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Friday, October 17, 2014

खोंटकर्मा


खोंटकर्मा






करि‍या काकाकेँ देहमे जेते रुइयाँ नै छन्‍हि‍ तइसँ बेसी नाओं छन्‍हि‍। रंग-रंगक नाओं। कि‍यो करि‍या काका तँ कि‍यो करि‍या भैया, कि‍यो करि‍या घोड़ा तँ कि‍यो करि‍या हाथी, कि‍यो करि‍या गाए, कि‍यो करि‍या बाघ तँ कि‍यो करि‍या बि‍लाइ कहै छन्‍हि‍। एते रंगक नाओं ओहि‍ना थोड़े छन्‍हि‍ आकि‍ ताइ पाछू कारणो छन्‍हि‍। कारण छन्‍हि‍ जे काजकेँ तेना उतारि‍ जि‍नगी बनौने छथि‍ जे काजे सोझ कऽ देने छन्‍हि‍। काज सोझ भेने चालि‍ओ-ढालि‍ आ बोलीओ-वाणी सोझ भऽ गेल छन्‍हि‍ जइसँ ने केकरो दोस बुझै छथि‍न आ ने दुश्‍मन। सभ सेर बरबरि‍। जहि‍ना छि‍ड़ि‍याएल फुलवाड़ीक दुनि‍याँमे छि‍ड़ि‍याएल फुलो आ फूलसँ फड़ैत फड़ो लुधकल रहैए, आ जे तकनि‍हार अछि‍ ओ अपन फूल-फड़ ताकि‍ रसो पीबैए आ सुगन्‍धो लइए, मुदा दुसनि‍हारो तँ दुसि‍ते अछि‍। आेना अपन-अपन मरजी तँ सभकेँ अपन-अपन छइहे। जँ कि‍यो अड़हुलकेँ सुगन्‍धि‍‍त आ बेली-चमेली, जुहीकेँ ललगर-रंगगर कहत तँ कहत तेकरा आन की करतै। परखनि‍हार ने परखत जे सुगन्‍धि‍‍त बेली, चमेली, जुही होइए आ रंगगर अड़हुल। घरसँ नि‍कलि‍ते जखनि‍ कि‍यो करि‍या काकाक सोझ पड़ै छन्‍हि‍ तखनि‍ बुझले काज-बात जकाँ पूछि दइ छथि‍न-
तोहर गाए पाल खेलकह की नै?” 


अन्‍तिममे.......................................



मुस्‍की दैत करि‍या काका बजला-
हम अधला कहाँ कहलौं झूठ कहलौं। भेल कि‍ रहए से आइ कहै छी...।
बि‍च्‍चेमे काकी टोकलकनि‍-
एते दि‍न कि‍ए ने कहने छेलौं?”
अहाँक डरे नै बजलौं।
की डर?”
यएह जे गंगाक दछि‍नवरि‍ए घाटमे नहेबो केने रही आ गंगाजलो भरने रही। मुदा...।
काकीक मनमे उत्तर-दछि‍न गंगा नचलनि‍। तखनि‍ तँ मग्गहेक गंगा जल अनेने छला! बजली-
दछि‍नवरि‍ए भाग नहेनौं रही आ शीशीमे गंगाजलो भरने रही?”
सि‍नेह सि‍क्‍त हृदए खोलि‍ करि‍या काका बजला-
ओही घाटक जल बाबाकेँ सेहो चढ़ै छन्‍हि‍। जँ कनीए झूठ बजने उत्तर-दछि‍न एक घट्टा बनि‍ जाए, तँ अधले की भेल?”
हँ से तँ नहि‍येँ भेल।¦१,१८४¦ 

१९ अप्रैल २०१४ 

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