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Friday, October 17, 2014

गंगा नहेलौं


गंगा नहेलौं






भोरे सुति उठि दिशा-मैदान दिस बिदा भेलौं, थोड़े आगू बढ़लौं कि सुचीता काकी अँगनेमे बजली-
“गंगा नहेलौं।”
काकीक बात सुनि मन ठमकल, भेल ई जे माघी पुरनिमा काल्हि‍ छिऐ, सौझुका गाड़ी पकड़ि लोक सिमरिया गंगामे डूम दिअ जाएत तखनि किए काकी एना बाजि रहल छथि। धरतीकेँ अकास किए कहि रहल छथि। कोनो अरथे ने लागए। मनमे खुटका उठि गेल। फेर भेल जे अनेरे फि‍रि‍शान होइ छी, जखनि काकी सोझहेमे छथि तखनि पुछिए किए ने लेब जे नीक हएत। अनेरे हाथक चुड़ीले एेनाक कोन काज। किए अपन अनभुआर मनकेँ रगड़ब। रस्तापर ठाढ़ भेलौं। दछिनबरिया घरक अढ़मे काकी रहथि,  हुनकर बात सुनलौं मुदा ने मुँह देखलियनि आने देह, अखनो अढ़ेमे छथि तखनि पुछबनि केना? नै पुछबनि तँ अपन मन थीर नै हएत। ससरि कऽ आगू बढ़ि काकीक दरबज्जापर पहुँचि‍ते खखसलौं। खखैसि‍ते काकी बूझि गेली जे भरिसक कियो दरबज्जापर छथि। ऊहो आँगनसँ ससरि दरबज्जापर एली। अबिते मनमे भेल जे कुशल-समाचारसँ गप शुरू करी, मुदा फेर भेल जे अखनि गंगा स्नानक समए अछि जँ कहीं अपन स्नानक वृतान्त उठा देलनि आ सुनैत-सुनैत अपने बात बिसरि जाए तखनि तँ आरो गजपट हएत। केतए गेलौं तँ केतौ ने से भऽ जाएत। एकटा युक्ति फुड़ल। फुड़ल ई जे जँ आगू भऽ कऽ काकीए पूछि देलनि जे केम्हर एलौं। तखनि अपने सवाल सुढ़िया कऽ पूछि देबनि। मुदा मनक बात ऊहो बुझती तखने ने, जँ कहीं दोसरे दिस भँसिया गेली तखनि बिना ओतएसँ पकड़ि अनने बिना पुछबो केना करबनि। ततमतमे ततमताइते रही आकि सुचीता काकी बजली-
बौआ, भोरे-भोर देखै छिअ?” 

अंतमे..................


विस्मित होइत काकी बजली-
बौआ, आब बुझै छी जे बुधिमे आगि लगि गेल। पनरह लाख रूपैआ खर्च करि‍ कऽ बेटीकेँ डाक्टर बनेलौं। समाजक कहबमे मन बौआ गेल जे डाक्टरकेँ डाक्टरसँ कम योग्य बर केना हएत। तकैत-तकैत तीन साल जे भेल से केकरा कहबै, देह लगा कऽ मारि लेलौं। मुदा एते कीमती बेटीक मोल यएह होइ जे पच्चीस लाखक बिआहो होए!
बजैत-बजैत काकी आँखिक नोर पोछैत बजली-
परसू बिआहक सभ प्रकिया सम्पन्न भऽ गेल। सात गंगा नहेलो-फल पाबि गेलौं।¦६८६¦

१९ मार्च २०१४

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