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Friday, October 17, 2014

नैहराक धाड़


नैहराक धाड़






ि‍चन्‍तासँ चि‍ताएल चि‍त्त देखि‍ लाल काकीकेँ स्‍नातक पूर्वाद्धक छात्र सोहन पुछलकनि‍-
लाल काकी, मन कि‍ए पीड़ौंछ बूझि‍ पड़ैए?”
भावातीतमे डुमल लाल काकी आरो डुमकी लगबै दुआरे बहाना बनबैत बजली-
बच्‍चा, कनी-मनी नोनगर-अनोन तीमन-तरकारी भेने कि‍यो खाएब थोड़े छोड़ैए, तेहने जकाँ भऽ गेल अछि‍, और नै कि‍छु।
लाल काकीक बहटारैत उत्तर सुनि‍ तत्काल सोहन गप करबकेँ कम गुनगर बूझि‍ कौलेज, ई सोचि‍ आगू बढ़ल जे साँझू पहर नि‍चेनसँ काकीकेँ खरि‍आइर कऽ पुइछ बूझि‍ लेब।
अट्ठारह बर्खक अवस्‍थामे लाल काकी कर्णपुरसँ दुरागमन भऽ सोहनपुर आएल छेली। आइसँ चालीस बरख पूर्व। सम्‍पन्न परि‍वार। सम्‍पन्न परि‍वारक अर्थ ई नै जे चौघारा कोठा छेलनि‍, दुआरपर हाथी आ बखारी छेलनि‍, सम्‍पन्नताक ई अर्थ जे जहि‍ना नैहरक पाँच बीघा खेतबला परि‍वार, दुआरपर जोड़ भरि‍ बरद, दूटा महिंस, दस कट्ठाक घराड़ी, जइमे चौघारा खपड़ाक दुआरो आ अँगनोक घर, कट्ठाभरि‍ अगि‍वास, पान-सात कट्ठाक चौमासक संग घराड़ी जुटल। ओना गुनि‍याँ-परकाल आकि‍ फीता-कड़ीसँ तँ सासुरक घराड़ी नै नापल छेलनि‍ मुदा देखैमे एकरंगाहे बूझि‍ पड़ैत। 


अन्‍तिममे...............




लाल काकी बजली-
बौआ, जइ परि‍वारमे छी तइ परि‍वारमे नारी जाति‍क हाथक काज छीनि‍ लेल गेल अछि‍। जँ कि‍यो करौ चाहत तँ जि‍नगीक बात हल्‍लुक बनि‍ जाइ छै आ कुटी-चालि‍क बात पसरि‍ जाइ छै।
ओना सोहन लाल काकीक मनक बात नीक जकाँ नै बूझि‍ पौलक, मुदा वि‍चारक रस पाबि‍ मुड़ी डोलबैत बाजल-
हँ, से तँ अछि‍ए!¦८८१¦
१४ मई २०१४

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