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Thursday, October 23, 2014

पेटगनाह

पेटगनाह 


कौल्हुका भोजक अजशसँ सौंसे गामेक लोककेँ चोट लगल मुदा सभसँ बेसी लगलनि कुसुमी काकीकेँ। बेसी चोट लगैक कारण भेल जे भोजक अगुआ नेतेजी काका छेलखिन। घरवैया तँ अपन माइयक सराध लेल खर्चक जे मन बनौने छल ओ पाइ-चुक्‍ती केलक। किए ओकर मन कहतै जे दुआरपर सँ पंच अकची-दोकची बजैत गेला। मन तँ यएह ने कहतै जे समाज जेतेक खर्च मंगलनि से तँ दइए देलियनि‍ तखनि‍ काजक भार समाजक ऊपर गेल। जँ कि‍यो नै बुझत बलधकेल अगुऔत तँ अगुआबऽ, अपन मुँह दुइर करता। देखै छी जे केतौ वारीक[1] समाने चाेरा कऽ अपना ऐठाम साहि‍ दइए तँ केतौ देखै छी भनसीए अपन कनारि‍ चुका तीमन-तरकारीमे नोनेक गड़बड़ी कऽ दइए। केतौ देखै छी बजारसँ सड़ल-पाकल समान कीनि‍ दुइर करैए। तइसँ घरवैयाकेँ की? जानए जौ आ जानए जत्ता। सातु सने घून किए पिसाएत? बलजोरी जँ कि‍यो पीसिनिहारि बिना उलौने-फटकने घुनाएल अन्न पीसत तँ दोख केकर हेतै। बलधकेलकेँ कोनो जवाब होइ छै, जेकरा जे फुड़ै छै से बजबो करैए आ करबो करैए। कि‍यो जँ अजशक दोख घरवैयाक माथपर देत से थोड़े मानत, अपनो मन ने गवाही दइते हेतै। काकीक मन ठमकलनि, ठमकलनि कि मानि गेलनि जे भोजैत निर्दोख अछि। जहिना कोनो न्‍यायालयक न्‍यायाधीश दूध-पानि बेड़ा अपन पदक संग अपन गरिमा बढ़ा आत्‍म–परमात्ममे जोड़ि लैत अछि तहिना कुसुमी काकी भोजैतकेँ घिनमा-घीन भेला पछातिओ पनिपत बना कमल फूल जकाँ फुला देलनि। मुदा मन असथिर नै रहलनि, आगू बढ़ि गेलनि। 


अंतिम पेजसँ.............................................................



हिसाब सुनि कुसुमी काकी बजली-
कागत परहक हि‍साब काजमे नै काज करै छै, केतौ वारीक समाने अपना घर साहि दइए तँ केतौ भनसीए अपन कनारि असुलि नोनगरे-अनोन बना दइए, तँ केतौ खेनिहारे कोनो वस्‍तुक नांगरि पकड़ि चपैत-चपैत चापि‍ दइए।
पत्नीक विचार सुनि नेताजी कक्काक मन मानि गेलनि जे भरिसक सएह भेल हएत। बजला-
ठीके कहै छी।
ठीके की कहब। अहाँ अपने पेटगनाह छी, तेकरे फल भेल।¦५९३¦
 
१४ फरवरी २०१४


[1] भोजमे परसैबला 

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