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Thursday, October 23, 2014

उझट बात

उझट बात











चारि‍ बजि‍ कऽ पाँच मि‍नट भऽ गेल। राजमि‍स्‍त्रीक संग काज केनि‍हारि‍ आने संगी-साथी जकाँ बुधनीओं बहि‍न दरबज्‍जेक चापाकलपर देह-हाथ धो कऽ ओसारपर राखल झोरा लि‍अ एली। ओसारपर बैसल प्रोफेसर साहैब, मि‍स्‍त्रीकेँ कहलखि‍न-
सभ कि‍यो चाह-पीब लि‍अ तखनि‍ जाइ जाएब।
चाह पीबैक प्रति‍क्षामे दुनू मि‍स्‍त्री आ दुनू सहयोगी ओसारक आगूमे, जैठाम चबुतरा बनि‍ रहल अछि‍, बैसि‍ गप-सप्‍प जे आइ केते काज भेल आ काल्हि‍ की सभ करैक अछि‍, शुरू केलक। आठ बजे भि‍नसरसँ चारि‍ बजे बेर तक काज चलैए। पाँच गोटेक मेरि‍या अछि‍। ओना प्रोफेसर साहैबक नजरि‍ बुधनी बहि‍नपर आठे बजे, जखनि‍ काजपर आएले छेली, पड़लनि‍ मुदा बजला कि‍छु ने। बजबे की करि‍तथि‍, रंग-रंगक वि‍चार तँ मनमे छेलनि‍हेँ। बुधनीक उमेर जरूर पचास-पचपनक हएत, पचास-पचपनक उमेर जि‍नगी उतरैक समए भेल। परि‍वारोमे बेटा-पुतोहु हेबे करतै। मुदा हेबे करतै, तेकरो कोनो ठीक थोड़े अछि‍, नहि‍योँ भऽ सकै छै। मुदा हाथक चुड़ी आ माथक सेनुर तँ कि‍छु गवाही दइते अछि‍। मुदा ई गवाही तँ पति‍क भेल, बेटाक नै। जहि‍ना कोनो काजक अपन समए होइए तहि‍ना कि‍छु बजबोक तँ अपन समए होइते अछि‍। तँए मि‍स्‍त्रीकेँ गि‍ट्टी, ि‍समेंट, बालु इत्‍यादि‍ सभ समान सुमझा काज देखा अपना काजमे प्रोफेसर साहैब लगि‍ गेला। मुदा बुधनी बहि‍न प्रोफेसर साहैबक मनकेँ पकड़ि‍ लेलकनि‍। लाली गोराइ, गठल देह, काज करैक वएह चुमकी जे जुआनीमे रहैक। मुदा बि‍ना गप-सप्‍प केने बुझि‍ओ तँ नहि‍येँ सकै छी। सभ अपन-अपन जि‍नगीमे काजक चक्कीक संग चलि‍ रहल अछि‍ तैठाम अनका बाधि‍त कऽ गपो-सप्‍प करब नीक नहि‍येँ हएत। ठेकनबैत प्रोफेसर साहैब बेरुका चाह पीबैक समैक गर अँटौलनि‍। गर अँटौलनि‍ जे दस बजेमे कौलेज जाएब, अबैक कोनो ठेकाने ने अछि‍, चारि‍ बजेक पछाति‍ओ आबि‍ सकै छी, आ लगलो आध घंटा पछाति‍ घूमि‍ कऽ आबि‍ सकै छी। अपनो परि‍यास करब जे चारि‍ बजेक चाह संगे पीब जइसँ चाहे पीबैकाल बुधनी बहि‍नकेँ लगेमे बैसा चाहो पीब आ गपो सभ करब। ट्यूसनि‍याँ वि‍द्यार्थी जकाँ प्रोफेसर साहैब अपन समैपर तैयार भऽ गेला। बुधनी बहि‍नकेँ अपनो संगी साथी आ रस्‍ताे-पेरामे चि‍न्‍हारए सबहक संग-संग बजारक दोकानदारो सभ बुधनीए बहि‍न कहैत, मुदा प्रोफेसर साहैब गामक नाओं लऽ कऽ राधोपुरवाली कहै छथि‍न। झोरा लैतेकाल प्रोफेसर साहैब बुधनी बहि‍नकेँ कहलखि‍न-
ऐ राघोपुरवाली, अहाँसँ कि‍छु गपक काज अछि‍ तँए अहाँ एतै बैसि‍ कऽ चाह पीबू।” 


अंतिम पेजसँ..........................................


प्रोफेसर साहैब-
तइसँ पहि‍ने?”
घर-अँगनाक काजो सम्‍हारै छेलौं आ खेत-पथारमे बोइनो-बुत्ता करै छेलौं।
पति‍ की करै छला?”
तइसँ पहि‍ने ओ बजारेमे रि‍क्‍शा चलबै छला। साँझू पहर दोकान-दौरीक काज केने घरपर पहुँचै छला। मुदा जइ दि‍न जीपक ठोकर रि‍क्‍शामे लगल आ जाँघ टुटलनि‍, तइ दि‍नसँ जीबै तँ छथि‍ मुदा चलै-फि‍ड़ैक तागति‍ नै छन्‍हि‍।
बाल-बच्‍चा कएटा अछि‍?”
तीन भाए-बहि‍न अछि‍। दुनू बहि‍न सासुर बसैए आ बेटा लगमे रहैए।
बेटा-पुतोहु भीन अछि‍?”
अपने भीन भऽ गेलौं।
कि‍ए?”
पुतोहुक ओ बात अखनो मन पड़ैए तँ ओहि‍ना रीश उठैए। पुतोहु बाजल जे सासुक लछने ने छन्‍हि‍। बाजल-तँ-बाजल। अपन बेटा-बेटी जकाँ थोड़े बाजल। मुदा बेटा ओकरा कि‍छु ने कहलकै, तेकर आनि‍-पीड़ा बरदास नै भेल। तही दि‍नसँ बजारक काज पकड़लौं।
अपना खेत-पथार नै अछि‍?”
नै।¦१,१५२¦

२६ जुन २०१४

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