका एक घटनाक फल जि‍नगी नै होइए, तैठाम तँ जि‍नगीक आधारेपर ने जवाब देल जा सकैए। बजला-
बौआ, जि‍नगी[1]सँ खुशीए नै वेहद खुशी छी।
जहि‍ना रमाकान्‍तक प्रश्न सोझ-साझ तहि‍ना कि‍सुनलालोक उत्तर सोझ-साझ, मुदा रहस्‍य तँ रहस्‍ये बनल रहि‍ गेल अछि‍। तर्क-वि‍तर्क करैत रमाकान्‍त बाजल-
काका, नीक जकाँ नै बूझि‍ पेलौं जे की खुशी आ की वेहद खुशी।
रमाकान्‍तक जि‍ज्ञासा देखि‍ कि‍सुनलाल वि‍चारलनि‍, पहि‍ने शब्‍दक अर्थ आ पछाति‍ जि‍नगीक बेवहारक बीच साम्‍यताक चर्च करब। बजला-
बौआ, खुशी एकसँ शुरू होइए आ वेहद खुशी सीमा-सरहद टपैत होइए। जि‍नगीसँ ऐ दुआरे खुशी छी जे अपन स्‍वतंत्र जीवि‍काक आधार अछि‍, झूठ-फूस बजैक कहि‍यो समैए ने भेटल। तँए खुशी छी...।
अगि‍ला बात कि‍सुनलालक कण्‍ठे लग रहनि‍ आकि‍ बि‍च्‍चेमे रमाकान्‍त पूछि‍ देलकनि‍-
आ वेहद खुशी?”
रमाकान्तक जि‍ज्ञासा जेहेन उग्र छल, जँ तेहेन उत्तर नै देल जाइत तँ ओ कि‍म्‍हरो बहैक सकैए। तँए आड़ि‍-मेड़ सोझ करैत कि‍सुनलाल बजला-
बौआ, जहि‍ना देशक सीमानपर आन देशक आक्रमणक रक्‍छामे  सि‍पाही अपन जीवन दान करैए तहि‍ना अपन जि‍नगी गामक माटि‍-पानि‍केँ दान कऽ देने छि‍ऐ, तँए वेहद खुशी।¦२८६७¦

२२ जुन २०१४


[1] कि‍सानी जि‍नगी



No comments:

Post a Comment