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Thursday, October 23, 2014

गामक शकल-सूरत

गामक शकल-सूरत








एक तँ ओहिना श्‍यामलाल बाबू पनरह मिनट बिलम भेने धड़फड़ाएल छला तैपर अपन उपस्‍थिति दर्ज करौने बिना किलासमे केना जैतथि। ओना मनमे ईहो होन्‍हि जे अखनि धरिक तँ यएह परम्‍परा अछि जे कोनो शिक्षक विद्यालय पहुँच उपस्‍थिति बोहीमे हस्‍ताक्षर कऽ अपन उपस्‍थिति दर्ज करबैत आबि रहल छथि मुदा उपस्‍थिति केकर? कार्यालयक मुँहपर ठाढ़ श्‍यामलाल बाबूक मनमे ईहो होन्‍हि जे किलासक पनरह मिनट कटिए गेल अदहा समए शेष अछि तँए पहिने किलासेक काज पुरा पछाति उपस्‍थिति बोहीमे नाआंे चढ़ा लेब। तलब पढ़बैक लइ छिऐ। मुदा लगले मन उनटि ओतए चलि जान्‍हि जे एक तँ परम्‍परा मानि नेने छी दोसर जँ कियो ऊपरका पदाधिकारी आबि जेता तँ अनुपस्‍थितियो बुझता। बेर-बेर घड़ीपर अाँखि जान्‍हि। घड़ीक सुइया क्षण-पल मिनट आगू ससरल जाइत मुदा श्‍यामलाल बाबू ओइ ओझरीमे फँसि गेला जे पढ़बैक समए निर्धारित अछि आगू दोसर घण्‍टीक पढ़ाइ बढ़त काजमे कटौती भेने फलमे, उत्‍पादनमे कटौती हएत, जइसँ नोकसान चाहे जेकर होइ मुदा नोकसान तँ हेबे करत। देवमन्‍दिरक ऊपरक धुजा जेतएसँ देखि पड़ैत तेतए तक ओइ स्‍थानक महत भेल, तैठाम अखनि तँ सहजे विद्यामन्‍दिरक मुँहपर छी! मनमे अबिते बजा गेलनि-
अपन पढ़बैक समैयक भरपाइ भलहिं अतिरिक्‍त समैसँ व्‍यय करब मुदा हमहूँ तँ ओही वर्गक शिक्षक छिऐ। जहिना कोनो ऑफिसक जवाबदेह अफसर होथि आकि विद्यालयक प्रधानाध्‍यापक, तेकर पछातिए आन कियो कोनो ने कोनो किलासक वर्ग शिक्षक हेबे करै छथि। आबक महगीमे तँ एक-एक गोरे एके वर्गक किए सौंसे विद्यालैये-महाविद्यालयक किलासक भार कान्‍हपर लऽ चलै छथि।
ओना बजैकाल श्‍यामलाल बाबूकेँ बजा तँ गेलनि मुदा बिनु विचारल बात बजा गेलनि। बात बजाइते कान पकड़ि मन कहलकनि-
अहूँ तँ अही विद्यालयक शिक्षक आ नवम् वर्गक वर्ग शिक्षक छिऐ। ई भेल जवाब-देही, मुदा जवाब-देहीक पाछू जे बेवहारिक पक्ष बाधक अछि, ओकर साधक के बनत? जहिना सरकारक गृहमंत्री तहिना ने परिवारक बीच, परिवार चलौनिहारो।
लगले मन अपन जवाब-देहीक पात पकड़ि मखान वा भेँट-मलकोकाक पनिपत पकड़ि, बीज लग पहुँचलनि। विद्यालयक सहायक शिक्षक तँ हमहूँ छीहे। जे विद्यालयक बीच शिक्षककेँ रहैक बेवस्‍था नै छन्‍हि गाम-घरसँ अबै छथि, पारिवारिक-सामाजिक लोक भेने बाट-घाटमे किछु विलम हेबे करतनि। तैबीच पहिने अपन उपस्‍थिति रजिष्‍टरमे दर्ज कराएब जरूरी भेल आकि नियत समैमे काजपर जाएब भेल? श्‍यामलाल बाबू समस्‍याक जड़ि तँ पकड़ि लेलनि मुदा हौहटि-कलकलि जकाँ समस्‍या विचिया गेलनि। विचियाइते उरकुसी लगल जकाँ मन चुलचुलए लगलनि। एक दिस देखथि जे काजक दुआरे हाथ खाली अछि आ दोसर दिस देखथि जे हाथक दुआरे काज खाली अछि। कियो मासक दरमाहा एक दिन बैसि मासो दिनक उपस्‍थिति दर्ज कऽ मासो दिनक कमाइ पबिते अछि। तैठाम उपस्‍थितिक कोन महत रहल। खैर ई जेकर भेल ओ तेकर भेल, अपन बुझह, अपन जानह। मुदा अपनो तँ किछु एहेन प्रश्न अछिए। आब कहू जे विद्यालय अबै छेलौं बाटमे मोहन भाय बजारक एकटा टटका घटना सुनबैत कहलनि-
श्‍याम भाय, बिसरि जैतौं, तँए अहाँकेँ कहब जरूरी अछि। अहाँ ठेकान करबै, आ फेर साँझमे दरबज्‍जेपर बैसि दुनू भाँइ बतिआ लेब।
जेकर चलैत पनरह मिनट विलम भऽ गेल। फेर मन घूमि कारखाना दिस गेलनि जैठाम मिनट-घड़ी जोड़ि आवाजाहीक हाजिरी होइए। मुदा तँए कि ओहन नै अछि जे कोनोमे आइती आ कोनोमे जाइतीक हाजिरी नै होइए? सेहो तँ अछिए! मुदा हम तँ विद्या मन्‍दिरक पुजेगरी छिऐ। विचार तँ करए पड़त। मुदा विचारो करब तँ असान नहियेँ अछि। हँ से तँ नै अछि मुदा अपनो भरि जँ नै करब तँ कोन मुहेँ धरमराज लग ठाढ़ भऽ स्‍वर्गक फाटक खोलबाएब। मुदा बाटो तँ तेहेन अछि जे भोथिआइए जाइ छी। तखनि? चोटे मन उनटि अपन पिताक चलौल परिवारपर गेलनि। घरसँ बाहर धरिक अपन समए बनौने छला जे भिनसुरका उखराहामे काजक जेते समए बाधित हएत ओकर भरपाइ बेरूका उखराहामे कऽ लेब। मुदा विद्यालय तँ से जगह नै छी दस बजेसँ चारि बजे धरिक छी। जहिना बदाम-केराउक भूजा पथरा आरो बेसी सक्कत भऽ जाइए तहिना श्‍यामलाल बाबूक मन सेहो पथरा गेलनि। पथराइते मनमे फुड़लनि, अपन मुँह तखने ऊपर उठत जखनि नीक फल गाछक डारि पकड़ि उठाएब। जँ से नै उठाएब तँ काटल गाछ वा डारिक अशे केते। मन जेना थीर भेलनि। थीर होइते विचार ई भेलनि जे अखनि बच्‍चा सभकेँ पढ़बैक समए छी, जँ ओकर समए ओहिना जाइ छै तँ दोखी हएब। सोचै-विचारैक सेहो अपन-अपन समए होइ छै। एकटा ओहन होइ छै जे आगूमे काज रहल ओकरा कोन जुतिए-भाँतिए करब, दोसर होइए जे काज आगू औत आकि जे काज बेठेकनाएल रहत, तेकर विचार पहिने करब। ऐठाम दुनू अछि। मुदा एते तँ अछिए जे एकटा नै केने नोकसान हएत दोसर किछु पछातिओ केने नोकसान नै हएत। मन मानि गेलनि जे पहिने पढ़बैले किलास जेबाक अछि। अपन उपस्‍थिति बोहीमे उपस्‍थिति दर्ज केने बिना विद्यार्थी सबहक उपस्‍थिति बोही आॅफिसक टेबुलपर सँ उठा किलास विदा भेला। विदा होइते मनमे उठलनि अखनि जँ कियो ऊपरका पदाधिकारी आबि जाथि तँ अो बोही देखि अनुपसथिते ने बुझता? तखनि हुनका लग केना अपन उपस्‍थ्‍िाति दर्ज कराएब? समैओ सहए भेल अछि जे एक दिस पैघ-पैघ योजना नष्‍ट भेल जा रहल अछि आ दोसर दिस, हरसीकार-दिरघीकार छुटने लोक जुरमाना भरि रहल अछि। बिना पाइ-कौड़ीक कोनो काज नै ससरि रहल अछि। काज करै छी दरमाहा पबै छी, परिवार चलैए। मुदा जँ अखनि सए-सैकड़ाक पेंचमे पड़ि जाएब तँ ओते परिवारेक बाल-बच्‍चापर ने पड़त? आन कियो कहथि आकि नै कहथि आ कहबे के करता, कोन गर्ज छन्‍हि। मुदा पत्नी थोड़े मानती। ओ तँ दुसैत कहबे करती जे तेहेन कोढ़ि छथि जे जेतबो उचित कमाइ हेतनि सेहो दण्‍डे-जुरमानामे गमबै छथि। ओना दण्‍ड-जुरमानाक जगहो बदलि गेल। तइसँ जे जेते जुर्माना भरनिहार से तेते लब्‍धप्रतिष्‍ठ भऽ गेल छथि। जेतबो आॅफिससँ बोही लऽ किलास विदा होइकाल मन खनहन छेलनि सेहो जेना खरहरा गेलनि। खरहराइते बकार फुटलनि-
हाथक कंगना जँ ऐनासँ देखल जाए तँ ओ, आँखिक देखब भेल आकि ऐनाक?”
कोठरीक मुँह लग पहुँचिते छात्र सभ ठाढ़ भेल। टेबुल लग अबिते दुनू हाथ उठा सभकेँ बैसबैत श्‍यामलाल बाबू बजला-
बाउ, रस्‍ता-बाटक घुच्‍चीमे घुचिया गेलौं तँए थोड़ समए घुचिया गेल! तइले तोँ सभ दुख नै करिहऽ। दू घण्‍टीक बीच जे समए बँचत तइमे तोरा सबहक हाजिरी बनेबऽ। आइ तँ सोम दिन छिऐ, पहिल घण्‍टी चित्रकले हेतह किने?”
एक स्‍वरमे छात्र दिससँ उठल-
हँ।
मुदा पछिला बेंचपर सँ अवाज आएल-
नीके भेल नै तँ औझुका हाजिरी कटिए जइतए।
कुरसीपर नीक जकाँ श्‍यामलाल बाबू बैसलो ने छला कि अगिला बेंचक पहिल छात्र अपन ड्राॅईंग-कॉपी नेने पहुँचल। कमल फूलक चित्र बनेने छल। ओना श्‍यामलाल बाबूक मन चौचंग रहबे करनि। चौचंगक कारण रहनि जे एक दिस समए कम देखथि, दोसर दिस छात्रक संख्‍या बेसी देखथि, तैपर पछिला काज सेहो बेसियाएल देखथि। मुदा मनमे एकटा युक्‍ति फुड़लनि। फुड़लनि ई जे सांगोपांग िनरीक्षण-परीक्षण नै कऽ देखि-देखि कऽ खाली टीक लगा देबै। मुदा लगले भेलनि जे नीक-बेजए दुनूमे टीक लगाएब तँ आरो भयंकर गलती हएत। किछु करैत किछु नै बनैत देखि विचारलनि जे नीक हएत ओहिना एक-एक नजरि देखि आगूक सवक संगमे जोड़ि देब। तखनि एतबे ने हएत जे काज दोबरा जाएत। मुदा उपैए की? ओहुना तँ लोक करिते अछि जे काज बेसी रहने देहमे पानि चढ़ा सम्‍हारैक कोशिश करिते अछि। जँ से नै सम्‍हरत तँ अगुएलहा काजकेँ सम्‍हारैत पछुएलहाकेँ खण्‍ड काटि आगू दिस बढ़बैत जाएब, जइसँ एक दिनक बदला दू-तीन दिनमे काज पुरिए जाएत। मनमे सबुर भेलनि। नीक जकाँ श्‍यामलाल बाबू असथिरो ने भेल छला तखने अभिराम अपन ड्राॅईंग-कॉपी आगू बढ़ौलक। हाथमे लैत निहारए लगला। चित्रक बगलमे कमल फूल लिखल। मुदा चित्र देखि मन नाचि उठलनि। नाचि ई उठलनि जे कमलो फूल तँ रंग-रंगक होइए। एकटा ओहन होइए जइमे पंखुरी-दल कम होइए, दोसर एहनो तँ होइते अछि जे कोनो शत कमल तँ कोनो सहस्र कमल सेहो होइत अछि। तैसंग ईहो तँ होइते अछि जे काेनो शुभ्र कमल तँ कोनो लाल कमल तँ कोनो नीलो कमल तँ होइते अछि। तेतबे किए! कमला धारो तँ बहिते अछि। पानिक कमल एकरंगा होइए मुदा ऐठाम तँ से नै बेराएल अछि। सोझे कमल फूल लिखि देने अछि। ई तँ फुटौने नै अछि जे जलकमल छी आकि थलकमल छी। दुनू कमल रहितो चालि-प्रकृतिमे अन्‍तर छइहे। अन्‍तर ई छै जे जलकमल जँ एकरंगा होइए चाहे उज्‍जर, लाल नीले किए ने हुअए, मुदा थल कमल तँ तीनरंगाे होइते अछि। ओना तीनिए रंग किए कहबै, बहुरंगो तँ कहले जेतै। बहुरंगा ई जे जखनि भोरमे थलकमल कलीसँ कलियाए लगैए तखनि उज्जर रंग धारण केने रहैए मुदा जेना-जेना सुरूजक किरिण आगू मुहेँ ससरैए तेना-तेना ओकर उज्जरपनोमे लाली आबए लगै छै। बाल-किरिण जकाँ बाल-रंग अबैत गढ़िआए लगैए। हल्‍लुक लाल, गुलाब लाल अड़हुल लाल आ आल लाल होइत लाल कमल भाइए जाइए। एक तँ ओहुना कोनो ओझरीमे पड़ने मनक रस्‍ता ओझरा जाइ छै तैपर तँ आरो श्‍यामलाल बाबूक मन ओझराइते रहलनि। काॅपी देखि किछु बजला नै। बजैक पाछू दाेसर-तेसर सवाल उठैक डर भेलनि। डरो केना ने होइतनि, कम समैमे अधिक काजक तँ सूत्रे बदलि जाइ छै। अभिरामकेँ काॅपी बढ़बैत बजला-
बौआ, चित्रकारी तँ नीक केने छह, मुदा जइ ढंगे केने छह, ओकर बारीकी देखैक अखनि समए नै अछि, तँए एकरा राखह। निचेनमे देखबह।
काॅपी लैत अभिराम अपना जगहपर आबि बैसल। दोसर कॉपी शरबनक, हाथमे लैत श्‍यामलाल बाबू निहारए लगला। अपराजित फूल बगलमे लिखल। फूल देखिते मन नचलनि। नचलनि ई जे अपराजितो तँ केते तरहक होइए। एकमुखी, तीनमुखी, पँचमुखी। तैसंग उजरो होइए आ कारीओ होइते छै। जहिना अभिरामक कॉपी देखि श्‍यामलाल बाबू बाजल छला तहिना शरबनोकेँ कहलखिन-
बौआ, चित्रक तँ नीक चित्रण केने छह मुदा ओते परखैक अखनि समए नै अछि, अखनि राखह दोसर दिन देखबह।
कॉपी लऽ शरबन अपन जगहपर बैसलो ने छल आकि तेसर, गिरधरक काॅपी श्‍यामलाल बाबूक हाथ पड़लनि। विचित्र रूप बनल चित्र। पँजरामे लिखल गामक शकल सूरत। शीर्षक पढ़थि आ देखथि तँ काेनो ताले-मात्रा ने मिलनि। शीर्षककेँ नीक मानि लेलनि मुदा वेदरंग वेदचित्र देखि मनमे उठलनि जे जहिना कोनो गरीब लोक[1] अपन बेटीक नाआंे लछमी आ बिनु पढ़ल-लिखल लोक अपन बेटीक नाआंे सरस्‍वती रखि लइए, तहिना अछि। घड़ी दिस नजरि देलनि तँ समए ससरल देखलनि। मुदा जाबे घण्‍टी नै बजल ताबे तक तँ समए अछिए। नजरि खिड़ा देखलनि तँ बूझि पड़लनि जे केतौ ढिमका-ढिमकी अछि तँ केतौ चौरस, केतौ खादि जकाँ अछि तँ केतौ डाँरि खींचल अछि, खेतक आड़ि-धुर छी आकि कोनो धार-धुर? घुड़छीमे मन घुड़िछिआ गेलनि। फेर लगले मनमे भेलनि जे आन गोरे फूल, पात, फल इत्‍यादिक चित्र बनबैए आ ई किए एहेन गामेक शकल-सूरतक चित्र बनौलक! अपनो तँ कहियो एहेन बात बजलो ने छेलौं तखनि किए बनौलक? पुछलखिन-
बौआ, एहेन चित्र बनाएब केना सीखलह?”
जेना गिरधरक ठोरेपर रहै तहिना बाजल-
मास्‍सैव, परसू रातिमे बाबा कहलनि।
बाबाक नाआंे सुनि श्‍यामलाल बाबू तरतम्‍य करए लगला। तरतम्‍य ई करए लगला जे ने कोनो संगी-साथीक नाआंे बाजल आ ने दोसर-तेसर शिक्षकक। बाबाक नाआंे कहैए। तैबीच घण्‍टी बजल। हाँइ-हाँइ कऽ रजिष्‍टर खोलि हाजिरी लिअ लगला।
साढ़े चारि बजे जखनि विद्यालयसँ श्‍यामलाल बाबू घर दिस विदा भेला तखने मनमे गिरधरक बात एलनि। मनमे अबिते सोचलनि जे जँ पहिने अपना घरपर चलि जाएब तखनि दोसरो-तेसरो एहेन काज उपस्‍थित भऽ जाएत जे फेर ई काज पछुआ जाएत। तइसँ नीक जे पहिने गिरधरेक घरपर पहुँच बूझि लेब नीक हएत। घरक रस्‍ता छोड़ि गिरधरेक संग विदा भेला।
गिरधरक बाबा- सुबललाल- दरबज्‍जेपर रहथि। श्‍यामलाल बाबूकेँ देखिते गिरधरकेँ कहलखिन-
बौआ, पहिने आँगन जा माएकेँ चाह बनबए कहुन आ अपने लोटा-गिलास अखारि कलक टटका पानि नेने आबह।
अपन आगत-भागत देखि श्‍यामलाल बाबूक मनमे उठलनि जे धड़फड़ा कऽ पहिने अपन प्रश्ने नै राखब। कुशल क्षेम हेबे करत, ताबे गिरधरो निचेन भेल रहत। ओकरे अगुआ किए ने प्रश्‍न उठाएब। दू गिलास पानि एक गिलास चाह पीला पछाति श्‍यामलाल बाबू गिरधरकेँ कहलखिन-
बौआ, कनी अपन ड्राॅईंग-कॉपी लाबह ते।
अपन ड्राॅईंग-कॉपी गिरधर आनि आगूमे रखि देलकनि। ऊपरका पन्ना उल्‍टा, सुबललालक आगूमे रखैत श्‍यामलाल बजला-
बच्‍चा एहेन चित्र बनौने अछि जे नीक जकाँ अपनो ने बूझि पाबि रहल छी।
पोताकेँ अपन कहल बात सुबललालकेँ मन पड़लनि। कॉपी उठा देखलनि तँ बूझि पड़लनि जे जहिना कहने छेलिऐ तहिना हू-बहू चित्र बनौने अछि! मन खिललनि। खिलिते बिहुसलनि। बिहुसिते बजला-
मास्‍सैव, केहेन बढ़ियाँ तँ चित्र सचित्र बनले अछि तखनि विचित्र की?”
एक तँ ओहिना श्‍यामलाल बाबूक मन चित्र देखि चितराएल रहनि तैपर सुबललालक समर्थन देखि आरो चितिर-बितिर भऽ गेलनि। मनमे घमर्थन जगलनि। घमर्थन ई जे सुबललाल साधारण पढ़ल-लिखल गिरहस्‍थ छथि, मुदा अपने तँ से नै छी, एक तँ बी.ए. पास केने छी तैपर दिन चरजो तँ पढ़ले-लिखलक अछि, केना बाजब जे नीक जकाँ नै बुझलौं। अपनाकेँ समगम करैत श्‍यामलाल बजला-
किछु तँ नजरिपर चढ़ि रहल अछि, मुदा किछु चढ़िए ने रहल अछि।
बजैक वेगमे श्‍यामलालक विचार भँसियाइत जहिना कोनो वस्‍तु धारामे भँसि जाइए तहिना आगू बढ़ि गेलनि मुदा लगले बाजबक प्रवाहकेँ मनक छोड़सँ खिंचलनि। छोर खिंचैक कारण भेलनि जे जँ कहीं सुबललाल पूछि दथि जे की सभ नजरिपर चढ़ल आ की सभ नै चढ़ल। तखनि तँ आरो जड़ि-तड़ि मुसरा नेने उखरि जाएब! मनमे अबिते जेना मुँहक सुरखी विधुआ गेलनि। मुदा संयोग नीक रहलनि जे सुबललाल से नै पूछि, बजला-
मास्‍सैव, पहाड़, समुद्र, धरती, पताल, अकास सभ मिलि जे एकटा विराट सूरत बनल अछि, सएह तँ छी।
जहिना पोखरि वा धारक अथाह पानिमे खेलाड़ी उगी-डुमी खेल खेलैए, आ जखनि उगि पकड़ा जाइए आ डुमबए लगै छै तखनि डुमैसँ नीक हरदा बाजि अपने चोर बनि जाइए तहिना श्‍यामलालक मनमे भेलनि। मुदा लगले मन कहलकनि अनेरे मनकेँ हारि मनबा रहल छी। ई विचार दोख छी। नान्‍हिटा बात अछि जे सुबललाल हमरासँ जहिना उमेरमे बेसी छथि, तहिना जिनगीओक भिन्न आनन-कानन तँ छन्‍हिहेँ। जेहेन जिनगी रहत तहने ने नन-नन्‍दन बोन-झाड़ हएत। जे सोभाविको अछिए। तहूमे ऐठाम कियो तेसर थोड़े अछि जे अनका देखि संकोचो हएत। बजला-
चाचाजी, हम भलहिं शिक्षक छी, वृत्तिए शिक्षा-दीक्षासँ जुड़ल छी, मुदा कहलो तँ जाइते छै जे जेतए ने जाए रवि, तेतए जाए कवि आ जेतए ने जाए कवि, तेतए जाए अनुभवी। जहिना गिरधरकेँ कथारूपमे गामक शकल-सूरत बुझा देलिऐ, तहिना एकबेर आरो दोहरा दियौ।
श्‍यामलाल बाबूक जिज्ञासा देखि सुबललालक मनमे उठलनि, जे जिज्ञासा श्‍यामबाबूक छन्‍हि ओकरा मुहोँमुह[2] पुराएब कठिन अछि। दू मुँहक बात आ दू मनक विचार छी। एके जिज्ञासाक भिन्न-भिन्न रूप होइ छै। एक भूख ओहन होइ छै जखनि जठराग्‍नि आत्‍मा जरबए लगै छै, आ दोसर एहनो तँ होइते छै जैठाम खानापुरी होइ छै। मुदा लगले मनमे उपकलनि जे एक-एक रेखा आ रेखासँ रेखाएल शकल-सूरतक चर्च करैत चलब, जेतए बुझैमे नै औतनि तेतए प्रश्न उठौता, जँ से नै उठौता तँ बूझब जे जिज्ञासाक अनुकूल मन मन्‍दिर भऽ रहल छन्‍हि।
चित्रकलाक कॉपी दुनू गोरेक बीचमे पसारि आँगुरसँ देखबैत सुबललाल बजला-
ई समुद्र भेल, समाज रूपी समुद्र। अथाह जलराशिक भण्‍डार। अहूमे जुआर उठै छै, जे हवा, पानिकेँ अपना पेटसँ निकालि अकासमे पसारैए, जइसँ बर्खाक संग तूफानो उठै छै। जइसँ पानि, हवासँ धरती भरि जाइ छै।
आगूक बात सुबललालक पेटेमे रहनि आकि बिच्‍चेमे श्‍यामलाल बाबू दोसर रेखापर आँगुर रखैत बजला-
?”
पहिने सुबललाल रेखाक सूरत देखलनि फेर श्‍यामलालक सूरत मिलौलनि, अपन सूरत मिलबैत बजला-
ई धार भेल। जेकरा जीवनो-धार कहि सकै छिऐ, जे वैदिक धार कहियो कल-कल हँसैत, प्रवाहित होइ छल ओ आब मरण भऽ गेल। तँए पानिक जगह बालु उड़ैए।
पानि-बालु सुनि श्‍यामलाल बाबूक मन सुमरि-धुमरि कऽ घुमड़लनि। कॉपीपर सँ नजरि उठा सुबललालक नजरिपर फेकलनि। बिहुसैत मन खिलैत रंगाएल चेहरा देखि बजला-
पानिए सँ बाउल आ बाउलेसँ ने पाइनो होइए।
श्‍यामलाल बाबूक प्रश्न सुनि सुबललालक मन एक डेग आगू बढ़लनि। बढ़िते बजला-
यएह तँ दुनियाँक चकरचालि छी जे एक दिस वएह बालु पानिक सतह बनि ऊपर जल बरसन करैए जइसँ धरतीक कोखि जुड़ाइ छै आ दोसर दिस धरतीकेँ मरू बना मरूआ उपजबैए।
सुबललालक बात सुनि श्‍यामलाल बाबू ठहाका लगा हँसला। जहिना कनितोकाल मन बजैए, तहिना ने हँसितोकाल बजैए। श्‍यामलाल बाबूक हँसी बाजल-
ई तँ भेल धरती, समुद्र। मुदा दुनूक जे जोड़ अछि से...?”
श्‍यामलाल बाबूक बात पकड़ैत सुबललाल बजला-
जहिना अकासमे चन्‍द्रमुखी, सुर्जमुखी फूल फुलाइए तहिना धरतीओमे ज्‍वालामुखीक लावा-फूल सेहो तँ फुलाइते अछि। जेहेन फूल फुलाएत तेहने ने गामक शकल-सूरत बनत।
जहिना पेट भरलापर ढकार बनि हवा निकलैए, श्‍यामलाल बाबूक मन तहिना भरि मन ढकरलनि। बजला किछु ने, सूर्यास्‍तक समए सेहो भऽ गेल। मुदा जहिना अर्द्ध-लघुक अवस्‍था, अर्द्ध-कथाक अवस्‍था आ अर्द्ध-गीतक विरह अवस्‍था होइए तहिना श्‍यामलाल बाबूकेँ सेहो भेलनि। मुदा घरोपर, परिवारोमे तँ आन दिनक अपेक्षा अनदेशा होइते हेतनि। मनमे अबिते बजला-
अबेर भऽ गेल, दोसर दिन फेर गप-सप्‍प हेतै।
अपन मर्यादा निमाहैत सुबललाल बजला-
आब तँ बाट-बटोहीकेँ ठौर पकड़बा बेर भऽ गेल, तखनि जाएब केना?”
मुस्‍की दैत श्‍यामलाल बाबू बजला-
केतौ अनतए जाएब जे हराइ-भोथिआइक सम्‍भावना रहत। अपन घर छी, कनी अबेर-सबेर पहुँचब सएह ने।¦२५९६¦  
२० अक्‍टुबर २०१४


[1] खगल लोक
[2] उपोउप, लबालब

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